अजीब बिडंबना है। यूपी में नौकरी के लिए यहां की डिग्रियों पर लाहौर का अदना सा सर्टिफिकेट भारी पड़ रहा है।
असल में प्रशिक्षित स्नातक प्रवक्ता (टीजीटी) (कला विषय) की भर्ती के लिए२०१३ में विज्ञापन जारी किया गया था।
अब इसमें लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स की टीचर्स सीनियर सर्टिफिकेट को तरजीह देने की बात सामने आई है।
असल में प्रशिक्षित स्नातक प्रवक्ता (टीजीटी) (कला विषय) की भर्ती के लिए२०१३ में विज्ञापन जारी किया गया था।
अब इसमें लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स की टीचर्स सीनियर सर्टिफिकेट को तरजीह देने की बात सामने आई है।
आजादी से पहले की हैं अर्हताएं
चूंकि भर्तियां इंटरमीडिएट शिक्षा कानून १९२१ के मुताबिक होनी हैं इसलिए इसमें अर्हताएं भी आजादी के पहले वाली ही हैं।
इसमें भर्ती के लिए भारत के राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों की बैचलर ऑफ विजुअल आर्ट्स (बीवीए) और बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए) की डिग्रियां तभी मान्य हैं जब उसमें टेक्निकल ड्राइंग शब्द का उल्लेख हो।
यह न होने पर भर्ती के लिए इन डिग्रियों का कोई महत्व नहीं है।
यूजीसी से मिली है मान्यता
इसमें एक उलटबांसी और है। ये डिग्रियां यूजीसी से मान्य हैं और विश्वविद्यालयों में भर्ती के लिए जरूरी हैं।
इस विसंगति को दूर करने लिए लखनऊ विश्वविद्यालय के कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्राचार्य पी. राजीवनयन और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शनकला विभाग के अध्यक्ष अजय जेटली ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शैक्षणिक अर्हता के नियमों में संशोधन की मांग की है।
दोनों ने राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालय की बैचलर ऑफ विजुअल आर्ट्स (बीवीए) और बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए) पर पाकिस्तानी सर्टिफिकेट को तरजीह देने को गलत ठहराया है।
क्या कहना है कि इनका
लखनऊ विश्वविद्यालय के कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर राजीवनयन का कहना है कि चयन प्रक्रिया के लिए आजादी से पहले बने कानून को आधार बनाना गलत है।
बीवीए या बीएफए के कोर्स को शैक्षणिक अर्हता में शामिल किया जाना चाहिए। वहीं इलाहाबाद विवि के दर्शनकला विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय जेटली का कहना है कि लाहौर की सर्टिफिकेट परीक्षा को अर्हता में शामिल रखना ही गलत है।
मुम्बई की थर्ड ग्रेड ड्राइंग परीक्षा कराने के लिए महाराष्ट्र में कई जगह प्राइवेट लोगों को फ्रेंचाइजी दी गई है। इसमें भी गुणवत्ता नहीं। पाकिस्तानी सर्टिफिकेट को तो कतई महत्व न दिया जाए।
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