- पूरे विश्व में सामान्यतः शीत ऋतु में मुख्य रूप से गोभी खाई जाती है, जो अनेक गुणों से भरपूर है। गोभी को कच्चा भी खाया जा सकता है।
- फूलगोभी खाने में ठंडी और तर होती है।
- फूलगोभी में थोड़ी सी प्रोटीन , फॉस्फोरस, लौह तत्व, पोटैशियम, गंधक, नियासीन और विटामिन `सी´ आदि तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
- गोभी में गंधक एवं क्लोरीन घटकों की मात्रा अधिक होती है, जिसके कारण यह शरीर की गंदगी साफ करने का काम करती है।
- फूलगोभी ना सिर्फ खाने में बल्कि तिल को साफ करने में भी काफी कारगर होती है। घर में इसका रस तैयार करें और रोज तिल वाली जगह पर लगाए। इससे कुछ ही दिनों में पुरानी त्वचा धीरे धीरे साफ होने लगेगी और तिल गायब हो जाएगा।
- फूलगोभी में गंधक बहुत मिलता है। गंधक खुजली, कुष्ठ (कोढ़) आदि चर्म (त्वचा) रोगों में हितकारी होती है। फूलगोभी खून को साफ करती है।
- फूलगोभी में "सलफोराफीन" रसायन पाया जाता है जो सेहत के लिए, ख़ासकर दिल के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद होता है।
- गोभी में कुछ ऐसे तत्व एवं घटक हैं, जो मानव में रोग प्रतिकार शक्ति को बढ़ाते हैं एवं समय से पहले आने वाली वृद्धावस्था को रोकते हैं।
- गोभी में ’’ टारट्रोनिक ‘‘ नामक एसिड होता है, जो चरबी, शर्करा एवं अन्य पदार्थों को इकट्ठा होने से रोकता है, जिससे शरीर का आकार बना रहता है।
- कब्ज़ में रात को गोभी का रस पीने से लाभ होता है।
- गोभी में क्षारीय तत्त्व होते हैं। जिससे क्षय रोगी को भी लाभ होता है।
- गोभी खाते रहने से चर्म रोग, गैस, नाख़ून और बालों के रोग नष्ट होते हैं।
- कच्ची गोभी, पकी गोभी से ज्यादा सुपाच्य होती है।
- गोभी स्नायु मजबूत करती है ।
- गोभी में गंधक एवं क्लोरीन आंतों के मार्ग साफ करने में उपयोगी हैं, परंतु यह तब ही संभव है जब गोभी या इसके रस को कच्चा लिया जाए।
- पेट अल्सर का रोगी सामान्य भोजन के बाद दिन में तीन बार तीन से छह औसतन जितना गोभी का रस पिएं या चार से पांच बार कच्ची गोभी खाएं तो पेट एवं अल्सर के रोग में फायदा हो सकता है।
- सूजन, दाह, जख्म आदि दूर करने में भी गोभी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- चोट या जले जख्म पर गोभी के पत्तों को गरम पानी में धोकर उसके बाद उन्हें कपड़े में सुखाकर चोट पर लगाने से फायदा होता है।
- गोभी में विटामिन ’सी‘ होता है, जो रक्त वाहिनियों को मजबूत करता है।
- गोभी वृद्ध लोगों के लिए भी फायदेमंद है।
- गोभी का रस पीते रहने से आँखों की कमजोरी और पीलिया में लाभ होता है।
- इसके अत्यधिक प्रयोग से वायु बन सकती है। इससे बचने के लिये इसे बराबर मात्रा में गाजर के साथ खाना चाहिये।
- गोभी का रस पीते रहने से जोड़ों और हडि्डयों का दर्द, अपच (भोजन का न पचना), आंखों की कमजोरी और पीलिया आदि रोगों में लाभ मिलता है।
- रक्त (खून) की उल्टी : फूलगोभी की सब्जी खाने से या इसे कच्ची ही खाने से खून की उल्टी होना बंद हो जाती है। टी.बी. (क्षय) के रोगी के लिए भी यह बहुत ही हितकारी है।
- खूनी बवासीर और बादी बवासीर : फूलगोभी खाने से खूनी बवासीर और साधारण (बादी) बवासीर ठीक हो जाती है।
- पेशाब की जलन होने पर : फूलगोभी की सब्जी का सेवन करने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है।
- कोलाइटिस के रोग : सुबह खाली पेट एक तिहाई कप गोभी का रस रोजाना पीने से कोलाइटिस, कैंसर और कब्ज तथा जख्म आदि रोगों में लाभ होता है।
- कब्ज : रात को सोते समय आधा गिलास गोभी का रस पीने से कब्ज के रोग में लाभ होता है।
- रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला) : गोभी में क्षारीय तत्व होते हैं। गोभी में पाया जाने वाला सल्फर और क्लोरीन का मिश्रण म्युकस, मेमरिन तथा आंतों की सफाई करता है।
- आदिवासियों के अनुसार इसके पत्तों को कुचलकर रस तैयार किया जाए और कुल्ला किया जाए तो मसूढ़ों से खून का निकलना बंद हो जाता है। वैसे कच्ची फूल गोभी को चबाने से मसूडों की सूजन भी उतर जाती है
- पत्तों को कुचलकर तैयार किया रस प्रतिदिन पीने से गठिया रोग के निदान में भी लाभकारी होता है। माना जाता है कि कम से कम तीन माह तक अक्सर इस रस का सेवन करते रहने से हर तरह के दर्द की छुट्टी हो जाती है।
- कच्ची फूलगोभी को साफ धोकर चबाने से खून साफ होता है और अनेक चर्मरोगों में आराम मिलता है। लौह तत्वों और प्रोटीन्स के पाए जाने के कारण शारीरिक शक्ति को प्रबल बनाने में भी इसका योगदान होता है।
- फूल गोभी और गाजर का रस समान मात्रा में तैयार कर इसका १ गिलास प्रतिदिन दिन में दो बार देने से पीलिया ग्रस्त रोगी को फायदा होता है।
ब्रोकोली -
- ब्रोकली को पका कर या फिर कच्चा भी खाया जा सकता है, लेकिन अगर आप इसे उबाल कर खाएंगे तो आपको ज्यादा फायदा होगा।
- इस हरी सब्जी में लोहा, प्रोटीन, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, क्रोमियम, विटामिन ए और सी पाया जाता है, जो सब्जी को पौष्टिक बनाता है। इसके अलावा इसमें फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट भी होता है, जो बीमारी और बॉडी इंफेक्शन से लड़ने में सहायक होता है।
- ब्रोकोली विटामिन सी से भरी हुई है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनती है।
- ब्रोकोली क्रोमियम का बहुत अच्छी स्रोत है, जो मधुमेह पर नियंत्रण और शरीर में इंसुलिन के उत्पादन को नियंत्रित करती है।
- शोधकर्ताओं के अनुसार, ब्रोकोली में बीटा - कैरोटीन होता है जो आंखों में मोतियाबिंद और मस्कुलर डीजेनरेशन होने से रोकती है। - यह माना जाता है कि ब्रोकोली में यौगिक सल्फोरापेन होता है जो यूवी रेडियेशन के कारण होने वाले प्रभाव से त्वचा को नुकसान पहुंचाने और सूजन को कम करने में सहायक होती है।
- ब्रोकोली में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम और जिंक होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसलिए, यह बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिये बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि इनमें ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बहुत ज्यादा होता है।
- ब्रोकली शरीर को एनीमिया और एल्जाइमर से बचाती है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा आइरन और फोलेट पाया जाता है।
- ब्रोकोली को नियमित खाने से गर्भवती महिलाओं को मदद मिलती है। यह फोलेट का एक अच्छा स्रोत है जो भ्रूण में मस्तिष्क संबंधी दोषों को रोकने में मदद करती है।
- डाइट में ब्रोकली को शामिल करने से कुछ तरह के कैंसर जैसे स्तन कैंसर, लंग और कोलोन कैंसर के रिस्क को कम करती है। इसमें फाइटोकेमिकल्स होने के कारण, यह एंटी कैंसर न्यूट्रिशनल वेजिटेबल है।
- यह फाइबर, क्रोमियम, और पोटेशियम का अच्छा स्त्रोत है, जो कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर सकता है और रक्तचाप को भी नियंत्रित करता है।
- ब्रोकोली में कैरोटीनॉयड ल्यूटिन होता है जो हृदय की धमनियों को मोटा होने से रोकता है, जिससे हार्ट अटैक और अन्य हार्ट सबंधी बीमारियों का रिस्क टलता है।
- ब्रोकली खाने से न केवल स्वास्थ्य और पोषण मिलता है, बल्कि इसमें लो कैलोरी होने की वजह से वजन भी कम होता है। अब आप जब भी सब्जियां खरीदने जाएं, तो ब्रोकली को कभी नजरअंदाज न करें।
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लौंग के फायदे और घरेलु नुस्खे -----
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चाहे भोजन का जायका बढ़ाना हो या फिर दर्द से छुटकारा, छोटी सी लौंग को न सिर्फ अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है बल्कि इसके फायदे भी अनेक हैं। साधारण से सर्दी-जुकाम से लेकर कैंसर जैसे गंभीर रोग के उपचार में लौंग का इस्तेमाल किया जाता है। इसके गुण कुछ ऐसे हैं कि न सिर्फ आयुर्वेद बल्कि होम्योपैथ व एलोपैथ जैसी चिकित्सा विधाओं में भी बहुत अधिक महत्व आंका जाता है।
भोजन में फायदेमंद
मसाले के रूप में लौंग का इस्तेमाल शरीर के लिए बहुत फायदेमंद है। इसमें प्रोटीम, आयरन, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटैशियम, सोडियम और हाइड्रोक्लोरिक एसिड भरपूर मात्रा में मिलते हैं। इसमें विटामिन ए और सी, मैग्नीज और फाइबर भी पाया जाता है।
दर्दनाशक गुण
लौंग एक बेहतरीन नैचुरल पेनकिलर है। इसमें मौजूद यूजेनॉल ऑयल दांतों के दर्द से आराम दिलाने में बहुत लाभदायक है। दांतो में कितना भी दर्द क्यों न हो, लौंग के तेल को उनपर लगाने से दर्द छूमंतर हो जाता है। इसमें एंटीबैक्टीरियल विशेषता होती है जिस वजह से अब इसका इस्तेमाल कई तरह के टूथपेस्ट, माउथवाश और क्रीम बनाने में किया जाता है।
गठिया में आराम
गठिया रोग में जोड़ों में होने वाले दर्द व सूजन से आराम के लिए भी लौंग बहुत फायदेमंद है। इसमें फ्लेवोनॉयड्स अधिक मात्रा में पाया जाता है। कई अरोमा एक्सपर्ट गठिया के उपचार के लिए लौंग के तेल की मालिश को तवज्जो देते हैं।
श्वास संबंधी रोगों में आराम
लौंग के तेल का अरोमा इतना सशक्त होता है कि इसे सूंघने से जुकाम, कफ, दमा, ब्रोंकाइटिस, साइनसाइटिस आदि समस्याओं में तुरंत आराम मिल जाता है।
बेहतरीन एंटीसेप्टिक
लौं व इसके तेल में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जिससे फंगल संक्रमण, कटने, जलने, घाव हो जाने या त्वचा संबंधी अन्य समस्याओं के उपचार में इसका इस्तेमाल किया जाता है। लौंग के तेल को कभी भी सीधे त्वचा पर न लगाकर किसी तेल में मिलाकर लगाना चाहिए।
पाचन में फायदेमंद
भोजन में लौंग का इस्तेमाल कई पाचन संबंधी समस्याओं में आराम पहुंचाता है। इसमें मौजूद तत्व अपच, उल्टी गैस्ट्रिक, डायरिया आदि समस्याओं से आराम दिलाने में मददगार हैं।
कैंसर
शोधकर्ताओं का मानना है कि लौंग के इस्तेमाल से फेफड़े के कैंसर और त्वचा के कैंसर को रोकने में काफी मदद मिल सकती है। इसमें मौजूद युजेनॉल नामक तत्व इस दिशा में काफी सहायक है।
अन्य फायदे
इतना ही नहीं, लौंग का सेवन शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है और रक्त शुद्ध करता है। इसका इस्तेमाल मलेरिया, हैजा जैसे रोगों के उपचार के लिए दवाओं में किया जाता है। डायबिटीज में लौंग के सेवन से ग्लूकोज का स्तर कम होता है। लौंग का तेल पेन किलर के अलावा मच्छरों को भी दूर भगाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।
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शीत ऋतु में उपयोगी पाक -------
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शीतकाल में पाक का सेवन अत्यंत लाभदायक होता है। पाक के सेवन से रोगों को दूर करने में एवं शरीर में शक्ति लाने में मदद मिलती है। स्वादिष्ट एवं मधुर होने के कारण रोगी को भी पाक का सेवन करने में उबान नहीं आती।
पाक बनाने की सर्वसामान्य विधिः पाक में डाली जाने वाली काष्ठ-औषधियों एवं सुगंधित औषधियों का चूर्ण अलग-अलग करके उन्हें कपड़छान कर लेना चाहिए। किशमिश, बादाम, चारोली, खसखस, पिस्ता, अखरोट, नारियल जैसी वस्तुओं के चूर्ण को कपड़छन करने की जरूरत नहीं है। उन्हें तो थोड़ा-थोड़ा कूटकर ही पाक में मिला सकते हैं।
पाक में सर्वप्रथम काष्ठ औषधियाँ डालें, फिर सुगंधित पदार्थ डालें। अंत में केसर को घी में पीसकर डालें।
पाक तैयार होने पर उसे घी लगायी हुई थाली में फैलाकर बर्फी की तरह छोटे या बड़े टुकड़ों में काट दें। ठंडा होने पर स्वच्छ बर्तन या काँच की बरनी में भरकर रख लें।
पाक खाने के पश्चात दूध अवश्य पियें। इस दौरान मधुर रसवाला भोजन करें। पाक एक दिन में ज्यादा से ज्यादा 40 ग्राम जितनी मात्रा तक खाया जा सकता है।
अदरक पाकः-
अदरक के बारीक-बारीक टुकड़े, गाय का घी एवं गुड़ – इन तीनों को समान मात्रा में लेकर लोहे की कड़ाही में अथवा मिट्टी के बर्तन में धीमी आँच पर पकायें। पाक जब इतना गाढ़ा हो जाय कि चिपकने लगे तब आँच पर से उतारकर उसमें सोंठ, जीरा, काली मिर्च, नागकेसर, जायफल, इलायची, दालचीनी, तेजपत्र, लेंडीपीपर, धनिया, स्याहजीरा, पीपरामूल एवं वायविंडम का चूर्ण ऊपर की औषधियाँ (अदरक आदि) से चौथाई भाग में डालें। इस पाक को घी लगे हुए बर्तन में भरकर रख लें।
शीतकाल में प्रतिदिन 20 ग्राम की मात्रा में इस पाक को खाने से दमा, खाँसी, भ्रम, स्वरभंग, अरुचि, कर्णरोग, नासिकारोग, मुखरोग, क्षय, उरःक्षतरोग, हृदय रोग, संग्रहणी, शूल, गुल्म एवं तृषारोग में लाभ होता है।
खजूर पाकः-
खारिक (खजूर) 480 ग्राम, गोंद 320 ग्राम, मिश्री 380 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, लेंडीपीपर 20 ग्राम, काली मिर्च 30 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपत्र, चित्रक एवं इलायची 10 -10 ग्राम डाल लें। फिर उपर्युक्त विधि के अनुसार इन सब औषधियों से पाक तैयार करें।
यह पाक बल की वृद्धि करता है, बालकों को पुष्ट बनाता है तथा इसके सेवन से शरीर की कांति सुंदर होकर, धातु की वृद्धि होती है। साथ ही क्षय, खाँसी, कंपवात, हिचकी, दमे का नाश होता है।
बादाम पाकः-
बादाम 320 ग्राम, मावा 160 ग्राम, बेदाना 45 ग्राम, घी 160 ग्राम, मिश्री 1600 ग्राम तथा लौंग, जायफल, वंशलोचन एवं कमलगट्टा 5-5 ग्राम और एल्चा (बड़ी इलायची) एवं दालचीनी 10-10 ग्राम लें। इसके बाद उपरोक्त विधि के अनुसार पाक तैयार करें।
नोटः बड़ी इलायची के गुणधर्म वही हैं जो छोटी इलायची के होते हैं ऐसा द्रव्य-गुण के विद्वानों का मानना है। अतः बड़ी इलायची भी छोटी के बराबर ही फायदा करेगी। बड़ी इलायची छोटी इलायची से बहुत कम दामों में मिलती है।
इस पाक के सेवन से वीर्यवृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है, वातरोग में लाभ होता है।
मेथी पाकः-
मेथी एवं सोंठ 320-320 ग्राम की मात्रा में लेकर दोनों का चूर्ण कपड़छन कर लें। 5 लीटर 120 मि.ली. दूध में 320 ग्राम घी डालकर उसमें ये चूर्ण मिला दें। यह सब एकरस होकर गाढ़ा हो जाय, तक उसे पकायें। उसके पश्चात उसमें 2 किलो 560 ग्राम शक्कर डालकर फिर से धीमी आँच पर पकायें। अच्छी तरह पाक तैयार हो जाने पर नीचे उतार लें। फिर उसमें लेंडीपीपर, सोंठ, पीपरामूल, चित्रक, अजवाइन, जीरा, धनिया, कलौंजी, सौंफ, जायफल, दालचीनी, तेजपत्र एवं नागरमोथ, ये सभी 40-40 ग्राम एवं काली मिर्च का 60 ग्राम चूर्ण डालकर हिलाकर ऱख लें।
यह पाक 40 ग्राम की मात्रा में अथवा पाचनशक्ति अनुसार सुबह खायें। इसके ऊपर दूध न पियें।
यह पाक आमवात, अन्य वातरोग, विषमज्वर, पांडुरोग, पीलिया, उन्माद, अपस्मार, प्रमेह, वातरक्त, अम्लपित्त, शिरोरोग, नासिकारोग, नेत्ररोग, सूतिकारोग आदि सभी में लाभदायक है। यह पाक शरीर के लिए पुष्टिकारक, बलकारक एवं वीर्य वर्धक है।
सूंठी पाकः-
320 ग्राम सोंठ और 1 किलो 280 ग्राम मिश्री या चीनी को 320 ग्राम घी एवं इससे चार गुने दूध में धीमी आँच पर पकाकर पाक तैयार करें।
इस पाक के सेवन से मस्तकशूल, वातरोग, सूतिकारोग एवं कफरोगों में लाभ होता है। प्रसूति के बाद इसका सेवन लाभदायी है।
अंजीर पाकः-
500 ग्राम सूखे अंजीर लेकर उसके 6-8 छोटे-छोटे टुकड़े कर लें। 500 ग्राम देशी घी गर्म करके उसमें अंजीर के वे टुकड़े डालकर 200 ग्राम मिश्री का चूर्ण मिला दें। इसके पश्चात उसमें बड़ी इलायची 5 ग्राम, चारोली, बलदाणा एवं पिस्ता 10-10 ग्राम तथा 20 ग्राम बादाम के छोटे-छोटे टुकड़ों को ठीक ढंग से मिश्रित कर काँच की बर्नी में भर लें। अंजीर के टुकड़े घी में डुबे रहने चाहिए। घी कम लगे तो उसमें और ज्यादा घी डाल सकते हैं।
यह मिश्रण 8 दिन तक बर्नी में पड़े रहने से अंजीरपाक तैयार हो जाता है। इस अंजीरपाक को प्रतिदिन सुबह 10 से 20 ग्राम की मात्रा में खाली पेट खायें। शीत ऋतु में शक्ति संचय के लिय यह अत्यंत पौष्टिक पाक है। यह अशक्त एवं कमजोर व्यक्ति का रक्त बढ़ाकर धातु को पुष्ट करता है।
अश्वगंधा पाकः-
अश्वगंधा एक बलवर्धक व पुष्टिदायक श्रेष्ठ रसायन है। यह मधुर व स्निग्ध होने के कारण वात का शमन एवं रक्तादि सप्त धातुओं का पोषण करने वाला है। सर्दियों में जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। तब अश्वगंधा से बने हुए पाक का सेवन करने से पूरे वर्ष शरीर में शक्ति, स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है।
विधिः-
480 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को 6 लीटर गाय के दूध में, दूध गाढ़ा होने तक पकायें। दालचीनी (तज), तेजपत्ता, नागकेशर और इलायची का चूर्ण प्रत्येक 15-15 ग्राम मात्रा में लें। जायफल, केशर, वंशलोचन, मोचरस, जटामासी, चंदन, खैरसार (कत्था), जावित्री (जावंत्री), पीपरामूल, लौंग, कंकोल, भिलावा की मींगी, अखरोट की गिरी, सिंघाड़ा, गोखरू का महीन चूर्ण प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। रस सिंदूर, अभ्रकभस्म, नागभस्म, बंगभस्म, लौहभस्म प्रत्येक 7.5 – 7.5 ग्राम मात्रा में लें। उपर्युक्त सभी चूर्ण व भस्म मिलाकर अश्वगंधा से सिद्ध किये दूध में मिला दें। 3 किलो मिश्री अथवा चीनी की चाशनी बना लें। जब चाशनी बनकर तैयार हो जाय तब उसमें से 1-2 बूँद निकालकर उँगली से देखें, लच्छेदार तार छूटने लगें तब इस चाशनी में उपर्युक्त मिश्रण मिला दें। कलछी से खूब घोंटे, जिससे सब अच्छी तरह से मिल जाय। इस समय पाक के नीचे तेज अग्नि न हो। सब औषधियाँ अच्छी तरह से मिल जाने के बाद पाक को अग्नि से उतार दें।
परीक्षणः-
पूर्वोक्त प्रकार से औषधियाँ डालकर जब पाक तैयार हो जाता है, तब वह कलछी से उठाने पर तार सा बँधकर उठता है। थोड़ा ठंडा करके 1-2 बूँद पानी में डालने से उसमें डूबकर एक जगह बैठ जाता है, फलता नहीं। ठंडा होने पर उँगली से दबाने पर उसमें उँगलियों की रेखाओं के निशान बन जाते हैं।
पाक को थाली में रखकर ठंडा करें। ठंडा होने पर चीनी मिट्टी या काँच के बर्तन में भरकर रखें। 10 से 15 ग्राम पाक सुबह शहद अथवा गाय के दूध के साथ लें।
यह पाक शक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक, स्नायु व मांसपेशियों को ताकत देने वाला एवं कद बढ़ाने वाला एक पौष्टिक रसायन है। यह धातु की कमजोरी, शारीरिक-मानसिक कमजोरी आदि के लिए उत्तम औषधि है। इसमें कैल्शियम, लौह तथा जीवनसत्व (विटामिन्स) भी प्रचुर मात्रा में होते हैं।
अश्वगंधा अत्यंत वाजीकर अर्थात् शुक्रधातु की त्वरित वृद्धि करने वाला रसायन है। इसके सेवन से शुक्राणुओं की वृद्धि होती है एवं वीर्यदोष दूर होते हैं। धातु की कमजोरी, स्वप्नदोष, पेशाब के साथ धातु जाना आदि विकारों में इसका प्रयोग बहुत ही लाभदायी है।
यह पाक अपने मधुर व स्निग्ध गुणों से रस-रक्तादि सप्तधातुओं की वृद्धि करता है। अतः मांसपेशियों की कमजोरी, रोगों के बाद आने वाला दौर्बल्य तथा कुपोषण के कारण आनेवाली कृशता आदि में विशेष उपयुक्त है। इससे विशेषतः मांस व शुक्रधातु की वृद्धि होती है। अतः यह राजयक्षमा (क्षयरोग) में भी लाभदायी है। क्षयरोग में अश्वगंधा पाक के साथ सुवर्ण मालती गोली का प्रयोग करें। किफायती दामों में शुद्ध सुवर्ण मालती व अश्वगंधा चूर्ण आश्रम के सभी उपचार केन्द्रों व स्टालों पर उपलब्ध है।
जब धातुओं का क्षय होने से वात का प्रकोप होकर शरीर में दर्द होता है, तब यह दवा बहुत लाभ करती है। इसका असर वातवाहिनी नाड़ी पर विशेष होता है। अगर वायु की विशेष तकलीफ है तो इसके साथ 'महायोगराज गुगल' गोली का प्रयोग करें।
इसके सेवन से नींद भी अच्छी आती है। यह वातशामक तथा रसायन होने के कारण विस्मृति, यादशक्ति की कमी, उन्माद, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) आदि मनोविकारों में भी लाभदायी है। दूध के साथ सेवन करने से शरीर में लाल रक्तकणों की वृद्धि होती है, जठराग्नि प्रदीप्त होती है, शरीर की कांति बढ़ती है और शरीर में शक्ति आती है। सर्दियों में इसका लाभ अवश्य उठायें।