Wednesday, 3 December 2014

sanskar.....

1. अलबरूनी ने लिखा है कि 'ज्योतिष शास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़कर हैं। मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला। हिन्दुओं में 18 अंकों तक की संख्या के लिए नाम हैं जिनमें अंतिम संख्या का नाम परार्ध बताया गया है।'
2. मैक्समूलर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'भारतवासी आकाशमंडल और नक्षत्रमंडल आदि के बारे में अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं। इन वस्तुओं के मूल आविष्कर्ता वे ही हैं।'
3. फ्रांसीसी पर्यटक फ्राक्वीस वर्नियर भी भारतीय ज्योतिष-ज्ञान की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि 'भारतीय अपनी गणना द्वारा चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की बिलकुल ठीक भविष्यवाणी करते हैं। इनका ज्योतिष ज्ञान प्राचीन और मौलिक है।'
4. फ्रांसीसी यात्री टरवीनियर ने भी भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता और विशालता से प्रभावित होकर कहा है कि 'भारतीय ज्योतिष ज्ञान प्राचीनकाल से ही अतीव निपुण हैं।'
5. इन्साइक्लोपीडिया ऑफ‍ ब्रिटैनिका में लिखा है‍ कि 'इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे (अंग्रेजी) वर्तमान अंक-क्रम की उत्पत्ति भारत से है। संभवत: खगोल-संबंधी उन सारणियों के साथ जिनको एक भारतीय राजदूत ईस्वीं सन् 773 में बगदाद में लाया, इन अंकों का प्रवेश अरब में हुआ। फिर ईस्वीं सन् की 9वीं शती के प्रारंभिक काल में प्रसिद्ध अबुजफर मोहम्मद अल् खारिज्मी ने अरबी में उक्त क्रम का विवेचन किया और उसी समय से अरबों में उसका प्रचार बढ़ने लगा। यूरोप में शून्य सहित यह संपूर्ण अंक-क्रम ईस्वी सन् की 12वीं शती में अरबों से लिया गया और इस क्रम से बना हुआ अंकगणित 'अल गोरिट्मस' नाम से प्रसिद्ध हुआ।'
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यह दिमाग दूध से बना है अंडे से नहीं
(३ दिसम्बर : डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जयंती)
स्वतंत्रता से पूर्व का यह प्रसंग है । कांग्रेस कार्यकारिणी की एक विशेष बैठक बुलायी गयी थी, पर उसके प्रधान सदस्य काफी परेशान नजर आ रहे थे क्योंकि इस बैठक में जिस रिपोर्ट के आधार पर एक महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पारित करना था, वह नहीं मिल रही थी । स्वतंत्रता आंदोलन में हर कदम ठीक समय पर उठाना अत्यधिक आवश्यक था । ऐसी स्थिति में बिना आधार के कार्य कैसे आगे बढायें, यह सभीकी चिन्ता का विषय बना हुआ था ।
सदस्यों को अचानक ध्यान आया कि वह रिपोर्ट महात्मा गाँधी तथा डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पढ चुके हैं । उस समय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पं. नेहरू, आचार्य कृपलानी आदि नेताओं के साथ चर्चा में मग्न थे । जब उनसे पूछा गया तो वे बोले : ‘‘हाँ, मैं पढ चुका हूँ और आवश्यकता हो तो बोलकर लिखवा सकता हूँ । सदस्यों को विश्वास न हुआ कि इतनी लम्बी रिपोर्ट एक बार पढने के बाद ज्यों-की-त्यों लिखायी जा सकती है, पर और कोई उपाय भी नहीं था । अतः रिपोर्ट की खोज के साथ पुनर्लेखन का कार्य भी आरम्भ किया गया ।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जब सौ से भी अधिक पृष्ठ लिखवा चुके, तब वह रिपोर्ट भी मिल गयी । कौतूहलवश सदस्यों ने दोनों रिपोर्टों का मिलान किया तो कहीं भी अंतर न मिला । सभी आश्चर्यचकित रह गये । पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रशंसा भरे स्वर में पूछा : ‘‘राजेन्द्र बाबू ! ऐसा आला दिमाग कहाँ से पाया ? इस पर उन्होंने सौम्य मुस्कान के साथ जवाब दिया : ‘‘यह दिमाग दूध से बना है, अंडे से नहीं ।
स्वस्थ मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी पोटैशियम तत्त्व गौदुग्ध में पाया जाता है । इसके अतिरिक्त मस्तिष्क को पोषण देनेवाले सभी पौष्टिक तत्त्व गौदुग्ध में विद्यमान होते हैं । प्राणियों के नाडी-मंडल एवं बुद्धि के विकास के लिए गौदुग्ध-शर्करा बहुत आवश्यक है । गौदुग्ध-सेवन से बुद्धि तीक्ष्ण और स्वभाव सौम्य व शांत बनता है, मन में पवित्र विचार उपजते हैं तथा मानसिक शुद्धि में मदद मिलती है ।
अतः भैंस के दूध से अधिक हितकारी गौदुग्ध का थोडा अधिक मूल्य चुकाना पडे तो हरकत नहीं, हमें गौदुग्ध ही लेना चाहिए ।
(लोक कल्याण सेतू सितम्बर २००५)

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