Thursday 25 December 2014

धर्मांतरण का सच: झूठ: घर वापसी जैसी कोई बात नहीं होती सच:
1) महात्मा गाँधी का सबसे बड़े बेटे हरीलाल गाँधी ने पिता के महात्‍मापन से आजिज आकर अपना धर्म छोड़ा और स्‍वेच्‍छा से मुसलमान बन गया और अपना नाम रखा अब्‍दुल्‍ला। बाद में गांधी के दबाव में उसका आर्य समाज में शुद्धिकरण किया और घर वापसी कराते हुए अब्‍दुल्‍ला को फिर से हीरालाल गांधी बनाया गया।
2) फिरोज गांधी से लंदन में शादी करने के बाद इंदिरा गांधी मैमूना बेगम बनी, लेकिन उन पर दबाव डालकर महात्‍मा गांधी व जवाहरलाल नेहरू ने दोनों की दोबारा से आर्य समाज मंदिर में शादी करवा कर इंदिरा की घर वापसी कराई और फिरोज का नाम बदलकर उसे गांधी नाम दिया गया, जिसका बोझ यह देश आज तक झेल रहा है।
झूठ: मौलाना कल्‍वे सादिक, मीडिया और राज्‍यसभा के विपक्षी नेताओं के अनुसार, किसी धर्म में जबरदस्‍ती धर्मांतरण का प्रावधान नहीं है।
सच: 1) 16 अगस्‍त 1946 में मोहम्‍मद अलि जिन्‍ना के 'प्रत्‍यक्ष कार्रवाई' की घोषणा करते ही कोलकाता व नोआखाली (आज के बंग्‍लादेश में स्थित) में बड़े पैमाने पर हिंदुओं का कत्‍लेआम किया गया। हालांकि कोलकाता में हिंदुओं के प्रतिहार में बड़ी संख्‍या में मुसलमान जब मारे गए तो मुसलमानों ने उसका बदला नोआखाली में लिया था। उस वक्‍त कांग्रेस अध्‍यक्ष जे.बी.कृपलानी थे, जो‍ स्थिति का जायजा लेने नोआखाली गए थे। जे.बी के संस्‍मरण के मुताबिक, उनकी पत्‍नी सुचेता कृपलानी के समक्ष एक हिंदू लड़की आरती सूर को जबरदस्‍ती उठाकर मुसलमान युवक से शादी का मामला सामने आया। सुचेता ने उसे मजिस्‍ट्रेट के समक्ष प्रस्‍तुत किया और लड़की द्वारा सच्‍चाई बताने पर उसका शादी तुड़वा कर उसकी घर वापसी कराई।
2) जे.बी कृपलानी ने गांधी जी को जो रिपोर्ट भेजी थी, उस रिपोर्ट के अनुसार, '' मुस्लिम लीग ने कलकत्‍ता का बदला लेने के लिए नोआखाली को सबसे अनुकूल पाया था। नोआखाली मौलाना, मौलवियों और हाजियों से भरा हुआ था।
कलकत्‍ता दंगे के बाद गुलाम सरवर, मौलवी, मुल्‍ला और मौलानाओं ने नफरत का अभियान चलाया। 7 सितंबर 1946 को उलेमा और दूसरे मुस्लिम लीगी नेताओं की एक सभा हुई जिसमें आग उगलने वाले भाषण हुए... मारकाट और बडे पैमाने पनर विध्‍वंश 10 अक्‍टूबर 1946 को शुरू हुआ।
संगठित और हथियरबंद झुंड निकलते थे और हिंदू धरों को घेर लेते थे। पहले ही झटके में जो जमींटदार परिवार थे, उन पर कहर ढाया गया। दंगाईयों ने हर जगह एक ही तरीका अपनाया। मौलाना और मौलवी झुंड के साथ चलते थे। जहां भीड़ का काम खत्‍म हुआ कि वहां मौलाना और मौलवी हिंदुओं को धर्मांतरित करते थे। कुछ गांवों में कुरान के कल्‍मा और आयते सिखाने के लिए क्‍लास चला जाते थे। दत्‍तापाड़ा में हमने पाया कि धर्मांतरित लोगों को गो मांश खाने के लिए मजबूर किया जाता था।''
पढ रहे हो न मुल्‍ला कल्‍वे सादिक, मुल्‍ला मुलायम, शरद यादव, सीताराम येचूरी और अरब-यूरोप के फंड पर पलनेन वाले मीडिया के दलाल, ठीक से पढो। मक्‍कार और झूठ की औलदों, मेरी बातों पर संदेह हो तो जे.बी का संस्‍मरण बाजार से खरीद लाओ, उसमें गांधी जी को लिखी गई चिटठी मौजूद है।
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19 जूलाई 1981 को तमिलनाडु के तिरूनेवेली जिले के मीनाक्षीपुरम् गाँव में अचानक ३०० हिन्दू दलित परिवारों के कुल 800 लोगो ने सामूहिक रुक से इस्लाम स्वीकार करके मुस्लिम बन गये थे |
ये सब कुछ इतना ख़ामोशी और गुप्तता से हुआ की धर्मपरिवर्तन होने के बाद लोगो को पता चला | असल में इस गाँव में स्वर्ण जाति थेवर लोगो के अत्याचार से दलित लोग दुखी थे दलितों की इस पीड़ा को एक मौलवी ने देखा ... उसने इस बारे में खाड़ी देश मेंअपने एक सम्पर्क सूत्र से बात की .. फिर दलितों के साथ कुछ लोगो ने कई बार मुलाकात की ... गाँव में और किसी को कुछ पता नही चल रहा था की गाँव में ये आजकल कई अजनबी लोग कौन है और क्यों आ जा रहे है ... दलितों को पैसे और खाड़ी देशो में नौकरी का लालच दिया गया ... फिर १९ जुलाई १९८१ को गाँव के बाहर एक मैदान में ७०० दलितों को कलमा पढ़वाकर उन्हें सामूहिक रूप से मुस्लिम बना दिया गया |
इस घटना ने पुरे देश को हिलाकर रख दिया ... इसी घटना के बाद विश्व हिन्दू परिषद का गठन भी हुआ ...
इस घटना पर दुखी होकर अटल विहारी वाजपेई जी भी मीनाक्षीपूरम गये थे .. तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन पर पर घटना को लेकर चौतरफा दबाव पड़ा और उन्होंने इस घटना की जाँच के लिए जस्टिस वेणुगोपालन कमेटी का गठन किया ...
जस्टिस वेणुगोपालन कमेटी ने काफी स्फोटक रिपोर्ट दिया ... जाँच के अनुसार ये सभी दलित पैसे से सुखी थे लेकिन गाँव के सवर्णों के द्वारा किये जा रहे भेदभाव से दुखी थे इन्हें मन्दिरों में प्रवेश की इजाजत नही थी ... इनके बच्चों के साथ सवर्णों के बच्चे नही खेलते थे ..
इस घटना ने स्वर्ण समाज को भी झकझोर कर रख दिया ... और इस घटना के बाद समाज में समानता को लेकर काफी बहस चली ..
यदि समाज आदिवासीयो और दलितों के साथ भेदभाव न करे .. उनके साथ छूआछूत या उन्हें अगल न समझे तो फिर दलित और आदिवासी आखिर हिन्दू धर्म क्यों छोड़ेंगे ?
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क्यों सफल होते हैं यह ईसाई मिशनरियां धर्म परिवर्तन करवाने में? इसके पीछे कारण एक ही है।
एक लघु कथा
बुधइया आज रॉजर बन रहा था। चर्च के फादर ने आज उसे एक नया नाम दिया था।
उसके दोनों कन्धों को बारी बारी छूकर फादर कुछ बुदबुदा रहे थे जो उसकी समझ नहीं आ रहा था पर इतना पता था कि आज के बाद उसे ठाकुरों के कुँए से पाने भरने से कोई नहीं रोकेगा। एक नए गाँव में, नए नाम के साथ अपने नए जीवन का आरम्भ कर रहा था। उसके लिए नए रोज़गार का भी प्रबंध हो चूका था चर्च की ओर से। जब तक वह कार्य आरम्भ करे उसे खर्च की चिंता नहीं थी, फादर की ओर से जो मिला था वह उसकी जेब को फुला रहा था।
चर्च से परिवार सहित बाहर निकलते समय उसका जीवन मानो एक चलचित्र की तरह उसकी आँखों के सामने घूम गया।
उसने देखा कि वह एक छोटा बच्चा है और उसकी माँ ने आज कुँए से पानी भरा था। उस कुँए से जिसपर ठाकुरों का अधिकार था क्यों कि जिस कुँए से वह सदा से पानी भरते थे उसमे एक मवेशी के गिरकर मर जाने से पानी पीने योग्य नहीं रहा था। और इसके अपराध में उसकी माँ को ठाकुर उठकर ले गए थे और ३ दिनों के उत्पीडन के बाद ही छोड़ा था।
उसने देखा कि उसके अपने पड़ोस के भीखू भैया की बरात में दूल्हे को गोली से मार दिया गया था क्योंकि वह घोड़ी पर बैठकर दुल्हन के घर जा रहा था।
वह प्रतिदिन देखता था कि उसके माता पिता मंदिर की सीढ़ियों के नीचे से ही प्रभु को प्रणाम करते थे क्योंकि उन्हें मंदिर में जाना वर्जित था।
वह यह भी जानता था कि पंडित जी के बाहर आते ही उसे कई कदम पीछे जाना चाहिए ताकि उसकी परछाई से पंडित जी अपवित्र न हो जाएँ।
न जाने क्यों आज उसका गहरी -२ साँसे लेने का मन कर रहा था , साँसे जो घुट सी गई थी वह चाहता था आज उन्हें सब बंधनो से स्वतन्त्र कर दे।
मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा यह उसे बताया गया था, पर उसे चिंता नहीं थी, वह तो चाहता था कि इस जनम में उसे वह नरक न मिले जो उसके माता पिता को मिला था। आज वह मंदिर के सामने से जा रहा था पर उस ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा उसने।





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