कैसे गाय चोरी की जाती है! भोले भाले इस प्राणी को जिसने मानव सभ्यता में हमारे परिवार का हिस्सा बन कर अपना योगदान दिया जिसे इसी मानव सभ्यता ने माँ का स्थान दिया! आज इसी गौमाता का अपहरण कर मार दि या जाता है और उसके एक एक अंग को बेच दिया जाता है ।
आज कल जूतों और अन्य कई चमड़े के उत्पादों को नरम / मुलायम करने के लिए दो प्रक्रियाएँ कसाइयों द्वारा अपनाई जा रही हैं ।
1) पशु को जिन्दा पीट पीट कर मारना! इससे उनके शरीर में चोट में श्वेत रक्त (वाइट ब्लड) बनना शुरू हो जाता है और खाल फूलकर मुलायम हो जाती है । उसके शरीर को बहुत फूलने के बाद कभी कभी तो जीवित पशु की खाल भी उतार ली जाती है! फिर उसे काट कर बेचा जाता है ।
2) पशु को जीवित अवस्था में ही धीरे धीरे उबला जाता है और वो पशु स्वयं को तड़प तड़प कर मरते हुए देखता है । ये प्रक्रिया विदेशियों द्वारा मशीन से क़त्ल करने से भी अधिक क्रूर हैं क्योंकि इसमें पशु की तड़प पराकाष्ठा पर होती है ।
संवेदना और प्रेम की मूर्ती गाय और गौवंश जो हमारी मानव सभ्यता में सदियों से हमारे परिवार के सदस्य बन कर रही! आज उनकी उपयोगिता कम होता देख या अन्य अल्पकालीन विकल्पों के होते लोग उसे काट कर बेच रहे हैं तो यहाँ एक बात और भी समझ आती है की कल को माँ बाप बेकार होने पर ये उन्हें भी बेच देंगे या सड़क पर मरने के लिए छोड़ देंगे! (कहीं कहीं देखने को मिलता भी है) इधर उनको मूर्ख बना कर जमीन बेच पैसा अपने कब्जे में किया उधर माँ बाप बेकार हुए और उन्हें घर से निकला । जहाँ कोई कसाई उनकी हड्ड्यों, गुर्दे, लीवर, आँखों या दिल के लिए उन्हें अपहरण कर एक एक पुर्जा जिन्दा रख कर निकालेगा और बेचेगा!
जब मानव संवेदनाओं ने पतन का रास्ता पकड़ ही लिया है तो गिरावट की सीमा को कौन तय करेगा ??
उपाय क्या है?
● सरकारों से आशा ना रखें वो सब माफिया बन चुके हैं आज हमारे पास उपाय तो यही उपयुक्त है की आप चमड़े की वस्तुओं को खरीद कर इस महापाप में भागीदार मत बनिए । मुलायम चमड़े की मांग करने से पहले सोच लीजिये की मुलायम चमडा मिलता कैसे है ।
●गौ तस्करी को रोकने के लिए गौरक्षा दल को सुचना और सहयोग दें । उनकी सहायता में दान दें । गौशालाओं को खुल कर दान दें और उनका सदस्य बन कर उनकी पूरी जानकारी रखें ।
●क़त्ल खानों के खिलाफ मुहीम में भागीदार बनें और समाज को इस कलंक से मुक्त करवाएँ ।
●पारंपरिक व्यवसायियों जैसे.....चिक और चर्मकारों को प्रोत्साहन और सहायता दें । एक चिक जो जानवर को खाने के लिए काटते है वो उन्हें कभी तडपाते नहीं, यहाँ तक की उनको भूखा प्यासा भी नहीं देख सकते । चर्मकार समाज के बहुत ही आवश्यक अंग रहे हैं और मृत जानवरों के अंगों को सही जगह पहुँचाना और व्यापार करना सदियों से इनका काम रहा है ।
जीवन और मृत्यु तो सृष्टि का नियम है किन्तु समाज में करुणा और त्याग बढ़े और किसी को तड़पना न पड़े वो ही सच्चा सभ्य समाज कहलायेगा जो हम बनाना चाहते हैं ।
आप सबका सहयोग वांछनीय है ।
आप सबका सहयोग वांछनीय है ।
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लेखक :- आर्य अजेय सिंह चौहान
संपादन :- रामनिवास सारस्वत
संपादन :- रामनिवास सारस्वत
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