"बर्फ़ का औषधीय प्रयोग "
१-गर्मी के मौसम में हिचकी की बीमारी पर रोगी के मुँह में बर्फ़ का टुकड़ा डालें और उसे चूसने दें | इससे हिचकी आना बंद हो जाती है |
२-चोट लगने पर यदि खून अधिक बहे तो बर्फ़ मलें ख़ून तुरंत रुक जाएगा |
३-बार-बार उल्टी होने पर बर्फ़ चूसने से उल्टी होना बंद हो जाती है | हैजे की उल्टियों में भी यह प्रयोग लाभदायक है ।
४-घमौरियों पर बर्फ़ का टुकड़ा मलने से ठंडक मिलती है तथा घमौरियाँ सूख जाती हैं |
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१-गर्मी के मौसम में हिचकी की बीमारी पर रोगी के मुँह में बर्फ़ का टुकड़ा डालें और उसे चूसने दें | इससे हिचकी आना बंद हो जाती है |
२-चोट लगने पर यदि खून अधिक बहे तो बर्फ़ मलें ख़ून तुरंत रुक जाएगा |
३-बार-बार उल्टी होने पर बर्फ़ चूसने से उल्टी होना बंद हो जाती है | हैजे की उल्टियों में भी यह प्रयोग लाभदायक है ।
४-घमौरियों पर बर्फ़ का टुकड़ा मलने से ठंडक मिलती है तथा घमौरियाँ सूख जाती हैं |
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चिरौंजी [Calumpang -nut -Tree ]
चिरौंजी के पेड़ भारत के पश्चिम प्रायद्वीप एवं उत्तराखण्ड में 450 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है , महाराष्ट्र , नागपुर और मालाबार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं | इसके वृक्ष छाल अत्यन्त खुरदुरी होती है इसलिए संस्कृत में खरस्कन्द तथा इसकी छाल अधिक मोटी होती है ,इसलिए इसे बहुलवल्कल कहते हैं | इसके फल ८-१२ मिलीमीटर के गोलाकार कृष्ण वर्ण के ,मांसल , काले बीजयुक्त होते हैं | फलों को फोड़ कर जो गुठली निकाली जाती है उसे चिरौंजी कहते हैं | यह अत्यंत पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है | चिरौंजी एक मेवा होती है और इसे विभिन्न प्रकार के पकवानों और मिठाईयों में डाला है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी-मार्च तथा मार्च-मई तक होता है | इसके बीज एवं तेल में एमिनो अम्ल , लीनोलीक ,मिरिस्टीक , ओलिक , पॉमिटिक , स्टीएरिक अम्ल एवं विटामिन पाया जाता है |
विभिन्न रोगों चिरौंजी से उपचार --------
१- पांच-दस ग्राम चिरौंजी पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है |
२-चिरौंजी को गुलाब जल में पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहांसे ठीक होते हैं |
३-दूध में चिरौंजी की खीर बनाकर खाने से शरीर का पोषण होता है |
४-पांच -दस ग्राम चिरौंजी की गिरी को खाने से तथा चिरौंजी को दूध में पीसकर मालिश करने से शीतपित्त में लाभ होता है |
५-चिरौंजी की ५-१० ग्राम गिरी को भूनकर ,पीसकर २०० मिलीलीटर दूध मिलाकर उबाल लें | उबालने के बाद ५०० मिलीग्राम इलायची चूर्ण व थोड़ी सी चीनी मिलाकर पिलाने से खांसी तथा जुकाम में लाभ होता है ।
चिरौंजी के पेड़ भारत के पश्चिम प्रायद्वीप एवं उत्तराखण्ड में 450 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है , महाराष्ट्र , नागपुर और मालाबार में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं | इसके वृक्ष छाल अत्यन्त खुरदुरी होती है इसलिए संस्कृत में खरस्कन्द तथा इसकी छाल अधिक मोटी होती है ,इसलिए इसे बहुलवल्कल कहते हैं | इसके फल ८-१२ मिलीमीटर के गोलाकार कृष्ण वर्ण के ,मांसल , काले बीजयुक्त होते हैं | फलों को फोड़ कर जो गुठली निकाली जाती है उसे चिरौंजी कहते हैं | यह अत्यंत पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है | चिरौंजी एक मेवा होती है और इसे विभिन्न प्रकार के पकवानों और मिठाईयों में डाला है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जनवरी-मार्च तथा मार्च-मई तक होता है | इसके बीज एवं तेल में एमिनो अम्ल , लीनोलीक ,मिरिस्टीक , ओलिक , पॉमिटिक , स्टीएरिक अम्ल एवं विटामिन पाया जाता है |
विभिन्न रोगों चिरौंजी से उपचार --------
१- पांच-दस ग्राम चिरौंजी पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर दूध के साथ खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है |
२-चिरौंजी को गुलाब जल में पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहांसे ठीक होते हैं |
३-दूध में चिरौंजी की खीर बनाकर खाने से शरीर का पोषण होता है |
४-पांच -दस ग्राम चिरौंजी की गिरी को खाने से तथा चिरौंजी को दूध में पीसकर मालिश करने से शीतपित्त में लाभ होता है |
५-चिरौंजी की ५-१० ग्राम गिरी को भूनकर ,पीसकर २०० मिलीलीटर दूध मिलाकर उबाल लें | उबालने के बाद ५०० मिलीग्राम इलायची चूर्ण व थोड़ी सी चीनी मिलाकर पिलाने से खांसी तथा जुकाम में लाभ होता है ।
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छुहारे का गुणकारी -पाचक अचार :-----
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भारत में विविध प्रकार के अचार बनाये जाते हैं ,परन्तु छुहारे का अचार काफी गुणकारी होता है | यह अचार पाचक व रुचिवर्द्धक होता है तथा अपच को दूर करता है | इस अचार भोजन के समय या बाद में खा सकते हैं |
अचार बनाने की विधि -----
एक किलो छुहारे लेकर इन्हें नींबू के रस में 5 दिन तक भिगोकर रखें | जब यह फूल जाएँ तो बीज निकल दें तथा निम्नलिखित मिश्रण छुहारों में भर दें |
अंदर भरने का मिश्रण -----
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भारत में विविध प्रकार के अचार बनाये जाते हैं ,परन्तु छुहारे का अचार काफी गुणकारी होता है | यह अचार पाचक व रुचिवर्द्धक होता है तथा अपच को दूर करता है | इस अचार भोजन के समय या बाद में खा सकते हैं |
अचार बनाने की विधि -----
एक किलो छुहारे लेकर इन्हें नींबू के रस में 5 दिन तक भिगोकर रखें | जब यह फूल जाएँ तो बीज निकल दें तथा निम्नलिखित मिश्रण छुहारों में भर दें |
अंदर भरने का मिश्रण -----
काली मिर्च
पीपल
दालचीनी
तीनों को १००-१००- ग्राम लें |
सौंठ
कालीजीरी
जीरा
इन तीनों को ५०-५० ग्राम की मात्रा में लें तथा कालानमक ३०० ग्राम और चीनी २ किलो लें , सबको एक साथ पीस लें |
बीज निकले हुए छुहारों में उक्त मिश्रण भर लें | इसे एक कांच के मर्तबान में भर कर ऊपर से निम्बू का रस डाल दें | मर्तबान का ढक्क्न उतारकर उसके मुँह पर कपड़ा बांधकर ४-५ दिन धूप में रखें , अचार तैयार हो जायगा |
पीपल
दालचीनी
तीनों को १००-१००- ग्राम लें |
सौंठ
कालीजीरी
जीरा
इन तीनों को ५०-५० ग्राम की मात्रा में लें तथा कालानमक ३०० ग्राम और चीनी २ किलो लें , सबको एक साथ पीस लें |
बीज निकले हुए छुहारों में उक्त मिश्रण भर लें | इसे एक कांच के मर्तबान में भर कर ऊपर से निम्बू का रस डाल दें | मर्तबान का ढक्क्न उतारकर उसके मुँह पर कपड़ा बांधकर ४-५ दिन धूप में रखें , अचार तैयार हो जायगा |
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तरबूज (Watermelon )-
तरबूज से हम सब अच्छी तरह परिचित हैं | यह गर्मियों के मौसम में होने वाला फल है | भारत में नदियों के किनारे मुख्यतः उत्तर-प्रदेश,पंजाब,महाराष् ट्र,राजस्थान,बिहार,पश्चिम- बंगाल एवं आसाम में इसकी खेती की जाती है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अप्रैल से अगस्त तक होता है | गर्मियों के मौसम में तरबूज के सेवन से प्यास शांत होती है और शरीर में होने वालीगर्मी का प्रभाव दूर होता है |
आईये जानते हैं तरबूज के कुछ औषधीय गुण -
१- एक कप तरबूज के रस में चुटकी भर सेंधा नमक डाल कर पीने से उच्चरक्तचाप कम होता है |
२- तरबूज कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है |
३- तरबूज के बीजों का चूर्ण बनाकर १-२ ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्र-विकारों में अत्यंत लाभ होता है |
४- पांच-दस मिलीलीटर तरबूज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से दस्त एवं आंव में लाभ होता है |
५- तीस-चालीस मिलीलीटर तरबूज के रस में मिश्री मिलाकर पीने से सिर दर्द ठीक होता है |
६- तीस-चालीस मिलीलीटर तरबूज के रस में एक ग्राम सौंठ का चूर्ण तथा शहद मिलाकर पीने से खांसी में लाभ होता है |
तरबूज से हम सब अच्छी तरह परिचित हैं | यह गर्मियों के मौसम में होने वाला फल है | भारत में नदियों के किनारे मुख्यतः उत्तर-प्रदेश,पंजाब,महाराष्
आईये जानते हैं तरबूज के कुछ औषधीय गुण -
१- एक कप तरबूज के रस में चुटकी भर सेंधा नमक डाल कर पीने से उच्चरक्तचाप कम होता है |
२- तरबूज कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है |
३- तरबूज के बीजों का चूर्ण बनाकर १-२ ग्राम चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से मूत्र-विकारों में अत्यंत लाभ होता है |
४- पांच-दस मिलीलीटर तरबूज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से दस्त एवं आंव में लाभ होता है |
५- तीस-चालीस मिलीलीटर तरबूज के रस में मिश्री मिलाकर पीने से सिर दर्द ठीक होता है |
६- तीस-चालीस मिलीलीटर तरबूज के रस में एक ग्राम सौंठ का चूर्ण तथा शहद मिलाकर पीने से खांसी में लाभ होता है |
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अरुचि [ भूख न लगना ]
इस रोग में रोगी को भूख नहीं लगती | यदि जबरदस्ती भोजन किया भी जाय तो वह अरुचिकर लगता है | रोगी 1 या 2 ग्रास ज्यादा नहीं खा पाता और उसे बिना कुछ खाये -पिये खट्टी डकारें आने लगती हैं | इस तरह भूक न लगने अरुचि कहते हैं |
आमाशय या पाचनतंत्र में कमी होने के कारण भूख लगनी कम हो जाती है | ऐसे में यदि कुछ दिनों तक इस बात पर ध्यान न दिया जाये तो भूख लगनी बिलकुल ही बंद हो जाती है | अधिक चिंता, क्रोध , भय और घबराहट के कारण भी यकृत की ख़राबी के कारण भी भूख नहीं लगती |
विभिन्न औषधियों द्वारा अरुचि का उपचार --------
१-गेंहू के चोकर में सेंधा नमक और अजवायन मिलाकर रोटी बनाकर खाने से भूख तेज़ होती है |
२-एक सेब या सेब के रस के प्रतिदिन सेवन से खून साफ़ होता है और भूख भी लगती है |
३-एक गिलास पानी में 3 ग्राम जीरा , हींग , पुदीना , कालीमिर्च और नमक डालकर पीने से अरुचि दूर होती है |
४-अजवायन में स्वाद के अनुसार कालानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से अरुचि दूर होती है |
५-प्रतिदिन मेथी में छौंकी गई दाल या सब्ज़ी के सेवन से भूख बढ़ती है |
६-नींबू को काटकर इसमें सेंधा नमक डालकर भोजन से पहले चूसने से कब्ज़ दूर होकर पाचनक्रिया तेज़ हो जाती है |
इस रोग में रोगी को भूख नहीं लगती | यदि जबरदस्ती भोजन किया भी जाय तो वह अरुचिकर लगता है | रोगी 1 या 2 ग्रास ज्यादा नहीं खा पाता और उसे बिना कुछ खाये -पिये खट्टी डकारें आने लगती हैं | इस तरह भूक न लगने अरुचि कहते हैं |
आमाशय या पाचनतंत्र में कमी होने के कारण भूख लगनी कम हो जाती है | ऐसे में यदि कुछ दिनों तक इस बात पर ध्यान न दिया जाये तो भूख लगनी बिलकुल ही बंद हो जाती है | अधिक चिंता, क्रोध , भय और घबराहट के कारण भी यकृत की ख़राबी के कारण भी भूख नहीं लगती |
विभिन्न औषधियों द्वारा अरुचि का उपचार --------
१-गेंहू के चोकर में सेंधा नमक और अजवायन मिलाकर रोटी बनाकर खाने से भूख तेज़ होती है |
२-एक सेब या सेब के रस के प्रतिदिन सेवन से खून साफ़ होता है और भूख भी लगती है |
३-एक गिलास पानी में 3 ग्राम जीरा , हींग , पुदीना , कालीमिर्च और नमक डालकर पीने से अरुचि दूर होती है |
४-अजवायन में स्वाद के अनुसार कालानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ सेवन करने से अरुचि दूर होती है |
५-प्रतिदिन मेथी में छौंकी गई दाल या सब्ज़ी के सेवन से भूख बढ़ती है |
६-नींबू को काटकर इसमें सेंधा नमक डालकर भोजन से पहले चूसने से कब्ज़ दूर होकर पाचनक्रिया तेज़ हो जाती है |
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बैंगन (BRINJAL)-
बैंगन विश्व के सभी उष्ण क्षेत्रों में पाया जाता है तथा भारत में विस्तृत रूप से शाक के रूप में इसकी खेती की जाती है | फल के आकार तथा रंग के भेद से यह कई प्रकार का होता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल कृषि अवस्था के ३-४ माह बाद होता है |
इसके बीजों में ल्यूपोल,मेलोंगोसाईड नामक ग्लाइकोसाइड तथा सैपोनिन पाया जाता है | इसके फल में सोलासोडिन,वसा,प्रोटीन, विटामिन A ,B ,C,कैल्शियम,फॉस्फोरस,कार्ब ोहाइड्रेट तथा सोलनिन पाया जाता है |
बैंगन के कुछ औषधीय प्रयोग -
१- बैंगन की सब्जी में लहसुन और हींग का छौंक लगाकर खाने से अफारा,गैस आदि दूर हो जाती है |
२- बैंगन को धीमी आग पर पकाकर खाने से कब्ज दूर हो जाती है |
३- बैंगन को जलाकर पीसकर कपड़े से छान लें | इसे बवासीर के मस्सों पर लगाने से दर्द में लाभ होता है |
४- बैंगन और टमाटर का सूप पीने से मंदाग्नि मिटती है और खाना सही से पचने लगता है |
५- लम्बा बैंगन श्रेष्ठ होता है,यह पाचनशक्ति और खून को बढ़ाता है |
बैंगन विश्व के सभी उष्ण क्षेत्रों में पाया जाता है तथा भारत में विस्तृत रूप से शाक के रूप में इसकी खेती की जाती है | फल के आकार तथा रंग के भेद से यह कई प्रकार का होता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल कृषि अवस्था के ३-४ माह बाद होता है |
इसके बीजों में ल्यूपोल,मेलोंगोसाईड नामक ग्लाइकोसाइड तथा सैपोनिन पाया जाता है | इसके फल में सोलासोडिन,वसा,प्रोटीन, विटामिन A ,B ,C,कैल्शियम,फॉस्फोरस,कार्ब
बैंगन के कुछ औषधीय प्रयोग -
१- बैंगन की सब्जी में लहसुन और हींग का छौंक लगाकर खाने से अफारा,गैस आदि दूर हो जाती है |
२- बैंगन को धीमी आग पर पकाकर खाने से कब्ज दूर हो जाती है |
३- बैंगन को जलाकर पीसकर कपड़े से छान लें | इसे बवासीर के मस्सों पर लगाने से दर्द में लाभ होता है |
४- बैंगन और टमाटर का सूप पीने से मंदाग्नि मिटती है और खाना सही से पचने लगता है |
५- लम्बा बैंगन श्रेष्ठ होता है,यह पाचनशक्ति और खून को बढ़ाता है |
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भिंडी -
भिंडी का प्रयोग रूप में लगभग पूरे भारतवर्ष में किया जाता है | यह बहुत ही पौष्टिक सब्जी होती है जिसमें फाइबर मात्रा में होता है |
भिन्डी में कैल्शियम,फॉस्फोरस,पोटैशियम ,लौह,तांबा,सोडियम,गंधक,प्र ोटीन,आयोडीन,विटामिन A,C तथा B-कॉम्प्लेक्स आदि तत्व पाये जाते हैं | इसमें प्रोटीन सबसे अधिक मात्रा में होता है |
विभिन्न रोगों का भिंडी से उपचार -
१- भिंडी की सब्जी खाने से पेशाब की जलन दूर होती है तथा इसके सेवन से पेशाब साफ़ और खुलकर आता है |
२- भिंडी के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं |
३- भिंडी की सब्जी बनाकर खाने से पेचिश में लाभ होता है |
४- भिंडी की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ होता है |
भिंडी का प्रयोग रूप में लगभग पूरे भारतवर्ष में किया जाता है | यह बहुत ही पौष्टिक सब्जी होती है जिसमें फाइबर मात्रा में होता है |
भिन्डी में कैल्शियम,फॉस्फोरस,पोटैशियम
विभिन्न रोगों का भिंडी से उपचार -
१- भिंडी की सब्जी खाने से पेशाब की जलन दूर होती है तथा इसके सेवन से पेशाब साफ़ और खुलकर आता है |
२- भिंडी के पत्तों को पीसकर घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं |
३- भिंडी की सब्जी बनाकर खाने से पेचिश में लाभ होता है |
४- भिंडी की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से प्रदर रोग में लाभ होता है |
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कान का दर्द -
गर्मियों में कान के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में संक्रमण होना आम बात है| अधिकतर तैराकों को ख़ास-तौर पर इस परेशानी का सामना करना पड़ता है | कान में फुंसी निकलने,पानी भरने या किसी प्रकार की चोट लगने की वजह से दर्द होने लगता है | कान में दर्द होने के कारण रोगी हर समय तड़पता रहता है तथा ठीक से सो भी नहीं पाता| बच्चों के लिए कान का दर्द अधिक पीड़ा भरा होता है | लगातार जुक़ाम रहने से भी कान का दर्द हो जाता है |
आज हम आपको कान के दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार बताएंगे -
१- तुलसी के पत्तों का रस निकाल लें| कान में दर्द या मवाद होने पर रस को गर्म करके कुछ दिन तक लगातार डालने से आराम मिलता है |
२- लगभग १० मिली सरसों के तेल में ३ ग्राम हींग डाल कर गर्म कर लें | इस तेल की १-१ बूँद कान में डालने से कफ के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है |
३- कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का रस निकालकर कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है |
४- तिल के तेल में लहसुन की काली डालकर गर्म करें,जब लहसुन जल जाए तो यह तेल छानकर शीशी में भर लें | इस तेल की कुछ बूँदें कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है |
५- अलसी के तेल को गुनगुना करके कान में १-२ बूँद डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है |
६- बीस ग्राम शुध्द घी में बीस ग्राम कपूर डालकर गर्म कर लें | अच्छी तरह पकने के बाद ,ठंडा करके शीशी में भरकर रख लें | इसकी कुछ बूँद कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है |
गर्मियों में कान के अंदरूनी या बाहरी हिस्से में संक्रमण होना आम बात है| अधिकतर तैराकों को ख़ास-तौर पर इस परेशानी का सामना करना पड़ता है | कान में फुंसी निकलने,पानी भरने या किसी प्रकार की चोट लगने की वजह से दर्द होने लगता है | कान में दर्द होने के कारण रोगी हर समय तड़पता रहता है तथा ठीक से सो भी नहीं पाता| बच्चों के लिए कान का दर्द अधिक पीड़ा भरा होता है | लगातार जुक़ाम रहने से भी कान का दर्द हो जाता है |
आज हम आपको कान के दर्द के लिए कुछ घरेलू उपचार बताएंगे -
१- तुलसी के पत्तों का रस निकाल लें| कान में दर्द या मवाद होने पर रस को गर्म करके कुछ दिन तक लगातार डालने से आराम मिलता है |
२- लगभग १० मिली सरसों के तेल में ३ ग्राम हींग डाल कर गर्म कर लें | इस तेल की १-१ बूँद कान में डालने से कफ के कारण पैदा हुआ कान का दर्द ठीक हो जाता है |
३- कान में दर्द होने पर गेंदे के फूल की पंखुड़ियों का रस निकालकर कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है |
४- तिल के तेल में लहसुन की काली डालकर गर्म करें,जब लहसुन जल जाए तो यह तेल छानकर शीशी में भर लें | इस तेल की कुछ बूँदें कान में डालने से कान का दर्द समाप्त हो जाता है |
५- अलसी के तेल को गुनगुना करके कान में १-२ बूँद डालने से कान का दर्द दूर हो जाता है |
६- बीस ग्राम शुध्द घी में बीस ग्राम कपूर डालकर गर्म कर लें | अच्छी तरह पकने के बाद ,ठंडा करके शीशी में भरकर रख लें | इसकी कुछ बूँद कान में डालने से दर्द में आराम मिलता है |
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अजीर्ण (अपच)-
पाचन तंत्र में किसी गड़बड़ी के कारण भोजन न पचने को अजीर्ण या अपच कहते हैं | कई बार समय-असमय भोजन करने से,कभी-भी,कहीं-भी,कुछ-भी खाने-पीने तथा बार-बार खाते रहने से पहले खाया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं पाता है और दूसरा भोजन पेट में पहुँच जाता है | ऐसे में पाचनतंत्र भोजन को पूर्ण रूप से नहीः पचा पाता जो अजीर्ण का मुख्य कारण है | अधिक तला-भुना या मिर्च मसाले युक्त भोजन के सेवन से भी अजीर्ण या अपच हो जाता है |
इस रोग में रोगी को भूख नहीं लगती,खट्टी डकारें आती हैं,छाती में तेज़ जलन होती है,पेट में भारीपन महसूस होता है तथा बैचैनी सी होती रहती है | रोगी को पसीना अधिक आता है , नींद भी नहीं आती और कभी-कभी अतिसार [दस्त ] भी होता है |
अजीर्ण का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार ---------
१-अजवायन तथा सौंठ पीसकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण दिन में दो बार शहद के साथ चाटने से अपच में आराम मिलता है |
२-छाछ गरिष्ठ वस्तुओं को पचाने में बहुत लाभकारी होता है | छाछ में सेंधा नमक , भुना जीरा तथा कालीमिर्च मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण रोग दूर होता है |
३-अजवायन -200 ग्राम , हींग -4 ग्राम और कालानमक -20 ग्राम को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण 2 -2 ग्राम की मात्रा में सुबह -शाम गुनगुने पानी से खाने से लाभ होता है |
४-मेथी को पीस कर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को दिन में तीन बार 1-1 चम्मच गर्म पानी से खाने से अपच , पेटदर्द व भूख न लगना आदि दूर होता है |
५-प्रतिदिन पके हुए बेल का शर्बत पीने से अजीर्ण रोग ठीक होता है |
६-ताज़े पानी में आधे नींबू का रस , एक चम्मच अदरक का रस और चुटकी भर नमक मिलाकर पीने से अपच दूर होता है |
७-हरड़ , पिप्पली व सौंठ बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण 3 -3 ग्राम दिन में दो बार , पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण में लाभ होता है |
पाचन तंत्र में किसी गड़बड़ी के कारण भोजन न पचने को अजीर्ण या अपच कहते हैं | कई बार समय-असमय भोजन करने से,कभी-भी,कहीं-भी,कुछ-भी खाने-पीने तथा बार-बार खाते रहने से पहले खाया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं पाता है और दूसरा भोजन पेट में पहुँच जाता है | ऐसे में पाचनतंत्र भोजन को पूर्ण रूप से नहीः पचा पाता जो अजीर्ण का मुख्य कारण है | अधिक तला-भुना या मिर्च मसाले युक्त भोजन के सेवन से भी अजीर्ण या अपच हो जाता है |
इस रोग में रोगी को भूख नहीं लगती,खट्टी डकारें आती हैं,छाती में तेज़ जलन होती है,पेट में भारीपन महसूस होता है तथा बैचैनी सी होती रहती है | रोगी को पसीना अधिक आता है , नींद भी नहीं आती और कभी-कभी अतिसार [दस्त ] भी होता है |
अजीर्ण का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार ---------
१-अजवायन तथा सौंठ पीसकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण दिन में दो बार शहद के साथ चाटने से अपच में आराम मिलता है |
२-छाछ गरिष्ठ वस्तुओं को पचाने में बहुत लाभकारी होता है | छाछ में सेंधा नमक , भुना जीरा तथा कालीमिर्च मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण रोग दूर होता है |
३-अजवायन -200 ग्राम , हींग -4 ग्राम और कालानमक -20 ग्राम को एक साथ पीसकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण 2 -2 ग्राम की मात्रा में सुबह -शाम गुनगुने पानी से खाने से लाभ होता है |
४-मेथी को पीस कर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को दिन में तीन बार 1-1 चम्मच गर्म पानी से खाने से अपच , पेटदर्द व भूख न लगना आदि दूर होता है |
५-प्रतिदिन पके हुए बेल का शर्बत पीने से अजीर्ण रोग ठीक होता है |
६-ताज़े पानी में आधे नींबू का रस , एक चम्मच अदरक का रस और चुटकी भर नमक मिलाकर पीने से अपच दूर होता है |
७-हरड़ , पिप्पली व सौंठ बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण 3 -3 ग्राम दिन में दो बार , पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण में लाभ होता है |
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जौ (BARLEY) -
भारतवर्ष में अति प्राचीन काल से जौ का प्रयोग किया जाता रहा है | हमारे ऋषि मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था | प्राचीन वैदिक काल तथा आयुर्वेदीय निघण्टुओं एवं संहिताओं में इसका वर्णन प्राप्त होता है | भावप्रकाश निघण्टुमें तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है |
स्वाद एवं आकृति के दृष्टिकोण से जौ,गेहूँ से भिन्न दिखाई पड़ते हैं किन्तु यह गेहूँ की जाति का ही अन्न है | अगर गुण की दृष्टी से देखा जाए तो जौ गेहूं की अपेक्षा हल्का होता है | जौ को भूनकर,पीसकर उसका सत्तू बनता है | जौ में लैक्टिक एसिड,सैलिसिलिक एसिड,फॉस्फोरिक एसिड,पोटैशियम और कैल्शियम होता है |
जौ के विभिन्न औषधीय उपयोग -
१- एक लीटर पानी में एक कप जौ को उबालकर इस पानी को ठंडा करके छानकर पीने से शरीर की की सूजन ख़त्म हो जाती है |
२- जौ का सत्तू खाने या पीने से अधिक गर्मी में शरीर को ठंडक मिलती है |
३- जौ को बारीक पीस कर तिल के तेल में मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से लाभ होता है |
४- जौ का आटा ५० ग्राम और चने का आटा १० ग्राम मिलाकर रोटी बनाएं | इस आटे की रोटी से मधुहेह नियंत्रित हो जाता है |
५- उबले हुए जौ का पानी प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से शरीर में खून बढ़ता है | जौ का पानी गर्मियों में पीने से अधिक लाभ मिलता है |
भारतवर्ष में अति प्राचीन काल से जौ का प्रयोग किया जाता रहा है | हमारे ऋषि मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था | प्राचीन वैदिक काल तथा आयुर्वेदीय निघण्टुओं एवं संहिताओं में इसका वर्णन प्राप्त होता है | भावप्रकाश निघण्टुमें तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है |
स्वाद एवं आकृति के दृष्टिकोण से जौ,गेहूँ से भिन्न दिखाई पड़ते हैं किन्तु यह गेहूँ की जाति का ही अन्न है | अगर गुण की दृष्टी से देखा जाए तो जौ गेहूं की अपेक्षा हल्का होता है | जौ को भूनकर,पीसकर उसका सत्तू बनता है | जौ में लैक्टिक एसिड,सैलिसिलिक एसिड,फॉस्फोरिक एसिड,पोटैशियम और कैल्शियम होता है |
जौ के विभिन्न औषधीय उपयोग -
१- एक लीटर पानी में एक कप जौ को उबालकर इस पानी को ठंडा करके छानकर पीने से शरीर की की सूजन ख़त्म हो जाती है |
२- जौ का सत्तू खाने या पीने से अधिक गर्मी में शरीर को ठंडक मिलती है |
३- जौ को बारीक पीस कर तिल के तेल में मिलाकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से लाभ होता है |
४- जौ का आटा ५० ग्राम और चने का आटा १० ग्राम मिलाकर रोटी बनाएं | इस आटे की रोटी से मधुहेह नियंत्रित हो जाता है |
५- उबले हुए जौ का पानी प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से शरीर में खून बढ़ता है | जौ का पानी गर्मियों में पीने से अधिक लाभ मिलता है |
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टमाटर (रक्तवृन्ताक) -
टमाटर मूलतः उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्रों में पाया जाता है,परन्तु अब सर्वत्र भारत में इसकी खेती की जाती है | टमाटर में कई प्रकार के पौष्टिक गुण पाये जाते हैं | टमाटर में पाये जाने वाले विटामिन गर्म करने से ख़त्म नहीं होते हैं | टमाटर में विटामिन A ,B और C तथा B काम्प्लेक्स पाया जाता है | २०० ग्राम टमाटर से लगभग ४० कैलोरी ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है | टमाटर में कैल्शियम भी अन्य फल सब्ज़ियों की तुलना में अधिक पाया जाता है | दांतों व हड्डियों की कमज़ोरी दूर करने के लिए टमाटर का सेवन बहुत उपयोगी है | इसमें लौह,पोटाश,चूना,लवण तथा मैग्नीस जैसे तत्व भी होते हैं इसलिए इसके सेवन से शरीर में रक्त की वृद्धि होती है | टमाटर लीवर,गुर्दा और अन्य रोगों को ठीक करने में लाभकारी है |
टमाटर के कुछ औषधीय प्रयोग -
१- मधुमेह की बीमारी में टमाटर का सेवन अति लाभकारी है | इसके सेवन से रोगी के मूत्र में शक्कर आना धीरे-धीरे कम हो जाता है |
२- टमाटर के सेवन से चिड़चिड़ापन और मानसिक कमज़ोरी दूर होती है | यह मानसिक थकान को दूर करके मस्तिष्क को संतुलित बनाए रखता है |
३- प्रतिदिन लगभग २०० ग्राम टमाटर के सेवन से रतौंधी और अल्पदृष्टि (आँखों से कम दिखाई देना) में लाभ होता है | इस प्रयोग से पेट के कीड़े भी मर जाते हैं |
४- दिन में दो बार टमाटर या उसके रस के सेवन से कब्ज़ ख़त्म होती है तथा आमाशय व आँतों की सफाई हो जाती है |
५- जिन लोगों को मुँह में बार-बार छाले होते हों उन्हें टमाटर का सेवन अधिक करना चाहिए | टमाटर के रस में पानी मिलाकर कुल्ला करें,इससे भी मुँह के छाले ख़त्म होते हैं|
६- अगर चेहरे पर काले दाग या धब्बे हों तो टमाटर के रस में रुई भिगोकर लगाने से काले दाग-धब्बे ख़त्म हो जाते हैं |
टमाटर का उपयोग आमवात,अम्लपित्त,सूजन,संधिव ात और पथरी के रोगियों को नहीं करना चाहिए,क्यूंकि यह उनके लिए हानिकारक होता है | मांसपेशियों में दर्द तथा शरीर में सूजन हो तो टमाटर नहीं खाना चाहिए |
टमाटर मूलतः उष्णकटिबंधीय दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्रों में पाया जाता है,परन्तु अब सर्वत्र भारत में इसकी खेती की जाती है | टमाटर में कई प्रकार के पौष्टिक गुण पाये जाते हैं | टमाटर में पाये जाने वाले विटामिन गर्म करने से ख़त्म नहीं होते हैं | टमाटर में विटामिन A ,B और C तथा B काम्प्लेक्स पाया जाता है | २०० ग्राम टमाटर से लगभग ४० कैलोरी ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है | टमाटर में कैल्शियम भी अन्य फल सब्ज़ियों की तुलना में अधिक पाया जाता है | दांतों व हड्डियों की कमज़ोरी दूर करने के लिए टमाटर का सेवन बहुत उपयोगी है | इसमें लौह,पोटाश,चूना,लवण तथा मैग्नीस जैसे तत्व भी होते हैं इसलिए इसके सेवन से शरीर में रक्त की वृद्धि होती है | टमाटर लीवर,गुर्दा और अन्य रोगों को ठीक करने में लाभकारी है |
टमाटर के कुछ औषधीय प्रयोग -
१- मधुमेह की बीमारी में टमाटर का सेवन अति लाभकारी है | इसके सेवन से रोगी के मूत्र में शक्कर आना धीरे-धीरे कम हो जाता है |
२- टमाटर के सेवन से चिड़चिड़ापन और मानसिक कमज़ोरी दूर होती है | यह मानसिक थकान को दूर करके मस्तिष्क को संतुलित बनाए रखता है |
३- प्रतिदिन लगभग २०० ग्राम टमाटर के सेवन से रतौंधी और अल्पदृष्टि (आँखों से कम दिखाई देना) में लाभ होता है | इस प्रयोग से पेट के कीड़े भी मर जाते हैं |
४- दिन में दो बार टमाटर या उसके रस के सेवन से कब्ज़ ख़त्म होती है तथा आमाशय व आँतों की सफाई हो जाती है |
५- जिन लोगों को मुँह में बार-बार छाले होते हों उन्हें टमाटर का सेवन अधिक करना चाहिए | टमाटर के रस में पानी मिलाकर कुल्ला करें,इससे भी मुँह के छाले ख़त्म होते हैं|
६- अगर चेहरे पर काले दाग या धब्बे हों तो टमाटर के रस में रुई भिगोकर लगाने से काले दाग-धब्बे ख़त्म हो जाते हैं |
टमाटर का उपयोग आमवात,अम्लपित्त,सूजन,संधिव
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रक्ताल्पता या खून की कमी (ANAEMIA ) -
हमारे खून में दो तरह की कोशिका होती हैं -लाल व सफ़ेद | लाल रक्त कोशिका की कमी से शरीर में खून की कमी हो जाती है जिसे रक्ताल्पता या अनीमिया कहा जाता है | लाल रक्त कोशिका के लिए लौहतत्व (iron) आवश्यक है अतः हमारे हीमोग्लोबिन में लौह तत्व की कमी के कारण भी रक्ताल्पता होती है |
रक्ताल्पता या खून की कमी होने से शरीर में कमज़ोरी उत्पन्न होना,काम में मन नहीं लगना,भूख न लगना,चेहरे की चमक ख़त्म होना,शरीर थका-थका लगना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं | स्त्रियों में खून की कमी के कारण 'मासिक धर्म' समय से नहीं होता है | खून की कमी बच्चों में हो जाने से बच्चे शारीरिक रूप से कमज़ोर हो जाते हैं जिसके कारण उनका विकास नहीं हो पाता तथा दिमाग कमज़ोर होने के कारण याद्दाश्त पर भी असर पढता है | इस वजह से बच्चे पढाई में पिछड़ने लगते हैं |
आइये जानते हैं रक्ताल्पता के कुछ उपचार -
१- खून की कमी को दूर करने के लिए,अनार के रस में थोड़ी सी काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है |
२- मेथी,पालक और बथुआ आदि का प्रतिदिन सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | मेथी की सब्ज़ी खाने से भी बहुत लाभ होता है क्यूंकि मेथी में आयरन प्रचुर मात्रा में होता है |
३- गिलोय का रस सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | आप यह अपने निकटवर्ती पतंजलि चिकित्सालय से प्राप्त कर सकते हैं |
४- रक्ताल्पता से पीड़ित रोगियों को २०० मिली गाजर के रस में १०० मिली पालक का रस मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है |
५- प्रतिदिन लगभग २००-२५० ग्राम पपीते के सेवन से खून की कमी दूर होती है | यह प्रयोग लगभग बीस दिन तक लगातार करना चाहिए |
६- दो टमाटर काट कर उस पर काली मिर्च और सेंधा नमक डालकर सेवन करना रक्ताल्पता में बहुत लाभकारी होता है |
७- उबले हुए काले चनों के प्रतिदिन सेवन से भी बहुत लाभ होता है |
८- गुड़ में भी लौह तत्व प्रचुर मात्रा में होता है अतः भोजन के बाद एक डली गुड़ अवश्य खाएं लाभ होगा |
हमारे खून में दो तरह की कोशिका होती हैं -लाल व सफ़ेद | लाल रक्त कोशिका की कमी से शरीर में खून की कमी हो जाती है जिसे रक्ताल्पता या अनीमिया कहा जाता है | लाल रक्त कोशिका के लिए लौहतत्व (iron) आवश्यक है अतः हमारे हीमोग्लोबिन में लौह तत्व की कमी के कारण भी रक्ताल्पता होती है |
रक्ताल्पता या खून की कमी होने से शरीर में कमज़ोरी उत्पन्न होना,काम में मन नहीं लगना,भूख न लगना,चेहरे की चमक ख़त्म होना,शरीर थका-थका लगना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण हैं | स्त्रियों में खून की कमी के कारण 'मासिक धर्म' समय से नहीं होता है | खून की कमी बच्चों में हो जाने से बच्चे शारीरिक रूप से कमज़ोर हो जाते हैं जिसके कारण उनका विकास नहीं हो पाता तथा दिमाग कमज़ोर होने के कारण याद्दाश्त पर भी असर पढता है | इस वजह से बच्चे पढाई में पिछड़ने लगते हैं |
आइये जानते हैं रक्ताल्पता के कुछ उपचार -
१- खून की कमी को दूर करने के लिए,अनार के रस में थोड़ी सी काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है |
२- मेथी,पालक और बथुआ आदि का प्रतिदिन सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | मेथी की सब्ज़ी खाने से भी बहुत लाभ होता है क्यूंकि मेथी में आयरन प्रचुर मात्रा में होता है |
३- गिलोय का रस सेवन करने से खून की कमी दूर हो जाती है | आप यह अपने निकटवर्ती पतंजलि चिकित्सालय से प्राप्त कर सकते हैं |
४- रक्ताल्पता से पीड़ित रोगियों को २०० मिली गाजर के रस में १०० मिली पालक का रस मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है |
५- प्रतिदिन लगभग २००-२५० ग्राम पपीते के सेवन से खून की कमी दूर होती है | यह प्रयोग लगभग बीस दिन तक लगातार करना चाहिए |
६- दो टमाटर काट कर उस पर काली मिर्च और सेंधा नमक डालकर सेवन करना रक्ताल्पता में बहुत लाभकारी होता है |
७- उबले हुए काले चनों के प्रतिदिन सेवन से भी बहुत लाभ होता है |
८- गुड़ में भी लौह तत्व प्रचुर मात्रा में होता है अतः भोजन के बाद एक डली गुड़ अवश्य खाएं लाभ होगा |
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कमर दर्द -
प्रायः कमर दर्द से सभी का सामना होता है | आजकल की व्यस्त जीवन शैली में कई बार शरीर में कमर दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है | यह अधिकतर उन लोगों में होता है जो अधिक समय तक खड़े होकर,बैठकर या गलत तरीके से बैठकर और लेटकर कार्य करते हैं | अधिक मुलायम गद्दे पर बैठने और सोने से भी कमर दर्द हो जाता है | कई बार किसी कारण से कमर की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो बहुत कष्टपूर्ण होता है | कमर दर्द के और भी कारण हो सकते हैं जैसे ठण्ड लगने से,पानी में भीगने से अथवा और किसी रोग की वजह से |
कमर दर्द का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -
१- सौंठ के चूर्ण को अलसी के तेल में पका लें | इस तेल से कमर की मालिश करने से कमर दर्द में लाभ होता है |
२- अजवायन को एक पोटली में बाँध लें | फिर इस पोटली को तवे पर गर्म करें तथा इससे कमर की सिकाई करें ,लाभ होगा |
३- आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है |
४- लगभग ५ ग्राम सौंफ,१० ग्राम तेजपात और दस ग्राम अजवायन को एक लीटर पानी में उबालें | जब १०० ग्राम शेष रह जाए तब इसे ठंडा करके पी लें | इससे ठण्ड के कारण उत्पन्न हुए कमर दर्द में राहत मिलती है |
५- अरण्ड के पत्ते पर एक तरफ सरसों का तेल लगाकर तवे पर हल्का सा सेंक लें | फिर इसे तेल की तरफ से कमर पर बाँध लें | यह प्रयोग रात्रि में सोते समय करना चाहिए | सुबह तक कमर दर्द में बहुत आराम मिलता है |
६- आधा लीटर सरसों के तेल में १२५ गर्म लहसुन की पोथियों को कूटकर डालें | फिर उसे लहसुन के जलने तक गर्म करें और ठंडा होने पर छानकर शीशी में भर लें| इस तेल की मालिश से कमर दर्द मिट जाता है |
प्रायः कमर दर्द से सभी का सामना होता है | आजकल की व्यस्त जीवन शैली में कई बार शरीर में कमर दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है | यह अधिकतर उन लोगों में होता है जो अधिक समय तक खड़े होकर,बैठकर या गलत तरीके से बैठकर और लेटकर कार्य करते हैं | अधिक मुलायम गद्दे पर बैठने और सोने से भी कमर दर्द हो जाता है | कई बार किसी कारण से कमर की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न हो जाता है जिसकी वजह से कमर में दर्द होता है जो बहुत कष्टपूर्ण होता है | कमर दर्द के और भी कारण हो सकते हैं जैसे ठण्ड लगने से,पानी में भीगने से अथवा और किसी रोग की वजह से |
कमर दर्द का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार -
१- सौंठ के चूर्ण को अलसी के तेल में पका लें | इस तेल से कमर की मालिश करने से कमर दर्द में लाभ होता है |
२- अजवायन को एक पोटली में बाँध लें | फिर इस पोटली को तवे पर गर्म करें तथा इससे कमर की सिकाई करें ,लाभ होगा |
३- आधा चम्मच सौंठ का चूर्ण सुबह-शाम गर्म दूध के साथ सेवन करने से लाभ होता है |
४- लगभग ५ ग्राम सौंफ,१० ग्राम तेजपात और दस ग्राम अजवायन को एक लीटर पानी में उबालें | जब १०० ग्राम शेष रह जाए तब इसे ठंडा करके पी लें | इससे ठण्ड के कारण उत्पन्न हुए कमर दर्द में राहत मिलती है |
५- अरण्ड के पत्ते पर एक तरफ सरसों का तेल लगाकर तवे पर हल्का सा सेंक लें | फिर इसे तेल की तरफ से कमर पर बाँध लें | यह प्रयोग रात्रि में सोते समय करना चाहिए | सुबह तक कमर दर्द में बहुत आराम मिलता है |
६- आधा लीटर सरसों के तेल में १२५ गर्म लहसुन की पोथियों को कूटकर डालें | फिर उसे लहसुन के जलने तक गर्म करें और ठंडा होने पर छानकर शीशी में भर लें| इस तेल की मालिश से कमर दर्द मिट जाता है |
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तलवों में जलन -
गर्मी के मौसम में तलवों में जलन होना एक आम समस्या है | आप कुछ सरल उपाय अपना कर इस परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं -
१- सूखा धनिया और मिश्री दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें | इसको २-२ चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सादे पानी से लेने से हाथ-पैरों की जलन दूर होती है |
२- लौकी को काटकर इसके गूदे को तलवों पर रगड़ने से पैरों की गर्मी,जलन आदि दूर हो जाती है |
३- हाथ-पैरों पर सरसों के तेल की मालिश करने से भी जलन से छुटकारा मिलता है |
४- मक्खन और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर लगाने से हाथ-पैरों की जलन समाप्त होती है |
५- तलवों पर मेहँदी को लेप लगाने से भी जलन में बहुत शांति मिलती है |
गर्मी के मौसम में तलवों में जलन होना एक आम समस्या है | आप कुछ सरल उपाय अपना कर इस परेशानी से छुटकारा पा सकते हैं -
१- सूखा धनिया और मिश्री दोनों को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें | इसको २-२ चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सादे पानी से लेने से हाथ-पैरों की जलन दूर होती है |
२- लौकी को काटकर इसके गूदे को तलवों पर रगड़ने से पैरों की गर्मी,जलन आदि दूर हो जाती है |
३- हाथ-पैरों पर सरसों के तेल की मालिश करने से भी जलन से छुटकारा मिलता है |
४- मक्खन और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर लगाने से हाथ-पैरों की जलन समाप्त होती है |
५- तलवों पर मेहँदी को लेप लगाने से भी जलन में बहुत शांति मिलती है |
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टॉन्सिल [Tonsils ]
गले के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मांस की गांठ सी होती है जिसे हम टॉन्सिल कहते हैं | इनमें पैदा होने वाली सूजन को टॉन्सिलाइटिस कहा है | इसमें गले में बहुत दर्द होता है तथा खाने का स्वाद भी पता नहीं चलता है | चावल , ज्यादा ठन्डे पेय पदार्थों का सेवन , मैदा तथा ज्यादा खट्टी वस्तुओं का अधिक प्रयोग करना टॉन्सिल बढ़ने का मुख्य कारण है | इन सबसे अम्ल (गैस ) बढ़ जाती है जिससे कब्ज़ हो जाती है | सर्दी लगने से , मौसम के अचानक बदल जाने से , जैसे गर्म से अचानक ठंडा हो जाना तथा दूषित वातावरण में रहने से भी कई बार टॉन्सिल बढ़ जाते हैं | इस रोग के होते ही ठण्ड लगने के साथ बुखार भी आ जाता है , गले पर दर्द के मरे हाथ नहीं रखा जाता और थूक निगलने में भी परेशानी होती है | आइये जानते हैं टॉन्सिलाइटिस के कुछ उपचार ---
१- गर्म (गुनगुने ) पानी में एक चम्मच नमक डालकर गरारे करने से गले की सूजन में काफी लाभ होता है |
२-दालचीनी को पीस कर चूर्ण बना लें | इसमें से चुटकी भर चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर प्रितिदिन 3 बार चाटने से टॉन्सिल के रोग में सेवन करने से लाभ होता है | इसी प्रकार तुलसी की मंजरी के चूर्ण का उपयोग भी किया जा सकता है |
३-एक गिलास पानी में एक चम्मच अजवायन डालकर उबाल लें | इस पानी को ठंडा करके उससे गरारे और कुल्ल्ला करने से टॉन्सिल में आराम मिलता है |
४-दो चुटकी पिसी हुई हल्दी, आधी चुटकी पिसी हुई कालीमिर्च और एक चम्म्च अदरक के रस को मिलाकर आग पर गर्म कर लें और फिर शहद में मिलाकर रात को सोते समय लेने से दो दिन में ही टॉन्सिल की सूजन दूर हो जाती है |
५-गले में टॉन्सिल होने पर सिंघाड़े को पानी में उबालकर उसके पानी से कुल्ला करने
से आराम होता है |
भोजन में बिना नमक की उबली हुई सब्ज़ियाँ खाने से टॉन्सिल में जल्दी आराम आ जाता है | मिर्च-मसाले , ज्यादा तेल की सब्ज़ी , खट्टी व ठंडी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए | गर्म पदार्थों के सेवन के पश्चात ठंडे पदार्थों का सेवन कदापि न करें |
गले के प्रवेश द्वार के दोनों तरफ मांस की गांठ सी होती है जिसे हम टॉन्सिल कहते हैं | इनमें पैदा होने वाली सूजन को टॉन्सिलाइटिस कहा है | इसमें गले में बहुत दर्द होता है तथा खाने का स्वाद भी पता नहीं चलता है | चावल , ज्यादा ठन्डे पेय पदार्थों का सेवन , मैदा तथा ज्यादा खट्टी वस्तुओं का अधिक प्रयोग करना टॉन्सिल बढ़ने का मुख्य कारण है | इन सबसे अम्ल (गैस ) बढ़ जाती है जिससे कब्ज़ हो जाती है | सर्दी लगने से , मौसम के अचानक बदल जाने से , जैसे गर्म से अचानक ठंडा हो जाना तथा दूषित वातावरण में रहने से भी कई बार टॉन्सिल बढ़ जाते हैं | इस रोग के होते ही ठण्ड लगने के साथ बुखार भी आ जाता है , गले पर दर्द के मरे हाथ नहीं रखा जाता और थूक निगलने में भी परेशानी होती है | आइये जानते हैं टॉन्सिलाइटिस के कुछ उपचार ---
१- गर्म (गुनगुने ) पानी में एक चम्मच नमक डालकर गरारे करने से गले की सूजन में काफी लाभ होता है |
२-दालचीनी को पीस कर चूर्ण बना लें | इसमें से चुटकी भर चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर प्रितिदिन 3 बार चाटने से टॉन्सिल के रोग में सेवन करने से लाभ होता है | इसी प्रकार तुलसी की मंजरी के चूर्ण का उपयोग भी किया जा सकता है |
३-एक गिलास पानी में एक चम्मच अजवायन डालकर उबाल लें | इस पानी को ठंडा करके उससे गरारे और कुल्ल्ला करने से टॉन्सिल में आराम मिलता है |
४-दो चुटकी पिसी हुई हल्दी, आधी चुटकी पिसी हुई कालीमिर्च और एक चम्म्च अदरक के रस को मिलाकर आग पर गर्म कर लें और फिर शहद में मिलाकर रात को सोते समय लेने से दो दिन में ही टॉन्सिल की सूजन दूर हो जाती है |
५-गले में टॉन्सिल होने पर सिंघाड़े को पानी में उबालकर उसके पानी से कुल्ला करने
से आराम होता है |
भोजन में बिना नमक की उबली हुई सब्ज़ियाँ खाने से टॉन्सिल में जल्दी आराम आ जाता है | मिर्च-मसाले , ज्यादा तेल की सब्ज़ी , खट्टी व ठंडी वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए | गर्म पदार्थों के सेवन के पश्चात ठंडे पदार्थों का सेवन कदापि न करें |
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मखाना (मखान्न) -
मखाना पोषक तत्वों से भरपूर एक जलीय उत्पाद है | भारत में यह मुख्यतः जम्मू-कश्मीर,पूर्वी पश्चिमी बंगाल के तालाबों,राजस्थान,उत्तर प्रदेश,बिहार,आसाम ,त्रिपुरा एवं मणिपुर में पाया जाता है | मखाना बलवर्धक होता है | इसका क्षुप कांटेदार तथा कमल के सामान जल में होता है | इसके पुष्प २.५ -५ सेमी लम्बे,अंदर की ओर रक्त वर्ण के,चमकीले और बाहर से हरित वर्ण के होते हैं| इसके फल ५-१० सेमी व्यास के,गोलाकार,कांटेदार तथा स्पंजी होते हैं | इसके बीज मटर के समान या कुछ बड़े होते हैं | यह संख्या में ८-२० तथा कृष्ण वर्ण के होते हैं| इसे कच्चा या भूनकर खाते हैं| बालू में भूनने से यह फूल जाते हैं जिन्हे मखाना कहा जाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से जनवरी तक होता है |
इसके बीज में स्टार्च,म्युसिलेज,तैल,अल्फ ा-टोकोफ़ेरॉल तथा स्टेरॉइडल ग्लाइकोसाइड पाया जाता है | मखाने में औषधीय गुण भी पाये जाते हैं -
१- मखानों को घी में भूनकर खाने से दस्तों (अतिसार ) में बहुत लाभ होता है |
२- मखाने की शर्करा रहित खीर बनाकर उसमें मिश्री का चूर्ण डालकर खिलाने से प्रमेह में लाभ होता है |
३- एक से तीन ग्राम मखानों को गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पेशाब के रोग दूर हो जाते हैं |
४- पत्तों को पीसकर लगाने से आमवात तथा संधिवात में लाभ होता है|
५- मखानों को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है |
६- मखानों के सेवन से दुर्बलता मिटती है तथा शरीर पुष्ट होता है |
मखाना पोषक तत्वों से भरपूर एक जलीय उत्पाद है | भारत में यह मुख्यतः जम्मू-कश्मीर,पूर्वी पश्चिमी बंगाल के तालाबों,राजस्थान,उत्तर प्रदेश,बिहार,आसाम ,त्रिपुरा एवं मणिपुर में पाया जाता है | मखाना बलवर्धक होता है | इसका क्षुप कांटेदार तथा कमल के सामान जल में होता है | इसके पुष्प २.५ -५ सेमी लम्बे,अंदर की ओर रक्त वर्ण के,चमकीले और बाहर से हरित वर्ण के होते हैं| इसके फल ५-१० सेमी व्यास के,गोलाकार,कांटेदार तथा स्पंजी होते हैं | इसके बीज मटर के समान या कुछ बड़े होते हैं | यह संख्या में ८-२० तथा कृष्ण वर्ण के होते हैं| इसे कच्चा या भूनकर खाते हैं| बालू में भूनने से यह फूल जाते हैं जिन्हे मखाना कहा जाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से जनवरी तक होता है |
इसके बीज में स्टार्च,म्युसिलेज,तैल,अल्फ
१- मखानों को घी में भूनकर खाने से दस्तों (अतिसार ) में बहुत लाभ होता है |
२- मखाने की शर्करा रहित खीर बनाकर उसमें मिश्री का चूर्ण डालकर खिलाने से प्रमेह में लाभ होता है |
३- एक से तीन ग्राम मखानों को गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पेशाब के रोग दूर हो जाते हैं |
४- पत्तों को पीसकर लगाने से आमवात तथा संधिवात में लाभ होता है|
५- मखानों को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है |
६- मखानों के सेवन से दुर्बलता मिटती है तथा शरीर पुष्ट होता है |
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आधासीसी (माइग्रेन) -
आधासीसी या माइग्रेन दर्द अति कष्टकारी होता है | इसमें सिर के आधे भाग में दर्द होता है | माइग्रेन में रोगी की आँखों के सामने अँधेरा सा छा जाता है सुबह उठते ही चक्कर आने लगते हैं | जी मिचलाना,उल्टी होना,अरुचि पैदा होना आदि आधासीसी रोग के लक्षण हैं | मानसिक व शारीरिक थकावट,चिंता करना,अधिक गुस्सा करना,आँखों का अधिक थक जाना,अत्यधिक भावुक होना तथा भोजन का ठीक तरह से न पचना आदि माइग्रेन रोग के कुछ कारण हैं| आज हम आपको माइग्रेन के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के विषय में बताएंगे -
१- एक चौथाई चम्मच तुलसी के पत्तों के चूर्ण को सुबह - शाम शहद के साथ चाटने से आधासीसी के दर्द में आराम मिलता है |
२- दस ग्राम सौंठ के चूर्ण को लगभग ६० ग्राम गुड़ में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें | इन्हे सुबह शाम खाने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |
३- सिर के जिस हिस्से में दर्द हो उस नथुने में ४-५ बूँद सरसों का तेल डालने से आधे सिर का दर्द ठीक हो जाता है |
४- सुबह खाली पेट आधा सेब प्रतिदिन सेवन करने से माइग्रेन में बहुत लाभ होता है |
५- सौंफ,धनिया और मिश्री सबको ५-५ ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें | इसे दिन में तीन बार लगभग ३-३ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |
६- नियमित रूप से सातों प्राणायाम का अभ्यास करें , लाभ होगा |
माइग्रेन से पीड़ित रोगी को स्टार्च,प्रोटीन और अधिक चिकनाई युक्त भोजन नहीं करना चाहिए | फल,सब्जियां और अंकुरित दालों का सेवन लाभकारी होता है |
आधासीसी या माइग्रेन दर्द अति कष्टकारी होता है | इसमें सिर के आधे भाग में दर्द होता है | माइग्रेन में रोगी की आँखों के सामने अँधेरा सा छा जाता है सुबह उठते ही चक्कर आने लगते हैं | जी मिचलाना,उल्टी होना,अरुचि पैदा होना आदि आधासीसी रोग के लक्षण हैं | मानसिक व शारीरिक थकावट,चिंता करना,अधिक गुस्सा करना,आँखों का अधिक थक जाना,अत्यधिक भावुक होना तथा भोजन का ठीक तरह से न पचना आदि माइग्रेन रोग के कुछ कारण हैं| आज हम आपको माइग्रेन के लिए कुछ आयुर्वेदिक औषधियों के विषय में बताएंगे -
१- एक चौथाई चम्मच तुलसी के पत्तों के चूर्ण को सुबह - शाम शहद के साथ चाटने से आधासीसी के दर्द में आराम मिलता है |
२- दस ग्राम सौंठ के चूर्ण को लगभग ६० ग्राम गुड़ में मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें | इन्हे सुबह शाम खाने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |
३- सिर के जिस हिस्से में दर्द हो उस नथुने में ४-५ बूँद सरसों का तेल डालने से आधे सिर का दर्द ठीक हो जाता है |
४- सुबह खाली पेट आधा सेब प्रतिदिन सेवन करने से माइग्रेन में बहुत लाभ होता है |
५- सौंफ,धनिया और मिश्री सबको ५-५ ग्राम की मात्रा में लेकर पीस लें | इसे दिन में तीन बार लगभग ३-३ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है |
६- नियमित रूप से सातों प्राणायाम का अभ्यास करें , लाभ होगा |
माइग्रेन से पीड़ित रोगी को स्टार्च,प्रोटीन और अधिक चिकनाई युक्त भोजन नहीं करना चाहिए | फल,सब्जियां और अंकुरित दालों का सेवन लाभकारी होता है |
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फोड़े - फुन्सियाँ -
गर्मी और बरसात के मौसम में फोड़े-फुन्सियाँ निकलना एक आम समस्या है | शरीर के रोम कूपों में 'एसको' नामक जीवाणु इकठ्ठे हो जाते हैं जो संक्रमण पैदा कर देते हैं जिसके कारण शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुन्सियां निकल आती हैं | इसके अलावा खून में खराबी पैदा होने की वजह से,आम के अधिक सेवन से,मच्छरों के काटने से या कीटाणुओं के फैलने के कारण भी फुन्सियां निकल आती हैं| भोजन में गर्म पदार्थों के अधिक सेवन से भी फोड़े-फुन्सियाँ निकल आते हैं |
फोड़े-फुन्सियाँ होने पर भोजन में अधिक गर्म पदार्थ,मिर्च-मसाले,तेल,खट् टी चीज़ें और अधिक मीठी वस्तुएं नहीं खानी चाहियें | फोड़े-फ़ुन्सियों को ढककर या पट्टी बांधकर ही रखना चाहिए |
फोड़े-फुन्सियों का विभिन्न औषधियों से उपचार -
१-नीम की ५-८ पकी निम्बौलियों को २ से ३ बार पानी के साथ सेवन करने से फुन्सियाँ शीघ्र ही समाप्त हो जाती हैं |
२- नीम की पत्तियों को पीसकर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है |
३- दूब को पीसकर लेप बना लें | पके फोड़े पर यह लेप लगाने से फोड़ा जल्दी फूट जाता है |
४- खून के विकार से उत्पन्न फोड़े-फुन्सियों पर बेल की लकड़ी को पानी में पीसकर लगाने से लाभ मिलता है |
५- तुलसी और पीपल के नए कोमल पत्तों को बराबर मात्रा में पीस लें | इस लेप को दिन में तीन बार फोड़ों पर लगाने से फोड़े जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं |
६- फोड़े में सूजन,दर्द और जलन आदि हो तो उसपर पानी निकाले हुए दही को लगाकर ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिए | यह पट्टी दिन में तीन बार बदलनी चाहिए,लाभ होता है |
गर्मी और बरसात के मौसम में फोड़े-फुन्सियाँ निकलना एक आम समस्या है | शरीर के रोम कूपों में 'एसको' नामक जीवाणु इकठ्ठे हो जाते हैं जो संक्रमण पैदा कर देते हैं जिसके कारण शरीर में जगह-जगह फोड़े-फुन्सियां निकल आती हैं | इसके अलावा खून में खराबी पैदा होने की वजह से,आम के अधिक सेवन से,मच्छरों के काटने से या कीटाणुओं के फैलने के कारण भी फुन्सियां निकल आती हैं| भोजन में गर्म पदार्थों के अधिक सेवन से भी फोड़े-फुन्सियाँ निकल आते हैं |
फोड़े-फुन्सियाँ होने पर भोजन में अधिक गर्म पदार्थ,मिर्च-मसाले,तेल,खट्
फोड़े-फुन्सियों का विभिन्न औषधियों से उपचार -
१-नीम की ५-८ पकी निम्बौलियों को २ से ३ बार पानी के साथ सेवन करने से फुन्सियाँ शीघ्र ही समाप्त हो जाती हैं |
२- नीम की पत्तियों को पीसकर फोड़े-फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है |
३- दूब को पीसकर लेप बना लें | पके फोड़े पर यह लेप लगाने से फोड़ा जल्दी फूट जाता है |
४- खून के विकार से उत्पन्न फोड़े-फुन्सियों पर बेल की लकड़ी को पानी में पीसकर लगाने से लाभ मिलता है |
५- तुलसी और पीपल के नए कोमल पत्तों को बराबर मात्रा में पीस लें | इस लेप को दिन में तीन बार फोड़ों पर लगाने से फोड़े जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं |
६- फोड़े में सूजन,दर्द और जलन आदि हो तो उसपर पानी निकाले हुए दही को लगाकर ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिए | यह पट्टी दिन में तीन बार बदलनी चाहिए,लाभ होता है |
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रुद्राक्ष -
रुद्राक्ष विश्व में नेपाल,म्यान्मार,इंग्लैंड,ब ांग्लादेश एवं मलेशिया में पाया जाता है | भारत में यह मुख्यतः बिहार,बंगाल,मध्य-प्रदेश,आस ाम एवं महाराष्ट्र में पाया जाता है | विद्वानों का कथन है कि रुद्राक्ष की माला धारण करने से मनुष्य शरीर के प्राणों का नियमन होता है तथा कई प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक विकारों से रक्षा होती है | इसकी माला को पहनने से हृदयविकार तथा रक्तचाप आदि विकारों में लाभ होता है |
यह १८-२० मीटर तक ऊँचा,माध्यम आकार का सदाहरित वृक्ष होता है | इसके फल गोलाकार,१.३-२ सेमी व्यास के तथा कच्ची अवस्था में हरे रंग के होते हैं | इसके बीजों को रुद्राक्ष कहा जाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है|
आइये जानते हैं रुद्राक्ष के कुछ औषधीय प्रयोगों के विषय में -
१- रुद्राक्ष का शरीर से स्पर्श उत्तेजना,रक्तचाप तथा हृदय रोग आदि को नियंत्रित करता है |
२- रुद्राक्ष को पीसकर उसमें शहद मिलाकर त्वचा पर लगाने से दाद में लाभ होता है |
३- रुद्राक्ष को दूध के साथ पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहासे नष्ट होते हैं |
४- रुद्राक्ष के फलों को पीसकर लगाने से दाह (जलन) में लाभ होता है |
५- यदि बच्चे की छाती में कफ जम गया हो तो रुद्राक्ष को घिसकर शहद में मिलाकर ५-५ मिनट के बाद रोगी को चटाने से उल्टी द्वारा कफ निकल जाता है |
रुद्राक्ष विश्व में नेपाल,म्यान्मार,इंग्लैंड,ब
यह १८-२० मीटर तक ऊँचा,माध्यम आकार का सदाहरित वृक्ष होता है | इसके फल गोलाकार,१.३-२ सेमी व्यास के तथा कच्ची अवस्था में हरे रंग के होते हैं | इसके बीजों को रुद्राक्ष कहा जाता है | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल फ़रवरी से जून तक होता है|
आइये जानते हैं रुद्राक्ष के कुछ औषधीय प्रयोगों के विषय में -
१- रुद्राक्ष का शरीर से स्पर्श उत्तेजना,रक्तचाप तथा हृदय रोग आदि को नियंत्रित करता है |
२- रुद्राक्ष को पीसकर उसमें शहद मिलाकर त्वचा पर लगाने से दाद में लाभ होता है |
३- रुद्राक्ष को दूध के साथ पीसकर चेहरे पर लगाने से मुंहासे नष्ट होते हैं |
४- रुद्राक्ष के फलों को पीसकर लगाने से दाह (जलन) में लाभ होता है |
५- यदि बच्चे की छाती में कफ जम गया हो तो रुद्राक्ष को घिसकर शहद में मिलाकर ५-५ मिनट के बाद रोगी को चटाने से उल्टी द्वारा कफ निकल जाता है |
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पीपल
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है |
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है|
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है |
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है |
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए |
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है|
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा |
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है |
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे |
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है |
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है |
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है |
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है |
- यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है |
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है|
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है |
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता है |
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए |
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है|
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा |
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है |
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे |
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है |
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है |
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है |
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सूजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है |
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खराश
क्या आपके गले में हमेशा खराश बनी रहती है? इसे हल्के में न लें। मौसम का बदलाव या सर्द-गर्म की वजह से इसे एक आम परेशानी न समझें। गले की खराश टॉन्सिल या गले का गंभीर संक्रमण भी हो सकता है। कैसे निबटें इस परेशानी से:-
मौसम बदलते ही गले में खराश होना आम बात है। इसमें गले में कांटे जैसी चुभन, खिचखिच और बोलने में तकलीफ जैसी समस्याएं आती हैं। ऐसा बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। कई बार गले में खराश की समस्या एलर्जी और धूम्रपान के कारण भी होती है। गले के कुछ संक्रमण तो खुद-ब-खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इलाज की ही जरूरत पड़ती है। आमतौर पर लोग गले की खराश को आम बात समझ कर इस समस्या को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन गले की किसी भी परेशानी को यूं ही नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है।
गले में खराश गले का इंफेक्शन है, जिसमें गले से कर्कश आवाज, हल्की खांसी, बुखार, सिरदर्द, थकान और गले में दर्द खासकर निगलने में परेशानी होती है। हमारे गले में दोनों तरफ टॉन्सिल्स होते हैं, जो कीटाणुओं, बैक्टीरिया और वायरस को हमारे गले में जाने से रोकते हैं, लेकिन कई बार जब ये टॉन्सिल्स खुद ही संक्रमित हो जाते हैं, तो इन्हें टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। इसमें गले के अंदर के दोनों तरफ के टॉन्सिल्स गुलाबी व लाल रंग के दिखाई पडम्ते हैं। ये थोड़े बड़े और ज्यादा लाल होते हैं। कई बार इन पर सफेद चकत्ते या पस भी दिखाई देता है। वैसे तो टॉन्सिलाइटिस का संक्रमण उचित देखभाल और एंटीबायोटिक से ठीक हो जाता है, लेकिन इसका खतरा तब अधिक बढ़ जाता है, जब यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकॉक्कस हिमोलिटीकस नामक बैक्टीरिया से होता है। तब यह संक्रमण हृदय एवं गुर्दे में फैलकर खतरनाक बीमारी को जन्म दे सकता है।
नमक के गुनगुने पानी से गरारे करें। इससे गले में आराम मिलेगा।
अदरक, इलायची और काली मिर्च वाली चाय गले की खराश में बेहद आराम पहुंचाती है। साथ ही इस चाय में जीवाणुरोधक गुण भी हैं। इस चाय को नियमित रूप से पीने से गले को आराम मिलता है और खराश दूर होती है।
धूम्रपान न करें और ज्यादा मिर्च-मसाले वाला भोजन न लें।
खान-पान में विशेष तौर पर परहेज बरतें। फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं, न ही अन्य ठंडी चीजें खाएं। एहतियात ही इस परेशानी का हल है।
गले का संक्रमण आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है। इसके अलावा फंगल इंफेक्शन भी होता है, जिसे ओरल थ्रश कहते हैं। किसी खाने की वस्तु, पेय पदार्थ या दवाइयों के विपरीत प्रभाव के कारण भी गले में संक्रमण हो सकता है। इसके अलावा गले में खराश की समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है। खानपान में त्रुटियां जैसे ठंडे, खट्टे, तले हुए एवं प्रिजर्वेटिव खाद्य पदार्थों को खाने और मुंह व दांतों की साफ-सफाई न रखने के कारण भी गले में सक्रमण की आशंका कई गुना बढ़ जाती है
मौसम बदलते ही गले में खराश होना आम बात है। इसमें गले में कांटे जैसी चुभन, खिचखिच और बोलने में तकलीफ जैसी समस्याएं आती हैं। ऐसा बैक्टीरिया और वायरस के कारण होता है। कई बार गले में खराश की समस्या एलर्जी और धूम्रपान के कारण भी होती है। गले के कुछ संक्रमण तो खुद-ब-खुद ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में इलाज की ही जरूरत पड़ती है। आमतौर पर लोग गले की खराश को आम बात समझ कर इस समस्या को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन गले की किसी भी परेशानी को यूं ही नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ये गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है।
गले में खराश गले का इंफेक्शन है, जिसमें गले से कर्कश आवाज, हल्की खांसी, बुखार, सिरदर्द, थकान और गले में दर्द खासकर निगलने में परेशानी होती है। हमारे गले में दोनों तरफ टॉन्सिल्स होते हैं, जो कीटाणुओं, बैक्टीरिया और वायरस को हमारे गले में जाने से रोकते हैं, लेकिन कई बार जब ये टॉन्सिल्स खुद ही संक्रमित हो जाते हैं, तो इन्हें टॉन्सिलाइटिस कहते हैं। इसमें गले के अंदर के दोनों तरफ के टॉन्सिल्स गुलाबी व लाल रंग के दिखाई पडम्ते हैं। ये थोड़े बड़े और ज्यादा लाल होते हैं। कई बार इन पर सफेद चकत्ते या पस भी दिखाई देता है। वैसे तो टॉन्सिलाइटिस का संक्रमण उचित देखभाल और एंटीबायोटिक से ठीक हो जाता है, लेकिन इसका खतरा तब अधिक बढ़ जाता है, जब यह संक्रमण स्ट्रेप्टोकॉक्कस हिमोलिटीकस नामक बैक्टीरिया से होता है। तब यह संक्रमण हृदय एवं गुर्दे में फैलकर खतरनाक बीमारी को जन्म दे सकता है।
नमक के गुनगुने पानी से गरारे करें। इससे गले में आराम मिलेगा।
अदरक, इलायची और काली मिर्च वाली चाय गले की खराश में बेहद आराम पहुंचाती है। साथ ही इस चाय में जीवाणुरोधक गुण भी हैं। इस चाय को नियमित रूप से पीने से गले को आराम मिलता है और खराश दूर होती है।
धूम्रपान न करें और ज्यादा मिर्च-मसाले वाला भोजन न लें।
खान-पान में विशेष तौर पर परहेज बरतें। फ्रिज का ठंडा पानी न पिएं, न ही अन्य ठंडी चीजें खाएं। एहतियात ही इस परेशानी का हल है।
गले का संक्रमण आमतौर पर वायरस और बैक्टीरिया के कारण होता है। इसके अलावा फंगल इंफेक्शन भी होता है, जिसे ओरल थ्रश कहते हैं। किसी खाने की वस्तु, पेय पदार्थ या दवाइयों के विपरीत प्रभाव के कारण भी गले में संक्रमण हो सकता है। इसके अलावा गले में खराश की समस्या अनुवांशिक भी हो सकती है। खानपान में त्रुटियां जैसे ठंडे, खट्टे, तले हुए एवं प्रिजर्वेटिव खाद्य पदार्थों को खाने और मुंह व दांतों की साफ-सफाई न रखने के कारण भी गले में सक्रमण की आशंका कई गुना बढ़ जाती है
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दूब घास (दुर्वा) --------------
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दूब या 'दुर्वा' (वैज्ञानिक नाम- 'साइनोडान डेक्टीलान") वर्ष भर पाई जाने वाली घास है, जो ज़मीन पर पसरते हुए या फैलते हुए बढती है। हिन्दू धर्म में इस घास को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है। इसके नए पौधे बीजों तथा भूमीगत तनों से पैदा होते हैं। वर्षा काल में दूब घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूब सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है। यह घास औषधि के रूप में विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है।
महाकवि तुलसीदास ने दूब को अपनी लेखनी से इस प्रकार सम्मान दिया है-
"रामं दुर्वादल श्यामं, पद्माक्षं पीतवाससा।"
प्रायः जो वस्तु स्वास्थ्य के लिए हितकर सिद्ध होती थी, उसे हमारे पूर्वजों ने धर्म के साथ जोड़कर उसका महत्व और भी बढ़ा दिया। दूब भी ऐसी ही वस्तु है। यह सारे देश में बहुतायत के साथ हर मौसम में उपलब्ध रहती है। दूब का पौधा एक बार जहाँ जम जाता है, वहाँ से इसे नष्ट करना बड़ा मुश्किल होता है। इसकी जड़ें बहुत ही गहरी पनपती हैं। दूब की जड़ों में हवा तथा भूमि से नमी खींचने की क्षमता बहुत अधिक होती है, यही कारण है कि चाहे जितनी सर्दी पड़ती रहे या जेठ की तपती दुपहरी हो, इन सबका दूब पर असर नहीं होता और यह अक्षुण्ण बनी रहती है।
दूब को संस्कृत में 'दूर्वा', 'अमृता', 'अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से जानते हैं। दूब घास पर उषा काल में जमी हुई ओस की बूँदें मोतियों-सी चमकती प्रतीत होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में हरी-हरी ओस से परिपूर्ण दूब पर भ्रमण करने का अपना निराला ही आनंद होता है। पशुओं के लिए ही नहीं अपितु मनुष्यों के लिए भी पूर्ण पौष्टिक आहार है दूब। महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियाँ खाई थीं, वह भी दूब से ही निर्मित थी|अर्वाचीन विश्लेषकों ने भी परीक्षणों के उपरांत यह सिद्ध किया है कि दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है। आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधीय गुणों के कारण दूब को 'महौषधि' में कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। दूब के कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-
1- संथाल जाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।
2 -इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है।
3- दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है।
4- दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है।
5- नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है।
6- इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है।
7- दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन ठीक हो जाता है।
8- इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है।
9- यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है।
10- दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है।
11- इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है।
12- दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है।
13- इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है।
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दूब या 'दुर्वा' (वैज्ञानिक नाम- 'साइनोडान डेक्टीलान") वर्ष भर पाई जाने वाली घास है, जो ज़मीन पर पसरते हुए या फैलते हुए बढती है। हिन्दू धर्म में इस घास को बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग बहुत किया जाता है। इसके नए पौधे बीजों तथा भूमीगत तनों से पैदा होते हैं। वर्षा काल में दूब घास अधिक वृद्धि करती है तथा वर्ष में दो बार सितम्बर-अक्टूबर और फ़रवरी-मार्च में इसमें फूल आते है। दूब सम्पूर्ण भारत में पाई जाती है। यह घास औषधि के रूप में विशेष तौर पर प्रयोग की जाती है।
महाकवि तुलसीदास ने दूब को अपनी लेखनी से इस प्रकार सम्मान दिया है-
"रामं दुर्वादल श्यामं, पद्माक्षं पीतवाससा।"
प्रायः जो वस्तु स्वास्थ्य के लिए हितकर सिद्ध होती थी, उसे हमारे पूर्वजों ने धर्म के साथ जोड़कर उसका महत्व और भी बढ़ा दिया। दूब भी ऐसी ही वस्तु है। यह सारे देश में बहुतायत के साथ हर मौसम में उपलब्ध रहती है। दूब का पौधा एक बार जहाँ जम जाता है, वहाँ से इसे नष्ट करना बड़ा मुश्किल होता है। इसकी जड़ें बहुत ही गहरी पनपती हैं। दूब की जड़ों में हवा तथा भूमि से नमी खींचने की क्षमता बहुत अधिक होती है, यही कारण है कि चाहे जितनी सर्दी पड़ती रहे या जेठ की तपती दुपहरी हो, इन सबका दूब पर असर नहीं होता और यह अक्षुण्ण बनी रहती है।
दूब को संस्कृत में 'दूर्वा', 'अमृता', 'अनंता', 'गौरी', 'महौषधि', 'शतपर्वा', 'भार्गवी' इत्यादि नामों से जानते हैं। दूब घास पर उषा काल में जमी हुई ओस की बूँदें मोतियों-सी चमकती प्रतीत होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में हरी-हरी ओस से परिपूर्ण दूब पर भ्रमण करने का अपना निराला ही आनंद होता है। पशुओं के लिए ही नहीं अपितु मनुष्यों के लिए भी पूर्ण पौष्टिक आहार है दूब। महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियाँ खाई थीं, वह भी दूब से ही निर्मित थी|अर्वाचीन विश्लेषकों ने भी परीक्षणों के उपरांत यह सिद्ध किया है कि दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियाँ इन सभी का चिकित्सा क्षेत्र में भी अपना विशिष्ट महत्व है। आयुर्वेद में दूब में उपस्थित अनेक औषधीय गुणों के कारण दूब को 'महौषधि' में कहा गया है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है। विभिन्न पैत्तिक एवं कफज विकारों के शमन में दूब का निरापद प्रयोग किया जाता है। दूब के कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-
1- संथाल जाति के लोग दूब को पीसकर फटी हुई बिवाइयों पर इसका लेप करके लाभ प्राप्त करते हैं।
2 -इस पर सुबह के समय नंगे पैर चलने से नेत्र ज्योति बढती है और अनेक विकार शांत हो जाते है।
3- दूब घास शीतल और पित्त को शांत करने वाली है।
4- दूब घास के रस को हरा रक्त कहा जाता है, इसे पीने से एनीमिया ठीक हो जाता है।
5- नकसीर में इसका रस नाक में डालने से लाभ होता है।
6- इस घास के काढ़े से कुल्ला करने से मुँह के छाले मिट जाते है।
7- दूब का रस पीने से पित्त जन्य वमन ठीक हो जाता है।
8- इस घास से प्राप्त रस दस्त में लाभकारी है।
9- यह रक्त स्त्राव, गर्भपात को रोकती है और गर्भाशय और गर्भ को शक्ति प्रदान करती है।
10- दूब को पीस कर दही में मिलाकर लेने से बवासीर में लाभ होता है।
11- इसके रस को तेल में पका कर लगाने से दाद, खुजली मिट जाती है।
12- दूब के रस में अतीस के चूर्ण को मिलाकर दिन में दो-तीन बार चटाने से मलेरिया में लाभ होता है।
13- इसके रस में बारीक पिसा नाग केशर और छोटी इलायची मिलाकर सूर्योदय के पहले छोटे बच्चों को नस्य दिलाने से वे तंदुरुस्त होते है।
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मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है।
मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए।
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।
अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।
मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।
मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए।
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।
अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।
मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।
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बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना -
बच्चों का थोड़ा बड़े होने पर पेशाब करना एक आम समस्या है | इस समस्या के बहुत से कारण हो सकते हैं | कई अनुभवियों के अनुसार स्नायु विकृति के कारण या पेट में कीड़े होने पर भी बच्चे सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं | पेशाब की नली में रोग के कारण भी बच्चा सोते हुए पेशाब कर देता है | कई बार कुछ गरिष्ठ भोजन व ठंडे पदार्थों के अधिक सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है | इस समस्या को समाप्त करने के लिए कोई भी औषधि देने से पूर्व माता-पिता को बच्चे के भोजन की कुछ आदतें सुधारनी जरूरी हैं | बच्चों को सोने से एक घंटा पहले भोजन करा देना चाहिए और सोने के बाद उसे जगाकर कुछ भी खाने-पीने को नहीं देना चाहिए | बच्चे को बिस्तर पर जाने से पहले एक बार पेशाब अवश्य करा देना चाहिए |
कुछ औषधियों द्वारा भी इस समस्या का समाधान सम्भव है -
१- पचास ग्राम अजवायन का चूर्ण कर लें | प्रतिदिन एक ग्राम चूर्ण को रात को सोने से पूर्व बच्चे को खिलाएं | ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से यह रोग ठीक हो जाता है |
२- दो मुनक्कों के बीज निकालकर उसमें १-१ काली मिर्च डालकर बच्चों को रात को सोने से पहले खिला दें | ऐसा दो हफ़्तों तक नियमित रूप से सेवन करने से यह बीमारी दूर हो जाती है |
३- प्रतिदिन दो अखरोट और बीस किशमिश बच्चों को खिलाने से बिस्तर में पेशाब करने की समस्या दूर हो जाती है |
४- रात को सोते समय बच्चों को शहद खिलाने से यह रोग समाप्त हो जाता है |
५- जामुन की गुठलियों को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें | इस चूर्ण का २-२ ग्राम दिन में दो बार पानी के साथ सेवन करने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं |
६- २५० मिली दूध में एक छुहारा डालकर उबाल लें | इसे दो घंटे तक रखा रहने दें | इसके बाद इसमें से छुहारा निकाल कर बच्चे को खिला दें और इस दूध को हल्का गर्म करके ऊपर से पिला दें | ऐसा प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है |
बच्चों का थोड़ा बड़े होने पर पेशाब करना एक आम समस्या है | इस समस्या के बहुत से कारण हो सकते हैं | कई अनुभवियों के अनुसार स्नायु विकृति के कारण या पेट में कीड़े होने पर भी बच्चे सोते हुए बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं | पेशाब की नली में रोग के कारण भी बच्चा सोते हुए पेशाब कर देता है | कई बार कुछ गरिष्ठ भोजन व ठंडे पदार्थों के अधिक सेवन से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती है | इस समस्या को समाप्त करने के लिए कोई भी औषधि देने से पूर्व माता-पिता को बच्चे के भोजन की कुछ आदतें सुधारनी जरूरी हैं | बच्चों को सोने से एक घंटा पहले भोजन करा देना चाहिए और सोने के बाद उसे जगाकर कुछ भी खाने-पीने को नहीं देना चाहिए | बच्चे को बिस्तर पर जाने से पहले एक बार पेशाब अवश्य करा देना चाहिए |
कुछ औषधियों द्वारा भी इस समस्या का समाधान सम्भव है -
१- पचास ग्राम अजवायन का चूर्ण कर लें | प्रतिदिन एक ग्राम चूर्ण को रात को सोने से पूर्व बच्चे को खिलाएं | ऐसा कुछ दिनों तक नियमित रूप से करने से यह रोग ठीक हो जाता है |
२- दो मुनक्कों के बीज निकालकर उसमें १-१ काली मिर्च डालकर बच्चों को रात को सोने से पहले खिला दें | ऐसा दो हफ़्तों तक नियमित रूप से सेवन करने से यह बीमारी दूर हो जाती है |
३- प्रतिदिन दो अखरोट और बीस किशमिश बच्चों को खिलाने से बिस्तर में पेशाब करने की समस्या दूर हो जाती है |
४- रात को सोते समय बच्चों को शहद खिलाने से यह रोग समाप्त हो जाता है |
५- जामुन की गुठलियों को छाया में सुखाकर बारीक पीस लें | इस चूर्ण का २-२ ग्राम दिन में दो बार पानी के साथ सेवन करने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं |
६- २५० मिली दूध में एक छुहारा डालकर उबाल लें | इसे दो घंटे तक रखा रहने दें | इसके बाद इसमें से छुहारा निकाल कर बच्चे को खिला दें और इस दूध को हल्का गर्म करके ऊपर से पिला दें | ऐसा प्रतिदिन करने से कुछ ही दिनों में बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है |
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पसीना -
पसीना आना शरीर की स्वाभाविक क्रिया है | यह शरीर को उसके सामान्य तापमान को बनाये रखने में मदद करता है | हमारे शरीर का सामान्य तापमान ३७ डिग्री सेन्टीग्रेड होता है और सारे कार्यों को संपादित करने हेतु शरीर को यह तापमान बना कर रखने की आवश्यकता होती है | किसी भी कारण से हमारे शरीर के गर्म होने से उसमे मौजूद खून भी ऊष्मा पाकर गर्म हो जाता है और जब यह गर्म खून दिमाग के हाइपोथैलेमस भाग में पहुंचता है तो उसे उत्तेजित कर देता है | इसके फलस्वरूप परानुकम्पी तंत्रिकाओं के माध्यम से शरीर के ताप को सामान्य और काबू में रखने वाली क्रियाएँ जैसे पसीने का स्वेदग्रंथियों में बनना शुरू हो जाता है,जो शरीर के अलग-अलग हिस्सों में उत्सर्जित होने लगता है | पसीना स्वेद ग्रंथियों में बनता है,जो हमारे शरीर की त्वचा के नीचे खासतौर पर हाथों की हथेलियों,पैरों के तलवों और सिर की खाल के नीचे होती हैं | ज्यादा पसीना बहने से शरीर में पानी और लवणों की कमी हो जाती है जिससे सिर में दर्द,नींद और कभी-कभी उल्टी भी आने लगती है | गर्म वातावरण में ज्यादा देर तक खाली पेट काम नहीं करना चाहिए|
१- अधिक पसीना आने पर कभी-कभी रोगी का शरीर ठंडा पड़ने लगता है और उसकी नाड़ी तथा सांस की रफ़्तार बहुत तेज़ हो जाती है | ऐसे में रोगी को टमाटर के रस में नमक और पानी मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहने से लाभ होता है |
२- हरड़ को बारीक पीस लें | जहाँ पसीना अधिक आता हो , इसको मल लें और दस मिनट बाद नहा लें | इससे ज़्यादा पसीना आना बंद हो जाता है |
३- कुछ लोगों को पैरों में अधिक पसीना आता है | ऐसे में पहले पैरों को गर्म पानी में रख लें,फिर ठंडे पानी में रखें और दोनों पैरों को आपस में रगड़ लें | फिर पैरों को बाहर निकालकर किसी कपडे से पौंछ लें | एक हफ्ते तक यह क्रिया लगातार करने से बहुत लाभ होता है |
४- यदि पसीने में बदबू आती हो तो भोजन में नमक का सेवन कम करना चाहिए |
५- गर्मियों में पसीने के साथ- साथ शरीर में घमौरी भी निकल आती हैं | इसके लिए नहाते समय एक बाल्टी पानी में गुलाबजल की २० बूँदें डालकर स्नान करें | रात को ४ चम्मच गुलकंद खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से भी लाभ होता है
पसीना आना शरीर की स्वाभाविक क्रिया है | यह शरीर को उसके सामान्य तापमान को बनाये रखने में मदद करता है | हमारे शरीर का सामान्य तापमान ३७ डिग्री सेन्टीग्रेड होता है और सारे कार्यों को संपादित करने हेतु शरीर को यह तापमान बना कर रखने की आवश्यकता होती है | किसी भी कारण से हमारे शरीर के गर्म होने से उसमे मौजूद खून भी ऊष्मा पाकर गर्म हो जाता है और जब यह गर्म खून दिमाग के हाइपोथैलेमस भाग में पहुंचता है तो उसे उत्तेजित कर देता है | इसके फलस्वरूप परानुकम्पी तंत्रिकाओं के माध्यम से शरीर के ताप को सामान्य और काबू में रखने वाली क्रियाएँ जैसे पसीने का स्वेदग्रंथियों में बनना शुरू हो जाता है,जो शरीर के अलग-अलग हिस्सों में उत्सर्जित होने लगता है | पसीना स्वेद ग्रंथियों में बनता है,जो हमारे शरीर की त्वचा के नीचे खासतौर पर हाथों की हथेलियों,पैरों के तलवों और सिर की खाल के नीचे होती हैं | ज्यादा पसीना बहने से शरीर में पानी और लवणों की कमी हो जाती है जिससे सिर में दर्द,नींद और कभी-कभी उल्टी भी आने लगती है | गर्म वातावरण में ज्यादा देर तक खाली पेट काम नहीं करना चाहिए|
१- अधिक पसीना आने पर कभी-कभी रोगी का शरीर ठंडा पड़ने लगता है और उसकी नाड़ी तथा सांस की रफ़्तार बहुत तेज़ हो जाती है | ऐसे में रोगी को टमाटर के रस में नमक और पानी मिलाकर थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहने से लाभ होता है |
२- हरड़ को बारीक पीस लें | जहाँ पसीना अधिक आता हो , इसको मल लें और दस मिनट बाद नहा लें | इससे ज़्यादा पसीना आना बंद हो जाता है |
३- कुछ लोगों को पैरों में अधिक पसीना आता है | ऐसे में पहले पैरों को गर्म पानी में रख लें,फिर ठंडे पानी में रखें और दोनों पैरों को आपस में रगड़ लें | फिर पैरों को बाहर निकालकर किसी कपडे से पौंछ लें | एक हफ्ते तक यह क्रिया लगातार करने से बहुत लाभ होता है |
४- यदि पसीने में बदबू आती हो तो भोजन में नमक का सेवन कम करना चाहिए |
५- गर्मियों में पसीने के साथ- साथ शरीर में घमौरी भी निकल आती हैं | इसके लिए नहाते समय एक बाल्टी पानी में गुलाबजल की २० बूँदें डालकर स्नान करें | रात को ४ चम्मच गुलकंद खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से भी लाभ होता है
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मसूर -
मसूर का प्रयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है | इससे सभी अच्छी तरह परिचित हैं | समस्त भारत में मुख्यतः शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में, तक उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्णकटिबन्धीय १८०० मीटर ऊंचाई तक इसकी खेती की जाती है |
यह १५-७५ सेमी ऊँचा,सीधा,मृदु-रोमिल,शाकीय पौधा होता है | इसके पुष्प छोटे,श्वेत,बैंगनी अथवा गुलाबी वर्ण के होते हैं | इसकी फली चिकनी,कृष्ण वर्ण की,६-९ मिलीमीटर लम्बी ,आगरा भाग पर नुकीली तथा हरे रंग की होती है | प्रत्येक फली में २,गोल,चिकने,४ मिमी व्यास के,चपटे तथा हलके गुलाबी से रक्ताभ वर्ण के बीज होते हैं | इन बीजों की दाल बनाकर खायी जाती है | इसका पुष्पकाल दिसंबर से जनवरी तथा फलकाल मार्च से अप्रैल तक होता है |
इसके बीज में कैल्शियम,फॉस्फोरस,आयरन,सोड ियम,पोटैशियम,मैग्नीशियम,सल ्फर,क्लोरीन,आयोडीन,एल्युमी नियम,कॉपर,जिंक,प्रोटीन,कार ्बोहायड्रेट एवं विटामिन D आदि तत्व पाये जाते हैं | मसूर के औषधीय गुण -
१- मसूर की दाल को जलाकर,उसकी भस्म बना लें,इस भस्म को दांतों पर रगड़ने से दाँतो के सभी रोग दूर होते हैं |
२- मसूर के आटे में घी तथा दूध मिलाकर,सात दिन तक चेहरे पर लेप करने से झाइयां खत्म होती हैं |
३- मसूर के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गले की सूजन तथा दर्द में लाभ होता है |
४- मसूर की दाल का सूप बनाकर पीने से आँतों से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |
५- मसूर की भस्म बनाकर,भस्म में भैंस का दूध मिलाकर प्रातः सांय घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है |
६- मसूर दाल के सेवन से रक्त की वृद्धि होती है तथा दौर्बल्य का शमन होता है |
७- मसूर की दाल खाने से पाचनक्रिया ठीक होकर पेट के सारे रोग दूर हो जाते हैं |
मसूर का प्रयोग दाल के रूप में प्रायः समस्त भारतवर्ष में किया जाता है | इससे सभी अच्छी तरह परिचित हैं | समस्त भारत में मुख्यतः शीत जलवायु वाले क्षेत्रों में, तक उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्णकटिबन्धीय १८०० मीटर ऊंचाई तक इसकी खेती की जाती है |
यह १५-७५ सेमी ऊँचा,सीधा,मृदु-रोमिल,शाकीय
इसके बीज में कैल्शियम,फॉस्फोरस,आयरन,सोड
१- मसूर की दाल को जलाकर,उसकी भस्म बना लें,इस भस्म को दांतों पर रगड़ने से दाँतो के सभी रोग दूर होते हैं |
२- मसूर के आटे में घी तथा दूध मिलाकर,सात दिन तक चेहरे पर लेप करने से झाइयां खत्म होती हैं |
३- मसूर के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से गले की सूजन तथा दर्द में लाभ होता है |
४- मसूर की दाल का सूप बनाकर पीने से आँतों से सम्बंधित रोगों में लाभ होता है |
५- मसूर की भस्म बनाकर,भस्म में भैंस का दूध मिलाकर प्रातः सांय घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाता है |
६- मसूर दाल के सेवन से रक्त की वृद्धि होती है तथा दौर्बल्य का शमन होता है |
७- मसूर की दाल खाने से पाचनक्रिया ठीक होकर पेट के सारे रोग दूर हो जाते हैं |
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दांतों में कीड़े लगना -
यह एक आम समस्या है,खासतौर पर बच्चों में यह कष्ट अधिक देखने को मिलता है | दांतों की नियमित सफाई न करने से दांतों के बीच में अन्न कण फंसे रहते हैं और इन्ही अन्न कणों के सड़ने की वजह से दांतों में कीड़े लग जाते हैं जिससे दांतों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं | इसी कारण दांत खोखले हो जाते हैं,मसूड़े ढीले पड़ जाते हैं तथा दांत टूटकर गिरने लगते हैं | दांतों की नियमित सफाई करके इस समस्या से बचा जा सकता है | इस रोग में दांतों में तेज़ दर्द होता है और मसूड़े सूज जाते हैं | दांतों में कीड़े लगने पर कुछ घरेलू उपचारों द्वारा आराम पाया जा सकता है -
१- दालचीनी का तेल रूई में भरकर पीड़ायुक्त दांत के गढ्ढे में रखकर दबा लें | इससे दांत के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में शांति मिलती है |
२- फिटकरी गर्म पानी में घोलकर प्रतिदिन कुल्ला करने से दांतों के कीड़े और बदबू ख़त्म हो जाती है |
३- कीड़े युक्त या सड़े हुए दांतों में बरगद (बड़) का दूध लगाने से कीड़े और पीड़ा दूर होती है |
४- हींग को थोड़ा गर्म करके कीड़े लगे दांतों के नीचे दबाकर रखने से दांत व मसूड़ों के कीड़े मर जाते हैं |
५- पिसी हुई हल्दी और नमक को सरसों के तेल में मिला लें | इसे प्रतिदिन २-४ बार दांतों पर मंजन की तरह मलने से दांतों के कीड़े मर जाते हैं |
६- कीड़े लगे दांतों के खोखले भाग में लौंग का तेल रुई में भिगोकर रखने से भी दांत के कीड़े नष्ट होते हैं |
७- दांत में कीड़े लगने से दांत खोखले हो जाते हैं तथा जगह-जगह गढ्ढे बन जाते हैं | फिटकरी,सेंधानमक,तथा नौसादर बराबर मात्रा में लेकर बारीक पाउडर बना लें | इसे प्रतिदिन सुबह-शाम दांत व मसूड़ों पर मलने से दांतों के सभी रोग ठीक होते हैं |
यह एक आम समस्या है,खासतौर पर बच्चों में यह कष्ट अधिक देखने को मिलता है | दांतों की नियमित सफाई न करने से दांतों के बीच में अन्न कण फंसे रहते हैं और इन्ही अन्न कणों के सड़ने की वजह से दांतों में कीड़े लग जाते हैं जिससे दांतों की जड़ें कमजोर हो जाती हैं | इसी कारण दांत खोखले हो जाते हैं,मसूड़े ढीले पड़ जाते हैं तथा दांत टूटकर गिरने लगते हैं | दांतों की नियमित सफाई करके इस समस्या से बचा जा सकता है | इस रोग में दांतों में तेज़ दर्द होता है और मसूड़े सूज जाते हैं | दांतों में कीड़े लगने पर कुछ घरेलू उपचारों द्वारा आराम पाया जा सकता है -
१- दालचीनी का तेल रूई में भरकर पीड़ायुक्त दांत के गढ्ढे में रखकर दबा लें | इससे दांत के कीड़े नष्ट होते हैं और दर्द में शांति मिलती है |
२- फिटकरी गर्म पानी में घोलकर प्रतिदिन कुल्ला करने से दांतों के कीड़े और बदबू ख़त्म हो जाती है |
३- कीड़े युक्त या सड़े हुए दांतों में बरगद (बड़) का दूध लगाने से कीड़े और पीड़ा दूर होती है |
४- हींग को थोड़ा गर्म करके कीड़े लगे दांतों के नीचे दबाकर रखने से दांत व मसूड़ों के कीड़े मर जाते हैं |
५- पिसी हुई हल्दी और नमक को सरसों के तेल में मिला लें | इसे प्रतिदिन २-४ बार दांतों पर मंजन की तरह मलने से दांतों के कीड़े मर जाते हैं |
६- कीड़े लगे दांतों के खोखले भाग में लौंग का तेल रुई में भिगोकर रखने से भी दांत के कीड़े नष्ट होते हैं |
७- दांत में कीड़े लगने से दांत खोखले हो जाते हैं तथा जगह-जगह गढ्ढे बन जाते हैं | फिटकरी,सेंधानमक,तथा नौसादर बराबर मात्रा में लेकर बारीक पाउडर बना लें | इसे प्रतिदिन सुबह-शाम दांत व मसूड़ों पर मलने से दांतों के सभी रोग ठीक होते हैं |
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भृंगराज (भांगरा)-
घने मुलायम काले केशों के लिए प्रसिद्ध भृंगराज के स्वयंजात शाक १८०० मीटर की ऊंचाई तक आर्द्रभूमि में जलाशयों के समीप बारह मास उगते हैं |सुश्रुत एवं चरक संहिता में कास एवं श्वास व्याधि में भृंगराज तेल का प्रयोग बताया गया है | इसके पत्तों को मसलने से कृष्णाभ, हरितवर्णी रस निकलता है, जो शीघ्र ही काला पड़ जाता है | इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं | इसके फलकृष्ण वर्ण के होते हैं | इसके बीज अनेक, छोटे तथा काले जीरे के समान होते हैं| इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से जनवरी तक होता है | आज हम आपको भृंगराज के आयुर्वेदिक गुणों से अवगत कराएंगे -
१- भांगरे का रस और बकरी का दूध समान मात्रा में लेकर उसको गुनगुना करके नाक में टपकाने से और भांगरा के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सिर पर लेप करने से आधासीसी के दर्द में लाभ होता है |
२- जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंह के हो जाते हैं उन्हें सिर में भांगरा के पत्तों के रस की मालिश करनी चाहिए | इससे कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं |
३- भृंगराज के पत्तों को छाया में सुखाकर पीस लें | इसमें से १० ग्राम चूर्ण लेकर उसमें शहद ३ ग्राम और गाय का घी ३ ग्राम मिलाकर नित्य सोते समय रात्रि में चालीस दिन सेवन करने से कमजोर दृष्टी आदि सब प्रकार के नेत्र रोगों में लाभ होता है |
४- दो-दो चम्मच भृंगराज स्वरस को दिन में २-३ बार पिलाने से बुखार में लाभ होता है |
५- दस ग्राम भृंगराज के पत्तों में ३ ग्राम काला नमक मिलाकर पीसकर छान लें | इसका दिन में ३-४ बार सेवन करने से पुराना पेट दर्द भी ठीक हो जाता है |
६- भांगरा के पत्ते ५० ग्राम और काली मिर्च ५ ग्राम दोनों को खूब महीन पीसकर छोटे बेर जैसी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें| सुबह -शाम १ या २ गोली पानी के साथ सेवन करने से बादी बवासीर में शीघ्र लाभ होता है |
७- दो चम्मच भांगरा पत्र स्वरस में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप कुछ ही दिनों में सामान्य हो जाता है |
८- यदि बच्चा मिट्टी खाना किसी भी प्रकार से न छोड़ रहा हो तो भांगरा के पत्तों के रस १ चम्मच सुबह शाम पिला देने से मिट्टी खाना तुरंत छोड़ देता है |
घने मुलायम काले केशों के लिए प्रसिद्ध भृंगराज के स्वयंजात शाक १८०० मीटर की ऊंचाई तक आर्द्रभूमि में जलाशयों के समीप बारह मास उगते हैं |सुश्रुत एवं चरक संहिता में कास एवं श्वास व्याधि में भृंगराज तेल का प्रयोग बताया गया है | इसके पत्तों को मसलने से कृष्णाभ, हरितवर्णी रस निकलता है, जो शीघ्र ही काला पड़ जाता है | इसके पुष्प श्वेत वर्ण के होते हैं | इसके फलकृष्ण वर्ण के होते हैं | इसके बीज अनेक, छोटे तथा काले जीरे के समान होते हैं| इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से जनवरी तक होता है | आज हम आपको भृंगराज के आयुर्वेदिक गुणों से अवगत कराएंगे -
१- भांगरे का रस और बकरी का दूध समान मात्रा में लेकर उसको गुनगुना करके नाक में टपकाने से और भांगरा के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सिर पर लेप करने से आधासीसी के दर्द में लाभ होता है |
२- जिनके बाल टूटते हैं या दो मुंह के हो जाते हैं उन्हें सिर में भांगरा के पत्तों के रस की मालिश करनी चाहिए | इससे कुछ ही दिनों में अच्छे काले बाल निकलते हैं |
३- भृंगराज के पत्तों को छाया में सुखाकर पीस लें | इसमें से १० ग्राम चूर्ण लेकर उसमें शहद ३ ग्राम और गाय का घी ३ ग्राम मिलाकर नित्य सोते समय रात्रि में चालीस दिन सेवन करने से कमजोर दृष्टी आदि सब प्रकार के नेत्र रोगों में लाभ होता है |
४- दो-दो चम्मच भृंगराज स्वरस को दिन में २-३ बार पिलाने से बुखार में लाभ होता है |
५- दस ग्राम भृंगराज के पत्तों में ३ ग्राम काला नमक मिलाकर पीसकर छान लें | इसका दिन में ३-४ बार सेवन करने से पुराना पेट दर्द भी ठीक हो जाता है |
६- भांगरा के पत्ते ५० ग्राम और काली मिर्च ५ ग्राम दोनों को खूब महीन पीसकर छोटे बेर जैसी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें| सुबह -शाम १ या २ गोली पानी के साथ सेवन करने से बादी बवासीर में शीघ्र लाभ होता है |
७- दो चम्मच भांगरा पत्र स्वरस में १ चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप कुछ ही दिनों में सामान्य हो जाता है |
८- यदि बच्चा मिट्टी खाना किसी भी प्रकार से न छोड़ रहा हो तो भांगरा के पत्तों के रस १ चम्मच सुबह शाम पिला देने से मिट्टी खाना तुरंत छोड़ देता है |
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