चीन के पश्चिमी शिंगजियांग प्रांत में न्यायालय ने 22 इमामों को एक साथ सजा देकर हडकंप मचा दिया है। इन लोगों को 'बेकाबू इमाम' बताते हुए जेल की सजा दी गई है। चीन सरकार के अनुसार ये लोग गैर-कानूनी प्रवचन दे रहे थे़, जिनसे मजहबी, जातीय द्वेष, हिंसा पैदा होने का खतरा था। इन पर अपने प्रवचनों द्वारा अंधविश्वास फैलाने का भी आरोप लगाया गया है।
इन सभी को पांच से 16 साल तक की सजा दी गई है। यह किसी बंद कमरे या न्यायालय के कक्ष में नहीं हुआ। इन सभी को सामूहिक तौर पर सजा देने के लिए रैली बुलाई गई और उसमें सजा सुनाई गई। जाहिर है, इसका मकसद ऐसे लोगों के अंदर भय पैदा करना था।
चीन के इस इलाके में इस्लामी चरमपंथ उभर चुका है जिसके खिलाफ उसका सैन्य व न्यायिक कार्रवाई चल रहा है। चीन इस उग्रवाद को जडमूल से खत्म करना चाहता है। हाल में इलाके में हुए हमलों के लिए उइगुर कबीले के लोगों पर आरोप लगा था। इसके पहले भी वहां जो हिंसक वारदातें हुईं उनमें इस्लामी चरमपंथी समूहों का हाथ माना गया था।
चीन की आधिकारिक समाचार एजेंसी शिन्हुआ को दिए एक साक्षात्कार में अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी पूर्वी तुर्कीस्तान इस्लामिक मूवमेंट को चरमपंथी संगठन बताया था। यह चीन की सोच के अनुसार है।
चीन इस संगठन के खिलाफ निष्ठुर कार्रवाई कर रहा है। वह एक भी ऐसी गतिविधि सहन नहीं करता जिससे मजहबी कट्टरपन एवं उग्रता की संभावना हो।
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