ये “किस ऑफ लव” क्या है?
यह मॉरल-पुलिसिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन है. संस्कृति के ठेकेदारों के खिलाफ आंदोलन है.. यह एक वैचारिक लड़ाई है. दिल्ली में हुए इस विरोध प्रदर्शन में वामपंथी विचारधारा के अगल अलग रंगो के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. इसमें वापपंथी संगठनों, नक्सलियों और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता शामिल हुए थे. चुंकि इस विरोध प्रदर्शन में आम जनता की हिस्सेदारी नहीं है इसलिए आंदोलन कहना गलत है. टीवी पर इसलिए दिखाया जा रहा है क्योंकि इस विरोध प्रदर्शन में टीआरपी के लायक “मसालेदार” विजुअल मिलता है. वैसे भी प्रोपागंडा में वामपंथी माहिर होते हैं. हर चीज को बढ़ा चढ़ा कर बताना वामपंथियों की आदत है.
विरोध प्रदर्शन के वामपंथी समर्थक इसे जनआंदोलन साबित करने की कोशिश में है. लेकिन हकीकत यही है कि आम जनता किस ऑफ लव को अश्लील व वाहियात मान रही है. कुछ टीवी चैनलों ने इस खबर को दिखाते वक्त स्क्रीन पर “सेंसर” का पर्दा लगाकर दिखाया.
किस ऑफ लव से वामपंथियों का क्या रिश्ता है?
बहुत पुराना रिश्ता है. यह The socialist fraternal Kiss यानि समाजवादी भाईचारे का चुंबन के नाम से इतिहास में शामिल है. इस प्रथा की नींव 20वीं सदी के शुरुआत में कम्यूनिस्टों ने डाली थी. इसमें कामरेड्स आपस में तीन गहरा चुंबन लेते थे. जैसे जैसे वामपंथी की संख्या कम होती गई. वामपंथ कमजोर होता गया वैसे वैसे यह प्रचलन भी खत्म हो गया. (ज्यादा जानकारी के लिए गुगल करें.. और मेरे पहले कमेंट को पढ़ें.) देश में बचे खुचे अगल अलग रंगों के वामपंथियों ने फिर से चुंबन की प्रथा की शुरुआत की है. वह तो भाईचारे का यानि आपसी प्रेम का चुंबन था लेकिन आज जो वामपंथी कर रहे हैं वो तो हिंदुत्व से घृणा करने का प्रतीक बन गया है. यानि कि यह चुंबन लेकर हिंदुवादी संगठनों के प्रति घृणा का इजहार करने का कार्यक्रम बन गया है.
वैचारिक स्तर पर वामपंथियों के लिए, परिवार महिला-शोषण की एक संस्था है और शादी महिलाओं के शोषण का जरिया मात्र है. यही वजह है कि वामपंथी,परिवार और शादी का विरोध करते हैं. बिना शादी के मां बनने वाली लड़कियों को क्रांतिकारी कहते हैं. नक्सली सगंठनों में इस तरह के हजारो उदाहऱण मिलते हैं.
वैचारिक तौर पर वामपंथी यौन-अराजकता (Sexual Anarchy) के प्रवर्तक हैं. इनके लिए धर्म, संस्कृति, संस्कार व नैतिकता महज मिथ्या, अवास्तविक चेतना और दृष्टिभ्रम है. वामपंथियों की यह धारणा न सिर्फ तर्कहीन है बल्कि बेहूदा बकवास है. यही वजह है कि दुनिया भर में वामपंथियों ने पार्टी तो बना ली.. चुनाव भी जीत लिए.. सरकार भी बना ली लेकिन वामपंथी विचारों को समाजिक स्तर पर व्यवहार में लागू करने में असफल रहे हैं. यह न सिर्फ वैचारिक हार है बल्कि यह साबित करता है कि उनकी पूरी सोच ही अव्यवहारिक है. यही वजह है कि दुनिया भर में वामपंथी विचार को दफना दिया गया है.
जेएनयू या देश के किसी कालेज परिसर में इनके नाचने से इतिहास और वर्तमान की हकीकत नहीं बदली जा सकती. किस फॉर लव को देख कर यही लगता है कि वामपंथी के सामने वैचारिक दरिद्रता का संकट ऐसा गहरा हो चुका है कि उन्हें कार्यकर्ता बनाने और समर्थन जुटाने के लिए किस ऑफ लव जैसे “ट्रिक” का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.
देश में संस्कृति के ठेकेदार कौन हैं?
क्या ये सिर्फ आरएसएस हैं या फिर हर वो पिता है.. भाई है.. शिक्षक हैं.. बड़े बुजुर्ग हैं.. जो घर के लड़के और लड़कियों को देश की संस्कृति और नैतिकता की पाठ पढाते हैं और जब उन्हें लगता है कि उनके बच्चे लक्ष्मण रेखा लांघ रहे हैं तब सख्ती भी करते हैं.
ये कौन तय करे कि सही क्या है..
हर समाज में इन सवालों पर एक मूलभूत धारणा होती है.. जिस पर पूरा समाज चलता है. यही मूलभूत धारणा ही नैतिक और अनैतिक, सही और गलत का फैसला करती है. महिलाओं पर जुर्म होता है, देश में लड़कियां सुरक्षित नहीं है, लड़कियों को आजादी नहीं है ये सब सही है. यह एक ज्वलंत समस्या है. इस समस्या का हल निकालना जरूरी है. लेकिन कैसे..?
यह सिर्फ और सिर्फ खबर में बने रहने का तरीका है. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह भविष्य में सरकार द्वारा शिक्षा और अन्य क्षेत्र में लिए जाने वाले फैसले के विरोध के लिए जमीन तैयार की जा रही है. आने वाले समय में सरकार के हर फैसले पर यही लोग छाती पीट पीट पर भगवाकरण भगवाकरण चिल्लाएंगे. Manish Kumar
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किश ऑफ़ लव भारत में क्यों लाया गया
यह मॉरल-पुलिसिंग के खिलाफ विरोध प्रदर्शन है. संस्कृति के ठेकेदारों के खिलाफ आंदोलन है.. यह एक वैचारिक लड़ाई है. दिल्ली में हुए इस विरोध प्रदर्शन में वामपंथी विचारधारा के अगल अलग रंगो के कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया. इसमें वापपंथी संगठनों, नक्सलियों और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता शामिल हुए थे. चुंकि इस विरोध प्रदर्शन में आम जनता की हिस्सेदारी नहीं है इसलिए आंदोलन कहना गलत है. टीवी पर इसलिए दिखाया जा रहा है क्योंकि इस विरोध प्रदर्शन में टीआरपी के लायक “मसालेदार” विजुअल मिलता है. वैसे भी प्रोपागंडा में वामपंथी माहिर होते हैं. हर चीज को बढ़ा चढ़ा कर बताना वामपंथियों की आदत है.
विरोध प्रदर्शन के वामपंथी समर्थक इसे जनआंदोलन साबित करने की कोशिश में है. लेकिन हकीकत यही है कि आम जनता किस ऑफ लव को अश्लील व वाहियात मान रही है. कुछ टीवी चैनलों ने इस खबर को दिखाते वक्त स्क्रीन पर “सेंसर” का पर्दा लगाकर दिखाया.
किस ऑफ लव से वामपंथियों का क्या रिश्ता है?
बहुत पुराना रिश्ता है. यह The socialist fraternal Kiss यानि समाजवादी भाईचारे का चुंबन के नाम से इतिहास में शामिल है. इस प्रथा की नींव 20वीं सदी के शुरुआत में कम्यूनिस्टों ने डाली थी. इसमें कामरेड्स आपस में तीन गहरा चुंबन लेते थे. जैसे जैसे वामपंथी की संख्या कम होती गई. वामपंथ कमजोर होता गया वैसे वैसे यह प्रचलन भी खत्म हो गया. (ज्यादा जानकारी के लिए गुगल करें.. और मेरे पहले कमेंट को पढ़ें.) देश में बचे खुचे अगल अलग रंगों के वामपंथियों ने फिर से चुंबन की प्रथा की शुरुआत की है. वह तो भाईचारे का यानि आपसी प्रेम का चुंबन था लेकिन आज जो वामपंथी कर रहे हैं वो तो हिंदुत्व से घृणा करने का प्रतीक बन गया है. यानि कि यह चुंबन लेकर हिंदुवादी संगठनों के प्रति घृणा का इजहार करने का कार्यक्रम बन गया है.
वैचारिक स्तर पर वामपंथियों के लिए, परिवार महिला-शोषण की एक संस्था है और शादी महिलाओं के शोषण का जरिया मात्र है. यही वजह है कि वामपंथी,परिवार और शादी का विरोध करते हैं. बिना शादी के मां बनने वाली लड़कियों को क्रांतिकारी कहते हैं. नक्सली सगंठनों में इस तरह के हजारो उदाहऱण मिलते हैं.
वैचारिक तौर पर वामपंथी यौन-अराजकता (Sexual Anarchy) के प्रवर्तक हैं. इनके लिए धर्म, संस्कृति, संस्कार व नैतिकता महज मिथ्या, अवास्तविक चेतना और दृष्टिभ्रम है. वामपंथियों की यह धारणा न सिर्फ तर्कहीन है बल्कि बेहूदा बकवास है. यही वजह है कि दुनिया भर में वामपंथियों ने पार्टी तो बना ली.. चुनाव भी जीत लिए.. सरकार भी बना ली लेकिन वामपंथी विचारों को समाजिक स्तर पर व्यवहार में लागू करने में असफल रहे हैं. यह न सिर्फ वैचारिक हार है बल्कि यह साबित करता है कि उनकी पूरी सोच ही अव्यवहारिक है. यही वजह है कि दुनिया भर में वामपंथी विचार को दफना दिया गया है.
जेएनयू या देश के किसी कालेज परिसर में इनके नाचने से इतिहास और वर्तमान की हकीकत नहीं बदली जा सकती. किस फॉर लव को देख कर यही लगता है कि वामपंथी के सामने वैचारिक दरिद्रता का संकट ऐसा गहरा हो चुका है कि उन्हें कार्यकर्ता बनाने और समर्थन जुटाने के लिए किस ऑफ लव जैसे “ट्रिक” का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.
देश में संस्कृति के ठेकेदार कौन हैं?
क्या ये सिर्फ आरएसएस हैं या फिर हर वो पिता है.. भाई है.. शिक्षक हैं.. बड़े बुजुर्ग हैं.. जो घर के लड़के और लड़कियों को देश की संस्कृति और नैतिकता की पाठ पढाते हैं और जब उन्हें लगता है कि उनके बच्चे लक्ष्मण रेखा लांघ रहे हैं तब सख्ती भी करते हैं.
ये कौन तय करे कि सही क्या है..
हर समाज में इन सवालों पर एक मूलभूत धारणा होती है.. जिस पर पूरा समाज चलता है. यही मूलभूत धारणा ही नैतिक और अनैतिक, सही और गलत का फैसला करती है. महिलाओं पर जुर्म होता है, देश में लड़कियां सुरक्षित नहीं है, लड़कियों को आजादी नहीं है ये सब सही है. यह एक ज्वलंत समस्या है. इस समस्या का हल निकालना जरूरी है. लेकिन कैसे..?
यह सिर्फ और सिर्फ खबर में बने रहने का तरीका है. लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह भविष्य में सरकार द्वारा शिक्षा और अन्य क्षेत्र में लिए जाने वाले फैसले के विरोध के लिए जमीन तैयार की जा रही है. आने वाले समय में सरकार के हर फैसले पर यही लोग छाती पीट पीट पर भगवाकरण भगवाकरण चिल्लाएंगे. Manish Kumar
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किश ऑफ़ लव भारत में क्यों लाया गया
'किश ऑफ़ लव' के पीछे कौन है?
संजना जॉन (जो एक फैशन डिज़ाइनर) ये न्यूयॉर्क में रह कर आई है| इसका भाई आनंद जॉन है जो अमेरिका की जेल में है उसने रेप किये जिसके लिए उसको 59 साल से ज्यादा की सजा हुई है वो भी एक फैशन डिज़ाइनर था|
संजना जॉन (जो एक फैशन डिज़ाइनर) ये न्यूयॉर्क में रह कर आई है| इसका भाई आनंद जॉन है जो अमेरिका की जेल में है उसने रेप किये जिसके लिए उसको 59 साल से ज्यादा की सजा हुई है वो भी एक फैशन डिज़ाइनर था|
अब बात आती है की ये किश ऑफ़ लव भारत में क्यों लाया गया.. अंदाजा है संजना जॉन ने भारत सरकार से काफी प्रयत्न किये की आनंद जॉन के लिए भारत सरकार लोस एंजेल्स की कोर्ट में भूमिका निभाए| लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ|
इसके बाद वो अपने आप को समाज सेवक बनाने में जुट घई ताकि समर्थन मिल सके|
तो अब हो सकता है की संजना जॉन ने विदेश में कोई समजोता कर लिया हो की में भारत में ऐसा कुछ कर दू तो आनंद जॉन सायद छूट जाये, और देख लेना इस कार्यक्रम के बाद संजना जॉन को कोई अवार्ड भी मिल जाये अंतरष्ट्रीय क्योंकि भारत की संस्कृति पे इतना बड़ा आघात जो पहुंचाया|
इसके बाद वो अपने आप को समाज सेवक बनाने में जुट घई ताकि समर्थन मिल सके|
तो अब हो सकता है की संजना जॉन ने विदेश में कोई समजोता कर लिया हो की में भारत में ऐसा कुछ कर दू तो आनंद जॉन सायद छूट जाये, और देख लेना इस कार्यक्रम के बाद संजना जॉन को कोई अवार्ड भी मिल जाये अंतरष्ट्रीय क्योंकि भारत की संस्कृति पे इतना बड़ा आघात जो पहुंचाया|
सबसे पहली बात केरला ही क्यों चुना गया?
क्योंकि ये केरला में ही पैदा हुई इसीलिए शायद वहां के लोगो की सहानुभूति चाहती हो की अगर वहां के लोग साथ आ जाये तो कुछ हो सकता है| इन्होने ज्यादातर राष्ट्रीय सेवा संघ, बंजरग दल और भी बहुत के खिलाफ ही क्यों कर रहे है या उनके ही दफ्तर के बहार कर रहे है?
क्योंकि ये केरला में ही पैदा हुई इसीलिए शायद वहां के लोगो की सहानुभूति चाहती हो की अगर वहां के लोग साथ आ जाये तो कुछ हो सकता है| इन्होने ज्यादातर राष्ट्रीय सेवा संघ, बंजरग दल और भी बहुत के खिलाफ ही क्यों कर रहे है या उनके ही दफ्तर के बहार कर रहे है?
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