84 लाख योनि का रहस्य
84 योनि को लेकर हम हिन्दुओं में ही काफी भ्रम की स्थिति बनी रहती है और लोग सुनी-सुनाई ढंग से इसकी व्याख्या करने की कोशिश में लगा रहता है....!
हमारे सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि.... सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है... और, इसी की अभिव्यक्ति हमारे अनेक ग्रंथों में हुई है।
श्रीमद्भागवत पुराण में इस बात के इस प्रकार वर्णन आता है-
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया
वृक्षान् सरीसृपपशून् खगदंशमत्स्यान्।
तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
व्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)
अर्थात..... विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई ....और, इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ.... परन्तु , उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई.....अत: मनुष्य का निर्माण हुआ .....जो उस मूल तत्व का साक्षात्कार कर सकता था। भारतीय परम्परा में जीवन के प्रारंभ से मानव तक की यात्रा में 84 लाख योनियों के बारे में कहा गया.।इसका मंतव्य यह है कि पृथ्वी पर जीवन एक बेहद सूक्ष्म एवं सरल रूप से गुजरता हुआ ..... धीरे धीरे संयुक्त होता गया.... और, 84 लाख योनि ( चरण ) के बाद ही मानव जैसे बुद्धिमान प्राणी का विकास संभव हो पाया ...! आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि..... अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में चेतना लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियों से गुजरी है...।
गिनती का थोडा अंतर इसीलिए हो सकता है iपरन्तु आज से हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने यह साक्षात्कार किया... वो बेहद आश्चर्यजनक है....। अनेक आचार्यों ने इन ८४ लाख योनियों का वर्गीकरण किया है। और, समस्त प्राणियों को दो भागों में बांटा गया है, योनिज तथा आयोनिज...!अर्थात... दो के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए.... तथा, अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होने वाले प्राणी आयोनिज कहे गए....!
इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को तीन भागों में बांटा गया:-
1. जलचर - जल में रहने वाले सभी प्राणी।
2. थलचर - पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।
3. नभचर - आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।
इसके अतिरिक्त भी.... प्राणियों की उत्पत्ति के आधार पर 84 लाख योनियों को इन चार प्रकार में वर्गीकृत किया गया......
1. जरायुज - माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।
2. अण्डज - अण्डों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अण्डज कहलाये।
3. स्वदेज- मल, मूत्र, पसीना आदि से उत्पन्न क्षुद्र जन्तु स्वेदज कहलाते हैं।
4. उदि्भज- पृथ्वी से उत्पन्न प्राणियों को उदि्भज वर्ग में शामिल किया गया।
सिर्फ इतना ही नहीं.....
पदम् पुराण में हमें एक श्लोक मिलता है
जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः - (78 :5 पदम् पुराण)
अर्थात -
1. जलज/ जलीय जिव/जलचर (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)
2. स्थिर अर्थात पेड़ पोधे (Immobile implying plants and trees) – 20 लाख (2.0 million)
3. सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े (Reptiles) – 11 लाख (1.1 million)
4. पक्षी/नभचर (Birds) – 10 लाख 1.0 मिलियन
5. स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)
6. शेष मानवीय नस्ल के
कुल = 84 लाख ।
इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है ।
इसी प्रकार ......शरीर रचना के आधार पर भी प्राणियों वर्गीकरण हुआ.....।
इसका उल्लेख विभिन्न आचार्यों के वर्गीकरण के सहारे ‘प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प‘ ग्रंथ में किया गया है।
जिसके अनुसार
(1) एक शफ (एक खुर वाले पशु) - खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि।
(2) द्विशफ (दो खुल वाले पशु)- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि।
(3) पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु- सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृगाल आदि। (प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प-page no. 107-110)
इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है ।
इस से सम्बंधित लेख 23 अगस्त 2011 के The New York Times में भी छपा था.... जिसका लिंक ये है...
http://www.nytimes.com/ 2011/08/30/science/ 30species.html?_r=1&
उपरोक्त वर्णन से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हमारे ग्रंथों में वर्णित ये जानकारियाँ हमारे पुरखों के हजारों-लाखों वर्षों की खोज है... और, उन्होंने न केवल धरती पर चलने वाले अपितु आकाश में व् अथाह समुद्रों की गहराइयों में रहने वाले जीवों का भी अध्ययन किया । पर्याप्त जानकारी एवं उसे ठीक से ना समझ पाने के कारण .... हम हिन्दू आज अन्धविश्वास से ग्रसित होते जा रहे हैं.... जबकि, अन्धविश्वास हम हिन्दुओं के लिए नहीं ... बल्कि, मुस्लिम और ईसाईयों के लिए है..... जिनके धर्मग्रंथों में विज्ञान कहीं नहीं है .. बल्कि, सिर्फ .... उस संप्रदाय विशेष को फ़ैलाने और खून -खराबा की बातें ही लिखी हुई है...!
जागो हिन्दुओं और पहचानो अपने ज्ञान एवं गौरव को....हम विश्वगुरु थे और, विश्वगुरु ही रहेंगे....!
...............................................................
84 योनि को लेकर हम हिन्दुओं में ही काफी भ्रम की स्थिति बनी रहती है और लोग सुनी-सुनाई ढंग से इसकी व्याख्या करने की कोशिश में लगा रहता है....!
हमारे सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि.... सृष्टि में जीवन का विकास क्रमिक रूप से हुआ है... और, इसी की अभिव्यक्ति हमारे अनेक ग्रंथों में हुई है।
श्रीमद्भागवत पुराण में इस बात के इस प्रकार वर्णन आता है-
सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया
वृक्षान् सरीसृपपशून् खगदंशमत्स्यान्।
तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
व्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥ (11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)
अर्थात..... विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई ....और, इस क्रम में वृक्ष, सरीसृप, पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ.... परन्तु , उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई.....अत: मनुष्य का निर्माण हुआ .....जो उस मूल तत्व का साक्षात्कार कर सकता था। भारतीय परम्परा में जीवन के प्रारंभ से मानव तक की यात्रा में 84 लाख योनियों के बारे में कहा गया.।इसका मंतव्य यह है कि पृथ्वी पर जीवन एक बेहद सूक्ष्म एवं सरल रूप से गुजरता हुआ ..... धीरे धीरे संयुक्त होता गया.... और, 84 लाख योनि ( चरण ) के बाद ही मानव जैसे बुद्धिमान प्राणी का विकास संभव हो पाया ...! आधुनिक विज्ञान भी मानता है कि..... अमीबा से लेकर मानव तक की यात्रा में चेतना लगभग 1 करोड़ 04 लाख योनियों से गुजरी है...।
गिनती का थोडा अंतर इसीलिए हो सकता है iपरन्तु आज से हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने यह साक्षात्कार किया... वो बेहद आश्चर्यजनक है....। अनेक आचार्यों ने इन ८४ लाख योनियों का वर्गीकरण किया है। और, समस्त प्राणियों को दो भागों में बांटा गया है, योनिज तथा आयोनिज...!अर्थात... दो के संयोग से उत्पन्न प्राणी योनिज कहे गए.... तथा, अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होने वाले प्राणी आयोनिज कहे गए....!
इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को तीन भागों में बांटा गया:-
1. जलचर - जल में रहने वाले सभी प्राणी।
2. थलचर - पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।
3. नभचर - आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी।
इसके अतिरिक्त भी.... प्राणियों की उत्पत्ति के आधार पर 84 लाख योनियों को इन चार प्रकार में वर्गीकृत किया गया......
1. जरायुज - माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।
2. अण्डज - अण्डों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अण्डज कहलाये।
3. स्वदेज- मल, मूत्र, पसीना आदि से उत्पन्न क्षुद्र जन्तु स्वेदज कहलाते हैं।
4. उदि्भज- पृथ्वी से उत्पन्न प्राणियों को उदि्भज वर्ग में शामिल किया गया।
सिर्फ इतना ही नहीं.....
पदम् पुराण में हमें एक श्लोक मिलता है
जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यकः
पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशवः, चतुर लक्षाणी मानवः - (78 :5 पदम् पुराण)
अर्थात -
1. जलज/ जलीय जिव/जलचर (Water based life forms) – 9 लाख (0.9 million)
2. स्थिर अर्थात पेड़ पोधे (Immobile implying plants and trees) – 20 लाख (2.0 million)
3. सरीसृप/कृमी/कीड़े-मकोड़े (Reptiles) – 11 लाख (1.1 million)
4. पक्षी/नभचर (Birds) – 10 लाख 1.0 मिलियन
5. स्थलीय/थलचर (terrestrial animals) – 30 लाख (3.0 million)
6. शेष मानवीय नस्ल के
कुल = 84 लाख ।
इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है ।
इसी प्रकार ......शरीर रचना के आधार पर भी प्राणियों वर्गीकरण हुआ.....।
इसका उल्लेख विभिन्न आचार्यों के वर्गीकरण के सहारे ‘प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प‘ ग्रंथ में किया गया है।
जिसके अनुसार
(1) एक शफ (एक खुर वाले पशु) - खर (गधा), अश्व (घोड़ा), अश्वतर (खच्चर), गौर (एक प्रकार की भैंस), हिरण इत्यादि।
(2) द्विशफ (दो खुल वाले पशु)- गाय, बकरी, भैंस, कृष्ण मृग आदि।
(3) पंच अंगुल (पांच अंगुली) नखों (पंजों) वाले पशु- सिंह, व्याघ्र, गज, भालू, श्वान (कुत्ता), श्रृगाल आदि। (प्राचीन भारत में विज्ञान और शिल्प-page no. 107-110)
इस प्रकार हमें 7000 वर्ष पुराने मात्र एक ही श्लोक में न केवल पृथ्वी पर उपस्थित प्रजातियों की संख्या मिलती है वरन उनका वर्गीकरण भी मिलता है ।
इस से सम्बंधित लेख 23 अगस्त 2011 के The New York Times में भी छपा था.... जिसका लिंक ये है...
http://www.nytimes.com/
उपरोक्त वर्णन से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हमारे ग्रंथों में वर्णित ये जानकारियाँ हमारे पुरखों के हजारों-लाखों वर्षों की खोज है... और, उन्होंने न केवल धरती पर चलने वाले अपितु आकाश में व् अथाह समुद्रों की गहराइयों में रहने वाले जीवों का भी अध्ययन किया । पर्याप्त जानकारी एवं उसे ठीक से ना समझ पाने के कारण .... हम हिन्दू आज अन्धविश्वास से ग्रसित होते जा रहे हैं.... जबकि, अन्धविश्वास हम हिन्दुओं के लिए नहीं ... बल्कि, मुस्लिम और ईसाईयों के लिए है..... जिनके धर्मग्रंथों में विज्ञान कहीं नहीं है .. बल्कि, सिर्फ .... उस संप्रदाय विशेष को फ़ैलाने और खून -खराबा की बातें ही लिखी हुई है...!
जागो हिन्दुओं और पहचानो अपने ज्ञान एवं गौरव को....हम विश्वगुरु थे और, विश्वगुरु ही रहेंगे....!
...............................................................
No comments:
Post a Comment