हिन्दू आतंकवाद या सरकारी साजिश? [लेखक :- डा कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ..साभार - विस्फोट डॉट कॉम ]
देश में हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने की असफल कोशिशों के बीच भवेश पटेल की चिट्ठी सरकार का सारा चिट्ठा खोल देती है जो उन्होंने हाल में ही राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) के विशेष न्यायालय को लिखी है। अपनी चिट्ठी में भवेश पटेल ने कहा है कि सोनिया कांग्रेस के सिपाहसलारों दिग्विजय सिंह, केन्द्रीय मंत्रियों सुशील कुमार शिन्दे और प्रकाश जायसवाल और आरपीएन सिंह ने मुझे लाखों रुपयों की पेशकश की थी ताकि मैं अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत और इन्द्रेश कुमार की संलिप्तता की बात अपने बयान में दर्ज करवा दूँ। पटेल के इस चौंकाने वाले रहस्योदघाटन के बाद देखें कि यह भवेश पटेल कौन है और इस षड्यंत्र के अन्य पात्र कौन कौन से हैं और उनकी इस राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र में क्या भूमिका रही है?
भवेश पटेल का नाम पुलिस ने अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में दर्ज की गई प्राथमिक सूचना रपट में दर्ज किया था। पुलिस ने कहा कि पटेल को गिरफ़्तार करने का वह प्रयास कर रही है, लेकिन वह पकड़ में नहीं आ रहा। लेकिन भवेश पटेल तो मुरादाबाद में प्रमोद त्यागी के आश्रम में ही रह रहा था। और पटेल का कहना है कि त्यागी के इसी आश्रम में उसकी भेंट एन.आई.ए के आईजी से हुई थी। त्यागी के पास पटेल १८ महीने रहा। ताज्जुब है पुलिस उसे फिर भी न जानने का दावा करती रही।
अब यह नया फ़ंडा। आख़िर यह प्रमोद त्यागी कौन है? प्रमोद त्यागी बहुत देर तक युवा कांग्रेस में सक्रिय रहा। सोनिया कांग्रेस की ओर से उत्तर प्रदेश में चुनावों में भी उछल कूद करता रहा। यह अलग बात है कि त्यागी चुनाव जीत नहीं सका। तब शायद पार्टी ने इस कार्यकर्ता के लिये नई भूमिका चुनी। पुराणों में कल्कि अवतार के आने की बात लिखी हुई है। त्यागी ने समझ लिया यह पद अभी ख़ाली पड़ा है, अत: पद पर तो क़ब्ज़ा किया ही जा सकता है। किसी को एतराज़ भी नहीं हो सकता। आखिर इस पद के लिये तो लोकसभा के लिये चुनाव नहीं होगा। अत: त्यागी ने अपने आप को विधिवत कल्कि घोषित कर दिया और पद की गरिमा के अनुरुप अपना नाम भी त्यागी हटा कर कृष्णन कर लिया। प्रमोद कृष्णन। मुरादाबाद के अपने गाँव अचोडा कम्बोह में कल्किधाम का निर्माण किया। वहाँ कल्कि महोत्सव शुरु किया। सोनिया कांग्रेस के इस नये कल्कि के आश्रम में कपिल सिब्बल से लेकर श्रीप्रकाश जायसवाल, राजीव शुक्ला, दिग्विजय सिंह तक सभी आते हैं। सोनिया कांग्रेस का यह कल्कि अवतार बीच बीच में नरेन्द्र मोदी और बाबा रामदेव के खिलाफ भी ज़हर उगलता रहता है।
भवेश पटेल के माता पिता प्रमोद त्यागी को सचमुच नया कल्कि मान कर उसके उपासक हुये। उसी हैसियत में पटेल आश्रम में रहता था। पटेल का कहना है कि इसी त्यागी ने उसकी सोनिया कांग्रेस के प्रमुख नेताओं यथा गृहमंत्री शिन्दे और महासचिव दिग्विजय सिंह से मुलाक़ात करवाई। एन.आई.ए के अधिकारी भी पटेल से इसी त्यागी के तथाकथित आश्रम में मिलते थे। पटेल का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने उसे आश्वासन दिया था कि तुम इस कांड में संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार का नाम ले देना, तो तुम्हें गिरफ़्तारी के महीने बाद ही ज़मानत पर छुड़ा दिया जायेगा। इस काम के लिये उसे पैसे का आश्वासन भी दिया गया। शायद इसी समझौते के तहत मार्च में भवेश पटेल का आत्मसमर्पण हुआ। न्यायालय ने पटेल को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इसके बाद का पटेल का वक्तव्य चौंकाने वाला है। उसके अनुसार जयपुर जेल से ही अपने मोबाईल फ़ोन पर जाँच अधिकारी विशाल गर्ग ने उसकी एन.आई.ए के आई.जी संजीव कुमार सिंह और प्रमोद त्यागी से बात करवाई, जिसमें उन्होंने भागवत और इन्द्रेश का नाम लेने के लिये फिर दबाव और लालच दिया।
२३ मार्च को पटेल ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा १६४ के तहत बयान दर्ज करवाया लेकिन उसने मोहन भागवत और इन्द्रेश कुमार का नाम नहीं लिया। तब जांच अधिकारी उसे फिर जयपुर जेल में मिला और कहा कि तुमने हमारा काम नहीं किया इसलिये अब तुम्हारी कोई सहायता नहीं की जायेगी। इसके बाद बिना न्यायालय की अनुमति के पटेल को जयपुर जेल से अलवर जेल भेज दिया गया जबकि अजमेर कांड के बाक़ी सब अभियुक्त जयपुर जेल में रखे गये थे। यहीं बस नहीं, जाँच अधिकारी, पटेल के अनुसार एक बार फिर उससे अलवर जेल में मिला और उससे वायदा माफ़ गवाह बनने के लिये कहा। एन.आई.ए पूरा ज़ोर लगा रही थी कि किसी तरह इस केस में भागवत और इन्द्रेश का नाम डाला जाये। अब यह रहस्योदघाटन भी हुआ है कि पटेल को बिना अधिकार के अलवर स्थानान्तरित करने की योजना भी एनआईए के डीजी की थी। पटेल ने न्यायालय से गुहार लगाई है कि उसे जान का ख़तरा है। कांग्रेस ने अपने राजनैतिक हितों के लिये उसका दुरुपयोग किया है। यह पूरी घटना अनेक सवालों को जन्म देती हैं। जाँच ऐजंसियां किसके इशारे पर संघ को इस मामले से जोड़ना चाहती है? एजेंसियों का इस मामले में अपना तो कोई स्वार्थ हो नहीं सकता। उच्चतम न्यायालय ने जैसा कहा है कि सरकारी जाँच एजेंसी सीबीआई सरकार का तोता बन गई है। ज़ाहिर है कि अन्य जाँच ऐजंसियों की स्थिति उससे भी बदतर है।
प्रमोद त्यागी जैसे दलालों की भूमिका की भी गहराई से जाँच करवाने की ज़रुरत है। आख़िर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस प्रकार के षड्यंत्रों के माध्यम से घेरने के पीछे कौन सी शक्तियाँ हैं? आख़िर भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों के आगे बढ़ने से किनकों ख़तरा है? वे कौन सी देशी विदेशी ताक़तें हैं जो भारत को कमज़ोर करना चाहती हैं? पटेल का रहस्योदघाटन कई आशंकाओं को जन्म देता है। क्या भारत में जो लोग राष्ट्रवादी शक्तियों को कमज़ोर कर रहे हैं वे केवल किसी विदेशी शक्ति के मोहरे भर तो नहीं? ये ऐसे प्रश्न हैं जो साँप की तरह फन तान कर खड़े हो गये हैं। लेकिन इनका उत्तर कौन तलाशेगा? जिन पर उत्तर तलाशने की ज़िम्मेदारी थी, भवेश पटेल की न्यायालय को लिखी चिट्ठी में तो वही अन्धेरे में रेंगते नज़र आ रहे हैं। दिन के उजाले से छिप कर अन्धेरे में रेंगते वाले यही लोग सबसे ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं। लगता है इस बार उत्तर जनता को ख़ुद ही तलाशना होगा ताकि अन्धेरे में रेंगते वाले ये जीव अपने कल्कि के आश्रम में बैठ कर देश का और नुक़सान न कर सकें।
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देश में हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करने की असफल कोशिशों के बीच भवेश पटेल की चिट्ठी सरकार का सारा चिट्ठा खोल देती है जो उन्होंने हाल में ही राष्ट्रीय जांच अभिकरण (एनआईए) के विशेष न्यायालय को लिखी है। अपनी चिट्ठी में भवेश पटेल ने कहा है कि सोनिया कांग्रेस के सिपाहसलारों दिग्विजय सिंह, केन्द्रीय मंत्रियों सुशील कुमार शिन्दे और प्रकाश जायसवाल और आरपीएन सिंह ने मुझे लाखों रुपयों की पेशकश की थी ताकि मैं अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत और इन्द्रेश कुमार की संलिप्तता की बात अपने बयान में दर्ज करवा दूँ। पटेल के इस चौंकाने वाले रहस्योदघाटन के बाद देखें कि यह भवेश पटेल कौन है और इस षड्यंत्र के अन्य पात्र कौन कौन से हैं और उनकी इस राष्ट्रविरोधी षड्यंत्र में क्या भूमिका रही है?
भवेश पटेल का नाम पुलिस ने अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में दर्ज की गई प्राथमिक सूचना रपट में दर्ज किया था। पुलिस ने कहा कि पटेल को गिरफ़्तार करने का वह प्रयास कर रही है, लेकिन वह पकड़ में नहीं आ रहा। लेकिन भवेश पटेल तो मुरादाबाद में प्रमोद त्यागी के आश्रम में ही रह रहा था। और पटेल का कहना है कि त्यागी के इसी आश्रम में उसकी भेंट एन.आई.ए के आईजी से हुई थी। त्यागी के पास पटेल १८ महीने रहा। ताज्जुब है पुलिस उसे फिर भी न जानने का दावा करती रही।
अब यह नया फ़ंडा। आख़िर यह प्रमोद त्यागी कौन है? प्रमोद त्यागी बहुत देर तक युवा कांग्रेस में सक्रिय रहा। सोनिया कांग्रेस की ओर से उत्तर प्रदेश में चुनावों में भी उछल कूद करता रहा। यह अलग बात है कि त्यागी चुनाव जीत नहीं सका। तब शायद पार्टी ने इस कार्यकर्ता के लिये नई भूमिका चुनी। पुराणों में कल्कि अवतार के आने की बात लिखी हुई है। त्यागी ने समझ लिया यह पद अभी ख़ाली पड़ा है, अत: पद पर तो क़ब्ज़ा किया ही जा सकता है। किसी को एतराज़ भी नहीं हो सकता। आखिर इस पद के लिये तो लोकसभा के लिये चुनाव नहीं होगा। अत: त्यागी ने अपने आप को विधिवत कल्कि घोषित कर दिया और पद की गरिमा के अनुरुप अपना नाम भी त्यागी हटा कर कृष्णन कर लिया। प्रमोद कृष्णन। मुरादाबाद के अपने गाँव अचोडा कम्बोह में कल्किधाम का निर्माण किया। वहाँ कल्कि महोत्सव शुरु किया। सोनिया कांग्रेस के इस नये कल्कि के आश्रम में कपिल सिब्बल से लेकर श्रीप्रकाश जायसवाल, राजीव शुक्ला, दिग्विजय सिंह तक सभी आते हैं। सोनिया कांग्रेस का यह कल्कि अवतार बीच बीच में नरेन्द्र मोदी और बाबा रामदेव के खिलाफ भी ज़हर उगलता रहता है।
भवेश पटेल के माता पिता प्रमोद त्यागी को सचमुच नया कल्कि मान कर उसके उपासक हुये। उसी हैसियत में पटेल आश्रम में रहता था। पटेल का कहना है कि इसी त्यागी ने उसकी सोनिया कांग्रेस के प्रमुख नेताओं यथा गृहमंत्री शिन्दे और महासचिव दिग्विजय सिंह से मुलाक़ात करवाई। एन.आई.ए के अधिकारी भी पटेल से इसी त्यागी के तथाकथित आश्रम में मिलते थे। पटेल का कहना है कि दिग्विजय सिंह ने उसे आश्वासन दिया था कि तुम इस कांड में संघ प्रमुख मोहन भागवत एवं कार्यकारिणी सदस्य इन्द्रेश कुमार का नाम ले देना, तो तुम्हें गिरफ़्तारी के महीने बाद ही ज़मानत पर छुड़ा दिया जायेगा। इस काम के लिये उसे पैसे का आश्वासन भी दिया गया। शायद इसी समझौते के तहत मार्च में भवेश पटेल का आत्मसमर्पण हुआ। न्यायालय ने पटेल को न्यायिक हिरासत में भेज दिया। इसके बाद का पटेल का वक्तव्य चौंकाने वाला है। उसके अनुसार जयपुर जेल से ही अपने मोबाईल फ़ोन पर जाँच अधिकारी विशाल गर्ग ने उसकी एन.आई.ए के आई.जी संजीव कुमार सिंह और प्रमोद त्यागी से बात करवाई, जिसमें उन्होंने भागवत और इन्द्रेश का नाम लेने के लिये फिर दबाव और लालच दिया।
२३ मार्च को पटेल ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा १६४ के तहत बयान दर्ज करवाया लेकिन उसने मोहन भागवत और इन्द्रेश कुमार का नाम नहीं लिया। तब जांच अधिकारी उसे फिर जयपुर जेल में मिला और कहा कि तुमने हमारा काम नहीं किया इसलिये अब तुम्हारी कोई सहायता नहीं की जायेगी। इसके बाद बिना न्यायालय की अनुमति के पटेल को जयपुर जेल से अलवर जेल भेज दिया गया जबकि अजमेर कांड के बाक़ी सब अभियुक्त जयपुर जेल में रखे गये थे। यहीं बस नहीं, जाँच अधिकारी, पटेल के अनुसार एक बार फिर उससे अलवर जेल में मिला और उससे वायदा माफ़ गवाह बनने के लिये कहा। एन.आई.ए पूरा ज़ोर लगा रही थी कि किसी तरह इस केस में भागवत और इन्द्रेश का नाम डाला जाये। अब यह रहस्योदघाटन भी हुआ है कि पटेल को बिना अधिकार के अलवर स्थानान्तरित करने की योजना भी एनआईए के डीजी की थी। पटेल ने न्यायालय से गुहार लगाई है कि उसे जान का ख़तरा है। कांग्रेस ने अपने राजनैतिक हितों के लिये उसका दुरुपयोग किया है। यह पूरी घटना अनेक सवालों को जन्म देती हैं। जाँच ऐजंसियां किसके इशारे पर संघ को इस मामले से जोड़ना चाहती है? एजेंसियों का इस मामले में अपना तो कोई स्वार्थ हो नहीं सकता। उच्चतम न्यायालय ने जैसा कहा है कि सरकारी जाँच एजेंसी सीबीआई सरकार का तोता बन गई है। ज़ाहिर है कि अन्य जाँच ऐजंसियों की स्थिति उससे भी बदतर है।
प्रमोद त्यागी जैसे दलालों की भूमिका की भी गहराई से जाँच करवाने की ज़रुरत है। आख़िर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस प्रकार के षड्यंत्रों के माध्यम से घेरने के पीछे कौन सी शक्तियाँ हैं? आख़िर भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों के आगे बढ़ने से किनकों ख़तरा है? वे कौन सी देशी विदेशी ताक़तें हैं जो भारत को कमज़ोर करना चाहती हैं? पटेल का रहस्योदघाटन कई आशंकाओं को जन्म देता है। क्या भारत में जो लोग राष्ट्रवादी शक्तियों को कमज़ोर कर रहे हैं वे केवल किसी विदेशी शक्ति के मोहरे भर तो नहीं? ये ऐसे प्रश्न हैं जो साँप की तरह फन तान कर खड़े हो गये हैं। लेकिन इनका उत्तर कौन तलाशेगा? जिन पर उत्तर तलाशने की ज़िम्मेदारी थी, भवेश पटेल की न्यायालय को लिखी चिट्ठी में तो वही अन्धेरे में रेंगते नज़र आ रहे हैं। दिन के उजाले से छिप कर अन्धेरे में रेंगते वाले यही लोग सबसे ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं। लगता है इस बार उत्तर जनता को ख़ुद ही तलाशना होगा ताकि अन्धेरे में रेंगते वाले ये जीव अपने कल्कि के आश्रम में बैठ कर देश का और नुक़सान न कर सकें।
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सोनिया के झूठे वादे से परेशान रायबरेली के लोग
चिराग तले अंधेरा वाली कहावत तो आपने सुनी होगी और इन दिनों सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में कुछ ऐसा ही दिख रहा है। यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी भले ही देश भर के गरीबों के हक की बात करती हों लेकिन रायबरेली के किसान रेल कोच फैक्ट्री से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और उनकी इस लड़ाई में अब तक सोनिया गांधी का सहयोग नहीं मिला।
देशभर के गरीबों को खाद्य सुरक्षा का हक दिलाने का दावा करने वाली यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र के किसान न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। रायबरेली में रेल कोच फैक्ट्री के लिए किसानों की जमीन ली गई, बड़े-बड़े वाद हुए लेकिन किसानों और उनके परिवार वाले आज ठगे महसूस कर रहे हैं। मजबूरन इलाके के किसान और उनके परिवार वाले रेल कोच फैक्ट्री के बाहर ताला जड़ कर धरने पर बैठ गए। दरअसल इलाके के किसानों को जमीन के बदले नौकरी देने का वादा किया गया था लेकिन ना तो नौकरा मिली और ना ही उचित मुआवजा मिला। अब किसानों के सामने आर पार की लड़ाई के अलावा कोई चारा नहीं बचा।
अधिकारियों की लाल फीता शाही का आलम यह है की वो भोले-भाले किसानों को मंत्रालय के दावं-पेंच में उलझाने के शिवा और उन्हों दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर कर रहे है। बात सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का है, सोनिया गांधी भले ही पूरे देश के गरीबों के हक की बात करती हैं लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र की जनता की इस वाजिब मांग पर नकी चुप्पी सवाल खड़े करती है।
चिराग तले अंधेरा वाली कहावत तो आपने सुनी होगी और इन दिनों सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में कुछ ऐसा ही दिख रहा है। यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी भले ही देश भर के गरीबों के हक की बात करती हों लेकिन रायबरेली के किसान रेल कोच फैक्ट्री से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और उनकी इस लड़ाई में अब तक सोनिया गांधी का सहयोग नहीं मिला।
देशभर के गरीबों को खाद्य सुरक्षा का हक दिलाने का दावा करने वाली यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र के किसान न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं। रायबरेली में रेल कोच फैक्ट्री के लिए किसानों की जमीन ली गई, बड़े-बड़े वाद हुए लेकिन किसानों और उनके परिवार वाले आज ठगे महसूस कर रहे हैं। मजबूरन इलाके के किसान और उनके परिवार वाले रेल कोच फैक्ट्री के बाहर ताला जड़ कर धरने पर बैठ गए। दरअसल इलाके के किसानों को जमीन के बदले नौकरी देने का वादा किया गया था लेकिन ना तो नौकरा मिली और ना ही उचित मुआवजा मिला। अब किसानों के सामने आर पार की लड़ाई के अलावा कोई चारा नहीं बचा।
अधिकारियों की लाल फीता शाही का आलम यह है की वो भोले-भाले किसानों को मंत्रालय के दावं-पेंच में उलझाने के शिवा और उन्हों दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर कर रहे है। बात सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र का है, सोनिया गांधी भले ही पूरे देश के गरीबों के हक की बात करती हैं लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र की जनता की इस वाजिब मांग पर नकी चुप्पी सवाल खड़े करती है।
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Kya yeh sach hai ?
करोडो रुपये खर्च कर के भी मीडिया केवल उन्ही लोगों को मूर्ख
बना सका जो पहले से ही मूर्ख हैं.
आप जानते है मात्र एक चैनल पर सरकार खुद के विज्ञापन का कितना खर्चा करती है ? विज्ञापन दर -
एनडीटीवी - प्रति 10 सेकेंड का रु॰ 3,810/- (साधारण दिन)
आजतक - प्रति 10 सेकेंड का रु॰ 3,720/- (साधारण दिन)
स्टार न्यूज़ - प्रति 10 सेकेंड का रु॰ 2,490/-
(साधारण दिन) IBN7 - प्रति 10 सेकेंड का रु॰ 2,250/-
(साधारण दिन) भारत निर्माण विज्ञापन समय = 90 क्षण (सेकेंड) प्रतिदिन (average - slots / day) - 10 प्रतिदिन (min.)
हर विज्ञापन की अनुमानित लागत - 90 X 2500/- = 2,25,000 प्रति चैनल पर प्रतिदिन विज्ञापन पर अनुमानित खर्चा 2,25,000.00 x 10 = 22,50,000.00
यह पैसा सरकार सरकार का नहीं मेहनत लोगो द्वारा भरे गए टेक्स का पैसा है आप टेक्स भरते है क्या इन विज्ञापनों के लिए ?
अब समझ लीजिये की चैनल क्यूँ सरकार के तलवे चाटते है !
जागो भारतीयो जागो ...... *यह आकड़ें विभिन्न समाचार चैनलों की विज्ञापन कीमतों और सरकार द्वारा बुक किए गए विज्ञापनो के.
.........................................................................................................करोडो रुपये खर्च कर के भी मीडिया केवल उन्ही लोगों को मूर्ख
बना सका जो पहले से ही मूर्ख हैं.
आप जानते है मात्र एक चैनल पर सरकार खुद के विज्ञापन का कितना खर्चा करती है ? विज्ञापन दर -
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(साधारण दिन) IBN7 - प्रति 10 सेकेंड का रु॰ 2,250/-
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