Saturday, 26 October 2013

चार हाथ चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमान...

चार हाथ चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमान...!
ता ऊपर सुल्तान है, अब न चूक चौहान..
पृथ्वीराज का राजकवि चन्द बरदाई पृथ्वीराज से मिलने के लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में पृथ्वीराज की दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने गौरी से बदला लेने की योजना बनाई। चंद्रवरदाई ने गौरी को बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं भी देख सकते हैं। इस पर गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया। पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पहले ही इस पूरे कार्यक्रम की गुप्त मंत्रणा कर ली थी कि उन्हें क्या करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने मंत्रियों के साथ बैठ गया। चंद्रवरदाई के निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित दिशा और दूरी पर लगवाए गए। चूँकि पृथ्वीराज की आँखे निकाल दी गई थी और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया। इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज के वीर गाथाओं का गुणगान करते हुए बिरूदावली गाई तथा गौरी के बैठने के स्थान को इस प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को अवगत करवाया:-
‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल अष्ठ प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूके मत चौहान।।’’

अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और आठ अंगुल जितनी दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है, इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने लक्ष्य को हासिल करो।
इस संदेश से पृथ्वीराज को गौरी की वास्तविक स्थिति का आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने गौरी से कहा कि पृथ्वीराज आपके बंदी हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब ही यह आपकी आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। इस पर ज्यों ही गौरी ने पृथ्वीराज को प्रदर्शन की आज्ञा का आदेश दिया, पृथ्वीराज को गौरी की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने तुरन्त बिना एक पल की भी देरी किये अपने एक ही बाण से गौरी को मार गिराया। गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई से नीचे गिरा और उसके प्राण पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-हाकार मच गया, इस बीच पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार एक-दूसरे को कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये। आज भी पृथ्वीराज चौहान और चंद्रवरदाई की समाधी काबुल में विद्यमान हैं। इस प्रकार भारत के अन्तिम हिन्दू प्रतापी सम्राट का 1192 में अन्त हो गया और हिन्दुस्तान में मुस्लिम साम्राज्य की नींव पड़ी।

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वीर हक़ीक़त राय...
इस 12 वर्षीय वीर बालक ने धर्म परिवर्तन के बदले अपना सिर कटवाना पसन्द किया और शहीद हो गया| आज इस वीर का नाम वर्तमान पीढी के मानसिक पटल से मिट चुका है और दिल्ली स्थित हिन्दू महासभा भवन में इस शहीद की मूक प्रतिमा उपेक्षित सी खडी है।
हकीकतराय का जन्म सियालकोट में 1724 को हुआ था। उस समय वह ऐक मात्र हिन्दू बालक मुस्लमान बालकों के साथ पढता था। उस की प्रगति से सहपाठी ईर्षालु थे और अकेला जान कर उसे बराबर चिडाते रहते थे। ऐक दिन मुस्लिम बालकों ने देवी दुर्गा के बारे में असभ्य अपशब्द कहे जिस पर हकीकतराय ने आपत्ति व्यक्त की। मुस्लिम बच्चों ने अपशब्दों को दोहरा दोहरा कर हकीकतराय को भडकाया और उस ने भी प्रतिक्रिया वश मुहमम्द की पुत्री फातिमा के बारे में वही शब्द दोहरा दिये।
मुस्लिम लडकों ने मौलवी को रिपोर्ट कर दी और मौलवी ने हकीकतराय को पैगंम्बर की शान में गुस्ताखी करने के अपराध में कैद करवा दिया। हकीकतराय के मातापिता ने ऐक के बाद ऐक लाहौर के स्थानीय शासक तक गुहार लगाई। उसे जिन्दा रहने के लिये मुस्लमान बन जाने का विकल्प दिया गया जो उस वीर बालक ने अस्वीकार कर दिया। उस ने अपने माता-पिता और दस वर्षिया पत्नी के सामने सिर कटवाना सम्मान जनक समझा। अतः 20 जनवरी 1735 को जल्लाद ने हकीकत राय का सिर काट कर धड से अलग कर दिया।
उपरोक्त ऐतिहासिक वृतान्त इस्लामी क्रूरता और नृशंस्ता के केवल अंशमात्र उदाहरण हैं। किन्तु हिन्दू समाज की कृतघन्ता है कि वह अपने वीरों को भूल चुका हैं जिन्हों ने बलिदान दिये थे। 
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