Sunday, 23 October 2011


नित्य प्रार्थना -
 सतबुद्धि ,सन्मार्ग , और कार्य का संकल्प देना ..
अडिग रहे विश्वास तुम पर ,  ऐसा अन्तह करदेना  ,
मेरे हृदय में आने में  ,तुह्में कोई संकोच न हो ..
हे गुरुदेव मुझे नजरों से ,दूर कभी न होने देना ...    -विवेक 


नित्य प्रार्थना -
 सतबुद्धि ,सन्मार्ग , और कार्य का संकल्प देना ..
अडिग रहे विश्वास तुम पर ,  ऐसा अन्तह करदेना  ,
मेरे हृदय में आने में  ,तुह्में कोई संकोच न हो ..
हे गुरुदेव मुझे नजरों से ,दूर कभी न होने देना ...    -विवेक 

इस बदलती हुई दुनिया में भी हमारे दिल के किसी कोने में संस्कारों का दीपक आज भी टीम टिमा रहा है ..सीमाओं पर डटे सैनिक भी अपनी बंकर के किसी कोने में दीपावली का एक दीपक अवश्य जलाएँगे .इन भावनाओं और संस्कारों में सभी के कल्याण  क़ी चाहत है ...आप क्या कहते हैं ?






जीवन का लक्ष तय है, तो वही कीमती है ,याद रखना 
 आदमी टूटे भी ,तो कोई बात नही ,याद रखना 
बहुत सस्ता है ,लोगों क़ी ठोकरों से सीख मिल जाए यदि ,
इंसानी सम्बन्धों क़ी सचाई..... हमेशा याद रखना ...
सुख दुःख, मन क़ी ही हार जीत है ,और कुछ भी  नही..
जो कुछ हम करेंगे ,वही दिखेगा ,वही मिलेगा याद रखना ...
---विवेक  

क्या है हमारी बेचैनी का राज ?.....


क्या है हमारी बेचैनी का राज ?.....
.जिसकी योजना से हमारा जन्म हुआ है ,जिस उद्देश्य क़ी पूर्ती केलिए हमारा जन्म हुआ है ...उस कारण में छिपा है यह रहस्य .
.यह भाषण बाजी का नही ..आत्म साक्षात्कार का विषय है ...हम अपने प्रिय संस्कारों के अनुसार ही जी रहे हैं ..हमारी चाह्त और अस्वीकृति  वहीं से उपजती है .
.यहीं हम क्रिया -प्रतिक्रिया में उलझे रहते हैं ..मन क़ी अनुकूलता  हमें हसाती  है ,और प्रतिकूलता दर्द का अहसास देती है 
जिन्दगी कविता है ..वह खूबसूरत भी है और कल्याणकारी भी ,पर तभी ,जब उसका व्याकरण और प्रस्तुतीकरण भी सही हो ....--.विवेक