Thursday 31 May 2012

व्यवस्था परिवर्तन क्यो जरूरी है ?

 व्यवस्था परिवर्तन क्यो जरूरी है ? आजादी के 64 साल बाद भी देश मे सारे वही कानून अभी तक है, जो अंग्रेजों ने हमें लूटने कि लिये बनाये थे।
भारत में 1857 के पहले ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन हुआ करता था वो अंग्रेजी सरकार का सीधा शासन नहीं था। 1857 में एक क्रांति हुई जिसमे इस देश में मौजूद 99% अंग्रेजों को भारत के लोगों ने चुन चुन के मार डाला था और 1% इसलिए बच गए क्योंकि उन्होंने अपने को बचाने के लिए अपने शरीर को काला रंग लिया था। लोग इतने गुस्से में थे कि उन्हें जहाँ अंग्रेजों के होने की भनक लगती थी तो वहां पहुँच के वो उन्हें काट डालते थे।

हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस क्रांति को "सिपाही विद्रोह" के नाम से पढाया जाता है। Mutiny और Revolution में अंतर होता है लेकिन इस क्रांति को विद्रोह के नाम से ही पढाया गया हमारे इतिहास में। 1857 की गर्मी में मेरठ से शुरू हुई ये क्रांति जिसे सैनिकों ने शुरू किया था, लेकिन एक आम आदमी का आन्दोलन बन गया और इसकी आग पूरे देश में फैली और 1 सितम्बर तक पूरा देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हो गया था। भारत अंग्रेजों और अंग्रेजी अत्याचार से पूरी तरह मुक्त हो गया था।


लेकिन नवम्बर 1857 में इस देश के कुछ गद्दार रजवाड़ों ने अंग्रेजों को वापस बुलाया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित करने में हर तरह से योगदान दिया। धन बल, सैनिक बल, खुफिया जानकारी, जो भी सुविधा हो सकती थी उन्होंने दिया और उन्हें इस देश में पुनर्स्थापित किया और आप इस देश का दुर्भाग्य देखिये कि वो रजवाड़े आज भी भारत की राजनीति में सक्रिय हैं।

हमारे देश के इतिहास की किताबों में उस 1857 की क्रांति को सिपाही विद्रोह के नाम से पढाया जाता है। जो बिलकुल गलत है। अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो या मरणासन्न। अंग्रेज जब वापस आये तो उन्होंने क्रांति के उद्गम स्थल बिठुर (जो कानपुर के नजदीक है) पहुँच कर सभी 24000 लोगों का मार दिया चाहे वो नवजात हो या मरणासन्न। बिठुर के ही नाना जी पेशवा थे और इस क्रांति की सारी योजना यहीं बनी थी इसलिए अंग्रेजों ने ये बदला लिया था।


उसके बाद उन्होंने अपनी सत्ता को भारत में पुनर्स्थापित किया और जैसे एक सरकार के लिए जरूरी होता है वैसे ही उन्होंने कानून बनाना शुरू किया। अंग्रेजों ने कानून तो 1840 से ही बनाना शुरू किया था और मोटे तौर पर उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था, लेकिन 1857 से उन्होंने भारत के लिए ऐसे-ऐसे कानून बनाये जो एक सरकार के शासन करने के लिए जरूरी होता है। आप देखेंगे कि हमारे यहाँ जितने कानून हैं वो सब के सब 1857 से लेकर 1946 तक के हैं।


1840 तक का भारत जो था उसका विश्व व्यापार में हिस्सा 33% था, दुनिया के कुल उत्पादन का 43% भारत में पैदा होता था और दुनिया के कुल कमाई में भारत का हिस्सा 27% था। ये अंग्रेजों को बहुत खटकती थी, इसलिए आधिकारिक तौर पर भारत को लुटने के लिए अंग्रेजों ने कुछ कानून बनाये थे और वो कानून अंग्रेजों के संसद में बहस के बाद तैयार हुई थी, उस बहस में ये तय हुआ कि "भारत में होने वाले उत्पादन पर टैक्स लगा दिया जाये क्योंकि सारी दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन यहीं होता है और ऐसा हम करते हैं तो हमें टैक्स के रूप में बहुत पैसा मिलेगा।" तो अंग्रेजों ने सबसे पहला कानून बनाया Central Excise Duty Act और टैक्स तय किया गया 350% मतलब 100 रूपये का उत्पादन होगा तो 350 रुपया Excise Duty देना होगा, फिर अंग्रेजों ने समान के बेचने पर Sales Tax लगाया और वो तय किया गया 120% मतलब 100 रुपया का माल बेचो तो 120 रुपया CST दो। फिर एक और टैक्स आया Income Tax और वो था 97% मतलब 100 रुपया कमाया तो 97 रुपया अंग्रेजों को दे दो।


ऐसे ही Road Tax, Toll Tax, Municipal Corporation tax, Octroi, House Tax, Property Tax लगाया और ऐसे करते-करते 23 प्रकार का टैक्स लगाया अंग्रेजों ने और खूब लुटा इस देश को। 1840 से लेकर 1947 तक टैक्स लगाकर अंग्रेजों ने जो भारत को लुटा उसके सारे रिकार्ड बताते हैं कि करीब 300 लाख करोड़ रुपया लुटा अंग्रेजों ने इस देश से, तो भारत की जो गरीबी आयी है वो लुट में से आयी गरीबी है। विश्व व्यापार में जो हमारी हिस्सेदारी उस समय 33% थी वो घटकर 5% रह गयी, हमारे कारखाने बंद हो गए, लोगों ने खेतों में काम करना बंद कर दिया, हमारे मजदूर बेरोजगार हो गए। इस तरीके से बेरोजगारी पैदा हुई, गरीबी-बेरोजगारी से भुखमरी पैदा हुई और आपने पढ़ा होगा कि हमारे देश में उस समय कई अकाल पड़े, ये अकाल प्राकृतिक नहीं था बल्कि अंग्रेजों के ख़राब कानून से पैदा हुए अकाल थे, और इन कानूनों की वजह से 1840 से लेकर 1947 तक इस देश में साढ़े चार करोड़ लोग भूख से मरे, तो हमारी गरीबी का कारण ऐतिहासिक है, कोई प्राकृतिक, अध्यात्मिक या सामाजिक कारण नहीं है। हमारे देश में अंग्रेजों ने 34735 कानून बनाये शासन करने के लिए, सब का जिक्र करना तो मुश्किल है लेकिन कुछ मुख्य कानूनों के बारे में मैं संक्षेप में लिख रहा हूँ। * भारत के कानून *


* Indian Education Act * - 1858 में Indian Education Act बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है, और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है "कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।"

इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा, जेल में डाला। 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था, और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी।

इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि "इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी" और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है। और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा। लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।


Indian Police Act - 1860 में इंडियन पुलिस एक्ट बनाया गया। 1857 के पहले अंग्रेजों की कोई पुलिस नहीं थी इस देश में लेकिन 1857 में जो विद्रोह हुआ उससे डरकर उन्होंने ये कानून बनाया ताकि ऐसे किसी विद्रोह/क्रांति को दबाया जा सके। अंग्रेजों ने इसे बनाया था भारतीयों का दमन और अत्याचार करने के लिए। उस पुलिस को विशेष अधिकार दिया गया। पुलिस को एक डंडा थमा दिया गया और ये अधिकार दे दिया गया कि अगर कहीं 5 से ज्यादा लोग हों तो वो डंडा चला सकता है यानि लाठी चार्ज कर सकता है और वो भी बिना पूछे और बिना बताये और पुलिस को तो Right to Offence है लेकिन आम आदमी को Right to Defense नहीं है। आपने अपने बचाव के लिए उसके डंडे को पकड़ा तो भी आपको सजा हो सकती है क्योंकि आपने उसके ड्यूटी को पूरा करने में व्यवधान पहुँचाया है और आप उसका कुछ नहीं कर सकते।

इसी कानून का फायदा उठाकर "लाला लाजपत राय" पर लाठियां चलायी गयी थी और लाला जी की मृत्यु हो गयी थी और लाठी चलाने वाले सांडर्स का क्या हुआ था ? कुछ नहीं, क्योंकि वो अपनी ड्यूटी कर रहा था और जब सांडर्स को कोई सजा नहीं हुई तो लालाजी के मौत का बदला भगत सिंह ने सांडर्स को गोली मारकर लिया था। वही दमन और अत्याचार वाला कानून "इंडियन पुलिस एक्ट" आज भी इस देश में बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले चल रहा है और बेचारे पुलिस की हालत देखिये कि ये 24 घंटे के कर्मचारी हैं उतने ही तनख्वाह में, तनख्वाह मिलती है 8 घंटे की और ड्यूटी रहती है 24 घंटे की और जेल मैनुअल के अनुसार आपको पुरे कपडे उतारने पड़ेंगे आपकी बॉडी मार्क दिखाने के लिए भले ही आपका बॉडी मार्क आपके चेहरे पर क्यों न हो। और जेल के कैदियों को अल्युमिनियम के बर्तन में खाना दिया जाता था ताकि वो जल्दी मरे, वो अल्युमिनियम के बर्तन में खाना देना आज भी जारी हैं हमारे जेलों में, क्योंकि वो अंग्रेजों के इस कानून में है।


* Indian Civil Services Act* - 1860 में ही इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट बनाया गया। ये जो Collector हैं वो इसी कानून की देन हैं। भारत के Civil Servant जो हैं उन्हें Constitutional Protection है, क्योंकि जब ये कानून बना था उस समय सारे ICS अधिकारी अंग्रेज थे और उन्होंने अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाया था, ऐसा विश्व के किसी देश में नहीं है, और वो कानून चूंकि आज भी लागू है इसलिए भारत के IAS अधिकारी सबसे निरंकुश हैं। अभी आपने CVC थॉमस का मामला देखा होगा।

इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और इन अधिकारियों का हर तीन साल पर तबादला हो जाता था क्योंकि अंग्रेजों को ये डर था कि अगर ज्यादा दिन तक कोई अधिकारी एक जगह रह गया तो उसके स्थानीय लोगों से अच्छे सम्बन्ध हो जायेंगे और वो ड्यूटी उतनी तत्परता से नहीं कर पायेगा या उसके काम काज में ढीलापन आ जायेगा और वो ट्रान्सफर और पोस्टिंग का सिलसिला आज भी वैसे ही जारी है और हमारे यहाँ के कलक्टरों की जिंदगी इसी में कट जाती है। ये जो Collector होते थे उनका काम था Revenue, Tax, लगान और लुट के माल को Collect करना इसीलिए ये Collector कहलाये और जो Commissioner होते थे वो commission पर काम करते थे उनकी कोई तनख्वाह तय नहीं होती थी और वो जो लुटते थे उसी के आधार पर उनका कमीशन होता था। ये मजाक की बात या बनावटी कहानी नहीं है ये सच्चाई है इसलिए ये दोनों पदाधिकारी जम के लूटपाट और अत्याचार मचाते थे उस समय। अब इस कानून का नाम Indian Civil Services Act से बदल कर Indian Civil Administrative Act हो गया है, 64 सालों में बस इतना ही बदलाव हुआ है।


* Indian Income Tax Act* - इस एक्ट पर जब ब्रिटिश संसद में चर्चा हो रही थी तो एक सदस्य ने कहा कि "ये तो बड़ा confusing है, कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है", तो दुसरे ने कहा कि हाँ इसे जानबूझ कर ऐसा रखा गया है ताकि जब भी भारत के लोगों को कोई दिक्कत हो तो वो हमसे ही संपर्क करें। आज भी भारत के आम आदमी को छोडिये, इनकम टैक्स के वकील भी इसके नियमों को लेकर दुविधा की स्थिति में रहते हैं और इनकम टैक्स की दर रखी गयी 97% यानि 100 रुपया कमाओ तो 97 रुपया टैक्स में दे दो और उसी समय ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर हर तरीके के टैक्स की छुट दी जाती है ताकि ब्रिटेन के माल इस देश के गाँव-गाँव में पहुँच सके और इसी चर्चा में एक सांसद कहता है कि "हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू है, अगर भारत के लोग इतना टैक्स देते हैं तो वो बर्बाद हो जायेंगे या टैक्स की चोरी करते हैं तो बेईमान हो जायेंगे और अगर बेईमान हो गए तो हमारी गुलामी में आ जायेंगे और अगर बरबाद हुए तो हमारी गुलामी में आने ही वाले है।

" तो ध्यान दीजिये कि इस देश में टैक्स का कानून क्यों लाया जा रहा है ? क्योंकि इस देश के व्यापारियों को, पूंजीपतियों को, उत्पादकों को, उद्योगपतियों को, काम करने वालों को या तो बेईमान बनाया जाये या फिर बर्बाद कर दिया जाये, ईमानदारी से काम करें तो ख़त्म हो जाएँ और अगर बेईमानी करें तो हमेशा ब्रिटिश सरकार के अधीन रहें। अंग्रेजों ने इनकम टैक्स की दर रखी थी 97% और इस व्यवस्था को 1947 में ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आपको जान के ये आश्चर्य होगा कि 1970-71 तक इस देश में इनकम टैक्स की दर 97% ही हुआ करती थी। इसी देश में भगवान श्रीराम जब अपने भाई भरत से संवाद कर रहे हैं तो उनसे कह रहे है कि प्रजा पर ज्यादा टैक्स नहीं लगाया जाना चाहिए और चाणक्य ने भी कहा है कि टैक्स ज्यादा नहीं होना चाहिए नहीं तो प्रजा हमेशा गरीब रहेगी, अगर सरकार की आमदनी बढ़ानी है तो लोगों का उत्पादन और व्यापार बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करो। अंग्रेजों ने तो 23 प्रकार के टैक्स लगाये थे उस समय इस देश को लुटने के लिए, अब तो इस देश में VAT को मिला के 64 प्रकार के टैक्स हो गए हैं। महात्मा गाँधी के देश में नमक पर भी टैक्स हो गया है और नमक भी विदेशी कंपनियां बेंच रही हैं, आज अगर गाँधी जी की आत्मा स्वर्ग से ये देखती होगी तो आठ-आठ आंसू रोती होगी कि जिस देश में मैंने नमक सत्याग्रह किया कि विदेशी कंपनी का नमक न खाया जाये आज उस देश में लोग विदेश कंपनी का नमक खरीद रहे हैं और नमक पर टैक्स लगाया जा रहा है।

शायद हमको मालूम नहीं है कि हम कितना बड़ा National Crime कर रहे हैं।
Indian Forest Act - 1865 में Indian Forest Act बनाया गया और ये लागू हुआ 1872 में। इस कानून के बनने के पहले जंगल गाँव की सम्पति माने जाते थे और गाँव के लोगों की सामूहिक हिस्सेदारी होती थी इन जंगलों में, वो ही इसकी देखभाल किया करते थे, इनके संरक्षण के लिए हर तरह का उपाय करते थे, नए पेड़ लगाते थे और इन्ही जंगलों से जलावन की लकड़ी इस्तेमाल कर के वो खाना बनाते थे। अंग्रेजों ने इस कानून को लागू कर के जंगल के लकड़ी के इस्तेमाल को प्रतिबंधित कर दिया।


साधारण आदमी अपने घर का खाना बनाने के लिए लकड़ी नहीं काट सकता और अगर काटे तो वो अपराध है और उसे जेल हो जाएगी, अंग्रेजों ने इस कानून में ये प्रावधान किया कि भारत का कोई भी आदिवासी या दूसरा कोई भी नागरिक पेड़ नहीं काट सकता और आम लोगों को लकड़ी काटने से रोकने के लिए उन्होंने एक पोस्ट बनाया District Forest Officer जो उन लोगों को तत्काल सजा दे सके, उस पर केस करे, उसको मारे-पीटे। लेकिन दूसरी तरफ जंगलों के लकड़ी की कटाई के लिए ठेकेदारी प्रथा लागू की गयी जो आज भी लागू है और कोई ठेकेदार जंगल के जंगल साफ़ कर दे तो कोई फर्क नहीं पड़ता। अंग्रेजों द्वारा नियुक्त ठेकेदार जब चाहे, जितनी चाहे लकड़ी काट सकते हैं। हमारे देश में एक अमेरिकी कंपनी है जो वर्षों से ये काम कर रही है, उसका नाम है ITC पूरा नाम है Indian Tobacco Company इसका असली नाम है American Tobacco Company, और ये कंपनी हर साल 200 अरब सिगरेट बनाती है और इसके लिए 14 करोड़ पेड़ हर साल काटती है। इस कंपनी के किसी अधिकारी या कर्मचारी को आज तक जेल की सजा नहीं हुई क्योंकि ये इंडियन फोरेस्ट एक्ट ऐसा है जिसमे सरकार के द्वारा अधिकृत ठेकेदार तो पेड़ काट सकते हैं लेकिन आप और हम चूल्हा जलाने के लिए, रोटी बनाने के लिए लकड़ी नहीं ले सकते और उससे भी ज्यादा ख़राब स्थिति अब हो गयी है, आप अपने जमीन पर के पेड़ भी नहीं काट सकते। तो कानून ऐसे बने हुए हैं कि साधारण आदमी को आप जितनी प्रताड़ना दे सकते हैं, दुःख दे सकते है, दे दो विशेष आदमी को आप छू भीं नहीं सकते और जंगलों की कटाई से घाटा ये हुआ कि मिटटी बह-बह के नदियों में आ गयी और नदियों की गहराई को इसने कम कर दिया और बाढ़ का प्रकोप बढ़ता गया।


Indian Penal Code - अंग्रेजों ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC ). ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है। अंग्रेजों का एक अधिकारी था वी.मैकोले, उसका कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी। ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में। ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा। इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी। और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जडमूल से समाप्त कर देगा और वो आगे लिखता है कि "जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा।" ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है ? कारण यही IPC है। IPC का आधार ही ऐसा है।


* Land Acquisition Act* - एक अंग्रेज आया इस देश में उसका नाम था डलहौजी। डलहौजी ने इस "जमीन को हड़पने के कानून" को भारत में लागू करवाया, इस कानून को लागू कर के किसानों से जमीने छिनी गयी। गाँव गाँव जाता था और अदालतें लगवाता था और लोगों से जमीन के कागज मांगता था और आप जानते हैं कि हमारे यहाँ किसी के पास उस समय जमीन के कागज नहीं होते थे। एक दिन में पच्चीस-पच्चीस हजार किसानों से जमीनें छिनी गयी। डलहौजी ने आकर इस देश के 20 करोड़ किसानों को भूमिहीन बना दिया और वो जमीने अंग्रेजी सरकार की हो गयीं। 1947 की आजादी के बाद ये कानून ख़त्म होना चाहिए था लेकिन नहीं, इस देश में ये कानून आज भी चल रहा है। आज भी इस देश में किसानों की जमीन छिनी जा रही है बस अंतर इतना ही है कि पहले जो काम अंग्रेज सरकार करती थी वो काम आज भारत सरकार करती है। पहले जमीन छीन कर अंग्रेजों के अधिकारी अंग्रेज सरकार को वो जमीनें भेंट करते थे, अब भारत सरकार वो जमीनें छिनकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भेंट कर रही है। 1894 का ये अंग्रेजों का कानून बिना किसी परेशानी के इस देश में आज भी चल रहा है। इसी देश में नंदीग्राम होते हैं, इसी देश में सिंगुर होते हैं और अब नोएडा हो रहा है। जहाँ लोग नहीं चाहते कि हम हमारी जमीन छोड़े, वहां लाठियां चलती हैं, गोलियां चलती हैं।


* Indian Citizenship Act* - अंग्रेजों ने एक कानून लाया था Indian Citizenship Act, कानून में ऐसा प्रावधान है कि कोई व्यक्ति (पुरुष या महिला) एक खास अवधि तक इस देश में रह ले तो उसे भारत की नागरिकता मिल सकती है (जैसे बंगलादेशी शरणार्थी)। दुनिया में 204 देश हैं लेकिन दो-तीन देश को छोड़ के हर देश में ये कानून है कि आप जब तक उस देश में पैदा नहीं हुए तब तक आप किसी संवैधानिक पद पर नहीं बैठ सकते, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। ये अंग्रेजों के समय का कानून है, हम उसी को चला रहे हैं, उसी को ढो रहे हैं आज भी, आजादी के 64 साल बाद भी।
* Indian Advocates Act* - हमारे यहाँ वकीलों का जो ड्रेस कोड है वो इसी कानून के आधार पर है, काला कोट, उजला शर्ट और वो ये हैं वकीलों का ड्रेस कोड। इंग्लैंड में चूंकि साल में 8-9 महीने भयंकर ठण्ड पड़ती है तो उन्होंने ऐसा ड्रेस अपनाया। हमारे यहाँ का मौसम गर्म है और साल में नौ महीने तो बहुत गर्मी रहती है और अप्रैल से अगस्त तक तो तापमान 40-50 डिग्री तक हो जाता है फिर ऐसे ड्रेस को पहनने से क्या फायदा जो शरीर को कष्ट दे। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक हमेशा मराठी पगड़ी पहन कर अदालत में बहस करते थे और गाँधी जी ने कभी काला कोट नहीं पहना।


* Indian Motor Vehicle Act*- उस ज़माने में कार/मोटर जो था वो सिर्फ अंग्रेजों, रजवाड़ों और पैसे वालों के पास होता था तो इस कानून में प्रावधान डाला गया कि अगर किसी को मोटर से धक्का लगे या धक्के से मौत हो जाये तो सजा नहीं होनी चाहिए या हो भी तो कम से कम। सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस देश में हर साल डेढ़ लाख लोग गाड़ियों के धक्के से या उसके नीचे आ के मरते हैं लेकिन आज तक किसी को फाँसी या आजीवन कारावास नहीं हुआ।
* Indian Agricultural Price Commission Act*- ये भी अंग्रेजों के ज़माने का कानून है। पहले ये होता था कि किसान, जो फसल उगाते थे तो उनको ले के मंडियों में बेचने जाते थे और अपने लागत के हिसाब से उसका दाम तय करते थे। आप हर साल समाचारों में सुनते होंगे कि "सरकार ने गेंहू का,धान का, खरीफ का, रबी का समर्थन मूल्य तय किया।" उनका मूल्य तय करना सरकार के हाथ में होता है और आज दिल्ली के AC Room में बैठ ये काले अंग्रेज़ लोग भारतीय किसानों के फसलों का दाम तय करते हैं जिन्होंने खेतों में कभी पसीना नहीं बहाया और जो खेतों में पसीना बहाते हैं, वो अपने उत्पाद का दाम नहीं तय कर सकते।


* Indian Patent Act* - अंग्रेजों ने एक कानून लाया Patent Act, और वो बना था 1911 में। ये जाकर 1970 में ख़त्म हुआ श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रयासों से लेकिन इसे अब फिर से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बदल दिया गया है। मतलब इस देश के लोगों के हित से ज्यादा जरूरी है बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हित।

सत्ता परिवर्तन के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक को आगे आना पड़ेगा और जन जन तक ये बात पाहुचनी पड़ेगी। तभी हमारा भारत बनेगा विश्व गुरु।
जय हिन्द, जय भारत !!

Wednesday 30 May 2012

ज़फरनामा : औरंगजेब के नाम, गुरु गोविन्द सिंह जी का पत्र !



भारत अनादिकाल से हिन्दू देश रहा है .इस देश में जितने भी धर्म ,संप्रदाय ,और मत उत्पन्न हुए हैं ,उन सभी के अनुयायी ,इस देश के वास्तविक उतराधिकारी हैं.लेकिन जब भारत पर इस्लामी हमलावरों का शासन हुआ तो ,उन्होंने हिन्दू धर्म और हिन्दुओं को मिटाने के लिए हर तरह के यत्न किये .आज जो हिन्दू बचे हैं ,उसके लिए हमें उन महापुरुषों का आभार मानना चाहिए जिन्होंने अपने त्याग और बलिदान से देश और हिन्दू धर्म को बचाया था .
इनमे गुरु गोविन्द सिंह का बलिदान सर्वोपरि और अद्वितीय है .क्योंकि गुरूजी ने धर्म के लिए अपने पिता गुरु तेगबहादुर और अपने चार पुत्र अजीत सिंह ,जुझार सिंह ,जोरावर सिंह और फतह सिंह को बलिदान कर दिया था .बड़े दो पुत्र तो चमकौर के युद्ध में शहीद हो गए थे .और दो छोटे पुत्र जोरावर सिंह (आयु 8 )साल और फतह सिंह (आयु 5 )साल जब अपनी दादी के साथ सिरसा नदी पार कर रहे तो अपने लोगों से बिछड़ गए थे .जिनको मुसलमान सूबेदार वजीर खान ने ठन्डे बुर्ज में सरहिंद में कैद कर लिया था.वजीर खान ने पहिले तो बच्चों को इस्लाम काबुल करने के लिए लालच दिया .जब बच्चे नहीं मानेतो मौत की धमकी भी दी .लेकिन बच्चों ने कहा कि हमारे दादा जी ने धर्म कि रक्षा के लिए दिली में अपना सर कटवा लिया था .हम मुसलमान कैसे बन सकते हैं ?हम तेरे इस्लाम पार थूकते हैं .(गुरु तेगबहादुर ने 16 नवम्बर 1675 को हिन्दू धर्म कि रक्षा के लिए अपना सर कटवा लिया था )बच्चों का जवाब सुनकर वजीर खान आग बबूला हो गया .उसने दौनों बच्चों को एक दीवाल में जिन्दा चिनवानेका आदेश दे दिया .और उन्हें शहीद कर दिया .यह सन 1705 कीबात है .
उस समय देश परऔरंगजेब की हुकूमत थी .वह इस्लाम का जीवित स्वरूप था .मुसलमान उसे अपना आदर्श मानते है .यदि कोई औरंगजेब की नीतियों और उसके चरित्र को समझ ले तो उसे कुरान और शरीयत को समझनेकी कोई जरुरत नहीं होगी .आज भी मुसलमान उसका अनुसरण करते है
जब गुरूजी को बच्चों के दीवाल में चिनवाएजाने की खबर मिली तो वह हताश नहीं हुए .गुरुजी चाहते थे कि लोग अपनी कायरता को त्याग करके निर्भय होकर अत्याचारी मुगलों का मुकाबला करें .तभी धर्म कि रक्षा हो सकेगी .इसके लिए गुरूजी ने अस्त्र -शस्त्र की उपासना की रीति चलाई .-
"वाह गुरूजी का भयो खालसा सु नीको.वाह गुरुजी मिल फ़तेह जो बुलाई है .
धरम स्थापने को ,पापियों को खपाने को ,गुरु जपने की नयी रीति यों चलाई है ."
गुरु गोविन्द सिंह जी ने लोगों को सशस्त्र रहने का उपदेश दिया .अस्त्र शस्त्र को धर्म का प्रमुख अंग बताया ,ताकि लोगों के भीतर से भय निकल जाये .गुरूजी ने कहा कि-
"नमो शस्त्र पाणे,नमो अस्त्र माणे.नमो परम ज्ञाता ,नमो लोकमाता .
गरब गंजन ,सरब भंजन ,नमो जुद्ध जुद्ध ,नमो कलह कर्ता.नमो नित नारायणे क्रूर कर्ता .-जाप साहब
फिर गुरूजी ने यह भी कहा -
"चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊँ ,सवा लाख से एक भिडाऊं.तबही नाम गोविन्द धराऊँ "
गुरुजी ने अपने इस में आने का यह कारण खुद ही बता दिया था .
"इस कारण प्रभु मोहि पठाओ ,तब मैं जगत जमम धर आयो .
धरम चलावन संत उबारन,दुष्ट दोखियन पकर पछारन"
गुरु गोविन्द सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ साथ महान विद्वान् भी थे .वह ब्रज भाषा ,पंजाबी ,संस्कृत और फारसी भी जानते थे .और इन सभी भाषाओँ में कविता भी लिख सकते थे .जब औरंगजेब के अत्याचार सीमा से बढ़ गए तो गुरूजी ने मार्च 1705 को एक पत्रभाई दयाल सिंह के हाथों औरंगजेब को भेजा .इसमे उसे सुधरने की नसीहत दी गयी थी .यह पत्र फारसी भाषा के छंद शेरों के रूप में लिखा गया है .इसमे कुल 134 शेर हैं .इस पत्र को "ज़फरनामा "कहा जाता है .यद्यपि यह पत्र औरंगजेब के लिए था .लेकिन इसमे जो उपदेश दिए गए है वह आज हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं .इसमे औरंगजेब के आलावा इस्लाम ,कुरान ,और मुसलमानों के बारे में जो लिखा गया है ,वह हमारी आँखें खोलने के लिए काफी हैं .इसी लिए ज़फरनामा को धार्मिक ग्रन्थ के रूप में स्वीकार करते हुए दशम ग्रन्थ में शामिल किया गया है .
जफरनामा से विषयानुसार कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं .ताकि लोगों को इस्लाम की हकीकत पता चल सके -
1 -शस्त्रधारी ईश्वर की वंदना
बनामे खुदावंद तेगो तबर ,खुदावंद तीरों सिनानो सिपर .
खुदावंद मर्दाने जंग आजमा ,ख़ुदावंदे अस्पाने पा दर हवा .2 -3
उस ईश्वर की वंदना करता हूँ ,जो तलवार ,छुरा ,बाण ,बरछा और ढाल का स्वामी है.और जो युद्ध में प्रवीण वीर पुरुषों का स्वामी है .जिनके पास पवन वेग से दौड़नेवाले घोड़े हैं .
2 -औरंगजेब के कुकर्म
तो खाके पिदर रा बकिरादारे जिश्त,खूने बिरादर बिदादी सिरिश्त.
वजा खानए खाम करदी बिना ,बराए दरे दौलते खेश रा .
तूने अपने बाप की मिट्टी को अपने भाइयों के खून से गूँधा,और उस खून से सनी मिटटी से अपने राज्य की नींव रखी.और अपना आलीशान महल तैयार किया .
3 -अल्लाह के नाम पर छल
न दीगर गिरायम बनामे खुदात ,कि दीदम खुदाओ व् कलामे खुदात .
ब सौगंदे तो एतबारे न मांद,मिरा जुज ब शमशीर कारे न मांद .
तेरे खुदा के नाम पर मैं धोखा नहीं खाऊंगा ,क्योंकि तेरा खुदा और उसका कलाम झूठे हैं .मुझे उनपर यकीन नहीं है .इसलिए सिवा तलवार के प्रयोग से कोई उपाय नहीं रहा .
4 -छोटे बच्चों की हत्या
चि शुद शिगाले ब मकरो रिया ,हमीं कुश्त दो बच्चये शेर रा .
चिहा शुद कि चूँ बच्च गां कुश्त चार ,कि बाकी बिमादंद पेचीदा मार .
यदि सियार शेर के बच्चों को अकेला पाकर धोखे से मार डाले तो क्या हुआ .अभी बदला लेने वाला उसका पिता कुंडली मारे विषधर की तरह बाकी है .जो तुझ से पूरा बदला चुका लेगा .
5 -मुसलमानों पर विश्वास नहीं
मरा एतबारे बरीं हल्फ नेस्त,कि एजद गवाहस्तो यजदां यकेस्त.
न कतरा मरा एतबारे बरूस्त ,कि बख्शी ओ दीवां हम कज्ब गोस्त .
कसे कोले कुरआं कुनद ऐतबार ,हमा रोजे आखिर शवद खारो जार .
अगर सद ब कुरआं बिखुर्दी कसम ,मारा एतबारे न यक जर्रे दम .
मुझे इस बात पर यकीन नहीं कि तेरा खुदा एक है .तेरी किताब (कुरान )और उसका लाने वाला सभी झूठे हैं .जो भी कुरान पर विश्वास करेगा ,वह आखिर में दुखी और अपमानित होगा .अगर कोई कुरान कि सौ बार भी कसम खाए ,तो उसपर यकीन नहीं करना चाहिए .
6 -दुष्टों का अंजाम
कुजा शाह इस्कंदर ओ शेरशाह ,कि यक हम न मांदस्त जिन्दा बजाह .
कुजा शाह तैमूर ओ बाबर कुजास्त ,हुमायूं कुजस्त शाह अकबर कुजास्त .
सिकंदर कहाँ है ,और शेरशाह कहाँ है ,सब जिन्दा नहीं रहे .कोई भी अमर नहीं हैं ,तैमूर ,बाबर ,हुमायूँ और अकबर कहाँ गए .सब का एकसा अंजाम हुआ .
7 -गुरूजी की प्रतिज्ञा
कि हरगिज अजां चार दीवार शूम ,निशानी न मानद बरीं पाक बूम .
चूं शेरे जियां जिन्दा मानद हमें ,जी तो इन्ताकामे सीतानद हमें .
चूँ कार अज हमां हीलते दर गुजश्त ,हलालस्त बुर्दन ब शमशीर दस्त .
हम तेरे शासन की दीवारों की नींव इस पवित्र देश से उखाड़ देंगे .मेरे शेर जबतक जिन्दा रहेंगे ,बदला लेते रहेंगे .जब हरेक उपाय निष्फल हो जाएँ तो हाथों में तलवार उठाना ही धर्म है .
8 -ईश्वर सत्य के साथ है .
इके यार बाशद चि दुश्मन कुनद ,अगर दुश्मनी रा बसद तन कुनद .
उदू दुश्मनी गर हजार आवरद ,न यक मूए ऊरा न जरा आवरद .
यदि ईश्वर मित्र हो ,तो दुश्मन क्या क़र सकेगा ,चाहे वह सौ शरीर धारण क़र ले .यदि हजारों शत्रु हों ,तो भी वह बल बांका नहीं क़र सकते है .सदा ही धर्म की विजय होती है.
गुरु गोविन्द सिंह ने अपनी इसी प्रकार की ओजस्वी वाणियों से लोगों को इतना निर्भय और महान योद्धा बना दिया कि अज भी मुसलमान सिखों से उलझाने से कतराते हैं .वह जानते हैं कि सिख अपना बदला लिए बिना नहीं रह सकते .इसलिए उनसे दूर ही रहो .पंजाबी कवि भाई ईसर सिंह ईसर ने खालसा के बारे में लिखा है -
"नहला उत्ते दहला मार बदला चुका देंदा ,रखदा न किसीदा उधार तेरा खालसा ,
रखदा कुनैन दियां गोलियां वी उन्हां लयी,चाह्ड़े जिन्नू तीजेदा बुखार तेरा खालसा .
पूरा पूरा बकरा रगड़ जांदा पलो पल ,मारदा न इक भी डकार तेरा खालसा ."
इसी तरह एक जगह कृपाण की प्रसंशा में लिखा है -
"हुन्दी रही किरपान दी पूजा तेरे दरबार विच ,तूं आप ही विकिया होसियाँ सी प्रेम दे बाजार विच .
गुजरी तेरी सारी उमर तलवार दे व्योपार विच ,तूं आपही पैदा होईऊं तलवार दी टुनकार विच .
तूं मस्त है ,बेख़ौफ़ है इक नाम दी मस्ती दे नाल ,सिक्खां दी हस्ती कायम है तलवार दी हस्ती दे नाल .
लक्खां जवानियाँ वार के फिर इह जवानी लाई है ,जौहर दिखाके तेग दे ,तेगे नूरानी लाई है .
तलवार जे वाही असां पत्त्थर चों पानी काढिया,इक इक ने सौ सौ वीरां नूं वांग गाजर वाड्धीया."
इस लेख का एकमात्र उद्देश्य है कि आप लोग गुरु गोविन्द साहिब कि वाणी को आदर पूर्वक पढ़ें ,और श्री गुरु तेगबहादुर और गुरु गोविन्द सिंह जी के बच्चों के महान बलिदानों को हमेशा स्मरण रखें .और उनको अपना आदर्श मनाकर देश धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाएँ .वर्ना यह सेकुलर और मुस्लिम जिहादी एक दी हिन्दुओं को विलुप्त प्राणी बनाकर मानेंगे .
सकल जगत में खालसा पंथ गाजे ,बढे धर्म हिन्दू सकल भंड भागे 

Thursday 24 May 2012

विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के इशारे पर

1..रूपये की गिरावट सरकार हमेशा विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के इशारे पर करती है ताकि सरकार को बाहरी कर्ज मिल सकें

2. क्या सिर्फ सयोंग है की मार्च 2012 में विश्व बैंक और विश्व मुद्रा कोष के मुखियाओं ने भारत की यात्रा की उसके बाद से रूपये में 15 % की भारी गिरावट आई है

3..क्या ये महज संयोग है की मार्च में ही सरकार ने 12 वी पंचवर्षीय योजना पर काम करना शुरू किया है .ये वही योजना है जिसके बहाने से सरकार कर्ज लेती है

4. आप आजादी के बाद के रूपये के अवमूल्यन का इतिहास देखिये जब जब पंचवर्षीय योजना शुरू की गयी तब तब विशव बैंक के कहने पर रूपये में सरकार ने भारी गिरावट की

5.इस बार सरकार ने रूपये में गिरावट पेट्रोल की कीमत बढ़ाने के लिए भी की .क्योंकी सरकार पेट्रोल पर 8 से 10 रूपये बढ़ाना चाहती है अब वो गिरावट का बहाना लेकर
कीमत बढाएगी जबकी गिरावट से नुक्सान सिर्फ 2 रूपये / ली है

6. कभी कभी रूपये में गिरावट ,सॉफ्टवेर ,कपड़ा उद्योग ,शेयर बाज़ार निर्यात करने वाली विदेशी कंपनियां को फायदा पहुंचाने के लिए भी किया जाता है इसके बदले में राजनेताओ को मोटी दलाली मिलती है

7.आजादी के समय रूपये की कीमत डालर के मुकाबले 1 रूपये थे अव वो 56 रूपये हो गयी है कही भारत बर्बाद तो नहीं हो चूका है सोचिये जरा !
हा एक और बात आम आदमी न तो सॉफ्टवेर बनाता है ,ना ही धागा बनता है ,ना ही निर्यात करता है ना है शेयर मार्केट में पैसा लगाता है वो तो पुरे दिन भर दो वक्त की रोटी खाने के लिए मेहनत करता है अब वो रोटी भी महँगी हो जायेगी .इसको ही तो अन्याय कहते हैं

पेट्रोल की ये है असली सच्चाई, जो सरकार ने अब तक थी छुपाई

पेट्रोल की कीमतों के बढ़ने के पीछे सरकार जरूर बाजार के हालात की दुहाई दे रही है, लेकिन इसकी असली सच्चाई तो कुछ और ही है। कीमतों में इजाफा तो खुद सरकार द्वारा लगाए जा रहे टैक्स के चलते हो रहा है। हालांकि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी इस बात को नहीं मानते हैं।

उन्होंने हाल ही में संसद में कहा था कि केंद्र सरकार तेल पर टैक्स नहीं वसूलती है, बल्कि राज्य इस पर फैसला लेता है। जबकि जानकार केंद्र सरकार को भी बतौर टैक्स इससे फायदा होने की बात कर रहे हैं। अगर ये सारे टैक्स पूरी तरह से खत्म कर दिए जाएं, तो आज से ही आप केवल 35 रुपये में पेट्रोल खरीद सकेंगे।

अगर केंद्र और राज्य सरकार पेट्रोल पर से पूरी तरह से टैक्स हटा दे, तो इसकी कीमतों में 35 रुपये से ज्यादा की कमी आ जाएगी। दरअसल, जिस दाम पर हम पेट्रोल खरीदते हैं, उसका करीब 48 फीसदी हिस्सा ही आधार मूल्य होता है। इसके अलावा बाकी का पैसा सरकार की जेब में टैक्स के रूप में जाता है। वहीं पेट्रोल पर करीब 35 फीसदी एक्साइज ड्यूटी, 15 फीसदी सेल्स टैक्स, 2 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगा होता है। बिक्री कर को कई राज्यों में वैट के रूप में भी वसूला जाता है।

अगर हम दिल्ली में पेट्रोल की वर्तमान कीमत 73.14 रुपये को उदाहरण के तौर पर माने, तो टैक्स न लगने पर इसकी बेस प्राइस यानि असली कीमत केवल 35 रुपये ही रह जाएगी। अभी बाकी के 38 रुपये सीधे सरकार की जेब में जा रहे हैं।

तेल के बेस प्राइस में कच्चे तेल की कीमत, प्रॉसेसिंग चार्ज और कच्चे तेल को शोधित करने वाली रिफाइनरियों का चार्ज शामिल होता है। एक्साइज ड्यूटी कच्चे तेल को अलग-अलग पदार्थों जैसे पेट्रोल, डीज़ल और किरोसिन आदि में तय करने के लिए लिया जाता है। वहीं, सेल्स टैक्स यानी बिक्री कर संबंधित राज्य सरकार द्वारा लिया जाता है।