Monday 30 November 2015

एक मलयालम फिल्‍ममेकर अली अकबर ने दावा किया है कि मदरसे में तालीम हासिल करने के दौरान उस्‍ताद ने उनका यौन उत्‍पीड़न किया था। उन्‍होंने बताया कि जब वह चौथी जमात में थे तब उस्‍ताद ने उनके साथ अप्राकृतिक सेक्‍स किया। अली अकबर ने यह भी बताया कि उस्‍ताद ने सिर्फ उन्‍हीं के साथ ऐसा नहीं किया बल्कि क्‍लास के सभी छात्रों का यौनशोषण किया था।
अकबर ने बताया, ‘वह मदरसा कांथापुरम मुसलियार की ओर से ही चलाया जाता था। अगर वे इस मामले में दखल देने को राजी हैं, तो मैं उस उस्‍ताद से जुड़ी जानकारियां देने के लिए तैयार हूं।’ उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद उन्होंने अपने बच्‍चों को कभी भी मदरसे में तालीम के लिए न भेजने का फैसला किया। अकबर ने बताया कि मदरसों में मुस्‍ल‍िम स्‍टूडेंट्स को छोटी उम्र में समलैंगिकता अपनाने के लिए उस्‍तादों की ओर से जोर जबरदस्‍ती की जाती थी।
उन्‍होंने कहा, ‘उस्‍ताद से इस तरह के अनुभव पाने के बाद बहुत सारे स्‍टूडेंट्स क्‍लास के दूसरे बच्‍चों का उत्‍पीड़न शुरू कर देते थे। मैंने भी इस तरह के हालात सहे हैं।’
आपको बता दें कि अकबर को कई फिल्म पुरस्कार मिल चुके हैं और 1997 में उन्हें बेस्ट एजुकेशनल ऐंड मोटिवेशनल फिल्म श्रेणी का नैशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है।
इससे पहले मुस्लिम महिला पत्रकार वीपी राजीना ने फेसबुक पोस्ट मे खुलासा किया था कि उनके बचपन में किस तरह से मदरसे के उस्ताद लड़के व लड़कियों का यौन शोषण किया करते थे। इसके बाद महिला पत्रकार के दावे को लेकर काफी बवाल हुआ था और फेसबुक ने महिला पत्रकार के फेसबुक अकाउंट को ब्लॉक कर दिया था।
बता दें कि महिला पत्राकर के दावों के बाद से ही मदरसों में बच्चों की जिंदगी पर बहस शुरू हो गई है। सोशल मीडिया पर भी लोग अपने अनुभव शेयर कर रहे हैं। बहुत सारे लोग सामने आए हैं, जिन्होंने बताया कि मदरसों में उनका कैसे शोषण हुआ।

ISI एजेंट रशीद 7 दिन की पुलिस रिमांड पर, BSF-आर्मी के और जवान जासूसी में हो सकते हैं शामिल

नई दिल्ली।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार किए गए भारतीय सीमा सुरक्षा बल के हवलदार अब्दुल रशीद को सोमवार को दिल्ली की एक कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने अब्दुल राशिद को  7 की पुलिस रिमांड में भेज दिया है। पूछताछ के लिए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम आज सुबह अब्दुल राशिद को दिल्ली लाई थी।
2013 से ISI तक पहुंचा रहा था खुफिया जानकारी
क्राइम ब्रांच के संयुक्त पुलिस आयुक्त रवींद्र यादव ने बताय कि शुरुआती पूछताछ में पता चला है कि रशीद साल 2013 से सेना से जुड़ी गोपनीय सूचनाएं आईएसआई तक पहुंचा रहा था, इससे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह सामने आ रही है कि बीएसएफ और सेना में और भी जासूस हो सकते हैं। सेना और पुलिस उनका पता लगाने में जुटी है। यादव के अनुसार रशीद से पूछताछ में और महत्वपूर्ण जानकारियां मिलने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार ऐसी आशंका है कि रशीद ने सीमा पर सेना और बीएसएफ के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान से जुड़ी कई गोपनीय जानकारी आईएसआई तक पहुंचाई हैं।
कुछ और जवानों की जासूसी कांड में शामिल होने की आशंका
जम्मू में रहने वाला आईएसआई एजेंट कैफईतुल्लाह खान उर्फ मास्टर राजा (44) उसका ममेरा भाई है। दोनों मिलकर साल 2013 से गोपनीय सूचनाएं लीक कर रहे थे। आशंका है कि रशीद के साथ सेना के कुछ और जवान भी इस जासूसी कांड का हिस्सा हो सकते हैं। खान को पुलिस ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया जबकि रशीद को रविवार को जम्मू से गिरफ्तार किया। रशीद राजौरी जिले में बीएसएफ के गुप्तचर विभाग में तैनात था। मास्टर राजा पाकिस्तानी गुप्तचर विभाग का एजेंट है जबकि रशीद उसका अहम सूत्र था। दोनों उस जासूसी रैकेट का हिस्सा थे, जिसे पाकिस्तान की आईएसआई मदद करती है।
सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत गिरफ्तारी
दोनों को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं और सरकारी गोपनीयता अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया है। इनके पास से कथित तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों से जुड़े दस्तावेज मिले हैं। दिल्ली पुलिस ने राजा को पहले से सात दिन के पुलिस रिमांड पर लिया हुआ है। अब उसे रशीद के सामने रखकर पूछताछ की जाएगी।

Sunday 29 November 2015

पहले टर्की ने रूस का एक लड़ाकू जहाज 
SU 24 और एक MI 27 हेलीकाप्टर मार गिराया
परन्तु
क्या आपको पता है कि इसका जवाब रूस की 
जनता ने किस प्रकार दिया है
यदि नहीं तो चलिए मैं बता देता हूँ
1. रूस के सभी टूर ऑपरेटर्स ने टर्की के लिए बुक किये गए
सभी tours रद्द कर दिए हैं
यह जानते हुए भी कि ऐसा करने पर उन्हें उनके ग्राहकों को
पैसे लौटाने के साथ साथ जुर्माना भी देना पड़ेगा
आर्थिक हानि होने के बाद भी उन्होंने राष्ट्रहित में
यह निर्णय लिया
यह होती हैं राष्ट्रभक्ति, यह है राष्ट्रवाद
2. रूस की छोटे बड़े सभी व्यापारियों ने यहाँ तक कि कॉर्पोरेट जगत की बड़ी बड़ी कम्पनियों ने टर्की को दिए गए
सभी आयात आर्डर निरस्त कर दिए हैं
यह जानते हुए भी कि आर्डर निरस्त करने पर
उनके द्वारा दिया गया एडवांस जब्त हो जाएगा और
उनके व्यापार को भारी हानि सहनी पड़ेगी
भारी आर्थिक हानि होने की आशंका के बाद भी
रूस के व्यापारियों ने राष्ट्रहित में यह निर्णय लिया है
यह होती है राष्ट्रभक्ति ....यह है राष्ट्रवाद
अब जरा अपनी बात कर लें
हम सभी चाहते हैं कि हम एक विश्व महाशक्ति बनें
परन्तु क्या हम यह deserve करते हैं ...????
थोड़ा मनन अवश्य करें इस प्रश्न पर...
जिस देश का प्रधानमन्त्री अपने नागरिकों के हित में
स्वच्छ भारत अभियान चलाए और उस देश के नागरिक
यह कहकर अपने ही प्रधानमन्त्री का उपहास उड़ाएं कि
ये तो हमसे झाड़ू लगवा रहा है
क्या वह राष्ट्र कभी विश्वशक्ति बन सकता है ...?????
जिस देश में एक प्रधानमन्त्री की आलोचना
सिर्फ इसलिए होती हो कि उसने सम्पन्न परिवारों से
गैस सब्सिडी त्यागने की अपील कर दी हो
क्या वह राष्ट्र कभी विश्वशक्ति बन सकता है ..??????
जिस देश के नागरिक इस बात से
प्रधानमन्त्री की परफॉरमेंस नापते हों कि
उसने क्या क्या फ्री में दिया और क्या नहीं दिया
क्या वह देश कभी विश्वशक्ति बन सकता है ...?????
जिस देश में लोग अपना लीडर जाति के आधार पर चुनते हों
क्या वह देश कभी विश्वशक्ति बन सकता है ....????
नहीं ....कदापि नहीं और इसके लिए कोई और नहीं
सिर्फ और सिर्फ हम भारत के नागरिक ही उत्तरदायी हैं
आने वाले समाय में इतिहास और हमारी आने वाली पीढियां हमसे इस प्रश्न का उत्तर अवश्य मांगेंगे .. तैयार रहियेगा ...

Saturday 28 November 2015

LATEST NEWS

संवत 1368 (ई.सन 1311) मंगलवार बैसाख सुदी 5 के दिन विका दहिया द्वारा जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के परिणाम स्वरूप मिली धन की गठरी लेकर बेहद खुश होकर अपने घर लौट रहा था ! पहली बार इतना ज्यादा धन देख उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था ! चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि इतना धन देखकर उसकी पत्नी हीरादे बहुत खुश होगी ! इस धन से वह अपनी पत्नी के लिए गहने बनवायेगा, युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली का निर्माण करवाएगा, हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे, अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी ऐसी कल्पनाएँ करता हुआ वह घर पहुंचा और धन की गठरी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए अपनी पत्नी हीरादे को सौंपने हेतु बढाई !

अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हीरादे को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फ़ौज का अचानक जालौर की तरफ वापस कूच करने का राज समझ आ गया ! वह समझ गयी कि उसके पति विका दहिया ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फ़ौज को बताकर अपने वतन जालौर व अपने पालक राजा कान्हड़ देव सोनगरा चौहान के साथ गद्दारी कर यह धन प्राप्त किया है ! 

उसने तुरंत अपने पति से पुछा-

“क्या यह धन आपको अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का कोई गुप्त भेद देने के बदले मिला है ?”

विका ने अपने मुंह पर कुटिल मुस्कान बिखेर कर व ख़ुशी से अपनी मुंडी ऊपर नीचे कर हीरादे के आगे स्वीकारोक्ति कर जबाब दे दिया ! 

यह समझते ही कि उसके पति विका ने अपनी मातृभूमि के लिए गद्दारी की है, अपने उस राजा के साथ विश्वासघात किया है जिसने आजतक इसका पोषण किया था ! हीरादे आग बबूला हो उठी और क्रोद्ध से भरकर अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठी - 

“अरे ! गद्दार आज विपदा के समय दुश्मन को किले की गुप्त जानकारी देकर अपने वतन के साथ गद्दारी करते हुए तुझे शर्म नहीं आई ? क्या तुम्हें ऐसा करने के लिए ही तुम्हारी माँ ने जन्म दिया था ? अपनी माँ का दूध लजाते हुए तुझे जरा सी भी शर्म नहीं आई ? क्या तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद क्षत्रिय द्वारा निभाये जाने वाले स्वामिभक्ति धर्म के बारे में भूल गए थे ? 

विका दहिया ने हीरादे को समझा कर शांत करने की कोशिश की पर हीरादे जैसी देशभक्त क्षत्रिय नारी उसके बहकावे में कैसे आ सकती थी ? पति पत्नी के बीच इसी बात पर बहस बढ़ गयी ! विका दहिया की हीरादे को समझाने की हर कोशिश ने उसके क्रोध की अग्नि में घी का ही कार्य ही किया !

हीरादे पति की इस गद्दारी से बहुत दुखी व क्रोधित हुई ! उसे अपने आपको ऐसे गद्दार पति की पत्नी मानते हुए शर्म महसूस होने लगी ! उसने मन में सोचा कि युद्ध के बाद उसे एक गद्दार व देशद्रोही की बीबी होने के ताने सुनने पड़ेंगे और उस जैसी देशभक्त ऐसे गद्दार के साथ रह भी कैसे सकती है ! इन्ही विचारों के साथ किले की सुरक्षा की गोपनीयता दुश्मन को पता चलने के बाद युद्ध के होने वाले संभावित परिणाम और जालौर दुर्ग में युद्ध से पहले होने वाले जौहर के दृश्य उसके मन मष्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगे ! जालौर दुर्ग की राणियों व अन्य महिलाओं द्वारा युद्ध में हारने की आशंका के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर की धधकती ज्वाला में कूदने के दृश्य और छोटे छोटे बच्चों के रोने विलापने के दृश्य, उन दृश्यों में योद्धाओं के चहरे के भाव जिनकी अर्धान्ग्नियाँ उनकी आँखों के सामने जौहर चिता पर चढ़ अपने आपको पवित्र अग्नि के हवाले करने वाली थी स्पष्ट दिख रहे थे ! साथ ही दिख रहा था जालौर के रणबांकुरों द्वारा किया जाने वाले शाके का दृश्य जिसमें जालौर के रणबांकुरे दुश्मन से अपने रक्त के आखिरी कतरे तक लोहा लेते लेते कट मरते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो रहे थे ! एक तरफ उसे जालौर के राष्ट्रभक्त वीर स्वातंत्र्य की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते नजर आ रहे थे तो दूसरी और उसकी आँखों के आगे उसका राष्ट्रद्रोही पति खड़ा था !

ऐसे दृश्यों के मन आते ही हीरादे विचलित व व्यथित हो गई थी ! उन विभत्स दृश्यों के पीछे सिर्फ उसे अपने पति की गद्दारी नजर आ रही थी ! उसकी नजर में सिर्फ और सिर्फ उसका पति ही इनका जिम्मेदार था !

हीरादे की नजर में पति द्वारा किया गया यह एक ऐसा जघन्य अपराध था जिसका दंड उसी वक्त देना आवश्यक था ! उसने मन ही मन अपने गद्दार पति को इस गद्दारी का दंड देने का निश्चय किया ! उसके सामने एक तरफ उसका सुहाग था तो दूसरी तरफ देश के साथ अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने वाला गद्दार पति ! उसे एक तरफ देश के गद्दार को मारकर उसे सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उसका अपना उजड़ता सुहाग ! आखिर उस देशभक्त वीरांगना ने तय किया कि -"अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए यदि उसका सुहाग खतरा बना है और उसके पति ने देश के प्रति विश्वासघात किया है तो ऐसे अपराध व दरिंदगी के लिए उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए ! गद्दारों के लिए यही एक मात्र सजा है !” 

मन में उठते ऐसे अनेक विचारों ने हीरादे के रोष को और भड़का दिया उसका शरीर क्रोध के मारे कांप रहा था उसके हाथ देशद्रोही को सजा देने के लिए तड़फ रहे थे और हीरादे ने आव देखा न ताव पास ही रखी तलवार उठा अपने गद्दार और देशद्रोही पति का एक झटके में सिर काट डाला ! 

हीरादे के एक ही वार से विका दहिया का सिर कट कर ऐसे लुढक गया जैसे किसी रेत के टीले पर तुम्बे की बेल पर लगा तुम्बा ऊंट की ठोकर खाकर लुढक जाता है ! और एक हाथ में नंगी तलवार व दुसरे हाथ में अपने गद्दार पति का कटा मस्तक लेकर उसने अपने राजा कान्हड़ देव को उसके एक सैनिक द्वारपाल द्वारा गद्दारी किये जाने व उसे उचित सजा दिए जाने की जानकारी दी !

कान्हड़ देव ने इस राष्ट्रभक्त वीरांगना को नमन किया और हीरादे जैसी वीरांगनाओं पर मन ही मन गर्व करते हुए कान्हड़ देव अल्लाउद्दीन की सेना से आज निर्णायक युद्द करने के लिए चल पड़े ! 

किसी कवि ने हीरादे द्वारा पति की करतूत का पता चलने की घटना के समय हीरादे के मुंह से अनायास ही निकले शब्दों का इस तरह वर्णन किया है- 

"हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ"

अर्थात्- विधाता आज कैसा दिन दिखाया है कि- "इस चण्डाल का मुंह देखना पड़ा !" यहाँ हीरादेवी ने चण्डाल शब्द का प्रयोग अपने पति वीका दहिया के लिए किया है !

इस तरह एक देशभक्त वीरांगना अपने पति को भी देशद्रोह व अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने पर दंड देने से नहीं चूकी ! 

देशभक्ति के ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है जब एक पत्नी ने अपने पति को देशद्रोह के लिए मौत के घाट उतार कर अपना सुहाग उजाड़ा हो पर अफ़सोस हीरादे के इतने बड़े त्याग व बलिदान को इतिहास में वो जगह नहीं मिली जिसकी वह हक़दार थी ! हीरादे ही क्यों जैसलमेर की माहेची व बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली के बलिदान को भी इतिहासकारों ने जगह नहीं दी जबकि इन वीरांगनाओं का बलिदान व त्याग भी पन्नाधाय के बलिदान से कम ना था ! देश के ही क्या दुनियां के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता !

काश आज हमारे देश के बड़े अधिकारीयों, नेताओं व मंत्रियों की पत्नियाँ भी हीरादे जैसी देशभक्त नारी से सीख ले अपने भ्रष्ट पतियों का भले सिर कलम ना करें पर उन्हें धिक्कार कर बुरे कर्मों से रोक तो सकती ही है !

नोट :- कुछ इतिहासकारों ने हीरादे द्वारा अपने पति की हत्या तलवार द्वारा न कर जहर देकर करने का जिक्र भी किया है ! भले ही हीरादे ने कोई भी तरीका अपनाया हो पर उसने अपने देशद्रोही पति को मौत के घाट उतार कर सजा जरुर दी !

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आज गुरु नानक जयंती (प्रकाश पर्व) है। गुरु नानक जी का जन्म पंजाब के छोटे से शहर तलवंडी में हुआ था। इन्होंने बड़े होकर अपना समूचा जीवन धार्मिक कट्टरता और धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों और अनाचारों का विनाश करने के लिए समर्पित कर दिया।

इनके बहुत से किस्से प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक आश्चर्यजनक और अद्भुत किस्सा हम आपको बताने जा रहे हैं। दरअसल, नानक जी बचपन से ही अक्सर खामोश रहा करते थे। उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि वो किसी गहरे चिंतन में हैं। इसलिए उनके पिता कालूराय बेदी जी ने पशुओं को चराने का काम सौंपा।

वह सुबह जाते और शाम को नियत समय पर लौट आते। एक दिन नानक जी पशुओं को चराने के लिए गए हुए थे और वहां उन्हें नींद आ गई। तभी तलवंडी का शासक राय दुलार उस रास्ते से निकला। उसने देखा एक बालक पेड़ के नीचे सोया हुआ है और उसके पास एक नाग फन फैलाकर बैठा हुआ है।

वह नाग अपने फन से उस बालक के चेहरे पर आ रही सूर्य की तेज किरणों को रोक रहा था। पेड़ की छांव जिस और हटती नाग उस ओर फन कर लेता। यह देखकर राय दुलार हैरान हो गया। उन्होंने सोचा यह बालक बड़ा होकर जरूर बहुत बड़ा संत या सम्राट बनेगा। इस घटना के बारे में जिसने भी सुना वह हैरान रह गया। बता दें कि नानक जी बचपन से ही बेहद कुशाग्र बुद्धि के थे और वे फारसी भाषा के भी विद्वान थे।

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(1857 के स्वातंत्र्य समर में शिवपुरी के योगदान को दर्शाता एक महत्वपूर्ण आलेख |)

पाश्चात्य इतिहास लेखकों की स्वार्थपरक और कूटनीतिक विचारधारा से कदमताल मिलाकर चलने वाले कुछ भारतीय इतिहास लेखकों के कारण आज भी इतिहास की कुछ पुस्तकों और ज्यादातर पाठ्य-पुस्तकों में यह मान्यता चली आ रही है कि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम अंग्रेजी मान्यता के खिलाफ बर्बरतापूर्ण विद्रोह था। साथ ही यह संग्राम तत्कालीन ब्रितानी हुकूमत से अपदस्थ राजा-महाराजाओं,जमींदारों तथा कुछ विद्रोही सैनिकों तक सीमित था। यह अलग बात है कि इस संग्राम को विद्रोह की संज्ञा देने वाले इतिहास लेखक भी यह निर्विवाद रूप से स्वीकारते हैं कि उस समय के शक्तिसंपन्न राज-घराने ग्वालियर,हैदराबाद,कश्मीर,पंजाब और नेपाल के नरेशों तथा भोपाल की बेगमों ने फिरंगी सत्ता की मदद नहीं की होती तो भारत 1857 में ही दासता की गुंजलक से मुक्त हो गया होता ? अंग्रेजी-सत्ता के लोह-कवच बनने वाले इन सामंतों को अंग्रेजों ने स्वामिभक्त कहकर दुलारा भी था।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक तात्या टोपे के बलिदान दिवस 18 अप्रैल को प्रतिवर्ष शिवपुरी में दो दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े पत्रों एवं हथियारों की एक प्रदर्शनी भी लगाई जाती है। इन पत्रों को पढ़ने से पता चलता है कि इस संग्राम से खास ही नहीं आम आदमी भी जुड़ा हुआ था। मूल रूप में ये पत्र भोपाल में राजकीय अभिलेखागर में सुरक्षित हैं। दुर्लभ होने के कारण पत्रों की छाया प्रतियां ही प्रदर्शनी में लायी जाती हैं। सत्तर के दशक में इन पत्रों के संग्रह का प्रकाशन डॉ परशुराम शुक्ल ‘विरही‘ के संपादकत्व में नगर पालिका परिषद,शिवपुरी द्वारा किया भी गया था,लेकिन अब इस शोधपरक दुर्लभ पुस्तक की प्रतियां उपलब्ध नहीं हैं।

‘1857 की क्रांति‘ शीर्षक से प्रकाशित इस किताब में इस संग्राम से संबंधित कुछ पत्र संग्रहीत हैं। ये पत्र महारानी लक्ष्मीबाई,रानी लड़ई दुलैया,राजा बखतवली सिंह,राजा मर्दनसिंह,राजा रतन सिंह और उस क्रांति के महान योद्धा,संगठक एवं अप्रतिम सेनानायक तात्या टोपे द्वारा लिखे गए हैं। इन पत्रों की भावना से यह स्पष्ट होता है कि प्रथम स्वंतत्रता संग्राम का विस्तार दूर-दराज के ग्रामीण अंचलों तक हो रहा था। स्वतंत्रता की इच्छा से आम व्यकित क्रांति के इस महायज्ञ में अपने अस्तित्व की समिधा डालने को तत्पर हो रहे थे।

किताब की भूमिका के अनुसार,1857 के स्वतंत्रता-संग्राम से संबंधित इन पत्रों की प्राप्ति का इतिहास भी रोचक है। आजादी की पहली लड़ाई जब चरमोत्कर्ष पर थी,तब तात्या टोपे अपनी फौज के साथ ओरछा रियासत के गांव आश्ठौन में थे। अंग्रेजों को यह खबर लग गई और अंग्रेजी फौज ने यकायक तात्या टोपे के डेरे पर हमला बोल दिया। उस समय तात्या मोर्चा लेने की स्थिति में नहीं थे। लिहाजा,ऊहापोह की स्थिति में तात्या अपना कुछ बहुमूल्य सामान यथास्थान छोड़ नौ दो ग्यारह हो गए।

उस दौरान ओरछा के दीवान नत्थे खां थे। तात्या द्वारा जल्दबाजी में छोड़े गए सामान की पोटली नत्थे खां के विश्वसनीय सिपाही ने उन्हें लाकर दी। इस सामान में एक बस्ता था। जिसमें जरूरी कागजात और चिट्ठी पत्री थीं। इसी सामान में एक तलवार और एक उच्च कोटि की गुप्ती भी थी। नत्थे खां के यहां कोई पुत्र नहीं था,इसीलिए यह धरोहर उनके दामाद को मिली। दामाद के यहां भी कोई संतान न थी,लिहाजा तात्या के सामान के वारिस उनके दामाद अब्दुल मजीद फौजदार बने,जो टीकमगढ़ के निवासी थे।

स्वतंत्र भारत में 1976 में टीकमगढ़ के राजा नरेंद्र सिंह जूदेव को इन पत्रों की खबर अब्दुल मजीद के पास होने की लगी। नरेंद्र सिंह उस समय मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री थे। उन्होंने इन पत्रों के ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए तात्या की धरोहर को राष्ट्रीय धरोहर बनाने की दिशा में उल्लेखनीय पहल की। इन पत्रों की वास्तविकता की पुष्टि इतिहासकार दत्तात्रेय वामन पोद्दार से भी करायी। पोद्दार ने पत्रों के मूल होने का सत्यापन करते हुए इन्हें ऐतिहासिक महत्व के दुर्लभ दस्तावेज निरुपित किया। झांसी के प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यासकार डॉ वृन्दावनलाल वर्मा ने भी इन्हें मुल-पत्र बताते हुए सुनिश्चित किया कि पत्रों के साथ मिला हुआ सामान,तलवार तथा गुप्ती भी तात्या के ही है। डॉ वर्मा ने यह भी तय किया कि जिस स्थान और जिस कालखंड में इस साम्रगी का उपलब्ध होना बताया जा रहा है,उस समय वहां तात्या के अलावा अन्य किसी सेनानायक ने पड़ाव नहीं डाला था।

तात्या के बस्ते से कुल 225 पत्र प्राप्त हुए थे,जो देवनागरी एवं फारसी लिपी में थे। हिंदी पत्रों की भाषा ठेठ बुंदेली है। इन पत्रों में 125 हिंदी में और 130 उर्दु में लिखे गए हैं। तात्या की तलवार और गुप्ती भी अनूठी है। तलवार सुनहरी नक्काशी में मूठ वाली है,जो मोती बंदर किस्म की बतायी गई है। इस तलवार की म्यान पर दो कुंदों में चार अंगुल लंबे बाण के अग्रभग जैसे पैने हथियार हैं। इन हथियारों पर हाथी दांत की बनी शेर के मुंह की आकृतियां जड़ी हुई हैं। इसी तरह जो गुप्ती प्राप्त हुई है वह विचित्र है। गुप्ती की मूठ सोने की है। इसके सिरे पर एक चूड़ीदार डिबिया लगी हुई है,जिसमें इत्र-फुलेल रखने की व्यवस्था है। तात्या की यह अमूल्य धरोहर अब राजकीय अभिलेखागार भोपाल का गौरव बढ़ा रही है।

पत्रों को पढ़ने से पता चलता है कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम किस गहराई से आम जनता का संग्राम बनता जा रहा था और आदमी किस दीवानेपन में राष्ट्र की बलिवेदी पर आत्मोत्सर्ग के संस्कारों में ढल रहा था। समर के इस अछूते अध्याय की बानगी इन पत्रों में टृष्टव्य है-

तात्या टोपे के नाम लिखे पत्र में राजा बखतवली लिखते हैं,‘एजेंट हैमिल्टन ने गोरी फौज को लेकर राहतगढ़ पर आक्रमण किया है। खुरई,बानपुर की हुई लड़ाई में मानपुर के करीब 700 और अंग्रेजों के करीब 500 सैनिक मारे गए। अंग्रेजों ने बलपूर्वक पन्ना,बिजावर,टेहरी,चरखारी और छतरपुर के राजाओं को अपनी ओर मिला लिया है। अंग्रेज फौज से मुकाबला करने के लिए सहायता भेजी गई।‘ तात्या के नाम लिखे अन्य पत्र में महाराजा रतनसिंह लिखते हैं, ‘हमने तीन लाख रुपया जमा करा दिया है,मगर हमसे कौलनामा किसी पंडित को भेजकर लिखा लिया जाए। हमारी इज्जत रखी जाए। अब हम फौज सहित कूच करते हैं। हमारी ओर से किसी बात पर तकरार नहीं होगी‘।

तात्या के नाम लिखे पत्र में श्रीराम शुक्ल और गंगाराम लिखते हैं ‘सिरौली के घाट पर अंग्रेज कैप्टन और नवाब बांदा की भीड़ रोकने के लिए सेना की सहायता एवं तोप चाहिए। चांदपुर के थानेदार भी दो सौ बंदूक लेकर हमारे साथ हैं।‘ एक अन्य पत्र में मनीराम और गंगाराम ने तात्या को लिखा है,‘सिरौली,चुखरा,भौंरा,चांदपुर और गाजीपुर के जमींदार अंग्रेजों से मोर्चा लेने को तैयार हैं। अंग्रेजों द्वारा गोली चलाने पर वे धावा बोलेंगे। गोरी पलटन को कालपी न पहुंचने देने के लिए कम्पू का बंदोबस्त भी किया जाए।‘ तात्या को लिखे पत्र में महाराज कुमार गणेश जूदेव ने तात्या को अपने डेरे पर बुलाया तथा लड़ाई में ठाकुरों के साथ होने का हवाला दिया,जिसमें कुंवर बुधसी,क्षमा जूदेव के नामों का उल्लेख है। उन्होंने लिखा है,‘इनके सबके मन साफ हैं और मैं बीच में हूं।‘ तात्या को मूरतीसिंह,शिवप्रसाद और गौरीशंकर अवस्थी लिखते हैं, ‘हमीरपुर व सिरौली को मदद के लिए दो तोपें,एक कंपनी तथा राजा लोगों की 500 फौज जल्दी भेजें। गोरे सिरोली के उस पार पांच तोपे लगाकर गोलाबारी कर रहे हैं।‘

तात्या को एक पत्र में जानकारी दी है कि ‘करीब एक सौ अंग्रेज अधिकारी व सिपाही ग्वालियर के किले में घुस गए हैं और इन्हें बेदखल करने के लिए हजारों लोग किले के अंदर पहुंच गए हैं।‘ तात्या की जीत पर एक पत्र में जैतपुर के फौजदार सवाई माधेसिंह ने खुशी जाहिर की है। रानी लड़ई दुलैया द्वारा राजा बखतवली सिंह के नाम लिखे पत्र में कहा गया है,‘पन्ना की जो फौज हटा-दमोह में थी,उसने नदी पार करके यहां के इलाके पर तोपें चला दी हैं। फतेहपुर को जब्त करने का विचार है,जबलपुर में गुरबियों की फौज अंग्रेजों से बिगड़ गई है। पलटन अब हटा खाली करना चाहती है। कई जगह लड़ाई चल रही है,इसीलिए पचास-साठ मद बारूद,शोरा और गन्धक की जरूरत है।‘ तात्या को लिखे पत्र में रानी लड़ई दुलैया ने सूचित किया है, ‘पेशवा के पास उन्होंने कुछ लोग भेजे हैं और वे पेशवा के सूबा जलालपुर में ठहरे हुए हैं।‘ महारानी लक्ष्मीबाई ने रानी लड़ई दूलैया को एक पत्र लिखकर याद ताजा करायी है, ‘दोनों ओर अच्छे संबंधों की परंपरा रही है,इसीलिए आपकी फौज की ओर से कोई वारदात नहीं होनी चाहिए।‘ तात्या को लिखे एक पत्र में राजा मर्दनसिंह ने लिखा है,‘फौज समेत फौरन आएं। बुंदेलखंड के राजा अंग्रेजों से मिल गए हैं। अंग्रेज बानपुर,शाहगढ़ और झांसी पर कब्जा करने की योजना बना रहे हैं।‘

1857 में ही हमीरपुर से निकलने वाले ‘हमीर‘नामक एक समाचार पत्र में पत्रकार जलील अहमद ने खबर छापी है कि ‘तात्या टोपे की कोठी में दो षड्यंत्रकारी,जो बंदूकधारी थे,मोजा रमेली खालपुर में तात्या टोपे की हत्या की साजिश रचते हुए पकड़े गए। इन्हें तात्या टोपे के सामने पेश किया गया।‘ तात्या के नाम लिखे पत्र में मनफूल सुकूल ने जानकारी दी है, ‘गोरों ने मुनादी पिटवाई है कि विद्रोहियों को जो कोई रसद-मदद देगा,उसे बच्चों समेत फांसी पर लटका दिया जाएगा।‘

ओरछा के दीवान नत्थे खां ने एक विशेष पत्र हरकारे द्वारा भेजकर रानी झांसी को सूचित किया कि ‘मोर्चा बंदी की तैयारी की जाए।‘ पंडित मोहनलाल ज्योतिषी ने तात्या को लिखे एक पत्र के साथ अतीन्द्रिय शक्तियों द्वारा रक्षा किए जाने के लिए एक तंत्र भी भेजा। इस पत्र में उल्लेख है, ‘हम फकीर साहब के साथ बैठकर दो जंत्र तैयार कर आपके पास भेज रहे हैं। जो छोटा जंत्र है,वह आप बांध लें और बड़ा जंत्र निशान पर बांध देना। ईश्वर रक्षा करेगा।‘

इन पत्रों से यह उजागर होता है कि भारतीयों के अतः करण में दास्ता से मुक्ति के लिए जोश और अंग्रेजों के खिलाफ जबरदस्त आक्रोष पैदा हो गया था। उस समय आम आदमी ने अपने राष्ट्र धर्म का अहसास किया और अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर हुआ। 1857 के इन बलिदानियों ने ही राष्ट्रीय चरित्र की अवधारणा को अभिव्यक्ति दी। यह संग्राम हिंदू-मुस्लिम एकता का अद्वितीय उदाहरण था।

इन पत्रों के अलावा बुंदेलखंड और उससे जुड़े अंचलों में आज भी रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे द्वारा भारत से अंग्रेजों की बेदखली के लिए किए गए प्रयासों की किंवदंतियां लोक गीतों में प्रचलित हैं। बताते हैं,सर ह्यूरोज ने 22 मई 1858 को गोलावली की लड़ाई में राव साहब और झांसी की रानी की मिली-जुली फौज को हरा दिया था। तब ये दोनों भागकर करैरा और सुरवाया के जंगलों में होते हुए गोपालपुर पहुंचे। ग्वालियर से दक्षिण और पश्चिम में करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर घने वनप्रांतर में बसा है गोपालपुर। तात्या यहीं इन विभूतियों से जा मिले और मुक्ति के इन मतवालों ने ग्वालियर पर कब्जा करने की योजना बनाई। नष्ट हो चुके अस्त्र-शस्त्रों और साधनों की पूर्ति कर पाने का भी यही एक रास्ता था। 

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बंगाल विभाजन के विरुद्ध हो रहे आन्दोलन के दिनों में छह जुलाई, 1905 को नागपुर में कमल नामक बालिका का जन्म हुआ। तब किसे पता था कि भविष्य में यह बालिका नारी जागरण के एक महान संगठन का निर्माण करेगी।

कमल के घर में देशभक्ति का वातावरण था। उसकी माँ जब लोकमान्य तिलक का अखबार ‘केसरी’ पढ़ती थीं, तो कमल भी गौर से उसे सुनती और केसरी के तेजस्वी विचारों से प्रभावित होती । बचपन से ही वह अन्याय का विरोध करती थीं। नागपुर में कोई कन्या विद्यालय न होने के कारण कमल को मिशन स्कूल में पढ़ना पड़ा। एक दिन स्कूल के चर्च में प्रार्थना के समय कमल ने आंखें खुली रखीं तो अध्यापिका ने डांटा। इस पर कमल ने कहा, "मैडम! आपने भी तो आंखें खुली रखी होंगी, तभी तो आप मुझे देख सकीं।'

उसका विवाह 14 वर्ष की अवस्था में वर्धा के एक विधुर वकील पुरुषोत्तमराव केलकर से हुआ, जो दो पुत्रियों के पिता थे। उन बच्चियों को उन्होंने आजीवन अपनी पुत्री ही माना व उनके सर्वांगीण विकास की चिंता की | विवाह के बाद उसका नाम लक्ष्मीबाई हो गया। विवाह के उपरान्त वह वर्धा में महात्मा गांधी के आंदोलन से बहुत प्रभावित हुईं। गांधी जी के आश्रम में प्रार्थना सभा में सम्मिलत होना तथा चरखा कातना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। रूढ़िग्रस्त समाज से टक्कर लेकर उन्होंने घर में हरिजन नौकर रखे। गान्धी जी की प्रेरणा से उन्होंने घर में चरखा मँगाया। एक बार जब गान्धी जी ने एक सभा में दान की अपील की, तो लक्ष्मीबाई ने अपनी सोने की जंजीर ही दान कर दी।

किन्तु वह सोचती रहीं कि राष्ट्र-निर्माण में महिलाओं की भूमिका पर किसी का ध्यान क्यों नहीं गया? गांधीजी का यह कथन कि, "सीता के जीवन से राम का निर्माण होता है' स्वामी विवेकानन्द के विचार कि, "स्त्री-पुरुष पक्षी के दो पंखों के समान हैं', भागिनी निवेदिता का यह वाक्य कि, "जिनके मन में भारत माता के प्रति श्रद्धा है, वे लोग निर्धारित समय, निर्धारित स्थान पर एकत्रित होकर भारत माता की प्रार्थना करते हैं, तो वहां से शक्ति का स्रोत फूटता है'- ये उद्गार उनके मन में गूंजते रहते। इन सभी ने उनके मन में संगठन की प्रेरणा जगायी, किन्तु रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था कि क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए? 

अगले 12 वर्ष में लक्ष्मीबाई ने छह पुत्रों को जन्म दिया। वे एक आदर्श व जागरूक गृहिणी थीं। मायके से प्राप्त संस्कारों का उन्होंने गृहस्थ जीवन में पूर्णतः पालन किया। उनके घर में स्वदेशी वस्तुएँ ही आती थीं। अपनी कन्याओं के लिए वे घर पर एक शिक्षक बुलाती थीं। वहीं से उनके मन में कन्या शिक्षा की भावना जन्मी और उन्होंने एक बालिका विद्यालय खोल दिया।

1932 में उनके पति का देहान्त हो गया। अब अपने बच्चों के साथ बाल विधवा ननद का दायित्व भी उन पर आ गया। लक्ष्मीबाई ने घर के दो कमरे किराये पर उठा दिये। इससे आर्थिक समस्या कुछ हल हुई। इन्हीं दिनों उनके बेटों ने संघ की शाखा पर जाना शुरू किया। उनके विचार और व्यवहार में आये परिवर्तन से लक्ष्मीबाई के मन में संघ के प्रति आकर्षण जगा और उन्होंने संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार से भेंट की।

डा. हेडगेवार ने उन्हें बताया कि संघ में स्त्रियाँ नहीं आतीं, किन्तु उन्हें प्रथक संगठन बनाने हेतु प्रेरित किया | तब उन्होंने 1936 में स्त्रियों के लिए ‘राष्ट्र सेविका समिति’ नामक एक नया संगठन प्रारम्भ किया, जो बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रथम अनुसंग घोषित हुआ । जहां अन्य महिला संगठन अपने अधिकार के बारे में, अपनी प्रतिष्ठा के बारे में महिलाओं को जागृत करते हैं, वहीं राष्ट्र सेविका समिति बताती है कि राष्ट्र का एक घटक होने के नाते एक मां का क्या कर्तव्य है? समिति उन्हें जागृत कर उनके भीतर छिपी राष्ट्र निर्माण की बेजोड़ प्रतिभा का दर्शन कराती है। साथ ही अपनी परम्परा के अनुसार परिवार-व्यवस्था का ध्यान रखते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माण की भूमिका के प्रति जागृत करती है। समिति का ध्येय है कि महिला का सर्वोपरि विकास हो किन्तु उसे इस बात का भी भान होना चाहिए कि मेरा यह विकास, मेरी यह गुणवत्ता, मेरी क्षमता राष्ट्रोन्नति में कैसे काम आ सकती है।

वन्दनीया मौसी जी ने इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पद्धति पर राष्ट्र सेविका समिति का कार्य प्रारम्भ किया। समिति के कार्यविस्तार के साथ ही लक्ष्मीबाई ने नारियों के हृदय में श्रद्धा का स्थान बना लिया। सब उन्हें ‘वन्दनीया मौसीजी’ कहने लगे। आगामी दस साल के निरन्तर प्रवास से समिति के कार्य का अनेक प्रान्तों में विस्तार हुआ।

1945 में समिति का पहला राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ। देश की स्वतन्त्रता एवं विभाजन से एक दिन पूर्व वे कराची, सिन्ध में थीं। उन्होंने सेविकाओं से हर परिस्थिति का मुकाबला करने और अपनी पवित्रता बनाये रखने को कहा। उन्होंने हिन्दू परिवारों के सुरक्षित भारत पहुँचने के प्रबन्ध भी किये।

मौसीजी स्त्रियों के लिए जीजाबाई के मातृत्व, अहल्याबाई के कर्तृत्व तथा लक्ष्मीबाई के नेतृत्व को आदर्श मानती थीं। उन्होंने अपने जीवनकाल में बाल मन्दिर, भजन मण्डली, योगाभ्यास केन्द्र, बालिका छात्रावास आदि अनेक प्रकल्प प्रारम्भ किये। वे रामायण पर बहुत सुन्दर प्रवचन देतीं थीं। उनसे होने वाली आय से उन्होंने अनेक स्थानों पर समिति के कार्यालय बनवाये।

27 नवम्बर, 1978 को नारी जागरण की अग्रदूत वन्दनीय मौसीजी का देहान्त हुआ। उन द्वारा स्थापित राष्ट्र सेविका समिति आज विश्व के 25 से भी अधिक देशों में सक्रिय है। आज भले मौसी जी हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनके द्वारा रोपा गया यह पौधा आज विशाल वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। पहले राष्ट्र सेविका समिति की केवल शाखाएं लगती थीं किन्तु आज समिति द्वारा बहुमुखी कार्य किए जा रहे हैं। समिति के अनेक सेवा प्रकल्प हैं, जैसे-छात्रावास, चिकित्सालय, उद्योग-मन्दिर, भजन मंडल, पुरोहित वर्ग आदि। राष्ट्र सेविका समिति का कार्य केवल भारत में ही नहीं अपितु वि·श्व के दस देशों में फैला हुआ है। ब्रिटेन, अमरीका, मलयेशिया, डर्बन, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका में समिति की स्वयंसेविकाएं सक्रिय हैं। प्रत्येक स्त्री दुर्गा का रूप है। उसे अपनी शक्ति पहचानने की आवश्यकता है। उसके इन गुणों को विकसित करने के लिए उचित वातावरण की आवश्यकता है। समिति अपनी शाखाओं में यह वातावरण देने का प्रयास करती है। समिति की शाखा ऐसी दृढ़निश्चयी कार्यकर्ताओं के निर्माण की कार्यशाला है।


 प्राचीनतम काल में योगी-महर्षि वस्तुतः वैज्ञानिक गतिविधियों में संलग्न होते थे ! उनके द्वारा बहुत गहन अनुसंधान किया जाता था जिसे आप तपस्या भी कह सकते हैं ! इसी तपस्या के बल पर वे चौंकाने वाले तथ्यों की खोज करने में सक्षम होते थे ! आइए आज हम आपको कुछ ऐसी नई जानकारियां देते हैं, जिन्हें जानकर आपको भारतीय पौराणिक कथाओं और ज्ञान-विज्ञान पर अगाध निष्ठा हो जाएगी !

विज्ञान की दृष्टि से ही नहीं वरन् ज्योतिष के क्षेत्र में भी सौर मंडल बेहद अहम भूमिका निभाता है ! सौर मंडल के ग्रहों के अनुरूप ही ब्रह्मांड का कार्य सुचारू रूप से चलता है यहां तक कि ग्रह भी अन्य ग्रहों के प्रभाव से अछूते नहीं रहते ! धरती, जो कि सौरमंडल का ही एक ग्रह है भी अन्य ग्रहों के प्रभाव से अनछुआ नहीं है !

यह तो हुआ वैज्ञानिक पक्ष लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी सभी 12 राशियां भी इन ग्रहों से प्रभावित होती हैं ! उल्लेखनीय है कि कई हजार साल पहले जब सौरमंडल की खोज नहीं हुई थी तब तक यही माना जाता था कि ऐसी कोई भी व्यवस्था है ही नहीं ! लेकिन जैसे-जैसे सौर मंडल के अस्तित्व से जुड़े राज खुलने लगे, वैसे-वैसे यह महसूस किया जाने लगा कि इसके बिना धरती क्या इंसान का भी कोई वजूद नहीं है !

कथित तौर पर सौर मंडल की खोज के कई वर्षों बाद वैज्ञानिकों ने यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो की खोज की थी ! दस्तावेजों के अनुसार 13 मार्च, 1781 ईसवी को विलियम हर्शल ने टेलिस्कोप के जरिए यूरेनस को खोजा था ! वहीं कुछ महीनों बाद जर्मनी के खगोल शास्त्री जोहान गैल और उनके शिष्य हेनरिक लूइस ने नेप्च्यून के अस्तित्व से पर्दा हटाया ! प्लूटो की खोज तो खैर आधुनिक युग में की गई है ! इसलिए यह सौर मंडल का सबसे कम उम्र का ग्रह कहा जाता है !

लेकिन पौराणिक दस्तावेज इन सभी बातों को बहुत पीछे छोड़ देते हैं ! आपको जानकर हैरानी होगी कि वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत में स्वयं उन्होंने इन तीनों ग्रहों का वर्णन किया था ! हालांकि वेद व्यास ने इन तीनों ग्रहों को अलग-अलग नाम दिए थे लेकिन अपने ग्रंथ की रचना के दौरान उन्होंने इन तीनों ग्रहों को अलग-अलग नाम दिए थे ! 

वेद व्यास ने महाभारत की एक पंक्ति में उल्लेख किया है ‘एक हरे-सफेद रंग का ग्रह चित्रा नक्षत्र के पास से गुजरा है’ ! इसके अलावा सत्रहवीं शताब्दी के मध्य वाराणसी में रहने वाले महान पंडित नीलकंठ चतुर्धर को भी यूरेनस या श्वेत के बारे में जानकारी थी ! उल्लेखनीय है कि यूरेनस का रंग हरे और सफेद का मिश्रण है ! महाभारत को अपने शब्दों में बयां करते हुए नीलकंठ ने इस बात का जिक्र किया था कि श्वेत या महापात (ऐसा ग्रह जिसकी कक्षा सबसे बड़ी हो), खगोलशास्त्र का बेहद महत्वपूर्ण और चर्चित ग्रह है ! इसके अलावा नीलकंठ ने यह भी जिक्र किया था कि श्वेत ग्रह शनि या सैटर्न के पार है ! वहीं श्याम (नील और सफेद रंग का मिश्रण) या नेपच्यून ज्येष्ठा नक्षत्र में था और यह ग्रह धुएं से भरा है ! अब आप सोचेंगे कि व्यास को इन ग्रहों के रंग का कैसे पता चला तो इसका जवाब भी महाभारत में छिपा है ! महाभारत के अंदर शीशों और सूक्ष्म दृष्टि का जिक्र भी किया गया है ! इसके अलावा पौराणिक साहित्यों में दूरबीनी यंत्र का भी जिक्र है, जिसकी सहायता से दूर की चीजों को देखा जा सकता था !

इसलिए यह माना जा सकता है कि उस दौर में भी लेंस और टेलिस्कोप की सुविधा मौजूद थी ! महाभारत काल के दौरान कृत्तिका और यह तीक्ष्ण ग्रह एक-दूसरे के संयोजन में थे ! कुरुक्षेत्र युद्ध के 16वें दिन यह कहा गया था कि सातों ग्रह, सूर्य से दूर जा रहे हैं, चूंकि राहु और केतु जिनके पास शरीर नहीं सिर्फ परछाई है, को नजरअंदाज किया जा सकता है ! यह कथन स्पष्ट करता है कि महाभारत काल के दौरान भी अन्य तीन ग्रहों यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो अस्तित्व में थे ! महर्षि व्यास के अनुसार सभी सातों ग्रह बेहद प्रभावशाली और महत्वपूर्ण थे ! लेकिन प्लूटो, जो कि धरती से काफी दूर था, धरती पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल सकता था इसलिए इसे नजरअंदाज ही किया जाता था !