Wednesday 30 November 2016

10 लाख सालों में एक ही समय पर इतना सारे महान वैज्ञानिक कैसे पैदा हो गए.
ये सच्चाई सब भारतीय शेयर करे::
मानव इतिहास के 10 लाख सालों में एक ही समय पर इतना सारे महान वैज्ञानिक कैसे पैदा हो गए..न इससे पहले न इसके बाद कोई नया मौलिक सूत्र या नया नियम नहीं आया!!
--( ये सवाल बिलकुल वाजिब है । हमारे मन में भी यह सवाल उठा था लेकिन आगे की बात पढी तो किस्सा समझ में आ गया ।)----
ऐसा लगता है जैसे उस समय ब्रिटिश, पड़ोसी व मित्र देशों में विज्ञान की लौटरी लग गई हो!! ये सवाल तो कोई हिन्दुस्तानी ही उठा सकता है... समझदार लोग अपने ऊपर गर्व करें ..बाकी पुरातन भारत का इतिहास पढ़े ...कुछ प्रारंभिक तथ्य प्रस्तुत है -
जिस समय न्यूटन के पूर्वज जंगली लोग थे, उस समय महर्षि भाष्कराचार्य ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर एक पूरा ग्रन्थ रच डाला था किन्तु आज हमें सिखाया जाता है कि ब्रिटेन के उस वैज्ञानिक ने ये बनाया जर्मनी के उस वैज्ञानिक ने वो बनाया ....
जबकि सच ये है कि भारत से चुरा कर ले जाए महान ग्रन्थ इन लोगो के हाथ लग गए थे जिनकी कदर उस समय के भारतीय नही रहे थे..और ये उन पर टूट पड़े ..उन्होने इन ग्रंथो के श्लोको को पूरी तरह खगोल दिया और इनमें छुपे रहस्यो को उजागर कर अपने नाम से दुनिया के आगे पेश किया.... हमारे विज्ञान में कोई पेटेंट कराने की जरूरत नहीं थी क्यूंकि तब ब्रह्माण्ड के रहस्य हम ही जानते थे किन्तु चोर ने जब चोरी कर ली ...तो चोरी के माल को अपना बताने के लिए वो कागजी रजिस्ट्रेशन का सहारा लेने लगा ....
आप को अचरज हुआ लेकिन ये सच्चाई है । वो रेनेसां पिरियड था, युरोप में नव जागृति काल । प्रिन्टिंग टेक्नोलोजी और प्रिन्ट मिडिया आ जाने से सामान्य मानवी तक ज्ञान पहुंचने लगा । पढाई लिखाई पर ध्यान गया, बडे बडे पुस्तक छपने लगे, बडे बडे विचारक पैदा होने लगे, बुध्धिजीवियों के क्लब खूलने लगे । आज की तरह ऐसा नही होता था की मायकल दारू पी के दंगा करते थे । वो सब आपस में मिल के ज्ञान की, अपने नए विचार की, अपनी नयी खोज की बातें करते थे । नया ज्ञान था ना, तो उत्साह था । उस युग को ज्ञान का विस्फोट युग भी कहा जाता है । आज की दुनिया को जो भी अच्छा बुरा मिला उस समय का परिणाम है ।
भारत के विज्ञान के लिए इस तरह इतराना ठीक नही । उन लोगों के पूरखें भी सनातनी हिन्दु ही थे, हिन्दु ज्ञान उनकी लाइब्रेरी में पहले से ही मौजुद था, उन की युरोपिय भाषा में ही था सब । ग्रीस का हिन्दुत्व सायन्स पर ज्यादा भार देता था, भगवान कृष्ण का हिन्दुत्व था । द्वारिका डुबने से पहले भगवान के वारिस यादव सेना लेकर ग्रीस तक अश्वमेध का घोडा लेकर चले गए थे । भारत के धनपतियों ने इजराईल के धनपतियों की संगत में आकर सोने के सिक्कों के बल पर भारत के हिन्दुत्व को आसमान की सैर करने को भेज दिया, योग और झूठे चमत्कारों में डाल दिया । जब की जमीनी काम के लिए ग्रीस और युरोप के हिन्दुत्व को खतम करने के बाद धनपतियों के प्यादे इसाईयों ने हिन्दुओं का सायन्सवाला हिस्सा अपने पास रख लिया और बाकी बहुत सा ज्ञान एलेक्जांड्रिया लाईब्रेरी में था वो पूरी लायब्रेरी ही जला डाली ।
पता नही कब भारत के लोग आसमान से जमीन पर आएंगे । अपना संभाल नही सके और दुसरे लोग करते हैं तो अपना होने का दावा ठोक देते हैं । वो भी सनातनी लोगों के वारिस है, धनपति राक्षसों ने उनकी आस्था बदल दी है और हिन्दुओं के दुश्मन बनाकर अपने पक्ष में कर लिए हैं ।
ये सत्य है उस नव जागृतिकाल में बडे बडे विज्ञानिक और विचारक पैदा हो गए थे लेकिन तुरंत ही धनपति राक्षस डर गए थे और हरकत में आ गए थे । अच्छे अच्छों को खरीद लिया और मिडिया को अपने कंट्रोल में कर लिया था । विज्ञानिकों को अपने नौकर बना कर अपने व्यापार हेतु खोजबीन करवाने लगे जो आज तक जारी है । बुध्धिजीवियों को खरीद कर हिन्दुत्व खतम करने के काम में लगा दिया ।
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दोनो की बात अपने अपने हिसाब से सही है । कुछ ही समय में इतने विज्ञानिक पैदा कैसे हो सकते थे !
महान विज्ञानिक निकोला टेस्ला प्रेरणा के लिए एक ग्रंथ हाथ में लेकर बैठा रहता था । वो कोइ इसाई का लिखा ग्रन्थ नही था, हिन्दु ग्रंथ था । हमारा हिन्दुत्व या उनका हिन्दुत्व कहने का कोइ मतलब नही है । हिन्दुत्व सनातन है और सर्वव्यापी था । आज उसका व्याप घटकर आधे भारत में भी नही रहा है ।
हिटलर का स्वस्तिक भी उसके पूरखों का था । हिटलर खुद को आर्य कहता था उसने खुदको उन्होंने अपने किताब "हिटलर एंड हिज गॉड" में आप पढ़ सकते हैं उन्होंने हिन्दू होने का प्रमाण दिया हैं ।
हिन्दुस्थान वालों को समझना चाहिए कि चीजे भारत की ना कह कर सनातन की है ऐसा मानना चाहिए । युरोप और मिडल इस्ट भी कभी हिन्दुओं का स्थान था । अगर आज भी नही संभले, जमीन पर नही आए तो ये व्यापारियों का दानव समाज हमारे बचे हुए सनातन के रत्न भी छीन लेंगे । —

Tuesday 29 November 2016


भाग्यलक्ष्मी के भव्य मंदिर को तोड़कर बनाया गया था हैदराबाद का चार मीनार ।

हैदराबाद चारमीनार के निकट देवी मां भाग्यलक्ष्मी मंदिर के सुरक्षा समिति के अध्यक्ष श्री भगवंत राव ने कहा कि चारमीनार के निर्माण के पूर्व से ही इसी स्थान पर मूसी नदी के पूर्वी तट पर हिंदुओं का विजयनगर साम्राज्य था।

जिसका 1518 में इसका विघटन हो गया, उन्हीं हिन्दू राजाओं ने अपनी कुल देवी मां भाग्यलक्ष्मी का भव्य मंदिर बनवाय था। उस हिंदुओं के मूल भव्य मंदिर को नष्ट करके तत्कालीन सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह (1580-1612 ई.) जोकि कुतुब शाही वंश के पांचवें शासक थे। उन्होंने वर्ष 1589 में इस भव्य मंदिर को तुड़वा कर इस्लाम की स्थापना के 1000वर्ष ( सहस्त्राब्दी वर्ष ) पूर्ण होने की खुशी में चार मीनार मस्जिद की स्थापना करवाई थी।

जिसके परिणाम स्वरुप देवी मां भाग्यलक्ष्मी नाराज हो गई और उन्होंने तत्कालीन नगर भागवती (वर्तमान का हैदराबाद ) में प्लेग का प्रकोप फैला दिया। जिससे हजारों मुसलमान प्लेग के प्रभाव में आकर मर गए। वह चार मीनार मस्जिद तीन वर्षों में बन कर वर्ष 1591 पूरी हुई थी। उस समय इस शहर का नाम भी भाग्यनगर था।

इतिहासकार यह भी बतलाते हैं कि देवी मां भाग्यलक्ष्मी मंदिर के अंदर से 12 किलोमीटर तक गोलकुंडा फोर्ट ( गोलकुंडा किला ) तक एक भूमिगत अत्यंत चौड़ी सुरंग भी थी, यह इतनी चौड़ी व गहरी पक्की सुरंग थी जिस पर एक साथ दो घुड़सवार चल सकते थे।इतिहासकारों का कहना है कि हो सकता है उस समय गोलकुंडा फोर्ट के तत्कालीन हिन्दू शासकों ने आपत्ति काल में किले से बाहर निकलने के लिए इसे बनवाया होगा।

इतिहासकार मसूद हुसैन खान का कहना है कि सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने इसी स्थान पर रानी भागमती को पहली बार देखा था, उससे प्रेम हो गया, उसने रानी को इस्लाम धर्म कुबूल करवाकर उससे निकाह कर लिया और रानी का नाम हैदर महल रख दिया। कुछ समय बाद इस नगर का नाम भाग्यनगर के स्थान पर प्रेमिका के नाम पर हैदराबाद रख दिया अर्थात बेगम हैदर महल द्वारा आवाद किया गया शहर।

कुतुब शाह ने अपने एक पुत्र का नाम हैदर शाह भी रखा था।जिसने भाग्यनगर का विस्तार करने के लिए बहुत ही अच्छे किस्म के उपवन और पक्की सड़कों का निर्माण करवाया था और अन्य स्थान से लोगों को लाकर वहां पर भूमि और रोजगार भी उपलब्ध करवाया था।

चारमीनार नाम दो शब्दों ‘चार’ और ‘मीनार’ को जोड़ कर बनाया गया है, जिसका शाब्दिक अनुवाद है ‘चार खंभे’।मुसलमानों के अनुसार हज़रत अली सहित इस्लाम में पहले चार खलीफ़ा (अबु बक़र, उमर,उस्मान तथा हज़रत अली) हुये हैं जिसकी याद में चार मीनारों वाली “चार मीनार” बनायी गई थी।वर्तमान में चारमीनार के स्थान पर स्थापित देवी मां भाग्यलक्ष्मी के मंदिर को चारमीनार के निकट ही स्थापित कर दिया गया है जिसको लेकर समय-समय पर कई विवाद होते रहते हैं।हिंदुओं का कहना है कि यह स्थान हमारे पूर्वजों का है जिसमें देवी मां भाग्यलक्ष्मी का मंदिर स्थापित था जबकि मुसलमानों का दावा है कि इस स्थान पर वर्ष 1591 में हमारे मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह ने चारमीनार मस्जिद स्थापित करवाया था।

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) के अनुसार, चारमीनार के बारे फ़िलहाल यह रिकॉर्ड दर्ज किया गया है तत्कालीन मुस्लिम शासक सुल्तान मोहम्मद कुली कुतुब शाह के शासनकाल में हैदराबाद शहर में बहुत बड़े स्तर पर प्लीग फैल गया था(मां भाग्यलक्ष्मी के मंदिर को तोड़ने के बाद) जिससे हजारों लोगों की मृत्यु हो गई थी इससे घबराकर तत्कालीन शासक मैं अल्लाह से दुआ मांगी और प्लीग ठीक हो गया अत: शासक ने अल्लाह को धन्यवाद देने के लिए चारमीनार का निर्माण करवाया था।
13वी शताब्दी में बादशाह तुगन खान ने उडीसा पर हमला कियाl उस समय वहां पर राजा नरसिम्हादेवा का राज थाl राजा नरसिम्हादेवा ने फ़ैसला किया कि मुसलमानो को इसका जवाब छल से दिया जाना चाहियेl उन्होने तुगन खान को ये संदेश दिया कि वो भी बंगाल के राजा लक्ष्मणसेना की तरह समप्रण करना चाहते हैंl जिसने बिना युद्ध लडे तुगन खान के सामने हथियार डाल दिये थेl

तुगन खान ने बात मान ली और कहा कि वो अपना समप्रण "पूरी" शहर में करे, इस्लाम कबूल करे और जगन्नाथ मंदिर को मस्जिद में बदल देl

राजा नरसिम्हादेवा ने बात ली और इस्लामिक लश्कर पूरी शहर की तरफ़ बड़ने लगी , इस बात से अन्जान कि ये एक जाल हैl राजा नरसिम्हादेवा के हिंदू सैनिक शहर के सारे चोराहो , गली के नुक्कड़ ओर घरों में छुप गयेl

जब तुगन खान के इस्लामिक लश्कर ने जगन्नाथ मंदिर के सामने प्रवेश कियाl उसी समय मंदिर की घंटिया बजने लगी ओर हिंदू सैनिको ने इस्लामिक लश्कर पर हमला कर दिया , दिनभर युद्ध चलाl ज्यादातर इस्लामिक लश्कर को कब्जे में कर लिया गया ओर कुछ भाग गयेl इसलिये आज भी औडिसा में मुस्लिम जनसंख्या कम हैl इस तरह की युद्धनीति का उपयोग पहले कभी नहीं हुआ थाl किसी हिंदू राजा द्वारा जेहाद का जवाब धर्मयुद्ध के द्वारा दिया गयाl
राजा नरसिम्हादेवा ने इस विजय के उपलक्ष्य में " कोनार्क " मंदिर का निर्माण कियाl


कैसे सोलंकी वंश की एक हिन्दू प्रतीक मस्जिद बन गया!
Rudramahalaya, का भव्य और प्राचीन 12 वीं सदी मे मंदिर भगवान शिव को समर्पित siddhpur में अवस्थित है, पाटन जिला गुजरात । इस भव्य मंदिर विशाल वास्तुकला था, जटिल नक्काशियां और रूद्र ने पृथ्वी को समर्पित, शिव का एक खूँखार रूप है । यह के बीच बनाया गया था (1094-1143) को सोलंकी वंश के राजा जयसिम्हा siddharaja द्वारा ।
Siddhpur की विचित्र बस्ती के महान राजा जयसिम्हा siddharaja, जो इस भव्य शिव मंदिर का निर्माण के नाम पर रखा गया था । The सोलंकी वंश के शासन के दौरान मेँ की क़ौम के लोगों को धन और समृद्धि की पर्याप्त मात्रा में मज़ा आया, जयसिम्हा siddharaja के समय के दौरान विशेष रूप से ।
Siddhpur के प्रमुख मंदिर संसाधनों की एक बहुत बड़ी उपलब्धि और 1600 स्तंभों, 18000 मूर्तियों, 17000 ध्वज और प्रशंसा की तराशी हुई साथ में बनाया गया था "toran" या विशाल और अलंकृत प्रवेश द्वार होते हैं ।
Rudramahalaya मंदिर बहुत ही विशाल था, अमीर और समृद्ध मंदिर 12-15 वीं शताब्दी तक. यह तो दिया गया था और बेरहमी से बलपूर्वक, इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा एक और मस्जिद में बदल दिया गया था ।
मुहम्मद गौरी की लूट, मानकर desecrated और grandest और अधिकतर वास्तु-12 वीं शताब्दी में rudramahalaya मंदिर से नष्ट कर दिया । के प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर को नष्ट करने के लिए वह गया था रास्ते में ।
भारत के अपने आक्रमण, मुहम्मद गौरी की, और उनके साथी मुगलों अपने प्रयास इस्लामी धर्म को स्थापित करने और उपमहाद्वीप के कानून में अनेक हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया है । मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा ढंग से मंदिरों और धार्मिक पूजा स्थान को नष्ट करने के द्वारा हिन्दू धर्म, संस्कृति, परंपरा, इतिहास, साहित्य, भाषा, धरोहर, विरासत, और पूरा हिन्दू grand बयान करने की कोशिश की गयी है.
मंदिर के आगे अधिक विनाश और ulugh खान जैसे मुगल-पुर्तगाली गठबंधन के हाथों को लूटना 1297-98 ई. में लगाया गया था और फिर से द्वारा अहमद 1415 ई. में शाह.
इस विशाल मंदिर संरचना के पश्चिमी हिस्से को बाद में एक जामा मस्जिद में बदल दिया गया था ।
साइट के प्रवेश द्वार पर शिलालेख कि जामा मस्जिद औरंगजेब के शासनकाल में सन् 1645. में बनाया गया था, लेकिन यह है कि औरंगजेब शासन नहीं किया 1658 यहाँ तक कि राजा के रूप में, लगभग 13 वर्ष बाद ध्यान देना आवश्यक सुझाव दें । यह एक मस्जिद में से है कि siddhpur क्रेडिट के अक्सर स्थानीय लोगों के निर्माण औरंगजेब को । औरंगजेब, अनेक हिंदू मंदिरों और महलों के शासनकाल में, दक्षिण पठार और उसके आसपास के क्षेत्रों में, विशेष रूप से नष्ट कर दिया गया है यह बात नहीं है. ये मंदिर बाद में लूट रहे थे, और माल मस्जिदों में हिंदू संरचना में बदलें का प्रयोग किया गया था । को नष्ट कर दिया मंदिर साइट से भी कच्चे माल को अधिक मस्जिदों के निर्माण के लिए उपयोग किया गया है ।
http://www.jewsnews.co.il/2016/11/28/survivor-of-islamic-terror-explains-how-radical-islam-plans-to-destroy-america-from-inside.html
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http://www.jewsnews.co.il/2016/11/28/survivor-of-islamic-terror-explains-how-radical-islam-plans-to-destroy-america-from-inside.html
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http://www.jewsnews.co.il/2016/11/28/survivor-of-islamic-terror-explains-how-radical-islam-plans-to-destroy-america-from-inside.html

जलती चिता में गिरी गाय को बचाने कूदा जवान, कहा- मां को कैसे छोड़ देता ...

देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी के हरिश्चंद्र घाट पर एक जवान ने गो माता की जान बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी। जवान एस चौहान गाय को बचाने के लिए जलती चिता में कूद गया।
जवान एस चौहान की बहादुरी व गो माता के प्रति श्रद्धा देखकर हरिश्चन्द्र घाट पर मौजूद लोग दंग रह गए। जवान ने काफी मशक्कत के बाद चिता से गाय को बाहर निकाला। फिर पशु चिकित्सक को बुलाकर गाय का उपचार कराया गया। 
सीआरपीएफ के जवान एस चौहान ने बताया कि हम श्मशान पर यहां पार्थिव शरीर के अंतिम संस्कार में शामिल होने आए थे, तभी देखा कि लगभग दस फ़ीट ऊंचाई से सरकते हुए अचानक एक गाय जलती चिता पर आकर गिर गई। इसके बाद वहां हड़कम्प मच गया। 
जवान एस चौहान ने कहा कि लोग कह रहे हैं कि मैंने अंगारों पर पांव रखकर उसे बाहर निकाला। मैं ऐसा क्यों नहीं करता, गाय हमारी माता है। अगर मां खतरे में हो, तो बेटे का फर्ज है उसकी रक्षा करना।वहीं घाट के रहने वाले पप्पू का कहना है कि यहां अक्सर ऐसे हादसे हो रहे हैं क्योंक़ि आवारा पशुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस बारे में कई बार नगर निगम प्रशासन को अवगत कराया गया, लेकिन उनकी ओर से अब तक कोई पहल नहीं की गई है। 

रहस्यमय कुआं: जमीन के अंदर से निकलती है रोशनी, मनोकामनाएं भी होती हैं पूरी ...

पुर्तगाल के सिन्तारा में एक ऐसा कुआं हैं, जिसमें जमीन के अंदर से रोशनी आती। इस कुएं में खास बात ये है कि अंदर से आने वाली रोशनी बाहर की ओर आती है। हैरानी की बात यह है कि इस कुएं के अंदर प्रकाश की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में रोशनी कहां से आती है यह रहस्य है। 
यह कुआं क्यूंटा डा रिगालेरिया के पास है। इस कुएं की गहराई चार मंजिला इमारत के बराबर है, जो जमीन के अंदर जाते हुए संकरी होती जाती है। लेडीरिनथिक ग्रोटा नाम का यह कुआं दिखने में उल्टे टावर की तरह है। इसे विशिंग वेल भी माना जाता है। 
यहां आने वाले लोग इसमें सिक्का डालकर मन्नत मांगते हैं। इनका मानना है कि ऐसा करने से इच्छा पूरी होती है। हालांकि, जो भी पर्यटक यहां घूमने आते हैं, उनके बीच हमेशा यह सवाल उठता है कि कुएं के अंदर से आने वाली रोशनी कहां से आती है। लेकिन आज तक यह रहस्य अनसुलझा है।

600 आतंकियों ने पीएम मोदी के खौफ से आर्मी के सामने किया सरेंडर ...

 नोटबंदी के फैसले का असर नक्सलियों पर खूब पड़ा है। पिछले 28 दिनों में लगभग 600 नक्सलियों और उनके समर्थकों ने सरेंडर किया है। यह अबतक किसी एक महीने में सरेंडर किए नक्सलियों की सबसे बड़ी संख्या है। पिछले 28 दिनों में लगभग 600 नक्सलियों और  उनके समर्थकों ने सरेंडर किया है। यह अबतक किसी एक महीने में सरेंडर किए नक्सलियों की सबसे बड़ी संख्या है। हालांकि इसमें सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस की नियमित कार्रवाई की अहम भूमिका है। फिर भी छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में हुए सरेंडर पर नोटबंदी का असर भी माना जा रहा है। 
अधिकारियों के मुताबिक सरेंडर करने वाले 600 नक्सलियों और उनके समर्थकों में से 469 तो केवल आठ नवंबर के बाद हुए हैं। अगर पिछले महीनों और सालों के दौरान के आंकड़ों को देखें तो इतने कम समय में इतना अधिक सरेंडर देखने को नहीं मिला।
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Saturday 26 November 2016

तमिलनाडु में नेता के घर से बरामद हुए हैं पूरे 40 हजार करोड़ रुपए इतना पैसा एक नेता ने अपने घर में रखा था। मित्रों जो माननीय पीएम मोदी जी ने नोटबंदी का फैसला बहुत सोच समझकर किया है । देश के लिए ऐसे ही सख्त फैसले लेने की जरुरत थी । और आगे भी माननीय प्रधानमंत्री जी और अच्छा करेंगे ।आपसभी देश को लूटने वाले विरोधी दल के चमचे के बहकावे मे मत आना माननीय मोदी जी को समर्थन दें ।...अभिरुणी झा

किसान की बेटी की शादी हो सके, इसलिए गांव वालों ने बैंक की लंबी लाइनों में लगकर निकाला कैश...

केंद्र सरकार का नोटबंदी फैसला पिछले कुछ दिनों में देश के सबसे विवादास्पद फैसलों के रुप में सामने आया है. कई लोग जहां इसे बेहतरीन फैसला मानते हुए सरकार के कदम का समर्थन कर रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार को देश के कई हिस्सों से लोगों के जबरदस्त आक्रोश का सामना भी करना पड़ा है. लेकिन इस पूरी व्यवस्था में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने इंसानियत का नायाब नमूना पेश किया है.
शादी के सीज़न में नोटबंदी के फैसले के बाद ऐसे लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनके घर-परिवार में शादी होने जा रही है. भारत में वैसे भी शादी पर होने वाला खर्च मामूली नहीं होता है. शादी से जुड़ी हर रस्म में अच्छी खासी धनराशि की ज़रूरत पड़ती ही हैं, ऐसे में इस गांव के लोगों ने जो कुछ किया, वह अपने आप में एक मिसाल है
कोल्हापुर के यालगुड गांव में भी एक परिवार को कैश न होने की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था. दरअसल इस परिवार में कुछ ही दिनों में शादी होने वाली थी और ज़्यादातर पैसा बैंक में होने की वजह से सयाली की फैमिली बेहद परेशान थी. लगभग तीन महीने पहले महाराष्ट्र के एक शख्स के साथ तय हुई इस शादी पर नोटबंदी की वजह से संकट के बादल छाने शुरु हो गए थे.
अपनी शादी की तैयारियों में जुटी सयाली को जब इस बारे में पता चला तो वह काफी परेशान हो गई. लेकिन स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सयाली के ज्यादातर परिचितों ने कमाल का उदाहरण पेश किया. सयाली की शादी में कैश की कोई दिक्कत न हो, इसके लिए उसके दोस्तों, रिश्तेदारों और गांव के कुछ लोगों ने बैंक की लाइन में लगने का फैसला किया, ताकि शादी से जुड़ी तैयारियों में पैसों की वजह से कोई परेशानी न आए. जाहिर है, सयाली और उनके किसान पिता लोगों की इस मदद से बेहद खुश थे.
नोटबंदी की मुश्किल परिस्थितियों में गांव के लोगों का सयाली की मदद के लिए आगे आना दर्शाता है कि लोग आज भी दूसरों के दुखों को लेकर संवेदनहीन नहीं हुए हैं और अगर एकजुट होकर किसी परेशानी का सामना किया जाए तो निश्चित तौर पर किसी भी कठिनाई का समाधान निकाला जा सकता है. 

"मिथ्या-आत्माभिमान का परित्याग किये बिना सत्य को देख पाना असंभव है।
यथार्थ के रूप में सत्य प्रत्यक्ष है पर उसकी विविधताएं केवल उसके प्रति विविध दृष्टिकोण का परिणाम है, ऐसे में, सत्य की दिव्यता से यदि हम प्रतिरक्षित हैं तो केवल इसलिए क्योंकि अभी तक हमें सत्य की वास्तविकता को बोध ही नहीं; सत्य को जानने के बजाये जब तक हम अपने समझ से सत्य की व्याख्या करते रहेंगे, हम अपने निष्कर्ष से अपने विवेक के स्तर का ही परिचय देंगे।
आखिर ऐसी शिक्षा व्यवस्था का क्या लाभ जो व्यक्ति को उसके सत्य से ही वंचित रखें, फिर चाहे जितने भी डॉक्टर, वकील, इंजीनियर या मेनेजर हम क्यों न बना लें.. जब तक हम अच्छा इंसान बनाना नहीं सीखते, हम राष्ट्र के रूप में अपने परम वैभव को नहीं प्राप्त कर सकते।
दिव्यता के अनुसरण से बेहतर दिव्यता की अनुभूति होगी और यह तभी संभव है जब हम यथार्थ में सत्य का अनुसरण करने के बजाये सत्यनिष्ठ आचरण द्वारा आदर्श का व्यावहारिक उदाहरण बनें।
गलतियां करना मानवीय प्रवृति है पर गलतियों को मान लेने से कोई छोटा नहीं बल्कि बड़ा बनता है क्योंकि तब, न केवल गलतियों के सुधार की सम्भावना भी खुलती है बल्कि अपने अनुभव से ज्ञान के स्तर का भी विकास होता है ; जब तक हम अपनी गलतियों को मानने के बजाये उसे अपने कुतर्कों से सही सिद्ध करने का प्रयास करते रहेंगे, न केवल हम समस्याओं को जटिल बनाते रहेंगे बल्कि अपने प्रयास से अपनी ही मूर्खता को ही सिद्ध करते रहेंगे। फिर सत्य के विषय का सन्दर्भ चाहे जो हो;अगर वर्त्तमान के राष्ट्रीय परिदृश्य की बात करें तो जो हो रहा है, सब के सामने है, फिर भी अगर सत्य की स्वीकृति से बहुमत को समस्या हो तो परिस्थितियों की विषमता के लिए भाग्य को दोष देना व्यर्थ होगा ;
जब समय ने 'इण्डिया' को 'भारत' बनाने का अवसर हमें प्रदान किया तो हम क्या कर रहे हैं... भारत को बाजार और भारतवासियों को उपभोक्ता बनाया जा रहा है; अगर पूंजीवाद का उपनिवेश बनकर ही भारत का विकास होना था तो हमारे स्वतंत्रता और स्वतंत्रता संग्राम का कोई औचित्य ही नहीं । हमें क्या करना था और हम कर क्या रहे हैं यह किसे स्पष्ट नहीं पर अगर मिथ्या आत्माभिमान के प्रभाव में हमें सत्य की स्वीकृति से ही समस्या हो तो इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे ;
संघर्ष करने वालों ने तो ब्रिटानिया हुकूमत से लड़कर देश को स्वाधीन करा दिया पर अगर आज हम पूंजीवाद के स्वदेशी संस्करण के अधीन हैं तो इसका यही तात्पर्य है की हमारे राष्ट्र भक्ति को राजनीति ने इतना विकृत कर दिया है की हमारे पौरुष में इतना सामर्थ ही नहीं बचा की हम सत्य के लिए संघर्ष कर सकें, तभी, वर्त्तमान की विवशता को व्यावहारिक मानकर हम स्वयं को उसके अनुकूल करने का प्रयास कर रहे हैं;
सचमुच, व्यक्तिगत आकांक्षा राष्ट्र की आवश्यकता पर इतनी हावी कभी न थी, परिस्थितियों से बेहतर सत्य के सत्यपान की कोई अन्य विधि नहीं; अगर अब भी हम नहीं सम्भले तो बहोत देर हो जायेगी।"

Wednesday 23 November 2016

स्कूल दूर था, ऐसे में ओडिशा की छात्रा ने खोज की हवा से चलने वाली साइकिल...

‘आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है’, ये वाक्य तो काफ़ी प्रचलित है. अगर इसी वाक्य को ऐसे कहें कि ‘मज़बूरी भी आवश्कता की जननी है,’ तो कहना गलत ना होगा. इस बात को यथार्थ करने के लिए हम आपको एक स्टोरी से रू-ब-रू करवाने जा रहे हैं. 
सभी बच्चों की चाहत होती है कि वो स्कूल जाएं, मगर उसकी ये चाहत नहीं होती है कि वो दूर पैदल चल कर स्कूल जाए. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी देश में कई ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें साइकिल से स्कूल जाना पड़ता है. गर्मी हो या बरसात, हर समय में साइकिल में पैडल मारना पड़ता है. सभी बच्चों की तरह ओडिशा की 14 साल की छात्रा तेजस्विनी प्रियदर्शनी भी साइकिल से स्कूल जाती थी. स्कूल दूर होने के कारण वो काफ़ी थक जाती थी. ऐसे में उसने एक ऐसी साइकिल की खोज की, जो बिना पैडल की है. यह एक ऐसी साइकिल है, जो हवा से चलती है. यह सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, मगर ये शत-प्रतिशत सच है. राउरकेला के सरस्वती शिशु विद्या मंदिर की 11वीं की छात्रा तेजस्विनी की खोज से पूरे राज्य में ख़ुशी की लहर है.
कैसे मिला Idea?
तेजस्विनी को पहली बार इसका विचार तब आया, जब वह साइकिल रिपेयर की दुकान पर गई थी. उसने देखा कि कैसे मैकेनिक साधारण-सी एयर गन का इस्तेमाल कर साइकिल के टायरों की गांठें सुलझाते हैं. उसने सोचा कि अगर एयर गन यह काम कर सकती है तो इससे साइकिल भी चल सकती है. उसने अपना आइडिया अपने पिता नटवर गोच्चायट के साथ साझा किया, जिन्होंने बेटी को प्रेरित किया और जरूरी सामान दिलवाया.
क्या है इनोवेशन?
साइकिल में एयर सिलेंडर लगा हुआ है.
एयर सिलेंडर की मदद से साइकिल चलने लगती है.
साइकिल में 6 गियर लगे हुए हैं.
साइकिल में एक स्टार्टिंग नॉब है.
एक सेफ्टी वॉल्व भी है जो अतिरिक्त एयर रिलीज़ करती है.
तेजस्विनी की खोज वाकई में अद्भुत है. उसके इनोवेशन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि दुनिया में कोयला, तेल, गैस, पेट्रोल और डीजल की खपत ज़्यादा हो रही है. यह खोज पूरे विश्व के लिए एक नई राह है.

Tuesday 22 November 2016

"बिना जीजाबाई के शिवाजी पैदा नही हो सकते॥"
एक मित्र हैं, पश्चिमी उत्तर प्रदेश से.
हिन्दुवादी, बेबाक और बेधड़क..उनके ऑफिस में एक पाकिस्तानी अपने चौथे बेटे के जन्म पर मिठाई खिला रहा था, तो उन्होंने कह दिया - अबे, फैक्ट्री लगा रखी है क्या?
तुम जैसों की वजह से हमारे बच्चों को सड़क पर चलने की जगह नहीं, स्कूलों में एडमिशन नहीं मिलता...इतने पैदा करेगा तो उसमें एक ना एक जरूर टेररिस्ट बनेगा...
उनकी पत्नी परेशान रहती हैं. कहती हैं, थोड़ा सावधान रहना चाहिए, मुझे तो डर लगता है.
उनकी पत्नी भी कोई सेकूलर नहीं हैं, स्पष्ट सोच वाली हिन्दुवादी हैं. मेरठ के पास के अपने शहर की कहानी बता रही थीं. एक हाउसिंग कॉलोनी के बारे में बता रही थीं, दस-पंद्रह साल पहले वहाँ एक मुस्लिम आकर बसा, फिर और कुछ परिवार आकर बसे, फिर धीरे-धीरे हिन्दू वहाँ से घर बेच कर भागने लगे. आज उस कॉलोनी में एक भी हिन्दू नहीं है.
मैंने उनसे कहा - भाभीजी, आप कम से कम यही कहानी अपने फेसबुक पेज पर लिखिए. आपकी लिस्ट में जो दो-चार सेक्यूलर होंगे, उनकी नींद तो खुलेगी.
उन्होंने कहा - नहीं, मुझे इन सब लफड़े में नहीं पड़ना, मुझे डर लगता है...इन मुसलमानों का कुछ भी भरोसा नहीं है.
मैंने कहा, आपको इंग्लैंड में भी डर लगता है? फिर तो भारत और पश्चिमी यूपी को भूल ही जाइए...
उन्होंने कहा - मेरा एक ही बेटा है, उसे लेकर डर लगता है. भारतीय माँ हूँ, अपने बेटे को सुरक्षित रखना चाहती हूँ...
मैंने कहा - आप कितने दिन सुरक्षित रखेंगी उसे? एक मुर्गी भी अपने चूजे को सुरक्षित रखना चाहती है, अपने पंखों में ढक कर रखती है. कितने दिन सुरक्षित रहता है वो? उसका चिकन कबाब बन जाता है...
सुरक्षा साहस में है, सुरक्षा थोड़ी सी आक्रामकता में है.
एक छोटी सी बिल्ली, मुश्किल से पाँच किलो वजन होता होगा...आपसे शरीर से मजबूत तो नहीं होती है. पर अगर वह किनारे में घिर जाए, तो अपने नाखून खड़े कर लेती है, दांत दिखाती है...फिर आपकी हिम्मत होगी उसे पकड़ने की ? अपने बच्चों को मुर्गी तो मत बनाइए...अगर शेर ना बनाना हो तो कम से कम बिल्ली तो बनाइए कि समय पड़ने से अपना बचाव कर सके...
क्षमा चाहता हूँ अपने मित्र और भाभीजी से, बिना उनकी अनुमति के उनके बारे में लिखने के लिए. भाई साहब तो जो हैं, वे हैं ही...भाभीजी से अनुरोध है, अपेक्षा है...आप आर्टिकुलेट हैं, समझदार हैं, आपके पास भाषा है, सोच है, कहने को बहुत कुछ है...अपने हिस्से का काम करेंगी कम से कम...बिना जीजाबाई के शिवाजी पैदा नहीं होते..
Sanjay Dwivedy

 बात सत्तर के दशक की है जब हमारे पूज्य पिताजी ने हमारे बड़े भाई मदनमोहन जो राबर्ट्सन कॉलेज जबलपुर से MSC कर रहे थे की सलाह पर हम ३ भाइयों को बेहतर शिक्षा के लिए गाडरवारा के कस्बाई विद्यालय से उठाकर जबलपुर शहर के क्राइस्टचर्च स्कूल में दाख़िला करा दिया। मध्य प्रदेश के महाकौशल अंचल में क्राइस्टचर्च उस समय अंग्रेज़ी माध्यम के विद्यालयों में अपने शीर्ष पर था। 
पूज्य बाबूजी व माँ हम तीनों भाइयों ( नंदकुमार, जयंत, व मैं आशुतोष ) का क्राइस्टचर्च में दाख़िला करा हमें हॉस्टल में छोड़ के अगले रविवार को पुनः मिलने का आश्वासन दे के वापस चले गए।
मुझे नहीं पता था की जो इतवार आने वाला है वह मेरे जीवन में सदा के लिए चिन्हित होने वाला है, इतवार का मतलब छुट्टी होता है लेकिन सत्तर के दशक का वह इतवार मेरे जीवन की छुट्टी नहीं "घुट्टी" बन गया। 
इतवार की सुबह से ही मैं आह्लादित था, ये मेरे जीवन के पहले सात दिन थे जब मैं बिना माँ बाबूजी के अपने घर से बाहर रहा था। मन मिश्रित भावों से भरा हुआ था, हृदय के किसी कोने में माँ,बाबूजी को इम्प्रेस करने का भाव बलवती हो रहा था , यही वो दिन था जब मुझे प्रेम और प्रभाव के बीच का अंतर समझ आया। बच्चे अपने माता पिता से सिर्फ़ प्रेम ही पाना नहीं चाहते वे उन्हें प्रभावित भी करना चाहते हैं। दोपहर ३.३० बजे हम हॉस्टल के विज़िटिंग रूम में आ गए•• ग्रीन ब्लेजर, वाइट पैंट, वाइट शर्ट, ग्रीन एंड वाइट स्ट्राइब वाली टाई और बाटा के ब्लैक नॉटी बॉय शूज़.. ये हमारी स्कूल यूनीफ़ॉर्म थी। हमने विज़िटिंग रूम की खिड़की से स्कूल के कैम्पस में मेन गेट से हमारी मिलेट्री ग्रीन कलर की ओपन फ़ोर्ड जीप को अंदर आते हुए देखा, जिसे मेरे बड़े भाई मोहन जिन्हें पूरा घर भाईजी कहता था ड्राइव कर रहे थे,और माँ बाबूजी बैठे हुए थे। मैं बेहद उत्साहित था मुझे अपने पर पूर्ण विश्वास था की आज इन दोनों को इम्प्रेस कर ही लूँगा। मैंने पुष्टि करने के लिए जयंत भैया जो मुझसे ६ वर्ष बड़े हैं उनसे पूछा मैं कैसा लग रहा हूँ ? वे मुझसे अशर्त प्रेम करते थे मुझे लेके प्रोटेक्टिव भी थे बोले शानदार लग रहे हो नंद भैया ने उनकी बात का अनुमोदन कर मेरे हौसले को और बढ़ा दिया।जीप रुकी.. 
उलटे पल्ले की गोल्डन ऑरेंज साड़ी में माँ और झक्क सफ़ेद धोती कुर्ता गांधी टोपी और काली जवाहर बंड़ी में बाबूजी उससे उतरे, हम दौड़ कर उनसे नहीं मिल सकते थे ये स्कूल के नियमों के ख़िलाफ़ था, सो मीटिंग हॉल में जैसे सैनिक विश्राम की मुद्रा में अलर्ट खड़ा रहता है एक लाइन में तीनों भाई खड़े माँ बाबूजी का अपने पास पहुँचने का इंतज़ार करने लगे, जैसे ही वे क़रीब आए, हम तीनों भाइयों ने सम्मिलित स्वर में अपनी जगह पर खड़े खड़े Good evening Mummy. Good evening Babuji. कहा। 
मैंने देखा good evening सुनके बाबूजी हल्का सा चौंके फिर तुरंत ही उनके चहरे पे हल्की स्मित आई जिसमें बेहद लाड़ था मैं समझ गया की ये प्रभावित हो चुके हैं । मैं जो माँ से लिपटा ही रहता था माँ के क़रीब नहीं जा रहा था ताकि उन्हें पता चले की मैं इंडिपेंडेंट हो गया हूँ .. माँ ने अपनी स्नेहसिक्त मुस्कान से मुझे छुआ मैं माँ से लिपटना चाहता था किंतु जगह पर खड़े खड़े मुस्कुराकर अपने आत्मनिर्भर होने का उन्हें सबूत दिया। माँ ने बाबूजी को देखा और मुस्कुरा दीं, मैं समझ गया की ये प्रभावित हो गईं हैं। माँ, बाबूजी, भाईजी और हम तीन भाई हॉल के एक कोने में बैठ बातें करने लगे हमसे पूरे हफ़्ते का विवरण माँगा गया, और ६.३० बजे के लगभग बाबूजी ने हमसे कहा की अपना सामान पैक करो तुम लोगों को गाडरवारा वापस चलना है वहीं आगे की पढ़ाई होगी•• हमने अचकचा के माँ की तरफ़ देखा माँ बाबूजी के समर्थन में दिखाई दीं। हमारे घर में प्रश्न पूछने की आज़ादी थी घर के नियम के मुताबिक़ छोटों को पहले अपनी बात रखने का अधिकार था, सो नियमानुसार पहला सवाल मैंने दागा और बाबूजी से गाडरवारा वापस ले जाने का कारण पूछा ? उन्होंने कहा रानाजी मैं तुम्हें मात्र अच्छा विद्यार्थी नहीं एक अच्छा व्यक्ति बनाना चाहता हूँ। तुम लोगों को यहाँ नया सीखने भेजा था पुराना भूलने नहीं। कोई नया यदि पुराने को भुला दे तो उस नए की शुभता संदेह के दायरे में आ जाती है, हमारे घर में हर छोटा अपने से बड़े परिजन, परिचित,अपरिचित जो भी उसके सम्पर्क में आता है उसके चरण स्पर्श कर अपना सम्मान निवेदित करता है लेकिन देखा की इस नए वातावरण ने मात्र सात दिनों में ही मेरे बच्चों को परिचित छोड़ो अपने माता पिता से ही चरण स्पर्श की जगह Good evening कहना सिखा दिया। मैं नहीं कहता की इस अभिवादन में सम्मान नहीं है, किंतु चरण स्पर्श करने में सम्मान होता है यह मैं विश्वास से कह सकता हूँ। विद्या व्यक्ति को संवेदनशील बनाने के लिए होती है संवेदनहीन बनाने के लिए नहीं होती। मैंने देखा तुम अपनी माँ से लिपटना चाहते थे लेकिन तुम दूर ही खड़े रहे, विद्या दूर खड़े व्यक्ति के पास जाने का हुनर देती है नाकि अपने से जुड़े हुए से दूर करने का काम करती है। आज मुझे विद्यालय और स्कूल का अंतर समझ आया, व्यक्ति को जो शिक्षा दे वह विद्यालय जो उसे सिर्फ़ साक्षर बनाए वह स्कूल, मैं नहीं चाहता की मेरे बच्चे सिर्फ़ साक्षर हो के डिग्रीयों के बोझ से दब जाएँ मैं अपने बच्चों को शिक्षित कर दर्द को समझने उसके बोझ को हल्का करने की महारथ देना चाहता हूँ। मैंने तुम्हें अंग्रेज़ी भाषा सीखने के लिए भेजा था आत्मीय भाव भूलने के लिए नहीं। संवेदनहीन साक्षर होने से कहीं अच्छा संवेदनशील निरक्षर होना है। इसलिए बिस्तर बाँधो और घर चलो। हम तीनों भाई तुरंत माँ बाबूजी के चरणों में गिर गए उन्होंने हमें उठा कर गले से लगा लिया.. व शुभआशीर्वाद दिया कि किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो.. पूज्य बाबूजी जब भी कभी थकता हूँ या हार की कगार पर खड़ा होता हूँ तो आपका यह आशीर्वाद "किसी और के जैसे नहीं स्वयं के जैसे बनो" संजीवनी बन नव ऊर्जा का संचार कर हृदय को उत्साह उल्लास से भर देता है । आपको शत् शत् प्रणाम 
Ashutosh Rana .

मिसाल: नोटबंदी से परेशान विदेशियों को

 लाए घर,खूब किया सत्कार ...

नोटबंदी के कारण परेशान 6 विदेशी नागरिकों और उनके एक साथी का घर पर आदर सत्कार कर पिथौरागढ़ के पाठक परिवार ने अतिथि देवो भव: की उक्ति को साकार किया है।पोलैंड की युवती एंजिल किस कोसमाला, यूक्रेन की युवती ड्योनिवो ओलगो, रूस निवासी पर्वतारोही टार्जनोव एलकेसी, हैती निवासी फिल्म मेकर मैक्स स्टीफन ऑलीवर फैबलस, लिथीनिया निवासी रोक्स जीसीवीसियश, फ्रांस निवासी लियोनिल मार्टिनेज और उनके साथ मुंबई से आए डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर राहुल हिमांती पांडे 16 नवंबर को पिथौरागढ़ पहुंचे।

इनके पास भारतीय करेंसी का अभाव था। विदेशी करेंसी बदलने के लिए ये लोग बैंकों के चक्कर काटते रहे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बृहस्पतिवार को कूर्मांचल बैंक की शाखा में इनकी मुलाकात थियेटर फॉर एजूकेशन इन मास सोसायटी के सचिव योगेश पाठक से हुई।योगेश ने अपनी मां कविता पाठक, पिता केदार दत्त पाठक से विदेशी मेहमानों को घर पर भोज देने के लिए बात की। माता-पिता ने इसे अपना सौभाग्य मानते हुए शुक्रवार को घर पर भोजन के लिए विदेशी मेहमानों को घर पर आमंत्रित किया।विदेशी नागरिकों की दिक्कत को देखकर कूर्मांचल बैंक शाखा प्रबंधक पंकज तिवारी ने भी इन लोगों को अपनी तरफ से 1000 रुपए दिए। शुक्रवार को दोपहर के भोजन के लिए विदेशी मेहमान पाठक परिवार के घर पहुंचे तो योगेश के माता-पिता के साथ ही बड़े भाई दिनेश पाठक, भाभी आशा पाठक, दीदी रेनू पाठक, छोटे आशीष पाठक, मुकुल पाठक ने मेहमानों की आवभगत की।

Monday 21 November 2016

गढ़ आया पर सिंह गया ...

 एक थे मिर्ज़ा जयसिंह | सिंह कम और मिर्ज़ा ज्यादा थे | मुगलों का सिंघगढ़ का किला होता था और इनके ही अधिकार में था |
शिवाजी का संदेशा पहुँचते पहुँचते शाम ढल गई थी, तानाजी अपने भाई सूर्याजी के साथ थे | आख़िर बेटे की बारात थी, शादी रोज़ कहाँ होती है ! कुल मिला के 300 ही लोग थे बाराती और शराती मिला के, और साथियों को जुटाने का अवसर नहीं था | रास्ता एक ही बचता था अब, सिंघगढ़ का किला तोपों से पूरी तरह सुरक्षित था, परिंदे के पर मारने से पहले ही गिरा देता कोई मुग़ल तोपची | सिर्फ़ एक कम्बूरा था जहाँ सुरक्षा ढीली होती थी | बिलकुल सीधी चढ़ाई पर, तानाजी ने “यशवंती” को बुलाया, प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरा |
मुस्कान कुछ मूछों के पीछे चमकी, कुछ हाथ तलवार की मूठ से मूछों को बल देने के लिए उठे | दुल्हन तो सुबह आएगी, फैसले के साथ ही तीन सौ मराठा शूरों ने इजाज़त ली | गोह (घोड़पड़) एक ख़ास किस्म की छिपकली होती है, क़रीब सवा दो फुट तक बढती है, पंजे इतने तेज़ की एक बार अगर पकड़ बना ले पत्थर पर तो दो तीन लोग मिलकर भी नहीं उखाड़ सकते | संदूक में से गोह को बाहर निकाला गया, तानाजी ने कहा, यशवंती अब तेरा ही आसरा ! यशवंती नाम के गोह की कमर से रस्सी बाँध कर उसे उछाला गया | पहली बार में उसके भी पंजे सीधी चढ़ाई से फिसल गए | सारे रणबांकुरों ने सर हिलाया और दोबारा गोह को उछाला गया, पंजे इस बार भी फ़िसल गए | तानाजी शायद बहु घर लाने की जल्दी में थे, भड़क उठे, सौगंध माता विंध्यवासिनी की !! इस बार जो “यशवंती” असफल लौटी तो तत्काल इसके दो टुकड़े करूँगा !! अँधेरे में काली की लपलपाती जिह्वा सी तलवार म्यान से बाहर आ गई |
यशवंती फिर दीवार की तरफ लपकी, इस बार पंजे पत्थरों पे जम गए, आन की आन में एक मराठा दीवार पर था | बाकि सारे साथी भी उसकी फेंकी रस्सियों के साथ चढ़ने लगे | थोड़ी ही देर में तीन सौ से ज्यादा मराठा किले की दीवार पर थे | कोंधना नाम से जाने जाने वाले इस किले पे हमले की ख़बर सुन के और भी मराठा योद्धा आ जुटे थे, लेकिन 342 योद्धाओं के ऊपर चढ़ने तक रस्सी टूट गई और करीब 60 योद्धा युद्ध किये बिना ही खेते रहे |
सूर्याजी को कल्याण द्वार से हमले का इशारा कर के तानाजी मुग़ल चमचों पे टूट पड़े | देर रात और “जय भवानी” का उद्घोष!! सुरा-सुंदरी से मतवाले हुए 5000 मुगलों का खून तो आवाज़ पर ही जम गया | कुछ महादेव कोली किले में थे, तानाजी को पहचानते ही वो सूर्याजी की मदद के लिए कल्याण दरवाजे की तरफ बढ़े | तलवार संभालते तानाजी ने साथियों को किले के अलग अलग इलाकों पर हमला करने के आदेश देना शुरू किया | मिर्जा जय सिंह की ओर से उदयभान किला संभालता था | इस से पहले की तानाजी अपनी पीठ से ढाल पूरी तरह उतार पाते करीब सौ किलो के उदयभान का “जनेऊ हाथ” उन पर पड़ा |
खनकती ढाल ज़मीन पे जा पड़ी, उदयभान के अंगरक्षकों ने सिदी हिलाल को खुला छोड़ दिया | सिदी हिलाल करीब करीब पागल हाथी था | शराब के नशे में चूर पागल हाथी ने शत्रु सेना पर धावा बोल दिया | अपने साथियों को पीछे हटाते तानाजी ने एक ही वार में सीदी हिलाल की सूंड काट दी | छटपटाता हाथी पलटा भी न था की तानाजी की तलवार उसकी पसलियों में जा घुसी | इधर मुग़ल सैनिक कट रहे थे उधर सिदी हिलाल गिरा | मुग़ल सैनिक एक अकेले मराठा को हाथी मारता देखते सदमे में आ गए ! उनके कदम उखाड़ते देख कर उदयभान आगे आया और तानाजी पर सीधा हमला किया |
उदयभान पुराना राजपूत था, उसपर तलवार का धनी | तलवार ढाल के साथ लड़ते हुए सिर्फ एक हाथ में तलवार पकड़े तानाजी पर वो भारी पड़ने लगा | तानाजी ने अपनी पगड़ी बाएं हाथ में बंधी, और दोगुने जोश से उदयभान का मुकाबला करने में जुटे | उदयभान के दो कदम पीछे हटते ही किसी मुग़ल सैनिक की गिरी हुई तलवार तानाजी ने उठा ली | चढ़ती साँसों और माँ भवानी के जय जय कार के साथ दोनों योद्धा गुत्थम गुत्था, टक्कर बराबर की थी | एक शरीर से तगड़ा तो दूसरा मनोबल से ! एक साथ ही एक दुसरे पे प्राणघातक प्रहार दोनों ने किया | उदयभान के गिरते ही मुग़ल सैनिकों के पाँव उखड़ गए | दुम दबा कर जहाँ हो पाया सब भागे |
सूर्याजी ने कंगूरे पर टंगी रस्सियाँ हटा दी थी, या तो विजय या मृत्यु दो ही विकल्प थे मराठों के पास |मराठे जान हथेली पर ले कर लड़े, “मर-हट्टा” ऐसे ही तो नहीं कहते थे | जो मरा नहीं वो युद्ध से हटा नहीं | कुल पांच सौ से कम मराठों ने पांच हज़ार से ज्यादा मुगलों को धूल चटा दी | सुबह होने से पहले दुदुम्भी कंगूरे से बज रही थी, भगवा सबसे ऊँची चोटी पर फहराता था | गढ़ जीतने की खबर पहले पहुंची शिवाजी के पास, उछल कर सिंघासन से खड़े ही हुए थे की तानाजी के खेते रहने की ख़बर सुनाई गई | शिवाजी वापिस सिंघासन पर बैठ गए, कहा “गढ़ आया पर सिंह गया” |
सैन्य शक्ति बराबर न होने पे भी लड़ाई जीती जाती है, और हर बार लड़ाई मैदान में ही नहीं कई बार दिमाग में ही लड़ी और जीती जाती है | आक्रमणकारी अभी भी पीछे नहीं हटे हैं, मिर्ज़ा जय सिंह भी हैं साथ देते हुए उनका, इस बार गढ़ आने में सिंह न जाए !!
जय भवानी, जय जय भवानी !

सोनपुर पशु मेला (बिहार)

भागवत पुराण के आठवें स्कंध में “गजेन्द्र मोक्ष” की कहानी आती है | ये श्लोक गजेन्द्र कि विष्णु उपासना का है जो हिन्दुओं में प्रचलित कहानियों में से एक है | मोटे तौर पर ये कहानी सब लोग जानते हैं | एक हाथी होता है जिसे मगरमच्छ पकड़ लेता है | जब हाथी किसी तरह छूट नहीं पाता तो वो विष्णु से मदद की गुहार लगाता है | विष्णु आते हैं और उसे बचाते हैं |
 इसके पीछे की बड़ी कहानी ये है कि राजा इंद्रद्युम्न के दरबार में एक दिन अगस्त्य मुनि आये | घमंडी राजा इंद्रद्युम्न को उसके मूर्खतापूर्ण बर्ताव के लिए कहा गया कि हाथी के जितना बड़ा अहंकार है ! तुम हाथी ही हो जाओ ! अगले जन्म में राजा इंद्रद्युम्न हाथी हुए और अपने झुण्ड के साथ वो त्रिकुट पर्वत के पास रहते थे | दुसरे एक गंधर्व राजा हूहू थे, उनके पास एक बार देवल ऋषि आये | जब स्नान कर के देवल ऋषि सूर्य उपासना कर रहे थे तो देवल ने मगरमच्छ बनकर उन्हें डराने की सोची | वो पानी के नीचे जा कर देवल ऋषि का पैर खींचने लगा | देवल ऋषि के शाप से अगले जन्म में हूहू भी मगरमच्छ हुआ |
 पौराणिक कथा के मुताबिक हाथी बने इंद्रद्युम्न और मगरमच्छ बने हूहू की लड़ाई हज़ार साल तक चलती रही | हिमालय से शुरू हुआ उनका युद्ध गंगा के साथ साथ मैदानी इलाके में आ गया | जहाँ हाथी ने कमल उठा कर विष्णु से मदद मांगी वो जगह बिहार में पटना के पास है | घटना के कई साल बाद जब भगवान राम अयोध्या से मिथिला जाते समय उस स्थान से गुजरे तो उन्होंने वहां हरिहरनाथ के मंदिर की स्थापना की | मुग़ल काल में राजा मान सिंह ने इस मंदिर का पुनः निर्माण करवाया | आज जो मंदिर नजर आता है वो मुग़ल काल के अंतिम समय में राजा राम नारायण ने बनवाया था | मुग़ल काल से पहले तक गंडक नदी के किनारे यहीं हाथियों की मंडी लगती थी |
 कार्तिक पूर्णिमा को शुरू होने वाले इस सोनपुर पशु मेले की शुरुआत चन्द्रगुप्त मौर्य (340-297 BCE) के काल में हुई थी | वो गंगा पार कर के इस जगह अपने लिए हाथी और घोड़े खरीदने आते थे | इसे हरिहर क्षेत्र का मेला भी कहते हैं और इसमें पूरे एशिया से लोग आते हैं | मुग़ल काल में औरंगजेब के समय हरिहर क्षेत्र से थोड़ा हटकर सोनपुर में ये मेला लगने लगा | अब पूजा तो हरिहरनाथ के मंदिर में होती है लेकिन मेले की जगह सोनपुर है | ये जगह पटना से करीब 35 किलोमीटर दूर है और बिहार पर्यटन विभाग के लिए एक प्रमुख आकर्षण भी है |
 पशुओं के व्यापारी जो हर साल इस मेले का इन्तजार करते हैं उनके लिए 2016 बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा | अच्छे शुद्ध नस्ल के घोड़ों की कीमत अक्सर यहाँ तीन लाख से ऊपर होती है | इस वर्ष की नोटबंदी के कारण घोड़ों की खरीद बिक्री पर असर पड़ा है | नकद की कमी की मार गाय-भैंस बेचने वालों को भी झेलनी पड़ी है | उनके धंधे में करीब पचास प्रतिशत की शुरूआती कमी देखी जा रही है | कुछ दिनों में ये हाल सुधरेंगे, ऐसी उम्मीद की जा रही है | इस वर्ष मेले में करीब 1600 गाय-भैंसे हैं, जिनमें से करीब दो सौ का सौदा हो चूका है | घोड़ों के बड़े व्यापारी ओम प्रकाश सिंह भी कहते हैं कि वो हर साल 30 से 40 घोड़े बेच लेते थे, मगर इस साल धंधा मंदा रहेगा |
 मेले में आये करीब 2100 घोड़ों में से सिर्फ 10 ही पहले सप्ताह में बिक पाए हैं | गायों की बिक्री पर असर पड़ने का एक दूसरा कारण है | हाल के सालों में गाय भैंसों के एक राज्य से दुसरे राज्य में ले जाने पर लगने वाले नियमों में बदलाव आये हैं, जिस से अन्य राज्यों से आने वाले खरीदार घटे हैं | पंजाब, हरियाणा, असम और बंगाल में नियमों में आये बदलाव के कारण पशु बिकने के लिए आये भी कम हैं | मेले में थोड़ी संख्या में (करीब 350) भेंड बकरियां भी बिकने आई हैं |
केन्द्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गाँधी की शिकायत के बाद ही पर्यावरण मंत्री प्रकाश जवेदेकर ने 2015 में हाथियों की थोक में बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया था | उसकी वजह से हाथियों की खरीद बिक्री में पहले ही गिरावट आ चुकी है | कुछ साल पहले तक हाथियों के बाजार के लिए जाने जाने वाले इस मेले में 250 के आस पास हाथी बिकते थे | इस वर्ष सिर्फ पंद्रह हाथी बाजार में हैं | थिएटर जैसी प्रथा जो मेले में शुरू हो गई थी उसपर राज्य में लगी शराबबंदी ने अपना असर दिखाया है | कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कि कभी पशुओं के सबसे बड़े मेले के रूप में जाना जाने वाला सोनपुर मेला अब अपनी रंगत खो रहा है |

ईमानदारी से काम करने का मज़ा 

अब आ रहा है लोगों को ...

कल राजसमन्द राजस्थान से एक मित्र का फोन आया.
बड़े खुश थे.
उन्होंने 8 Nov से ले के आज तक का अपना नोट बंदी का अपना अनुभव शेयर किया, जिसे उन्होंने खुद अपनी फेसबुक वाल पर एक डायरी के रूप में शेयर भी किया है.
राजसमन्द देश की सबसे बड़ी मंडी है Granite और Marble की.
पूरे देश में यहाँ से Granite और Marble supply होता है.
उन्होंने बताया कि जब 8 Nov को मोदी जी ने नोट बंदी की घोषणा की तो एकबारगी तो झटका लगा. लंबा चौड़ा business है. घर में 12 – 14 लाख cash पडा था. सबसे पहले तो उसे बैंक में जमा कराया.
उसके बाद समस्या ये आई कि देश भर से बकायेदार businessmen ने 500 और 1000 के नोटों में उधारी चुकानी शुरू की, इस चेतावनी के साथ कि लेना है तो ले लो वरना फिर न जाने कब मिलेंगे.
मरता क्या न करता? लेनी पड़ी payment.
अब समस्या ये कि इसका करें क्या.
फिर हमने भी वही किया जो सब कर रहे थे. अपनी सारी देनदारी उन्हीं बड़े नोटों में चुकानी शुरू की. Mines को payment कर दिया.
फिर राजसमन्द के Granite producers association की मीटिंग हुई. तय हुआ कि अब आगे से underbilling नहीं करेंगे. पूरा बिल काटेंगे. पूरा tax देंगे. सारा business 1 नंबर में करेंगे. No झंझट No खिट खिट. इस से 3 रु फुट बढ़ेंगे दाम Granite के. Association ने तय किया कि 1.5 रु हम वहन करेंगे और बाकी डेढ़ रुपया व्यापारी.
इस से एक तो सारा business एक नंबर में हो गया और हर नाके पर जो 100 रु प्रति गाड़ी की रिश्वत देनी पड़ती थी वो बंद हो गयी. इस note बंदी का नतीजा ये हुआ कि अब व्यापार बढ़ गया है. रोजाना धड़ाधड़ गाड़ियां load हो रही हैं. धंधा भी चोखा और सुकून का.
कुछ यही रिपोर्ट कोलकाता से एक मित्र ने दी. उनकी कम्पनी शुरू से एक नम्बर में business करने के लिए कुख्यात रही है. वो भी बता रहे थे कि जब से नोट बंदी हुई है उनके माल की demand 40 से 50 % तक बढ़ गयी है क्योंकि market के सारे प्रतिद्वंदी जो दो नंबर का धंधा करते थे वो अभी फटा हुआ लहंगा सम्हाल रहे हैं.
ईमानदारी से काम करने का मज़ा अब आ रहा है लोगों को.

जनार्दन रेड्डी की बेटी की भव्य शादी के बाद आयकर विभाग ने सेवा प्रदाताओं का सर्वे किया ...

बेंगलुरू: आयकर विभाग ने हाई एंड इवेंट मैनेजमेंट फर्मों, कैटरिंग और मल्टी-मीडिया सेवा प्रदाताओं के कम से कम 10 स्थानों पर आज सर्वे किया, जिनकी सेवाएं कर्नाटक के पूर्व मंत्री और भाजपा नेता जी जनार्दन रेड्डी की बेटी की भव्य शादी के लिए ली गई थीं।
अधिकारियों ने कहा कि आयकर अधिकारी यहां सात स्थानों पर और हैदराबाद में तीन स्थानों पर उन इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों के स्थानों पर पहुंचे, जिनके साथ पिछले सप्ताह यहां ब्राह्मणी की शादी को आलीशान लुक देने के लिए अनुबंध किया गया था। रेड्डी खनन कारोबारी भी हैं।
उन्होंने कहा कि विभाग ने कार्यक्रम के लिए जमकर खर्च किए जाने की रिपोर्ट मिलने के बाद कार्रवाई शुरू की और खातों, भुगतान रसीद और इन फर्मों के अनुबंध पोर्टफोलियो की जांच कर रही है।
इन फर्मों को शादी जैसे विशेष कार्यक्रमों के दौरान अच्छा खासा खर्च करने वाले ग्राहकों के लिए भव्य व्यवस्था करने में विशेषज्ञता हासिल है। इन फर्मों में विशेष स्विस टेंट, खर्चीला कटलरी, विविध व्यंजन और पाइरोटेक्निक प्रदान करने वाले डीलर हैं जिन्होंने कार्यक्रम को भव्यता प्रदान की।

बाजार में बिकने वाली कुछ चीजें सेहत के लिए काफी नुकसानदायक है

हम नहीं जानते कि इन खाद्य पदार्थों के खाने से हमारे सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा। आज के समय में बाजार में बिकने वाले खाद्य पदार्थों में मिलावट की बातें सामने आती रहती हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि खाने वाली चीजें हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक तो नहीं हैं। बाजार में बिकने वाली कुछ चीजें सेहत के लिए काफी नुकसानदायक हैं, ऐसे खाद्य पदार्थ शरीर में जहर की तरह काम करते हैं और आने वाले समय में सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।

हम नहीं जानते कि इन खाद्य पदार्थों के खाने से हमारे सेहत पर क्या प्रभाव पड़ेगा। आज के समय में बाजार में बिकने वाले खाद्य पदार्थों में मिलावट की बातें सामने आती रहती हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि खाने वाली चीजें हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक तो नहीं हैं। बाजार में बिकने वाली कुछ चीजें सेहत के लिए काफी नुकसानदायक हैं, ऐसे खाद्य पदार्थ शरीर में जहर की तरह काम करते हैं और आने वाले समय में सेहत पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।
दस ऐसे खाद्य पदार्थ जो आपकी सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं
*1-नकली मक्खन*
बहुत सारे लोग बटर की जगह नकली मक्खन का इस्तेमाल करते हैं। इसमें भारी मात्रा में कोलेस्ट्राल होता है। इसमें कृत्रिम रंग, कैलोरिज और फैट पाया जाता है। इसके सेवन से आप कई रोगों की गिरफ्त में आ सकते हैं।
*2-कृत्रिम स्वीटनर्स*
कृत्रिम स्वीटनर्स में सैकरिन पाया जाता है। इसका इस्तेमाल शुगर के विकल्प के रूप में किया जाता है। तथ्य यह है कि स्वीटनर्स मोटापा घटाने की बजाय वजन बढ़ाते हैं। स्वीटनर्स से मधुमेह होने और किडनी को क्षति पहुंचने का खतरा बना रहता है।
*3-टोमैटो सॉस*
यदि आप ऑर्गेनिक सॉस अथवा घर पर बने टोमैटो सॉस की जगह बाजार से खरीदे गए टोमैटो सॉस का इस्तेमाल करते हैं तो यह नुकसानदेह हो सकता है। क्योंकि स्टोर से खरीदे गए टोमैटो सॉस में कृत्रिम कलर, रिफाइंड शुगर, कॉर्न सीरप, सोडियम की मात्रा होती है। ये तत्व तनाव, उच्च रक्त चाप, मोटापा और हृदय की बीमारियों को बढ़ाने की क्षमता रखते हैं।
*4. फ्रॉस्टिंग*
फ्रॉस्टिंग वाले खाद्य पदार्थों में शुगर पाया जाता है। इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि फ्रॉस्टिंग वाले खाद्य पदार्थों में ट्रैंस फैट, कॉर्न सीरप और कृत्रिम रंग पाए जाते हैं जो हानिकारक हैं।
*5. स्ट्राबेरी*
अगर आप ऑर्गेनिक तरीके से उगाई गई स्ट्राबेरी का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो यह आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। 'थिंकअबाउटहेल्थडॉटकाम' की एक रिपोर्ट के मुताबिक स्ट्राबेरी में 13 अलग-अलग कीटनाशक दवाएं पायी गईं। इसलिए आप ऑर्गेनिक अथवा घरों में पैदा होने वाली स्ट्राबेरी का इस्तेमाल करें।
*6-अंकुरित अन्न*
अंकुरित चना और दालें शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करती हैं लेकिन बाजार के लिए तैयार स्प्राउट सौ फीसदी सुरक्षित नहीं हैं। स्टोर में रखे गए स्प्राउट के कीटाणु एवं विषाणु के संपर्क में आने का खतरा रहता है। इसलिए स्प्राउट घर में तैयार करें।
*7-पैकेज्ड कुकीज*
आज कल लोग पैकेज्ड कुकीज खाना बेहत पसंद करते हैं लेकिन इनमें हाइड्रोजेनेटेड आयल्स की मात्रा होती है। इसके अलावा इनमें बटर, शुगर, कृत्रिम कलर भी होता है।
*8-फ्रोजेन पिज्जा*
युवा वर्ग पिज्जा खाना काफी पसंद करता है लेकिन फ्रोजेन पिज्जा में सुगर, साल्ट, एमएसजी और नाइट्रेट्स की मात्रा ज्यादा होती है।
*9-सोडा*
चाहे वह डाइट सोडा हो अथवा नॉर्मल सोडा दोनों सेहत के लिए नुकसानदायक हैं। क्योंकि दोनों में लिक्विड शुगर पाया जाता है। अन्य सोडा में स्वीटनर्स, फॉस्फोरिक एसिड पाया जाता है जो शरीर के लिए नुकसानदायक है।
*10-फास्ट फूड*
फास्ट फूड वाले पदार्थों में सोडियम, एमएसजी, शुगर, ट्रैंस-फैट अत्यधिक मात्रा में पाए जाते हैं। फास्ट फूड के लगातार सेवन से आप कई बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।

15 साल PM रहे मोदी तो अमेरिका से भी शक्तिशाली हो जाएगा भारत’

आतंकवाद से पूरा विश्व परेशान है। आतंकवाद खत्म होना चाहिए और मोदी जी का नेतृत्व बिल्कुल सही चल रहा है। अगर दस-पंद्रह साल उनका नेतृत्व मिल गया, तो यह देश अमेरिका से भी ज्यादा पॉवरफुल देश हो जाएगा। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के अवतार ही हो सकते हैं मोदी जी। जो पूरे विश्व में हिंदुस्तान का तिरंगा फहरा रहे हैं।

कन्नौज। भाजपा सांसद व क्षत्रिय महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुंवर हरबंश सिंह कन्नौज में आयोजित क्षत्रिय महासभा सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे, उन्होंने कहा कि पहले अपना घर सुधारें राहुल, उसके बाद देश की बात करें और मोदी जी पर कटाक्ष करने की मेरे ख्याल से उनकी योग्यता ही नहीं है।
प्रधानमंत्री की घेराबंदी ने एक ही झटके में पाकिस्तान को घर बैठा दिया। जिसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि भाई ये आतंकवाद जो है, इसको खत्म किया जाए, आतंकवादियों को खत्म किया जाए। चलो जब से इसको अक्ल आई, तभी से सही। आतंकवाद से पूरा विश्व परेशान है। आतंकवाद खत्म होना चाहिए और मोदी जी का नेतृत्व बिल्कुल सही चल रहा है। अगर दस-पंद्रह साल उनका नेतृत्व मिल गया, तो यह देश अमेरिका से भी ज्यादा पॉवरफुल देश हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के अवतार ही हो सकते हैं मोदी जी। जो पूरे विश्व में हिंदुस्तान का तिरंगा फहरा रहे हैं। शायद ही ऐसा कोई बड़ा देश होगा, जहां हम नहीं गए होंगे।

जमील का खुलासा: ISIS को सीकर व चेन्नई से पहुंचा लाखों रुपए का फंड

जयपुर
एनआईए और एटीएस ने गिरफ्तार जमील अहमद से आईएस की फंडिंग की कड़ियां जुटाना शुरू कर दिया है। राजस्थान और तमिलनाडु से 25 बार में हवाला के जरिए रकम भेजी गई। 
देश से करीब 15 लाख से अधिक रुपए की फंडिंग दुबई भेजी गई है। इसमें सीकर व चेन्नई की रकम सर्वाधिक है। इसके बाद से एटीएस ने राजस्थान के साथ ही चेन्नई और हैदराबाद में निगरानी बढ़ा दी है। कई लोग चिह्नित हुए हैं, जो युवा और व्यापारी हैं। 
इधर,  एटीएस को दिल्ली स्थित सेन्ट्रल लैब से जमील के जब्त दो मोबाइल, दो लेपटॉप और पेन ड्राइव की रिपोर्ट सोमवार को मिल जाएगी। इससे अनुसंधान की गति तेज हो जाएगी।  
दरअसल, गत 16 नवम्बर को राजस्थान एटीएस ने सीकर से जमील अहमद को गिरफ्तार किया था। आरोपित रिमांड पर चल रहा है। जमील ने दुबई में रहकर सोशल साइटों से सम्पर्क कर बनाए, नेटवर्क से प्रतिबंधित संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के लिए फंडिंग का काम दो साल पहले शुरू किया था। जमील ने भारत, बांग्लादेश और यूएई से हर रकम आईएस के लड़ाकों की सुविधाओं के लिए भेजी।
जमील से मिले परिजन
एटीएस ने बताया कि सीकर से जमील के परिजन उससे मिलने मुख्यालय आए। परिजन को जमील से मिलवाया गया। परिजन भी जमील की गिरफ्तारी को लेकर हैरान हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं, जमील ने यह सब कैसे किया। उन्हें आशंका है कि जमील को फंसाया है। जमील से मिलने के लिए अभी तक मुम्बई से उसके परिवार और रिश्तेदार ने सम्पर्क नहीं किया है। 
राजस्थान समेत 5 राज्यों में नेटवर्क
एटीएस के मुताबिक, जमील ने देश से करीब 25 बार में हवाला के जरिए भेजी रकम को मनी एक्सचेंज से आईएस तक पहुंचाया। देश से दो साल से हर माह 25-30 हजार या एक से दो लाख की रकम हवाला के जरिए दुबई भेजी गई।
जमील का राजस्थान, तमिलनाड़, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश और तेलंगाना में फंडिंग जुटाने का मजबूत नेटवर्क है। देश से आईएस तक पहुंची फंडिंग की एक तिहाई रकम राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र और चेन्नई से भेजी गई है। 
इसी आधार पर  एटीएस फंडिंग से जुड़ी जानकारी और दस्तावेज हैदराबाद से जुटाए हैं। चेन्नई और सीकर में रकम जमा करने वाले लोग चिह्नित करके निगरानी में मिले हैं।   


सावधान मित्रो
नेहरु परिवार के लिए जो भी खतरा बना ओ मारा गया सबसे पहले खतरा बने सुबाष चन्द्र बोष उनकी रहस्य माय मोत
 दुसरे खतरा बने लाल बहादुर शास्त्री जी की मोत हो गयी पर कांग्रेसियों ने उनकी पोस्टमाटम भी नहीं करवाया उनकी पत्नी रोती रह गयी
तीसरे खतरा बने श्यामा प्रसाद मुखर्जी उनकी रहस्मय मोत फिर खतरा बने अर्जुन सिंह जिनको कोई बीमारी नहीं थी बिदेश में हार्ट की बीमारी का बहाना फिर बने माधव राव सिंधिया उनका मोत एक्सीडेंट में जबकि सोनिया गाँधी उस समय उनके साथ थी एक्सीडेंट के बाद सोनिया अपने घर भागी 
अब बारी है हमारे pm की जिसकी आशंका खुले मंच से जता चुके है प्रधानमंत्री बनने से पहले भी नरेंद्र मोदी को दो बार जान से मारने का प्रयास किया गया है.लेकिन दोनों ही बार मोदी को मारने की साजिश कामयाब नहीं हुई. हमलावर अपने नापाक मंसूबों में सफल नहीं हो पाए हैं. सबसे पहले वर्ष 2004 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उनको मारने की साजिश हुई थी अमेरिकी आतंकवादी डेविड हेडली ने भारतीय अधिकारियों को शिकागो में बताया था कि गुजरात पुलिस से साथ मुठभेड़ में मारी गई इशरत जहां का ताल्लुक आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से था और वो उसकी मानव बम थी, जिसकों मानव बम के जरिए नरेंद्र मोदी को मारने का काम सौंपा गया था.
 जबकि दूसरी बार अक्टूबर 2014 में नरेंद्र मोदी को मारने की साजिश की गई.उस वक्त हुआ था जब वे पटना में भाजपा की चुनावी रैली को संबोघित करने वाले थे तब मोदी को मारने की साजिश की गई थी. रैली से पहले पटना के गांधी मैदान में सिलेसिलेवार कई घमाके हुए थे. उसमे 6 लोगों मारे गए थे जबकि 100 से अधिक घायल हुए थे.
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जान को खतरा तो भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी खुफिया एजेंसी भी इसको लेकर भारत को आगाह कर चुकी है.यही वजह है कि नरेंद्र मोदी की सुरक्षा उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तुलना में दोगुनी है. प्रधानमंत्री मोदी के दुश्मन देश के बाहर ही नहीं बल्कि अंदर भी मौजूद है.खुफिया विभाग और उनकी सुरक्षा में लगी एजेंसियों को जो सूचनाएं प्राप्त हुई हैं उससे पता चलता है कि आतंकी संगठनों से प्रधानमंत्री मोदी को लगातार धमकियां मिल रही हैं
.गौरतलब है कि इससे पहले राजीव गांधी को भी ऐसी ही धमकियां मिली थीं.जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, दिल्ली पुलिस को एक दर्जन से ज्यादा खुफिया सूचनाएं मिल चुकी है, जिसके अनुसार वे आतंकियों के निशाने पर हैं. बताया जाता है कि राजीव गांधी के अलावा किसी अन्य प्रधानमंत्री की जान को इतना खतरा नहीं था जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जान को है.प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा को खतरे के अलर्ट को देखते हुए खुफिया एजेंसियों और उनकी सुरक्षा में तैनात एजेंसियों ने उनकी सुरक्षा काफी बढ़ा दी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में विभिन्न घेरों के तहत एक हजार से ज्यादा कमांडो तैनात हैं, जबकि मनमोहन सिंह के आंतरिक सुरक्षा घेरे में लगभग 600 सुरक्षाकर्मी ही होते थे. .
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किसान संकटों से बच सकते हैं बशर्ते वो एक व्यवसाय़ी की तरह सोचना शुरू करें। उसे एक बार में एक के बजाय तीन-चार फसलें लेना होगी। अभी किसान जिस भी खाद्य वस्तु के दाम बढ़ते हैं, उसे बड़ी मात्रा में बो देते हैं। ऐसे में निश्चित तौर पर उत्पादन ज्यादा होता है और मांग कम हो जाती है। मांग घटते ही, दाम कम मिलते हैं फिर किसान सर धुनता रह जाता है।
श्रेय हूमड़ 29 साल के रफ्तार के शौकीन नवयुवक हैं। इंदौर से प्रबंधन की पढ़ाई करने के बाद श्रेय ‘फटाफट किसान’ बन गए। 2010-11 में इंदौर से एमबीए करने के बाद खंडवा में पिता का बिजनेस संभाला। इस दौरान देखा कि ऑटोमोबाइल से लेकर अन्य सेक्टरों में मंदी का दौर आया है। लेकिन कृषि में आज तक कभी ऐसा नहीं आया। श्रेय ने हिसाब लगाया कि आने वाले समय में फूड में अच्छा स्कोप है। वो तमिलनाडु के मदुराई व अन्य शहरों में गए। यहां टैरेस गार्डन और पॉली हाउस देखे और खंडवा लौटकर इसके बारे में तीन महीने तक रिसर्च किया।
उन्होंने लीज पर एक एकड़ जमीन ली। शासन की योजना का लाभ लिया। आधे एकड़ में पॉली हाउस और आधे में नेट हाउस खोल दिया। पॉली हाउस से श्रेय ने 40 दिन में 14 टन खीरे का उत्पादन लिया। पॉली हाउस में जो भी सब्जियां लगाई जाती हैं, उसे किसान जितना भी खाद, पानी और ऑक्सीजन देगा, उतना ही फसलों को मिलेगा। इसमें बारिश का पानी भी अंदर नहीं जा सकता। नेट हाउस में भी प्रकाश और बारिश का पानी आधा अंदर आता है और आधा बाहर जाता है। यह गर्मी और ठंड में फसलों के लिए अच्छा होता है, जबकि पॉली हाउस सभी सीजन में फसलों के लिए फायदेमंद होता है।
एक तरफ जहाँ किसानों के खेती छोड़ने की ख़बरें आम हैं, वहीँ श्रेय जैसे युवक खेती से जुड़ते भी जा रहे हैं। शायद परंपरागत रूप से खेती से जुड़े लोगों को युवाओं से सीखने की जरूरत है।
(तस्वीरें और जानकारी इफकोटोक्यो से साभार।)
हिमांशु शर्मा जी का लेख:
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सबसे पहले जर्मनी द्वारा ब्रिटेन की करेंसी को print कर आर्थिक युद्ध की शुरूआत की गयी। जर्मनी को ये idea बिहार के एक लाल महेन्द्र मिश्र से मिला। महेन्द्र मिश्र 1924 में अंग्रेजो द्वारा नकली करेंसी print करने के आरोप में जेल भेजे गये थे। जर्मनी ने दूसरे विश्व युद्व के दौरान करीब 1300 करोड़ रूपये मूल्य के 90 लाख़ ब्रिटिश पाउन्ड print किये...
जर्मनी के बाद दो और देशो ने नकली करेंसी को दुश्मन देश के खिलाफ़ हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया... पहला उत्तर कोरिया जिसने अमेरिका के खिलाफ़ इसे इस्तेमाल किया और दूसरा पाकिस्तान जिसके बारे मे आप सब जानते ही है.... उत्तर कोरिया ने जो नकली dollar print किया वो इतना अच्छा था कि उसे Super Dollar कहा गया...
पाकिस्तानी quality इतनी अच्छी नही थी और सिर्फ 2014-15 में करीब 6 लाख़ नकली नोट भारतीय बैंको द्वारा जब्त किये गये। हालांकि अनुमान के मुताबिक करीब 1700 करोड़ मूल्य के नकली नोट चलन मे है जिनमे से अधिकतर कभी बैंक नही पहुँचते....
नकली करेंसी का एक सबसे बड़ा नुकसान जो शायद हम सबने महसूस किया है वो है.. बैंक द्वारा नकली करेंसी जब्त कर लेना, बदले में हमे कुछ नही मिलता।
जो नुकसान हम लोग सीधे और पर महसूस नही कर पाते है वो है महंगाई.. जी हाँ नकली करेंसी नकली तौर से मंहगाई को बढाती है....पर कैसे?...
शेख शहजाद और शेख फजुल्लाह दोनो मोतिहारी के एक छोटे कस्बे से निकल कर मेरठ मे काम की तलाश मे आये.. जल्दी से ज्यादा पैसा कमाने के लिये दोनो ने 1-1 लाख के नकली नोट 60-60 हजार में खरीदे। 1 महीने मे नकली नोट बाजार मे जाकर धीरे धीरे बदल लिये..अब इस अचानक आये हुये पैसे से मोतिहारी जाकर जमीन खरीदी..
अचानक जिस जमीन का एक खरीददार था, अब तीन खरीददार हो गये... जमीन के रेट बढ़ गये.....वो बात और है कि दोनो ही 25 जून 2016 को NIA द्वारा धर लिये गये..😀। आपको अंदाजा भी नही होगा कि पाकिस्तान इस गोरखधंधे से कितना कमाता होगा... अनुमान के मुताबिक पाकिस्तानी फौज सालाना 500 करोड़ रूपये (source : The Diplomat 14th nov 2016) नकली नोटो का कारोबार करके कमाती है, इसी पैसे से आतंकवादियो और पत्थरबाजो को पैसे दिये जाते है...मतलब बिना अपना पैसा खर्च किये नापाक ने हमे नुकसान पहुँचा दिया....
तीसरा सबसे बड़ा नुकसान .... समाज मे अविश्वास का माहौल पैदा होता है... जरा सोचिये जिस दुकानदार ने आपको नकली नोट दे दिया उसे आप किस नजर से देखेंगे...
इकबाल काना शामली (मुजफ्फ़रनगर) का छोटा सा बदमाश था जो रंगदारी और हथियारो की smuggling में लिप्त था। चूंकि शराब हराम थी तो उसने ड्रग्स के बिजनेस में हाथ आजमाये... पुलिस का प्रेशर बढ़ा तो वो underground हो गया मने भाग गया..... कुछ समय के बाद इकबाल काना लाहौर में एक garment trader के रूप में सामने आया..... ISI के ब्रिगेडियर लाला के साथ मिलकर उसने भारत में नकली करेंसी चलाने का धंधा शुरू किया.... इस काम में उसने अपने पुराने network का इस्तेमाल किया...।
नशे के कारोबार का relevant work experience उसके काम आया और वो भारत में नेपाल के रास्ते बिहार और उत्तर प्रदेश, अटारी border के रास्ते पंजाब में नकली नोटो का सबसे बड़ा supplier बन गया। इकबाल काना सिर्फ एक supplier है...... ISI के ब्रिगेडियर लाला ने बांग्लादेश,श्रीलंका,थाईलैण्ड,UAE और मलेशिया के रास्ते similar networks तैयार किये..... 2012 मे इनके China route का पता चला..... China से आयातित स्कूल बैग्स मे 27 लाख के नकली नोट पकड़े गये (source: The Diplomat 20 जून 2012).....
2013 के बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियो ने नकली नोटो के कारोबारियोे खिलाफ जंग को तेज किया....मोदी की सफल विदेश नीति का एक परिणाम ये भी था कि पहली बार विदेशो में भी नकली नोटो के आतंकवादियो को दबोचा गया.... असलम शेरा की श्रीलंका, अमानुल्लाह पराचा की बांग्लादेश और UAE से रेहान अली की गिरफ्तारी RAW के input के बाद संभव हो सकी।
भारतीय सुरक्षा एजेंसियो की बढ़ी हुई सख्ती की वजह से 2016 तक नकली नोटो की भारी inventory पाकिस्तान और भारत में जमा हो गयी थी......
नकली नोटो का ये कारोबार क्यूँ इतना बढ़ा???? शायद इस धंधे को करने मे जोखिम के अनुपात मे मुनाफा ज्यादा था.... माना पाकिस्तान को सुधारने मे वक्त लगेगा पर बिचौलियो को हम जरूर सुधार सकते है.... उन्हे भारत के खिलाफ़ कुछ करने की सोचने में भी ड़र लगना चाहिये....अन्दर से दहशत की झुरझुरी उनके शरीर मे दौड़ जानी चाहिये।
मोदी जी के एक फैसले से अचानक इस धंधे का जोखिम कई गुना बढ़ गया है... दहशत की झुरझुरी दौडने लगी है..
First Post की एक खबर के अनुसार ISI के एक पूरे department मे मातम छाया है.......ISI का ब्रिगेडियर लाला बेरोजगार हो गया है
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