Thursday 30 June 2016

जानिए काले नमक की फायदे...

रोज सुबह काला नमक और पानी मिला कर पीना शुरु करें। इससे आपका ब्‍लड प्रेशर, ब्‍लड शुगर,ऊर्जा में सुधार, मोटापा और अन्‍य तरह की बीमारियां ठीक होंगी। काले नमक में 80 खनिज और जीवन के लिए वे सभी आवश्यक प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं, जो जरुरी हैं।
एेसे बनाए घोल
नमक वाला पानी बनाने की विधिः एक गिलास हल्‍के गरम पानी में एक तिहाई छोटा चम्‍मच काला नमक मिलाइए। देखिए कि क्‍या काले नमक का टुकड़ा (क्रिस्‍टल) पानी में घुल चुका है। उसके बाद इसमें थोड़ा सा काला नमक और मिलाइए । जब आपको लगे कि पानी में नमक अब नहीं घुल रहा है तो, समझिए कि आपका घोल पीने के लिए तैयार हो गया है।
ये होंगे लाभ
पाचन दुरुस्‍त करे – नमक वाला पानी पेट के अंदर प्राकृतिक नमक, हाइड्रोक्लोरिक एसिड और प्रोटीन को पचाने वाले इंजाइम को उत्‍तेजित करने में मदद करता है। इससे खाया गया भोजन आराम से पच जाता है। इसके अलावा इंटेस्‍टाइनिल ट्रैक्ट और लिवर में भी एंजाइम को उत्‍तेजित होने में मदद मिलती है, जिससे खाना पचने में आसानी होती है।
नींद लाने में लाभदायक- अपरिष्कृत नमक में मौजूदा खनिज हमारी तंत्रिका तंत्र को शांत करता है। नमक, कोर्टिसोल और एड्रनलाईन, जैसे दो खतरनाक सट्रेस हार्मोन को कम करता है इसलिए इससे रात को अच्‍छी नींद लाने में मदद मिलती है।
शरीर करें डिटॉक्‍स-नमक में काफी खनिज होने की वजह से यह एंटीबैक्‍टीरियल का काम भी करता है। इस‍की वजह से शरीर में मौजूद खतरनाक बैक्‍टीरिया का नाश होता है।
त्वचा की समस्‍या-नमक में मौजूद क्रोमियम एक्‍ने से लड़ता है और सल्‍फर से त्‍वचा साफ और कोमल बनती है। इसके अलावा नमक वाला पानी पीने से एक्‍जिमा और रैश की समस्‍या दूर होती है।
मोटापा घटाए- यह पाचन को दुरुस्‍त कर के शरीर की कोशिकाओं तक पोषण पहुंचाता है, जिससे मोटापा कंट्रोल करने में मदद मिलती है।

पिछले दिनों ग्रीक के फिल्म-निर्माता ओलिवर स्टोन की एक फिल्म प्रदर्शित हुई जिसमें भारत में सिकन्दर की हार को स्वीकार किया गया है ! फिल्म में दर्शाया गया है कि एक तीर सिकन्दर का सीना भेद देती है और इससे पहले कि वो शत्रु के हत्थे चढ़ता उससे पहले उसके सहयोगी उसे ले भागते हैं ! इस फिल्म में ये भी कहा गया है कि ये उसके जीवन की सबसे भयानक त्रासदी थी और भारतीयों ने उसे तथा उसकी सेना को पीछे लौटने के लिए विवश कर दिया !

लेकिन भारतीय बच्चे इतिहास में क्या पढ़ते हैं ? वे पढ़ते हैं कि "सिकन्दर ने पौरस को बंदी बना लिया था, उसके बाद जब सिकन्दर ने उससे पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाय, तो पौरस ने कहा कि उसके साथ वही किया जाय जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता ! सिकन्दर इस बात से इतना अधिक प्रभावित हो गया कि उसने वो कार्य कर दिया जो अपने जीवन भर में उसने कभी नहीं किया था, अर्थात पौरस को पुरस्कार-स्वरुप अपने द्वारा जीता हुआ राज्य तथा धन-सम्पत्ति देकर वापस लौटने का निश्चय किया और लौटने के क्रम में ही उसकी मृत्यु हो गई !"

एक ओर विदेशी ऐसी फिल्म बना रहे हैं, जिसमें वे सिकंदर की हार को स्वीकार कर रहे रहे हैं और हम अपने ही वीरों का इस तरह अपमान कर रहे हैं ! वस्तुतः यह ये कितना बड़ा तमाचा है अंग्रेजों के मानस पुत्र. हीन ग्रंथि से पीड़ित उन भारतीय इतिहासकारों के मुँह पर ?

जरा विचार कीजिए कि जो सिकन्दर पूरे यूनान, ईरान, ईराक, बैक्ट्रिया आदि को जीतते हुए आ रहा था, वो भारत की सीमा से ही जीतने के बाबजूद वापस लौट गया, यह कैसे संभव है ? वह भारत के अन्दर क्यों नहीं प्रविष्ट हुआ ? उसने भारत के अन्य राजाओं से युद्ध क्यों नहीं किया ?
दरअसल जितना बड़ा अन्याय और धोखा इतिहासकारों ने महान पौरस के साथ किया है उतना बड़ा अन्याय इतिहास में शायद ही किसी के साथ हुआ होगा।एक महान नीतिज्ञ, दूरदर्शी, शक्तिशाली वीर विजयी राजा को निर्बल और पराजित राजा घोषित कर दिया गया ! जबकि पराजित सिकंदर को विश्व विजेता का तमगा दे दिया ! थोड़ी देर के लिए मान भी लें कि सिकंदर ने पौरस को हरा दिया था, तो भी वो विश्व-विजेता कैसे बन गया..? पौरस तो बस एक राज्य का राजा था..भारत में उससे बड़े अनेक राज्य थे, तो पौरस पर सिकन्दर की विजय भारत की विजय तो नहीं कही जा सकती और भारत तो दूर चीन,जापान जैसे एशियाई देश भी तो जीतना बाकी ही था, फिर वो विश्व-विजेता कहलाने का अधिकारी कैसे हो गया...?


भारत में तो ऐसे अनेक राजा हुए जिन्होंने पूरे विश्व को जीतकर राजसूय यज्य करवाया था पर बेचारे यूनान के पास तो एक ही घिसा-पिटा योद्धा कुछ हद तक है ऐसा जिसे विश्व-विजेता कहा जा सकता है....तो.! ठीक है भाई यूनान वालों,संतोष कर लो उसे विश्वविजेता कहकर...!

महत्त्वपूर्ण बात ये कि सिकन्दर को सिर्फ विश्वविजेता ही नहीं बल्कि महान की उपाधि भी प्रदान की गई है और ये बताया गया कि सिकन्दर बहुत बडे हृदय वाला दयालु राजा था ! अब क्योंकि सिर्फ लड़ कर लाखों लोगों का खून बहाने वाले एक विश्व-विजेता को महान की उपाधि नहीं दी सकती, इसलिए ये घोषित किया गया कि उसने पोरस को सम्मानित किया ! 

अगर सिकन्दर सचमुच बडे हृदय वाला व्यक्ति होता, तो धन के लालच में भारत न आता और नाहक इतने लोगों का खून न बहाता ! इस बात को उस फिल्म में भी दिखाया गया है कि सिकन्दर को भारत के धन(सोने,हीरे-मोतियों) से लोभ था ! यहाँ ये बात सोचने वाली है कि जो व्यक्ति धन के लिए इतनी दूर इतना कठिन रास्ता तय करके भारत आ जाएगा वो पौरस की वीरता से खुश होकर पौरस को जीवन-दान भले ही दे दे, पर अपना जीता हुआ प्रदेश पौरस को क्यों सौंपेगा ? 

सच्चाई ये थी कि उन दिनों भारत के उत्तरी क्षेत्र में तीन राज्य थे ! झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी ! पौरस का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था ! तीसरा राज्य अभिसार था, जो कश्मीरी क्षेत्र में था ! अम्भि का पौरस से पुराना बैर था ! इसलिए वह सिकन्दर के आगमन से खुश हो गया और अपनी शत्रुता निकालने का उपयुक्त अवसर समझ उसके साथ हो गया ! जबकि अभिसार के लोग तटस्थ रहे ! इस तरह पौरस ने अकेले ही सिकन्दर तथा अम्भि की मिली-जुली सेना का सामना किया! 

"प्लूटार्च" के अनुसार सिकन्दर की बीस हजार पैदल सैनिक तथा पन्द्रह हजार अश्व सैनिक पौरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से बहुत ही अधिक थे ! सिकन्दर की सहायता फारसी सैनिकों ने भी की थी ! इसके बाबजूद युद्ध के शुरु होते ही पौरस ने अपने सैनिकों के साथ विनाश का तांडव मचाना शुरु कर दिया !

पोरस के हाथियों द्वारा यूनानी सैनिकों में उत्पन्न आतंक का वर्णन कर्टियस ने इस तरह से किया है—

इनकी तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल घोड़ों को भयातुर कर देती थी, जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे अपितु घुड़सवारों के हृदय भी दहला देती थी ! इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि अनेक विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए, जहाँ इनको शरण मिल सके ! उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से यूनानी सैनिक को पकड़ लेता था,उसको अपने उपर वायु-मण्डल में हिलाता था और उस सैनिक को अपने महावत के हाथों सौंप देता था, जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था ! इन पशुओं ने घोर आतंक उत्पन्न कर दिया था !

इसी तरह का वर्णन "डियोडरस" ने भी किया है –

विशाल हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ! उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे सैनिकों की हड्डियाँ-पसलियाँ चूर-चूर कर दी ! हाथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे..अपने विकराल गज-दन्तों से सैनिकों को गोद-गोद कर मार डालते थे !

इन पशुओं का आतंक उस फिल्म में भी दिखाया गया है..

अब विचार करिए कि डियोडरस का ये कहना कि उन हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए ये क्या सिद्ध करता है..फिर ? "कर्टियस" का ये कहना कि इन पशुओं ने आतंक मचा दिया था ये क्या सिद्ध करता है...?

अफसोस की ही बात है कि इस तरह के वर्णन होते हुए भी लोग यह दावा करते हैं कि पौरस को पकड़ लिया गया और उसके सेना को शस्त्र त्याग करने पड़े !

एक और विद्वान ई.ए. डब्ल्यू. बैज का वर्णन देखिए-

उनके अनुसार झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था ! सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा ! अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की -"श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है ! मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय, मैं इनका अपराधी हूँ,....और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया.----ये बातें किसी भारतीय द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है !

 इस विषय पर "प्लूटार्च" ने लिखा है कि मलावी नामक भारतीय जनजाति बहुत खूँखार थी ! इनके हाथों सिकन्दर के टुकड़े-टुकड़े होने वाले थे लेकिन तब तक प्यूसेस्तस और लिम्नेयस आगे आ गए ! इसमें से एक तो मार ही डाला गया और दूसरा गम्भीर रुप से घायल हो गया ! .तब तक सिकन्दर के अंगरक्षक उसे सुरक्षित स्थान पर ले गए !

स्पष्ट है कि पोरस के साथ युद्ध में तो इनलोगों का मनोबल टूट ही चुका था रहा सहा कसर इन जनजातियों ने पूरी कर दी थी ! .अब इनलोगों के अंदर ये तो मनोबल नहीं ही बचा था कि किसी से युद्ध करे पर इतना भी मनोबल शेष ना रह गया था कि ये समुद्र मार्ग से लौटें ! फलतः वे बलुचिस्तान के रास्ते ही वापस लौटे....

अब उसके महानता के बारे में भी कुछ विद्वानों के वर्णन देखिए...

एरियन के अनुसार जब बैक्ट्रिया के बसूस को बंदी बनाकर सिकन्दर के सम्मुख लाया गया तब सिकन्दर ने अपने सेवकों से उसको कोड़े लगवाए तथा उसके नाक और कान काट कटवा दिए तथा बाद में बसूस को मरवा ही दिया गया ! सिकन्दर ने कई फारसी सेनाध्यक्षों को नृशंसतापूर्वक मरवा दिया था ! फारसी राजचिह्नों को धारण करने पर सिकन्दर की आलोचना करने के लिए उसने अपने ही गुरु अरस्तु के भतीजे कालस्थनीज को मरवा डालने में कोई संकोच नहीं किया ! क्रोधावस्था में अपने ही मित्र क्लाइटस को मार डाला ! उसके पिता के विश्वासपात्र सहायक परमेनियन को भी सिकन्दर के द्वारा मारा गया था ! जहाँ पर भी सिकन्दर की सेना गई उसने समस्त नगरों को आग लगा दी,महिलाओं का अपहरण किया और बच्चों को भी तलवार की धार पर सूत दिया ! ईरान की दो शाहजादियों को सिकन्दर ने अपने ही घर में डाल रखा था.उसके सेनापति जहाँ-कहीं भी गए अनेक महिलाओं को बल-पूर्वक रखैल बनाकर रख लिया !

तो ये थी सिकन्दर की महानता....इसके अलावा अपने पिता फिलिप की हत्या का भी शक इतिहास ने इसी पर किया है ! इसने अपनी माता के साथ मिलकर फिलिप की हत्या करवाई क्योंकि फिलिप ने दूसरी शादी कर ली थी और सिकन्दर के सिंहासन पर बैठने का अवसर खत्म होता दिख रहा था !  इसके बाद सिकंदर ने अपने सौतेले भाई को भी मार डाला, ताकि सिंहासन का और कोई उत्तराधिकारी ना रहे...

तो ये थी सिकन्दर की महानता और वीरता....

अब निर्णय करिए कि पोरस तथा सिकन्दर में विश्व-विजेता कौन था..? दोनों में वीर कौन था..?दोनों में महान कौन था..?

यूनान वाले सिकन्दर की जितनी भी विजय गाथा दुनिया को सुना ले सच्चाई यही है कि ना तो सिकन्दर विश्वविजेता था औ महान तो कभी वो था ही नहीं....

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस पोरस ने लगातार जीतते आ रहे सिकन्दर के अभिमान को अकेले ही चकना-चूर कर दिया,उसके मद को झाड़कर उसके सर से विश्व-विजेता बनने का भूत उतार दिया, उस पोरस को इतिहास ने उचित स्थान नहीं दिया ?

भारतीय इतिहासकारों ने तो पोरस को इतिहास में स्थान देने योग्य समझा ही नहीं है.इतिहास में एक-दो जगह इसका नाम आ भी गया तो बस सिकन्दर के सामने बंदी बनाए गए एक निर्बल निरीह राजा के रुप में ! .नेट पर भी पोरस के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है.....

आज आवश्यकता है कि नेताओं को धन जमा करने से अगर अवकाश मिल जाय तो वे इतिहास को फिर से जाँचने-परखने का कार्य करवाएँ, ताकि सच्चाई सामने आ सके और भारतीय वीरों को उसका उचित सम्मान मिल सके ! जो राष्ट्र वीरों का इस तरह अपमान करेगा वो राष्ट्र ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाएगा...

मानते हैं कि ये सब घटनाएँ बहुत पुरानी हैं, हजार वर्ष से अधिक काल की गुलामी के कारण भारत का अपना इतिहास तो विलुप्त हो गया और जब देश आजाद हुआ भी तो कांग्रेसियों ने इतिहास लेखन का काम धूर्त्त अंग्रेजों को सौंप दिया ताकि वो भारतीयों को गुलाम बनाए रखने का काम जारी रखे ! अंग्रेजों ने इतिहास के नाम पर काल्पनिक कहानियों का पुलिंदा बाँध दिया ताकि भारतीय हमेशा यही समझते रहें कि उनके पूर्वज निरीह थे तथा विदेशी बहुत ही शक्तिशाली, ताकि भारतीय हमेशा मानसिक गुलाम बने रहें, पर अब तो कुछ करना होगा ना ?

इससे एक और बात सिद्ध होती है कि अगर भारत का एक छोटा सा राज्य अकेले ही सिकन्दर को धूल चटा सकता है, तो अगर भारत मिलकर रहता और आपस में ना लड़ता रहता, तो मुगलों या अंग्रेजों में इतनी शक्ति नहीं थी कि वो भारत का बाल भी बाँका कर पाते ! .कम से कम अगर भारतीय ही दुश्मनों का साथ ना देते तो उनमें इतनी शक्ति नहीं थी कि वो भारत पर शासन कर पाते ! भारत पर विदेशियों ने शासन किया है तो सिर्फ यहाँ की आपसी दुश्मनी के कारण..

भारत में एक ही साथ अनेक वीर पैदा हो गए और यही भारत की बर्बादी का कारण बन गया ! क्योंकि सब शेर आपस में ही लड़ने लगे ! महाभारत काल में इतने सारे महारथी, महावीर पैदा हो गए थे, इसी कारण महाभारत का विध्वंशक युद्ध हुआ और आपस में ही लड़ मरने के कारण भारत तथा भारतीय संस्कृति का विनाश हो गया ! पर आज जरुरत है भारतीय शेरों को एक होने की क्योंकि बैसे भी आजकल भारत में शेरों की बहुत ही कमी हो गई है....

mediya

19 जनवरी 1990 को सुबह कश्मीर के प्रत्येक हिन्दू घर पर एक नोट चिपका हुआ मिला, जिस पर लिखा था- 'कश्मीर छोड़ के नहीं गए तो मारे जाओगे।'
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हजारों कश्मीरी मुसलमानों ने पंडितों के घर को जलाना शुरू कर दिया। महिलाओं का बलात्कार कर, बच्चों का कत्ल कर उसके टूकडे महिलाओ को खिलाया गया !यह सभी हुआ योजनाबद्ध तरीके से। इसके लिए पहले से ही योजना बना रखी थी। यह सारा तमाशा पूरा देश मूक दर्शक बनकर देखता रहा।
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सबसे पहले हिन्दू नेता एवं उच्च अधिकारी मारे गए। फिर हिन्दुओं की स्त्रियों को उनके परिवार के सामने सामूहिक बलात्कार कर जिंदा जला दिया गया या नग्नावस्था में पेड़ से टांग दिया गया। बालकों को पीट-पीट कर मार डाला। यह मंजर देखकर कश्मीर से तत्काल ही 7,50,000 हिंदू पलायन कर दिल्ली पहुंच गए।
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देश का मुसलमान तब चुप था : संसद, सरकार, नेता, अधिकारी, लेखक, बुद्धिजीवी, समाजसेवी, भारत का मुसलमान और पूरा देश सभी चुप थे। कश्मीरी पंडितों पर जुल्म होते रहे और समूचा राष्‍ट्र चुपचाप तमाशा देखता रहा, आज इस बात को 25 साल गुजर गए... अब इन लोगों का होसला इतना अधिक हो गया है की देश में कई जगह पे कश्मीर का इतिहास दोहरा रहे हैं ... आज भी सभी चुप हैं ...
Arvind Jadoun
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हमारे देश में एक और मजे की बात है हम पाश्चात्य संस्कृति को अपना तो रहे है और हमारी पुरानी परम्परा और संस्कृति को भी तजते जा रहे है लेकिन वास्तव में जिन परम्पराओ को वक्त के साथ बदलना चाहिए उस पर हम कोई विचार नही करते.मसलन मृत्युभोज ये बकवास परम्परा आज भी कायम है सोचने वाली बात है किसी के यहाँ उसका अपना मर जाता है और लोग उसके उपलक्ष्य में भोजन रखते है और लोग खाते भी है??आखिर इसका क्या औचित्य है ये समझ से परे है?
दुसरा आजकल शहरों में विद्युत शवदाह बने है जिसको स्थापित करने में लाखो रुपयो का खर्च आता है बावजूद लोग उसका उपयोग ना करते हुए आज भी लकड़ी और कंडे (गाय के गोबर से बनते है कही इन्हें उपले भी कहा जाता है ) में जलाकर दाह संस्कार करते है.
हम पर्यावरण के असंतुलन का भयावह प्रभाव देख रहे है कही भूकंप,कहि अतिवृष्टि तो कही सुखा फिर भी हम इससे सीखने को तैयार नही है.सीमेंट क्रांक्रीट के जंगल तो वैसे ही हमारे देश में बनते जा रहे है और ऐसी परम्परा के चलते हरे पेड़ काटे जा रहे है.नदियो में गन्दगी प्रदुषण बढ़ रहा है.
हम यदि पेड़ लगा नहीं सकते पर कम से कम दाह संस्कार में विद्युत शवदाह में करके हरे भरे पेड़ काटने से तो रोक ही सकते है.
Abhay Arondekar 
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'काबा'

अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है यहाँ तक कि "हिस्ट्री ऑफ पर्शिया" के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर"अरब" हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी पश्चिमीभाग, ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगित का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था। आदित्यों का आवास स्थान-देवलोक भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित हिमालयी क्षेत्रों में रहा था।
      बेबीलोन की प्राचीन गुफाओं में पुरातात्त्विक खोज में जो भित्ति चित्र मिले है, उनमें विष्णु को हिरण्यकशिपु के भाई हिरण्याक्ष से युद्ध करते हुए उत्कीर्ण किया गया है। उस युग में अरब एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र रहा था, इसी कारण देवों, दानवों और दैत्यों में इलावर्त के विभाजन को लेकर 12 बार युद्ध 'देवासुर संग्राम' हुए।
      देवताओं के राजा इन्द्र ने अपनी पुत्री ज्यन्ती का विवाह शुक्र के साथ इसी विचार से किया था कि शुक्र उनके (देवों के) पक्षधर बन जायें, किन्तु शुक्र दैत्यों के ही गुरू बने रहे। यहाँ तक कि जब दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य का कहना न माना, तो वे उसे त्याग कर अपने पौत्र और्व के पास अरब में आ गये और वहाँ 10 वर्ष रहे। साइक्स ने अपने इतिहास ग्रन्थ "हिस्ट्री ऑफ पर्शिया" में लिखा है कि 'शुक्राचार्य लिव्ड टेन इयर्स इन अरब'। 
     अरब में शुक्राचार्य का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे'काबा' कहते है, वह वस्तुतः 'काव्य शुक्र' (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है। कालांतर में 'काव्य' नाम विकृत होकर 'काबा' प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में 'शुक्र' का अर्थ 'बड़ा' अर्थात 'जुम्मा' इसी कारण किया गया और इसी से 'जुम्मा' (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
"बृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्, उशना काव्योऽसुराणाम्
"-जैमिनिय ब्रा.
(01-125)
अर्थात बृहस्पति देवों के पुरोहित थे और उशना काव्य (शुक्राचार्य) असुरों के। प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ 'सेअरूल-ओकुल' के 257वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह इस प्रकार है-
"अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।1।
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे अतुन जिकरा।
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंदतुन।2।
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन फुल्लहुम।
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन।3।
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे तनजीलन।
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन योवसीरीयोनजातुन।4।
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन।
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-रतुन।5।" अर्थात
   -(1) हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना।
   (2) वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ। 
   (3) औरपरमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद, जो मेरे ज्ञान है, इनके अनुसार आचरण करो।
  (4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है, जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते है।
  (5) और दो उनमें से रिक्, अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता।
      इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे, और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया, तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न हो गया और काबा में स्थित महाकाय शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन- ए-हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज, जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात 'ज्ञान का पिता' कहते थे। बाद में मोहम्मद के नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल जिहाल 'अज्ञान का पिता' कहकर उनकी निन्दा की।
    जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार, गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी। साथ ही एक मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से उसका एक हाथ सोने का बना था। 'Holul' के नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर रखी थी। मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठितहै, वरन् हज करने जाने वाले मुसलमान उस काले (अश्वेत) प्रस्तर खण्डअर्थात 'संगे अस्वद' को आदर मान देते हुए चूमते है।प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है।
     इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800 ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में प्रयुक्त होता था।
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-
कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे।
लेखक-:- विट्ठलदास व्यास

Monday 27 June 2016

केरल के इस कपल के घर में न ही A.C. है, न ही फ्रिज, न ही फैन. कुछ है तो बस सुकून ही सुकून...

हर तरफ प्रकृति का भरपूर प्यार हो, हरियाली हो, फूलों की खुशबू हो और साथी का साथ हो, ये किसी का भी सपना हो सकता है. या यूं कहिए कि सभी इस सपने को सच करने की कोशिश करते हैं और कई बार अपने घर से दूर प्रकृति के बीच इस सपने को तलाशने भी निकल जाते हैं. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि केरल का ये दम्पति हर वक़्त ऐसे ही सुन्दर माहौल में रहता है, जहां किसी भी तरह का बनावटीपन है ही नहीं, सिर्फ़ खुशहाली है, हरियाली है. 
चक्करकल उचलिकुलि हरी और उनकी पत्नी आशा पर्यावरणविद हैं और उन्होंने अपने घर को प्राकृतिक तरीके से डिज़ाइन किया है. उनकी शादी में सभी मेहमानों को फल और पारम्परिक स्वीट डिश पायसम को सर्व किया गया था.
लेकिन ये खूबसूरत घर ऐसी ही नहीं बन गया. इसे बनाने के लिए केवल अच्छी प्लानिंग ही नहीं की गई, बल्कि इसमें प्यार भी पिरोया गया है. उन्होंने अपने आर्किटेक्ट दोस्तों की मदद भी इसमें ली, जिसके बाद ऐसा घर बनाया जा सका, जो सिर्फ़ ऊर्जा के नवीकरणीय सोर्सेज का ही इस्तेमाल करता है.
ये घर ननवू (Nanavu) 34 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें रहने वालों में 15 मेढ़क, 150 तितलियां और 80 पक्षी शामिल हैं. मड से बनी घर की दीवारों की वजह से इसमें रहने वालों को जून की भीषण गर्मी में भी न तो एसी की ज़रुरत है और न ही फैन की.पिछले 6 सालों से ये कपल यहां रह रहा है और हर लम्हे को ख़ुशी से बिताया है. यहां पर बिना प्रकृति को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचाए वे टीवी, मिक्सर, ग्राइंडर, कम्प्यूटर जैसी सभी चीजें इस्तेमाल करते हैं. वे कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि हम आदिम जमाने का जीवन गुज़ार रहे हैं.
उनके पास फ्रिज नहीं है, क्योंकि उन्हें इसकी ज़रुरत ही नहीं पड़ती. खाने की चीज़ें वे जंगल में ही उगाते हैं और सीधे वहीं से निकालकर इस्तेमाल करते हैं.
भोजन को भी वे कुकिंग एरिया में बनाए गए खास तरह के प्राकृतिक कूलिंग स्पेस में रखते हैं. इसे भी किचन में ही एक गड्ढे में मड पॉट रखकर, फिर उसे रेत से ढककर तैयार किया गया है. मड पॉट ठंडा रहता है और उसकी वजह से खाने की चीज़ें कम से कम एक सप्ताह तक फ्रेश बनी रहती हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इन दोनों ने पिछले 17 सालों से कोई मेडिसिन नहीं खाई है. साफ़, ताज़ा भोजन और शरीर के साथ किसी भी तरह की ज्यादती न करना ही इसकी वजह है और इसलिए वे बीमारियों से दूर रहते हैं. आमतौर पर लोगों को होने वाला जुकाम व बुखार अगर इन्हें हो जाता है, तो ये आराम करते हैं, तरल पदार्थ लेने के अलावा उपवास रखते हैं.

एक अंडे की कीमत की मूंगफली में होता है एक अंडे से ज़्यादा प्रोटीन

पहले मूंगफली दाना इतना सस्ता हुआ करता था कि उसे गरीबों का बादाम कहते थे. लेकिन अब मूंगफली की कीमत भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. लेकिन यदि गुणवत्ता की बात करें तो गरीब हो या अमीर मूंगफली दाना सबके लिए बादाम समान ही पौष्टिक है.
पहले मूंगफली दाना इतना सस्ता हुआ करता था कि उसे गरीबों का बादाम कहते थे. लेकिन अब मूंगफली की कीमत भी दिन ब दिन बढ़ती जा रही है. लेकिन यदि गुणवत्ता की बात करें तो गरीब हो या अमीर मूंगफली दाना सबके लिए बादाम समान ही पौष्टिक है.
बहुत कम लोग जानते हैं कि एक अंडे की कीमत में जितनी मूंगफली आती है, उसमें इतना प्रोटीन होता है जितना दूध और अंडे में भी नहीं होता है. यह आयरन, नियासिन, फोलेट, कैल्शियम और जिंक का अच्छा स्रोत हैं.
आधी मुट्ठी मूंगफली के दानों में 426 कैलोरीज 5 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 17 ग्राम प्रोटीन और 35 ग्राम वसा होती है. इसमें विटामिन ई, के और बी6 भी भरपूर मात्रा में पाए जाते है. इसलिए अगर आप प्रोटीन और पोषण पाना चाहते हैं तो रोजाना लाल छिलके वाले कम से कम 20 मूंगफली के दाने खाएं.
  • मूंगफली दानों में में ओमेगा-6 फैट होता है जो कोशिकाओं को स्वस्थ और त्वचा को चमकदार बनाता है.  प्रोटीन, लाभदायक वसा, फाइबर, खनिज, विटामिन और एंटीआक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होने से इसके सेवन से त्वचा हमेशा बच्चों सी कोमल दिखाई देती है.
  • एक शोध के अनुसार सप्ताह में पांच दिन मूंगफली के कुछ दाने खाने से दिल की बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है.
  • खाने के बाद थोड़ी सी मूंगफली रोजाना खाने से भोजन पचता है, शरीर में खून की कमी नहीं होती.
  • मूंगफली के नियमित सेवन से कब्ज की समस्या, गैस और एसिडिटी में राहत मिलती है.
  • मूंगफली का नियमित सेवन गर्भवती स्त्री के लिए भी बहुत अच्छा होता है. यह गर्भावस्था में शिशु के विकास में मदद करती है.
  • इसमें कैल्शियम और विटामिन डी अधिक मात्रा में होता है, इसलिए इसे खाने से हड्डिया मजबूत हो जाती है.
  • माना जाता है कि रोजाना थोड़ी मात्रा में मूंगफली खाने से महिलाओं और पुरुषों में हार्मोन्स का संतुलन भी बना रहता है.


Sunday 26 June 2016

विदेशी मुद्रा भंडार पहुंचा लाइफ टाइम हाई पर, 363.8 अरब डॉलर का हुआ फॉरेक्‍स रिजर्व...

17 जून को समाप्‍त सप्‍ताह के दौरान 59.21 करोड़ डॉलर की बढ़ोतरी के बाद 363.8 अरब डॉलर के लाइफ टाइम हाई पर पहुंच गया है। रिर्जव बैंक ने  फॉरेक्‍स रिजर्व से जुड़े ताजा आंकड़े जारी किए हैं।
 3 जून 2016 को समाप्‍त सप्‍ताह के दौरान देश का विदेशी मुद्रा भंडार 363.5 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्‍तर पर पहुंचा था। आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक विदेशी मुद्रा भंडार में यह वृद्धि फॉरेन करेंसी असेट (एफसीए) में बढ़ोतरी की वजह से आई है, ओवरऑल रिजर्व में एफसीए की प्रमुख हिस्‍सेदारी है। समीक्षाधीन हफ्ते में एफसीए 59.43 करोड़ डॉलर बढ़कर 339.6 अरब डॉलर पर पहुंच गया।

एफसीए को डॉलर के रूप में आंका जाता है और इस पर भंडार में मौजूद गैर-डॉलर मुद्राओं जैसे यूरो, पाउंड और येन में बढ़ोतरी और गिरावट का असर पड़ता है। स्‍वर्ण भंडार 20.3 अरब डॉलर के स्‍तर पर बिना किसी बदलाव के स्थिर बना रहा। 

भारत के सभी बुजुर्गों को मिलेगा 1 लाख का FREE हेल्थ इंश्योरेंस...

पटना। केन्द्रीय स्वास्थ मंत्री जे पी नड्डा ने कहा कि देश के लगभग 40 करोड़ बुजुर्गों को एक लाख का हेल्थ इंश्योरेंस कवर देने की तैयारी कर ली गई है और इस इंश्योरेंस कवर को सीधे आधार कार्ड से जोड़ दिया जाएगा ताकि कोई बिचौलिया ही न रहे। विकास पर्व मनाने के लिए  बागडोगरा से पूर्णिया जाने के क्रम में श्री नड्डा किशनगंज में  पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। 

श्री नड्डा ने कहा कि केन्द्र सरकार चाहती है कि देश के किसी भी नागरिक को स्वास्थ्य सुविधा के लिए अपनी जेब से खर्च न करना पड़े। इसके लिए ही एक बड़ी योजना बनाई गई है। जिसमें 1 लाख तक का हेल्थ इंश्योरेंस कवर सीधे आधार कार्ड से जोड़ने की प्रक्रिया अगले 6 महीनें में पूरी कर ली जाएगी। 

प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना के तहत देश के सभी किसानों को कृषि इंश्योरेंस से जोड़ लिया जाएगा। जो फसल के पूर्व व फसल के बाद भी बीमा कवर देगा। देश के 14 करोड़ किसानों का स्वाइल हेल्थ कार्ड बनाने का लक्ष्य है इसमें अब तक सवा करोड़ किसानों के स्वाइल हेल्थ कार्ड बन चुके हैं।

जापान में कुछ लोगों के लिए

 कम ही बेहतर है...

जापान में कुछ लोगों ने 'न्यूनतम लाइफस्टाइल' जीने का फैसला किया है. ये लोग अपने घरों को कम से कम चीज़ों से सजाते हैं. फूमियो सासाकी ऐसे ही एक शख़्स हैं जिन्होंने खुद को इस लाइफस्टाइल में ढाला है
दो साल पहले सासाकी को ये ऐहसास हुआ कि वो ट्रेंड के साथ अब चलना नहीं चाहते. उन्होंने अपना सामान कम करना शुरू कर दिया. वो कहते हैं, "मैं सोचता था उन चीज़ों के बारे में जो मेरे पास नहीं थीं
"सासाकी कहते हैं, "साफ़-सफ़ाई या शॉपिंग में कम समय बर्बाद होने का मतलब है कि मैं अब ज्यादा वक्त दोस्तों के साथ बिता सकता हूं, बाहर जा सकता हूं, छुट्टी के दिन यात्रा कर सकता हूं. मैं पहले से कहीं ज्यादा सक्रिय हो गया हूं
"उद्देश्य केवल चीज़े कम करना नहीं है बल्कि दोबारा इस बात का मूल्यांकन करना है कि संपत्ति इकट्ठा करने का क्या मतलब है. कुछ लोगों के लिए इस नए लाइफस्टाइल को जीने का मतलब है जीवन के दूसरे पहलुओं पर अधिक ध्यान देना
फ्रीलांस लेखक नाओकी नुमाहाता कहती हैं, "पश्चिम देशों में घर में खाली जगह होने का मतलब होता है वहां कोई सामान रख देना"ऑनलाइन पब्लिकेशन संपादक, कत्सुया त्योदा के 22 स्क्वेयर मीटर अपार्टमेंट में केवल एक मेज़ और एक गद्दा है
वो कहती हैं, "टी सेरेमनी के दौरान चीज़ों को जानबूझकर अधूरा छोड़ा जाता है जिसे लोग अपनी कल्पनाओं से भर सकते हैं." 'टी सेरेमोनी, जिसे ज़ेन भी कहते हैं, जापान की संस्कृति का एक हिस्सा है जहां सामूहिक रूप से लोग साथ बैठकर चाय और हल्का खाना खाते हैं'
त्योदा कहते हैं, "मैंने न्यूनतम लाइफस्टाइल जीना शुरू कर दिया जिससे मैं उन चीज़ों को कर सकता हूं जिसे करने में मुझे सबसे ज्यादा खुशी होती है"
तस्वीर में सीखो कुशिबिकी अपने फूजीसावा स्थित छोटे से अपार्टमेंट में गद्दा समेटकर रखती देखी जा सकती हैंये तस्वीर कुशिबिकी के रसोईघर की है जहां छोटी सी जगह में मसालों के डब्बों को करीने से सजाकर रखा गया है

महाराष्ट्र के नए भगीरथ बने बॉलीवुड एक्टर नाना पाटेकर

 अपने क्षेत्र में ख्याति और विश्वसनीयता अर्जित कर चुकी कोई शख्सियत समाज को कुछ देने के लिए निकल पड़े तो वह कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती है, इसकी जीती-जागती मिसाल हैं सिने अभिनेता नाना पाटेकर। जिनकी पहल पर सूखाग्रस्त महाराष्ट्र में कई सूखे-पटे नालों को कुछ ही महीनों में छोटी-मोटी नदी जैसा रूप दिया जा चुका है। ऐसे ही 15 किलोमीटर लंबे एक पुनर्जीवित नाले को ग्रामवासियों ने नाना पाटेकर के संगठन के नाम पर 'नाम नदी' कहना शुरू कर दिया है।

मराठवाड़ा के परभणी जनपद में झरी गांव के सरपंच कांतराव देशमुख झरीकर अपने बचपन में गांव से बहते एक नाले को देखा करते थे। समय के साथ-साथ नाला पटने लगा और धीरे-धीरे गायब ही हो गया। पिछले तीन वर्षों से महाराष्ट्र में लगातार पड़ते आ रहे सूखे के कारण ग्रामवासियों को पानी की चिंता हुई, तो सूखे नाले की याद आई। देशमुख ने करीब 15 किलोमीटर लंबे इस नाले को गहरा और चौड़ा करने का बीड़ा उठाया।

 नाले की खुदाई का काम तो मई 2015 से ही शुरू हुआ था। लेकिन पिछले साल सितंबर में नाना पाटेकर और मराठी अभिनेता मकरंद अनासपुरे द्वारा स्थापित नाम फाउंडेशन ने इस नाला खुदाई काम में सहयोग करना शुरू किया तो आस-पड़ोस के ग्रामवासियों में जैसे नई ऊर्जा भर गई। कांतराव देशमुख बताते हैं कि महिलाओं ने अपने जेवर तक बेचकर इस काम में योगदान किया। नतीजा सामने है। जहां कभी 20 फुट चौड़ा और मात्र डेढ़ फुट गहरा नाला दिखता दिखता था। आज 140 मीटर चौड़ी एवं 20 से 40 फुट गहरी नहर लगभग 15 किलोमीटर की दूरी में फैली दिखाई देती है।

नाम फाउंडेशन ने सिर्फ झरी गांव में ही यह काम नहीं किया है। पूरे महाराष्ट्र में इस फाउंडेशन ने 500 किलोमीटर से अधिक के नालों को पुनरुज्जीवन प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई है। इन नालों को गहरा करके जगह-जगह छोटे बांध बनाए गए हैं। ताकि बरसात के दिनों में पानी भरने के बाद उस क्षेत्र का पानी उसी क्षेत्र में रोका जा सके। यह तकनीक भूमिगत जलस्तर बढ़ाने में कारगर सिद्ध होगी। इसका लाभ पिछले 10 दिनों में मराठवाड़ा में ही प्रारंभिक बरसात में ही दिखने भी लगा है। हालांकि इस तरह के कामों में कई जगह सरकार की ओर से चलाई जा रही जलयुक्त शिवार योजना के तहत आने वाले फंड का भी इस्तेमाल किया जाता है। 
 

देश का पहला दोपहिया सीएनजी वाहन

1 किलोग्राम में 120 किलोमीटर...                                     बढ़ते वायु प्रदूषण से छुटकारा पाने के लिए केंद्र सरकार ने अपनी तरह का पहला पायलट 

प्रोग्राम शुरू किया है. इसके तहत दोपहिया वाहन कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) से चलाए जाएंगे.

बृहस्पतिवार को इस परियोजना की शुरुआत नई दिल्ली के सीजीओ कॉम्प्लेक्स स्थित सीएनजी स्टेशन
 पर केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेंद्र प्रधान और केंद्रीय पर्यावरण 
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रकाश जावड़ेकर ने की.

फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू की गई इस योजना के तहत सरकार ने करीब 50 हॉन्डा 

एक्टिवा स्कूटरों में सीएनजी किट लगाई है और डॉमिनोज पिज्जा द्वारा इसका इस्तेमाल और

 परीक्षण होम डिलीवरी के लिए किया जाएगा.  




रियो में हिस्सा लेने  भारतीय खिलाड़ियों की संख्या 100 के पार पहुँच गई...
ओलंपिक का टिकट हासिल करने वाले लॉन्ग जंपर अंकित शर्मा, धावक सरबनी नंदा और मोहम्मद अनस और तीरंदाज अतनू दास हैं.इसके साथ ही रियो में हिस्सा लेने के लिए तैयार भारतीय खिलाड़ियों की संख्या 100 के पार पहुँच गई है.
कज़ाख़स्तान के अलमाटी में 200 मीटर दौड़ में ओडिशा की सरबनी ने 23.07 सेकंड का समय निकालकर अगस्त में होने वाले रियो ओलंपिक खेलों के लिए अपनी जगह पक्की की.
मध्य प्रदेश के अंकित शर्मा ने 8.17 मीटर की लंबी छलांग लगाकर रियो का टिकट पाया.
पुरुषों की तीरंदाज़ी की रिकर्व स्पर्धा के लिए कोलकाता के अतनू दास ने बाज़ी मार ली है.
इससे पहले, पोलैंड में एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मोहम्मद अनस ने 400 मीटर दौड़ में नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाते हुए रियो का टिकट हासिल कर लिया.उन्होंने 45.40 सेकंड का समय निकालकर ओलंपिक में हिस्सा लेने का अपना सपना साकार किया.
ये है सब से कम उम्र की दबंग लेडी  IAS स्वाति मीणा नायक...

आपने ऐसे कई ईमानदार अफसरों के बारे में सुना होगा, जो अपनी ड्यूटी से कभी कंप्रोमाइज़ नहीं करते. उनके लिए उनकी ड्यूटी ही सबसे बड़ा धर्म होता है. वे अपने काम और राजनीति दोनों को एक-दूसरे के आस-पास भटकने नहीं देते. भारतीय प्रशासनिक अधिकारी 2007 बैच की स्वाति मीणा नायक भी ऐसे ही अधिकारियों की श्रेणी में आती हैं. तेज़-तर्रार काम करने के तरीके और निर्भिक विचारों वाली मध्यप्रदेश के खांडवा में तैनात डीएम के तौर पर स्वाति मीणा को ‘नो नॉनसेंस एडमिनिस्ट्रेटर’ के रूप में भी जाना जाता है. वे अपने काम के प्रति इतनी ईमानदार हैं कि अपने काम में किसी तरह से भी ‘राजनेताओं का हस्तक्षेप’ और निकम्मे अधिकारियों को पसंद नहीं करती 
मूल रूप से राजस्थान के सीकर की रहने वाली स्वाति के परिवार ने देश को कई आईएएस व आरएएस दिए हैं. स्वाति को देश में सबसे कम उम्र में आईएस की परीक्षा पास करने का गौरव प्राप्त है. सच कहूं तो ऐसे ही लोगों ने अभी भी प्रशासन पर जनता के विश्वास को कायम रखा है.

स्वाति के पति तेजस्वी नायक भी ऐसे ही अफसर हैं. यहां तक कि दोनो को प्यार भी इसी वजह से हुआ था. वो अकसर अपने कामों की बदौलत समाचारों की सुर्खियों में रही हैं. स्वाति जब मध्यप्रदेश में की डीएम थी, तब उन्होंने नर्मदा के रेत और माईनिंग माफियाओं पर प्रतिबंध लगाकर खूब सुर्खियां बटोरी थी. कहते हैं डीएम स्वाति नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी फील्ड में जाकर लोगों की समस्याओं को सुनना और उसे दूर करना पसंद करती हैं. अपने पति की ही तरह नेताओं की ग़ैरवाजिब मांगों को उन्होंने कभी नहीं तवज्जो दी. वे जनता से सुनकर उनकी ज़रूरत के मुताबिक़ काम करने को तरजीह देती हैं.  दरअसल, काम के दौरान ही दोनों की मुलाकात हुई थी. उस समय स्वाति मध्यप्रदेश के सीधी में और तेजस्वी कटनी में तैनात थे. धीरे-धीरे दोनों में दोस्ती बढ़ती गई और दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. 25 मई 2014 को दोनों ने शादी रचा ली. आपको बता दें कि 1984 में जन्मीं स्वाति ने 2007 में आईएएस की परीक्षा पास की थी. इसमें उन्होंने 260वां रैंक हासिल करने के साथ सबसे कम उम्र में आईएस बनने का कीर्तिमान स्थापित किया था 

महाराजा सूरजमल नाम है उस राजा का, जिसने मुगलों के सामने कभी घुटने नहीं टेके...

राजस्थान की रेतीली जमीन में चाहे अनाज की पैदावार भले ही कम होती रही हो, पर इस भूमि पर वीरों की पैदावार सदा ही बढ़ोतरी से हुई है. अपने पराक्रम और शौर्य के बल पर इन वीर योद्धाओं ने राजस्थान के साथ-साथ पूरे भारतवर्ष का नाम समय-समय पर रौशन किया है. कर्नल जेम्स टॉड ने राजस्थान नाम पड़ने से पहले इस मरू भूमि को 'राजपुताना' कहकर पुकारा था. इस राजपूताने में अनेक राजपूत राजा-महाराजा पैदा हुए. पर आज की कहानी है, इन राजपूत राजाओं के बीच पैदा हुए इतिहास के एकमात्र जाट महाराजा सूरजमल की. जिस दौर में राजपूत राजा मुगलों से अपनी बहन-बेटियों के रिश्ते करके जागीररें बचा रहे थे. उस दौर में यह बाहुबली अकेला मुगलों से लोहा ले रहा था. सूरजमल को स्वतंत्र हिन्दू राज्य बनाने के लिए भी जाना जाता है.
महाराजा सूरजमल का जन्म 13 फरवरी 1707 में हुआ. यह इतिहास की वही तारीख है, जिस दिन हिन्दुस्तान के बादशाह औरंगजेब की मृत्यु हुई थी. मुगलों के आक्रमण का मुंह तोड़ जवाब देने में उत्तर भारत में जिन राजाओं का विशेष स्थान रहा है, उनमें राजा सूरजमल का नाम बड़े ही गौरव के साथ लिया जाता है. उनके जन्म को लेकर यह लोकगीत काफ़ी प्रचलित है.
'आखा' गढ गोमुखी बाजी, माँ भई देख मुख राजी.
       धन्य धन्य गंगिया माजी, जिन जायो सूरज मल गाजी.
             भइयन को राख्यो राजी, चाकी चहुं दिस नौबत बाजी.'
वह राजा बदनसिंह के पुत्र थे. महाराजा सूरजमल कुशल प्रशासक, दूरदर्शी और कूटनीति के धनी सम्राट थे. सूरजमल किशोरावस्था से ही अपनी बहादुरी की वजह से ब्रज प्रदेश में सबके चहेते बन गये थे. सूरजमल ने सन 1733 में भरतपुर रियासत की स्थापना की थी.

सूरजमल के शौर्य गाथाएं

राजा सूरजमल का जयपुर रियासत के महाराजा जयसिंह से अच्छा रिश्ता था. जयसिंह की मृत्यु के बाद उसके बेटों ईश्वरी सिंह और माधोसिंह में रियासत के वारिश बनने को लेकर झगड़ा शुरु हो गया. सूरजमल बड़े पुत्र ईश्वरी सिंह को रियासत का अगला वारिस बनाना चाहते थे, जबकि उदयपुर रियासत के महाराणा जगतसिंह छोटे पुत्र माधोसिंह को राजा बनाने के पक्ष में थे. इस मतभेद की स्थिति में गद्दी को लेकर लड़ाई शुरु हो गई. मार्च 1747 में हुए संघर्ष में ईश्वरी सिंह की जीत हुई. लड़ाई यहां पूरी तरह खत्म नहीं हुई. माधोसिंह मराठों, राठोड़ों और उदयपुर के सिसोदिया राजाओं के साथ मिलकर वापस रणभूमि में आ गया. ऐसे माहौल में राजा सूरजमल अपने 10,000 सैनिकों को लेकर रणभूमि में ईश्वरी सिंह का साथ देने पहुंच गये.
सूरजमल को युद्ध में दोनों हाथो में तलवार ले कर लड़ते देख राजपूत रानियों ने उनका परिचय पूछा तब सूर्यमल्ल मिश्र ने जवाब दिया-

'नहीं जाटनी ने सही व्यर्थ प्रसव की पीर,

 जन्मा उसके गर्भ से सूरजमल सा वीर'.

इस युद्ध में ईश्वरी सिंह को विजय प्राप्त हुई और उन्हें जयपुर का राजपाठ मिल गया. इस घटना के बाद महाराजा सूरजमल का डंका पूरे भारत देश में बजने लगा.
1753 तक महाराजा सूरजमल ने दिल्ली और फिरोजशाह कोटला तक अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ा लिया था. इस बात से नाराज़ होकर दिल्ली के नवाब गाजीउद्दीन ने सूरजमल के खिलाफ़ मराठा सरदारों को भड़का दिया. मराठों ने भरतपुर पर चढ़ाई कर दी. उन्होंने कई महीनों तक कुम्हेर के किले को घेर कर रखा. मराठा इस आक्रमण में भरतपुर पर तो कब्ज़ा नहीं कर पाए, बल्कि इस हमले की कीमत उन्हें मराठा सरदार मल्हारराव के बेटे खांडेराव होल्कर की मौत के रूप में चुकानी पड़ी. कुछ समय बाद मराठों ने सूरजमल से सन्धि कर ली.
सूरजमल ने अभेद लोहागढ़ किले का निर्माण करवाया था, जिसे अंग्रेज 13 बार आक्रमण करके भी भेद नहीं पाए. मिट्टी के बने इस किले की दीवारें इतनी मोटी बनाई गयी थी कि तोप के मोटे-मोटे गोले भी इन्हें कभी पार नहीं कर पाए. यह देश का एकमात्र किला है, जो हमेशा अभेद रहा.तत्कालीन समय में सूरजमल के रुतबे की वजह से जाट शक्ति अपने चरम पर थी. सूरजमल से मुगलों और मराठों ने कई मौको पर सामरिक सहायता ली. आगे चलकर किसी बात पर मनमुटाव होने की वजह से सूरजमल के सम्बन्ध मराठा सरदार सदाशिव भाऊ से बिगड़ गए थे..

उदार प्रवृति के धनी

पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों का संघर्ष अहमदशाह अब्दाली से हुआ. इस युद्ध में हजारों मराठा योद्धा मारे गए. मराठों के पास रसद सामग्री भी खत्म चुकी थी. मराठों के सम्बन्ध अगर सूरजमल से खराब न हुए होते, तो इस युद्ध में उनकी यह हालत न होती. इसके बावजूद सूरजमल ने अपनी इंसानियत का परिचय देते हुए, घायल मराठा सैनिकों के लिए चिकित्सा और खाने-पीने का प्रबन्ध किया.

भरतपुर रियासत का विस्तार

उस समय भरतपुर रियासत का विस्तार सूरजमल की वजह से भरतपुर के अतिरिक्त धौलपुर, आगरा, मैनपुरी, अलीगढ़, हाथरस, इटावा, मेरठ, रोहतक, मेवात, रेवाड़ी, गुडगांव और मथुरा तक पहुंच गया था.

युद्ध के मैदान में ही मिली इस वीर को वीरगति

हर महान योद्धा की तरह महाराजा सूरजमल को भी वीरगति का सुख समरभूमि में प्राप्त हुआ. 25 दिसम्बर 1763 को नवाब नजीबुद्दौला के साथ हिंडन नदी के तट पर हुए युद्ध में सूरजमल वीरगति को प्राप्त हुए. उनकी वीरता, साहस और पराक्रम का वर्णन सूदन कवि ने 'सुजान चरित्र' नामक रचना में किया है.

हमारे इतिहास को गौरवमयी बनाने का श्रेय सूरजमल जैसे वीर योद्धाओं को ही जाता है. जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए. ऐसे सच्चे सपूतों को हमेशा वीर गाथाओं में याद किया जाएगा.

दुनियाभर में मोदीजी का छाया जादू !
मोदीजी का ''विश्वनेता'' की तरफ बढ़ता कदम !
ब्रिटेन को भारत में मिलाने के लिए ब्रिटिश नागरिक ने कर डाली मांग !
ब्रिटिश नागरिक की कैमरन से मजेदार अपील-अब ब्रिटेन को बन जाना चाहिए भारत का हिस्सा !
निक बुकर सोनी ने पोस्‍ट लिखकर ब्रिटेन से कहा कि वह चाहे तो भारत का अंग बन सकता है. भारत में रह रहे एक ब्रिटिश व्‍यक्ति ने अपने फेसबुक पेज पर रोचक पोस्‍ट लिखी है। निक बुकर सोनी ने पोस्‍ट लिखकर ब्रिटेन से कहा कि वह चाहे तो भारत का अंग बन सकता है। निक ने अपनी पोस्‍ट में कई दिलचस्‍प फैक्‍ट के जरिए बताया है कि अगर ब्रिटेन को ऐसा करने में कोई दिक्‍कत भी नहीं होगी, क्‍योंकि वह पहले भी भारत के साथ रह चुका है।
निक ने लिखा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को भारत का केंद्रशासित प्रदेश बनने के लिए अप्‍लाई कर देना चाहिए।
भारत की अर्थव्‍यवस्‍था यूरोपीय संघ की तुलना में चार गुना तेजी से बढ़ रही है और 2050 तक ईयू से दु्गुनी हो जाएगी।
इसलिए नौकरियों की चिंता करने की जरूरत नहीं है।
भारत में डॉक्‍टर्स की भी कमी नहीं है।
भारत में 100 से ज्‍यादा भाषाएं बोली जाती हैं और प्रत्‍येक धर्म यहां पर मौजूद है। अंग्रेजी भारत की दो आधिकारिक भाषाओं में से एक हैं।
इसके चलते आपस में बातचीत में भी दिक्‍कत नहीं होगी।

रबर की तरह लचीला है आदित्य

 किसी भी आकार में मरोड़ लेता है शरीर

महाराष्ट्र में इन दिनों एक 13 वर्षीय किशोर की चर्चा हो रही है। आदित्य कुमार जंगम नामक इस किशोर का शरीर रबर की तरह लचीला है।

यही नहीं, वह अपने शरीर को किसी भी तरह से मरोड़ सकता है। यही वजह है कि

 रत्नागिरी जिले के आदित्य को लोग सर्प बालक के रूप में भी जानते हैं।

बताया गया है कि आदित्य अपने शरीर को लचीला बनाने

 पर लंबे समय से काम कर रहा है, ताकि गिनिज बुक ऑफ

 वर्ल्ड रिकॉर्ड में उसका नाम शामिल हो सके।

में कहा गया है कि आदित्य अपने शरीर को कई आकार में 

मोड़ सकता है। यहां तक कि वह अपने शरीर को मोड़कर 

अपने पैरों की मदद से ब्रश भी कर सकता है।

इस बच्चे की अवस्था को हाइपरमोबिलिटी कहते हैं। इस 

अवस्था में लोग अपने शरीर को कई आकार में मोड़ लेते हैं।

 पहले के समय में ये अवस्था ऋषि-मुनि योग के प्रभाव से पाते

 थे।

आदित्य अपने सिर को 160 डिग्री पर घुमा सकता है। वह 

इस कौशल का श्रेय अपने कोच मंगेश कोपकर को देता है।

 कोपकर अपने एकेडमी में 20 से 30 बच्चों को ट्रेनिंग 

देते हैं। लेकिन किसी भी बच्चे का शरीर आदित्य के

 जितना लचीला नहीं है।





NSG का गम हुअा कम, उससे बड़े ग्रुप में भारत को मिली सदस्यता

भारत ने मिसाइल टेक्नॉलोजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) की सदस्यता पाने के सफलता प्राप्त कर ली है।

चीन, स्विट्ज़रलैंड और ब्राजील जैसे देशों के अड़ंगे के बाद भारत को भले ही न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप (NSG) में सदस्यता नहीं मिल पायी हो लेकिन भारत ने मिसाइल टेक्नॉलोजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) की सदस्यता पाने के सफलता प्राप्त कर ली है। गौरतलब है कि भारत कई सालों से MTCR की सदस्यता पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा था।
मीडिया में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार के विदेश सचिव एस. जयशंकर जल्द की इससे  सम्बंधित दस्तवेजों पर हस्ताक्षर करेंगे। MTCR दुनिया के उन चार बड़े संगठनों में शामिल है जो  एनएसजी के समकक्ष हैं। जब भारत और अमेरिक के बीच साल 2008 में परमाणु करार की बातचीत चल रही थी तब से भारत इसमें शामिल होना चाहता था। 
 क्या है मिसाइल टेक्नॉलोजी कंट्रोल रिजीम MTCR ? 
प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime), जिसे संक्षिप्त में ऍम॰ टी॰ सी॰ आर॰ (MTCR) भी कहते हैं, कई देशों का एक अनौपचरिक संगठन है जिनके पास प्रक्षेपास्त्र व मानव रहित विमान (ड्रोन) से सम्बन्धित प्रौद्योगिक क्षमता है और जो इसे फैलने से रोकने के लिये नियम स्थापित करते हैं। जून 2016 में इसमें 35 देश शामिल थे।
ग़ैर-सदस्यों को प्रक्षेपास्त्र व ड्रोनों से सम्बन्धित प्रौद्योगिकी ख़रीदने व बेचने दोनों में कठिनाईयाँ होती हैं। सदस्यों में यह आपसी नियम है कि यदि एक सदस्य किसी देश को कोई तकनीक या उपकरण देने से मना कर दे तो हर अन्य सदस्य भी उस देश को मना कर देता है।