Saturday 31 May 2014

कश्मीरः नासमझी ने बनाया नासूर

कश्मीरः नासमझी ने बनाया नासूर
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पहले १९५३ में दो अलग-अलग दुश्मन राज्यों की तरह जम्मू और कश्मीर आपस में भिड़ रहे थे. शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की नीतियों के विरूद्ध जम्मू में प्रजा परिषद नाम के संगठन ने आंदोलन छेड़ रखा था. तब जम्मू का नारा था- एक विधान, एक प्रधान और एक निशान. कश्मीर में धारा 370 की आड़ में जो अपना संविधान बना था वह कई मायनों में भारतीय संविधान की पहुंच से बाहर था.
उसी आंदोलन के दौरान श्यामा प्रसाद मुखर्जी बिना परमिट के जम्मू कश्मीर में दाखिल हुए थे. उन दिनों बिना अनुमति पत्र के कोई भी भारतीय कश्मीर में प्रवेश नहीं पा सकता था. डाक्टर मुखर्जी की रहस्यमय तरीके से जेल में मौत हो गयी. जम्मू और कश्मीर के बीच इतना तनाव पैदा हो गया था कि लोग एक दूसरे के इलाकों से भागने लगे थे. शेख अब्दुल्ला भारत विरोधी बयान दे रहे थे. और नेहरू के नेतृत्व में भारत बहुत कठिन परिस्थितियों में पड़ गयी थी. मजबूरी में नेहरू को अपने मित्र शेख अब्दुल्ला को बर्खास्त करके गिरफ्तार करना पड़ा. आज कोई आधी सदी बाद जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर वही हालात दिखाई दे रहे हैं. अमरनाथ पर सरकार के फैसले के विरोध में प्रदर्शन इस कदर पूरे क्षेत्र में फैल गया है कि कोई संगठन या राजनीतिक दल इससे अछूता नहीं रह गया है.
हम वहीं कैसे खिसक आये जहां पिछली सदी के मध्य में हमने यात्रा प्रारंभ की थी? कश्मीर हमारी राजनीतिक व्यवस्था का ऐसा आईना है जिसमें हम अपने अतीत और वर्तमान को तो देख ही सकते हैं चाहें तो भविष्य की भी झलक मिल सकती है. पचपन साल पहले भी जवाहर लाल नेहरू ने इस उम्मीद में शेख अब्दुल्ला को कमान सौंपी थी कि कश्मीर में न केवल लोकतंत्र की बयार बहेगी बल्कि वह भारत संघ का अभिन्न अंग बन जाएगा. नेहरू विशेष सहायता न करते तो शेख अब्दुल्ला महाराजा के साथ समझौता करके उसी व्यवस्था में समा जाते. उन्होंने राजा हरि सिंह को आजादी मिलने से पहले ही चिट्ठी लिखी थी जिसमें आजादी की कस्में खायी थीं. नेहरू ने उन्हें कश्मीर का प्रधानमंत्री बनाया और उन्होंने प्रधानमंत्री बने रहने की ही ठान ली. जिस विलय पत्र पर उनके कहने पर राजा ने हस्ताक्षर किये थे वे उसकी अपनी ही व्याख्या करने लगे. उनकी व्याख्या मानी जाती तो कश्मीर ही क्या कोई भी भारतीय रियासत भारत से अलग जाने या स्वतंत्र रहने का दावा कर सकती थी.
महाराजा को निष्कासित कराके शेख ने कश्मीर को अलग देश के रूप में रखने का आग्रह किया. लेकिन इसके लिए तर्क और कानूनी अवसर भारत सरकार ने ही उपलब्ध करवाये. विलय की प्रार्थना स्वीकार करते हुए भारत सरकार की ओर से गवर्नर जनरल माउण्टबेटेन ने जो उत्तर दिया उसी में यह भी जोड़ा गया था कि जब कबायली आक्रमणकारी हट जाएंगे और राज्य में कानून व्यवस्था ठीक हो जाएगी तो कश्मीर के लोग स्वयं ही तय करेंगे कि उन्हें क्या करना चाहिए. यानी यह विलय अस्थायी ही था. यही तो पाकिस्तान शुरू से ही कह रहा है और अलगाववादी-आतंकवादी भी यही कह रहे हैं. जब शेख अब्दुल्ला यही कहने लगे तो दिल्ली के शासकों के ध्यान में आया कि उन्होंने कितनी बड़ी भूल कर दी है. शेख अब्दुल्ला को हटाकर अधकचरे फैसलों और यथास्थितिवाद का जो सिलसिला शुरू हुआ वह लगातार जटिल होता चला गया. जिस समय कश्मीर में धारा ३७० लागू करने की मांग हो रही थी उस समय तीन भारतीय नेताओं ने प्रधानमंत्री नेहरू को चेताया था कि यह व्यवस्था आगे चलकर भारी समस्या पैदा कर सकती है. ये तीन नेता थे राजेन्द्र प्रसाद, भीमराव अम्बेडकर और सरदार पटेल. अम्बेडकर ने संविधान का प्रारूप बनाया था, राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे और सरदार पटेल भारत संघ की एकता के संयोजक थे. लेकिन नेहरू ने उन नेताओं को कहा कि यह धारा तो अस्थाई है और धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी. लेकिन शेख अब्दुल्ला ने ऐसी व्यवस्था कर दी ऐसा कभी हो ही नहीं सकता था. इस धारा को तभी हटाया जा सकता है जबकि कश्मीर विधानसभा इसे हटाने की सिफारिश करे.
आज हम पाकिस्तान को चाहे जितना दोष दें लेकिन कश्मीर में पाकिस्तान के दखल के लिए परिस्थितियां भी हमने ही पैदा की. पाकिस्तान ने कबायली गिरोहों की मदद से कश्मीर पर हमला किया. भारतीय सेना ने हमलावरों को खदेड़ना शुरू किया. सेना अभी कश्मीर की सीमाओं तक पहुंची ही नहीं थी कि सरकार ने युद्ध विराम कर दिया. भारतीय सेना बीच मैदान में ही अटक गयी. ऊपर पहाड़ियों पर पाकिस्तानी फौजें डटी हुई थीं. रेखा खिंच गयी. इस ओर भारतीय कश्मीर और उस ओर पाकिस्तानी कश्मीर. अब यह सोचना कि पाकिस्तान आजाद कश्मीर को तश्तरी में सजाकर भेंट कर देता, निपट बेवकूफी नहीं तो और क्या होगी? जो हालात बने उसमें दो बातें होनी थी. पाकिस्तान कोशिश करता रहता कि शेष कश्मीर भी उसे मिले और इसके लिए जो संभव तरीके हैं वह उनका इस्तेमाल करता रहे. संयुक्त राष्ट्र में जाकर हमने ही पाकिस्तान को यह मौका भी दे दिया कि वह कश्मीर का अंतरराष्ट्रीयकर कर सके. पता नहीं किस वकील ने भारत सरकार को सलाह दी थी कि वह एक कमजोर मामले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाए. भारत सरकार पहले ही अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार चुकी थी और शुरू में जनमत संग्रह को स्वीकार करके विलय को अधूरा या अस्थायी बना चुकी थी. इसलिए अमरीका के प्रभाव वाली विश्व संस्था कश्मीर मुद्दे पर भारत का साथ क्यों देती जब अमेरिका यह मान रहा था कि भारत भारत सोवियत संघ का पिछलग्गू है.
कश्मीर को पाने का दूसरा रास्ता जंग था. जंग तब लड़ी जाती है जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं. जंग का एक निश्चित लक्ष्य होता है जिसे पाने की पूरी कोशिश की जाती है लेकिन हमारे जंग लड़ने का तरीका भी निराला रहा है. हम जंग जीतकर वार्ता की मेज पर हारने के अभ्यस्त हो गये हैं. बांग्लादेश में हमने बड़ी अच्छी जंग लड़ी लेकिन शांति की कामना में वार्ता की मेज पर आ पहुंचे. हम भूल गये कि हमने जंग में किसी व्यक्ति नहीं बल्कि एक राष्ट्र को घायल किया है. इसी तरह जम्मू-कश्मीर में कुछ दर्रे हमारे हाथ लगे थे. इन दर्रों के कारण हमारी चौकियों को काफी हानि उठानी पड़ती थी. सेना चाहती थी उन्हें अपने पास ही रखा जाए. इसमें कुछ इलाके तो करगिल में ही थे. लेकिन हमारे नेताओं ने यह सोचते हुए वे दर्रे दे दिये कि थोड़ी सी भूमि के लिए माहौल क्यों बिगाड़ा जाए? इतना ही नहीं सियाचीन ग्लेशियर पर निशानदेही के वक्त भी सारी दूरदर्शिता ताक पर रखकर एक बिन्दु से आगे निशानदेही ही नहीं की गयी.
एक और नतीजा जो गलत कश्मीर नीति के कारण निकला ह वह है पूरे देश में आतंकवाद का विस्तार. पाकिस्तान जब जंग नहीं जीत पाया तो छद्म युद्ध ही उसके सामने एकमात्र रास्ता था. बार-बार यह कहानी दोहराने की जरूरत नहीं कि कब-कब हमने आतंकवादियों से समझौते किये हैं और कब-कब उनके सामने समर्पण किया है. घीरे-धीरे आतंकवाद एक ऐसा सिक्का बन गया जो जब जिसके हाथ लगा उसने उसे अपने हिसाब से भुनाया. संभवतः पाकिस्तान ने यह बहुत पहले ही भांप लिया था कि भारत जैसे देश से जंग जीतना भले ही असंभव हो लेकिन उसके अंदर सेँध लगाना आसान है. आईएसआई का गठन ही इस महत्वपूर्ण लक्ष्य के साथ हुआ था. आईएसआई आज दुनिया के सफल खुफिया तंत्र में गिना जाता है और भारत में आतंक फैलाने के अलग-अलग विभाग यहां काम करते हैं. पंजाब में आतंकवाद फैलाने में आईएसआई के हाथ के अब पक्के सबूत हैं. लेकिन दुर्भाग्य से हम इसे काउण्टर करने के कोई खास हथियार विकसित नहीं कर पाये. बांग्लादेश बनने में रॉ ने जो सफलता पायी थी वैसी सफलता फिर उसके हाथ नहीं लगी. जाहिर सी बात है भारतीय नौकरशाही खुफियातंत्र को पंगु करने में सफल रही. राजनीतिक इच्छाशक्ति और दूरदृष्टि के अभाव में कश्मीर रिस-रिस कर नासूर बन गया. ऐसे में क्या किसी एक व्यक्ति को दोष देना ठीक होगा या फिर यह हमारी राजव्यवस्था के खोट की निशानी है?

खांटी भारतीय हैं पूर्वोत्तर के लोग

खांटी भारतीय हैं पूर्वोत्तर के लोग
आज पूर्वोत्तर के जिन सात राज्यों को सात बहनों के नाम से हम जानते हैं, वे राज्य पश्चिम बंगाल और असम विभाजन के फलस्वरूप स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आए हैं। ये छोटे राज्य मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और मिजोरम हैं। इतिहास के पन्नों को खंगालें तो पता चलता है कि भगवान परशुराम और अर्जुन के बीच जो भीषण युद्ध हुआ था, उसके अंतिम आततायी को परशुराम ने अरुणाचल प्रदेश में जाकर मारा था। अंत में यहीं के लोहित क्षेत्र में पहुंचकर ब्रह्मपुत्र नदी में अपना रक्त-रंचित फरसा धोया था। बाद में स्मृति स्वरूप यहां पांच कुंड बनाए गए, जिन्हें समंतपंच का रुधिर कुंड कहा जाता है। ये कुंड आज भी अस्तित्व में है। इस क्षेत्र में यह दंतकथा भी प्रचालित है कि इन्हीं कुंडों में भृगुकुल भूषण परषुराम ने युद्ध में मारे गए योद्धाओं का तर्पण किया था। परशुराम यही नहीं रूके, उन्होंने शुद्र और इस क्षेत्र की जो आदिम जनजातियां थीं, उनका यज्ञोपवीत संस्कार करके उन्हें ब्राह्मण बनाया और सामूहिक विवाह किए।महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने पूर्व से पश्चिम की सामरिक और सांस्कृतिक यात्रा की। द्वारिका एवं माणिपुर में सैन्य अड्डे स्थापित किए। इसीलिए इस पूरे क्षेत्र की जनजातियां अपने को रामायण और महाभारत काल के नायकों का वंशज मानती हैं। यही नहीं ये अपने पुरखों की यादें भी जीवित रखे हुए हैं। सूर्यदेव को आराध्य मानने वालीं अरुणाचल की 54 जनजातियों में से एक मिजो-मिमी जनजाति खुद को भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी रुक्मिणी का वंशज मानती हैं। दंतकथाओं के अनुसार आज के अरुणाचल क्षेत्र स्थित भीष्मकनगर की एक राजकुमारी थीं। उनके पिता का नाम भीष्मक एवं भाई का नामरुक्मंगद था। जब कृष्ण रुक्मिणी का अपहारण करने गए तो रुक्मंगद ने उनका विरोध किया। परमवीर योद्धा रुक्मंगद को पराजित करने के लिए कृष्ण को सुदर्शन चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस पर रुक्मिणी का ह्दय पसीज उठा और उन्होंने कृष्ण से अनुरोध किया कि वे भाई के प्राण न लें, सिर्फ सबक सिखाकर छोड़ दें। तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र को रुक्मंगद का आधा मुंडन करने का आदेश दिया। रुक्मंगद का यही अर्धमुंडन आज सेना के जवानों की हेयर स्टाइल मानी जाती है। मिजो-मिष्मी जनजाति के पुरुष आज भी अपने बाल इसी तरह से रखते हैं। दिल्ली में नीदो नामक जिस युवक के बालों पर नोकझोंक हुई थी, उसके बाल इसी परंपरागत के तर्ज पर थे। वास्तव में वह भगवान कृष्ण द्वारा निर्मित परंपरा का निर्वाह कर रहा था, जिस कृष्ण की पूजा उत्तर भारत समेत समूचे देश में होती है। यदि वाकई देश के लोग इस लोककथा से परिचित होते तो शायद निदो पर जानलेवा हमला ही नहीं हुआ होता?मेघालय की खासी जयंतिया जनजाति की आबादी करीब 13 लाख है। यह जनजाति आज भी तीरंदजी में प्रवीण मानी जाती है, किंतु हैरानी की बात यह है कि धनुष-बाण चलाते समय ये अंगूठे का प्रयोग नहीं करते। ये लोग अपने को एकलव्य का वंशज मानते हैं। यह वही एकलव्य है, जिसने द्रोणाचार्य के मागंने पर गुरुदक्षिणा में अपना अंगूठा दे दिया था। इसी तरह नागालैंड के शहर दीमापुर का पुराना नाम हिडिंबापुर था। यहां की बहुसंख्यक आबादी दिमंशा जनजाति की है। यह जाति खुद को भीम की पत्नी हिडिंबा का वंशज मानती है। दीमापुर में आज भी हिडिंबा का वाड़ा है। यहां राजवाड़ी क्षेत्र में स्थित शतंरज की बड़ी-बड़ी गोटियां पर्यटकों के आर्कषण का प्रमुख केंद्र है। किंवदंती है कि इन गोटियों से हिडिंबा और भीम का बाहुबली पुत्र वीर घटोत्कच शतरंज खेलता था।म्यामांर की सीमा से सटे राज्य माणिपुर के जिले उखरूल का नाम उलूपी-कुल का अपभ्रंश माना जाता है। अर्जुन की एक पत्नी का नाम भी उलूपी था, जो इसी क्षेत्र की रहने वाली थी। तांखुल जनजाति के लोग खुद को अर्जुन और उलूपी का वंशज मानते हैं। ये लोग मार्शल आर्ट में माहिर माने जाते हैं। अर्जुन की दूसरी पत्नी चित्रांगदा भी मणिपुर के मैत्रेयी जाति से थी। यह जाति अब वैष्णव बन चुकी है। असम की बोडो जनजाति खुद को सृष्टि के रचियता ब्रह्मा का वंशज मानती है। असम के ही पहाड़ी जिले कार्बी आंगलांग में रहने वाली कार्बी जनजाति स्वंय को सुग्रीव का वंशज मानती है। देश के तथाकथित माक्र्सवादी प्रगतिशील इतिहासकार रामायण और महाभारत कालीन पात्रों व नायकों को भले ही मिथक मानते हों, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों के रहवासियों को रक्त व धर्म आधारित सांस्कृतिक एकरूपता से जोड़ती है तो यही वह स्थिति है, जिसका व्यापक प्रचार संर्कीण सोच के लोगों को खंडित मानसिकता से उबार सकता है। हमारे प्राचीन संस्कृत ग्रंथों, लोक और दंत कथाओं में ज्ञान के ऐसे अनेक स्रोत मिलते हैं।
जो हमें सीमांत प्रदेशों में भी मूल भारतीय होने के जातीय गौरव से जोड़ते हैं। जरूरी है कि हम सांस्कृतिक एकरूपता वाली इन कथाओं को पाठ्य पुस्तकों में शामिल करें। पूर्वोत्तर राज्यों में रक्तजन्य जातीय समरसता के इस मूल-मंत्र से जातीय एकता की उम्मीद की जा सकती है।

महाभारत के भीष्म जी ने दीर्घ आयु प्राप्त करने के यह उपाय बताये हैं

महाभारत के भीष्म जी ने दीर्घ आयु प्राप्त करने के यह उपाय बताये हैं
१) सदाचार से दीर्घ आयु, श्री और कीर्ति प्राप्त होती है ।
२) नास्तिकता,आलस्य,गुरू की आज्ञा और शास्त्र की आज्ञा का उल्लंघन करना ये बातें आयु का नाश करती हैं ।
३) शील और मर्यादा को छोड़ना और व्याभिचार करना ये दो बातें आयु का नाश करती हैं ।
४) क्रोध न करना, सत्य का पालन करना, हिंसा न करना, असूया ( चुगली ) न करना, कुटिल्ता न करना, इससे १०० वर्ष की आयु प्राप्त होती है ।
५) नाखून खाना, उच्छिष्ट भक्षण करना इनसे आयु का नाश होता है ।
६) ब्रह्ममुहूर्त में उठकर धर्म का विचार करना और दोनो संधिकाल में संध्या करना । इससे भी दीर्घायु प्रप्त होती है ।
७) व्याभिचार न करना , क्योंकि व्याभिचार से आयुष्य का नाश होता है ।
८) माता पिता और आचार्य को नमस्कार करना ।
९) ग्राम के पास शौच न करना ।
१०) जूता, वस्त्र, पात्रदूसरे का वर्ता हुआ धारण न करना । अपने एक पाँव से दूसरा पाँव न घसीटना, नित्य ब्रह्मचर्य से रहना ।
११) आक्रोश, झगड़ा न करना ।
१२) किसी को मर्मवेदी वाक्य न बोलना । निन्दा न करना , हीन से किसी पदार्थ को स्विकार न करना ।
१३) पाँव गीले रख कर भोजन करना ।
१४) केशों को न खींचना, सिर पर प्रहार न करना । दोनो हाथों से सिर न खुजलाना ।
१५) दुर्गन्ध वायु में न ठहरना ।
१६) छुट्टी के दिन पढ़ना नहीं ।
१७) सोने के समय दूसरा वस्त्र पहनना ।
१८) कभी कभी उपवास करना ।
१९) एक पात्र में दूसरे के साथ भोजन न करना ।
२०) रजस्वाला स्त्री का बनाया हुआ भोजन न करना ।
२१) निषिद्ध अन्न का सेवन न करना ।
२२) दिन में दो बार ही भोजन करना और बीच में कुछ न खाना ।
२३) जिस अन्न में केश हों उसको न खाना ।
२४) संध्याकाल में न सोना, न पढ़ना और न खाना ।
२५) सदा प्रयत्न करते रहना । क्योंकि प्रयत्नशील मनुष्य को ही सुख प्राप्त होता है ।
२६) ऐसी अपनी शक्ति बढ़ानी कि जिससे शत्रुओं का हमला न हो सके तथा अपने नौकर और स्वजन अपना अनादर न कर सकें ।
२७) सदा ही श्रेष्ठ पुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ना 

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Friday 30 May 2014

संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता और महत्व जाने !

 अमेरिका की सबसे बड़ी संस्था NASA (National Aeronautics and Space Administration )ने संस्कृत भाषा को अंतरिक्ष में कोई भी मैसेज भेजने के लिए सबसे उपयोगी भाषा माना है !

नासा के वैज्ञानिकों की मानें तो जब वह स्पेस ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलटे हो जाते थे। इस वजह से मेसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने दुनिया के कई भाषा में प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मेसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। यह रोचक जानकारी हाल ही में एक समारोह में दिल्ली सरकार के प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान के निदेशक डॉ. जीतराम भट्ट ने दी।

दिल्ली सरकार की संस्कृत अकादमी ने दिल्ली के करोलबाग, मयूर विहार और गौतम नगर में लोगों को संस्कृत सिखाने के उद्देश्य से तीन शिक्षालयों के उद्धाटन के अवसर पर यह समारोह आयोजित किया। समारोह की अध्यक्षता करते हुए स्वामी प्रणवानन्द महाराज ने कहा कि संस्कृत में सभी प्रकार के उपयोगी विषय हैं, जरूरत उनके प्रसार की है। समारोह में अनेक डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी और व्यवसायी भी उपस्थित थे।

https://www.youtube.com/watch?v=zmpEa7cLo8c
" मार्शल आर्ट के जनक एक भारतीय हैं "

मार्शल आर्ट में सबसे अच्छी विद्या मानी जाती है कुंग्फु और इसको सिखाने का सबसे अच्छा विद्यालय माना जाता है चीन में स्थित सओलिन मन्दिर |
आपको यह जानकार बेहद आश्चर्य होगा की इस विद्यालय की आधारशिला रखने वाले और चीन को इस कला का ज्ञान देने वाले भारतीय थे |

उस भारतीय का नाम था - " बोधिधर्मन " |

पल्लव साम्राज्य के शासक बल्लव महाराज के तीसरे राजकुमार बोधिधर्मन |
बोधिधर्मन आत्मरक्षा कला के अलावा एक महान चिकित्सक भी थे | उन्होंने अपने ग्रन्थ में डीएनए के माध्यम से बीमारियों को ठीक करने की विधि के बारे में भी आज से १६०० साल पहले बता दिया था |

आज हम अपनी सभ्यता और संस्कृति को पूर्ण रूप से भूल चुके हैं | जिस संस्कृति को हम लोग भूल रहे हैं और जिन मूल्यों को हम को चुके हैं उनको अपनाकर अनेकों देश आज विकसित अवस्था में हैं और हम क्या हैं आप समझ रहे होंगे |

आज जिस मार्शल आर्ट की कला को हम सीखने के लिए लालायित रहते हैं उसके बारे में हम यही सोचते हैं की यह तो चीन की देन है .. जबकि हकीक़त इसके उल्टे है |
इस कला का ज्ञान चीन ने नहीं बल्कि चीन के साथ पूरे विश्व को हमने दिया था |

लेकिन विडम्बना यह है की इस विद्या के जन्मदाता का नाम ही हमने आज तक नहीं सुना | यह सब मैकाले की शिक्षा नीति का ही प्रतिफल है |

आज जिसे चीन, जापान, थाईलैंड आदि देशों में जिसे भगवन की तरह पूजा जाता है ; वह हमारे देश के हैं और हम उनका नाम भी नहीं जानते हैं, इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है |

आज आवश्यकता है हमें अपने गौरवमय इतिहास को जानने की, जो भी प्राचीन ग्रन्थ हैं उनका अध्ययन करने की, जो भी ज्ञान हमारे हमारे ऋषि - मुनियों ने हमें प्रदान किया हुआ है उस पर अमल करने की |

इस पोस्ट को पड़ने के बाद कई ' अंग्रेजो के तलवे चाटने ' और " भारत ने दिया ही क्या है ? " कहने वालों के पेट में दर्द होना शुरू हो जायेगा .. इन जोकरों से अनुरोध है की पहले गूगल पर जाकर जानकारी प्राप्त कर लें फिर कमेंट करें |

धन्यवाद्

“ भारतीय संस्कृति ही सर्वश्रेष्ट संस्कृति है |”

एक बार किसी रेलवे प्लैटफॉर्म पर जब
गाड़ी रुकी तो एक लड़का पानी बेचता हुआ निकला। ट्रेन में बैठे एक सेठ ने उसे आवाज दी, ऐ लड़के, इधर आ। लड़का दौड़कर आया।
उसने पानी का गिलास भरकर सेठ
की ओर बढ़ाया तो सेठ ने पूछा,
कितने पैसे में? लड़के ने कहा, पच्चीस
पैसे। सेठ ने उससे कहा कि पंदह पैसे में
देगा क्या?
यह सुनकर लड़का हल्की मुस्कान
दबाए पानी वापस घड़े में उड़ेलता हुआ
आगे बढ़ गया।
उसी डिब्बे में एक महात्मा बैठे थे,
जिन्होंने यह नजारा देखा था कि लड़का मुस्कराय मौन रहा।
जरूर कोई रहस्य उसके मन में होगा।
महात्मा नीचे उतरकर उस लड़के के
पीछे- पीछे गए।
बोले : ऐ लड़के, ठहर जरा, यह तो बता तू हंसा क्यों?
वह लड़का बोला, महाराज, मुझे
हंसी इसलिए आई कि सेठजी को प्यास
तो लगी ही नहीं थी। वे तो केवल
पानी के गिलास का रेट पूछ रहे थे। महात्मा ने पूछा, लड़के, तुझे ऐसा क्यों लगा कि सेठजी को प्यास लगी ही नहीं थी।
लड़के ने जवाब दिया, महाराज, जिसे
वाकई प्यास लगी हो वह कभी रेट
नहीं पूछता। वह तो गिलास लेकर पहले पानी पीता है।
फिर बाद में पूछेगा कि कितने पैसे देने हैं? पहले कीमत पूछने का अर्थ हुआ कि प्यास
लगी ही नहीं है।
वास्तव में जिन्हें ईश्वर और जीवन में
कुछ पाने की तमन्ना होती है, वे वाद-विवाद में नहीं पड़ते। पर जिनकी प्यास सच्ची नहीं होती, वे ही वाद-विवाद में पड़े रहते हैं। वे साधना के पथ पर आगे नहीं बढ़ते.
अगर खुदा नहीं हे तो उसका ज़िक्र क्यो??
और अगर खुदा हे तो फिर फिक्र क्यों ??
आप चाकलेट खा रहे हैं या निर्दोष बछड़ों का मांस?
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चाकलेट का नाम सुनते ही बच्चों में गुदगुदी न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। बच्चों को खुश करने का प्रचलित साधन है चाकलेट। बच्चों में ही नहीं, वरन् किशोरों तथा युवा वर्ग में भी चाकलेट ने अपना विशेष स्थान बना रखा है। पिछले कुछ समय से टॉफियों तथा चाकलेटों का निर्माण करने वाली अनेक कंपनियों द्वारा अपने उत्पादों में आपत्तिजनक अखाद्य पदार्थ मिलाये जाने की खबरे सामने आ रही हैं। कई कंपनियों के उत्पादों में तो हानिकारक रसायनों के साथ-साथ गायों की चर्बी मिलाने तक की बात का रहस्योदघाटन हुआ है।
गुजरात के समाचार पत्र गुजरात समाचार में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार नेस्ले यू.के.लिमिटेड द्वारा निर्मित किटकेट नामक चाकलेट में कोमल बछड़ों के रेनेट (मांस) का उपयोग किया जाता है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि किटकेट बच्चों में खूब लोकप्रिय है। अधिकतर शाकाहारी परिवारों में भी इसे खाया जाता है। नेस्ले यू.के.लिमिटेड की न्यूट्रिशन आफिसर श्रीमति वाल एन्डर्सन ने अपने एक पत्र में बतायाः “ किटकेट के निर्माण में कोमल बछड़ों के रेनेट का उपयोग किया जाता है। फलतः किटकेट शाकाहारियों के खाने योग्य नहीं है। “ इस पत्र को अन्तर्राष्टीय पत्रिका यंग जैन्स में प्रकाशित किया गया था। सावधान रहो, ऐसी कंपनियों के कुचक्रों से! टेलिविज़न पर अपने उत्पादों को शुद्ध दूध से बनते हुए दिखाने वाली नेस्ले लिमिटेड के इस उत्पाद में दूध तो नहीं परन्तु दूध पीने वाले अनेक कोमल बछड़ों के मांस की प्रचुर मात्रा अवश्य होती है। हमारे धन को अपने देशों में ले जाने वाली ऐसी अनेक विदेशी कंपनियाँ हमारे सिद्धान्तों तथा परम्पराओं को तोड़ने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। व्यापार तथा उदारीकरण की आड़ में भारतवासियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ हो रहा है।
हालैण्ड की एक कंपनी वैनेमैली पूरे देश में धड़ल्ले से फ्रूटेला टॉफी बेच रही। इस टॉफी में गाय की हड्डियों का चूरा मिला होता है, जो कि इस टॉफी के डिब्बे पर स्पष्ट रूप से अंकित होता है। इस टॉफी में हड्डियों के चूर्ण के अलावा डालडा, गोंद, एसिटिक एसिड तथा चीनी का मिश्रण है, ऐसा डिब्बे पर फार्मूले (सूत्र) के रूप में अंकित है। फ्रूटेला टॉफी ब्राजील में बनाई जा रही है तथा इस कंपनी का मुख्यालय हालैण्ड के जुडिआई शहर में है। आपत्तिजनक पदार्थों से निर्मित यह टॉफी भारत सहित संसार के अनेक अन्य देशों में भी धड़ल्ले से बेची जा रही है।
चीनी की अधिक मात्रा होने के कारण इन टॉफियों को खाने से बचपन में ही दाँतों का सड़ना प्रारंभ हो जाता है तथा डायबिटीज़ एवं गले की अन्य बीमारियों के पैदा होने की संभावना रहती है। हड्डियों के मिश्रण एवं एसिटिक एसिड से कैंसर जैसे भयानक रोग भी हो सकते हैं।
सन् 1847 में अंग्रजों ने कारतूसों में गायों की चर्बी का प्रयोग करके सनातन संस्कृति को खण्डित करने की साजिश की थी, परन्तु मंगल पाण्डेय जैसे वीरों ने अपनी जान पर खेलकर उनकी इस चाल को असफल कर दिया। अभी फिर यह नेस्ले कंपनी चालें चल रही है। अभी मंगल पाण्डेय जैसे वीरों की ज़रूरत है। ऐसे वीरों को आगे आना चाहिए। लेखकों, पत्रकारों को सामने आना चाहिए। देशभक्तों को सामने आना चाहिए। देश को खण्ड-खण्ड करने के मलिन मुरादेवालों और हमारी संस्कृति पर कुठाराघात करने वालों के सबक सिखाना चाहिए। देव संस्कृति भारतीय समाज की सेवा में सज्जनों को साहसी बनना चाहिए। इस ओर सरकार का भी ध्यान खिंचना चाहिए।
ऐसे हानिकारक उत्पादों के उपभोग को बंद करके ही हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकते हैं। इसलिए हमारी संस्कृति को तोड़नेवाली ऐसी कंपनियों के उत्पादों के बहिष्कार का संकल्प लेकर आज और अभी से भारतीय संस्कृति की रक्षा में हम सबको कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे आना चाहिए।

करेला -

करेला -
करेला के गुणों से सब परिचित हैं |
मधुमेह के रोगी विशेषतः इसके रस और सब्जी का सेवन करते हैं | समस्त भारत में इसकी खेती की जाती है | इसके पुष्प चमकीले पीले रंग के होते हैं | इसके फल ५-२५ सेमी लम्बे,५ सेमी व्यास के,हरे रंग के,बीच में मोटे,सिरों पर नुकीले,कच्ची अवस्था में हरे तथा पक्वावस्था में पीले वर्ण के होते हैं | इसके बीज ८-१३ मिमी लम्बे,चपटे तथा दोनों पृष्ठों पर खुरदुरे होते हैं जो पकने पर लाल हो जाते हैं | इसका पुष्पकाल एवं फलकाल जून से अक्टूबर तक होता है | आज हम आपको करेले के कुछ औषधीय प्रयोगों से अवगत कराएंगे -
१- करेले के ताजे फलों अथवा पत्तों को कूटकर रस निकालकर गुनगुना करके १-२ बूँद कान में डालने से कान-दर्द लाभ होता है |
२- करेले के रस में सुहागा की खील मिलाकर लगाने से मुँह के छाले मिटते हैं |
३-सूखे करेले को सिरके में पीसकर गर्म करके लेप करने से कंठ की सूजन मिटती है ।
४- १०-१२ मिली करेला पत्र स्वरस पिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं |
५- करेला के फलों को छाया शुष्क कर महीन चूर्ण बनाकर रखें | ३-६ ग्राम की मात्रा में जल या शहद के साथ सेवन करना चाहिए | मधुमेह में यह उत्तम कार्य करता है | यह अग्नाशय को उत्तेजित कर इन्सुलिन के स्राव को बढ़ाता है |
६- १०-१५ मिली करेला फल स्वरस या पत्र स्वरस में राई और नमक बुरक कर पिलाने से गठिया में लाभ होता है |
७- करेला पत्र स्वरस को दाद पर लगाने से लाभ होता है | इसे पैरों के तलवों पर लेप करने से दाह का शमन होता है|
८- करेले के १०-१५ मिली रस में जीरे का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पिलाने से शीत-ज्वर में लाभ होता है |

गहरी नींद के आसान उपाय........

गहरी नींद के आसान उपाय........

* रात्रि भोजन करने के बाद पन्द्रह से बीस मिनट धीमी चाल से सैर कर लेने के बाद ही बिस्तर पर जाने की आदत बना लेनी चाहिए। इससे अच्छी नींद के अलावा पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है।
* अगर तनाव की वजह से नींद नहीं आ रही हो या फिर मन में घबराहट सी हो तब अपना मन पसंद संगीत सुनें या फिर अच्छा साहित्य या स्वास्थ्य से संबंधित पुस्तकें पढ़ें, ऐसा करने से मन में शांति का भाव आएगा, जो गहरी नींद में काफी सहायक होता है।
* अनिद्रा के रोगी को अपने हाथ-पैर मुँह स्वच्छ जल से धोकर बिस्तर पर जाना जाहिए। इससे नींद आने में कठिनाई नहीं होगी। एक खास बात यह कि बाजार में मिलने वाले सुगंधित तेलों का प्रयोग नींद लाने के लिए नहीं करें, नहीं तो यह आपकी आदत में शामिल हो जाएगा।
* सोते समय दिनभर का घटनाक्रम भूल जाएँ। अगले दिन के कार्यक्रम के बारे में भी कुछ न सोचें। सारी बातें सुबह तक के लिए छोड़ दें। दिनचर्या के बारे में सोचने से मस्तिष्क में तनाव भर जाता है, जिस कारण नींद नहीं आती।
* अपना पलंग मन-मुताबिक ही चुनें और जिस मुद्रा में आपको सोने में आराम महसूस होता हो, उसी मुद्रा में पहले सोने की कोशिश करें। अनचाही मुद्रा में सोने से शरीर की थकावट बनी रहती है, जो नींद में बाधा उत्पन्न करती है।
* अगर अनिद्रा की समस्या पुरानी और गंभीर है, नींद की गोलियाँ खाने की आदत बनी हुई है तो किसी योग चिकित्सक की सलाह लेकर शवासन का अभ्यास करें और रात को सोते वक्त शवासन करें। इससे पूरे शरीर की माँसपेशियों का तनाव निकल जाता है और मस्तिष्क को आराम मिलता है, जिस कारण आसानी से नींद आ जाती है।
* अच्छी नींद के लिए कमरे का हवादार होना भी जरूरी है। अगर मौसम बाहर सोने के अनुकूल है तो छत पर या बाहर सोने को प्राथमिकता दें। कमरे में कूलर-पँखा या फिर एयर कंडीशनर का शोर ज्यादा रहता है, तो इनकी भी मरम्मत करवा लेनी चाहिए, क्योंकि शोर से मस्तिष्क उत्तेजित रहता है, जिस कारण निद्रा में बाधा पड़ जाती है।

* सोने से पहले चाय-कॉफी या अन्य तामसिक पदार्थों का सेवन नहीं करें। इससे मस्तिष्क की शिराएँ उत्तेजित हो जाती हैं, जो कि गहरी नींद आने में बाधक होती हैं।
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ज्वार ----

ज्वार ----

गेहूं की रोटी का बेहतर विकल्प है मोटे अनाज में ज्वार की रोटी। यह पोटेशियम और फास्फोरस के साथ ही कैल्शियम और आयरन से भरपूर है। यह वजन बढ़ने और हृदय विकार जैसे आर्टरीज में होने वाले ब्लॉकेज को रोकने में मददगार है।गर्मियों में ज्वार की रोटी , छाछ या कढी के साथ या साग के साथ सेवन करने से ठंडक देती है. तो हो जाए ज्वारी रोटी !!!!!!
ज्वार बहुत पौष्टिक होता है। इसमें बहुत ज्यादा फाइबर है। यह आटे की तरह लसलसा नहीं होता, जिससे यह डायबिटीज, आर्थराइटिस जैसी बीमारियों से बचाव में मदद देता है। यह हड्डियों और दांतों को भी मजबूत बनाता है।
ज्वार बवासीर और घावों में लाभदायक है। ज्वार की रोटी नित्य छाछ में भिगोकर खाएँ। शरीर बलवान होता है।
यह आटा गेहूं के आटे से कई गुना बेहतर होता है। ज्वार के आटे में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं। यह ग्लुटेन रहित और नॉन एलर्जिक होता है। यह फाइबर, फॉस्फोरस और आयरन का भंडार है। इसमें अल्कालाइन नहीं होता, जिससे यह आसानी से पच जाता है। ज्वार विटमिन बी कॉम्प्लेक्स का अच्छा स्त्रोत है। शाकाहारी लोगों के लिए ज्वार का आटा प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है। शोध बताते हैं कि यह कुछ खास प्रकार के कैंसर के खतरों को भी कम करता है। साथ ही यह हृदय और मधुमेह रोगियों के लिए आटे का अच्छा विकल्प है।

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सहजन -
दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है. इसे सांबर में डाला जाता है . वहीँ उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है. सर्दियां जाने के बाद इसके फूलों की भी सब्जी बना कर खाई जाती है. फिर इसकी नर्म फलियों की सब्जी बनाई जाती है. इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है.
- आयुर्वेद में ३०० रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- इसके फूल उदर रोगों व कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, शियाटिका,गठिया आदि में उपयोगी है|
- जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग शियाटिका ,गठिया, यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है|
- सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है|
- सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात, व कफ रोग शांत हो जाते है| इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया,शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है| शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है,
- मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है |
- सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व बहत्तर प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है|
- इसकी सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द, वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है.
- सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है.
- सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है.
- इसकी जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पिने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है.
- इसके पत्तों का रस बच्चों के पेट के किडें निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है.
- इसका रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है.
- इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है.
- इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है.
- इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है.
- इसकी जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है.
- इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है.
- सर दर्द में इसके पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे.
- इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।
- सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है।
- कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है।
- सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।
- आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है।
- सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिये अति आवश्यक है।
- सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शीर के कई रोगों से लड़ता है, खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो, आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।
- इसमें कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है।
- इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है।
- सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।
- आप सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं, इससे शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।

पेट में कीड़े

पेट में कीड़े 

कई बार किन्ही कारणों से पेट में कीड़े हो जाते हैं जिनसे काफी पीड़ा होती है | पेट में पाए जाने वाले कीड़ों के सामान्य लक्षण है --- सोते हुए दाँत पीसना ,शरीर का रंग पीला या काला होना , भोजन से अरुचि , होंठ सफ़ेद होना , शरीर में सूजन होना आदि | तो आइए जानते हैं इनसे छुटकारा पाने के कुछ सरल उपाय :-----

1-अनार के छिलकों को सुखाकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण दिन में तीन बार एक -एक चम्मच लें , इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं |

2 -टमाटर को काटकर ,उसमें सेंधा नमक और कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करें | इस प्रयोग से पेट के कीड़े मर कर गुदामार्ग से बाहर निकल जाते हैं |

3-लहसुन की चटनी बनाकर उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर सुबह -शाम खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं |

4 -नीम के पत्तों का रस शहद में मिलकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं |

5 -कच्चे केले की सब्ज़ी 7 -8 दिन तक लगातार सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं |

6 -तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस दिन में दो बार पीने से पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं |

7 - अजवायन का 1-2 ग्राम चूर्ण छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं | यदि छोटे बच्चों के पेट में कीड़े हो गए हों तो आप उन्हें लगभग आधा ग्राम काला नमक व आधा ग्राम अजवायन का चूर्ण मिलकर सोते समय गुनगुने पानी से दें लाभ होगा |

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केला
भारत में केला हर जगह पाया जाता है और इसकी सबसे अच्छी किस्में भारत में ही होती हैं | भले ही रोज एक सेब खाने से आप डॉक्टर के पास जाने से बच सकते हैं, लेकिन केला खाने से आप अपनी पूरी जिन्दगी स्वस्थ्य रह सकते हैं। रिसर्च के मुताबिक केला आपको कई बीमारियों से बचा सकता है।
तो आइए जानते हैं केला खाने का स्वास्थ्यलाभ -

१ - केला खिलाड़ियों का प्रिय फल है क्योंकि यह तुरंत एनर्जी प्रदान करता है। सुबह नाश्ते में केला खाने से ऊर्जा बढती है और सूकरोज़, फ्रक्टोज़ और ग्लूकोज जैसे पोषक तत्व भी मिलते हैं। यदि आप दिन भर भूखे प्यासे रहते हैं, तो केवल केला ही खा लें देखिये अन्य फल के मुकाबले केले से तुरंत एनर्जी मिलेगी।

२- केले में प्रोटीन पाया जाता है, जो कि दिमाग को आराम देता है इसलिए डिप्रेशन दूर करने में सहायक है |

३- दूध के साथ केला और शहद मिला कर पीने से अनिद्रा की समस्या दूर हो जाती है।

४- केले में रेशा पाया जाता है, जिससे पाचन क्रिया मजबूत बनती है। गैस्ट्रिक व कब्ज़ की बीमारी वाले लोंगो के लिये केला बहुत प्रभावशाली उपचार है। अक्सर यात्रा के दौरान कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसको दूर करने के लिये केला एक अच्छा विकल्प है |

५- केला शरीर के खून में हीमोग्लोबिन को बढाता है। जिससे एनीमिया की शिकायत दूर हो जाती है।वे लोग जो एनीमिया से प्रभावित हैं, उन्हें अपने भोजन में केला शामिल करना चाहिये।

६-केले में पोटैशियम पाया जाता है, जो उच्चरक्तचाप के रोगियों के लिए विशेष लाभकारी होता है| केला खाने से उच्चरक्तचाप सामान्य बना रहता है |

७- दो केले लगभग १०० ग्राम दही के साथ सेवन करने से दस्त व पेचिश में लाभ होता है |

८- केले पर चीनी और इलायची डालकर खाने से खट्टी डकारें आनी बंद हो जाती हैं |
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पीलिया -

रक्त में लाल कणों की निश्चित आयु होती है | यदि किसी कारण इनकी आयु कम हो जाए और ये जल्दी ही अधिक मात्रा में नष्ट होने लगें तो पीलिया होने लगता है | यदि जिगर का कार्य भी पूरी तरह न हो तो पीलिया हो जाता है | हमारे रक्त में बिलीरुबिन नामक पीले रंग का पदार्थ होता है | यह पदार्थ लाल कणों के नष्ट होने पर निकलता है इसलिए शरीर में पीलापन आने लगता है | त्वचा का पीलापन ही पीलिया कहलाता है | रोग बढ़ने पर सारा शरीर हल्दी की तरह पीला दिखाई देता है | इस रोग में जिगर, पित्ताशय , तिल्ली और आमाशय आदि खराब होने की संभावना रहती है | अत्यंत तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन, अधिक खटाई , गर्म तथा चटपटे और पित्त को बढ़ने वाले पदार्थों का अधिक सेवन,शराब अधिक पीने आदि कारणों से वात , पित्त और कफ कुपित होकर पीलिया को जन्म देते हैं| कुछ प्रयोग निम्न प्रकार हैं -----
1- ५० ग्राम मूली के पत्ते का रस निचोड़कर १० ग्राम मिश्री मिला लें, और बासी मुहँ पियें |
2- पीलिया के रोगी को जौं ,गेंहू तथा चने की रोटी ,खिचड़ी ,हरी सब्ज़ियाँ,मूंग की दाल तथा नमक मिला हुआ मट्ठा आदि देना चाहिए |
3- तरल पदार्थों का सेवन अधिक करना चाहिए |
4- रोगी को भोजन बिना हल्दी का देना चाहिए तथा मैदे से बनी वस्तुएं ,खटाई ,उड़द ,सेम ,सरसों युक्त गरिष्ठ भोजन नहीं देना चाहिए |
5- कच्चे पपीते का खूब सेवन करें | पका हुआ पपीता भी पीलिया में बहुत लाभदायक होता है |
6- उबली हुई बिना मसाले व मिर्च की सब्ज़ी का सेवन करें |
7- मकोय के ४ चम्मच रस को हल्का गुनगुना करके सात दिन तक सेवन करें ,लाभ होगा |
8- पीलिया के रोगी को पूर्णतः विश्राम करना चाहिए तथा नमक का सेवन भी कम करना चाहिए |
9- अनार के रस के सेवन से रुक हुआ मल निकल जाता है और पीलिया में फायदा होता है |
10- आंवला रस पीने से भी पीलिया दूर होता है |
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धर्मपरिवर्तन, विरोध करनेवाले हिंदुनिष्ठोंकी हत्या !

May 26, 2014    


आगरतला - त्रिपुरा राज्यमें ‘नैशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा’ (एन.एल.एफ.टी.) नामक आतंकवादी संगठन ईसाई धर्मका प्रसार करने हेतु आतंकी कार्यवाहियां करनेमें अग्रसर है । भारतके आतंकवादी संगठनोंका अभ्यास करनेवाली एक सेवाभावी संस्थाने विश्वके प्रमुख १० आंतकवादी संगठनोंमें एन.एल.एफ.टी.की गिनती की है । यह संगठन हिंदुओंका बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन करनेके लिए कुख्यात है ।
१. एन.एल.एफ.टी.संगठनको त्रिपुराके बाप्टिस्ट चर्चद्वारा शस्त्र एवं निधि प्राप्त होती है, ऐसा सरकारके पास अंकित है । वर्ष २००० के अप्रैल माहमें त्रिपुराके नोआपारा बाप्टिस्ट चर्चके सचिव नागमाणाल हलामके पास भारी मात्रामें विस्फोटक मिलनेके कारण उसे बंदी बनाया गया था । उसने एन.एल.एफ.टी.संगठनको २ वर्षोंतक शस्त्रपूर्ति करनेकी स्वीकृती दी । स्थानीय हिंदुओंद्वारा ५ दिनका दुर्गा उत्सव न मनाया जाने हेतु एन.एल.एफ.टी.ने हिंदुओंको जीवित मारनेकी धमकियां दी थीं । धर्मपरिवर्तनको विरोध करनेके कारण पिछले २ वर्षोंमें २० लोगोंकी हत्या की गई । इस बीच ५ सहस्र आदिवासियोंका धर्मपरिवर्तन किया गया ।
२. वर्ष २००० के अगस्त माहमें हिंदु धार्मिक नेता शांति त्रिपुराकी गोली मारकर हत्या की गई । इसी वर्ष दिसंबर माहमें लाभ कुमार जमातीया नामक धार्मिक नेताका अपहरण कर उसपर हिंदुओंका धर्मपरिवर्तन करनेके लिए दबाव डाला गया एवं उसके न सुननेपर उसकी हत्या कर दी गई ।
३. वर्ष २००५ के मई माहमें किशोर देब्बर्मा साम्यवादीकी हत्या की गई । इन घटनाओंके कारण त्रिपुरा राज्यके हिंदुओंमें दहशतका वातावरण उत्पन्न हो गया है तथा धर्मपरिवर्तनको होनेवाला विरोध न्यून होता जा रहा है ।

Thursday 29 May 2014

एक गला काट दिया तो दूसरा गला आगे करने के लिए बचता ही नहीं।

गांधी : भारत वासीयो, शत्रु से प्रेम करो और उसपर विश्वास रखो।
सावरकर : शत्रु पर प्रेम या विश्वास नहीं रखा जाता।
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गांधी :- अहिंसा का मार्ग स्विकारो | किसी ने एक गाल पर थप्पड़ मारा तो दूसरा गाल आगे करो।
सावरकर :- खुद की रक्षा करना मतलब हिंसा नही।मुर्ख हिन्दुओ , एक गला काट दिया तो दूसरा गला आगे
करने के लिए बचता ही नहीं।
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गांधी :- मैं एक हिन्दु हुं, और हिन्दू धर्म में सारे देवता शान्ति का सन्देश देते है।
सावरकर :- तुम नकली हिन्दू हो। प्रभु श्रीराम के हाथ में धनुष है और श्रीकृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र। सज्जन लोगो की रक्षा के लिए भागवान को भी शस्त्र उठाने पड़े है।
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गांधी :- शस्त्र हाथ में लेना गलत है। शत्रु से लड़ना है तो तर्क के आधार पर लड़ो।
सावरकर :- युद्ध में तर्क नहीं बल्कि तलवार टिकती है और जीतती है। देश की सीमा तलवार से बचायी जा सकती है. तर्क से नहीं।
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गांधी :- तलवार नहीं चाहिए। ह्रुदय परिवर्तन पर विश्वास रखो और शत्रु का मन जीतो ।
सावरकर :- जिन्होंने हमे मारने की ठान ली है उनका मन जीत नहीं सकते। हे हिंदुंओ, अफजल खान
का हृदय परिवर्तन कर ही नहीं सकते, उसका हृदय फाड़ना पड़ता है।
आप अहिंसक होकर हिंसको का मुकाबला कभी नहीं कर सक्ते …………

Monday 26 May 2014

वही विजेता माना जाएगा .

बहुत समय पहले की बात है एक सरोवर में बहुत सारे मेंढक रहते थे .
सरोवर के बीचों -बीच एक बहुत पुराना धातु का खम्भा भी लगा हुआ था जिसे उस सरोवर को बनवाने वाले राजा ने लगवाया था . खम्भा काफी ऊँचा था और उसकी सतह भी बिलकुल चिकनी थी .
एक दिन मेंढकों के दिमाग में आया कि क्यों ना एक रेस करवाई जाए . रेस में भाग लेने वाली प्रतियोगीयों को खम्भे पर चढ़ना होगा , और जो सबसे पहले एक ऊपर पहुच जाएगा वही विजेता माना जाएगा .
रेस का दिन आ पंहुचा , चारो तरफ बहुत भीड़ थी ; आस -पास के इलाकों से भी कई मेंढक इस रेस में हिस्सा लेने पहुचे . माहौल में सरगर्मी थी , हर तरफ शोर ही शोर था .रेस शुरू हुई ……
लेकिन खम्भे को देखकर भीड़ में एकत्र हुए किसी भी मेंढक को ये यकीन नहीं हुआकि कोई भी मेंढक ऊपर तक पहुंच पायेगा …हर तरफ यही सुनाई देता …“ अरे ये बहुत कठिन है ”“ वो कभी भी ये रेस पूरी नहीं कर पायंगे ”“ सफलता का तो कोई सवाल ही नहीं , इतने चिकने खम्भे पर चढ़ा ही नहीं जा सकता ”और यही हो भी रहा था , जो भी मेंढक कोशिश करता , वो थोडा ऊपर जाकर नीचे गिर जाता ,कई मेंढक दो -तीन बार गिरने के बावजूद अपने प्रयास में लगे हुए थे …पर भीड़ तो अभी भी चिल्लाये जा रही थी , “ ये नहीं हो सकता , असंभव ”, और वो उत्साहित मेंढक भी ये सुन-सुनकर हताश हो गए और अपना प्रयास छोड़ दिया .लेकिन उन्ही मेंढकों के बीच एक छोटा सा मेंढक था , जो बार -बार गिरने पर भी उसी जोश के साथ ऊपर चढ़ने में लगा हुआ था ….वो लगातार ऊपर की ओर बढ़ता रहा ,और अंततः वह खम्भे के ऊपर पहुच गया और इस रेस का विजेता बना .
उसकी जीत पर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ , सभी मेंढक उसे घेर कर खड़े हो गए और पूछने लगे ,” तुमने ये असंभव काम कैसे कर दिखाया , भला तुम्हे अपना लक्ष्य प्राप्त करने की शक्ति कहाँ से मिली, ज़रा हमें भी तो बताओ कि तुमने ये विजय कैसे प्राप्त की ?
”तभी पीछे से एक आवाज़ आई … “अरे उससे क्या पूछते हो , वो तो बहरा है ”
Friends, अक्सर हमारे अन्दर अपना लक्ष्य प्राप्त करने की काबीलियत होती है, पर हम अपने चारों तरफ मौजूद नकारात्मकता की वजह से खुद को कम आंक बैठते हैं और हमने जो बड़े-बड़े सपने देखे होते हैं उन्हें पूरा किये बिना ही अपनी ज़िन्दगी गुजार देते हैं . आवश्यकता इस बात की है हम हमें कमजोर बनाने वाली हर एक आवाज के प्रति बहरे और ऐसे हर एक दृश्य के प्रति अंधे हो जाएं. और तब हमें सफलता के शिखर पर पहुँचने से कोई नहीं रोक पायेगा.

33 करोड नहीँ 33 कोटि देवी देवता हैँ

 33 करोड नहीँ 33 कोटि देवी देवता हैँ
हिँदू धर्म मेँ।
 कोटि = प्रकार
देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो
अर्थ होते है,
कोटि का मतलब प्रकार होता है
और एक अर्थ करोड़ भी होता।
 हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के
लिए ये बात उडाई गयी की
हिन्दुओ के 33
करोड़ देवी देवता हैं और
अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही
गाते फिरते हैं की
हमारे 33 करोड़ देवी देवता
हैं........
 कुल 33 प्रकार के देवी देवता हैँ
हिँदू धर्म मेँ:
12 प्रकार हैँ आदित्य: , धाता, मित,
आर्यमा,
शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष,
सविता, तवास्था, और विष्णु...!
 8 प्रकार हैँ
वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष
और प्रभाष।
 11 प्रकार हैँ- रुद्र: ,हर,
बहुरुप, त्रयँबक,
अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी,
रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली। एवँ
 दो प्रकार हैँ
अश्विनी और कुमार।
कुल: 12+8+11+2=33

Saturday 24 May 2014

एक हिन्दू लड़की राधा एक मुस्लिम लड़के से प्रेम करती हैं ,,


एक हिन्दू लड़की राधा एक मुस्लिम लड़के
से प्रेम करती हैं ,,माँ बाप ने बहुत
समझाया की बेटी निबाह
नहीं पायेगी ,,पर राधा ने
कहा कि"क्या फर्क है हिन्दू मुसलमान में"
उसके खून का रंग भी लाल मेरे खून का रंग भी लाल .... घर वालों व् समाज के प्रबल
विरोध के बाद भी मुस्लिम लड़के से प्रेम
विवाह रचाती है ,,,शादी के बाद सब
कुछ
बहुत अच्छा चल रहा था
हिन्दू लड़की का नाम भी बदला नहीं गया
सास ससुर बहुत अच्छे निकले ..बहुत प्यार
करते थे ...ससुराल में सबकी लाड़ली .....
लड़की के माँ बाप उससे संबंध तोड़ चुके
थे ...जब तब राधा अपने माँ बाप को याद
करती और खबर भिजवाती थी कि मुस्लिम
परिवार में मैं बहुत खुश हूँ कोई दिक्कत
नहीं है
फिर राधा के दो बच्चे हुए एक बेटा एक
बेटी ...दोप्यारे बच्चों की परवरिश अच्छे
से हुई बेटी बड़ी हुई शादी के लिए लड़का देखने
की बात हुई
तो पति और सास ससुर की बात सुन कर
सन्न रह गयी
पति और सास ससुर का निर्णय
था कि बिटिया की शादी उसकी बुआ के
बेटे से तय की जाएगी .....
राधा ने विरोध किया कि बुआ
का लड़का भाई होता है ,,पर दो टूक
कहा गया वो हिन्दुओं में है मुस्लिम में
नहीं राधा ने बेटी को कहा की बेटी तू
विरोध
कर इस बात
का ,,,तो बेटी बोली माँ फूफी के लड़के
जावेद से मैं प्यार करती हूँ
राधा ने एक तमाचा मारा अपनी बेटी के मुंह पर और बोली,,,,नालायक
वो तेरा भाई है तेरी बुआ
का बेटा है,,,,बिटिया बोली वो आपके
हिन्दू धर्म में होता है और मैं मुस्लिम हूँ
अब राधा के पैरों के नीचे की ज़मीन
निकल चुकी थी ,,,बाप की बात याद आई
बेटा निबाह नहीं पायेगी .....
उसी रात में राधा ने आत्म ह्त्या कर ली
क्यूंकि नमाज पढ़ना कबूल था,,बुर्का कबूल
था,,ईद .. रमजान कबूल था
पर अपनी बेटी की शादी उसकी बुआ के लड़के से कबूल नहीं कर पायी
बाप की बात आखिरी पल में भी याद आ
रही थी कि बेटी खून का रंग
सबका एकहोता है पर सोच अलग होती है
तू निबाह नहीं पायेगी ...........
(किसी धर्म का विरोध नहीं ,,सिर्फ अपने हिन्दूधर्म का प्रबल समर्थक )"

Tuesday 20 May 2014

अंग्रजोंने ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथपर प्रकाशनपूर्व बंदी

वर्ष १८५७ के भारतीयोंके स्वातंत्र्यसंग्रामको अंग्रेजों द्वारा दिए गए `शिपायांचे बंड’ (सैनिकोंका विद्रोह), `शिपायांची भाऊगर्दी’,( सैनिकोंकी भीड ) आदि सारे नाम ठुकराकर स्वातंत्र्यवीर सावरकरजीने ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर ’ यह नाम प्रचलित किया । उन्होंने इंग्लैंडमें यह ग्रंथ २५ वर्षकी आयुमें लिखा ।

स्वातंत्र्यवीर सावरकरजीने `१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ ग्रंथकी लिखाई हेतु पूरा ब्रिटिश ग्रंथालय छान मारा तथा सारे संदर्भ ढूंढ निकाले । संदर्भ ढूंढनेका उनका उद्देश्य जान जानेपर वहांके ग्रंथपालने उन्हें ग्रंथालयमें आनेसे मना किया; किंतु तबतक सावरकरजी सारे दस्तावेजोंके स्थान जान गए थे । उसीसे मराठीमें लिखा ग्रंथ पूरा हुआ । उन्होंने अल्पावधिमें ही इस ग्रंथका अंग्रेजी अनुवाद कर, हॉलैंड तथा जर्मनीमें छपवाया । तत्पश्चात वे ग्रंथ ‘अंकल टॉम्स केबिन’ तथा `पिकविक पेपर्स’ ये तत्कालीन लोकप्रिय उपन्यासोंके वेष्टन चढाकर भारत भेज दिए ।

 प्रकाशनपूर्व बंदी लगाया गया पूरे विश्वका पहला ग्रंथ !

अंग्रजोंने ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथपर प्रकाशनपूर्व बंदी लगाई । इस प्रकारकी बंदी, पूरी दुनियाका पहला उदाहरण था । प्रकाशनसे पहले ही ग्रंथमें क्या लिखा है, यह बात प्रशासनको कैसे पता चली, ऐसा स्वातंत्र्यवीर सावरकरजीने अंग्रेज प्रशासनसे पूछा । उसका उत्तर नहीं मिला; क्योंकि बंदी लगाने हेतु ग्रंथका नाम ही पर्याप्त था ।

 क्रांतिकारियोंकी स्फूर्तिगीता

‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ यह ग्रंथ क्रांतिकारियोंके लिए स्फूर्तिगीता सिद्ध हुआ । बाबाराव सावरकरजीने भारतभरमें इस ग्रंथका  वितरण किया । तदनंतर भगतसिंह तथा नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा इस ग्रंथका संस्करण प्रसिद्ध किया गया ।

. ‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथकी मराठीका मूल हस्तलिखित ४० वर्ष अपनी जानसे अधिक संभालनेवाले डॉ.कुटिह्नोके कारण ही  यह ग्रंथ मराठीमें प्रसिद्ध हो सका ।

‘१८५७ चे स्वातंत्र्यसमर’ इस ग्रंथका मराठी मूल हस्तलिखित डॉ.कुटिह्नो नामक गोमंतकियके पास था । वे अभिनव भारत संगठनके सदस्य थे । अंग्रेजी ग्रंथकी बंदीकी घटना देखकर अमरिका जाते समय हस्तलिखित अपने साथ लेकर गए । भारत स्वतंत्र होनेके बाद उन्होंने ग्रंथका मूल हस्तलिखित सावरकरजीके पास भेज दिया । इस प्रकार वह ग्रंथ वर्ष १९४९में, अर्थात ग्रंथलेखनके चालीस वर्ष बाद प्रकाशित हुआ । दुनियाकी यह एकमेव घटना होगी !
- डॉ.सच्चिदानंद शेवडे (ग्रंथ निवडक मुक्तवेध)

मोदीजी‬ के टाइम्स नाउ के इंटरव्यू का ये जवाब

‪#‎पत्रकार‬-मोदी जी आप एक तरफ तो कहते हैं की आप भारत में गैर-क़ानूनी तरीके से घुसे हुए सारे बंगलादेशी मुस्लिमों को उठाकर देश से बाहर फेंक देंगें और दूसरी तरफ बंगलादेशी हिन्दुओं को आप#बंगलादेशसे#भारतमें ही बसाये जाने की वकालत करते हैं, तो क्या ये आपकी#हिन्दू-‪#‎मुस्लिमके‬ बीच में फर्क करने की सोच नहीं दिखाता...???
‪#‎नरेंद्र_मोदी‬- पहली बात है जब मैं कहता हूँ की मैं भारत से बंग्लादेशियों को बाहर निकालूँगा तो उसमें कभी भी ''‪#‎बंगलादेशी_मुसलमान‬'' शब्द का प्रयोग नहीं करता हूँ ,मैं ''‪#‎बंगलादेशी_घुसपैठियों‬'' शब्द का प्रयोग करता हूँ अब वो अलग बात है की उनमें से ज्यादातर#मुसलमानहैं लेकिन उसका ये मतलब नहीं है की मुसलमान होने से उन्हें इस देश में जबरन गैर-क़ानूनी तरीके से घुसने और मार-काट मचाने का लाइसेंस मिल जाता है, और ऐसे लोगों के बारे में तो मैं अभी भी साफ़-२ कहता हूँ की ऐसे लोगों को तो मैं बर्दाश्त नहीं करने वाला, क्या आपको मालूम है की आज हमारे देश में पांच करोड़ से भी ज्यादा बंगलादेशी गैर-क़ानूनी रूप से घुसे हुए हैं और सीमा के नजदीक के बहुत से गाँवों पे उनका कब्जा हैऔर ये#सेकुलरकहे जाने वाले नेता उन्हें#वोटर_आईडी_कार्डबना-बनाकर दे रहे हैं अपनी#वोट_बैंककी#राजनीतीकी खातिर बिना ये सोचे की ये लोग कितना बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं हमारे देश की इंटरनल#सिक्युरिटीके लिए, बंगलादेश के#कटटरपंथीतत्व इन्हें जान-बुझ कर हमारे देश में डाल रहे हैं ताकि हमारे देशमें जनसंख्याका जो अनुपात है वो गड़बड़ाया जा सके |आपने मुझसे पुछा की मोदी जी आपका यही सख्त रवैया बंगलादेशी हिन्दुओं पर क्यों लागू नहीं होता लेकिन मुझसे ऐसा पूछने से पहले आप ये पता करना भूल गए की बंगलादेशी हिन्दुओं के साथ आज बंगलादेश में हो क्या रहा है, 35% हिन्दू थे बंगलादेश में आज 9 % बचे हैं, उन्हें#धर्मके आधार पर खत्म किया जा रहा है वहां से, अब यहां पे किसी को सेकुलरिस्म के खतरे में पड़ने की चिंता क्यों नहीं होती मैं हैरान हूँ जी...!!!आजादी से पहले वो हमारा ही हिस्सा थे या नहीं थे तो आज जब उनपर ये जुल्म किये जा रहे हैं तो क्या हमेंआँख-बंद करके उन बेचारों को वहां मरने के लिए छोड़ देना चाहिए क्या...??? भारत जैसे#मानवतावादीदेश कहे जाने वाले लोगों को ये शोभादेता है क्या...??? वे बेचारे आखिर जायेंगें कहाँ...??? वहां पे धर्म को आधार बनाकर ही बंगलादेशी हिन्दुओं पर ही आक्रमण किये जा रहे हैं ना की किसी और चीज को...!!!कमाल की बात तो ये है की आप#मीडियावालों को दोनों के बीच में#फर्कसमझ में नहीं आ रहा है की कुछ लोगों को जानबूझ कर एक#प्लानिंगके तहत#गैर_क़ानूनीरूप से हमारे देश में घुसाया जाना और कुछ लोगों का अपनी जान बचाने के लिए हमसे#दयाकी गुहार लगाना, दोनों के बीच में#अंतरआप लोगों को नजर नहीं आ रहा है, इसमें भी आप येदेख रहे हैं की ये इस धर्म का है और ये उस धर्म का। बेहद#दुर्भाग्यपूर्णहै ये
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फेसबुक के चलते अनेक देशों में हिंसक क्रांति हुई
और अनेक तानाशाह उखाड़ फेंके गए
उन क्रांतियों में बहुत अधिक हिंसा भी हुई
दुर्भाग्य से उन देशों में तानाशाही का अन्त तो हुआ पर लोकतंत्र नहीं आ सका 
पर भारत में फेसबुक ने शान्तिपूर्ण रक्तहीन क्रांति करवा दी

यहाँ रक्त रंजित खूनी संघर्ष नहीं हुए.... बल्कि चुनाव हुए
और चुनाव में इसने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
जिसके द्वारा भारत में सच्चे मायनों में लोकतंत्र स्थापित हो गया
कुछ तो बात है इस भारतभूमि में ....और हम भारतीयों में जो
हम विश्व में निराले हैं ...अनूठे हैं
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Monday 19 May 2014

॥ नास्त्रेदमस की भविष्यवाणी ॥


450साल पहले कर दी थी मोदी युग की भविष्यवाणी, फ्रांस के भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस की सेन्चुरी ग्रंथ मे फ्रेंच भाषा मे लिखा हैं कि 2014 से लेकर 2026 तक भारत का नेतृत्व एक ऐसा आदमी करेगा जिससे लोग शुरू में नफरत करेंगे मगर इसके बाद देश की जनता उससे इतना प्यार करेंगी कि वह 20 साल तक देश की दशा और दिशा बदलने में जुटा रहेगा यह भविष्य वाणी सन् 1555 की हैं यह फ्रेंच भाषा मे लिखा गया हैं जिसका अनुवाद मराठी भाषा में महाराष्ट्र के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डाँ.श्री रामचंद्रजी जोशी ने किया हैं। जिसके पृष्ठ 32-33 पर स्पष्ट लिखा है ठहरो राम राज्य आ रहा हैं, एक अधेड़ उम्र का अजोड़ महासत्ता अधिकारी भारत ही नहीं सारी पृथ्वी पर स्वर्ण युग लायेगा। जो अपने सनातन धर्म का पुनउत्थान करके भारत को सर्व श्रेष्ठ हिन्दू राष्ट्र बनायेगा।चांडाल चौकड़ियों को परास्त कर अपने दम पर सत्ता पे काबिज होगा। उनके नेतृत्व में हिन्दूस्तान न सिर्फ विश्व गुरु बनेगा बल्कि कई देश भारत की शरण में आ जायेगे ।
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सिमी के आतंकवादियों ने की नरेंद्र मोदी के खिलाफ नारेबाजी, बोले- तालिबान आएगा, मोदी जाएगा
स्‍टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के गिरफ्तार आतंकियों ने भोपाल अदालत परिसर में उस समय अफरा-तफरी मचा दी, जब उन्होंने पुलिस की कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच देश के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. आतंकियों ने कहा कि अब की बार मोदी का नंबर है. यह घटना शनिवार को उस वक्त हुई, जब पुलिस प्रतिबंधित सिमी के इन कार्यकर्ताओं को अदालत में पेश करने के बाद जेल परिसर में खड़े एक वाहन की तरफ ले जा रही थी.
पुलिस सूत्रों ने रविवार को यहां बताया, 'प्रतिबंधित सिमी के विभिन्न मामलों में गिरफ्तार लगभग 15 आतंकियों को पुलिस कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच अदालत में लाई थी. पुलिस जब इन आतंकियों को अदालत में पेश करने के बाद वापस जेल वाहन की तरफ ला रही थी, तभी खंडवा जेल से फरार आतंकी अबु फैजल ने मोदी के खिलाफ नारेबाजी शुरु कर दी.

जैसे ही अबु ने नारेबाजी की, इसके बाद सभी सिमी आतंकियों ने नारेबाजी शुरु कर दी. आतंकवादियों ने गुजरात के मुख्यमंत्री और देश के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धमकी देते हुए नारे लगाते हुए कहा कि अब की बार मोदी का नंबर है. उन्होंने बताया कि इसके अलावा इन सिमी आतंकियों ने यह भी नारे लगाए कि दुनिया की एक ही ताकत अल्लाह है, तालीबान आएगा और नरेन्द्र मोदी जाएगा और अबकी बार मोदी की बारी है. बाद में पुलिस इन्‍हें जेल के एक वाहन में वापस भोपाल के केन्द्रीय कारागार ले गई.
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (खुफिया) सरबजीत सिंह ने आज बताया कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पुलिस ने आईपीसी की धारा 153 डी और 295 ए के तहत शहर के महाराणा प्रताप नगर पुलिस थाने में मामला दर्ज कर लिया है. सिंह ने कहा, 'वे इन नारों को लगाकर केवल लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे थे. हमने इस मामले को गंभीरता से लिया है और भविष्य में जब भी इन्हें अदालत में पेश किया जाएगा, हम सुरक्षा व्यवस्था को और बढ़ा देंगे.' उन्होंने बताया कि जेल के अधिकारी इनकी भविष्य में अदालत में पेशी को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सुनिश्चित करने के लिए अदालत से अनुरोध करेगी, ताकि ऐसी स्थिति से बचा जा सके. उन्होंने कहा कि ये सभी कट्टर अपराधी हैं.
जिन सिमी आतंकियों को अदालत में पेश किया गया था, उनमें खंडवा जेल से फरार अबु फैजल, जिसे बाद में बड़वानी के निकट एक पहाड़ी से पकड़ा गया था, अकील खिलजी, रकीब, सादिक हबीब, इसरार, खालिद अहमद, इरफान नागौरी, अब्दुल अजीज, अब्दुल वाहिद, मोहम्मद खालिद सईद उर्फ गुड्डू, अब्दुल माजिद तथा जुबेर शामिल थे. इन सभी को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पंकज सिंह माहेश्वरी की अदालत में मध्य प्रदेश में सिमी नेटवर्क फैलाने और इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के साथ संबंध रखने के मामले में पेश किया गया था. इन सभी पर अनेक संगीन जुर्म के आरोप हैं.

Thursday 15 May 2014

"10000 times stronger killer of CANCER than Chemo"..

SHARE THIS INFORMATION FIRST AND READ AFTERWARDS.....SAVE LIFE Share this as much
as you can.

"10000 times stronger killer of CANCER than Chemo".. do share it.. can save many lives, fill up hopes and build confidence in the patients...

The Sour Sop or the fruit from the graviola tree is a miraculous natural cancer cell killer 10,000 times stronger than Chemo.
...
Why are we not aware of this? Its because some big corporation want to make back their money spent on years of research by trying to make a synthetic version of it for sale.

So, since you know it now you can help a friend in need by letting him know or just drink some sour sop juice yourself as prevention from time to time. The taste is not bad after all. It’s completely natural and definitely has no side effects. If you have the space, plant one in your garden.
The other parts of the tree are also useful.

The next time you have a fruit juice, ask for a sour sop.

How many people died in vain while this billion-dollar drug maker concealed the secret of the miraculous Graviola tree?

This tree is low and is called graviola ! in Brazi l, guanabana in Spanish and has the uninspiring name “soursop” in English. The fruit is very large and the subacid sweet white pulp is eaten out of hand or, more commonly, used to make fruit drinks, sherbets and such.

The principal interest in this plant is because of its strong anti-cancer effects. Although it is effective for a number of medical conditions, it is its anti tumor effect that is of most interest. This plant is a proven cancer remedy for cancers of all types.

Besides being a cancer remedy, graviola is a broad spectrum antimicrobial agent for both bacterial and fungal infections, is effective against internal parasites and worms, lowers high blood pressure and is used for depression, stress and nervous disorders.

If there ever was a single example that makes it dramatically clear why the existence of Health Sciences Institute is so vital to Americans like you, it’s the incredible story behind the Graviola tree..

The truth is stunningly simple: Deep within the Amazon Rainforest grows a tree that could literally revolutionize what you, your doctor, and the rest of the world thinks about cancer treatment and chances of survival. The future has never looked more promising.

Research shows that with extracts from this miraculous tree it now may be possible to:
* Attack cancer safely and effectively with an all-natural therapy that does not cause extreme nausea, weight loss and hair loss
* Protect your immune system and avoid deadly infections
* Feel stronger and healthier throughout the course of the treatment
* Boost your energy and improve your outlook on life

The source of this information is just as stunning: It comes from one of America ‘s largest drug manufacturers, th! e fruit of over 20 laboratory tests conducted since the 1970's! What those tests revealed was nothing short of mind numbing… Extracts from the tree were shown to:

* Effectively target and kill malignant cells in 12 types of cancer, including colon, breast, prostate, lung and pancreatic cancer..
* The tree compounds proved to be up to 10,000 times stronger in slowing the growth of cancer cells than Adriamycin, a commonly used chemotherapeutic drug!
* What’s more, unlike chemotherapy, the compound extracted from the Graviola tree selectivelyhunts
down and kills only cancer cells.. It does not harm healthy cells!

The amazing anti-cancer properties of the Graviola tree have been extensively researched–so why haven’t you heard anything about it? If Graviola extract is

One of America ‘s biggest billion-dollar drug makers began a search for a cancer cure and their research centered on Graviola, a legendary healing tree from the Amazon Rainforest.

Various parts of the Graviola tree–including the bark, leaves, roots, fruit and fruit-seeds–have been used for centuries by medicine men and native Indi! ans in S outh America to treat heart disease, asthma, liver problems and arthritis. Going on very little documented scientific evidence, the company poured money and resources into testing the tree’s anti-cancerous properties–and were shocked by the results. Graviola proved itself to be a cancer-killing dynamo.
But that’s where the Graviola story nearly ended.

The company had one huge problem with the Graviola tree–it’s completely natural, and so, under federal law, not patentable. There’s no way to make serious profits from it.

It turns out the drug company invested nearly seven years trying to synthesize two of the Graviola tree’s most powerful anti-cancer ingredients. If they could isolate and produce man-made clones of what makes the Graviola so potent, they’d be able to patent it and make their money back. Alas, they hit a brick wall. The original simply could not be replicated. There was no way the company could protect its profits–or even make back the millions it poured into research.

As the dream of huge profits evaporated, their testing on Graviola came to a screeching halt. Even worse, the company shelved the entire project and chose not to publish the findings of its research!

Luckily, however, there was one scientist from the Graviola research team whose conscience wouldn’t let him see such atrocity committed. Risking his career, he contacted a company that’s dedicated to harvesting medical plants from the Amazon Rainforest and blew the whistle.

Miracle unleashed
When researchers at the Health Sciences Institute were alerted to the news of Graviola,! they be gan tracking the research done on the cancer-killing tree. Evidence of the astounding effectiveness of Graviola–and its shocking cover-up–came in fast and furious….

….The National Cancer Institute performed the first scientific research in 1976. The results showed that Graviola’s “leaves and stems were found effective in attacking and destroying malignant cells.” Inexplicably, the results were published in an internal report and never released to the public…

….Since 1976, Graviola has proven to be an immensely potent cancer killer in 20 independent laboratory tests, yet no double-blind clinical trials–the typical benchmark mainstream doctors and journals use to judge a treatment’s value–were ever initiated….

….A study published in the Journal of Natural Products, following a recent study conducted at Catholic University of South Korea stated that one chemical in Graviola was found to selectively kill colon cancer cells at “10,000 times the potency of (the commonly used chemotherapy drug) Adriamycin…”

….The most significant part of the Catholic University of South Korea report is that Graviola was shown to selectively target the cancer cells, leaving healthy cells untouched. Unlike chemotherapy, which indiscriminately targets all actively reproducing cells (such as stomach and hair cells), causing the often devastating side effects of nausea and hair loss in cancer patients.

…A study at Purdue University recently found that leaves from the Graviola tree killed cancer cells among six human cell lines and were especially effective against prostate, pancreatic and lung cancers Seven years of silence broken–it’s finally here!!!

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