Saturday 28 February 2015

हिन्दू धर्म के लिए खुशखबरी तथा...हिन्दू धर्म द्रोहियों, चर्च-वेटिकन के गुर्गों और गाँव-गाँव में सेवा के नाम पर "धंधा" करने वाले फादरों के लिए बुरी खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के निर्णय को धता बताते हुए यह निर्णय सुनाया है कि यदि कोई व्यक्ति हिन्दू धर्म में वापसी करता है तो उसका दलित स्टेटस बरकरार रहेगा और उसे आरक्षण की सुविधा मिलती रहेगी... 

मामला केरल का है, जहाँ एक व्यक्ति ने हिन्दू धर्म में "घर-वापसी" की. उसे उसकी मूल दलित जाति का प्रमाण-पत्र जारी कर दिया गया. जब वह आरक्षण लेने पहुँचा तो वेटिकन के "दोगलों" ने हंगामा खड़ा करते हुए केरल हाईकोर्ट में याचिका लगा दी कि वह ईसाई बन चुका था, इसलिए उसे अब आरक्षण नहीं दिया जा सकता. अब सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दे दी है कि हिन्दू धर्म में लौटने के बाद भी वह दलित माना जाएगा और उसे आरक्षण मिलेगा.

ऊपर मैंने चर्च के सफ़ेद शांतिदूतों को "दोगला" इसलिए कहा, क्योंकि इन्हीं लोगों की माँग थी कि जो दलित ईसाई धर्म में जाए उसे भी "दलित ईसाई" श्रेणी में आरक्षण मिलना चाहिए. लेकिन जब वही व्यक्ति उनके चंगुल से निकलकर हिन्दू धर्म में वापस आया तो उसे आरक्षण के नाम पर रुदालियाँ गाने लगे. ठीक ऐसी ही दोगली कोलकाता निवासी एक महिला भी थी जिसे "सेवा"(?) उसी स्थिति में करनी थी, जब सरकार कठोर धर्मांतरण विरोधी क़ानून न बनाए. इस प्रस्तावित क़ानून के विरोध में मोरारजी देसाई को चिठ्ठी भी लिख मारी.
पाखण्ड, धूर्तता, चालाकी, झूठ, फुसलाना आदि के सहारे हिंदुओं को बरगलाने वालों को तगड़ा झटका लगा है... अब गरीब दलितों के सामने अच्छा विकल्प है कि पहले वे चर्च से "मोटा माल" लेकर ईसाई बन जाएँ फिर कुछ वर्ष बाद हिन्दू धर्म में "घर वापसी" कर लें और मजे से आरक्षण लें... "आम के आम, गुठलियों के दाम'.." wink emoticon wink emoticon 

Friday 27 February 2015

फर्जी राष्ट्रपिता, फर्जी चाचा,फर्जी मदर को कई पीढ़ियों से चलाया गया है...

देश के मीडिया, साहित्य और शिक्षा पर शुरू से ही वामपंथियो का कब्जा रहा है और अपनी विचारधारा व एजेंडे को देश में बनाए रखने के लिए ये वामपंथी लोग समय समय पर अपनी विचारधारा के व्यक्तियों को महापुरुष बनाकर जनता में प्लांट करते रहे हैं.......
यही वजह हैं कि गांधी को देश का "बापू", नेहरू को देश का "चाचा" और अब टेरेसा को "मदर" की उपाधि देकर देश के पूरे तंत्र पर स्थापित किया है और सालों तक इन फर्जी लोगों का ऐसा जबरदस्त प्रचार किया गया है कि ये सब लोग सामान्य जनता के अवचेतन मानस पटल पर "महान आत्मा" के रूप में स्थापित हो चुके हैं ...............और
नयी पीढ़ी के लिए स्थापित किए गए वामपंथी पिट्ठुओ में ताजा नाम अरविंद केजरीवाल, कैलाश सत्यार्थी जैसे लोगों का है .
अब ये गांधी क्यों देश का पिता है और ईसाई साध्वी टेरेसा क्यों माता है...हमे नहीं पता....
संविधान में कहाँ लिखा है... नहीं पता....
मगर हम अभिशप्त हैं कि इन्हें पिता व माता माने और कहें भी....
बड़े दुख की बात है फर्जी राष्ट्रपिता, फर्जी चाचा,फर्जी मदर को कई पीढ़ियों से चलाया गया है...
लेकिन बोस, भगत सिंह, राजीव दीक्षित, नानाजी देशमुख, बाबा आमटे जैसे सच्चे राष्ट्र भक्तों को किनारे कर दिया गया है...
ॐ का उच्चारण आपको दिला सकता है ये लाभ
उपनिषदों में कहा गया है कि सृष्टि के प्रारम्भ में जो सबसे पहला ध्वनि बनी वह ॐ थी. सनातन धर्म के समस्त मंत्रों का उच्चारण इस ध्वनि के साथ ही होता है. ॐ तीन अक्षरों ‘अ’,’ ऊ’ और ‘म’ से बना है. उपनिषदों के अनुसार सृष्टि के सृजन के समय सुनहरी गर्भाशय के फूटने से जो सबसे पहली ध्वनि स्फुटित हुई वह ॐ ही थी. छंदोग्य उपनिषद के अनुसार ॐ ब्रह्म रूपी शाश्वत चेतना है. विभिन्न वेदों में मौलिक अर्थ और भाव में अंतर किये बिना ॐ की अलग-अलग व्याख्या की गई है. पतंजलि के योग सूत्र में ॐ को उपासना से ईश्वर तक पहुँचने का रास्ता बताया गया है. विभिन्न पंथों में यह ओंकार, समा, नमोकार के नाम से प्रचलित है.
क्या हैं इसके उच्चारण के फायदे-
ॐ का उच्चारण शरीर में स्पंदन और ध्वनि पैदा करती है जिसे स्वर तंत्री और नाड़ी में महसूस किया जा सकता है. अगर पूरी तन्मयता से इसे उच्चारित किया जाय तो यह शरीर के छिद्रों को खोल देती है जिससे कष्ट बाहर निकल जाते हैं.
ॐ के उच्चारण से मनुष्य अपने मस्तिष्क को एकाग्र करने के साथ ही उसमें उठने वाले विरोधाभासों पर आसानी से काबू पा सकता है.
‘ओ’ का लंबा उच्चारण शरीर में पीड़ानाशक के उत्पादन का काम करता है और ‘म’ का लंबा उच्चारण कष्टों का निवारण करता है.
इस ध्वनि के उच्चारण से रक्तचाप नियंत्रित और सामान्य रहती है.
ॐ का उच्चारण सामंजस्य, समरसता और तारतम्यता स्थापित करने में सक्षम है.
ॐ सर्वश्रेष्ठ प्रतिध्वनि है जिसके उच्चारण से मन को वश में कर भौतिकता से बचा जा सकता है.
उम्र, नस्ल से कोसों दूर इस ध्वनि के सही उच्चारण से अपनी आत्मा के साथ सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है.
इस प्रकार ॐ ऐसी ध्वनि है जो बिना किसी नुकसान के आपके शरीर को सकारात्मक उर्जाओं से भरपूर रखती है

Thursday 26 February 2015

वीर सावरकर ने अपनी कहानी में अंडमान की यात्राओं पर प्रकाश डालते हुए कोल्हू में बैल की तरह जुत कर तेल पेरने का बड़ा ही सजीव वर्णन किया है | उन्होंने लिखा है -
हमें तेल का कोल्हू चलने का काम सोंपा गया जो बेल के ही योग्य माना जाता है | जेल में सबसे कठिन काम कोल्हू चलाना ही था | सवेरे उठते ही लंगोटी पहनकर कमरे में बंद होना तथा सांय तक कोल्हू का डंडा हाथ से घुमाते रहना | कोल्हू में नारियल की गरी पड़ते ही वः इतना भारी चलने लगता की हृदय पुष्ट शरीर के व्यक्ति भी उसकी बीस फेरियां करते रोने लग जाते | राजनीतिक कैदियों का स्वास्थ्य खराब हो या भला, ये सब सख्त काम उन्हें दिए ही जाते थे | चिकित्सा शास्त्र भी इस प्रकार साम्राज्यवादियों के हाथ की कठपुतली हो गया | सवेरे दस बजे तक लगातार चक्कर लगाने से श्वास भारी हो जाता और प्रायः सभी को चक्कर आ जाता या कोई बेहोश हो जाते | दोपहर का भोजन आते ही दरवाजा खुल पड़ता, बंदी थाली भर लेता और अंदर जाता की दरवाजा बंद |
"यदि इस बीच कोई अभागा केडी चेष्टा करता की हाथ पैर धोले या बदन पर थोड़ी धूप लगा ले तो नम्बरदार का पारा चढ़ जाता | वह मा बहन की गालियाँ देनी शुरू कर देता था | हाथ धोने का पानी नहीं मिलता था, पीने के पानी के लिए तो नम्बरदार के सैंकड़ों निहार करने पड़ते थे | कोल्हू को चलाते चलाते पसीने से तर हो जाते, प्यास लग जाती | पानी मांगते तो पानी वाला पानी नहीं देता था | यदि कहीं से उसे एकाध चुटकी तम्बाकू की दे दी तो अच्छी बात होती , नहीं तो उलटी शिकायत होती की ये पानी बेकार बहाते हैं जो जेल में एक बड़ा भारी जुर्म होता | यदि किसी ने जमादार से शिकायत की तो वः गुस्से में कह उठता - " दो कटोरी पानी देने का हुक्म है , तुम तो तीन पि गया | और पानी क्या तुम्हारे बाप के यहाँ से आएगा ? " नहाने की तो कल्पना करना ही अपराध था | हां , वर्षा हो तो भले नाहा लें | " केवल पानी ही नहीं अपितु " भोजन की भी वाही स्थिति थी | खाना देकर जमादार कोठरी बंद कर देता और कुछ देर में हल्ला करने लगता - " बैठो मत , शाम को तेल पूरा हो नही तो पीते जाओगे | और जो सजा मिलेगी सो अलग | " इसे वातावरण में बंदियों को खाना निगलना भी कठिन हो जाता | बहुत से ऐसा करते की मुंह में कौर रख लिया और कोल्हू चलाने लगे | कोल्हू पेरते पेरते , थालियों में पसीना टपकाते टपकाते , कौर को उठाकर मुंह में भरकर निगलते कोल्हू पेरते रहते | " १०० में से एकाध ऐसे थे जो दिन भर कोल्हू में जुतकर तीस पौंड तेल निकाल पाते | जो कोल्हू चलाते चलाते थककर हाय हाय कर दते उन पर जमादार और वार्डन की मार पड़ती | तेल पूरा न होने पर उपर से थप्पड़ पड़ रहे हैं , आँखों में आंसुओं की धारा बह रही है | "

Wednesday 25 February 2015

 
. आखिर मदर टेरेसा का मकसद क्या था – सेवा या धर्मांतरण.

मदर टेरेसा की ईसाई धर्म में आस्था बेहद गहरी थी. जीसस क्राइस्ट के लिए उनका समर्पण ही उन्हें ईसाई मिशनरी बनाकर भारत ले आया था. कोलकाता के कालीघाट इलाके से शुरु हुआ ये सेवा का सफर मदर टेरेसा के लिए लाया बेशुमार शोहरत. उनका गरीबों से ये प्रेम दुनिया के सामने तब आया जब 1969 में इंग्लैंड के खबरिया चैनल बीबीसी ने उनके इस काम को अपने कैमरे में कैद कर दुनिया के सामने पहुंचा दिया.

मदर टेरेसा को जो शोहरत मिली वो जल्द ही विवादों में भी आ गई. साल 1989 में बड़ा सवाल उठाया कोलकाता में उनके साथ 9 साल काम करने वाली सुजैन शील्ड ने सुजैन ने लिखा कि मदर को इस बात की बेहद चिंता थी कि हम खुद को गरीब बनाए रखें. पैसे खर्च करने से गरीबी खत्म हो सकती है. उनका मानना था इससे हमारी पवित्रता बनी रहेगी और पीड़ा झेलने से जीसस जल्दी मिलेगा. यहां तक कि वह जिनकी सेवा करती थीं उन्हें पुराने इंजेक्शन की सुई खराब हो जाने से दर्द होता था लेकिन वह नए इंजेक्शन भी नहीं खरीदने देती थीं.

मदर टेरेसा ऐसा क्यों चाहती थीं?  इसका जवाब 1989 में मदर टेरेसा ने खुद टाइम मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में दिया था.

सवाल – भगवान ने आपको सबसे बड़ा तोहफा क्या दिया है?
मदर टेरेसा – गरीब लोग
सवाल – (चौंकते हुए) वो तोहफा कैसे हो सकते हैं?
मदर टेरेसा –उनके सहारे 24 घंटे जीसस के पास रहा जा सकता है.

मदर टेरेसा ने इसी इंटरव्यू में धर्मांतरण पर भी अपना रुख साफ किया था

सवाल – भारत में आपकी सबसे बड़ी उम्मीद क्या है?
जवाब – सब तक जीसस को पहुंचाना.
सवाल – आपके दोस्तों का मानना है कि आपने भारत जैसे हिंदू देश में ज्यादा धर्मांतरण ना करके उन्हें निराश किया है?
जवाब – मिशनरी ऐसा नहीं सोचते. वे सिर्फ जीसस के शब्दों पर भरोसा करते हैं. संख्या का इसके कोई लेना देना नहीं है. लोग लगातार सेवा करने और खाना खिलाने आ रहे हैं. जाइए और देखिए. हमें कल का पता नहीं लेकिन क्राइस्ट के दरवाजे खुले हैं. हो सकता है ज्यादा बड़ा धर्मांतरण ना हुआ हो लेकिन हम अभी नहीं जान सकते कि आत्मा पर क्या असर हो रहा है.

सवाल – क्या उन लोगों को जीसस से प्यार करना चाहिए?
जवाब – सामान्य तौर पर अगर उन्हें शांति चाहिए, उन्हें खुशी चाहिए तो उन्हें जीसस को तलाशने दीजिए. अगर लोग हमारे प्यार से बेहतर हिंदू बनें, बेहतर मुसलमान बनें, बेहतर बौद्ध बनें तो इसका मतलब है उनमें कुछ और जन्म ले रहा है. वो ऊपरवाले के पास जा रहे हैं. जब वो उसके और करीब जाएंगे तो वो उसे चुन लेंगे.

क्या यही वजह है कि अब आरएसएस के समर्थक और बीजेपी दोनों मदर टेरेसा की सेवा को धर्मांतरण से जोड़ कर देख रहे हैं.

मीनाक्षी लेखी ने कहा कि मदर टेरेसा अपने बारे बेहतर जानती थीं, उनकी बायोग्राफी लिखने वाले नवीन चावला खुद स्वीकार कर रहे हैं कि मदर टेरेसा ने खुद कहा था कि मैं कोई सोशल वर्कर नहीं हूं. मेरा काम जीसस की बातों को लोगों तक पहुंचाना है.

मीनाक्षी जिस पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला का जिक्र कर रही हैं मदर टेरेसा के अच्छे दोस्त थे और उन्होंने मदर टेरेसा की जीवनी लिखी है. इसके मुताबिक उन्होंने नवीन चावला से पूछा था.

नवीन चावला - क्या आप धर्मांतरण करवाती हैं?
मदर टेरेसा – बिल्कुल. मैं धर्मांतरण करवाती हूं. मैं बेहतर हिंदू बनाती हूं या बेहतर मुसलमान या बेहतर इसाई. एक बार आपको आपका भगवान मिल गया तो आप तय कर सकते हैं किसे पूजना है.

ये वही बात थी जो वो टाइम मैगजीन से पहले भी कह चुकी थीं. 90 के दशक में भगवान में भरोसा ना रखने वाले क्रिस्टोफर हिचिन्स ने भी मदर टेरेसा पर गंभीर आरोप लगाते हुए एक डाक्यूमेंट्री बनाई जिसकी आज भी चर्चा होती है. इसी डाक्यूमेंट्री में एक सीनियर पत्रकार ने भी कहा कि उनका मकसद धर्म था ना कि सेवा.

भारत में भी मदर टेरेसा के मकसद को लेकर कई बार सवाल उठते रहे हैं.

हालांकि मदर टेरेसा के साथ काम करने वाली सुनीता कुमार उनके मकसद पर देश और दुनिया में बार बार उठने वाले सवालों को गलत ठहराती हैं. मदर टेरेसा ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को धर्म की आजादी का कानून बनाते वक्त भी एक खत लिख कर इसका विरोध किया था.

एम एस चितकारा की किताब के मुताबिक मदर टेरेसा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री को 1978 में एक खुला खत लिखा था और इसकी प्रतियां सांसदों में बांटी थीं. खत का रिश्ता धार्मिक स्वतंत्रता के कानून से था. मदर टेरेसा इसके विरोध में थीं क्योंकि इससे धर्मांतरण की प्रक्रिया खतरे में पड़ सकती थी.

मदर टेरेसा की जिंदगी पर उठे से सवाल पिछले 20 साल से बार बार सामने आते रहे हैं. इल्जाम ये भी लगा कि वो अपने मरीजों की देखभाल इसलिए नहीं करती थीं ताकि वो भगवान को याद करते रहें.

ये बेहद खूबसूरत है कि कोई भी बिना सेंट पीटर के स्पेशल टिकट के नहीं मर सकता. हम इसे सेंट पीटर का बपतिस्मा टिकट कहते हैं. हम लोगों से पूछते हैं क्या तुम्हें अपने पापों को माफ करने वाला आशीर्वाद और भगवान चाहिेए. उन्होंने कभी मना नहीं किया. कालीघाट में 29 हजार लोगों की मौत हुई है.
मदर टेरेसा
कैलिफोर्निया, 1992
भारतीय मुसलमान 'हिन्दू सनातनी सांस्कृतिक विरासत' पर गर्व करने की कला‪#‎इंडोनेशिया‬ के मुसलमानों से सीख सकते हैं :-
विश्व के सर्वाधिक ‪#‎मुस्लिम‬ आबादी वाला देश इंडोनेशिया का प्राचीन धार्मिक इतिहास‪#‎हिन्दू‬ रहा है, और इस सनातनी सांस्कृतिक विरासत पर इंडोनेशिया के मुसलमानो को आज भी गर्व है । जब इंडोनेशिया में ‪#‎इस्लाम‬ गया, तो वहाँ के लोगों ने हिन्दू संस्कृति को इस्लाम के साथ ऐसा अच्छे ढंग से मिला लिया कि आज वहाँ का 90 प्रतिशत आदमी मुसलमान होने के बाद भी ‪#‎रामायण‬ , ‪#‎महाभारत‬ को अपना सांस्कृतिक ग्रन्थ कहता है ।
आज इन्डोनेशिया का हर मुसलमान खुद को भगवान ‪#‎राम‬ और ‪#‎कृष्ण‬ का अपना वंशज मानकर चलता है । संस्कृत-निष्ठ नाम रखता है - सुकर्ण , सुहृद , रत्नावली आदि । मेघवती सुकर्णपुत्री वहाँ की उपराष्ट्रपति रह चुकी है । जब आप JAKARTA जायेंगे , तो एयरपोर्ट के ठीक बाहर ‪#‎भगवान‬ श्रीकृष्ण का ‪#‎गीता‬ उपदेश देने वाला पूरा रथ बना हुआ है , जिसे बड़े गौरव के साथ वहाँ देखा जाता है । वहाँ के विश्वविद्यालय के नाम है , अमितजय विश्वविद्यालय , त्रिपति विश्वविद्यालय ।उनका मत परिवर्तन तो हो गया लेकिन उन्होंने अपना सांस्कृतिक परिवर्तन न होने दिया ।
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लेकिन भारत में ‪#‎गांधी‬ और ‪#‎नेहरू‬ द्वारा शुरू की गई सांप्रदायिक तुष्टीकरण की नीतियों के कारण देश भी सांम्प्रदायिक आधार पर बट गया और मुस्लिमों मे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कभी जन्म न ले सका । पर ‪#‎Muslim‬ तुष्टीकरण मे व्यस्त राजनीतिक पार्टियों ने मुस्लिम समाज मे अपनी विरासत पे गर्व वाली अनुभूति को कभी पनपने ही नहीं दिया । अब खण्डित भारत के धर्मांतरित मुस्लिम समाज को ही भारत की अस्मिता , अपने मूल भारतीय पूर्वजों , भाषा , संस्कृति आदि के बारे में सोचना पडेगा ।
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जब इंडोनेशिया के मुस्लिम नागरिक अपनी सांस्कृति आस्था के अनुसार ‪#‎शिव‬ की पूजा कर सकते है , अपनी कब्रों पर रामायण की पंक्तियां खुदवा सकते है तथा तुर्की वाले अपने तुर्की भाषा ‪#‎अल्लाह‬ को 'तारी' के नाम से पुकार सकते है , तो तुम अल्लाह को ईश्वर के नाम से क्यों नहीं पुकार सकते ? तो भारतीय मुसलमान अरबी के स्थान पर ‪#‎संस्कृत‬ को क्यों नहीं अपना सकते ?
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भारत का मुसलमान तो यहीं का है , जब इन्डोनेशिया के लोग रामायण , महाभारत को मानते हैं , आप क्यों नहीं मान सकते ? जब वे राम , कृष्ण को अपना पूर्वज मानते है तो आप क्यों नहीं मान सकते ? तुम मानोगे, तो इस धरती से जुड़ जाओगे और जो आदमी धरती से जुड़ जायेगा , वह राष्ट्र का अपना बन जायेगा ।
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भारत का मुसलमान अगर यह सोचता है की वह केवल मुसलमान है , इस आधार पर वह किसी दूसरे मुस्लिम देश में स्थान नहीं पा सकता । हाँ आप हज करने ‪#‎अरब‬ जा सकते हैं, पर आप वहाँ बस नहीं सकते । अकेले सऊदी अरब से 22 हजार बंगलादेशी मुसलमानों को निकाल बाहर किया गया । आखिर मुसलमान थे न । मुसलमान भाई हैं , फिर क्यों निकाला ?
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केवल ‪#‎मजहब‬ जोड़ता नहीं है , धरती जोड़ती है । इसलिए हमारा कहना है कि भारत का मुसलमान जो इस धरती पर पैदा हुआ है , उसको अपना माने , उसको अपनी माँ कहे । उसको वन्दे मातरम् कहने में तकलीफ क्यों होती है ? गर्व से कहना चाहिए , हाँ , यह हमारी माता है , हम इसके पुत्र है । अपने सारे पूर्वजों को मान लो । यहाँ की संस्कृति कहती है , सत्य एक है इसी को विभिन्न नामों से पुकारते है , उस संस्कृति को स्वीकार कर लो , तो झगड़ा कुछ नहीं रहेगा , आप धरती से जुड़ जाओगे तो यह देश अपना हो जायेगा ।
1) इन्डोनेशिया सरकार ने अमेरिका को माँ सरस्वती की मूर्ति भेंट की :- लिंकhttps://www.facebook.com/hashtag/thehindu…
2)इन्डोनेशिया की करेंसी मे गणेश जी के चित्र :- http://bit.ly/1Auosvg
3) इंडोनेशिया एयरपोर्ट के बाहर भगवान श्री कृष्ण :- http://bit.ly/19PsuWo
4) इंडोनेशिया यूनिवर्सिटी मे गणेश जी प्रतीक के रूप मे :- http://www.itb.ac.id/
5) L.K. Adwani जी का ब्लॉग इन्डोनेशिया मे सनातनी विरासत :-http://bit.ly/1DIoP7L
फेसबुक पर इडोनेशिया के मुस्लिम जनता के नाम और सरनेम देख चकित रह जाएंगे । मित्रों इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिये और मुस्लिम समाज को भारतीय संस्कृत और परंपरा से जुडने के लिए उन्हे प्रेरित करें ।
बहुत दिलचस्प है हमारी भारतीय रेल
१- भारत में पहली रेल बॉम्बे (अब मुंबई) से ठाणे (थाने) के बीच 16 अप्रैल 1853 को चली थी। इस 14 बोगी की ट्रेन को 3 इंजन खींच रहे थे, जिनका नाम था- सुल्तान, सिंध और साहिब।
२-भारत में पहली रेल की पटरी दो भारतीयों ने ही बिछवाई थी। इनके नाम थे जगन्नाथ शंकरसेठ और जमशेदजी जीजीभाई। जीआईपी (ग्रेट इंडियन पेनिन्सुला) रेलवेज के डायरेक्टर के तौर पर जगन्नाथ सेठ ने बॉम्बे से ठाणे के बीच चली ट्रेन से 45 मिनट का सफर भी तय किया था।
३-आपको जानकर हैरानी होगी कि करीब 50 साल तक भारतीय ट्रेनों में टॉइलट नहीं होता था। वह तो भला हो ओखिल चंद्र सेन नामक एक यात्री का, जिन्होंने 1909 में पैसेंजर ट्रेन से यात्रा के अपने बुरे अनुभव के बारे में साहिबगंज रेल डिविजन के ऑफिस को एक खत लिखकर लेकर बताया। इस करारे पत्र के बाद ब्रिटिश हुकूमत को यह खयाल आया कि ट्रेनों में टॉइलट की बहुत आवश्यकता है। यह पत्र आज भी भारतीय रेल संग्रहालय में मौजूद है।
४-भारतीय रेलवे ने कम्प्यूटराइज्ड रिजर्वेशन की सेवा की शुरुआत नई दिल्ली में 1986 को की थी।
५-भारतीय रेल का मैस्कॉट भोलू नाम का हाथी है। और यह क्यूट-सा हाथी भारतीय रेल में बतौर गॉर्ड तैनात है। यह सच है,
६-भारतीय रेल दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क (अमेरिका, चीन और रूस के बाद) है। भारतीय रेल ट्रैक की कुल लंबाई 65,000 किलोमीटर है। वहीं अगर यार्ड, साइडिंग्स वगैरह सब जोड़ दिए जाएं तो यही लंबाई लगभग 115,000 किलोमीटर हो जाती है।
७-भारतीय रेलें दिन भर में जितनी दूरी तय करती हैं, वह धरती से चांद के बीच की दूरी का लगभग साढ़े तीन गुना है।
८-भारतीय रेलवे में लगभग 16 लाख लोग काम करते हैं। यह दुनिया का 9वां सबसे बड़ा एंप्लॉयर है। यह आंकड़ा कई देशों की आबादी से भी ज्यादा है।
९-भारतीय रेल से रोज करीब 2.5 करोड़ लोग यात्रा करते हैं। यह संख्या ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या के लगभग बराबर है।
१०-मेतुपलयम ऊटी नीलगिरी पैसेंजर ट्रेन भारत में चलने वाली सबसे धीमी ट्रेन है। यह लगभग 16 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। कहीं-कहीं पर तो इसकी स्पीड 10 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो जाती है। आप चाहें तो आराम से इसकी खिड़की से कूदकर कुछ देर इधर-उधर टहलकर, वापस इसमें आकर बैठ सकते हैं।
११-हावड़ा-अमृतसर एक्सप्रेस सबसे ज्यादा जगहों पर रुकने वाली एक्सप्रेस ट्रेन है। इसके 115 स्टॉपेज हैं। क्यों, आ गया न चक्कर!
१२-देश की सबसे लेट लतीफ ट्रेन गुवाहाटी-त्रिवेंद्रम एक्सप्रेस है। यह ट्रेन औसतन 10-12 घंटे लेट होती है।
१३- नई दिल्ली के मेन स्टेशन के नाम दुनिया के सबसे बड़े रूट रिले इंटरलॉकिंग सिस्टम का रेकॉर्ड है। यह उपलब्धि गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स में भी दर्ज है।
१४-दुनिया का सबसे लंबा प्लैटफॉर्म उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में है। इसकी कुल लंबाई 1366.33 मीटर है।
१५-उत्तर प्रदेश में लखनऊ का चारबाग स्टेशन देश के व्यस्तम स्टेशनों में से एक है। साथ ही यह स्टेशन अपनी खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है।
१६-भारत में सबसे लंबे नाम वाले रेलवे स्टेशन का नाम वेंकटनरसिंहराजुवारिपटा (Venkatanarasimharajuvaripeta) है। वहीं इब (Ib) सबसे छोटे नाम वाला रेलवे स्टेशन है।
१७ - भारतीय रेल पूरी तरह से सरकार के अधीन है, और यह दुनिया की सबसे सस्ती रेल सेवाओं में से एक है।
१८-भारत में छोटे-बड़े कुल मिलाकर 7,500 रेलवे स्टेशन हैं।
१९-दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल चिनाब नदी पर बन रहा है। बनने के बाद यह ऊंचाई के मामले में पेरिस के एफिल टावर को भी पीछे छोड़ देगा।
२०-2014 में पहली बार भारतीय रेलवे ने एक मोबाइल ऐप्लिकेशन लॉन्च किया, जिसके जरिए आप ट्रेनों की जानकारी हासिल कर सकते हैं।
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Tuesday 24 February 2015

मुजफ्फरनगर के अमित सिंघल किसी भी आम भारतीय युवक की तरह हैं, पर उनके शरीर पर एक ऐसा निशान है जिसके कारण उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो गया है. दरअसल उनके सीने पर भारत का नक्शा बना हुआ है. पहली नजर में यह कोई टैटू या चित्रकारी नजर आता है पर यह निशान जन्मजात है.

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जनपद मुजफ्फरनगर के नई मंडी थाना क्षेत्र के 25 वर्षीय अमित सिंघल अपने पिता के कारोबार में हाथ बंटाते हैं. जन्म के समय से ही अमित के सीने पर एक आकृति बनी हुई थी. धीरे-धीरे अमित बड़ा होने लगा और इसके साथ आकृति भी अपना आकर लेने लगी. कुछ वर्ष बाद जब परिजनों ने अमित के सीने पर बनी आकृति को ध्यान से देखा तो उनके आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वह कोई साधारण निशान नहीं बल्कि आजाद भारत का मानचित्र था.


अमित के शरीर पर भारत के अलावा पाकिस्तान एवं श्रीलंका का भी मानचित्र प्राकृतिक तरीके से बना हुआ है. अमित के परिवार के लोग इस मानचित्र को देश के प्रति उसका प्रेमभाव मान कर चल रहे हैं. अमित के सीने पर बने इस अनोखे निशान के कारण उसका नाम हाल ही में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है.

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लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने के लिए अमित को मेडिकल जांच से भी गुजरना पड़ा और मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक यह निशान जन्मजात है.

अमित का कहना है की मुझे बहुत गर्व होता है कि मेरे सीने पर भारत का मानचित्र बना हुआ है. अमित की बहन अंजलि कहती हैं, मैं अपने भाई के शरीर पर बने इस निशान को बचपन से देखती आ रही हूं. मुझे बहुत अच्छा लगता है कि अमित के सीने पर भारत का मानचित्र बना हुआ है.

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मुजफ्फरनगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ वीके जौहरी ने इसे चर्म रोग बताया.  जौहरी ने बताया, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो शरीर पर नक्शा बनना नामुमकिन है. नक्शा या निशान चर्म रोग या फिर शरीर का रंग गाढ़ा या फीका होने पर भी उभर सकता है.Next



"सिस्टर" टेरीसा को "मदर" टेरीसा तो सेक्युलर हिन्दुओ ने ही बना दिया, अन्यथा "माँ" शब्द की कोई परिभाषा ही नहीं है ईसाईयत में?
"माँ" तो भारतीय सभ्यता से जुड़ा शब्द है,
मैं तो पिछले 14 साल से कह रहा हूँ के सिस्टर टेरीसा ने भारत में सेवा की आड़ में सिर्फ धर्मान्तरण किया है।
ये हैं पचहत्तर वर्षीय ओंकार नाथ शर्मा ! दिल्ली में रहते हैं ! लोग इन्हें "मेडिसिन बाबा" के नाम से जानते है! ये केसरिया रंग का कुर्ता पहनते हैं जिस पर इनका फ़ोन नंबर और ईमेल छपा रहता है ! ये प्रतिदिन प्रातः छह बजे से उठकर शहर में घूम घूम कर लोगों के घरों से बची हुयी दवाईयां एकत्र करते हैं और अस्पतालों तथा ज़रूरतमंदों तक पहुंचाते हैं ! आर्थिक तंगी के चलते पैदल और बसों से सफर करके दवाईयां एकत्र करते हैं! स्वयं एक्सीडेंट के कारण लंगड़ा कर तकलीफ से चलते हैं फिर भी वर्षों से प्रतिदिन साथ आठ घंटे शहर में घूम घूमकर ये परोपकार में संलग्न रहकर , लाखों की जान बचा चुके हैं ! धन्य है भारत भूमि जहाँ ऐसे सपूत पैदा होते हैं ! नमन है !
***वैज्ञानिको की हत्याएं***
कृप्या पूरा पढ़े, सही लगे तो शेयर करे।
मोनू स्वदेशी
जिस देश में 2 जवानों की मृत्यु की कीमत लगभग 2 हजार लोगो के जीवन को खतरा है।
सोचिये उस देश के 1 परमाणु वैज्ञानिक की हत्या की क्या कीमत चुकानी होगी उस देश को।
लेकिन हम चूका रहे है। हममे से कई लोग इन सब बातों से अनजान है।
हमे ये पता है:-------------
~आज सलमान ने क्या किया ?
~मोदीजी ने क्या पहना ?
~केजरीवाल कितनी बार खांसा दिन में ???
~इस हफ्ते कोनसी फ़िल्म लगने वाली है?
लेकिन क्या ये पता है ??
2009 से 2013 के बीच इस देश के 10 परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी गई ??
ये सभी लोग इस देश के कई प्रोजेक्टो से जुड़े हुए थे ???
नही पता न ? क्योकि
~हम व्यस्त है वर्ल्ड कप में ,
~हम व्यस्त है दिल्ली के ड्रामे में
~हम व्यस्त है बिहार के सियासी माहौल में,
~हम व्यस्त है पाक की हार का जश्न मनाने में .
~हम व्यस्त है Team India की जीत में,
1995 से लेकर 2010 तक इस देश के 32 केन्द्रों के 197 परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय मृत्यु हुई है। हमे पता ही नही।
1~दो जवानो की मृत्यु पर हम देश को सर पे उठा लेते है फिर इन मामलो में क्यों नही ?????????????
2~वार्क के वैज्ञानिक एम पद्भ्नाभन (48) की लाश उनके ही फ्लेट में मिलती है।।
3~कैगा परमाणु संयंत्र से जुड़े सीनियर इंजी. एल.एन. महालिंगमकी लाश काली नदी में तैरती पाई जाती है। वह हफ्ते भर तक लापता होते है।।
4~2013 में विशाखापत्तनम में एक रेलवे ट्रेक किनारे इस देश के दो वैज्ञानिको की लाश मिलती है वे थे - k k जोश और अभिश शिवम्। यह दोनों वैज्ञानिक देश की पहली स्वदेशी पनडुब्बी अरिहंत के निर्माण से जुड़े थे।।
~~~क्या हमे पता चला इन सबकी हत्या कैसे हुई ?? इन सबकी हत्याओं और कथित आत्महत्याओं के पीछे कौन है ?
2 दशको में देश के 200 परमाणु कर्मियों का रहस्यमयी मौत पर भी हम मौन है क्योकि हमे इन सब घटनाओं की खबर तक नही मिलने दी गई क्यों ? ? ?~~~
इन सब में जो तरीके अपनाए गये वे सिर्फ दुनिया की चुनिन्दा खुफिया सर्विस अपनाती है -
जिनमे CIA, KGB, MI 6, मोज़द और ISI जैसी एजेंसियां शामिल होती है।
इस देश के परमाणु कार्यक्रम के जनक डा. होमी भाभा की भी रहस्यमयी हत्या तब संभावित CIA द्वारा कराई गयी थी।।
हम न जाने कहाँ खोये है और देश पर इतना बड़ा संकट मंडरा रहा है।
~~~~~~~~अन्यथा फिर गाइयेगा~~~~~~~~
बोलते समय इन सोलहबातों का खास ध्यान
रखना चाहिए...
1. बहुत ज्यादा नहीं बोलना चाहिए।
2. बिल्कुल चुप भी नहीं रहना चाहिए।
3. समय-समय पर बोलना चाहिए।
4. दो लोग यदि बात कररहे हैं तो उनके बीच में
बिना पूछेनहीं बोलना चाहिए।
5. बिना सोचे-विचारे कोई बात
नहीं करना चाहिए।
6. बोलने में शीघ्रता नहीं करनी चाहिए।
7. ऊट-पटांग बात नहीं करना चाहिए।
8. उलाहना भरी और मतभेदी बात
नहीं करना चाहिए।
9. हमेशा धर्म युक्त और यथार्थ बात
करनी चाहिए।
10. दूसरे लोगों को जो बातें बुरी लगती हैं वे बात
कभी नहीं बोलना चाहिए।
11.
किसी को भी ताना नहीं मारना चाहिए,ना ही व्यंग्य
करना चाहिए।
12. अनावश्यक हंसी और
दिल्लगी नहीं करना चाहिए।
13. दूसरों की बुराई नहीं करना चाहिए।
14. सच, कोमल, मधुर वाणी रखना चाहिए।
15. अपने मुख से ही स्वयं
की प्रशंसा नहीं करना चाहिए।
16. बात करते समय किसी भी प्रकार की जिद
नहीं करना चाहिए।

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इतिह!स गवाह है , जब जब किसी ने भरतपुर की तरफ आँख उठाई वो यमराज के पास गया , यहाँ महाराज सूरजमल जेसे वीर पैदा हुए है जिनसे पुरे asia के राजा मदद मांगने आते थे , इनही के बेटे Jawahar Singh ने delhi मै मुगलों को बड़ी बेहरेह्मी से पिटा था ,और मुगलों का सुरक्षा कवच कहे जाने वाला दुवार (gate) याद गार के लिए उख!ड लाये थे जो आज भी भरतपुर मै लगा हुआ है ,अफ़सोस की बात है हमारी किताबो मै इसका जिकर तक भी नही किया जाता
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एन. शिवकुमार को बचपन से ही गरीबी का सामना पढ़ा।
खेलने की उम्र में कंधे पर घर की ज़िम्मेदारियाँ आ गयी,जिस वजह से उन्हें अखबार बेचने का काम और पढ़ाई साथ में करनी पड़ी।
शिवकुमार शुरू से ही एक होनहार छात्र थे,अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने CAT की परीक्षा पास की और IIM कोलकाता में दाखिला लिया।
आज वो जर्मन रॉकेट कंपनी में कंट्री डिप्टी मैनेजर हैं और करोड़ों के पैकेज पे काम कर रहे हैं ।
शिव हर युवा के लिए प्रेरणा हैं ।

Monday 23 February 2015

मदर टेरेसा : एक गढ़ी गई संत और संदिग्ध मानवता सेविका ?

महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर


एग्नेस गोंक्झा बोज़ाझियू अर्थात मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”। 24 मई 1931 को वे कलकत्ता आईं और फ़िर यहीं की होकर रह गईं। उनके बारे में इस प्रकार की सारी बातें लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे तथ्य, आँकड़े और लेख हैं जिनसे इस शख्सियत पर सन्देह के बादल गहरे होते जाते हैं। उन पर हमेशा वेटिकन की मदद और मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की मदद से “धर्म परिवर्तन” का आरोप तो लगता ही रहा है, लेकिन बात कुछ और भी है, जो उन्हें “दया की मूर्ति”, “मानवता की सेविका”, “बेसहारा और गरीबों की मसीहा”... आदि वाली “लार्जर दैन लाईफ़” छवि पर ग्रहण लगाती हैं, और मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकतर आरोप (या कहें कि खुलासे) पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों आदि ने ही किये हैं, ना कि किसी हिन्दू संगठन ने, जिससे संदेह और भी गहरा हो जाता है (क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “रिवाज” है)।बहरहाल, आईये देखें कि क्यों इस प्रकार के “संत” या “चमत्कार” आदि की बातें बेमानी होती हैं (अब ये पढ़ते वक्त यदि आपको हिन्दुओं के बड़े-बड़े और नामी-गिरामी बाबाओं, संतों और प्रवचनकारों की याद आ जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी) –

यह बात तो सभी जानते हैं कि धर्म कोई सा भी हो, धार्मिक गुरु/गुरुआनियाँ/बाबा/सन्त आदि कोई भी हो बगैर “चन्दे” के वे अपना कामकाज(?) नहीं फ़ैला सकते हैं। उनकी मिशनरियाँ, उनके आश्रम, बड़े-बड़े पांडाल, भव्य मन्दिर, मस्जिद और चर्च आदि इसी विशालकाय चन्दे की रकम से बनते हैं। जाहिर है कि जहाँ से अकूत पैसा आता है वह कोई पवित्र या धर्मात्मा व्यक्ति नहीं होता, ठीक इसी प्रकार जिस जगह ये अकूत पैसा जाता है, वहाँ भी ऐसे ही लोग बसते हैं। आम आदमी को बरगलाने के लिये पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई, धर्म आदि की घुट्टी लगातार पिलाई जाती है, क्योंकि जिस अंतरात्मा के बल पर व्यक्ति का सारा व्यवहार चलता है, उसे दरकिनार कर दिया जाता है। पैसा (यानी चन्दा) कहीं से भी आये, किसी भी प्रकार के व्यक्ति से आये, उसका काम-धंधा कुछ भी हो, इससे लेने वाले “महान”(?) लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं होती कि उनके तथाकथित प्रवचन सुनकर क्या आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी या अनैतिक व्यक्ति ने अपना गुनाह कबूल किया है? क्या किसी पापी ने आज तक यह कहा है कि “मेरी यह कमाई मेरे तमाम काले कारनामों की है, और मैं यह सारा पैसा त्यागकर आज से सन्यास लेता हूँ और मुझे मेरे पापों की सजा के तौर पर कड़े परिश्रम वाली जेल में रख दिया जाये..”। वह कभी ऐसा कहेगा भी नहीं, क्योंकि इन्हीं संतों और महात्माओं ने उसे कह रखा है कि जब तुम अपनी कमाई का कुछ प्रतिशत “नेक” कामों के लिये दान कर दोगे तो तुम्हारे पापों का खाता हल्का हो जायेगा। यानी, बेटा..तू आराम से कालाबाजारी कर, चैन से गरीबों का शोषण कर, जम कर भ्रष्टाचार कर, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा हमारे आश्रम को दान कर... है ना मजेदार धर्म...

बहरहाल बात हो रही थी मदर टेरेसा की, मदर टेरेसा की मृत्यु के समय सुसान शील्ड्स को न्यूयॉर्क बैंक में पचास मिलियन डालर की रकम जमा मिली, सुसान शील्ड्स वही हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के साथ सहायक के रूप में नौ साल तक काम किया, सुसान ही चैरिटी में आये हुए दान और चेकों का हिसाब-किताब रखती थीं। जो लाखों रुपया गरीबों और दीन-हीनों की सेवा में लगाया जाना था, वह न्यूयॉर्क के बैंक में यूँ ही फ़ालतू पड़ा था? मदर टेरेसा को समूचे विश्व से, कई ज्ञात और अज्ञात स्रोतों से बड़ी-बड़ी धनराशियाँ दान के तौर पर मिलती थीं।

अमेरिका के एक बड़े प्रकाशक रॉबर्ट मैक्सवैल, जिन्होंने कर्मचारियों की भविष्यनिधि फ़ण्ड्स में 450 मिलियन पाउंड का घोटाला किया, ने मदर टेरेसा को 1.25 मिलियन डालर का चन्दा दिया। मदर टेरेसा मैक्सवैल के भूतकाल को जानती थीं। हैती के तानाशाह जीन क्लाऊड डुवालिये ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने बुलाया। मदर टेरेसा कोलकाता से हैती सम्मान लेने गईं, और जिस व्यक्ति ने हैती का भविष्य बिगाड़ कर रख दिया, गरीबों पर जमकर अत्याचार किये और देश को लूटा, टेरेसा ने उसकी “गरीबों को प्यार करने वाला” कहकर तारीफ़ों के पुल बाँधे।

मदर टेरेसा को चार्ल्स कीटिंग से 1.25 मिलियन डालर का चन्दा मिला, ये कीटिंग महाशय वही हैं जिन्होंने “कीटिंग सेविंग्स एन्ड लोन्स” नामक कम्पनी 1980 में बनाई थी और आम जनता और मध्यमवर्ग को लाखों डालर का चूना लगाने के बाद उसे जेल हुई थी। अदालत में सुनवाई के दौरान मदर टेरेसा ने जज सेकीटिंग को “माफ़”(?) करने की अपील की थी, उस वक्त जज ने उनसे कहा कि जो पैसा कीटिंग ने गबन किया है क्या वे उसे जनता को लौटा सकती हैं? ताकि निम्न-मध्यमवर्ग के हजारों लोगों को कुछ राहत मिल सके, लेकिन तब वे चुप्पी साध गईं।

ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका Lancet के सम्पादक डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स ने 1991 में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था। उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण “अनल्जेसिक दवाईयाँ” तक वहाँ उपलब्ध नहीं थीं और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था। जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे...”(?)

बांग्लादेश युद्ध के दौरान लगभग साढ़े चार लाख महिलायें बेघरबार हुईं और भागकर कोलकाता आईं, उनमें से अधिकतर के साथ बलात्कार हुआ था। मदर टेरेसा ने उन महिलाओं के गर्भपात का विरोध किया था, और कहा था कि “गर्भपात कैथोलिक परम्पराओं के खिलाफ़ है और इन औरतों की प्रेग्नेन्सी एक “पवित्र आशीर्वाद” है...”। उन्होंने हमेशा गर्भपात और गर्भनिरोधकों का विरोध किया। जब उनसे सवाल किया जाता था कि “क्या ज्यादा बच्चे पैदा होना और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है?” तब उनका उत्तर हमेशा गोलमोल ही होता था कि “ईश्वर सभी के लिये कुछ न कुछ देता है, जब वह पशु-पक्षियों को भोजन उपलब्ध करवाता है तो आने वाले बच्चे का खयाल भी वह रखेगा इसलिये गर्भपात और गर्भनिरोधक एक अपराध है” (क्या अजीब थ्योरी है...बच्चे पैदा करते जाओं उन्हें “ईश्वर” पाल लेगा... शायद इसी थ्योरी का पालन करते हुए ज्यादा बच्चों का बाप कहता है कि “ये तो भगवान की देन हैं..”, लेकिन वह मूर्ख नहीं जानता कि यह “भगवान की देन” धरती पर बोझ है और सिकुड़ते संसाधनों में हक मारने वाला एक और मुँह...) यहाँ देखें

मदर टेरेसा ने इन्दिरा गाँधी की आपातकाल लगाने के लिये तारीफ़ की थी और कहा कि “आपातकाल लगाने से लोग खुश हो गये हैं और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है”। गाँधी परिवार ने उन्हें “भारत रत्न” का सम्मान देकर उनका “ऋण” उतारा। भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है, जिसमें सरकारी तौर पर 4000 से अधिक लोग मारे गये और लाखों लोग अन्य बीमारियों से प्रभावित हुए। उस वक्त मदर टेरेसा ताबड़तोड़ कलकत्ता से भोपाल आईं, किसलिये? क्या प्रभावितों की मदद करने? जी नहीं, बल्कि यह अनुरोध करने कि यूनियन कार्बाईड के मैनेजमेंट को माफ़ कर दिया जाना चाहिये। और अन्ततः वही हुआ भी, वारेन एंडरसन ने अपनी बाकी की जिन्दगी अमेरिका में आराम से बिताई, भारत सरकार हमेशा की तरह किसी को सजा दिलवा पाना तो दूर, ठीक से मुकदमा तक नहीं कायम कर पाई। प्रश्न उठता है कि आखिर मदर टेरेसा थीं क्या?

एक और जर्मन पत्रकार वाल्टर व्युलेन्वेबर ने अपनी पत्रिका “स्टर्न” में लिखा है कि अकेले जर्मनी से लगभग तीन मिलियन डालर का चन्दा मदर की मिशनरी को जाता है, और जिस देश में टैक्स चोरी के आरोप में स्टेफ़ी ग्राफ़ के पिता तक को जेल हो जाती है, वहाँ से आये हुए पैसे का आज तक कोई ऑडिट नहीं हुआ कि पैसा कहाँ से आता है, कहाँ जाता है, कैसे खर्च किया जाता है... आदि।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रकार क्रिस्टोफ़र हिचेन्स ने 1994 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें मदर टेरेसा के सभी क्रियाकलापों पर विस्तार से रोशनी डाली गई थी, बाद में यह फ़िल्म ब्रिटेन के चैनल-फ़ोर पर प्रदर्शित हुई और इसने काफ़ी लोकप्रियता अर्जित की। बाद में अपने कोलकाता प्रवास के अनुभव पर उन्होंने एक किताब भी लिखी “हैल्स एन्जेल” (नर्क की परी)। इसमें उन्होंने कहा है कि “कैथोलिक समुदाय विश्व का सबसे ताकतवर समुदाय है, जिन्हें पोप नियंत्रित करते हैं, चैरिटी चलाना, मिशनरियाँ चलाना, धर्म परिवर्तन आदि इनके मुख्य काम हैं...” जाहिर है कि मदर टेरेसा को टेम्पलटन सम्मान, नोबल सम्मान, मानद अमेरिकी नागरिकता जैसे कई सम्मान मिले। (हिचेन्स का लेख) और हिचेन्स का इंटरव्यू




संतत्व गढ़ना – 
मदर टेरेसा जब कभी बीमार हुईं, उन्हें बेहतरीन से बेहतरीन कार्पोरेट अस्पताल में भरती किया गया, उन्हें हमेशा महंगा से महंगा इलाज उपलब्ध करवाया गया, हालांकि ये अच्छी बात है, इसका स्वागत किया जाना चाहिये, लेकिन साथ ही यह नहीं भूलना चाहिये कि यही उपचार यदि वे अनाथ और गरीब बच्चों (जिनके नाम पर उन्हें लाखों डालर का चन्दा मिलता रहा) को भी दिलवातीं तो कोई बात होती, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ...एक बार कैंसर से कराहते एक मरीज से उन्होंने कहा कि “तुम्हारा दर्द ठीक वैसा ही है जैसा ईसा मसीह को सूली पर हुआ था, शायद महान मसीह तुम्हें चूम रहे हैं”,,, तब मरीज ने कहा कि “प्रार्थना कीजिये कि जल्दी से ईसा मुझे चूमना बन्द करें...”। टेरेसा की मृत्यु के पश्चात पोप जॉन पॉल को उन्हें “सन्त” घोषित करने की बेहद जल्दबाजी हो गई थी, संत घोषित करने के लिये जो पाँच वर्ष का समय (चमत्कार और पवित्र असर के लिये) दरकार होता है, पोप ने उसमें भी ढील दे दी, ऐसा क्यों हुआ पता नहीं।

मोनिका बेसरा की कहानी – 
पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा है, उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। मोनिका के पति मि. सीको ने इस बात को स्वीकार किया था। वे बेहद गरीब हैं और उनके पाँच बच्चे थे, कैथोलिक ननों ने उनसे सम्पर्क किया, बच्चों की उत्तम शिक्षा-दीक्षा का आश्वासन दिया, उस परिवार को थोड़ी सी जमीन भी दी और ताबड़तोड़ मोनिका का “ब्रेनवॉश” किया गया, जिससे मदर टेरेसा के “चमत्कार” की कहानी दुनिया को बताई जा सके और उन्हें संत घोषित करने में आसानी हो। अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया। जब एक चैरिटी संस्था ने उस अस्पताल का दौरा कर हकीकत जानना चाही, तो पाया गया कि मोनिका बेसरा से सम्बन्धित सारा रिकॉर्ड गायब हो चुका है (“टाईम” पत्रिका ने इस बात का उल्लेख किया है)।

“संत” घोषित करने की प्रक्रिया में पहली पायदान होती है जो कहलाती है “बीथिफ़िकेशन”, जो कि 19 अक्टूबर 2003 को हो चुका। “संत” घोषित करने की यह परम्परा कैथोलिकों में बहुत पुरानी है, लेकिन आखिर इसी के द्वारा तो वे लोगों का धर्म में विश्वास(?) बरकरार रखते हैं और सबसे बड़ी बात है कि वेटिकन को इतने बड़े खटराग के लिये सतत “धन” की उगाही भी तो जारी रखना होता है....

(मदर टेरेसा की जो “छवि” है, उसे धूमिल करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, इसीलिये इसमें सन्दर्भ सिर्फ़ वही लिये गये हैं जो पश्चिमी लेखकों ने लिखे हैं, क्योंकि भारतीय लेखकों की आलोचना का उल्लेख करने भर से “सांप्रदायिक” घोषित किये जाने का “फ़ैशन” है... इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं है, जो कुछ पहले बोला, लिखा जा चुका है उसे ही संकलित किया गया है, मदर टेरेसा द्वारा किया गया सेवाकार्य अपनी जगह है, लेकिन सच यही है कि कोई भी धर्म हो इस प्रकार की “हरकतें” होती रही हैं, होती रहेंगी, जब तक कि आम जनता अपने कर्मों पर विश्वास करने की बजाय बाबाओं, संतों, माताओं, देवियों आदि के चक्करों में पड़ी रहेगी, इसीलिये यह दूसरा पक्ष प्रस्तुत किया गया है)

सन्दर्भ – महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति साहित्य (डॉ. इन्नैय्या नरिसेत्ति)

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एक पत्रकार ने जब मदर टेरेसा से उनके धर्मांतरण पर सवाल पूछा था तो उन्होंने जबाब दिया दिया "लोगों का धर्म-परिवर्तन करना, ईसाई मिशनरियोंकी कार्यप्रणाली का प्राण है । वह न हो तो मिशनरी मृतवत् हो जाएंगे"
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(साभार नव भारत टाईम्स ) 
"मदर टेरेसा कुछ भी रही हों लेकर वह एक संत नहीं थीं।" 
यह दावा मदर टेरेसा पर रिसर्च करने वाले कनाडा के रिसर्चर्स ने किया है। उन्होंने मदर टेरेसा के दीन-दुखियों के मदद के तरीके को संदेहास्पद करार देते हुए कहा कि उन्हें प्रभावशाली मीडिया कैंपेन के जरिए महिमामंडित किया गया। यहीं नहीं, उन्होंने मदर टेरेसा को धन्य घोषित किए जाने पर वेटिकन पर भी सवाल उठाए हैं। रिसर्चर्स ने मदर टेरेसा के फाउंडेशन के पैसे के लेने-देन को भी संदेहास्पद करार दिया है। 
यह विवादास्पद स्टडी धर्म और विज्ञान पर आधारित मैगजीन 'रिलीजस' में इस महीने छपने वाली है। स्टडी में कहा गया है कि वेटिकन ने मदर टेरेसा के अहम मानवीय पक्ष को नजरंदाज किया। बीमार लोगों को मिलने वाली राहत के बजाय उनकी पीड़ा को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता था। रिसर्चर्स का कहना है कि बीमार को ठीक करने का चमत्कार मदर टेरेसा नहीं बल्कि दवाई ने किया। रिसर्चरों का कहना है कि मदर टरेसा को महिमामंडित वेटिकन ने खाली होते चर्चों को देखते हुए किया। जिससे लोगों को धर्म की ओर लौटाया जा सके। 
यह रिसर्च यूनिवर्सिटी ऑफ मॉंन्ट्रियल्स के सर्गे लेरिवी और जेनविएव और यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा के करोल ने की है। उन्होंने अपनी स्टडी में मदर टेरेसा के बारे में छपे लेखों का अध्ययन किया। स्टडी में दावा किया कि मदर टेरेसा की इमेज दरअसल खोखली थी। यह तथ्यों के आधार पर नहीं थी। इसलिए वामपंथी लाबी और मीडिया कैंपेन के जरिए उनको महिमामंडित किया गया
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चित्र में मदर टेरेसा के साथ जो पादरी दिख रहा है वो शिकागो का कार्डिनल फादर मैक ग्युरी है ...

अब आप सोच रहे होंगे इसमें ख़ास क्या है ...

ये फादर मैक ग्युरी अपने कान्वेंट की चालीस ननो के साथ सेक्स किया था और बीस को गर्भवती किया था .. कुल साथ गर्भपात करवाया था ... इसे शिकागो की अदालत से दोषी पाया और इसे दस साल की सजा सुनाई ...
लेकिन ...धूर्त लोमड़ी मदर टेरेसा ने इस कामुक बलात्कारी फादर को बचाने के लिए अमेरिका में अभियान चलाया था ... उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति को पत्र लिखकर उनकी सजा को माफ़ करने की अपील की थी ...

इस खबर पर विस्तृत लिंक कमेन्ट बाक्स में है ..
Jitendra Pratap Singhhttp://www.sfweekly.com/.../tainted-saint.../Content...



Sunday 22 February 2015

नालन्दा विश्वविद्यालय और अमर्त्य सेन :- 2700 करोड़ स्वाहा !!
अमर्त्य सेन जैसे महामानव ने वो कर दिखाया दिखाया जो किसी भी आम इंसान के बस की बात नहीं। 2010 में शुरू हुआ नालंदा विश्वविद्याल जिसमे सितम्बर 2014 में 11 faculty और 15
विद्यार्थियों ही आये और काम शुरू किया गया - अगुवा हैं
इसके अमर्त्य सेन। इन पन्द्रह विद्यार्थियों में से 5 तो भाग गए
और बचे हुवे 9 को 11 faculty मैम्बर ने कटहल के पेंड़ पे कद्दू उगाने जैसे या फिर Vikas Agrawal भाई के अनुसार शायद कटहल के पेंड़ पे ब्रेन मैपिंग सिखाया। इस महान कृत्य से अमर्त्य सेन ने 2700 करोड़ रुपये जैसे छोटी रकम का किया स्वाहा, (कोई बिल्डिंग के बारे में मत पूछना - उसका डिज़ाइन बनानें का कम्पटीशन वाला प्रोग्राम अभी चल रहा है) ....
ख़बरदार अगर किसी ने पूछा कोई प्रश्न क्योंकि अमर्त्य सेन महामानव हैं, वामपंथियों के चहेते हैं, सेक्युलरैती की पराकाष्ठा हैं। अमर्त्य सेन
समाचार की दुनिया के दलालों के लिए अज़र अमर हैं ....
2700 करोड़ उनके सामने कुछ
भी नहीं .... समाचार बनाने के दलालों जैसे कि रवीशों, पुण्य प्रसूनों, अभिसारों, विद्रोहियों, अंजनाओं, अभिज्ञानों को प्रधान
मंत्री के सूट पे पूरा प्राइम टाइम और खबर का अम्बार खड़ा करने का समय है। लेकिन इन समाचार के दलालों में इतना दम
नहीं कि अमर्त्य सेन जैसे वामपंथी महामानव के इस शिक्षा के दुष्कर्म के खिलाफ एक लाइन भी बना सकें …।
आम आदमी पार्टी के मुखिया और उनके चपाड़ुओं को मोदी का सूट दिखता हैं, अम्बानी के खरीदे हुए हुए ये अपाई ज़रखरीद गुलाम और जासूस अमर्त्य सेन की इस कारस्तानी पे चुप हैं। इन 2700 करोड़ में कितने गरीबों का पेट भर सकता था, कितनों को सर ढकने के लिए घर मिल सकता था - ये वाले जुमले गायब हैं। अन्ना की होने वाले नौटंकी में अमर्त्य सेन के नाम का जिक्र नहीं होता है, न होगा … क्यों ?? . समाचार के दलालों के लिए 2700 का स्वाहा होना कोई बात नहीं है क्योंकि ये दुष्कर्म किसी वामपंथी के द्वारा किया गया है … उसका सब जायज़ है … हाँ मोदी के कुर्ते-पजामे, नाड़े और जूते
की गिनती होती रही चाहिए
…!!

पत्रकार की नौकरी कर कोई इतना पैसा जमा कर सकता है क्या ...? .

1. पिछले दिनों फेस बुक से पता पड़ा की IBN-7 के राजदीप सरदेसाई ने जनपथ, दिल्ली में 50 करोड़ का बंगला खरीदा है। राज दीप सरदेसाई की उम्र 48 साल है और अगर 50 करोड़ का बंगला खरीदा है तो और कितनी संपत्ति होगी उसके पास,
इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है। .
2. दीपक चौरसिया को एक व्यक्ति ने चैनल पर ही पूछ लिया कि 50,000 रुपये की पगार पे काम करने वाला दीपक चौरसिया 500 करोड़ का मालिक कैसे
बन गया? तो दीपक चौरसिया सकपका गया, कोई जवाब नही दिया और बहस का मुद्दा ही बदल दिया। दीपक चौरसिया की उम्र केवल 45 वर्ष है, इतनी सी उम्र में पत्रकार की नौकरी कर कोई इतना पैसा जमा कर सकता है क्या ...? .
3. 'श' को 'स' बोलने वाला राजीव शुक्ला भी आपको याद होगा। कुछ
अरसा ही बीता है जब ये ज़नाब नेताओं के interview लेने वाले एक free lancer पत्रकार थे। परन्तु आज इन श्रीमान जी की पत्नी एक NewsChannel की मालिक हैं। जुगाड़ देखिये की साहब बिना कोई जनसेवा किये ही राज्यसभा सांसद हैं, कोंग्रेस शासन में केद्रीय मंत्री भी बन गए और BCCI के दबंग सदस्य हैं। सिवाय पैसे और
राजनीति जुगाड़बाज़ी के इनकी न कोई following है ओर न कोई काबिलियत। .
4. शाइज़ा इल्मी ने अपनी संपत्ति चुनाव आयोग के सामने 30 करोड़ घोषित की है।
इल्मी की उम्र केवल 43 वर्ष है और वो भी स्टार न्यूज़ में पत्रकार के रूप में
काफी लम्बे अर्से तक जुडी रही है ... . . ये तो चंद लोग हैं। इनके अलावा अनेको पत्रकार हैं जो वेतनभोगी थे और आज थोड़े से समय मैं ही अरबों के मालिक हैं। ये बातें पुख्ता करती हैं
कि सभी पत्रकारों की सम्पत्तियों की जांच होनी चाहिए ...I पता चलना चाहिए कि आखिर ये पत्रकारिता कैसा धंधा है जिसमे लोग
छोटी सी उम्र में लोग इतने अमीर बन जाते हैं ??
एक बहुत ही रेयर फोटो ... कैम्ब्रिज के बार के सामने टेबल पर बैठकर शराब पीते हुए .. राजीव गाँधी, माधवराव सिंधिया और जार्डन के दिवंगत शाह हुसैन ... और वेटर है -एंटोनियो माइनो ..जो बाद में सोनिया गाँधी के नाम से जानी जाती है ..

इस फोटो में दिख रहे सभी पुरुष अब इस दुनिया में नही है
 —

भगवान विष्णु जी के चक्र से निर्मित चक्राकार कुंड like इमोटिकॉन like इमोटिकॉन like इमोटिकॉनlike इमोटिकॉन

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद में गोमती नदी के तट पर है नैमिषारण्य तीर्थ। स्थानीय निवासी इस तीर्थ को नीमषार कहते हैं। यहां भगवान विष्णु ने अपने चक्र से निमिष मात्र में दैत्यों का वध किया था, इसीलिए इसे नैमिषारण्य कहा जाने लगा।
कहते हैं कि दैत्यों के वध के बाद वह चक्र इतने वेग से भूमि पर गिरा कि भूमि को फाड़ते हुए पाताल तक चला गया और वहां से जलप्रवाहित होने लगा। जिस स्थान पर गिरा वहां एक चक्राकार कुंड बन गया। उसे अब चक्रकुंड कहते है।
मान्यता है कि इस कुंड की पूरी परिधि में पक्की सीढ़ियां बनी हैं। प्रत्येक अमावस्या में यहां मेला लगता है।

दर्शनीय स्थल
ललितादेवी : चक्रतीर्थ से लगभग चौथाई किलोमीटर दक्षिण-पूर्व की ओर वह मंदिर है। जिसमें ललितादेवी की भव्य मूर्ति विराजमान है। मंदिर के घेरे के बाहर क्षेमकायदेवी का मंदिर है। चक्रतीर्थ के तट पर कई मंदिर हैं। जिनमें भूतेश्वर शिव का

मंदिर प्रमुख है।
हनुमान मंदिर: चक्रतीर्थ से लगभग एक किलोमीटर दूर गोमतीतट पर एक टीला है। जिसको हनुमानटीला कहते हैं। धरातल से बीस सीढ़ियों के ऊपर हनुमानजी का मंदिर है। जिसमें हनुमानजी की खड़ी मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के कंधे पर राम-लक्ष्मण विराजमान हैं और चरणों में अहिरावण पड़ा है।

उत्तरप्रदेश में हनुमानजी की तीन मूर्तियां प्रसिद्ध हैं। जिनमें नैमिषारण्य में खड़ी, अयोध्या में बैठी एवं इलाहाबाद में लेटी हुई मू्र्ति है।

Saturday 21 February 2015

रानी चेन्नम्मा का दक्षिण भारत के कर्नाटक में वही स्थान है, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का है, रानी चेन्नम्मा ने 1824 लक्ष्मीबाई से पहले ही अंग्रेज़ों अंग्रेजी सत्ता को सशस्त्र चुनौती दी और अंग्रेज़ों की सेना को दो बार परास्त किया,