Thursday 31 March 2016


स्वामी श्रद्धानंद की हत्या सेक्युलर थी और गांधी की हत्या सांप्रदायिक ?

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23 दिसंबर, 1926 को अब्दुल रशीद नामक एक उन्मादी युवक ने धोखे से गोली चलाकर स्वामी जी की हत्या कर दी। यह युवक स्वामी जी से मिलकर इस्लाम पर चर्चा करने के लिए एक आगंतुक के रूप में नया बाज़ार, दिल्ली स्थित उनके निवास गया था। वह स्वामी जी के शुद्धि कार्यक्रम से पागलपन के स्तर तक रुष्ट था। इस घटना से सभी दुखी थे क्योंकि स्वामी दयानन्द सरस्वती के दिखाये मार्ग पर चलने वाले इस आर्य सन्यासी ने देश एवं समाज को उसकी मूल की ओर मोड़ने का प्रयास किया था।
 गांधी जी, जिन्हे स्वामी श्रद्धानंद ने ‘महात्मा’ जैसे आदरयुक्त शब्द से संबोधित किया, और जो उनके नाम के साथ नियमित रूप से जुड़ गया, ने उनकी हत्या के दो दिन बाद अर्थात 25 दिसम्बर, 1926 को गोहाटी में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में जारी शोक प्रस्ताव में जो कुछ कहा वह स्तब्ध करने वाला था। महात्मा गांधी के शोक प्रस्ताव के उद्बोधन का एक उद्धरण इस प्रकार है “मैंने अब्दुल रशीद को भाई कहा और मैं इसे दोहराता हूँ। मैं यहाँ तक कि उसे स्वामी जी की हत्या का दोषी भी नहीं मानता हूँ। वास्तव में दोषी वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे के विरुद्ध घृणा की भावना पैदा किया। इसलिए यह अवसर दुख प्रकट करने या आँसू बहाने का नहीं है।“ यहाँ यह बताना आवश्यक है कि स्वामी श्रद्धानन्द ने स्वेछा एवं सहमति के पश्चात पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मलखान राजपूतों को शुद्धि कार्यक्रम के माध्यम से हिन्दू धर्म में वापसी कराई। शासन की तरफ से कोई रोक नहीं लगाई गई थी जबकि ब्रिटिश काल था।
यहाँ यह विचारणीय है कि महात्मा गांधी ने एक हत्या को सही ठहराया 
जबकि दूसरी ओर अहिंसा का पाठ पढ़ाते रहे। हत्या का कारण कुछ भी हो, हत्या हत्या होती है, अच्छी या बुरी नहीं। अब्दुल रशीद को भाई मानते हुए उसे निर्दोष कहा। इतना ही नहीं गांधी ने अपने भाषण में कहा,”… मैं इसलिए स्वामी जी की मृत्यु पर शोक नहीं मना सकता।…हमें एक आदमी के अपराध के कारण पूरे समुदाय को अपराधी नहीं मानना चाहिए। मैं अब्दुल रशीद की ओर से वकालत करने की इच्छा रखता हूँ।“ उन्होने आगे कहा कि “समाज सुधारक को तो ऐसी कीमत चुकानी ही पढ़ती है। स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या में कुछ भी अनुपयुक्त नहीं है।“ अब्दुल रशीद के धार्मिक उन्माद को दोषी न मानते हुये गांधी ने कहा कि “…ये हम पढे, अध-पढे लोग हैं जिन्होने अब्दुल रशीद को उन्मादी बनाया।…स्वामी जी की हत्या के पश्चात हमे आशा है कि उनका खून हमारे दोष को धो सकेगा, हृदय को निर्मल करेगा और मानव परिवार के इन दो शक्तिशाली विभाजन को मजबूत कर सकेगा।“(यंग इण्डिया, दिसम्बर 30, 1926)। संभवतः इन्हीं दो परिवारों (हिन्दू एवं मुस्लिम) को मजबूत करने के लिए गांधी जी के आदर्श विचार को मानते हुए उनके पुत्र हरीलाल और पोते कांति ने हिन्दू धर्म को त्याग कर इस्लाम स्वीकार कर लिया। 
महात्मा जी का कोई प्रवचन इन दोनों को धर्मपरिवर्तन करने से रोकने में सफल नहीं हो पाया। सर्वप्रथम महर्षि दयानन्द सरस्वती ने ही शुद्धि कार्यक्रम आयोजित कर देहरादून के एक युवक को वैदिक धर्म में प्रवेश कराया। बाद में स्वामी श्रद्धानन्द ने इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। गांधी के सेक्युलरिज़्म के हिसाब से यह कार्यक्रम मुस्लिम विरोधी था इसलिए वे स्वामी श्रद्धानन्द के हत्या को न्यायोचित ठहरने लगे। सत्य और न्याय दोनो शब्द पर्यायवाची हैं। जहां सत्य है, वहीं न्याय है और जहां न्याय है, वहीं सत्य है। फिर गांधी की हत्या को न्योचित ठहरना और हत्यारे को निर्दोष मानना उनके सत्य एवं न्याय के सिद्धान्त के दावे को खोखला साबित करता है। 
अहिंसा के पुजारी यदि सेक्युलरिज़्म के नाम पर हिंसा को न्यायोचित ठहराएँ तो उनके प्रवचन का क्या अर्थ। गांधी के लिए अपने विचार सही हो सकते हैं लेकिन यह जरूरी तो नहीं की सभी के लिए हों। नाथूराम के अपने विचार थे। देश के धर्म के आधार पर विभाजन की पीड़ा असहनीय थी। मुसलमानों के प्रति विशेष झुकाव के कारण हिन्दू समर्थक गोडसे की गांधी से मतभिन्नता थी। जिसके परिणामस्वरूप गांधी जी हत्या हुई। इस हत्या को भी किसी तरह से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन यदि हम गांधी जी के चश्मे से देखे तो नाथूराम को भी दोषी नहीं ठहराया जा सकता। अपने विचार से गोडसे ने भी हिन्दू समुदाय एवं राष्ट्रहित में यह कार्य किया था। उसके समर्थक मूर्ति स्थापित करना चाहते हैं तो क्या समस्या है।
 यदि स्वामी श्रद्धानन्द का हत्यारा निर्दोष है तो गांधी का हत्यारा भी निर्दोष है। यह तो नहीं हो सकता कि स्वामी जी की हत्या सेक्युलर थी और गांधी कम्यूनल।

यह बंदर बजाता है आरती में घंटी, लगवाता है तिलक...


दुनिया के इस आधुनिक युग में हनुमान जी के सबसे विशेष मंदिर बजरंगगढ़ में उन्ही का स्वरूप रामू (वानर) वर्षों से मंदिर की पहरेदारी कर रहा है। रामू कोई आम वानर नहीं है, उसमें कई एेसी विशेषताएं है जो आम वानरों में देखने को नहीं मिलती। रामू पूरा दिन बजरंगगढ़ की पहरेदारी करने के साथ-साथ तिलक लगवाना, मंदिर की घंटी बजाना, गिलास से उठाकर पानी पीना, बालाजी के भजन पर नृत्य जैसी कई अद्भूत क्रियाएं करता है। रामू पूरा समय मंदिर में ही रहता है, यहीं खाता-पीता है, सोता है और मंदिर परिसर में विचरण करता रहता है। रामू तिलक लगवाता है, अपने पैर धुलवाने देता है, आर्शिवाद देता है व आरती के दौरान कई बार अचानक से मंदिर की घंटी बजा आता है। रामू जब आर्शीवाद देने के लिए हाथ उठाता है तो एेसा लगता है मानो साक्षात हनुमानजी अपने भक्त को आर्शीवाद प्रदान कर रहे हों।रामू की इन अनोखी  अठखेलियों को अपने कैमरे में कैद किया हमारे फोटो जर्नलिस्ट जय माखीजा ने।
 देखिए रामू की कुछ अनोखी तस्वीरें.... 
रामू कई बार मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति के सामने आरती या अन्य पाठ के दौरान मंदिर में आए श्रद्धालुओं के साथ बैठकर पाठ व आरती में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है। 
रामू एक आम भक्त की तरह मंदिर में रहता है। प्यास लगने पर हाथ से गिलास में मनुष्यों की तरह पानी पीता है। 
रामू ईश्वर के सच्चे भक्त के रूप में अपने माथे पर तिलक भी लगवाता है। रामू मंदिर में बैठे पुजारी व अन्य लोगों के पास खुद के सर पर चन्दन का तिलक लगाने की गुहार करता है। 
एेसा कभी देखा या सुना नहीं होगा कि कोई बंदर मनुष्स से अपने पैर धुलवाए। मगर रामू बेहद आराम से बैठकर अपने पैर धुलवाता है। 
रामू अक्सर मंदिर में रखी घंटी भी बजाने लग जाता है। कई बार आरती के दौरान रामू खुद आकर भक्त की तरह मंदिर की घंटी बजाता है। 
रामू भूख लगने पर खुद ब खुद खाना खाता है। साथ ही फल, रोटी व पानी का सेवन मनुष्य की तरह करता है। 
रामू का सोने का ढंग भी निराला है, वह हुबहू मनुष्य की तरह आराम करता है और सोता है। 
रामू का सोने का ढंग भी निराला है, वह हुबहू मनुष्य की तरह आराम करता है और सोता है।

रामू भूख लगने पर खुद ब खुद खाना खाता है। साथ ही फल, रोटी व पानी का सेवन मनुष्य की तरह करता है।

यह बंदर बजाता है आरती में घंटी, लगवाता है तिलक, देखे बजरंगगढ़ मंदिर में मौजूद रामू की अनोखी क्रियाएं


रामू अक्सर मंदिर में रखी घंटी भी बजाने लग जाता है। कई बार आरती के दौरान रामू खुद आकर भक्त की तरह मंदिर की घंटी बजाता है।


एेसा कभी देखा या सुना नहीं होगा कि कोई बंदर मनुष्स से अपने पैर धुलवाए। मगर रामू बेहद आराम से बैठकर अपने पैर धुलवाता है।

रामू ईश्वर के सच्चे भक्त के रूप में अपने माथे पर तिलक भी लगवाता है। रामू मंदिर में बैठे पुजारी व अन्य लोगों के पास खुद के सर पर चन्दन का तिलक लगाने की गुहार करता है।


रामू एक आम भक्त की तरह मंदिर में रहता है। प्यास लगने पर हाथ से गिलास में मनुष्यों की तरह पानी पीता है।



रामू कई बार मंदिर में हनुमानजी की मूर्ति के सामने आरती या अन्य पाठ के दौरान मंदिर में आए श्रद्धालुओं के साथ बैठकर पाठ व आरती में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है।


दुनिया के इस आधुनिक युग में हनुमान जी के सबसे विशेष मंदिर बजरंगगढ़ में उन्ही का स्वरूप रामू (वानर) वर्षों से मंदिर की पहरेदारी कर रहा है। रामू कोई आम वानर नहीं है, उसमें कई एेसी विशेषताएं है जो आम वानरों में देखने को नहीं मिलती। रामू पूरा दिन बजरंगगढ़ की पहरेदारी करने के साथ-साथ तिलक लगवाना, मंदिर की घंटी बजाना, गिलास से उठाकर पानी पीना, बालाजी के भजन पर नृत्य जैसी कई अद्भूत क्रियाएं करता है। रामू पूरा समय मंदिर में ही रहता है, यहीं खाता-पीता है, सोता है और मंदिर परिसर में विचरण करता रहता है। रामू तिलक लगवाता है, अपने पैर धुलवाने देता है, आर्शिवाद देता है व आरती के दौरान कई बार अचानक से मंदिर की घंटी बजा आता है। रामू जब आर्शीवाद देने के लिए हाथ उठाता है तो एेसा लगता है मानो साक्षात हनुमानजी अपने भक्त को आर्शीवाद प्रदान कर रहे हों।रामू की इन अनोखी  अठखेलियों को अपने कैमरे में कैद किया हमारे फोटो जर्नलिस्ट जय माखीजा ने। देखिए रामू की कुछ अनोखी तस्वीरें....

पंजाब का ये किसान करता है बिजली की खेती, 46200 रु. रोजाना की कमाई
🔸ये हैं वो किसान जिन्होंने बिजली की खेती कर कमा रहे महीने के लाखों रुपए
बठिंडा/मुक्तसर। पंजाब के मुक्तसर में गांव भागसर के किसान जगदेव सिंह अपने खेतों में लगाए डेढ़ मेगावाट के सोलर प्रोजेक्ट से हर रोज औसत 5500 यूनिट बिजली पैदा कर रहे हैं। गर्मियों में प्रोडक्शन 9000 तक पहुंच जाती है। सर्दियों में धूप कम आने से प्रोडक्शन गिरती है। प्राकृतिक आपदा कारोबारी नीतियों के कारण खेती की बजाए उन्होंने 3 साल पहले ‘जवाहर लाल नेहरू सोलर मिशन’ के तहत 12 एकड़ जमीन पर सोलर प्रोजेक्ट लगाया था। बिजली पैदा कर केंद्र सरकार को 8 रुपए 40 पैसे प्रति यूनिट बेच रहे हैं। इसके लिए 25 साल का एग्रीमेंट किया है। गांव के बिजली घर को भी स्पलाई करते हैं।
- एक एकड़ जमीन पर खेती के लिए ठेके पर देने से अधिकतम आय 50 हजार
- 12 एकड़ जमीन पर सोलर प्रोजेक्ट लगाने से रोज उत्पादन 5500 यूनिट
- पंजाब सरकार की 8.40 रुपये प्रति यूनिट दर के हिसाब से रोजाना आय : 46,200
किसान जगदेव सिंह के अनुसार फसल जब तक कट नहीं जाती तब तक रिस्क रहता है। पर इस प्रोजेक्ट को अपनी जमीन पर लगाने से जिंदगी भर की चिंता दूर हो जाती है। छोटे किसान बड़ी कंपनियों को अपनी जमीन ठेके पर देकर भी मुनाफा कमा सकते हैं।
🔸सोलर पावर प्लांट
पंजाब सरकार को 8 रुपये 40 पैसे प्रति यूनिट बिजली बेचेंगे
अपनी सफलता से उत्साहित जगदेव सिंह ने अब नजदीकी गांव लक्खेवाली में भी 10 एकड़ जमीन पर 2 मेगावाट का प्रोजेक्ट लगाना शुरू कर दिया है। इसके लिए पंजाब एनर्जी डेवलपमेंट अथॉरिटी (पेडा) से एग्रीमेंट किया है। यहां से पैदा बिजली को वह पंजाब सरकार को 8 रुपये 40 पैसे प्रति यूनिट बेचेंगे। जगदेव सिंह ने बताया, जब उन्होंने यह प्रोजेक्ट लगाया था उस समय एक मेगावाट प्रोजेक्ट पर करीब 12 करोड़ खर्च आता था, परंतु अब करीब 7 करोड़ रुपये में एक मेगावाट का प्रोजेक्ट लग जाता है।
मालवा इलाके में सौर ऊर्जा की रेडिएशन ज्यादा होने से यहां सोलर प्रोजेक्ट ज्यादा प्रभावी हैं। इसीलिए निजी कंपनियों ने भी यहां ज्यादा फोकस किया है। अब मुक्तसर, मानसा और फाजिल्का जिले में कंपनियों के करीब 28 सोलर ऊर्जा प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
🔸खेतों में इन्सटॉल साेलर पावर प्लांट
5500 यूनिट से हर महीने 3 कमरों वाले 55 घरों को रोशनी
किसान जगदेव ने बताया, पहले ये प्रोजेक्ट लगाना महंगा था पर अब काफी सस्ता है। किसान जगदेव सिंह ने बताया, करीब 4 साल पहले उनका बेटा हरसोहिंदर पाल सिंह स्पेन गया था। वहां उसने देखा, स्पेन के किसान अपनी जमीन पर बिजली की खेती कर रहे हैं। पंजाब आकर उन्होंने भी इस पर काम करना शुरू किया। जगदेव ने बताया, यह तकनीक चीन, अमेरिका, ताइवान जर्मन की है। सोलर पैनल ताइवान से मंगवाए गये थे। प्रोजेक्ट इन्सटॉल करने के लिए इंजीनियर स्पेन से आये थे। पर अब यह तकनीक और इंजीनियर बैंगलोर में ही मिल जाते हैं। पहले एक पैनल से 100 वाट बिजली पैदा होती थी, लेकिन अब नई तकनीक से 320 वाट पैदा होती है। रोज की प्रोडक्शन 5500 यूनिट से हर महीने 3 कमरों वाले 55 घरों को रोशनी मिल सकती है।

Wednesday 30 March 2016

हममे से कितने लोग आज ब्यूटी और हेल्थ से जुड़े प्रचार देखते ही विश्वास कर लेते है और जब तक उस प्रोडक्ट को खरीद नहीं लेते तब तक हम चैन से नहीं बैठते l खरीदने के बाद जब वो उतना अच्छा रिजल्ट हमे नहीं देता तो हम उसकी भडास सिर्फ दोस्तों और रिश्तेदारों से उस प्रोडक्ट की बुराई करने में निकालते है और केस करने के नाम पर सोचते है की इतनी काम कीमत के लिए कौन कोर्ट के चक्कर लगाये l
अभी हाल ही में एक ऐसा केस सामने आया है जिसमे मर्दों की इमामी फेयर एंड हैण्डसम क्रीम जो प्रचार में दावा कर रही थी की इसे लगाते ही 3 हफ्तों में चेहरा निखर जाएगा पर हकीक़त में जब ये सिद्ध नहीं हुआ तो एक शख्स ने कंपनी के खिलाफ केस फाइल कर दिया !
23 साल के निखिल जैन नाम के शख्स ने इमामी फेयर एंड हैण्डसम क्रीम खरीदी जो ऐड में ये दावा कर रही थी की इसे लगाते ही आप 3 हफ्ते में गोरा हो जायेंगे l एड में बताये वक़्त पूरा होने पर 8 अक्टूबर 2012 को निखिल जैन को इसका कोई रिजल्ट नहीं मिलता l उन्होंने ये प्रोडक्ट शाहरुख़ खान से प्रभावित होकर खरीदा था जो ऐड में अपने हैण्डसम लुक के साथ अपील करते है प्रोडक्ट खरीदने को l
निखिल का भाई पारस लॉ की पढाई कर चुका है और पेशे से वकील है तो निखिल ने अपने भाई की मदद से इमामी कंपनी पर ग्राहकों को गुमराह करने और झूठा दावा करने का आरोप लगाते हुए डिस्ट्रिक्ट कनस्युमर डिसप्यूट्स फोरम में केस फाइल कर दिया l
निखिल जैन के भाई परस जैन का कहना है की ये केस हमने इसलिए चार्ज किया है जिससे हम बाकि आदमियों को इस क्रीम के इस्तेमाल से बचा सके जो गोरा होने का दावा करती है l

3 साल तक चले इस केस में कोर्ट ने जो नतीजा निकाला वो काफी हैरान कर देने वाला था l कोर्ट ने इमामी कंपनी पर 15 लाख का जुरमाना लगाया और जितने भी प्रचार इमामी कंपनी के जो गोरेपन का दावा कर रहे थे हटा देने का आदेश दिया l


निखिल को मुआवज़े के तौर पर 10,000 की रकम मिली हालाँकि निखिल कोई कंपनसेशन मनी नहीं चाहता था l जुर्माने में मिले बाकि के पैसे दिल्ली राज्य ग्राहक आयोग के कनस्यूमर वेलफेयर फण्ड में जमा हुए l
इस घटना के कुछ ही समय बाद महारष्ट्र के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने उन सारी फेयरनेस क्रीम को मार्केट से हटाये जाने का आदेश दिया जिनमे रसायन समिलित हो l





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मोदी विरोधी के नाम पर देशद्रोह स्वीकार्य नहीं

एक शक्तिशाली नेतृत्व के प्रभाव से भारत जुड़ रहा है, टूट नहीं रहा है। भारत बर्बाद नहीं हो रहा है, खुशहाली की डगर पर आगे बढ़ रहा है। परन्तु जो इसके टुटने और बर्बादी के नारे लगा रहे हैं, उन्हें पहले पाकिस्तान की हालत देख लेनी चाहिये। पाकिस्तान के अनेक भागों में सेना के विरुद्ध विद्रोह की आग भभक रही है। सेना नागरिकों को प्रताड़ित कर रही है। उनकी आवाज दबा रही है। पाकिस्तानी जनता के मन में यह बात बैठ रही है कि हमारे देश को भी नरेन्द्र मोदी जैसा शक्तिशाली प्रधानमंत्री चाहिये। हमे सेना के नियंत्रण से मुक्त लोकतंत्र चाहिये। बमों के धमाकों से क्षतविक्षत इंसानों को देख कर उनकी रुह कांप रही है। वे भी ऐसे गुनहगारों से मुक्त खुला और आज़ाद पाकिस्तान चाहते हैं, जिसमें सुकून से रहने का अहसास हो। 
पाकिस्तानी सेना नरेन्द्र मोदी को पसंद नहीं करती, क्योंकि मोदी की ताकत से पाकिस्तान के टुटने और बिखरे की आशंका गहरी होती जा रही है। वह जानती है कि नागरिकों का दमन कर उसकी आवाज़ को अधिक दिनों तक दबा नहीं सकती। इसीलिए सेना भारत में ऐसी हरकते कर रही है और करवा रही है, ताकि पाकिस्तानी आवाम का ध्यान बांटा जा सके और उसे यह समझाया जा सके कि भारत में भी हालात ज्यादा ठीक नहीं है। नरेन्द्र मोदी की सरकार कट्टर हिंदूवादी सोच की सरकार है, जिसे भारत की जनता पसंद नहीं करती।
 भारत की जनता भी कश्मीर की आज़ादी चाहती है और सारे सेकुलर दल नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाना चाहते हैं।  क्योंकि मोदी ज्यादा दिनों तक भारत के प्रधानमंत्री बने रहे, तो कभी भी उनके गले में फांसी का फंदा पड़ सकता है। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तानी सेना ने दहशतगर्दी तेज कर दी है। पाकिस्तानी सेना, अतिवादी तत्व और भारत की सेकुलर गैंग मिल कर भारत में सियासी षड़यंत्र रच रही है। 
आर्इएसआर्इ की परोक्ष सहायता से ही अरविंद केजरीवाल की ऐतिहासिक जीत हुर्इ। दिल्ली में आर्इएसआर्इ के भ्रामक प्रचार के कारण लगभग शतप्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं ने भाजपा के विरोध में वोट डाले। यही इतिहास बिहार में दोहराया गया, जिसे अगले विधानसभा के चुनावों में दोहराये जाने की सम्भावना है। मोदी विरोध के नाम पर सेकुर गैंग दुश्मनों के साथ मिल कर षड़यंत्र रचने को देशद्रोह नहीं मानती। इनके विचारों से नरेन्द्र मोदी और आरएसएस का विरोध करना देशभक्ति है। निश्चय ही लोकतंत्र में जनता द्वारा चुनी गर्इ सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार जनता को है, किन्तु इसी बहाने देशद्रोही ताकतों को अपने मकसद में कामयाब होने की छूट नहीं दी जा सकती।

देशद्रोहियों के प्रति सहानुभूति और देशभक्तों के प्रति नफरत क्यों ?

 देशद्रोही के जमानत पर छूटने पर उसका हीरो की तरह स्वागत करने वाले लोगों की आखिर मंशा क्या थी ? उस लड़के से लम्बा चौड़ा भाषण क्यों दिलाया ? उसे राष्ट्रीय नायक बनाने की हिमाकत क्यों की ? परन्तु जब उसने भारतीय सेना के जवानों को बलात्कारी कहा, तब उनकी जबान से उस लड़के को चुप्प रहने की नसीहते क्यों नहीं निकली ? आखिर कब तक राहुल, केजरीवाल, वामपंथी और पूरी सेकुलर बिरादरी मोदी विरोध के नाम पर देश को गर्त में डूबोने का सपना देखने वालों का समर्थन करते रहेंगे ?
देशद्रोहियों के बारें में कुछ भी बोलने से सेकुलर बिरादरी की जबान क्यों कांपती है ? उन्हें देशभक्तों से चिढ़ क्यों है ? उनके विचारों में भारत में रह कर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाना, अभिव्यक्ति की आज़ादी हैं, किन्तु इसका विरोध करना विकृत देशभक्ति है। फासिस्टवाद है। इसीलिए दुनियां में शांति, भर्इचारा और मानव समाज को प्रेम और संगीत से बांधने के लिए कोर्इ संत सांस्कृतिक कार्यक्रम करता है तब वे संसद में चीख उठते हैं- ‘उस आदमी को रोको ! वह कानून तोड़ रहा है, उसे जेल भेजो !!” दुनिया के एक सौ पचपन देश जिस सांस्कृतिक आयोजन में भाग ले रहें हैं, उसे रोकने के लिए और संत को बदनाम करने के लिए सारे सेकुलर दल एक क्यों हो गये ? भारतीय संस्कृति और आध्यात्म के प्रति तिरस्कार और नफरत, वोटबैंक को तुष्ट करने की विवशता है या भारतीयों को अपमानित करने की धृष्टता ? हर बात पर संतो को कटघरें में खड़े करने की एक परम्परा बन गर्इ है, जो वैचारिक दिवालियापन और कलुषित मानसिकता की द्योतक है।
ओासामा जी और अफजल जी कह कर संबोधित करने वालों को एक संत के नाम के आगे श्री लगाने से शर्म आती है। क्योंकि संत संसार को कुटम्ब मान कर पूरी मानव जाति को शांति और प्रेम से बांधने का संदेश दे रहा हैं। परन्तु ऐसा करने के लिए उन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्म को चुना है। यही उनका सब से बड़ा अपराध है।   भारतीय सेना को बलात्कारी बताने वाले के विरुद्व वे संसद में कोर्इ प्रश्न नहीं उठाते, परन्तु श्री श्री के सांस्कृतिक आयोजन पर शोर मचाते हैं। यह भारतीयों की महानता है कि ऐसे निकृष्टतम चरित्र के राजनेताओं और पत्रकारों को बर्दाश्त किया जा रहा है। यह हमारी सहिष्णुता की पराकाष्ठा है, जिसे सेकुलर बिरादरी हमारी दुर्बलता समझ रही है। कब तक भारत में भारत विरोधी टीवी चेनल दुष्प्रपचार करते रहेंगे और हम उन्हें बर्दाश्त करते रहेंगे ?
 हम भारतीय गरीब हैं, पिछड़े हैं, पर इतने मूर्ख नहीं, जितना हमे समझा जा रहा है। हम जानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का नारा लगा कर भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति नफरत क्यों फैलार्इ जाती है ? हम जानते हैं कि भारत के टूकड़े-टूकड़े करने वालों को हीरो क्यों बनाया जा रहा है ? भारतीय संसद को बमों से उड़ा कर भारतीय लोकतंत्र को ध्वस्त करने का षड़यंत्र रचने वाले अपराधी की बरसी क्यों मनार्इ जाती है ? हम जानते हैं कि देशद्रोह के अपराध में जेल गया अपराधी जब सशर्त जमानता पर छोड़ा जाता है, तब उसका सम्मान क्यों किया जाता है ?
 जो घृणा के पात्र हैं, वे सम्मान के अधिकारी नहीं है। अत: हमारे लिए यह जरुरी है कि देशद्रोहियों की मदद करने वाले और उनके समर्थन में बोलने वाले राजनेताओं और राजनीतिक दलों का कभी समथ्रर्न नहीं करें। उन टीवी चेनलों को नहीं देखें, पत्रकारों की बात को नहीं सुने और पढ़े जो देशद्रोहियों को हीरो बना कर उनके पक्ष में प्रचार करते हैं और भारत, भारतीयता और भारतीय संस्कृति के विरुद्ध दुष्प्रचार करते हैं। इस देश के करोड़ो नागरिक चंद लोगों को भारत में रह कर भारतीयों के विरुद्ध घृणा फैलाने की अनुमति नहीं देंगे। भारतीय संस्कृति और उसके मूल्यों का अपमान पूरे देश का अपमान हैं, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
देशद्रोहियों के प्रति सहानुभूति और देशभक्तों के प्रति नफरत क्यों ?
मोदी को हटाने क्यों बेताब है-पाकिस्तानी सेना और भारत की कांग्रेसी जमात ?
नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही पाकिस्तानी सेना और भारत की कांग्रेसी जमात की बौखलाहट  एक साथ बढ़ गर्इ, क्योंकि उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी स्वीकार्य नहीं थे। दोनों ने ही भारत की जनता द्वारा दिये गये जनादेश को क्रोधित हो कर अस्वीकार्य किया।  पाकिस्तानी सेना ने अपनी सहायक संस्थाएं – आर्इएसआर्इ और आतंकी संगठनों  की मदद से दहशतगर्दी तेज कर मोदी सरकार को ललकार रही है।  वहीं सोनिया और राहुल ने मोदी सरकार के विरुद्ध संसद में और सड़कों पर कोहराम मच रखा है। असहिष्णुता और दलित अत्याचार जैसे मुद्ध अनेक हैं, पर सभी का सारांश एक है- सत्ता से हट जाओ, इस पर हमारा अधिकार है !
भारत विभाजन का सर्वाधिक लाभ पाकिस्तानी सेना के अफसरो और कांग्रेसी नेताओं ने उठाया है। कांग्रेसी नेताओं को सत्ता क्या मिली जैसे सोने की खान मिल गर्इ। जब भी सत्ता से दूर होते हैं, बैचेन हो कर तड़फ उठते हैं। फकीर गांधी से अमीर राहुल गांधी के युग तक आते आते कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार का दलदल बन गर्इ हैं, जिसमें दुर्गन्ध आ रही है। देश भर में सत्ता का लुत्फ उठा चुके या उठा रहे कांग्रेसी नेता आज भारत के सर्वाधिक धनी राजनेता हैं। गांधी की कांग्रेस को दफनाया जा चुका है। सोनियां-राहुल की विचारशून्य, अनैतिक व भ्रष्ट कांग्रेस खड़ी है, जो किसी भी तरह फिर सत्ता पाने के लिए मचल रही है।  ऐसी आंशका है कि यदि भविष्य में कांग्रेस को सत्ता पाने के लिए देश के दुश्मनों का साथ ही क्यों न लेना पड़े, वह हिचकिचायेगी नहीं।
 सत्ता और ताकत का असली मजा पाकिस्तान में सेना के अफसर लूट रहे हैं। लोकतंत्र बैचारा सहमा-सहमा, डरा-डरा सेना के सामने लाचार हो कर नतमस्तक खड़ा है। सेना ऐसी परिस्थतियां पैदा करती रही है, जिससे भारत-पाक के बीच दुश्मनी बढ़ती रहे। कभी दोनों देशों की आवाम नज़दीक नहीं आ पाये, क्योंकि ऐसा होगा तो सेना द्वारा तैयार किया गया तिलस्म टूट जायेगा। पाकिस्तान का वजूद खत्म हो जायेगा। दहशतीगर्दी और नशे का व्यापार चौपट हो जायेगा।   पाकिस्तानी सेना और आर्इएसआर्इ के अफसर मालामाल है। अरबों कमा रहे हैं और करोड़ो बांट रहे हैं। ड्रग्स की  कमार्इ दहशतगर्दी के व्यापार में लगा रखी है। पाकिस्तान में चल रही कर्इ आतंकी फैक्ट्रीयों की पाकिस्तानी सेना मालिक है। फैक्ट्रीयों के मालिक आतंकी आका है, जो  सेना और आर्इएसआर्इ के शार्गिद हैं। कमीशन के तौर पर इन आकाओं को भी भारत में दहशतगर्दी बढ़ाने के एवज में करोड़ो रुपये मिलते हैं, जिसका आधे से अधिक भाग अपनी जेबों में रखते हैं और बचा हुआ दहशतगर्द तैयार करने में लगाते हैं। भारत में भी इन आकाओं ने अपने अंधे अनुयायियों की जमात तैयार कर रखी है, जिन्हें धन के प्रलोभन और मजहबी उन्माद से उकसा कर भारत राष्ट्र के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए उकसाय जाता है।
भारत के सेकुलर राजनीतिक दल पाकिस्तानी सेना के गोरखधंधे के अप्रत्यक्ष मददगार हैं, क्योंकि पाकिस्तानी सेना जिन्हें मोहरा बना कर खेल खेलती है, वे सेकुलर राजनीतिक दलों के वोट बैंक हैं। सत्ता पाने के लिए वोट चाहिये, सेकुलर राजनीतिक दलों के लिए देशहित गौण है, तुष्टीकरण महत्वपूर्ण हैं। अत: सेकुलर जमात ने पाकिस्तान सेना द्वारा प्रायोजित नशे और आतंक के व्यवसाय को बंद करने का कभी गम्भीर प्रयास नहीं किया। आतंकी घटना को अंजाम देने के बाद आतंकी आसानी से भाग जाते। 
पाकिस्तानी सेना को मोदी सरकार पर भरोसा नहीं हैं, क्योंकि सरकार बनते ही नरेन्द्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास का नारा दिया था।। एक समुदाय विशेष के थोक वोटों का उन्हें लालच नहीं है। वे तुष्टीकरण को महत्व नहीं देते, इसलिए पाकिस्तानी सेना को अपने ड्रग्स और आतंक के कारोबार के चौपट होने की आशंका बढ़ गर्इ है। गणतंत्र दिवस के दिन पूरे देश को आतंक से दहला देने का षड़यंत्र रचा, पर सुरक्षा बलों ने सुदृढ़ चौकसी से दहशतगर्दों को देश में घुसने नहीं दिया। गुप्तचर एजेंसियों से पूरा देश सतर्क हो गया और पुलिस ने उन लोगों को ढूंढ निकाला जो आर्इएसआर्इ के इशारें पर देश भर में तबाही मचाने की योजना बना रहे थे।
पाकिस्तानी सेना नरेन्द्र मोदी को हटाना चाहती है, क्योंकि उन्हें भय है कि कहीं वे नवाज से दोस्ती के बहाने पाकिस्तानी जनता का दिल नहीं जीत लें। जनता ने यदि सेना के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तो सेना उसे दबा नहीं पायेगी। पाकिस्तान -टूकड़ो  में बंट जायेगा, क्योंकि पाकिस्तान के कर्इ प्रान्तों में असतांष सुलग रहा है, जिसे सेना ने ताकत से दबा रखा है। इसीलिए सेना को नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री नहीं चाहिये, जिसका ज़मीर बिकाऊ नहीं हो। सेना को कांग्रेसी सरकारें पंसद है, जो लूट के कारोबार में व्यस्त रहती है उसके कारोबार पर अंकुश लगाने के लिए पूरे शिद्दत के साथ खड़ी नहीं होती।
उधर कांग्रसी नेता असहिष्णुता के बहाने अल्पसंख्यक समुदाय के मन में जानबूझ कर असुरक्षा का भाव भर रहे हैं,। दलितों का सरकार से मोहभंग करने के लिए उनके मन में यह बात बिठार्इ जा रही है कि मोदी सरकार दलित विरोधी और अत्याचारी है।
 अप्रत्यक्ष रुप से पाकिस्तानी सेना और कांग्रेसी नेता सरकार के विरुद्ध मिल कर काम कर रहे हैं। दोनो के अपने अपने स्वार्थ हैं, पर इस स्वार्थ में देानों देशों की जनता पीस रही है।ये दोनो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकते, यदि भारत की जनता मोदी सरकार के पीछे दृढ़ता से खड़ी हो जाय।http://bit.ly/1Pq2brn

ऑटो रिक्शा चालक की बेटी को मिला पद्मश्री अवॉर्ड

झारखंड के रांची जिले की रहने वाली दीपिका कुमारी को भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 28 मार्च को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। आपको बता दें कि दीपिका ने तमाम मुश्किलें झेलने के बाद भी कई उपलब्धियां हासिल की हैं। इनके पास तीरंदाजी कॉम्पटीशन में पार्टिसिपेट करने के लिए दस रुपये तक नहीं थे। ये जानकर भी आपको हैरानी होगी कि दीपिका के पिता मात्र एक ऑटो रिक्शा चालक हैं।

इन उपलब्धियों पर किया कब्जा-

21 वर्षीय दीपिका कुमारी अर्जुन अवॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं और 2011 से 2013 तक 3 वर्ल्ड कप में रजत पदक उन्होंने हासिल किया है। दीपिका पैसों की कमी होने के कारण बांस का धनुष बनाकर तीरंदाजी किया करती थीं और इसी से ही अपनी प्रैक्टिस करती थीं। जब दीपिका को तीरंदाजी कॉम्पटीशन में हिस्सा लेना था तब उन्होंने अपने पिता से 10 रुपये मांगे जो कि उनके पिता के पास नहीं थे। हालांकि पिता ने कहीं से जुगाड़ कर उन्हें 10 रुपय दिए थे।

ऑटो रिक्शा 

झारखंड के रांची जिले की रहने वाली दीपिका कुमारी को भी राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 28 मार्च को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। आपको बता दें कि दीपिका ने तमाम मुश्किलें झेलने के बाद भी कई उपलब्धियां हासिल की हैं। इनके पास तीरंदाजी कॉम्पटीशन में पार्टिसिपेट करने के लिए दस रुपये तक नहीं थे। ये जानकर भी आपको हैरानी होगी कि दीपिका के पिता मात्र एक ऑटो रिक्शा चालक हैं।

इन उपलब्धियों पर किया कब्जा-

21 वर्षीय दीपिका कुमारी अर्जुन अवॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं और 2011 से 2013 तक 3 वर्ल्ड कप में रजत पदक उन्होंने हासिल किया है। दीपिका पैसों की कमी होने के कारण बांस का धनुष बनाकर तीरंदाजी किया करती थीं और इसी से ही अपनी प्रैक्टिस करती थीं। जब दीपिका को तीरंदाजी कॉम्पटीशन में हिस्सा लेना था तब उन्होंने अपने पिता से 10 रुपये मांगे जो कि उनके पिता के पास नहीं थे। हालांकि पिता ने कहीं से जुगाड़ कर उन्हें 10 रुपय दिए थे।
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सबसे पहले आम पर निशाना लगाया था-



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सबसे पहले आम पर निशाना लगाया था-ये किस्सा उनके बचपन का है। एक दिन दीपिका 

अपनी मां के साथ जा रही थीं तभी उनकी नजर आम के पेड़ पर पड़ी। दीपिका का मन उस आम को

 तोड़ने का किया, लेकिन टहनी बहुत ऊंची होने के कारण उनकी मां ने मना कर दिया। दीपिका ने 

उसे तोड़ने की ठान ली थी तो उन्होंने आम को पत्थर से तोड़ दिया।

दीपिका की नजर रियो ओलिंपिक पर-

जब दीपिका को राष्ट्रपति ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया तब उन्होंने कहा कि मुझे ये 

पुरस्कार मिलेगा ये तो पता था लेकिन इतनी जल्दी इसकी उम्मीद नहीं थी। दीपिका ने अपना

अगला लक्ष्य रियो ओलंपिक को बताया और भरोसा जताया कि वो फिर मेडल जीत कर लाएंगी।


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रूस पर क्यों नहीं करते 

इस्लामिक आतंकी हमला

क्या आपने कभी सोचा है की इस्लामिक आतंकवादी कभी रूस जो की दुनिया का सबसे बड़ा देश है वहां हमला क्यों नहीं करते, क्यों रूस में बम नहीं फटते जबकि पूरी दुनिया आज इस्लामिक आतंकवाद से परेशान है, भारत जैसे देशों में इस्लामिक आतंकियों के हमले आम है
 क्या किया था रूस ने इस्लामिक आतंक को लगभग ख़त्म करने के लिए :
एक बार रूस में कुल 10 चेचन्या मुस्लिम आतंकियों ने कुछ रुसी सरकारी अफसरों को अगवा कर लिया था, तथा रुसी राष्ट्रपति के पास अपनी मांगे भेजी थी मांगो में जेल से कुछ आतंकियों की रिहाई तथा रुपए थे, इसपर रुसी सरकार ने आतंकियों को सन्देश भेजा की हमारे लोगो को छोड़ फ़ो अन्यथा अंजाम बुरा होगा जिसे आतंकियों ने हलके में लिया तथा रुसी सरकार के पास एक सरकारी कर्मचारी की लाश भेज दी तथा सन्देश भेजा की मांगे पूरी ना होने पर और लोगो की हत्या कर दी जायेगी इसके अगले दिन रुसी सरकार ने आतंकियों के परिवार के सदस्यों को पकड़ लिया तथा उनमे से एक को गोली मार कर आतंकियों के पास सन्देश भेजा की 48 घंटो में आत्मसमर्पण कर दो अन्यथा आतंकियों के परिवार को ख़त्म कर दिया जायेगा सभी मुस्लिम आतंकियों ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा सरकारी कर्मचारियों को आज़ाद कर दिया
उसके बाद से ही रूस में आतंक लगभग ना के बराबर है तथा अन्य आतंकी भी रूस पर हमले की जुर्रत नहीं करते रूस में आतंकियों के मानवाधिकारों की वकालत करने वाले सेक्युलरो की भी संख्या ना के बराबर है क्योंकि ऐसे लोगो पर रूस में कड़ी कारवाही कर जेल डाल दिया जाता है
एक सुरक्षित देश के लिए रूस ने कड़ाई दिखाई तो आज रूस की जनता सुरक्षित है 

Tuesday 29 March 2016

 क्या आप कभी इस बात पर हैरान हुए हैं जब उड़ान भरते और जमीन पर उतरते वक्त उद्घोषक कहता है कि विमान की खिड़कियां पूरी तरह खुली रखें? आखिर क्यों ऐसा कहा जाता है? क्या वाकई इससे कुछ फर्क पड़ता है या नहीं?

केवल नजारे देखने के लिए ही नहीं होती खिड़की

आप हवाई यात्रा के बारे में क्या सोचते हैं और हवा में ऊपर जाने पर आप कैसा महसूस करते हैं इनसे अलग विमान की खुली हुई खिड़की निश्चित ही आपको टेक ऑफ और लैंडिंग के दौरान कभी खुशी कभी गम का अहसास कराती है. बाहर के दृश्य कइयों को डराते हैं तो कुछ को ऐसे नजारे दिखाते हैं जो उन्हें गदगद कर दें.लेकिन उड़ान भरते या जमीन पर उतरते वक्त खिड़की खुली रखने से भले ही यात्रियों का कोई लेना-देना हो, विमान के अंदर मौजूद क्रू मेंबर्स के लिए यह बहुत जरूरी होता है. खुली खिड़कियों के जरिये वे पहले से ही भांप लेंगे कि कहीं बाहर कोई खतरा तो मौजूद नहीं है. किसी भी विमान के लिए उसका टेक ऑफ और लैंडिंग का समय सबसे नाजुक होता है. कहा जाता है कि विमान से जुड़ी 90 फीसदी दुर्घटनाएं लैंडिंग और टेक ऑफ के दौरान ही होती हैं.
इस दौरान ही किसी तरह के हादसे की संभावना सबसे अधिक रहती है. लिहाजा विमान के क्रू मेंबर्स इन खुली खिड़कियों के जरिए बाहर की किसी भी असमान्य स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं. अगर कुछ गड़बड़ी होती है तो इन खुली खिड़कियों के जरिये जल्द से जल्द वे उस संकट का अनुमान लगाकर उससे निपटने के लिए जरूरी एहतियाती उपाय कर सकेंगे.
इसके साथ ही अगर विमान को खाली करवाने की नौबत आती है तो क्रू मेंबर्स खुली खिड़कियों से बाहर के खतरे को भांपकर उचित योजना बनाकर कार्रवाई के लिए तैयार होने का वक्त पा सकेंगे. क्योंकि खिड़कियों से उन्हें यह भी पता चल जाएगा कि बाहर क्या खतरा है और उससे कैसे निपटा जाए, इस दौरान बचाव कार्य को सबसे बेहतर अंजाम देने के लिए क्या तरीके अपनाए जायं आदि.
जब आप आसमान में यात्रा कर रहे होते हैं तो भले ही आप इन खिड़कियों को खुला रखे या बंद कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन जब आप खुले आसमान में बादलों के ऊपर से गुजरते विमान में बैठे होते हैं तो कौन बादलों की अलग-अलग हलचलों को मिस करना चाहेगा.
टेक ऑफ और लैंडिंग के दौरान क्यों खुली रखनी पड़ती है विमान की खिड़की?

बाजीराव बल्लाल भट्ट की जिंदगी का ये पहलू भी जानने की जरूरत है...

 हिंदुस्तान के इतिहासकारों ने 
मराठा इतिहास के सबसे बड़े नायक के साथ  अन्याय किया है
शिवाजी ने एक सपने की नींव रखी थी, लेकिन उस सपने को पूरा किया था बाजीराव बल्लाल भट्ट यानी पेशवा बाजीराव प्रथम ने। भंसाली की मजबूरियां थीं कि फिल्म को हिंदू-मुस्लिम दोनों तरह के दर्शकों की कसौटी पर खरा उतारते हुए उसका रोमांटिक चरित्र ही बनाए रखना था। सवाल है कि क्या था शिवाजी का वो सपना, जिसे बाजीराव बल्लाल भट्ट ने पूरा कर दिखाया? दरअसल जब औरंगजेब के दरबार में अपमानित हुए वीर शिवाजी आगरा में उसकी कैद से बचकर भागे थे तो उन्होंने एक ही सपना देखा था, पूरे मुगल साम्राज्य को कदमों पर झुकाने का। मराठा ताकत का अहसास पूरे हिंदुस्तान को करवाने का। अटक से कटक तक केसरिया लहराने का और हिंदू स्वराज लाने का। इस सपने को किसने पूरा किया? पेशवाओं ने, खासकर पेशवा बाजीराव प्रथम ने।
 उन्नीस-बीस साल के उस युवा ने तीन दिन तक दिल्ली को बंधक बनाकर रखा। मुगल बादशाह की लाल किले से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं हुई। यहां तक कि 12वां मुगल बादशाह और औरंगजेब का नाती दिल्ली से बाहर भागने ही वाला था कि बाजीराव मुगलों को अपनी ताकत दिखाकर वापस लौट गया। नहीं दिखाया भंसाली ने ये सब, जबकि उनके हर तीसरे सीन में बाजीराव ये कहता दिखाया गया कि दिल्ली को तो हम कभी भी झुका देंगे। लगा था कि भंसाली मराठा साम्राज्य का वो सपना पूरा होता हुआ परदे पर दिखाएंगे, लेकिन वो चूक गए। 
आगे की पीढ़ियां बाजीराव को जानेंगी, , लेकिन एक रोमांटिक हीरो की तरह जानेंगी, एक ऐसे योद्धा की तरह जानेंगी, जिसने कट्टर ब्राह्मणों से टक्कर लेकर भी अपनी मुस्लिम बीवी को बनाए रखा। बेटे का संस्कार ना करने पर उसका नाम बदलकर गुस्से में कृष्णा से शमशेर बहादुर कर दिया, इसलिए जानेंगी। जोधा अकबर की तरह बाजीराव मस्तानी को भी जाना जाएगा। लेकिन क्या वो ये जानेंगी कि हिंदुस्तान के इतिहास का बाजीराव अकेला ऐसा योद्धा था, जिसने 41 लड़ाइयां लड़ीं और एक भी नहीं हारी, जबकि शिवाजी का भी रिकॉर्ड ऐसा नहीं है। वर्ल्ड वॉर सेकंड में ब्रिटिश आर्मी के कमांडर रहे मशहूर सेनापति जनरल मांटगोमरी ने भी अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ वॉरफेयर’ में बाजीराव की बिजली की गति से तेज आक्रमण शैली की जमकर तारीफ की है और लिखा है कि बाजीराव कभी हारा नहीं। आज वो किताब ब्रिटेन में डिफेंस स्टडीज के कोर्स में पढ़ाई जाती है। बाद में यही आक्रमण शैली सेकंड वर्ल्ड वॉर में अपनाई गई, जिसे ‘ब्लिट्जक्रिग’ बोला गया। निजाम पर आक्रमण के एक सीन में भंसाली ने उसे दिखाने की कोशिश भी की है।
बाजीराव पहला ऐसा योद्धा था, जिसके समय में 70 से 80 फीसदी भारत पर उसका सिक्का चलता था। वो अकेला ऐसा राजा था जिसने मुगल ताकत को दिल्ली और उसके आसपास तक समेट दिया था। पूना शहर को कस्बे से महानगर में तब्दील करने वाला बाजीराव बल्लाल भट्ट था, सतारा से लाकर कई अमीर परिवार वहां बसाए गए। निजाम, बंगश से लेकर मुगलों और पुर्तगालियों तक को कई कई बार शिकस्त देने वाली अकेली ताकत थी बाजीराव की। शिवाजी के नाती शाहूजी महाराज को गद्दी पर बैठाकर बिना उसे चुनौती दिए, पूरे देश में उनकी ताकत का लोहा मनवाया था बाजीराव ने। आज भले ही नई पीढ़ी के सामने उसे भंसाली की फिल्म के जरिए हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल के तौर पर पेश किया गया हो, लेकिन ये कौन बताएगा कि देश में पहली बार हिंदू पद पादशाही का सिद्धांत भी बाजीराव प्रथम ने दिया था। हर हिंदू राजा के लिए आधी रात मदद करने को तैयार था वो, पूरे देश का बादशाह एक हिंदू हो, उसके जीवन का लक्ष्य ये था, लेकिन जनता किसी भी धर्म को मानती हो उसके साथ वो न्याय करता था।
 उसकी अपनी फौज में कई अहम पदों पर मुस्लिम सिपहसालार थे, लेकिन वो युद्ध से पहले हर हर महादेव का नारा भी लगाना नहीं भूलता था। उसे टैलेंट की इस कदर पहचान थी कि उसके सिपहसालार बाद में मराठा इतिहास की बड़ी ताकत के तौर पर उभरे। होल्कर, सिंधिया, पवार, शिंदे, गायकवाड़ जैसी ताकतें जो बाद में अस्तित्व में आईं, वो सब पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट की देन थीं। ग्वालियर, इंदौर, पूना और बड़ौदा जैसी ताकतवर रियासतें बाजीराव के चलते ही अस्तित्व में आईं। बुंदेलखंड की रियासत बाजीराव के दम पर जिंदा थी, छत्रसाल की मौत के बाद उसका तिहाई हिस्सा भी बाजीराव को मिला। कभी वाराणसी जाएंगे तो उसके नाम का एक घाट पाएंगे, जो खुद बाजीराव ने 1735 में बनवाया था, दिल्ली के बिरला मंदिर में जाएंगे तो उसकी एक मूर्ति पाएंगे। कच्छ में जाएंगे तो उसका बनाया आइना महल पाएंगे, पूना में मस्तानी महल और शनिवार बाड़ा पाएंगे।
 अकबर की तरह उसको वक्त नहीं मिला, कम उम्र में चल बसा, नहीं तो भव्य इमारतें बनाने का उसको भी शौक था, शायद तभी आज की पीढ़ी उसको याद नहीं करती। नहीं तो अकबर के अलावा कोई और मुगल बादशाह नहीं था, जिससे उनकी तुलना बतौर योद्धा, न्यायप्रिय राजा और बेहतर प्रशासक के तौर पर की जा सके। दिल्ली पर आक्रमण उसका सबसे बड़ा साहसिक कदम था, वो अक्सर शिवाजी के नाती छत्रपति शाहू से कहता था कि मुगल साम्राज्य की जड़ों यानी दिल्ली पर आक्रमण किए बिना मराठों की ताकत को बुलंदी पर पहुंचाना मुमकिन नहीं, और दिल्ली को तो मैं कभी भी कदमों पर झुका दूंगा। छत्रपति शाहू सात साल की उम्र से 25 साल की उम्र तक मुगलों की कैद में रहे थे, वो मुगलों की ताकत को बखूबी जानते थे, लेकिन बाजीराव का जोश उस पर भारी पड़ जाता था।
 धीरे धीरे उसने महाराष्ट्र को ही नहीं पूरे पश्चिम भारत को मुगल आधिपत्य से मुक्त कर दिया। फिर उसने दक्कन का रुख किया, निजाम जो मुगल बादशाह से बगावत कर चुका था, एक बड़ी ताकत था। कम सेना होने के बावजूद बाजीराव ने उसे कई युद्धों में हराया और कई शर्तें थोपने के साथ उसे अपने प्रभाव में लिया। इधर उसने बुंदेलखंड में मुगल सिपाहसालार मोहम्मद बंगश को हराया। मुगल असहाय थे, कई बार पेशवा से मात खा चुके थे, पेशवा का हौसला इससे बढ़ता गया। 1728 से 1735 के बीच पेशवा ने कई जंगें लड़ीं, पूरा मालवा और गुजरात उसके कब्जे में आ गया। बंगश, निजाम जैसे कई बड़े सिपहसालार पस्त हो चुके थे।

इधर दिल्ली का दरबार ताकतवर सैयद बंधुओं को ठिकाने लगा चुका था, निजाम पहले ही विद्रोही हो चुका था। उस पर औरंगजेब के वंशज और 12 वें मुगल बादशाह मोहम्मद शाह को रंगीला कहा जाता था, जो कवियों जैसी तबियत का था। जंग लड़ने की उसकी आदत में जंग लगा हुआ था। कई मुगल सिपाहसालार विद्रोह कर रहे थे। उसने बंगश को हटाकर जय सिंह को भेजा, जिसने बाजीराव से हारने के बाद उसको मालवा से चौथ वसूलने का अधिकार दिलवा दिया। मुगल बादशाह ने बाजीराव को डिप्टी गर्वनर भी बनवा दिया। लेकिन बाजीराव का बचपन का सपना मुगल बादशाह को अपनी ताकत का परिचय करवाने का था, वो एक प्रांत का डिप्टी गर्वनर बनके या बंगश और निजाम जैसे सिपहासालारों को हराने से कैसे पूरा होता। उसने 12 नवंबर 1736 को पुणे से दिल्ली मार्च शुरू किया। 
मुगल बादशाह ने आगरा के गर्वनर सादात खां को उससे निपटने का जिम्मा सौंपा। मल्हार राव होल्कर और पिलाजी जाधव की सेना यमुना पार कर के दोआब में आ गई। मराठों से खौफ में था सादात खां, उसने डेढ़ लाख की सेना जुटा ली। मराठों के पास तो कभी भी एक मोर्चे पर इतनी सेना नहीं रही थी। लेकिन उनकी रणनीति बहुत दिलचस्प थी। इधर मल्हार राव होल्कर ने रणनीति पर अमल किया और मैदान छोड़ दिया। सादात खां ने डींगें मारते हुआ अपनी जीत का सारा विवरण मुगल बादशाह को पहुंचा दिया और खुद मथुरा की तरफ चला आया। बाजीराव को पता था कि इतिहास क्या लिखेगा उसके बारे में। उसने सादात खां और मुगल दरबार को सबक सिखाने की सोची। उस वक्त देश में कोई भी ऐसी ताकत नहीं थी, जो सीधे दिल्ली पर आक्रमण करने का ख्वाब भी दिल में ला सके।
 मुगलों का और खासकर दिल्ली दरबार का खौफ सबके सिर चढ़ कर बोलता था। लेकिन बाजीराव को पता था कि ये खौफ तभी हटेगा जब मुगलों की जड़ यानी दिल्ली पर हमला होगा। सारी मुगल सेना आगरा मथुरा में अटक गई और बाजीराव दिल्ली तक चढ़ आया, आज जहां तालकटोरा स्टेडियम है, वहां बाजीराव ने डेरा डाल दिया। 
दस दिन की दूरी बाजीराव ने केवल पांच सौ घोड़ों के साथ 48 घंटे में पूरी की, बिना रुके, बिना थके। देश के इतिहास में ये अब तक दो आक्रमण ही सबसे तेज माने गए हैं, एक अकबर का फतेहपुर से गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए नौ दिन के अंदर वापस गुजरात जाकर हमला करना और दूसरा बाजीराव का दिल्ली पर हमला। बाजीराव ने तालकटोरा में अपनी सेना का कैंप डाल दिया, केवल पांच सौ घोड़े थे उसके पास। मुगल बादशाह मौहम्मद शाह रंगीला बाजीराव को लाल किले के इतना करीब देखकर घबरा गया। उसने खुद को लाल किले के सुरक्षित इलाके में कैद कर लिया और मीर हसन कोका की अगुआई में आठ से दस हजार सैनिकों की टोली बाजीराव से निपटने के लिए भेजी। बाजीराव के पांच सौ लड़ाकों ने उस सेना को बुरी तरह शिकस्त दी। ये 28 मार्च 1737 का दिन था, मराठा ताकत के लिए सबसे बड़ा दिन। 
कितना आसान था बाजीराव के लिए, लाल किले में घुसकर दिल्ली पर कब्जा कर लेना। लेकिन बाजीराव की जान तो पुणे में बसती थी, महाराष्ट्र में बसती थी। वो तीन दिन तक वहीं रुका, एक बार तो मुगल बादशाह ने योजना बना ली कि लाल किले के गुप्त रास्ते से भागकर अवध चला जाए। लेकिन बाजीराव बस मुगलों को अपनी ताकत का अहसास दिलाना चाहता था। वो तीन दिन तक वहीं डेरा डाले रहा, पूरी दिल्ली एक तरह से मराठों के रहमोकरम पर थी। उसके बाद बाजीराव वापस लौट गया। बुरी तरह बेइज्जत हुआ मुगल बादशाह रंगीला ने निजाम से मदद मांगी, वो पुराना मुगल वफादार था, मुगल हुकूमत की इज्जत को बिखरते नहीं देख पाया। वो दक्कन से निकल पड़ा। इधर से बाजीराव और उधर से निजाम दोनों एमपी के सिरोंजी में मिले। लेकिन कई बार बाजीराव से पिट चुके निजाम ने उसको केवल इतना बताया कि वो मुगल बादशाह से मिलने जा रहा है।
 निजाम दिल्ली आया, कई मुगल सिपहसालारों ने हाथ मिलाया और बाजीराव को बेइज्जती करने का दंड देने का संकल्प लिया और कूच कर दिया। लेकिन बाजीराव बल्लाल भट्ट से बड़ा कोई दूरदर्शी योद्धा उस काल खंड में पैदा नहीं हुआ था। ये बात साबित भी हुई, बाजीराव खतरा भांप चुका था। अपने भाई चिमना जी अप्पा के साथ दस हजार सैनिकों को दक्कन की सुरक्षा का भार देकर वो अस्सी हजार सैनिकों के साथ फिर दिल्ली की तरफ निकल पड़ा। इस बार मुगलों को निर्णायक युद्ध में हराने का इरादा था, ताकि फिर सिर ना उठा सकें। दिल्ली से निजाम के अगुआई में मुगलों की विशाल सेना और दक्कन से बाजीराव की अगुआई में मराठा सेना निकल पड़ी।
 दोनों सेनाएं भोपाल में मिलीं, 24 दिसंबर 1737 का दिन मराठा सेना ने मुगलों को जबरदस्त तरीके से हराया। निजाम की समस्या ये थी कि वो अपनी जान बचाने के चक्कर में जल्द संधि करने के लिए तैयार हो जाता था। इस बार 7 जनवरी 1738 को ये संधि दोराहा में हुई। मालवा मराठों को सौंप दिया गया और मुगलों ने पचास लाख रुपये बतौर हर्जाना बाजीराव को सौंपे। 
चूंकि निजाम हर बार संधि तोड़ता था, सो बाजीराव ने इस बार निजाम को मजबूर किया कि वो कुरान की कसम खाकर संधि की शर्तें दोहराए। ये मुगलों की अब तक की सबसे बड़ी हार थी और मराठों की सबसे बड़ी जीत। पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट यहीं नहीं रुका, अगला अभियान उसका पुर्तगालियों के खिलाफ था। कई युद्दों में उन्हें हराकर उनको अपनी सत्ता मानने पर उसने मजबूर किया।
 अगर पेशवा कम उम्र में ना चल बसता, तो ना अहमद शाह अब्दाली या नादिर शाह हावी हो पाते और ना ही अंग्रेज और पुर्तगालियों जैसी पश्चिमी ताकतें। बाजीराव का केवल चालीस साल की उम्र में इस दुनिया से चले जाना मराठों के लिए ही नहीं देश की बाकी पीढ़ियों के लिए भी दर्दनाक भविष्य लेकर आया। अगले दो सौ साल गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहा भारत और कोई भी ऐसा योद्धा नहीं हुआ, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध पाता। आज की पीढ़ी को बाजीराव बल्लाल भट्ट की जिंदगी का ये पहलू भी जानने की जरूरत है। 

मेघालय का मावल्यान्नॉंग गांव भारत ही नहीं, पूरे एशिया में सबसे खास है। इसके कई कारण हैं, जैसे यह पूरे एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव है।

भारत के पूर्वोत्तर मेंं स्थित छोटे से राज्य मेघालय के नाम यूं तो दुनिया में कर्इ रिकॉर्ड हैं, लेकिन यहां का मावल्यान्नॉंग गांव, पूरे एशिया में खास है। इसका कारण है, यह पूरे एशिया का सबसे साफ-सुथरा गांव है। इस गांव का लिटरेसी रेट 100 फीसदी है, यानी यहां के सभी लोग पढ़े-लिखे हैं। इतना ही नहीं, इस गांव में ज्यादातर लोग सिर्फ अंग्रेजी में ही बात करते हैं।
इस गांव को अंतरराष्ट्रीय तौर पर एशिया के सबसे साफ गांव के लिए पुरस्कार भी मिल चुका है। इसी के साथ यहां टूरिस्ट्स के लिए कई अमेंजिग स्पॉट हैं, जैसे वाटरफॉल, लिविंग रूट ब्रिज (पेड़ों की जड़ों से बने ब्रिज) और बैलेंसिंग रॉक्स (ये पहाड़ियों के बीच ऐसे रॉक होते हैं, जिससे आने-जाने के लिए संतुलन बना रहता है) भी हैं। ये यहां आने वाले लोगों के लिए आकर्षण का बहुत बड़े केंद्र हैं।

यहां के बगीचों को भगवान का गार्डन भी कहा जाता है। यह गांव 2003 में एशिया का सबसे साफ और 2005 में भारत का सबसे साफ गांव बना। इस गांव पर एक डॉक्युमेंट्री भी बनाई गई थी ।

कूड़ेदान को भी आकर्षक रूप दिया है जो की काफी आकर्षक भी है 

जहाँ एक और सफाई के मामले में हमारे अधिकांश गाँवो, कस्बों और शहरों की हालत बहुत खराब है, वहीं यह एक सुखद, आश्चर्य की बात ये है कि एशिया का सबसे साफ़ सुथरा गाँव भी हमारे देश में है। यहाँ बेकार सामान को बाँस से बने कचरा पात्रों में डाला जाता है और इसको एक गड्डे में डालकर उसकी खाद तैयार की जाती है। ट्रेवल पत्रिका डिस्कवर इंडिया ने वर्ष २००३ में इस गाँव को एशिया में सबसे स्वच्छ बताया था।

यहां सुपारी की खेती आजीविका का मुख्य साधन है। यहां लोग घर से निकलने वाले कूड़े-कचरे को बांस से बने डस्टबिन में जमा करते हैं और उसे एक जगह इकट्ठा कर खेती के लिए खाद की तरह इस्तेमाल करते हैं। 

एक झलक: मेघालय
– दुनिया में सबसे अधिक बारिश इसी स्टेट में होती है।मौसिनराम विलेज सालभर पानी की बौछारें सहता है।
– इस राज्य में इंडिया के बेस्ट झरने हैं। नोहकलार्इ वॉटरफॉल्स दुनिया के खूबसूरत झरना में शुमार है।
– हरियाली और जंगल का विकास करने में मेघालय अव्वल है।
मेघालय के सभी शानदार अट्रैक्शन घूमने के लिए
 










कब लागू होगा भारत का बचा हुआ 25% संविधान?

वोट बैंक की राजनीति के कारण भारतीय संविधान अभीतक लगभग 75% ही लागू किया गया। अनुच्छेद-44 (समान नागरिक संहिता), अनुच्छेद-48 (गौ हत्या प्रतिबंध), अनुच्छेद-312 (भारतीय न्यायिक सेवा परीक्षा), अनुच्छेद-351 (हिंदी और संस्कृत का प्रचार) जैसे महत्वपूर्ण अनुच्छेद अभी तक पेंडिंग हैं। अनुच्छेद-51A (मौलिक कर्तव्य) को लोगों की इच्छा पर छोड़ दिया गया है। इसके लिए बनी जस्टिस वर्मा समिति के सुझाव अभीतक लागू नहीं किये गये।
बाबा साहब अम्बेडकर, सरदार पटेल, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, राजेंद्र प्रसाद, पंडित नेहरू, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, आचार्य कृपलानी, मौलाना कलाम, रफी अहमद किदवई एवं संविधान सभा के अन्य सभी सदस्यों ने समान शिक्षा, समान चिकित्सा, समान नागरिक संहिता, समान न्याय और सबके लिए समान अवसर का सपना देखा था, लेकिन उनका यह सपना आज तक पूरा नहीं हुआ।
 यह दुर्भाग्य है कि बाबा साहब की मुर्तियां तो खूब लगाई जा रही हैं, लेकिन उनके द्वारा बनाए गए संविधान को आजतक 100% लागू नहीं किया गया। 100% संविधान को लागू करना जरूरी देश की एकता-अखंडता को मजबूत करने के लिए बचे हुए 25% संविधान को तत्काल लागू करना अति-आवश्यक है।
 सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि बाबा साहब के नाम पर वोट मांगने वाले नेता भी संविधान को 100% लागू करने की मांग नहीं कर रहे हैं। समता मूलक समाज की स्थापना के लिए शिक्षा के अधिकार को 14 वर्ष तक के बच्चों का मौलिक अधिकार बनाया गया, लेकिन इसे आजतक ठीक से लागू नहीं किया गया। 
क्या वर्तमान शिक्षा पद्धति सामाजिक समरसता, आपसी भाईचारा, देशप्रेम की भावना को बढ़ाने और भ्रष्टाचार, अपराध, जातिवाद, सम्प्रदायवाद, धर्म परिवर्तन जैसी बुराइयों को समाप्त करने में सक्षम है? यदि देश के सभी केंद्रीय विद्यालय और नवोदय विद्यालय का स्लेबस एक समान हो सकता है, तो 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों (गरीब-अमीर-हिंदू-मुसलमान-सिख-ईसाई) का स्लेबस एक समान क्यों नहीं हो सकता है? भारत में नहीं होगा अनुच्छेद-351 तो कहां होगा?
 गांधीजी ने हिंदी और संस्कृत को देश की एकता के लिए अतिआवश्यक बताया था, लेकिन गांधीजी के नाम पर राजनीति करने वालों ने आजतक इसके लिए गम्भीर प्रयास नहीं लिया। यदि हिन्दुस्तान के स्कूलों में हिंदी और संस्कृति अनिवार्य नहीं होगी तो क्या पाकिस्तान और बंगलादेश में होगी? भारत की एकता-अखंडता को मजबूत करने और भारतीय संस्कृति को बचाने के लिए 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए हिंदी और संस्कृत विषय अनिवार्य करना आवश्यक है। 
स्वास्थ्य का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार स्वास्थ्य का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और इसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पस्ट किया है। जिस प्रकार 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार (राइट टू एजुकेशन) कानून लागू है उसी प्रकार उनके लिए स्वास्थ्य का अधिकार (राइट टू हेल्थ) कानून भी जरुरी है। 
देश का एक मैरेज ऐक्ट क्यों नहीं?
 भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। धर्म के आधार पर हिंदू मैरिज एक्ट, मुस्लिम मैरिज एक्ट और क्रिस्चियन मैरिज एक्ट क्यों? सबके लिए इंडियन मैरिज एक्ट क्यों नहीं? यदि गोवा में समान नागरिक संहिता लागू हो सकती है, तो पूरे देश में समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू हो सकती है? यह दुर्भाग्य है कि आजादी के सातवें दशक में अभी तक यूनिफार्म सिविल कोड का ड्राफ्ट भी तैयार नहीं किया गया।
 शाह बानों केस के बाद समान नागरिक संहिता का विषय कई बार सुप्रीमकोर्ट गया। कुछ दिन पहले मैंने भी इसके लिए जनहित याचिका दाखिल किया था, लेकिन माननीय सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि यह सरकार के कार्य क्षेत्र में आता है। भारत में समान नागरिक संहिता सरकार को समान नागरिक संहिता का एक ड्राफ्ट जनता के सामने रखना चाहिए जिससे इस पर खुली चर्चा हो सके।
 समान न्याय के लिए अनुच्छेद-44 को लागू करना अति-आवश्यक है
 महात्मा गांधी, दीनदयाल उपाध्याय, राम मनोहर लोहिया और देश के शहीदों ने भ्रष्टाचार-मुक्त भारत का सपना देखा था जो आजतक पूरा नहीं हुआ। पिछले सात दशक में कई लाख करोड़ रूपये की लूट हो चुकी है लेकिन एक भी भ्रष्टाचारी को न तो आजीवन कारावास हुआ और न ही फांसी, क्योंकि हमारे यहाँ ऐसा कोई कानून ही नहीं है। रुक नहीं रहा भ्रष्टाचार यदि लाखों करोड़ लूटने के बाद भी अधिकतम 7 वर्ष की सजा होगी तो जिसको भी मौका मिलेगा वह लूटेगा।
 ईमानदार देशों में भारत अभी 76वें स्थान पर है। यदि हम 2016 में चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा सुधार और आर्थिक सुधार द्वारा काली अर्थव्यवस्था को समाप्त कर दें तो 2020 तक हम दुनिया के टॉप 10 ईमानदार देशों में शामिल हो सकते हैं। यह दुर्भाग्य है कि आजतक किसी भी सरकार ने टॉप 10 ईमानदार देशों में शामिल होने का टारगेट ही नहीं लिया।
 नहीं हुई लोकपाल की नियुक्ति 
संसद में सर्वसम्मति से "सेंस ऑफ हाउस रेजोलुशन-2011" पास किया गया था, जिसके अंतर्गत केंद्र में एक स्वतंत्र-प्रभावी लोकपाल तथा सभी राज्यों में स्वतंत्र-प्रभावी लोकायुक्त नियुक्ति होना था। केंद्र सरकार को एक मॉडल लोकायुक्त बिल और एक सिटीजन चार्टर बिल पास करना था। दुर्भाग्यवश आजतक न तो सिटीजन चार्टर बिल पास किया गया और न ही मॉडल लोकायुक्त बिल। लोकपाल बिल पास हो गया लेकिन लोकपाल की नियुक्ति अभी तक नहीं हुयी। वैसे भी बिना सिटीजन चार्टर के लोकपाल और लोकायुक्त अधूरा है। क्या हम एक और आंदोलन की प्रतीक्षा कर रहे हैं?
 अन्ना आंदोलन के बाद बना उत्तराखंड लोकायुक्त बिल-2011 एक स्वतंत्र प्रभावी और देश का सबसे मजबूत लोकायुक्त बिल है। भारत सरकार को इसे मॉडल लोकायुक्त बिल के रूप में पास करना चाहिए और इसे लागू करने के लिए राज्य सरकारों को एक वर्ष का समय देना चाहिए। इसके साथ ही सिटीजन चार्टर बिल को भी तत्काल लागू करना चाहिये। भ्रष्टाचार दूर करने में यह कानून मील का पत्थर साबित होगा। एक और आंदोलन की जरूरत दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार ने जनलोकपाल बिल और स्वराज बिल को लागू करने का वादा किया था, लेकिन ऐतिहासिक बहुमत मिलने के बाद इसे भूल गए।
 जन लोकपाल बिल के नाम पर एक लूला-लंगड़ा कमजोर लोकायुक्त बिल पास कर दिया और स्वराज बिल का तो नाम लेना भी छोड़ दिया। पढ़ें- कौन हैं भारत माता, कहां से आया भारत माता की जय आप नेताओं की टोपी पर लिखा होता था "मुझे चाहिये जनलोकपाल" और "मुझे चाहिये स्वराज" लेकिन ऐतिहासिक बहुमत मिलते ही आआपा नेताओं ने टोपी पहनना ही छोड़ दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने मन का लोकायुक्त चाहते थे, लेकिन सुप्रीमकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद उनके मन की मुराद अधूरी रह गयी।
 कोई भी बना सकता है पार्टी 
वर्तमान चुनाव कानून के अनुसार मधुकोड़ा, सुरेश कलमाड़ी, लालू यादव, ए राजा, विजय माल्या, गोपाल कांडा, मदेरणा, यासीन मलिक, जैसे लोगों से लेकर शाहबाद के रहने वाले लल्लन सिंह भी राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं, पार्टी पदाधिकारी बन सकते हैं और विधायक-सांसद का चुनाव भी लड़ सकते हैं। मैं माननीय सांसदों से पूंछता हूँ कि सजायाफ्ता अपराधियों, भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों, हत्यारों, देशद्रोहियों के चुनाव लड़ने, पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर आजीवन प्रतिबंध क्यों नहीं होना चाहिये? चुनाव आयोग, विधि आयोग और जस्टिस वेंकटचलैया आयोग ने लोकतंत्र के मंदिर को साफ़ करने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
 चुनाव सुधार की मेरी जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में सुनवाई होनी है लेकिन कायदे से यह कार्य संसद का है। टॉप 10 ईमानदार देशों में क्यों नहीं भारत समय आ गया है कि स्वच्छ भारत अभियान के साथ-साथ स्वच्छ संसद और स्वच्छ विधानसभा अभियान भी शुरू किया जाये। भ्रष्टाचार-मुक्त भारत के लिए संसद और विधानसभा को स्वच्छ करना नितांत आवश्यक है। चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा सुधार और आर्थिक सुधार द्वारा काली अर्थव्यवस्था को समाप्त करने के लिए बहुत से सुझाव पेंडिंग पड़े हैं।
 आशा करता हूँ कि आगामी संसद शत्र में संविधान को 100 % लागू करने और चुनाव सुधार, न्यायिक सुधार, प्रशासनिक सुधार, पुलिस सुधार, शिक्षा सुधार और आर्थिक सुधार द्वारा काली अर्थव्यवस्था की समाप्ति पर जरूर चर्चा होगी। अच्छी नियति और सही नीति के द्वारा हम भी 2020 तक दुनिया के टॉप 10 ईमानदार देशों में शामिल हो सकते हैं। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और शहीदों को यह सबसे अच्छी श्रद्धांजली होगी। 
लेखक परिचय- अश्विनी उपाध्याय,  सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हैं।