Sunday 30 March 2014

गुजरात के पुलिस थानों में




गुजरात के पुलिस थानों में जल्द ही कैमरा युक्त आधुनिक टच-स्क्रीन मशीनें लगने जा रही हैं। इससे शिकायतकर्ताओं को मामला दर्ज कराने के लिए किसी के रसूख या सिफारिश की जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही शिकायत लेने से पुलिसवालों के इनकार करने पर लोग अपना वीडियो, ऑडियो रिकॉर्डिग करके सीधे जिला पुलिस मुख्यालय भेज सकेंगे।
अगले महीने से टच स्क्रीन का प्रयोग शुरू होने जा रहा है। अहमदाबाद के हर थाने में यह मशीन इंस्टाल की जाएगी। इस पर महज एक बटन दबा कर शिकायत की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिग तैयार की जा सकेगी। इसके बाद इसे सीधे जिला पुलिस मुख्यालय भेजा जा सकेगा।
'देश में टच स्क्रीन का इस तरह कहीं उपयोग नहीं हो रहा है। 25 से 30 हजार की लागत के इस डिवाइस की डिजाइन तैयार करने के लिए हमने आंध्रप्रदेश की एक आईटी कंपनी से कहा है ताकि शिकायत दर्ज करवाने की प्रक्रिया सरल हो।'Arvind Jadoun

Saturday 29 March 2014

सौंफ --

सौंफ --
सौंफ त्रिदोषनाशक है. इस की तासीर ठंडी है , पर यह जठराग्नि को मंद नहीं करती.
- आंखों की रोशनी सौंफ का सेवन करके बढ़ाया जा सकता है। सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लीजिए। इससे आंखों की रोशनी बढती है।
- सौंफ खाने से पेट और कब्ज की शिकायत नहीं होती। सौंफ को मिश्री या चीनी के साथ पीसकर चूर्ण बना लीजिए, रात को सोते वक्त लगभग 5 ग्राम चूर्ण को हल्केस गुनगने पानी के साथ सेवन कीजिए। पेट की समस्या नहीं होगी व गैस व कब्ज दूर होगा।
- डायरिया होने पर सौंफ खाना चाहिए। सौंफ को बेल के गूदे के साथ सुबह-शाम चबाने से अजीर्ण समाप्त होता है और अतिसार में फायदा होता है।
- खाने के बाद सौंफ का सेवन करने से खाना अच्छे से पचता है। सौंफ, जीरा व काला नमक मिलाकर चूर्ण बना लीजिए। खाने के बाद हल्के गुनगुने पानी के साथ इस चूर्ण को लीजिए, यह उत्तम पाचक चूर्ण है।
- अगर आप चाहते हैं कि आपका कोलेस्ट्रॉल स्तर न बढ़े तो खाने के लगभग 30 मिनट बाद एक चम्मच सौंफ खा लें।
- आधी कच्ची सौंफ का चूर्ण और आधी भुनी सौंफ के चूर्ण में हींग और काला नमक मिलाकर 2 से 6 ग्राम मात्रा में दिन में तीन-चार बार प्रयोग कराएं इससे गैस और अपच दूर हो जाती है।
- भूनी हुई सौंफ और मिश्री समान मात्रा में पीसकर हर दो घंटे बाद ठंडे पानी के साथ फँकी लेने से मरोड़दार दस्त, आँव और पेचिश में लाभ होता है। यह कब्ज को दूर करती है। के स्वास्थ्य लाभ होते हैं।
- बादाम, सौंफ और मिश्री तीनों बराबर भागों में लेकर पीसकर भर दें और रोज दोनों टाइम भोजन के बाद 1 टी स्पून लें। इससे स्मरणशक्ति बढ़ती है।
- दो कप पानी में उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दो या तीन बार लेने से कफ की समस्या समाप्त होती है। अस्थमा और खांसी में सौंफ सहायक है। कफ और खांसी के इलाज के लिए सौंफ खाना फायदेमंद है।
- गुड़ के साथ सौंफ खाने से मासिक धर्म नियमित होता है।
- सौंफ को अंजीर के साथ खाएँ और खाँसी व ब्रोन्काइटिस को दूर भगाएँ।
- गर्मियों में सौंफ को गला कर सेवन करने से ठंडक मिलती है। सौंफ के पावडर को शकर के साथ बराबर मिलाकर लेने से हाथों और पैरों की जलन दूर होती है।
- यह शिशुओं के पेट और उनके पेट के अफारे को दूर करने में बहुत उपयोगी है।एक चम्मच सौंफ को एक कप पानी में उबलने दें और 20 मिनट तक इसे ठंडा होने दें। इससे शिशु के कॉलिक का उपचार होने में मदद मिलती है। शिशु को एक या दो चम्मच से ज्यादा यह घोल नहीं देना चाहिए।
- जो लोग कब्ज से परेशान हैं, उनको आधा ग्राम गुलकन्द और सौंफ मिलाकर दूध के साथ रात में सोते समय लेना चाहिए। कब्ज दूर हो जाएगा।
- इसे खाने से लीवर ठीक रहता है। इससे पाचन क्रिया ठीक रहती है।
- रोजाना सुबह-शाम खाली सौंफ खाने से खून साफ होता है जो कि त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है, इससे त्वचा में चमक आती है।
- रोजाना दाल और सब्जी के तडके में सौंफ भी डाले.
- यदि बारबार मुंह में छाले हों तो एक गिलास पानी में चालीस ग्राम सौंफ पानी आधा रहने तक उबालें। इसमें जरा सी भुनी फिटकरी मिलाकर दिन में दो तीन बार गरारे करें।
कालाधन देश को मिलने से गरीबी, बेरोजगारी व महंगाई आदि तो एक दिन में ख़त्म हो जायेगी, इस काले धन पर देश के 121 करोड़ लोगों का हक़ है, ये हम किसी कीमत पर लेकर रहेंगे, कांग्रेस कालेधन की मात्रा व यह कैसे देश मिलेगा, इसको लेकर लगातार झूठ बोलती रही है, देश के साथ धोखा, गद्दारी व् विश्वासघात कर रही है, 2014 के आम चुनाव में इनको "वोट की चोट" से सबक सिखाने का वक़्त आ गया है.…

राष्ट्र एवं धर्मके लिए आत्मबलिदान करनेवाले छत्रपति संभाजी महाराज !

राष्ट्र एवं धर्मके लिए आत्मबलिदान करनेवाले छत्रपति संभाजी महाराज !



 

सारिणी


     संभाजीराजाने अपनी अल्पायुमें जो अलौकिक कार्य किए, उससे पूरा हिंदुस्थान प्रभावित हुआ । इसलिए प्रत्येक हिंदुको उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए । उन्होंने साहस एवं निडरताके साथ औरंगजेबकी आठ लाख सेनाका सामना किया तथा अधिकांश मुगल सरदारोंको युद्धमें पराजित कर उन्हें भागनेके लिए विवश कर दिया । २४ से ३२ वर्षकी आयुतक शंभूराजाने मुगलोंकी पाश्विक शक्तिसे लडाई की एवं एक बार भी यह योद्धा पराजित नहीं हुआ । इसलिए औरंगजेब दीर्घकाल तक महाराष्ट्रमें युद्ध करता रहा । उसके दबावसे संपूर्ण उत्तर हिंदुस्थान मुक्त रहा । इसे संभाजी महाराजका सबसे बडा कार्य कहना पडेगा । यदि उन्होंने औरंगजेबके साथ समझौता किया होता अथवा उसका आधिपत्य स्वीकार किया होता तो,  वह दो-तीन वर्षोंमें ही पुन: उत्तर हिंदुस्थानमें आ धमकता; परंतु संभाजी राजाके संघर्षके कारण औरंगजेबको २७ वर्ष दक्षिण भारतमें ही रुकना पडा । इससे उत्तरमें बुंदेलखंड, पंजाब और राजस्थानमें हिंदुओंकी नई सत्ताएं स्थापित होकर हिंदु समाजको सुरक्षा मिली ।

१. स्वराज्यका दूसरा छत्रपति !

     ज्येष्ठ शुद्ध १२ शके १५७९, गुरुवार दि. १४ मई १६५७ को पुरंदरगढपर स्वराज्यके दूसरे छत्रपतिका जन्म हुआ । शंभूराजाके जन्मके दो वर्ष पश्चात सईबाईकी मृत्यु हो गई एवं राजा मातृसुखसे वंचित हो गए । परंतु जिजाऊने इस अभावकी पूर्ति की । जिस जिजाऊने शिवबाको तैयार किया, उसी जिजाऊने संभाजी राजापर भी संस्कार किए । संभाजीराजे शक्तिसंपन्नता एवं रूपसौंदर्यकी प्रत्यक्ष प्रतिमा ही थे !

२. विश्वके प्रथम बालसाहित्यकार !

     १४ वर्षकी आयुतक बुधभूषणम् (संस्कृत), नायिकाभेद, सातसतक, नखशिख (हिंदी) इत्यादि ग्रंथोंकी रचना करनेवाले संभाजीराजे विश्वके प्रथम बालसाहित्यकार थे । मराठी, हिंदी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, कन्नड आदि भाषाओंपर उनका प्रभुत्व था । जिस तडपसे उन्होंने लेखनी चलाई, उसी तडपसे उन्होंने तलवार भी चलाई ।

३. धर्मपरिवर्तनके विरोधमें छत्रपति संभाजी महाराजकी कठोर नीति !

     ‘मराठों एवं अंग्रेजोंमें १६८४ में जो समझौता हुआ, उसमें छत्रपति संभाजी महाराजने एक ऐसी शर्त रखी थी कि अंग्रेजोंको मेरे राज्यमें दास(गुलाम) बनाने अथवा ईसाई धर्ममें कलंकित करने हेतु लोगोंका क्रय करनेकी अनुज्ञा नहीं मिलेगी’ (संदर्भ : ‘शिवपुत्र संभाजी’, लेखिका - डॉ. (श्रीमती) कमल गोखले)

४. हिंदुओंके शुद्धीकरणके लिए निरंतर सजग रहनेवाले संभाजीराजा

     संभाजी महाराजजीने ‘शुद्धीकरणके लिए’ अपने राज्यमें स्वतंत्र विभागकी स्थापना की थी । छत्रपति संभाजी महाराज एवं कवि कलशने बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन कर मुसलमान बनाए गए हरसुलके ब्राह्मण गंगाधर कुलकर्णीको शुद्ध कर पुनः हिंदु धर्ममें परिवर्तित करनेका साहस दिखाया । (यह एक साहस ही था; क्योंकि उस समय ऐसे हिंदुओंको पुनः अपने धर्ममें  लेनेके लिए हिंदुओंद्वारा ही अत्यधिक विरोध होता था । इसलिए गंगाधरको त्र्यंबकेश्वर भेजकर वहांकी प्रायश्चित्त विधि पूरी करा ली गई । उसे  शुद्धिपत्र देकर अपनी पंक्तिमें भोजनके लिए बिठाकर पुनर्प्रवेश करा लिया गया ।)’ संभाजीराजाजीकी इस उदारताके कारण बहुतसे हिंदु पुनः स्वधर्ममें आ गए !

५. पोर्तुगीजोंकी नाकमें दम करनेवाले छत्रपति संभाजी महाराज !

५ अ. छत्रपतिजीके गढोंमें मर्द फोंडाका ‘मर्दनगढ’ !

     फोंडाका गढ पोर्तुगीज-मराठा सीमापर था । गोवाकी पोर्तुगीज सत्ताको उकसाने तथा उस सत्ताको पूरी तरहसे उखाडनेके लिए घेरा देनेका जो प्रयास छत्रपति शिवाजी महाराजने किया था, उसमें फोंडा गढ एक महत्त्वपूर्ण दुवा था । उसका नाम था ‘मर्दनगढ’ । पोर्तुगीजोंने मर्दनगढके तटपर तोपोंका वर्षाव  चालू रखा । तटमें और एक दरार पडी । ९ नवंबरको पोर्तुगीजोंने घाटीसे अंदर प्रवेश करनेका षडयंत्र रचा । उस समय संभाजी महाराज राजापुरमें थे । उनका ध्यान इस लडाईपर केंद्रित था । महाराजने फोंडाके मोरचेपर स्वयं उपस्थित रहनेका निश्चय किया । वे शीघ्रतासे फोंडा पहुंचे । उनका हठ एवं ईर्ष्या इतनी दुर्दम्य थी कि उन्होंने ८०० सवारोंकी सुरक्षामें ६०० पैदल सैनिकोंको भली-भांति किलेमें पहुंचाया । पोर्तुगीज उनके धैर्य एवं निडर मानसिकताको देखते ही रह गए । उन्हें उनपर आक्रमण करनेका भान भी नहीं रहा ।
     संभाजी महाराज युद्धमें सम्मिलित हुए, यह देखते ही वाइसरॉयने अपने मनमें ऐसा पक्का निश्चय किया कि यह युद्ध उसे बहुत महंगा पडेगा । महाराजकी उपस्थिति देखकर मराठोंको होश आया । किल्लेदार येसाजी कंक छत्रपति शिवाजी महाराजके समयका योद्धा था । अब वह वृद्ध हो चुका था; परंतु उसमें युवकको हटानेकी शूरता, धीरता एवं सुदृढता थी । इस वृद्ध युवकने पराक्रमकी पराकाष्ठा की । उसने अपने लडके कृष्णाजीके साथ चुनिंदे सिपाहियोंको साथ लेकर गढके बाहर जाकर पोर्तुगीजोंसे लडाई की । जिनके साथ वे लडे, उनको उन्होंने पूरी तरह पराजित किया; परंतु इस मुठभेडमें येसाजी एवं उनके सुपुत्र कृष्णाजीको भयानक चोट लगी ।  १० नवंबरको पोर्तुगीजोंने लौटना आरंभ किया । मराठोंने उनपर छापे मारकर उन्हें अत्यधिक परेशान किया । तोप तथा बंदूकोंको पीछे छोडकर उन्हें पलायन करना पडा । उन्होंने चावलके ३०० बोरे एवं २०० गधोंपर रखने जितना साहित्य पीछे छोडा ।

५ आ. पोर्तुगीज-मराठा संघर्ष अंततक चालू ही रहा !

     छत्रपति संभाजीराजाकी मृत्युतक पोर्तुगीज एवं छत्रपति संभाजीराजे दोनोंमें युद्ध चालू रहा । तबतक मराठोंने पोर्तुगीजके नियंत्रणमें रहनेवाला जो प्रदेश जीत लिया था, उसका बहुतसा अंश मराठोंके नियंत्रणमें था । गोवाके गवर्नर द रुद्रिगु द कॉश्त २४.१.१६८८ को पोर्तुगालके राजाको लिखते हैं : ‘...छत्रपति संभाजीराजासे चल रहा युद्ध अबतक समाप्त नहीं हुआ । यह युद्ध वाइसरॉय कॉट द आल्वेरके राज्यकालमें आरंभ हुआ था ।’

६. बहनोई गणोजी शिर्के की बेईमानी एवं मुगलोंद्वारा संभाजीराजाका घेराव !

     येसुबाईके वरिष्ठ बंधु अर्थात शंभूराजाके बहनोई, गणोजी शिर्के हिंदवी स्वराज्यसे बेईमान हो गए । जुल्पिकार खान रायगढपर आक्रमण करने आ रहा है यह समाचार मिलते ही शंभूराजा सातारा-वाई-महाड मार्गसे होते हुए रायगढ लौटनेवाले थे; परंतु मुकर्रबखान कोल्हापुरतक आ पहुंचा । इसलिए शंभूराजाने संगमेश्वर मार्गके चिपलन-खेड मार्गसे रायगढ जानेका निश्चय किया । शंभूराजेके स्वयं संगमेश्वर आनेकी वार्ता आसपासके क्षेत्रमें हवासमान फैल गई । शिर्केके दंगोंके कारण उद्ध्वस्त लोग अपने परिवाद लेकर संभाजीराजाके पास आने लगे । जनताके परिवादको समझकर उनका समाधान करनेमें उनका समय व्यय हो गया एवं संगमेश्वरमें ४-५ दिनतक निवास करना पडा । उधर राजाको पता चला कि कोल्हापुरसे मुकर्रबखान निकलकर आ रहा है । कोल्हापुर से संगमेश्वरकी दूरी ९० मीलकी तथा वह भी सह्याद्रिकी घाटीसे व्याप्त कठिन मार्ग था ! इसलिए न्यूनतम ८-१० दिनके अंतरवाले संगमेश्वरको बेईमान गणोजी शिर्केने मुकर्रबखानको समीपके मार्गसे केवल ४-५ दिनमें ही लाया । संभाजीसे प्रतिशोध लेनेके उद्देश्यसे शिर्केने बेईमानी की थी तथा अपनी जागीर प्राप्त करने हेतु यह कुकर्म किया । अतः १ फरवरी १६८९ को मुकर्रबखानने अपनी ३ हजार सेनाकी सहायतासे शंभूराजाको घेर लिया । 

७. संभाजीराजाका घेरा तोडनेका असफल प्रयास !

     जब शंभूराजेके ध्यानमें आया कि संगमेश्वरमें जिस सरदेसाईके बाडेमें वे निवासके लिए रुके थे, उस बाडेको खानने घेर लिया, तो उनको आश्चर्य हुआ, क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि इतने अल्प दिनोंमें खानका वहां आना असंभव था; परंतु यह चमत्कार केवल बेईमानीका था, यह भी उनके ध्यानमें आया । शंभूराजाने पूर्वसे ही अपनी फौज रायगढके लिए रवाना की थी तथा केवल ४००-५०० सैन्य ही अपने पास रखे थे । अब खानका घेराव तोडकर रायगढकी ओर प्रयाण करना राजाके समक्ष एकमात्र यही पर्याय शेष रह गया था; इसलिए राजाने अपने सैनिकोंको शत्रुओंपर आक्रमण करनेका आदेश दिया । इस स्थितिमें भी शंभुराजे, संताजी घोरपडे एवं खंडोबल्लाळ बिना डगमगाए शत्रुका घेराव तोडकर रायगढकी दिशामें गतिसे निकले । दुर्भाग्यवश इस घमासान युद्धमें मालोजी घोरपडेकी मृत्यु हो गई; परंतु संभाजीराजे एवं कवि कलश घेरावमें फंसगए । इस स्थितिमें भी संभाजीराजाने अपना घोडा घेरावके बाहर निकाला था; परंतु पीछे रहनेवाले कवि कलशके दाहिने हाथमें मुकर्रबखानका बाण लगनेसे वे नीचे गिरे एवं उन्हें बचाने हेतु राजा पुनः पीछे मुडे तथा घेरावमें फंस गए ।

८. अपनोंकी बेइमानीके कारण राजका घात !

     इस अवसरपर अनेक सैनिकोंके मारे जानेके कारण उनके घोडे इधर-उधर भाग रहे थे । सर्वत्र धूल उड रही थी । किसीको भी  स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था । इसका लाभ उठाकर शंभूराजाने पुनः सरदेसाईके बाडेमें प्रवेश किया । वहांपर मात्र उनका घोडा था । धूल स्थिर होनेपर गणोजी शिर्केने शंभूराजाके घोडेको पहचान लिया; क्योंकि राजाओंके घोडेके पांवमें सोनेका तोडा रहता था, यह शिर्केको ज्ञात था; इसलिए उन्होंने खानकी सेनाको समीपमें ही संभाजीको ढूंढनेकी सूचना की । अंततोगत्वा मुकर्रबखानके लडकेने अर्थात इरवलासखानने शंभूराजाको नियंत्रणमें ले लिया । अपनोंकी बेईमानीके कारण अंतमें सिंहका शावक शत्रुके हाथ लग ही गया । जंग जंग पछाडकर भी निरंतर ९ वर्षोंतक जो सात लाख सेनाके हाथ नहीं लगा, जिसने बादशाहको कभी स्वस्थ नहीं बैठने दिया, ऐसा पराक्रमी योद्धा अपने लोगोंकी बेईमानीके कारण मुगलोंके जालमें फंस गया ।

९. शंभुराजाको देखनेके लिए मुगलसेना आतुर !

     संगमेश्वर से बहादुरगढकी दूरी लगभग २५० मीलकी है; परंतु मुकर्रबखानने मराठोंके भयसे केवल १३ दिनोंमें यह दूरी पार की एवं १५ फरवरी १६८९ को शंभूराजे तथा कवि कलशको लेकर वह बहादुरगढमें प्रवेश किया । पकडे गए संभाजीराजा कैसे दिखाई देते हैं, यह देखनेके लिए मुगल सेना उत्सुक हो गई थी । औरंगजेबकी छावनी अर्थात बाजार बुणगोंका विशाल नगर ही था । छावनीका घेरा ३० मीलका था, जिसमें ६० सहस्र घोडे, ४ लाख पैदल, ५० सहस्र ऊंट, ३ सहस्र हाथी, २५० बाजारपेठ तथा जानवर कुल मिलाकर ७ लाख अर्थात बहुत बडी सेना थी । इसके पश्चात भी आयुके २४ वें से ३२ वें वर्षतक शंभुराजाने मुगलोंकी पाश्विक शक्तिसे लडाई की तथा यह योद्धा एक बार भी पराजित न होनेवाला था ।

१०. प्रखर हिंदु धर्माभिमानी छत्रपति संभाजीराजा

१० अ. शंभुराजाको जेरबंद किए जानेपर अनादर सहन करना

     मुकर्रबखानने शंभुराजा एवं कवि कलशको जेरबंद कर हाथीपर बांधा । संभाजीराजाजीका, विदुषककी वेश-भूषामें, उस समय चित्रकारद्वारा बनाया गया चित्र हाथ पैरोंको लकडीमें फंसाकर रक्तरंजित अवस्थामें, अहमदनगरके संग्रहालयमें आज भी देखा जा सकता है । असंख्य यातनाएं सहनेवाले यह हिंदु राजा चित्रमें अत्यंत क्रोधित दिखाई देते हैं । संभाजीराजाजीके स्वाभिमानका परिचय इस क्रोधित भाव भंगिमासे ज्ञात होता है ।

१० आ. परिणामोंकी चिंता न करते हुए बादशाहके समक्ष नतमस्तक न होना

     जिस समय धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज एवं कवि कलशको लेकर मुकर्रबखान छावनीके पास आया, उस समय औरंगजेबने उसके स्वागतके लिए सरदारखानको भेजा । संभाजी महाराज वास्तवमें पकडे गए, यह देखकर बादशाहको अत्यानंद हुआ । अल्लाके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु बादशहा तख्तसे नीचे उतरा एवं घुटने टेककर ‘रूकता’ कहने लगा । कवि कलश बाजूमें ही खडे थे । यह दृष्य देखकर शीघ्र ही कवि कलशने एक काव्य कहा,
यावन रावन की सभा संभू बंध्यो बजरंग ।
लहू लसत सिंदूरसम खुब खेल्यो रनरंग ।।
जो रवि छवि लछत ही खद्योत होत बदरंग ।
त्यो तुव तेज निहारी ते तखत त्यज्यो अवरंग ।।
अर्थ : जिस प्रकार रावणकी सभामें हनुमानजीको लाया गया था, उसीप्रकार संभाजीराजाको औरंगजेबके समक्ष उपस्थित किया गया है । जैसे हनुमानजीकी देहपर सिंदुर शोभित होता है, वैसे ही भीषण युद्धमें देह रक्तसे सन गई है । इसलिए हे राजन, तुझे यह सुशोभित कर रहा है । जिसप्रकार सूरजको देखते ही जुगनूका प्रकाश नष्ट होता है, उसीप्रकार तेरा तेज देखकर औरंगजेबने अपने सिंहासनका त्याग किया है । इस कवितासे अपमानित होकर औरंगजेबने कवि कलशकी जीभ काटनेकी आज्ञा दी ।
     बादशाहके समक्ष खडा करनेपर इखलासखानद्वारा बार बार अभिवादन करनेको कहनेपर भी शंभु राजाने तनिक भी गर्दन नहीं हिलाई एवं बादशहाको थोडा भी महत्त्व नहीं दिया । इसके विपरीत वे संतप्त होकर बादशाहकी ओर देख रहे थे । संतप्त बादशाहने उन्हें उसी अवस्थामें कारागृहमें डालनेका आदेश दिया ।

१० इ. शंभुराजा एवं कवि कलशद्वारा शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं सहन करना

     शंभूराजा एवं कवि कलशकी आंखोंमें तपती सलाखें घुमाकर उनकी आंखें फोडी गई । तत्पश्चात दोनोकी जिह्वाएं काटी गई । उस दिनसे दोनोंने अन्न-जलका त्याग किया । मुसलमानी सत्ताओंकी परंपराके अनुसार यह कोई नई बात नहीं थी । उनको अत्यंत क्रूरता एवं निर्दयतासे शत्रुका नाश करनेकी धर्माज्ञा ही है; परंतु एक स्वतंत्र राजाको ऐसी ही क्रूर पद्धतिसे हलाहल करना अमानवीयताकी चरमसीमा है । यह घटना १७.२.१६८९ को घटी ।
     तदुपरांत कविराजाके हाथ, पांव ऐसे एकएक अवयव तोडे गए एवं वे रक्तमांस नदीके किनारेपर फेंके गए । पंधरा मैलकी परिधिमें फैले इस बादशाहके तलपर अत्यधिक सन्नाटा फैला था । कवि कलशको हलाहल कर मारे जानेका समाचार सर्वत्र फैल गया था । मानों कवि कलशपर होनेवाले अत्याचार शंभुराजापर किए जानेवाले प्रत्येक अत्याचारका पूर्व प्रयोग ही होता था !
     शंभुराजाको पक्के खंबेसे बांधा गया । दो बलवान राक्षसोंने शंभुराजाके शरीरमें बाघनख घुसाकर उनकी त्वचा टरटर फाड दी । चमडी छिली जा रही थी तथा टूटने लगी थी । शंभुराजाने प्राण बचानेके लिए क्रंदन नहीं किया; परंतु दांतसे दांत दबाकर वे उस अत्याचारको सहन करनेका प्रयास कर रहे थे । राजाका फाडा गया जीवित शरीर स्थानपर ही थडथड उड रहा था ।

१० ई. अत्यधिक छल सहन कर इस्लाम न स्वीकारते

हुए आत्मबलिदान करनेवाले संभाजीराजाका अलौकिक सामर्थ्य !

     संभाजीराजाने धर्मपरिवर्तन करना अस्वीकार किया; इसलिए औरंगजेबने संभाजी राजाके साथ अनगिनत छल किए । उनकी आंखोंमें मिर्च डाली । एकएक अवयव तोडे, उसमें नमक डाला, तो भी संभाजीराजाने हिंदु धर्मका त्याग नहीं किया । संभाजीराजामें मृत्युको भी लज्जा आने समान अत्यंत अलौकिक सामर्थ्य उस्फूर्त रूपसे अभिव्यक्त हुआ ।

११. इतिहासमें धर्मके लिए अमर होनेवाले संभाजीराजा

     अंतमें औरंगजेबने राजाजीकी आंखें फोड डालीं, जीभ काट दी, फिर भी राजाजीको मृत्यु स्पर्श न कर सकी । दुष्ट मुगल सरदारोंने उनको कठोर यातनाएं दीं । उनके अद्वितीय धर्माभिमानके कारण यह सब सहन करना पडा । १२ मार्च १६८९को गुढी पाडवा (नववर्षारंभ) था । हिंदुओंके त्यौहारके दिन उनका अपमान करनेके लिए ११ मार्च फाल्गुन अमावस्याके दिन संभाजीराजाजीकी हत्या कर दी गई । उनका मस्तक भालेकी नोकपर लटकाकर उसे सर्व ओर घुमाकर मुगलोंने उनका अत्यधिक अपमान किया । इस प्रकार पहली फरवरीसे ग्यारह मार्च तक ३९ दिन यमयातना सहन कर संभाजीराजाजीने हिंदुत्वके तेजको बढाया । धर्मके लिए अपने प्राणोंको न्योछावर करनेवाले, हिंदवी स्वराज्यका विस्तार कर पूरे हिंदुस्थानमें भगवा ध्वज फहरानेकी इच्छा रखनेवाले संभाजीराजा इतिहासमें अमर हो गए । औरंगजेब इतिहासमें राजधर्मको पैरों तले रौंदनेवाला अपराधी बन गया ।

१२. संभाजीराजाजीके बलिदानके पश्चात महाराष्ट्रमें क्रांति हुई

     संभाजीराजाजीके बलिदानके कारण महाराष्ट्र उत्तेजित हो उठा । पापी औरंगजेबके साथ मराठोंका निर्णायक संघर्ष आरंभ हुआ । ‘पत्ते-पत्तेकी तलवार बनी और घर-घर किला बन गया, घर-घरकी माताएं, बहनें अपने पतियोंको राजाजीके बलिदानका प्रतिशोध लेनेको कहने लगीं’ इसप्रकार उस कालका सत्य वर्णन किया गया है । संभाजीराजाजीके बलिदानके कारण मराठोंका स्वाभिमान पुन: जागृत हुआ, महारानी येसुबाई, तारारानी, संताजी घोरपडे, धनाजी जाधव, रामचंद्रपंत अमात्य, शंकराजी नारायण समान मराठा वीर-वीरांगनाओंका उदय हुआ । यह तीन सौ वर्ष पूर्वके राष्ट्रजीवनकी अत्यंत महत्त्वपूर्ण गाथा है । इससे इतिहासको एक नया मोड मिला । जनताकी सहायता और विश्वासके कारण मराठोंकी सेना बढने लगी और सेनाकी संख्या दो लाख तक पहुंच गई । सभी ओर प्रत्येक स्तरपर मुगलोंका घोर विरोध होने लगा । अंतमें २७ वर्षके निष्फल युद्धके उपरांत औरंगजेबका अंत हुआ और मुगलोंकी सत्ता शक्ति क्षीण होने लगी एवं हिंदुओंके शक्तिशाली साम्राज्यका उदय हुआ ।
शाहीर योगेशके शब्दोमें कहना है, तो...
‘देश धरमपर मिटनेवाला शेर शिवाका छावा था ।
महापराक्रमी परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था ।।१।।
         तेजःपुंज तेजस्वी आंखें निकल गई पर झुका नहीं ।
         दृष्टि गई पर राष्ट्रोन्नतिका दिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं ।।२।।
दोनों पैर कटे शंभूके ध्येय मार्गसे हटा नहीं ।
हाथ कटे तो क्या हुआ सत्कर्म कभी भी छूटा नहीं ।।३।।
         जिह्वा काटी रक्त बहाया धरमका सौदा किया नहीं ।।
         शिवाजीका ही बेटा था वह गलत राहपर चला नहीं ।।४।।
रामकृष्ण, शालिवाहनके पथसे विचलित हुआ नहीं ।।
गर्वसे हिंदु कहनेमें कभी किसीसे डरा नहीं ।।
         वर्ष तीन सौ बीत गए अब शंभूके बलिदानको ।
         कौन जीता कौन हारा पूछ लो संसारको ।।५।।
कोटि-कोटि कंठोंमें तेरा आज गौरवगान है ।
अमर शंभू तू अमर हो गया तेरी जयजयकार है ।।६।।
         भारतभूमिके चरणकमलपर जीवन पुष्प चढाया था ।
         है दूजा दुनियामें कोई, जैसा शंभू राजा था ।।७।।’
- शाहीर योगेश

आखिर कब मिलेगा भगत सिंह को शहीद का दर्जा ?

देश की ख़ातिर अपनी जान कुर्बान करने वाले शहीद भगत सिंह को शहादत के 83 साल बाद भी शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है। भगत सिंह के परपोते यादविन्दर सिंह की तरफ से गृह मंत्रालय में दायर की गई एक आर. टी. आई. के जवाब में इस बात का खुलासा पिछले साल अगस्त में हुआ था। इस खुलासे के 6 महीने बीत जाने के बावजूद भी सरकार ने इस दिसा में कोई कदम नहीं उठाया है।
शहीद भगत सिंह की जीवन पर कई साल से काम कर रहे भगत सिंह के भांजे जगमोहन सिंह का कहना है कि सरकार को शहीद भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने साथ-साथ नौजवानों में उन की विचारधारा पहुंचाने की भी कोशिश करनी चाहिए।
शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को 23 मार्च 1931 को अंग्रेज़ों की तरफ से लाहौर जेल में फांसी दे दी गई थी और तीनों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर नज़दीक हुसैनीवाला में किया गया था।जालंधर के देशभगत यादगार हाल में जंगे आज़ादी के शहीदें पर काम करने वाले देश भक्त यादगार हाल ट्रस्ट के ट्रस्टी गुरमीत सिंह का कहना है कि भगत सिंह बारे देश का बच्चा-बच्चा जानता है और इन बहादरों की शहादत के लिए किसी सरकारी प्रमाण की ज़रूरत नहीं है।
शहीद भगत सिंह के परपोते यादविन्दर सिंह भगत सिंह को सरकारी कागज़ों में शहीद का दर्जा दिलाने के लिए यत्न कर रहे हैं परन्तु अफ़सोस की बात है कि न तो पंजाब सरकार और न ही केंद्र सरकार ने जंगे आज़ादी के इस हीरो की शहादत को सरकारी प्रमाण देने के लिए कोई कदम उठाया है। ऐसा शाहद इस लिए हो रहा है क्योंकि भगत सिंह के नाम पर इन राजनीतिज्ञों को वोट नहीं मिलते।

पाकिस्तानी सर्टिफिकेट है, तो यूपी ‌में ‌मिलेगी जॉब !

अजीब बिडंबना है। यूपी में नौकरी के लिए यहां की डिग्रियों पर लाहौर का अदना सा सर्टिफिकेट भारी पड़ रहा है।
असल में प्रशिक्षित स्नातक प्रवक्ता (टीजीटी) (कला विषय) की भर्ती के लिए२०१३ में विज्ञापन जारी किया गया था।
अब इसमें लाहौर के मेयो स्कूल ऑफ आर्ट्स की टीचर्स सीनियर सर्टिफिकेट को तरजीह देने की बात सामने आई है।

आजादी से पहले की हैं अर्हताएं

चूंकि भर्तियां इंटरमीडिएट शिक्षा कानून १९२१  के मुताबिक होनी हैं इसलिए इसमें अर्हताएं भी आजादी के पहले वाली ही हैं। 
इसमें भर्ती के लिए भारत के राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालयों की बैचलर ऑफ विजुअल आर्ट्स (बीवीए) और बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए) की डिग्रियां तभी मान्य हैं जब उसमें टेक्निकल ड्राइंग शब्द का उल्लेख हो। 
यह न होने पर भर्ती के लिए इन डिग्रियों का कोई महत्व नहीं है। 

यूजीसी से मिली है मान्यता

इसमें एक उलटबांसी और है। ये डिग्रियां यूजीसी से मान्य हैं और विश्वविद्यालयों में भर्ती के लिए जरूरी हैं। 
इस विसंगति को दूर करने लिए लखनऊ विश्वविद्यालय के कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्राचार्य पी. राजीवनयन और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शनकला विभाग के अध्यक्ष अजय जेटली ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर शैक्षणिक अर्हता के नियमों में संशोधन की मांग की है। 
दोनों ने राज्य और केंद्रीय विश्वविद्यालय की बैचलर ऑफ विजुअल आर्ट्स (बीवीए) और बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (बीएफए) पर पाकिस्तानी सर्टिफिकेट को तरजीह देने को गलत ठहराया है।

क्या कहना है कि इनका

लखनऊ विश्वविद्यालय के कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर राजीवनयन का कहना है कि चयन प्रक्रिया के लिए आजादी से पहले बने कानून को आधार बनाना गलत है। 
बीवीए या बीएफए के कोर्स को शैक्षणिक अर्हता में शामिल किया जाना चाहिए। वहीं इलाहाबाद विवि के दर्शनकला विभाग के ‌विभागाध्यक्ष डॉ. अजय जेटली का कहना है कि लाहौर की सर्टिफिकेट परीक्षा को अर्हता में शामिल रखना ही गलत है। 
मुम्बई की थर्ड ग्रेड ड्राइंग परीक्षा कराने के लिए महाराष्ट्र में कई जगह प्राइवेट लोगों को फ्रेंचाइजी दी गई है। इसमें भी गुणवत्ता नहीं। पाकिस्तानी सर्टिफिकेट को तो कतई महत्व न दिया जाए।

Thursday 27 March 2014

अहमदाबाद आइये तो लाल दरवाजा के पास स्थित लकी रेस्टोरेंट

Jitendra Pratap Singh ने 4 नए चित्र जोड़े.
मित्रो, अभी अहमदाबाद आइये तो लाल दरवाजा के पास स्थित लकी रेस्टोरेंट में चाय के साथ मस्काबन खाना न भूले ... और भी कब्रों के बीच !!
क्‍या आपने कभी कब्रों के चारों ओर बैठकर खाना खाया है? जी हां, अहमदाबाद में एक रेस्‍टोरेंट ऐसा है जहां कब्रों के किनारे बैठकर लोग खाने खाते हैं और चाय की चुस्कियों के बीच गप्‍पे मारते हैं. यही नहीं, इस रेस्‍टोरेंट के मालिक का दावा है कि शमशान की जमीन पर बिजनेस शुरू करने से उन्‍हें बहुत फायदा हो रहा है.
कृषणनन कुट्टी ने जब पुराने कब्रिस्‍तान पर रेस्‍टोरेंट खोलने के बारे में सोचा तो उन्‍होंने कब्रों को हटाने के बजाए उनके चारों ओर ही कुर्सी-मेज लगाने का फैसला किया. यही नहीं उन्‍होंने इस रेस्‍टोरेंट का नाम रखा है न्‍यू लकी रेस्‍टोरेंट.
यह कब्रें पुराने मुस्लिम कब्रिस्‍तान की हैं और आज यह जगह बूढ़े और जवान लोगों के लिए खाने-पीने का मशहूर अड्डा बन गई है. कुट्टी कहते हैं, 'कब्र अच्‍छी किस्‍मत लेकर आती है. इन कब्रों की वजह से हमारा बिजनेस फल-फूल रहा है. यहां आकर लोगों को अनूठा अनुभव मिलता है. कब्रें पहले जैसी थीं अब भी वैसी ही हैं. हमारे ग्राहकों को इससे कोई आपत्ति नहीं'.


अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी की रैली में मोदी के खिलाफ जो झूठ फैलाया है उसका सिलसिलेवार सत्य इस प्रकार है.
केजरीवाल का झूठ 1- अगर मोदी सत्ता में आते हैं तो किसानों की ज़मीन चली जाएगी और ये जमीन बड़े उद्योगपतियों को दे दी जाएगी.
गुजरात का सत्य- गुजरात की जमीन अधिग्रहण नीति की सुप्रीम कोर्ट तक ने तारीफ की है. गुजरात की इस नीति के मुताबिक अगर किसानों की ज़मीन अधिग्रहीत की जाती है तो उसका बाज़ार मूल्य दिया जाता है और जमीन अधिग्रहण बिना किसानों की सहमति के नहीं किया जाता. देश के अऩ्य राज्यों में जमीन अधिग्रहण के मुद्दे पर किसानों के बड़े आंदोलन होते रहे हैं. लेकिन गुजरात में ऐसे आंदोलन नहीं होते क्योंकि हमारी नीति किसानों के हित में है.
केजरीवाल का झूठ 2- गुजरात में पिछले दस सालों में 5874 किसानों ने आत्महत्या की.
गुजरात का सत्य- केजरीवाल का ये सबसे बड़ा झूठ है. गुजरात की अपनी पिछली यात्रा के दौरान केजरीवाल ने इसी किस्म का झूठ चलाया था और कहा था कि पिछले 10 सालों में 800 किसानों ने आत्महत्या की है. केजरीवाल आंकड़े का भ्रमजाल रचने में इतने माहिर हैं कि जिंदा लोगों को भी आत्महत्या कर लेने वाले मृतकों में गिना देते हैं. 15 दिनों में ही उनके हिसाब से गुजरात में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 800 से बढ़कर 5874 हो गई. केजरीवाल कितना झूठ फैलाते हैं ये उसका एक उदाहरण है. हकीकत ये है कि पिछले 10 सालों में गुजरात में फसल का नुकसान होने की वजह से सिर्फ 1 किसान ने आत्महत्या की है.
केजरीवाल का झूठ 3- अगर नरेंद्र मोदी सत्ता में आएंगे तो रीटेल क्षेत्र में एफडीआई की इजाज़त देंगे और उससे छोटे व्यापारियों का धंधा रोजगार खत्म हो जाएगा.
गुजरात का सत्य- बीजेपी की एफडीआई संबंधी बहुत साफ है और रीटेल क्षेत्र में एफडीआई के प्रवेश के खिलाफ है बीजेपी.
केजरीवाल का झूठ 4- गुजरात में 60 हज़ार लघु और मझोले उद्योग बंद हो गए हैं.
गुजरात का सत्य- केजरीवाल का ये सरासर झूठ है. सच्ची हकीकत ये है कि गुजरात में 5 लाख 19 हज़ार लघु और मध्यम उद्योग रजिस्टर्ड हैं. केंद्र सरकार ने 2001-2002 में जो सर्वे किया उसके मुताबिक 22 फीसदी यूनिट बंद थीं. 2006-2007 में ये संख्या घटकर 12 फीसदी रह गई और 31 मार्च 2012 के दिन राज्य में मात्र 5 फीसदी लघु और मध्यम उद्योग बंद थे. जो 519000 लघु और मध्यम उद्योग रजिस्टर्ड हैं उसमें 95 फीसदी कार्यरत हो तो केजरीवाल के आरोप कितने झूठे हैं ये अपने आप में साबित हो जाता है. गुजरात में लघु और मध्यम उद्योग देश में सबसे आगे है और इस क्षेत्र की उत्पादन विकास दर भी गुजरात में ऊंची है ये केजरीवाल को दिखा नहीं है.

Monday 24 March 2014

सुप्रीमकोर्ट पहले ही निर्देश जारी कर चुकी है की भारत में
एक समान नागरिक संहिता लागू करो..सरकार वोटबैंक के
चक्कर में ऐसा नहीं कर
रही है. .मुसलमानों के लिए अलग से ''शरिया कानून''
की छूट दी है......
मुसलमानों की यह दलील है की शरीयत का कानून कुरान
पर आधारित है और इसे ख़ुद अल्लाह ने बनाया है ,इसलिए
इसमे किसी प्रकार का परिवर्तन या सुधार करना सम्भव नहीं
है शरीयत संविधान और देश के कानून से ऊपर है
चलो मान लेते है.......किन्तु उसी शरिया कानून से सारे
मुस्लिमो को सजा दो........
कुरान की सूरे मायदा 5 की आयत 33 में कुछ अपराधों और
उनकी सजाओं के बारे में लिखा है ,जिसे इस्लामी परिभाषा में
हुदूद कहा जाता है .इसके
अनुसार-
1-व्यभिचार करने की सज़ा पत्थर मार कर जान
लेना है ,जिसे रजम कहा जाता है .
2-यदि कोई मुसलमान विवाहित मुस्लिम व्यक्ती पर
व्यभिचार का झूठा आरोप लगाए तो उसे 80 कोडे मारे
जायेंगे।
3-इस्लाम धर्म छोड़ने की सज़ा मौत है .
4-शराब पीने की सज़ा 80 कोडे .
5-चोरी करने पर कलाई के ऊपर से दायाँ हाथ काटना .
6-रहज़नी और लूट के लिए हाथ पैर काटने की सज़ा .
7-डाका डालना जिस से किसी की मौत भी हो जाए ,तो
इसकी सज़ा तलवार कत्ल करना या सूली चढाना है .
यदि यही शरीयत का कानून है तो सभी मुसलमान के
ऊपर यह कानून लागू होना चाहिए .....देश मे मुस्लिमो
के ऊपर ''शरिया कानून'''से ही सजा सुनाये...........
लेकिन इन अपराधों के लिए मुस्लमान
यहाँ की अदालतों में ही जाना क्यों पसंद करते हैं .कारण
साफ़ है की ,ज्यादातर मुसलमान इन्हीं अपराधों के
दोषी पाये जाते हैं ,और अगर शरीयत के मुताबिक उन्हें
सज़ा दी जायेगी तो एक दो साल में ही मुसलामानों की संख्या
आधी रह जायेगी .......
भारतीय कानून के चलते उनको बचने की अधिक संभावना है .
वह दोनों हाथो मे लड्डू रखना चाहते हैं । --------
शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के अंतिम संस्कार का दुर्लभ चित्र....!!!

इतिहासकार बताते हैं कि फाँसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज़ अधिकारियों ने तीनों क्रांतिकारियों के शवों का अंतिम संस्कार फ़िरोज़पुर ज़िले के हुसैनीवाला में कर दिया थाl परन्तु यह बात आँधी की तरह फिरोजपुर से लाहौर तक शीघ्र पहुँच गई । अंग्रेज फौजियों ने जब देखा कि हजारों लोग मशालें लिए उनकी ओर आ रहे हैं तो वे वहाँ से भाग गए।
तब देशभक्तों ने उनके शरीर का विधिवत् दाह संस्कार किया।

Thursday 20 March 2014

अब “गौ मांस” खाने वाले इंसान की, सिर्फ ४ घंटे में ही मौत हो जायेगी

अहमदाबाद एल डी इंजीनियरिंग कॉलेज के ध्रुव पटेल, जिन्होंने हाल ही में भारतीय पशुपालन को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा केमिकल इंजेक्शन तेयार किया है जो पशुओ के लिए एक anti virus का काम करेगा। उन्हें इस केमिकल इंजेक्शन को तेयार करने में १ से २ साल का समय लगा है। यह इंजेक्शन किसी पशु को लगाने के बाद ३ साल तक दूसरा इंजेक्शन लगाने की जरुरत नहीं पड़ती। इस इंजेक्शन की कीमत १०० रूपये से १५० रुपये के आस पास होगी।
 
ध्रुव पटेल का कहना है की इस इंजेक्शन की एक विशेषता यह है की यह इंजेक्शन किसी पशु को कोई नुक्सान नहीं पहुचाता और ना ही किसी पशु की कोई उम्र कम करता है। लेकिन अगर वो पशु मर जाता है या मार दिया जाता है तो उसका मांस जहर बन जाता है, जो मांस खाने वाले इंसान को सिर्फ ४ घंटे में ही ख़त्म कर देता है।
वैज्ञानिक तेज सिंह जी का कहना है की यह इंजेक्शन गौशाला वालो को फ्री में दिया जायेगा। ताकि गौमाता पर जो अत्याचार हो रहे है उनके लिए रामबाण सिद्ध होगा। इसके लिए गौशाला वालो को अपना पता रजिस्टर करवाना होगा। ताकि सभी गौशाला वालो और किसानो को लाभ मिल सके। रजिस्टर करवाने के लिएLdceahmd@gmail.com पर मेल करे।
इस मेसेज को आगे शेयर करे ताकि हर गौशाला वाले इसका लाभ उठा सके ।
कृपया मुस्लिम बंधु ध्यान दें... 

इस वेबसाईट पर केजरीवाल की तुलना हज़रत मोहम्मद से कर रहे हैं ये भाई... 
लेखक भी मुस्लिम, वेबसाईट भी Muslim Mirror... क्या AAP को पाकिस्तान से मिलने वाला चंदा, इस स्तर तक ले जाएगा??? 

मैं इस लेख की कड़ी आलोचना करता हूँ... हज़रत मोहम्मद के त्याग, बलिदान और सादगी की तुलना केजरीवाल से?? वोटों के लिए यह आदमी कहाँ तक जाएगा??

और हाँ!! अगर यही निकृष्ट काम, किसी हिन्दू ने किसी हिन्दू वेबसाईट पर किया होता तो "ठस भीड़" को मुम्बई के आज़ाद मैदान में उतरते देर नहीं लगती... है ना??? 

वीर झाला का बलिदान...

वीर झाला का बलिदान...
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झाला राणा प्रताप के साथ ही युद्ध मे शामिल था और वह भी बडा ही वीर योद्धा था, दिखने में भी थोडा वह राणा प्रताप के जैसा ही लगता था | झाला ने हल्दीघाटी में देखा की राजपूत सेना मुगल फोजों से कमजोर पड रही है और मुगल सेनिक राणा प्रताप पर आक्रमण‌ करने के लिये आतुर है |

तब झाला ने तुरंत निर्णय लिया कि राणा को अपनी जान बचाने के लिये किसी सुरक्षित स्थान पर जाना ही होगा | झाला ने तुरंत शाही निशान आदि लेने के लिये महाराणा से अनुमति मांगी और उनसे अर्ज किया की वे अपनी जान बचायें | राणा प्रताप चेतक पर सवार दूर निकल गये, और मुगल सेना झाला को राणा प्रताप समझ कर उस पर टूट पडी, इस तरह से झाला ने अपना बलिदान देते हुए भी अपने राजा महाराणा प्रताप की जान बचाई और अमर शहीद कहलाया |

Tuesday 18 March 2014

क्या भारत के लोग केजरीवाल का रहस्य जानते है..


क्या भारत के लोग केजरीवाल का रहस्य जानते है..
केजरीवाल के पीताजी जींदल ग्रुप मे बडे मॅनेजर थे आैर भरपुर पैसा लेकर रिटायर हुए
केजरीवाल तो आइआइटी मे 3 साल फेल हुए आैर आखरी अटैम्प्ट मे पास कर दीये गये.

पीताजी के दोस्त ने टाटा स्टील मे नाैकरी दीलवायी.
परफार्मंस अच्छा नही होने के वजह से नाैकरी से नीकाल दीया गया.
आयएएस मे फेल हुए. पर आयआरएस मे कैसे कैसे पास हूए, आैर 2 लाख कॅश देकर आयकर वीभाग मे नाैकरी मीली.
आयकर वीभाग मे पैसा खाने की वजह से काफी सुचनाये मीली.
आखीर आयकर वीभाग की चेतावनी के वजह से नाैकरी छोडनी पडी.
फीर भी आयकर वीभाग का लीया हूआ लोन वापस नही कीया तो कार्यवाही हूइ.
मदर टेरेसा के पास गये की वीदेश मे नाैकरी करने.जायेंगे. पर मदर टेरेसा ने भगा दीया .
कीतने सारे एनजीअो ने दीया पर ये मनचले वहा पर भी घपलेबाजी करने लगे और नही टीके.
फीर कबीर नामसे खुद का एनजीअो लगाया ताकी कुछ जींदगी जी सके.
यहा अमेरीका की सीअइए की एजंट सीमरीट ली से मुलाकत हूइ. आैर फोर्ड फाउंडेशन का बहोत बडा फंड मीला.
फोर्ड ने केजरी को अब तक लगभग 436 करोड रुपया दीया, आैर 200 करोड चुनाव तक मीलने वाला है.
सीआीए हमारे देश को.ाराजक अैर अस्थीर कराना चाहता है, ताकी अमेरीका अार्थीक कद मे सबसे उपर रहे.
केजरी की इमानदारी एक ढोंग है. वो वीदेशी चंदे पर एक शब्द नही बोलता. क्यो.
देल्ली मे अराजकता फैलाकर के भागा.
इसलीये जनता से अपील है की वो अैर खोजबीन करे केजरी के बारे मे, वरना ये अपने मंसुबे मे कामयाब होगा.
‘’वन्देमातरम’’ बंकिमचंद्र चटर्जी ने लिखा था ! उन्होने इस गीत को लिखा !लिखने के बाद 7 साल लगे जब यह गीत लोगो के सामने आया ! क्यूँ की उन्होने जब इस गीत लो लिखा उसके बाद उन्होने एक उपन्यास लिखा जिसका नाम था ‘’आनद मठ’’ उसमे इस गीत को डाला !वो उपन्यास छपने मे 7 साल लगे !
1882 आनद मठ उपनास का हिस्सा बना वन्देमातरम और उसके बाद जब लोगो ने इसको पढ़ा तो इसका अर्थ पता चला की वन्देमातरम क्या है ! आनद मठ उपन्यास बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था अँग्रेजी सरकार के विरोध मे और उन राजा महाराजाओ के विरोध मे जो किसी भी संप्रदाय के हो लेकिन अँग्रेजी सरकार को सहयोग करते थे ! फिर उसमे उन्होने बगावत की भूमिका लिखी कि अब बगावत होनी चाहिए !विरोध होना चाहिए ताकि इस अँग्रेजी सत्ता को हम पलट सके ! और इस तरह वन्देमातरम को सार्वजनिक गान बनना चाहिए ये उन्होने घोषित किया !
उनकी एक बेटी हुआ करती थी जिसका अपने पिता बंकिमचंद्र चटर्जी जी से इस बात पर बहुत मत भेद था ! उनकी बेटी कहती थी आपने यह वन्देमातरम लिखा है उसके ये श्बद बहुत कलिष्ट हैं ! कि बोलने और सुनने वाले कि ही समझ में नहीं आएंगे ! इसलिए गीत को आप इतना सरल बनाइये कि बोलने और सुनने वाले कि समझ मे आ सके !
तब बंकिम चंद्र चटर्जी ने कहा देखो आज तुमको यह कलिष्ट लग रहा हो लेकिन मेरी बात याद रखना एक दिन ये गीत हर नोजवान के होंटो पर होगा और हर क्रांतिवीर कि प्रेरणा बनेगा ! और हम सब जानते है इस घोषणा के 12 साल बाद बंकिम चंद्र चटर जी का स्वर्गवास हो गया ! बाद मे उनके बेटी और परिवार ने आनद मठ पुस्तक जिसमे ये गीत था उसका बड़े पेमाने पर प्रचार किया !
वो पुस्तक पहले बंगला मे बनी बाद मे उसका कन्नड ,मराठी तेलगु ,हिन्दी आदि बहुत भाषा मे छपी ! उस पुस्तक ने क्रांतिकारियों मे बहुत जोश भरने का काम किया ! उस पुस्तक मे क्या था कि इस पूरी अँग्रेजी व्यवस्था का विरोध करे क्यू कि यह विदेशी है ! उसमे ऐसे बहुत सी जानकारिया थी जिसको पढ़ कर लोग बहुत उबलते थे !और वो लोगो मे जोश भरने का काम करती थी ! अँग्रेजी सरकार ने इस पुस्तक पर पाबंदी लगाई कई बार इसको जलाया गया ! लेकिन इस कोई न कोई एक मूल प्रति बच ही
जाती ! और आगे बढ़ती रहती !
1905 मे अंग्रेज़ो की सरकार ने बंगाल का बंटवारा कर दिया एक अंग्रेज़ अधिकारी था उसका नाम था कर्ज़न ! उसने बंगाल को दो हिस्सो मे बाँट दिया !एक पूर्वी बंगाल एक पश्चमी बंगाल ! पूर्वी बंगाल था मुसलमानो के लिए पश्चमी बगाल था हिन्दुओ के लिए !! हिन्दू और मूसलमान के आधार पर यह पहला बंटवारा था !
तो भारत के कई लोग जो जानते थे कि आगे क्या हो सकता है उन्होने इस बँटवारे का विरोध किया ! और भंग भंग के विरोध मे एक आंदोलन शुरू हुआ ! और इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे (लाला लाजपतराय) जो उत्तर भारत मे थे !(विपिन चंद्र पाल) जो बंगाल और पूर्व भारत का नेतत्व करते थे ! और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक जो पश्चिम भारत के बड़े नेता थे ! इस तीनों नेताओ ने अंग्रेज़ो के बंगाल विभाजन का विरोध शुरू किया ! इस आंदोलन का एक हिस्सा था (अंग्रेज़ो भारत छोड़ो) (अँग्रेजी सरकार का असहयोग) करो ! (अँग्रेजी कपड़े मत पहनो) (अँग्रेजी वस्तुओ का बहिष्कार करो) ! और दूसरा हिस्सा था पोजटिव ! कि भारत मे स्वदेशी का निर्माण करो ! स्वदेशी पथ पर आगे बढ़ो !
लोकमान्य तिलक ने अपने शब्दो मे इसको स्वदेशी आंदोलन कहा ! अँग्रेजी सरकार इसको भंग भंग विरोधे आंदोलन कहती रही !लोकमान्य तिलक कहते थे यह हमारा स्वदेशी आंदोलन है ! और उस आंदोलन के ताकत इतनी बड़ी थी !कि यह तीनों नेता अंग्रेज़ो के खिलाफ जो बोल देते उसे पूरे भारत के लोग अपना लेते ! जैसे उन्होने आरके इलान किया अँग्रेजी कपड़े पहनना बंद करो !करोड़ो भारत वासियो ने अँग्रेजी कपड़े पहनना बंद कर दिया ! उयर उसी समय भले हिंदुतसनी कपड़ा मिले मोटा मिले पतला मिले वही पहनना है ! फिर उन्होने कहाँ अँग्रेजी बलेड का ईस्टमाल करना ब्नद करो ! तो भारत के हजारो नाईयो ने अँग्रेजी बलेड से दाड़ी बनाना बंद करदिया ! और इस तरह उस्तरा भारत मे वापिस आया ! फिर लोक मान्य तिलक ने कहा अँग्रेजी चीनी खाना बंद करो ! क्यू कि चीनी उस वक्त इंग्लैंड से बन कर आती थी
भारत मे गुड बनाता था ! तो हजारो लाखो हलवाइयों ने गुड दाल कर मिठाई बनाना शुरू कर दिया ! फिर उन्होने अपील लिया अँग्रेजी कपड़े और अँग्रेजी साबुन से अपने घरो को मुकत करो ! तो हजारो लाखो धोबियो ने अँग्रेजी साबुन से कपड़े धोना मुकत कर दिया !फिर उन्होने ने पंडितो से कहा तुम शादी करवाओ अगर तो उन लोगो कि मत करवाओ जो अँग्रेजी वस्त्र पहनते हो ! तो पंडितो ने सूट पैंट पहने टाई पहनने वालों का बहिष्कार कर दिया !
इतने व्यापक स्तर पर ये आंदोलन फैला !कि 5-6 साल मे अँग्रेजी सरकार घबरागी क्यूंकि उनका माल बिकना बंद हो गया ! ईस्ट इंडिया कंपनी का धंधा चोपट हो गया ! तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंग्रेज़ सरकार पर दबाव डाला ! कि हमारा तो धंधा ही चोपट हो गया भारत मे ! हमारे पास कोई उपाय नहीं है आप इन भारतवासियो के मांग को मंजूर करो मांग क्या थी कि यह जो बंटवारा किया है बंगाल का हिन्दू मुस्लिम से आधार पर इसको वापिस लो हमे बंगाल के विभाजन संप्रदाय के आधार पर नहीं चाहिए
! और आप जानते अँग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा ! और 1911 मे divison of bangal
act वापिस लिया गया ! इतनी बड़ी होती है बहिष्कार कि ताकत !
तो लोक मान्य तिलक को समझ आ गया ! अगर अंग्रेज़ो को झुकाना है ! तो बहिष्कार ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है ! यह 6 साल जो आंदोलन चला इस आंदोलन का मूल मंत्र था वन्देमातरम ! जीतने क्रांतिकारी थे लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपत राय ,विपिन चंद्र पाल के साथ उनकी संख्या !1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा थी ! वो हर कार्यक्रम मे वन्देमातरम गाते थे ! कार्यक्रम कि शुरवात मे वन्देमातरम ! कार्यक्रम कि समाप्ति पर वन्देमातरम !!
उसके बाद क्या हुआ अंग्रेज़ अपने आप को बंगाल से असुरक्षित महसूस करने लगे !क्यूंकि बंगाल इस आंदोलन का मुख्य केंद्र था ! सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए …के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे
हुए थे तो …अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया।
रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए।
रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था। इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। ” में ये गीत गाया गया।
जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल
पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक
तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया।
सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे। रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के द्वारा
मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है।लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे।
7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये। 1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु के समर्थक थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। एक दल चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकिदूसरे दल वाले कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार
बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण एक नरम दल और एक गरम दल। बन गया गया !गर्म दल वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे।
नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और
वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया।
जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई। बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए। नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता
और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है।
उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिय और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे,
मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।
अभी कुछ दिन पहले भारत सरकार ने एक सर्वे किया था अभी उसकी रिपोर्ट आई है अर्जुन सिंह की मणिस्ट्री मे है ! पूरे भारत के लोगो से पूछा गया कि आपको कौन सा गीत पसंद है ! जन गन मन या वन्देमातरम !! 98.8 %लोगो ने कहा है वन्देमातरम !!
अभी कुछ साल पहले बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है। तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है !!
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