Sunday 31 December 2017

 ईरान में सरकार और इस्लाम के खिलाफ भीषण प्रदर्शन शुरू...!
महिलाएं पुरुष सभी प्रदर्शन में शामिल...!
ईरान से बेहद अच्छी खबर आ रही है और यह खबर देख कर और पढ़ कर ऐसा लग रहा है कि जैसे इतिहास खुद को जरूर दोहराता है । करीब 5 दशकों तक कट्टर इस्लामी प्रतिबंधों में रहने के बाद अब ईरानी युवाओं को समझ में आ गया इस्लाम क्या है और आज ईरान की सड़कों पर लाखों युवतियां युवक अपने हिजाब फेककर खुलेआम सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं ,ईरानी अपने आर्यन मूल का वास्ता देकर अरब मूल ठुकरा रहे ... अरब खुदा को नकार रहे .आयातुल्ला खुमैनी मुर्दाबाद के नारे  लगा रहे है... ईस्लामिक शासन के जनक खुमैनी के चित्र जला, देश को धर्मनिरपेक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं ...
कल BBC पर दिखाया कि बहुत से पुलिसकर्मी अपनी वर्दी उतार कर क्रांति में शामिल हो रहे हैं हलाकि ईरान सरकार इस आंदोलन को बहुत निर्दयता से कुचल रही है कई जगह गोलीबारी भी हुई जिसमें कई प्रदर्शनकारी युवा मारे गए लेकिन ईरान के युवक और युवतियां डटे हुए है कि वह इस देश को इस्लाम से मुक्त करके रहेंगे... 
 जो ईरान पहले धर्मनिरपेक्ष था और  अमेरिका से भी ज्यादा एडवांस था वह अब एक इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान बन चुका था ... ईरान के शाह रजा पहलवी का तख्ता अयातुल्ला खुमैनी ने सिर्फ इस्लाम के नाम पर पलट दिया था और इसके लिए उसने तेहरान यूनिवर्सिटी के छात्रों का सहारा लिया था अयातुल्लाह खुमैनी ने लोगों को यह बताया था कि इस्लाम सबसे बड़ी चीज है और ये शाह पहलवी इतने उदारवादी हैं कि यह हम युवाओं को इस्लाम से दूर ले जा रहे हैं छात्रों को यह बात इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने ईरान की सड़कों पर इस्लामिक राज्य स्थापित करने के लिए आंदोलन किया और शाह पहलवी का तख्ता पलट दिया ...पहलवी अमेरिका भाग गए और वहां संसद से ऊपर भी एक मजलिस-ए-शूरा बनाई गई जिसमें देश के सभी मौलवी लोग थे और यदि कोई कानून संसद पास करती थी तो उसके बाद यह सूरा यानी मौलवियों का यह समूह उस पर निर्णय लेता था यह कानून लागू होगी या नही और अयातुल्लाह खुमैनी को ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता की पदवी दी गई

वहां की सरकार जिसे एक मौलाना रूहानी चला रहे है, उनके खिलाफ लोगों ने जबरजस्त और भीषण प्रदर्शन शुरू कर दिया है। लोगों ने इस्लाम विरोधी नारे लगाने शुरू किये है। मुसलमान ये भी नारे लगा रहे है की, "हम आर्यन की औलाद है, हम पर अरबी अल्लाह थोप दिया गया है", इस तरह के इस्लाम विरोधी नारे ईरान की सडकों पर सुने जा रहे है। लोग इस्लाम छोड़ने की बात कर रहे है। ये भी कह रहे है की, इस्लाम उनके देश को छोड़कर जाए।  - "हम आर्यन की औलाद है, हम पर अरबी अल्लाह थोपा गया, इस्लामिक शासन हमारा देश छोड़कर जाए"

प्रदर्शन सरकार और इस्लाम दोनों के खिलाफ चल रहा है...
 ईरान में कठमुल्लों ने युवाओं को खूब दबाकर रखा है धीरे-धीरे वहां के युवा इतने तंग हो गए यह ईरान की सड़कों पर बगावत पर उतर आए ...ईरान पहले एक पारसी देश ही था। बाद में इस्लामिक हमलावरों ने सभी का धर्मांतरण कर दिया। 1970 तक ईरान में काफी हद तक आज़ादी थी। फिर वहां पर शरिया इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया। महिलाओं को बुर्कों में कैद कर दिया गया और अब 2017 आते आते ईरान के लोग इस्लामिक शासन से इस तरह परेशान हो गए है कि सड़कों पर भीषण प्रदर्शन करने लगे है। ईरान के लोग इस्लामिक धर्मगुरुओं को कह रहे है कि तुमपर शर्म है तुम हमारे देश को छोड़कर जाओ। महिलाओं ने भी बुर्का उतारना शुरू कर दिया है और ईरान की सडको पर भीषण प्रदर्शन चल रहा है।

कुछ दशकों बाद यही हाल सऊदी अरब में भी होने वाला है ...हलाकि सऊदी अरब में अमेरिका की एक पूरी टुकड़ी तैनात रहती है सऊदी अरब के जल सीमा में अमेरिका के दो युद्धपोत तैनात रहते हैं बदले में सऊदी अरब अमेरिका को तेल देता है और उसके बदले में अमेरिका सऊदी अरब में अपनी सेना तैनात करके सऊदी अरब में कानून और व्यवस्था लागू करने में सहयोग देता है । अमेरिका सऊदी अरब को मिसाइल शील्ड भी प्रदान करता है क्योंकि बगल के कतर और यमन सऊदी अरब के कट्टर दुश्मन है और यह दोनों कई बार सऊदी अरब पर मिसाइल से हमले करते रहते हैं लेकिन आज नहीं तो कल यही हाल सऊदी अरब का भी होगा
मजे की बात यह है कि अयातुल्ला खुमैनी के दादा उत्तरप्रदेश के बाराबंकी से ईरान गए थे और वह ख़ुमैन नामक कस्बे में बस गए थे खुमैनी शिया मुस्लिम थे अयातुल्ला खुमैनी के दादाजी बसरा में धार्मिक विधि करने के लिए गए थे और उन्हें बसरा से सटा हुआ ख़ुमैन इतना सुंदर लगा कि वही बस गए



ब्रिटेन की आबादी 6.6 करोड़ है।
जिसमें की 26लाख मुस्लिम वोट हैं, मगर इस वक़्त ब्रिटेन में 9 मुस्लिम मेयर हैं।
3000 मस्जिद बन चुकी हैं।
150 शरिया कोर्ट (मुस्लिम कोर्ट) हैं।
50 शरिया काउन्सिल हैं।
78% मुस्लिम औरतें, कोई कार्य नहीं करतीं, मगर मुफ़्त आवास और सभी सरकारी सुविधाएँ प्राप्त कर रही हैं।
63% मुस्लिम मर्द, कोई कार्य नहीं करते मगर आवासीय सुविधायें और सभी सरकारी अनुदान मुफ़्त प्राप्त कर रहे हैं। वहां के सभी मुस्लिम, मुफ़्त सरकारी योजनाओं का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने के लिए 6-7 बच्चे पैदा कर रहे हैं।
आज ब्रिटेन के सभी स्कूलों में, सिर्फ इन मुस्लिम बच्चों के कारण, सभी बच्चों को 'हलाल मीट' खिलाने को ब्रिटेन जैसा देश मजबूर हो चुका है।
ये आंकड़े उस देश के हैं, जिसने लगभग दुनिया के हर देश पर राज किया है मगर सिर्फ 'लोकतंत्र' के कारण, आज 'इस्लाम' के आगे झुक चुका है। ये 26लाख मुस्लिम लगभग एक ही स्थान या शहर में 'संगठन' के रूप में रह रहे हैं। ये लोग अपना कोई प्रतिनिधि चुनाव में खड़ा कर देते हैं और उसको एक तरफा वोट डाल कर जितवा देते हैं। ✴️✴️
फिर इनका चुना हुआ नेता, ब्रिटेन सरकार से इनको सभी 'अवांछित सुविधायें' देने को बाध्य करता है। ऐसा सरकार द्वारा न किये जाने पर ये लोग एक साथ हड़ताल कर देते हैं। 
सिर्फ 26लाख मुस्लिम आबादी ने आज "ब्रिटेन" जैसे देश को झुकने पर विवश कर दिया है।
मैं आपको ये बात इसलिए बता रहा हूँ कि आज हमारे देश में भी यही स्तिथि बनती जा रही है। मुस्लिम वोट पाने की खातिर चुनी हुई सरकारें, मुस्लिमों को ज्यादा ही पोषित कर रही हैं। बंगाल, केरल, कर्नाटक, जम्मू कश्मीर, और लगभग पुरे भारत में आज यही हाल है।
अभी तक "हिन्दू आबादी" ज्यादा है और मुस्लिम आबादी बिखरी हुई है इसलिए अभी तक भारत कुछ सुरक्षित लग रहा है मगर आने वाले 20 साल के अंदर देश की स्थिति बिलकुल बदल जायेगी।
आज 'मुस्लिम वोट' पाने के लिए लगभग सभी पार्टियां उन्हें काफी फायदे पहुंचा रही हैं मगर कुछ साल बाद, ना इन पार्टियों का वजूद रहेगा और ना ही लोकतन्त्र कोई मायने रखेगा।
जिस दिन मुस्लिम आबादी, हिंन्दू आवादी के आधे पर पहुँच गई, देश का प्रतिनिधित्व पूरी तरह मुस्लिमों के हाथ में होगा। उस दिन ये लोग ईरान, जाम्बिया और थाईलैंड की तरह ही हिंदुस्तान को भी इस्लाम राष्ट्र घोषित करने के लिए प्रदर्शन करेंगे या फिर देश में दंगे करेंगे जैसे पूरी दुनिया में कर रहे हैं।
अगर सरकार ने तुरंत इनकी आबादी को बढ़ने से नही रोका तो 'हिन्दू धर्म' भी इतिहास का हिस्सा बन जाएगा।
वर्तमान सरकार और न्यायालय को चाहिए की तुरन्त चीन की तरह 2 बच्चे से ज्यादा पैदा करने पर सजा का प्रावधान हो ऐसा कानून बनाये।
अन्यथा देश में भयंकर जनसंख्या विस्फोट होगा जो की पूरी तरह देश की आबादी को इस्लाम के आगे घुटने टेकने को मजबूर कर देगा।
आज मुस्लिम लोग हिंदुओं से हर मामले में ज्यादा सरकारी सुविधायें प्राप्त कर रहे हैं। इन्हें मदरसों के लिए सरकारी अनुदान दिया जा रहा है। जबकि लाखों सरकारी स्कुल मौजूद हैं। ये लोग मदरसों में कट्टर मजहबी सोच वाले जेहादी तैयार कर रहे हैं। इन्हें हज के किये भी सरकार पैसा देती है मगर हिन्दू को नहीं।
मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं, को बिहार सरकार 25000 महीना खर्च दे रही है मगर गरीबी से बिहार में भूखे मर रहे गरीब परिवारों को कुछ नही मिलता।
कश्मीर वालों को सबसे ज्यादा सरकारी सुविधायें प्राप्त हैं मगर वहां की स्तिथियां देश के लिए सबसे घातक साबित हो रहे हैं।
जागो भाई जागो और सोई हुई सरकार के आगे अपने अधिकार के लिए आवाज उठायें। नहीं तो आपके बच्चों और आपके धर्म का पतन निश्चित है।आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित करने के लिए आवाज उठाओ...सरकार और न्यायालय से मांग करो की देश में सिर्फ 2 बच्चे ही पैदा करने की अनुमति हो और दूसरे प्रसव पर ऑपेरशन का प्रावधान हो।

Saturday 30 December 2017


उत्तर प्रदेश में बदलाव की नई बयार----
 जागरण की सम्पादकीय में प्रदीप_सिंह का यह लेख इस बदलाव की एक झलक दिखाने के लिये काफी है --
यह सबको पता है बदलाव का एहसास सबसे पहले व्यवसायियों और उद्योगपतियों को होता है। उद्योगपति कितना भी देशप्रेमी क्यों न हो, वह अपना पैसा वहां कभी लगाने को तैयार नहीं होगा जहां वह असुरक्षित महसूस करे।
बीते 22 दिसंबर को मुंबई में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की देश के बड़े उद्योगपतियों से बात हुई। उत्तर प्रदेश सरकार 21-22 फरवरी को लखनऊ में इनवेस्टर समिट का आयोजन कर रही है। उनसे मिलने वालों में रतन टाटा, मुकेश अंबानी, पवन गोयनका, एचडीएफसी बैंक के दीपक पारीख, सनफार्मा के दिलीप सांघवी, हिंदुजा समूह के अशोक और प्रकाश हिंदुजा, बजाज समूह के शेखर बजाज, मोदी इंडस्ट्रीज के केके मोदी और लार्सन ऐंड टुब्रो (एल एंड टी) और स्टेट बैैंक के प्रतिनिधि सहित कई वित्तीय संस्थानों के प्रमुख मौजूद थे।
 बड़ा बदलाव यह दिखा कि मुख्यमंत्री निवेश के लिए अनुरोध करें उससे पहले ये उद्योगपति अपनी ओर से तैयारी करके आए थे कि कौन किस क्षेत्र में निवेश के लिए तैयार है। जो रतन टाटा लखनऊ से टीसीएस का सेंटर खत्म करने की बात कर रहे थे वह अब उसका विस्तार करने की बात कर रहे हैं। टाटा वाराणसी में कैंसर का अत्याधुनिक अस्पताल खोलना चाहते हैं। साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के विकास में हाथ बंटाना चाहते हैं। टाटा समूह लखनऊ या आगरा में से किसी एक शहर को गोद लेना चाहता है। समूह ने ईको टूरिज्म और स्मार्ट सिटी के विकास में भी रुचि दिखाई है। दिलीप सांघवी उत्तर प्रदेश को फार्मा हब बनाना चाहते हैं। मुकेश अंबानी जिन्होंने मायावती के कार्यकाल में घोषणा कर दी थी कि वह उत्तर प्रदेश में कोई निवेश नहीं करेंगे, अब उत्तर प्रदेश में कृषि से लेकर रिटेल (तीन सौ से बढ़ाकर एक हजार स्टोर), पेट्रोल पंप (तीन सौ से बढ़ाकर एक हजार) और युवाओं के लिए नॉलेज प्लेटफार्म बनाने के लिए तत्पर हैं। रिलायंस और महिंद्रा मिलकर किसानों के लिए मृदा परीक्षण सहित खेती के लिए तमाम उपयोगी अद्यतन जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए तंत्र बनाने को तैयार हैं। महिंद्रा समूह ने कहा कि वह एग्री विलेज परियोजना के जरिये किसानों की आय दोगुना करेगा। वह बैट्री चालित वाहनों के निर्माण में निवेश करना चाहता है।
 हिंदुजा बंधुओं ने कहा कि हमने तो तय कर रखा था कि उत्तर प्रदेश कभी जाएंगे ही नहीं। हमने अयोध्या की दीपावली भी टीवी पर ही देखी, पर अब वह इलेक्ट्रिक बस और धार्मिक स्थलों के विकास के लिए उत्सुक हैं। वहीं टॉरेन्ट समूह के अध्यक्ष सुधीर मेहता ने कहा कि गुजरात के बाद उनका अगला निवेश उत्तर प्रदेश में होगा। उनकी नजर कानपुर और गोरखपुर है।
 इस उत्साह के दो बड़े कारण हैं। एक, उन्हें पता है कि अब उत्तर प्रदेश में उद्योग लगाना सुरक्षित है। यह सुरक्षा का भाव आर्थिक और शारीरिक दोनों तरह का है। दूसरा, राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ईमानदारी और निष्ठा संदेह से परे है। योगी आदित्यनाथ को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का जैसा समर्थन हासिल है वैसा भाजपा के कम ही मुख्यमंत्रियों को है।
उन्हें पता है कि मुख्यमंत्री एक सख्त प्रशासक, योजनाओं को लागू करने में कोताही न बरतने वाले और भ्रष्टाचार से समझौता न करने वाले व्यक्ति हैं। पहले की तरह कोई सुविधा शुल्क नहीं देना पड़ेगा। फिर उन्हें बिजली, पानी और सड़क तो मिलेगी ही। 
किसी निवेशक के लिए निश्चिंत होकर निवेश के लिए इतना पर्याप्त होता है। ऐसे समय जब देश में निजी निवेश मुश्किल हो रहा हो। देश के उद्योगपति भारत के बजाय दूसरे देशों में पैसा लगाना ज्यादा सुरक्षित महसूस कर रहे हों तब यह खबर ताजा हवा के झोंके की तरह है।

Friday 29 December 2017

ऐतिहासिक उपन्यासकार कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
30 दिसम्बर, 1887 को भरूच (गुजरात) के डिप्टी कलेक्टर श्री माणिक लाल मुंशी के घर में जन्मे श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनकी कुशलता राजनीति, साहित्य, शिक्षा व धर्मप्रेम के साथ ही प्रकृति संरक्षण के लिए किये गये उनके प्रयासों से भी प्रकट हुई। मुंशी जी बड़ौदा से स्नातक एवं मुंबई से कानून की परीक्षा उत्तीर्ण कर 1913 में मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत करने लगे। बड़ौदा विश्वविद्यालय में पढ़ते समय उनकी भेंट ऋषि अरविंद से हुई। आगे चलकर अरविंद, सरदार पटेल व गांधी जी से प्रभावित होकर वे स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।
1927 में सरदार पटेल के साथ उन्होंने बारदोली सत्याग्रह में भाग लिया। 1930 और 1932 में वे फिर जेल गये। 1940 में उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया। स्वतंत्रता के बाद सरदार पटेल के साथ शासन के प्रतिनिधि के रूप में हैदराबाद रियासत को मुक्त कराने में उन्होंने भरपूर सहयोग दिया। महमूद गजनवी द्वारा तोड़े गये सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में भी उनकी बड़ी भूमिका रही। जब सरदार पटेल ने हाथ में समुद्र का जल लेकर मंदिर निर्माण का संकल्प लिया, तो कन्हैयालाल जी भी उनके साथ थे।
स्वतंत्र भारत में उन्हें कृषि एवं खाद्य मंत्री बनाया गया। इस दौरान उन्होंने जुलाई के प्रथम सप्ताह में ‘वन महोत्सव’ मनाने की कल्पना सबके सामने रखी। इस समय वर्षाकाल होने के कारण धरती खूब उर्वरा रहती है। जब तक वे कृषि मंत्री रहे, तब तक यह योजना कुछ चली; पर सरदार पटेल के दिवंगत होते ही नेहरू जी ने उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल से हटाकर उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाकर लखनऊ भेज दिया। इस प्रकार वन महोत्सव की योजना असमय मार दी गयी। यदि आज भी इस योजना पर ठीक से काम हो, तो न केवल भारत अपितु विश्व पर्यावरण प्रदूषण के अभिशाप से मुक्त हो सकता है।
मुंशी जी गुजराती भाषा के श्रेष्ठ साहित्यकार थे। ऐतिहासिक उपन्यासकार के नाते उनकी बड़ी ख्याति है। लोपामुद्रा, लोमहर्षिणी, पाटन का प्रभुत्व, गुजरात के नाथ, जय सोमनाथ, पृथ्वीवल्लभ, भगवान परशुराम, भग्न पादुका, कृष्णावतार (सात खंड) आदि इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। उन्होंने सैकड़ों लेख, निबंध, नाटक और कहानियां लिखीं, जिनमें भारत और भारतीयता की सुगंध सर्वत्र व्याप्त है।
गांधी जी द्वारा सम्पादित ‘यंग इंडिया’ के वे सह सम्पादक थे। इसके साथ ही गुजराती, आर्यप्रकाश, नवजीवन, सत्य आदि पत्रों के वे सम्पादक रहे। गुजराती के अतिरिक्त हिन्दी, तमिल, कन्नड़, तेलुगु, मराठी तथा अंग्रेजी पर भी इनका अधिकार था। इनकी पुस्तकों के अनेक भाषाओं में अनुवाद हुए हैं।
श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने भारत की स्वतंत्रता के साथ ही उसके पुनर्निर्माण के बारे में भी विचार किया। हिन्दू धर्म एवं संस्कृति उनके मन, वचन और कर्म में बसी थी। कालान्तर में इसी चिंतन से 1932 में ‘साहित्य संसद’ तथा 1938 में ‘भारतीय विद्या भवन’ जैसी श्रेष्ठ संस्था का जन्म हुआ। भारतीय विद्या भवन की देश भर में 22 शाखाएं हैं। इस संस्था ने देश-विदेश में वेद, उपनिषद, गीता, रामायण जैसे हिन्दू धर्मग्रंथों तथा भारतीय भाषा व संस्कृति के विकास में अप्रतिम योगदान दिया।
मुंशी जी अपने जीवन के अंतिम समय तक देश, धर्म, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान एवं कला की सेवा करते रहे। हिन्दू हितैषी होने के कारण वे विश्व हिन्दू परिषद की स्थापना में भी सहयोगी बने। सात फरवरी, 1971 को उनकी श्वास भगवान सोमनाथ के श्रीचरणों में सदा के लिए विसर्जित हो गयी।
विट्ठलव्यास
प्राचीन न्यूक्लियर रिएक्टर की कहानी
सन 1932 में भौतिक विज्ञान के पितामह अर्नेस्ट रदरफोर्ड ने पहली बार परमाणुओं को तोड़ने में सफलता पाई थी। इससे पूर्व 'यूरेनियम' एक अति साधारण तत्व हुआ करता था। परमाणु विखंडन की खोज के बाद यूरेनियम पृथ्वी के गर्भ में उपस्थित हर धातु से अधिक मूल्यवान हो चुका था। यूरेनियम की खोज परमाणु विखंडन से बहुत पहले सन 1789 में कर ली गई थी। इससे पहले तक यूरेनियम का उपयोग सिरैमिक के बर्तनों की रंगाई और रेशम को रंगने के लिए किया जाता था। पिछले वर्ष दिसंबर में मुंबई के ठाणे से कुल 8.86 किलो यूरेनियम क्राइम ब्रांच ने जब्त किया था जिसका अंतरराष्ट्रीय मूल्य लगभग 26 करोड़ आँका गया था। खैर यूरेनियम पर आज का विषय अतीत के एक रहस्य से जुड़ा हुआ है। वो रहस्य जिसने वैज्ञानिकों को उलझन में डाल दिया है।
गबोन गणराज्य पश्चिम मध्य अफ़्रीका में स्थित एक देश है। सन 1972 में फ्रांस की एक कंपनी यहाँ 'ओक्लो' में स्थित एक खदान से यूरेनियम के अवयव खुदाई में निकलवा रही थी। जब लेबोरेटरी में इन अवयवों की जांच की गई तो सबके मुंह खुले रह गए। पता चला कि खुदाई में प्राप्त अवयवों में से कुछ प्रतिशत 'यूरेनियम' पहले ही निकाला जा चुका था।
बात भरोसे लायक कतई नहीं थी। लैब में हुई गणना के मुताबिक 'यूरेनियम-235' में 0.7 प्रतिशत यूरेनियम मिलना चाहिए था लेकिन मिला केवल 0.3 प्रतिशत। इस अविश्वसनीय तथ्य के पता चलने के बाद वैज्ञानिक समुदाय दो धड़ों में बंट गया। एक धड़े का मानना था कि ये यूरेनियम की खदान दरअसल हज़ारों वर्ष पुराना एक 'प्राचीन न्यूक्लियर रिएक्टर' था और दूसरा धड़ा इसे मूर्खतापूर्ण तथ्य बता रहा था।
फ़्रांसिसी भौतिक विज्ञानी फ्रांसिस पेरिन ने अपने सहयोगियों के साथ इस खदान में लंबा अनुसंधान किया तो पता चला यहाँ मिले तीन प्रकार के इज़ोटोप (isotope) का स्तर वही पाया गया जो आज की आधुनिक परमाणु भट्टियों के परमाणु कचरे में पाया जाता है। कई वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हुए कि प्राकृतिक स्त्रोतों में पर्याप्त मात्रा में 'यूरेनियम-235' प्राप्त नहीं हुआ था। ये इतनी मात्रा में नहीं था कि स्वाभाविक 'चेन रिएक्शन' को अंजाम दे पाता। सवाल बहुत खरा था कि पुराने समय में यूरेनियम-235' का किसने और कैसे उपयोग किया होगा।
वैज्ञानिक कैसे मान लेते कि हज़ारों या लाखों वर्ष पूर्व अफ्रीका के पथरीले क्षेत्र में कोई अनजान सभ्यता 'न्यूक्लियर रिएक्टर' बनाने में सक्षम थी। शोध के आंकड़ों को झुठलाया नहीं जा सकता था। इस असमंजस से निकलने के लिए वैज्ञानिकों ने कहा कि ये 'महान आश्चर्य' है जो 'प्राकृतिक रूप' से घटित हुआ है।
इस पर फ्रांसिस जैसे वैज्ञानिकों ने विरोध जताते हुए कहा कि उस खदान में जो 'मानव निर्मित' अवशेष प्राप्त हुए हैं, उसके बारे में क्या स्पष्टीकरण देंगे। मशहूर वैज्ञानिक डॉक्टर ग्लेन सिबर्ग ने भी इसे 'प्राकृतिक रूप से घटित' बताया है। हालांकि 'चेन रिएक्शन' प्राकृतिक रूप से हो पाना संभव नहीं है, इसके लिए बहुत से तामझाम करने पड़ते हैं।
बताया जा रहा कि इस साइट पर जितना यूरेनियम पाया गया, उससे छह परमाणु बम बनाए जा सकते हैं। ये भी पाया गया कि रिएक्टर बेहद 'सुरक्षित स्थिति' में छोड़ा गया था और 'परमाणु कचरे' के निपटान की पूरी व्यवस्था यहाँ देखी गई है। इसके अलावा प्लांट में प्रयोग किया जाने वाला जल अत्यंत 'शुद्ध अवस्था' में मिला। कुल मिलाकर ये आज के आधुनिक 'न्यूक्लियर रिएक्टर' की तरह जानदार और शानदार बताया जा रहा है।
जब ये खबर फैली तो 'गबोन' स्थित इस खदान में शोध करने के लिए वैज्ञानिकों की भीड़ लग गई थी। यहाँ से जो मिला वह आप फोटो में देख सकेंगे। हालांकि फोटो दूर से लिया गया था लेकिन इसके आकार से आपको अंदाज़ा लग जाएगा। अब समस्या ये है कि अन्य रहस्यों की तरह इस पर भी पर्दा डाल दिया गया है। सन 2015 के बाद से 'गबोन' की ख़बरें आना बंद हो गई है।
प्राचीन न्यूक्लियर रिएक्टर की अवधारणा गुदगुदाती है लेकिन भरोसा नहीं होता। वैज्ञानिकों की जांच-पड़ताल एक भयानक सत्य की ओर इशारा करती है। अतीत में न जाने कितनी बार मानव सभ्यताएं 'परमाणु' के लालच में आकर नष्ट हो चुकी हैं। अरबों आकाशगंगाओं में भी कितनी ही सभ्यताएं 'अक्षय ऊर्जा' के बजाय 'परमाणु' का विकल्प चुनकर अपनी तबाही को आमंत्रित कर लेती हैं। 'गबोन' का परमाणु रिएक्टर किसने बनाया था। क्या उस सभ्यता को मोहनजो-दारो की तरह कोई विशाल 'परमाणु विस्फोट' विलुप्त कर गया था। वह रिएक्टर कैसे हज़ारों वर्ष तक चैतन्य रहा।

सवाल, सवाल और बस सवाल
✍🏻 विपुल विजय रेगे
वज्र 'ग्लोबल' है
दधीचि ऋषि जब तक जीवित रहे, असुर उन्हें देखकर भय खाते रहे। इसके बाद इंद्र को पुष्कर क्षेत्र में दधीचि ने अपनी अस्थियां भेंट कर दी। इंद्र ने इस हड्डी से 'वज्र' बनाया और असुरों को पराजित किया। वज्र को इंद्र का शस्त्र माना जाता है। वज्र केवल भारत ही नहीं संसार के विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता था। वज्र को 'पवित्र शस्त्र' माना गया है। संस्कृत में इसका अर्थ 'आकाशीय बिजली और कदाचित हीरे से भी लगाया जाता है। दो प्रकार के वज्र बनाए जाते थे। कुलिश और अशानि। वज्र बनाते समय ध्यान रखा जाता था कि इसका 'हत्था' वजनदार हो और पत्तियां हल्की। वज्र को 'शांति और प्रशांति (tranquility)' का प्रतीक माना जाता है। जापान और चीन में भी प्राचीन वज्र पाए गए हैं। यूनानी देवता 'ज़ूस(Zeus) की कई प्रतिमाओं में वज्र उनके हाथों में दिखाई देता है। ऑस्ट्रेलिया, नोर्स पुराण में इसका उल्लेख किया गया है। 'पश्चिम का वज्र' तो इसमें से 'बिजली की वर्षा' भी करवाता है। सुमेरियन ब्रह्मांडिकी (cosmology) में भी वज्र का उल्लेख मिलता है। नोर्स गॉड 'थोर' का शस्त्र भी वज्र माना जाता है। माया सभ्यता के पुरावशेषों में भी वज्र दिखाई देता है।राष्ट्र के सबसे बड़े सम्मान 'परमवीर चक्र' की थीम भी 'वज्र' पर ही बनाई गई है। पौराणिक देवता इंद्र का वज्र परमवीर चक्र पर होने के पीछे बड़ा गहरा कारण है। दधीचि ऋषि ने अपनी अस्थियां दे दी ताकि 'वज्र' बनाया जा सके। जीवन का दान किया एक पवित्र उद्देश्य के लिए। परमवीर चक्र भी उसी को मिलता है जो अपनी हड्डियां तक पवित्र उद्देश्य के लिए समर्पित कर देता है।
✍🏻 विपुल रेगे
1970 के दशक में तिरुवनंतपुरम में समुद्र के पास एक बुजुर्ग भागवत गीता पढ़ रहे थे तभी एक नास्तिक और होनहार नौजवान उनके पास आकर बैठा। उसने उन पर कटाक्ष किया कि लोग भी कितने मूर्ख है, विज्ञान के युग मे गीता जैसी ओल्ड फैशन्ड बुक पढ़ रहे है?
उसने उन सज्जन से कहा कि यदि आप यही समय विज्ञान को दे देते तो अब तक देश ना जाने कहाँ पहुँच चुका होता।
उन सज्जन ने उस नौजवान से परिचय पूछा तो उसने बताया कि वो कोलकाता से है और विज्ञान की पढ़ाई की है। अब यहाँ भाभा परमाणु अनुसंधान में अपना कैरियर बनाने आया है।
आगे उसने कहा कि आप भी थोड़ा ध्यान वैज्ञानिक कार्यो में लगाये भागवत गीता पढ़ते रहने से आप कुछ हासिल नही कर सकोगे।
वे मुस्कुराते हुए जाने के लिये उठे, उनका उठना था की 4 सुरक्षाकर्मी वहाँ उनके आसपास आ गए।
आगे ड्राइवर ने कार लगा दी जिस पर लाल बत्ती लगी थी, लड़का घबराया और उसने उनसे पूछा आप कौन है?
उन सज्जन ने अपना नाम बताया 'विक्रम साराभाई'
जिस भाभा परमाणु अनुसंधान में लड़का अपना कैरियर बनाने आया था उसके अध्यक्ष वही थे।
उस समय विक्रम साराभाई के नाम पर 13 अनुसंधान केंद्र थे। साथ ही साराभाई को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने परमाणु योजना का अध्यक्ष भी नियुक्त किया था।
अब लड़का शर्मसार हो गया और वो साराभाई के चरणों मे रोते हुए गिर पड़ा। तब साराभाई ने बहुत अच्छी बात कही।
उन्होंने कहा कि "हर निर्माण के पीछे निर्माणकर्ता अवश्य है। इसलिए फर्क नही
पड़ता ये महाभारत है या आज का भारत, ईश्वर को कभी मत भूलो!"
आज नास्तिक गण विज्ञान का नाम लेकर कितना ही नाच ले मगर इतिहास गवाह है कि विज्ञान ईश्वर को मानने वाले आस्तिकों ने ही रचा है।
*ईश्वर शाश्वत सत्य है। इसे झुठलाया कतई नही जा सकता। इनकी आराधना करने मात्र से संकट दूर हो सकता है।*
एक ऐसा ब्रिटिश एजेंट पैदा हुआ था
 जो केजरीवाल और अन्ना से भी बड़ा ढोंगी था ...!!
1857 की सशस्त्र क्रांति ने अंग्रेजों का भारत में बने रहना मुश्किल कर दिया था ...
उसके बाद अंग्रेजों ने अपनी राजधानी बंगाल से हटा ली ....दिल्ली ले आए
इसके बाद धूर्त अंग्रेजों ने शासन करने के नए तरीके खोजे
1861 में हथियारों के रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया
इंडियन आर्म्स एक्ट 1861
जो आज तक लागू है
1885 में एक अंग्रेज को काम दिया...
एक ऐसी नाटक मंडली तैयार करो ...जो हम अंग्रेजों के विरुद्ध झूठ मूठ आंदोलन करवाती रहे
भारत के लोगों का गुस्सा प्रेशर कुकर के सेफ्टी वाल्व की तरह निकलता रहे
ताकि भारत के लोग फिर से 1857 जैसा विद्रोह ना करें...
एक भांड मंडली बनी... ए ओ ह्यूम के नेतृत्व में ...
इसमें अंग्रेजों के घरेलू नौकरों चाकरों को रखा गया ...
और इसका नाम रखा गया काँग्रेस....
जिसका अंग्रेजी में शुद्ध शाब्दिक अर्थ है
बबून बंदरों का समूह...!!!
इसके बाद ...इन अंग्रेजों ने अपनी साऊथ अफ्रीका एम्बुलेंस यूनिट के सैनिक ...
मोहनदास करमचंद गाँधी...
नाम के मंजे हुए ....धूर्त नौटकी बाज को खोजा ...
जो अहिंसा अहिंसा...
शांति शांति का ढोंग करे
शांति ....अहिंसा क्यों ..??
चूँकि इसी अहिंसा और बौद्ध धर्म के हिंदुओं पर प्रभाव के कारण ...
सनातनी वीर हिंदुओं ने हथियार रखने छोड़ दिए थे...
और मियों ने जब पश्चिम से हमला किया ...
तब ये बौद्ध निहत्थे थे
आसानी से सभी सारे बौद्धों को काट डाला...
बौद्धों के साथ हिन्दू राजाओं को भी हरा दिया
और आराम से इन हिंदुओं पर आठ सौ वर्ष राज किया था
अंग्रेज यह इतिहास और हिन्दुओं की दयालु मानसिकता ...
दोनों ही चीजें जानते थे
इसी धूर्त नीति के चलते ....आराम से आठ लाख भारतीयों को इन अंग्रेज़ों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलों में बंद कर दिया
गांधी के चक्कर में ये देशवासी .."बेवकूफ".. बनते रहे
मुर्गी की तरह पकड़ पकड़ अंग्रेजों ने लाखों गांधीवादियों को मार डाला
जितने दोनों विश्वयुद्ध में नहीं मरे
उससे अधिक अकेले भारत में मरे
इसलिए यह ढोंगी महात्मा और अहिंसा का पुजारी कहा गया
पर अंग्रेजों ने गांधी को कभी एक लाठी तक नहीं मारी
जैसे अन्ना को नहीं मारी सोनिया की पुलिस ने ...
कभी जेल नहीं भेजा ...
बल्कि इस एजेंट को तो आगा खान पैलेस में रखते थे..!!
भीड़ में टोपी पहन कर गांधीवादी अंग्रेजों को दूर से दिख जाते थे ...
जिनको आराम से रस्से से बांध कर अंग्रेज ले जाते ...
और आरामदायक जेलों में रख देते
गांधी ने देश को ठगा और एक भी आंदोलन अपने चरम पर पहुंचने नहीं दिया
जैसे ही आंदोलन तेज होता ...
गांधी वापस कर लेते थे..!!
इनका उद्देश्य सिर्फ आक्रोश को ठंडा करना होता था ....ताकि अंग्रेज सुरक्षित रहें
ठीक यही खेल वो आठवीं फेल ...ठरकी ...ट्रक ड्राईवर ....सेना के भगोड़े ...
अन्ना हजारे करते थे
हर बार आंदोलन बीच में ही खत्म..!!
इस ढोंगी गांधी को आजादी के बाद जेहादी मियाँ नेहरू ने ..."राष्ट्रपिता".. कह कर प्रचारित करवाया.... जो अपने आश्रम में ब्रह्मचर्य के प्रयोग के नाम पर ...
लड़कियों और अपने बेटों की बेटियों यानि नातिनों तक के साथ नंगा सोता रहा
खान रेसियों का यह ..."बापू"..!!
इनके बेटों को बाप की हर करतूत पता थी
वे सदा इस ढोंगी से दूर रहे
विरोध करते रहे ..!!
गांधी ने अंग्रेजों के लिए सेफ्टी वाल्व पॉलिटिक्स के तहत खान रेस बनाई
ठरकी अन्ना ने उस खान्ग्रेस की सहायता की और खुजली नटवरलाल पैदा कर दिया..!!
ये कितना घातक खेल खेलते हैं....
कितना बड़ा धोखा देते हैं...
भोली भाली ....भारत की जनता को...
सोचिए जरा..... !!!!

Thursday 28 December 2017

vyang

अध्यक्ष राहुल गांधी - मनमोहन जी बताइए, 80+90 कितने हुए?
मंदमोहन सिंह- 100
राहुल- गलत 80+90=170 हुए
मनमोहन सिंहः नही मानूंगा, मुझे तो सोनिया जी ने यही सिखाया है कि 'अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो, 80 90 पूरे #100'

माफ़ी प्रायश्चित का मौका देती है
 पर दुःख है कि आपके पाप बहुत हैं....
2007 में राजस्थान के जयपुर में 'धर्म संस्कृति संगम' नामक संगठन ने दुनिया भर के उन लोगों का एक कार्यक्रम आयोजित किया था..जो थे तो ईसाई या मुस्लिम...पर उनके मन में ये प्रश्न था कि ठीक है आज हम ईसाई या मुसलमान हैं पर ईसा और मुहम्मद साहब से पहले हम क्या थे ? हमारी संस्कृति और परम्परायें क्या थीं .? और किन परिस्थितियों में हमें अपना मत-मजहब छोड़ना पड़ा था..?
इस कार्यक्रम के एक सत्र में जब उस समय के सरसंघचालक के० एस० सुदर्शन ईसाई चर्चों द्वारा दुनिया भर में किये गये विध्वंस लीलाओं का वर्णन कर रहे थे..उस वक़्त मंच पर बैठे ईसाई पादरी ये सब सुनकर स्तंभित थे---
सुदर्शन जी के बाद एक अमेरिकी ईसाई विद्वान् फादर कोमेल्ला की जब बोलने की बारी आई तो उन्होंने बड़े कातर और रूँधे गले के साथ ये कहा कि सुदर्शन जी के द्वारा चर्च की विनाश लीला सुनने के बाद आज मैं खुद को उन सारे अपराधों में शरीक मानता हूँ..जिसे आज तक चर्चों ने दुनिया भर में किया है. यह स्वीकारोक्ति अनायास या तथ्यहीन नहीं थी कि ईसाई चर्चों ने दुनिया भर में अनगिनत संस्कृतियों और सभ्यताओं का विनाश करने के साथ धर्मान्तरण, अत्याचार और जनसंहार किया है और झूठ फैलायें हैं. 
इसकी पुष्टि अब चर्च के प्रधान पोप और दुनिया भर के अनेक ईसाई पादरियों की स्वीकारोक्तियों और क्षमायाचनाओं से हो रही है और माफी मांगने का ये सिलसिला लगातार चल रहा है-----
1992 में चर्च ने 1642 में गैलीलियो के साथ किये गए अपने अपराध के लिये 350 साल बाद माफी माँगी थी.
दुनिया भर के कई चर्चों के फादरों के ऊपर बाल यौन शोषण के बीस हज़ार से अधिक मुकदमें चल रहे थे..जिससे छुटकारा पाने के लिये कैथोलिक चर्च ने कुछ साल पहले पीड़ित बच्चों के परिवारों से न सिर्फ माफी माँगी...बल्कि बतौर मुआवजा उन्हें हजारों करोड़ डॉलर की एकमुश्त राशि भी दी---
यही नहीं 2001 में पोप जान पॉल द्वितीय ने एक मेल के माध्यम से उन तमाम कैथोलिक फादरों की ओर से माफी माँगी....जिनके यौन शोषण के चलते कई मासूमों की जिंदगियाँ नरक हो गई थी.
पिछले साल जब पोप फ्रांसिस अमेरिका और लैटिन अमेरिका की यात्रा पर थे तब उन्होंने उपनिवेश काल में अमेरिका के मूल निवासियों के खिलाफ चर्च द्वारा किए अत्याचारों में रोमन कैथलिक चर्च की भूमिका के लिए माफी माँगी.
इससे पहले लैटिन अमेरिका के बोलिविया में भी पोप ने इसी तरह की माफी माँगी थी.
अभी पिछले साल 26 नवंबर को पोप ने 1954 में रवांडा में किये ईसाई मत प्रचार के लिये की गई 08 लाख हत्यायों के लिये सार्वजनिक क्षमायाचना की.
एक घटना 27 सितम्बर, 2006 की है........जब उस वक़्त के पोप बेनेडिक्ट XVI ने एक बयान जारी करते हुए कहा था कि सीरियन क्रिस्चियन ईसा के जिस शिष्य थोमा (संत थॉमस) के भारत आने की बात कहतें हैं....वो कभी भारत आये ही नहीं थे...बल्कि वो सुसमाचार प्रचार के लिए पर्शिया गए थे.
पोप की इस स्वीकारोक्ति से सीरियन ईसाइयों में आक्रोश की भयंकर लहर दौड़ गई......क्योंकि भारत के दक्षिणी भाग में उन्होंने सदियों से यह भ्रम फैलाया हुआ है कि ईसवी सन 52 में ईसा के शिष्य संत थोमा (दिदुमस) सुसमाचार फैलाने भारत आ गए थे......20 साल बाद जिनकी हत्या वहाँ के दुष्ट ब्राह्मणों ने कर दी थी.
अब उनके इस झूठ ने दक्षिण भारत में ब्राह्मण-विरोधी अभियान को हवा दी थी तथा धर्मान्तरण के लिये जमीन तैयार करने में मदद की थी.
इस झूठ को आधार बनाकर उन्होंनें वहाँ के मछुआरों को ब्राह्मणों के खिलाफ भड़काया था. अब जाहिर था कि पोप की यह स्वीकारोक्ति सीरियन चर्च के दो हज़ार सालों के झूठ को नंगा कर देती इसलिए फ़ौरन मालाबार चर्च के मुखपत्र "सत्य दीपक" में रोम की ओरियंटल पोंटीफिकल इंस्टीटूट के सदस्य जार्ज नेदुनगान ने कड़े शब्दों में सीरियन ईसाइयों के आक्रोश को व्यक्त किया और साथ ही सीरियन ईसाइयों का एक प्रभावी समूह पोप के पास पहुँचा तथा उनपर बयान बदलने के लिए दबाब डाला.
अप्रत्याशित हमले से घबराए पोप ने तुरंत अपना बयान वापस ले लिया पर इसमें महत्त्व की बात ये है कि पोप ने पहले इस झूठ को फैलाने के लिये माफ़ी माँगी थी.
वैसे ये लोग अपने अपराधों के लिये माफी माँग कर किसी पर एहसान नहीं कर रहें हैं....बल्कि ये लोग अपने ही पापों का बोझ कुछ हल्का कर रहें हैं, इनके निर्देशों के कारण इनके लोगों ने दुनिया की जितनी संस्कृतियाँ को निगला है, जितनी बर्बर हत्यायें की हैं, यूरोप में चुड़ैल कहकर महिलाओं पर जितने अत्याचार कियें हैं और फिर उन अत्याचारियों को संत की उपाधि दी है वो सारे पाप इतने ज्यादा हैं कि उन सबके लिये अगर ये लोग प्रलय के दिन तक भी रोज़ माफी माँगेंगे तब भी उसका प्रायश्चित संभव नहीं है और हाँ, हमारे भारत में गोवा में की गई नृशंसता, उत्तर-पूर्व, झारखण्ड, छतीसगढ़, उड़ीसा आदि राज्यों में किये इनके पापों का हिसाब तो अभी इनसे माँगा ही नहीं है.
अभी तो इनको दुनिया के कई मत पंथों से, अपने अंदर के ही विभिन्न संप्रदायों से, यहूदियों से और हिन्दुओं से माफी माँगनी बाकी है.
बेहतर है समय रहते आप चेत जायें और कम से कम अपने पापों के लिए माफी माँगने की गति को और तीव्र करें ही....साथ ही अपने असहिष्णु और विस्तारवादी चरित्र को भी पूरी तरह बदलें अन्यथा पाप बटोरने का सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा.
महान दार्शनिक वाल्टेयर के शब्दों में कहें तो आपके ईसाइयत प्रसार ने काल्पनिक सत्य के लिए धरती को रक्त से नहला दिया है.
आपने 2000 साल के अपने जीवन काल में पूरी दुनिया में जितने भ्रम फैलाएं हैं और जितनी सभ्यताओं को नष्ट करते हुए मानव-जाति का संहार किया है....वो तमाम पाप अब अपना हिसाब माँग रहा है.
माफ़ी प्रायश्चित का मौका देती है पर दुःख ये है कि आपके पाप बहुत हैं....इसलिये यहोवा के लिये, अपने जीसस के लिये और सारी मानव जाति के लिये अब कम से कम इस विस्तारवाद, पशुता, रक्त-चरित्र और असहिष्णुता को विराम दीजिये---!
पंडित मधु सूदन व्यास जी के वॉल पर Abhijeet Singh जी के पोस्ट: महेश सिन्हा जी की वाल से साभार !
दो बाते अधिकतर वामपंथियों के मुँह से सुनने को मिलती है पहली यह कि मुगलो ने 800 साल राज किया दूसरी यह कि 800 साल राज करने के बाद भी हिन्दू धर्म खतरे में नही आया और आज भी हिन्दू बहुसंख्यक है।
 इनकी झूठी दलीलों से भटकने की जरूरत नहीं है खुद अवलोकन कीजिये
पहली बात मुगलो ने 800 साल कभी राज नही किया, हाँ 1192 में दिल्ली को मुहम्मद गौरी ने जीत लिया था मगर दिल्ली और संपूर्ण भारत में अंतर है, अकबर और औरंगजेब के अलावा कोई मुस्लिम शासक लंबे समय तक दिल्ली या आगरा पर राज ना कर सका। हाँ यह राज उन्होंने काबुल कांधार पर किया, सिंध और लाहौर पर लंबे समय तक राज किया अब कोई वामपंथी बताये की पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आखिर कितने हिन्दू बचे???
मतलब यह कि मूल भारत मे उन्हें इस्लाम फैलाने का मौका ही नही मिला, कोई भी मुस्लिम शासक ज्यादा समय राज नही कर सका और जितना किया वो भी डर डरकर क्योकि मंगोलो और दूसरे राज्यो के आक्रमण लगातार होते रहे ऐसे में इस्लाम फैलाने की फुरसत कैसे??? और दूसरा जो मुस्लिम शासकों को था वो यह कि हिन्दुओ पर अत्याचार हिन्दुओ को उनका विरोधी ना बना दे या हिन्दू मंगोलो के साथ ना मिल जाये इसीलिए इल्तुतमिश, रज़िया और बलबन जैसे मुस्लिम शासकों ने हिन्दुओ से हाथ मिलाया।
बाबर 1526 में भारत आया और 1530 में मर गया इन चार सालों में उसने 4 बड़े युद्ध किये अब उसे इस्लाम फैलाने का समय नही मिला, यही हाल हुमायूं का हुआ, अकबर ने इस्लाम फैलाने की पूरी कोशिश की मगर बाद में उसने दीन ए इलाही धर्म अपना लिया इसलिए उसके राज के 48 वर्ष धरे के धरे रह गए। जहाँगीर और शाहजहां वैभव और विलास में डूब चुके थे उनके काल मे अंग्रेज और फ्रांसीसी घुस आए मगर उन्हें नर्तकियों से फुर्सत नहीं मिली।
औरंगजेब जब तक बादशाह बना तब तक उत्तर में सिखों का और दक्षिण में मराठाओ का उदय हो चुका था, औरंगजेब ने 50 साल राज किया मगर 25 से ज्यादा वर्ष उसे मराठाओ और दक्षिणी राजवंशो से लड़ने में लग गए। औरंगजेब की मौत के बाद तो जब पेशवाओ ने हमले शुरू किये तब मुगलो को भागते देर नही लगी।
सबसे पहले गुजरात मराठाओ के कब्जे में आया बड़ौदा को राजधानी बनाया गया, जूनागढ़ के नवाब ने बड़ौदा के गायकवाड़ राजा के आगे हथियार डाल दिये और आश्वासन दिया कि उसके नवाब रहते किसी हिन्दू को परेशान नहीं किया जाएगा।
यही मध्यप्रदेश में हुआ दक्षिण से होल्कर और उत्तर से सिंधिया ने एक साथ हमला किया भोपाल को छोड़कर पूरा मध्यप्रदेश मराठा साम्राज्य में मिल गया, भोपाल का नवाब घिर चुका था यदि हिन्दुओ के साथ कुछ करता तो सिंधिया या होल्कर से युद्ध को आमंत्रित करता। राजस्थान में भी राजपूतों ने एकता दिखानी शुरू की और एक एक करके सारे साम्राज्य आज़ाद होते गए।
कश्मीर पर हिन्दुओ का आधिपत्य हुआ, जालंधर और पटियाला सिखों के हाथ आ गए। पूर्वी भारत मे छोटे छोटे राजवंशो में चिंगारी भड़क उठी, सिर्फ पूर्वी बंगाल शेष रह गया जो आज बांग्लादेश बन चुका है। इस तरह मुगलो का सफाया पूरे भारत से हुआ।
इसीलिए यदि कोई आपसे कहे कि मुगलो ने 800 साल राज किया और फिर भी आज हिन्दू 100 करोड़ है तो उसे आईना दिखाने में परहेज ना कीजिये, मुगलो का पतन मराठा, राजपूत, जाट और सिख एकता का परिणाम था। हमारे पूर्वजों ने कठिन युद्ध करके इस देश पर भगवा फहराया है, भारत के अंदर मुगलो को मौका नही मिला इसलिये आज यहाँ हिन्दू बहुसंख्यक है।
जहाँ मुगलो को मौका मिला वो जगह (ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश) तो आज इस देश के नक्शे में है भी नही, हिन्दुओ की तो पूछो ही मत। मुगलो की किस्मत अच्छी थी कि जब हिन्दू जागे तब तक ब्रिटिश अंदर घुस आए और जल्दबाजी में झक मारकर दिल्ली के सिंहासन पर बैठे बहादुर शाह जफर को बादशाह बनाना पड़ा।
यदि अंग्रेज 50 साल की देर और करते तो मुगलो का नाम भी आज इस देश मे नही मिलता।
साभार
Parakh Saxena
 प्रो. कुसुमलता केडिया जी ने अधिवक्ताओं के राष्ट्रिय अधिवेशन में अत्यंत प्रभाव शाली व्याख्यान दिया जिसके महत्वपूर्ण बिंदु मनन योग्य हैं :
१ वर्तमान संविधान में अधिकाँश प्रावधान Govt.of India act 1935 से लिए गए हैं ,कुछ अन्य प्रावधान अमेरिका, फ्रांस आस्ट्रलिया , जर्मनी ,स्विट्ज़रलैंड आदि से लिए गए पर मूल आधार १९३५ का एक्ट है .
२ अंग्रेजों ने उक्त एक्ट बनाया था पर स्वयं इंग्लैंड में कोई लिखित संविधान 
नहीं है . 
३ संविधान वस्तुतः शासन के नियमों (Rules of Governance)का संकलन है
४ अंग्रेजों ने यह एक्ट स्पष्ट और घोषित योजना से बनाया था ,वह था :Unilateral Transfer of Resources --संसाधनों का एकतरफा हस्तांतरण . भारत के संसाधन इंग्लैंड जाते रहें ,इसके लिए उक्त एक्ट था
५ प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सेनाओं की कृपा से इंग्लैंड और फ्रांस के सैनिकों के प्राण बचे और इस पक्ष की जीत हुयी इसलिए भारत की सैन्य शक्ति को यूरोप अच्छे से जानता है ,इंग्लैंड तो विशेषतः जानता है .भारतीय सैन्य अधिकारियों और सैनिकों को दिये गए विक्टोरिया क्रॉस एवं अन्य पदक इसके प्रमाण हैं .
६ मिन्टो मारले समिति के समय से यह स्पष्ट हो गया था कि भारत के ब्रिटिश हिस्से को स्वायत्तता देनी पड़ेगी .
७ तब से इंग्लैंड में पढ़े चतुर लोग इस जुगत में लग गए कि अंग्रेज हमें ही वारिस बनाकर जाएँ .
८ १९४७ तक भारत में ५०० से अधिक देशी राज्य थे जो सब भारतीय शासन नियमों से शासन करते आये थे . उनमे से कुछ राजवंश ६०० -७०० वर्षों तक निरंतर शासक रहे थे अतः ९० साल तक लगभग आधे भारत के ही शासक रहे आतातायियों के शासन से भारत को कुछ भी क्यों सीखना था ?
९ दो दो महायुद्धों में भारत से सहायता के बल पर बचने के कारण यह बाध्यता थी कि अंग्रेज भारत को दिया वचन पूरा करें और जाएँ .
१० अपने वास्तविक विरोधियों और शक्तिशाली भारतीयों से डरने के कारण अंग्रेजों ने थोड़े कायर और कमजोर तथा अपने समर्थकों को गद्दी सौंपकर जाने की युक्ति रची ताकि अपने हित सुरक्षित रहें
११ गाँधी जी और नेहरु को कहा गया कि हमें तो जाना पड़ेगा अतः तुम अंग्रेजो भारत छोडो का नारा दो और श्रेय स्वयं लूट लो '
१२ आन्दोलन नियंत्रण से निकलता दिखा तो ६ महीने में अंग्रेजों ने कांग्रेस के आन्दोलन को कुचल दिया और गाँधी नेहरु ठन्डे पड गए अतः उनके किसी दबाव से अंग्रेज गए ,यह नितांत झूठ है .वैश्विक परिस्थितियों और अपनी जर्जर दशा तथा नेताजी के भय से उन्होंने अपने मित्रों को सत्ता का हस्तांतरण कर भागने की तैयारी की .

१३. कांग्रेस में गाँधी जी की लोकप्रियता उतार पर थी और नेहरु को स्वयं कांग्रेस में कोई नहीं चाहता था इसीलिए कार्यकारिणी ने नेहरु को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में एक भी वोट नहीं दिया ,सरदार तथा अन्य लोग लोकप्रिय थे .
१४. अपने अंग्रेज मित्रों के आग्रह पर गाँधी जी ने कांग्रेस कार्यकारिणी पर बहुत भावात्मक दबाव डालकर नेहरु को कांग्रेस अध्यक्ष बनवाया क्योंकि तय था कि अध्यक्ष ही पहला प्रधानमन्त्री होगा .
१५ गाँधी नेहरु ने मज़हब के आधार पर भारत के २ स्पष्ट टुकड़े किये अतः शेष भारत केवल हिन्दुओं का है ,यह उस समय स्वयं जिन्ना मान रहे थे .
१६ गाँधी नेहरु सशक्त भारत से डरते थे क्योंकि स्वयं कमजोर मन के थे इसलिए भारत को कमजोर रखने और हिन्दुओं को दबाये रखने के लिए शेष भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं घोषित किया गया .
१७मौर्यों , गुप्तों , चोलों ,चालुक्यों ,राष्ट्रकूटों ,सातवाहनों , पांड्यों ,पल्लवों , होय सलों ,आंध्रों ,भोजों, वाकाटकों , गौडों कदम्बों ,गंग वंशियों ,यादवों चेरों अहोमों ,राजपूतों ,मराठों -पेशवाओं ,कलचुरियों ,चंदेलों बुंदेलों , गहरवारों , सिसोदिया वंश, पालों , प्रतिहारों ,परमारों ,होलकरों ,चौहानों मालवों , सिंधिया , भोंसले गायकवाड आदि आदि की शासन व्यवस्था के आधार पर संविधान नहीं रचकर इंडिया एक्ट १९३५ के आधार पर संविधान रचा गया तो इसका एकमात्र कारण संसाधनों के एकतरफा हस्तांतरण की नीति जारी रखने की योजना और नीति तथा नीयत है या थी .
१८ संविधान एक ड्राफ्ट समिति ने रचा और उसे एक संविधान सभा ने अपनाया .उसकी रचना संसद ने नहीं की और जनता ने तो कभी की ही नहीं इसलिए "We the people of India ------"यह प्रस्तावना का प्रथम वाक्य मात्र अलंकारिक है .
१९ इंग्लैंड का अनुभव केवल एक छोटे से क्षेत्र इंग्लैंड में कुछ सौ वर्षों के शासन का है ,भारत के एक हिस्से में तो वह ९० वर्षों में ही फ़ैल हो गया अतः ऐसे विफल राज्यतंत्र वाले एक्ट से नक़ल की क्या जरूरत थी ? और शताब्दियों विशाल क्षेत्र में राज्य करने वाले भारतीय राजाओं के राजधर्म से सीखने में क्या दिक्कत थी ?
२० भारत की परंपरा है कि सुशासन के सामान्य आधारों पर विस्तृत नियम क्षेत्र की जनता के जीवन अनुभवों और परम्पराओं से बनाते और चलते रहते हैं .एक ही प्रकार के नियम इतने विशाल क्षेत्र में संभव भी नहीं और उचित भी नहीं .

२१. स्पष्ट है कि संसाधनों के एकतरफा हस्तांतरण के लिए ही इंडिया एक्ट १९३५ संविधान की शक्ल में पुनः लागु किया गया .
२२ इसका प्रमाण यह है कि विगत ७० वर्षों से संसाधनों का एक तरफा हस्तांतरण जारी है और जितना संसाधन ९० वर्षों में अंग्रेज भारत से ले गए ,उस से लगभग ५० (या और अधिक ) गुना भारतीय संसाधन ७० वर्षों में भारत से बाहर विकास के नाम पर गया है .
२३ ये सत्य पर आधारित आर्थिक आंकड़े हैं .(पूज्य स्वामी रामदेव जी की इस बात का केडिया जी की बात से समर्थन हो रहा है कि अंग्रेजों से कई गुना ज्यादा भारत को कांग्रेसियों ने लूटा और भारत का धन बाहर भेजा है :रामेश्वर मिश्र पंकज )
२४ सबसे मुख्य तथ्य यह है कि अभी के सत्ता संपन्न लोगों और अंगों की स्वयं की यह आत्मस्वीकृति है कि वे सभी अंग भृष्ट हैं और भृष्टाचार में लिप्त हैं क्योंकि नेताओं यानी विधायिका के राष्ट्रिय और प्रांतीय अंगों पर स्वयं विधायकों और सांसदों ने भृष्टाचार के अति गंभीर आरोप लगाये जो अधिकाँश सिद्ध हुए , कार्य पालिका(अफसर शाही ) के भ्रष्टाचारों की चर्चा जन जन में है और लोग कराह रहे हैं तथा न्यायपालिका के भ्रष्टाचार से अधिक उसकी अति विलंबित गति और दोषियों को दण्डित करने में अति भयकर देरी और अधिकाँश प्रकरणों में विफलता स्वयं न्याय पालिका के लोगों द्वारा आत्मस्वीकृत है .
२५ इस प्रकार यह ढांचा तो केवल हमारे धैर्य और सहनशील स्वभाव से टिका है ,इसकी विफलता स्वयं इसके अंगों द्वारा आत्मस्वीकृत है .
अतः हिन्दू राष्ट्र भारत को सनातन धर्म के राजधर्म को अपनाना पड़ेगा .

समाप्त

कहीं आपके कुलदेवता /कुलदेवी नाराज  तो नहीं..?
,प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है ,बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया ,पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे
समय क्रम में  दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने ,जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयता पनपने ,इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है
कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता ,किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं ,नकारात्मक ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है ,उन्नति रुकने लगती है ,पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन ,कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू हो जाती हैं ,व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है  ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है ,भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है ,
ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ,क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है ,कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है ,अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है ,,ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है ,,
,सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है ,,शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं ,,,यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है ,परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं 
,अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे |................................................................

shubh-samachar

जावा की राजकुमारी कंजेंग राडेन ने घर वापसी ../
                      इंडोनेशिया में जावा सबसे बड़ा प्रदेश है, इंडोनेशिया के अधिकतर नागरिक जावा के ही रहने वाले है, इंडोनेशिया कई द्वीप समूहों से मिलकर बना है, वैसे तो इंडोनेशिया में राष्ट्रपति इत्यादि होते है, पर ब्रिटैन की तरह ही यहाँ भी राजपरिवार है
और जावा की राजकुमारी कंजेंग राडेन ने इस्लाम को त्याग दिया है, और पूर्ण विधि विधान से करवाकर सनातन धर्म को स्वीकार किया है, कंजेंग राडेन ने अपनी शुद्धि सनातन धर्म के विधि विधानों से ही करवाई, और इसके बाद सनातन धर्म की दीक्षा ली और अब वो हिन्दू बन गयी हैं
कंजेंग राडेन का कहना है की, इंडोनेशिया का मूल धर्म सनातन धर्म ही है, और उन्होंने धर्मांतरण नहीं किया है, बल्कि वो अपने ही मूल धर्म में वापस आयी है, भारत में इसी प्रक्रिया को घर वापसी भी कहते है, ऐसे में हम कह सकते है की जावा की राजकुमारी कंजेंग राडेन ने घर वापसी ही करी है
आपकी जानकारी के लिए बता दें की इस से पहले इंडोनेशिया के सुप्रीम कोर्ट की जज ने सनातन धर्म स्वीकार किया है, इंडोनेशिया आज मुस्लिम बहुल देश है, पर पहले इंडोनेशिया इस्लामिक देश नहीं बल्कि एक हिन्दू देश ही था, और इसी कारण आज भी इंडोनेशिया में हिन्दू धर्म के प्रतिक हर जगह है, इंडोनेशिया के लोगों का भी ये मानना है की उनका धर्मांतरण हुआ है, पर पूर्वज उनके हिन्दू ही थे
कुमार अवधेश सिंह
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                  योगी आदित्यनाथ जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद प्रदेश की जेलों में लंगडे-लूलों की तादाद बढ गयी है। पल भर में महिलाओं का सुहाग उजाड़ने, बच्चों को यतीम बनाने, गुंडा टैक्स वसूली और दूसरों के घरों-दुकानों पर जबरन कब्जा करने वालों पर योगी की पुलिस कहर बन कर टूटी है।
मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही योगी जी ने असामाजिक तत्वों को जैसी चेतावनी दी थी उसी के अनुरूप गुंडों को उनकी असल जगह पर पहुंचाने के काम में पुलिस जुट चुकी है। योगी सरकार बनने के बाद अब तक पुलिस और बदमाशों के बीच लगभग 1200 से अधिक मुठभेडें हो चुकी हैं। कुछ बदमाश ऊपर पहुंच चुके हैं तो सैकडों लंगडे-लूले होकर जेलों में पडे हैं।
हालत यह हो गई है कि पेशी पर कचहरी लाए जाने पर कभी आम आदमी के लिए खौफ का पर्याय माने जाने वाले गुंडे अब दूसरों के कांधे का सहारा लिए बिना एक डग भी नहीं चल सकते। चलने के नाम पर यह घिसटने को अभिषप्त हो चुके हैं।
                  योगी के गुंडा दमन अभियान के सकारात्मक परिणाम दिखाई देने लगे हैं। महिलाओं के गले से सोने की चेन झपटने वाले नदारद हो गये। दोपहिया वाहनों की चोरी थमी है। गुंडा टैक्स वसूली पर लगाम लगी है। कुख्यात अपराधी जिंदगी बचाने को खुद जमानत तुड़वा कर जेलों में जाने में ही अपनी भलाई मान रहे हैं।  कुछ भी हो पर कानून व्यवस्था में सुधार दिखने लगा है। यह बात अलग है कि विपक्ष यह कभी स्वीकार नहीं करेगा
जितेंद्र दीक्षित जी की पोस्ट
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आज कल यूरोपीयन देशों हाँलेंड, स्पैन, नार्वे, इंग्लेन्ड, फ़्रांस आदि में तनाव एंव अवसादग्रस्त लोगों को 'काउ यार्ड थेरपी' से ठीक किया जा रहा है ।
जिन लोगों मे आत्महत्या की प्रवत्ति, डिप्रेशन, तनाव, अवसाद आदि के लक्षण पाये जाते हैं उन्हे 'काउ यार्ड थेरेपी' से ठीक किया जा रहा है।
उन्हे १५ दिन गौशाला में गायौं के साथ ही सोना रहता है, दिन में कई बार गायों को गले लगाया जाता है ,
गाय को स्पर्श करवाया जाता है, एंव गाय का दूध पिलवाया जाता है।
जिसके चौंकाने वाले परिणाम इनको मिले हैं।
गाय मे गजब का हीलिंग पावर होता है।
और ये थेरेपी आजकल अमेरीका मे भी बहुत मशहूर हो रही है।
अमेरीका के न्यूयार्क टाईम्स के कॉलमिस्ट जेने लाग्सडन ने सर्वे कर ये पाया की अस्थमा जैसी बीमारी भी गौशाला में रहने से कम हो सकती है।
अनेक शोधों से ये पता चला है कि गाय का शरीर आसपास रहने वाले लोगों के शरीर से तामसिक उर्जा खीचने की अद्भुत क्षमता रखता है।
लगता है कि हम अपने वैदिक विज्ञान को तभी सम्मान दे पाते हैं जब सफ़ेद चमडी वाले इसे प्रमाणित करते हैं ।
यही योग, संस्कृत और आयुर्वेद के साथ भी हुआ है।
Link of New york Times Article.
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Wednesday 27 December 2017

shibu ...ji ----desh bhakti

https://www.facebook.com/1848282895431376/videos/1991677904425207/
वृन्दावन में 1965 तक कोई मुस्लिम नहीं था । आज मुसलमानों की संख्या 5 हजार से ज्यादा हो गई हैं और ।।
कभी एक भी मस्जिद नहीं हुआ करती थी; वृन्दावन में आज तीन तीन मस्जिदें रोज सुबह शाम कानो की नींद हराम कर रही हैं।।
रिफ्यूजी जिहादियों ने ने पवित्र "वृन्दावन" को भी घेरा ओर ईद उल जुहा पर !!
650 बकरे, भैसे, ऊँट, गाय और अन्य जानवर काटकर वृन्दावन की नगरी को अपवित्र किया ।।
याद रहे 2009 तक वृन्दावन में सिर्फ गिनती के 4-5 परिवार हुआ करते थे ।। और आज इनकी संख्या हजारों मैं पहुच गई हैं ।।
ये एक तरीके का रिफ्यूजी जिहाद होता हैं ।।
जहां इस्लाम नहीं होता,
जिसके अंतर्गत जिस जगह इस्लाम नही होता ।। उस जगह पर इस्लाम बसाया जाता हैं ।।
और आपको जानकर यह भी आश्चर्य होगा कि
वृन्दावन में एक "बाबुद्दीन" नामक व्यक्ति पर 21 लड़के और लड़कियां हैं ।।
इस्लाम का रिफ्यूजी जिहाद कर सहयोग कर रहा हैं ।।।
उस जगह पर दिन दुगनी ओर रात चौगुनी की तरह बच्चो को पैदा किया जा रहा हैं ।।
ये मुस्लिम वृन्दावन में रहने के लिए बड़ी कीमतों पर मकान ले रहे हैं ।।
ओर उस जगह मुस्लिमो को लेकर रह रहे है ।। दो तीन साल के अंतराल में अपने रिस्तेदारो को बुला लाते है ।। और उन्हें भी वही बसा लेते हैं ।।
ये मुस्लिम हिन्दुओ से वृन्दावन में हिन्दूओ का रोजगार छीन रहे है और ।।
वो दिन दूर नहीं जब वृन्दावन की गलियों में मीट बिकना शुरू हो जाएगा ।।

mediya

सावधान.../
पृथ्वी पर मनुष्य की संख्या 1 अरब होने मे एक लाख वर्ष लगे
परन्तु दो अरब होने मे हमे केवल 100 वर्ष लगे
और चार अरब होने मे हमे 50 वर्ष लगे
और आठ अरब होने मे हमे मात्र 40 वर्ष लगे...और अगले 32 अरब होने मे केवल 20 वर्ष
और तब हम जीवित रहने के लिए एक दूसरे को मार रहे होंगे...पूरी तरह सम्भव है कि यह सब हमारी आखों के सामने ही हो जाये...
कुमार अवधेश सिंह
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क्या पाकिस्तान से कभी कोई ऐसी आवाज आई है कि  "कांग्रेस" से खतरा है " सोनिया_गांधी " से खतरा है " राहुल_गांधी " आम आदमी पार्टी  या " मुलायम  लालू  मायावती " से खतरा है..?
पाक हमेशा सिर्फ एक ही बात बोलता है  हमारे लिए " मोदी "  "बीजेपी "  और " RSS " खतरा है....
और यही भाषा हमारे देश के सेकुलर(गुलाम) भी बोलते है कि-हमें पाकिस्तान से पाकिस्तान समर्थित मुस्लिम आंतकवाद से ,देश में पनप रहे मुस्लिम कटटरवाद से ,ISIS समर्थकों से , देश में जातिवाद , साम्प्रदायीकता व अराजकता फैला रहे ओवेशी/ आजम/ बुखारी/ मुलायम/ममता/ लालू/ मायावती/ केजरीवाल ..से कोई खतरा नही है.. हमें और हमारे देश को खतरा है तो वो नरेन्द्र मोदी , बीजेपी , RSS ,विश्वहिन्दू परिषद और देश के हिन्दू व हिन्दूवादी संगठनों से है..आखिर ऐसा क्यो .?
अरे इन भाषाओं को कुछ तो समझो मेरे देशवासीयों.... ! होश में सोचो और समझो..गम्भीर बात है भविष्य के लिए..
कुमार अवधेश सिंह
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आत्मघाती अनुच्छेद 370 सा 371
अनुच्छेद 371 का परिणाम-
नागालैंड में- 90% ईसाई 
मिजोरम में-88% ईसाई
मेघालय में-84% ईसाई
मणिपुर में-41% ईसाई
अरुणाचल प्रदेश में- 40% ईसाई जनसंख्या।
संविधान का अनुच्छेद 371ईसाई बहुल प्रांतों यथा-नागालैंड,मिजोरम,मेघालय में कई स्थानों पर हिन्दू को भूमि क्रय का अधिकार नही है,यह अधिकार ईसाई नागाओं को है।मणिपुर मे भी ऐसी सुविधा ईसाई नागाओं को दी गई है।यहाँ ईसाई धर्म-प्रचारकों का गढ़ है।
राष्ट्रपति के पास इस अनुच्छेद को खत्म करने का अधिकार है तब राष्ट्रपति अधिकार का प्रयोग क्यों नही करते?क्या इसतरह देश के ये भाग भविष्य में भारत का भाग रह पाएंगे?
(हिन्दूओं के साथ सौतेला व्यवहार सबजगह दिखता है।)
पोस्ट:- रीता सिन्हा
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#भारत में #ईसाई मिशनरी के पास #सबसे ज्यादा जमीन है #जिसे अंग्रेजों ने 1820 से तथा #कांग्रेसी सरकारों ने मात्र #एक रुपये की #लीज पर दिया है #इन #मिशनरियों द्वारा #संचालित स्कूलों से #प्रति वर्ष "पांच लाख करोड़ ₹" की #आय होती है #जिससे देश मे #धर्म #परिवर्तन का कार्य #किया जाता है #और इन स्कूलों में 92%#हिन्दू पढ़ते हैं !!

सन 1893 में ब्रिटिश शासकों ने चर्चो को 100 साल के लिए भारत में जमीने #लीज पर दी थी जिसके कारण आज ये चर्च भारत में बिना कीमत चुकाए सबसे ज्यादा जमीनों के मालिक बने बैठे हैं । चूँकि अब सन 1993 को यह लीज की अवधि समाप्त हो जाती है परंतु आज भी वह जमीने चर्चो के पास क्यों और कैसे हैं...???

मेरी भारत सरकार से #मांग है कि चर्च की ऐसी सारी जमीनों पर बेनामी सम्पति कानून का प्रयोग करके सारी जमीने भारत सरकार वापस ले ।
avdhesh kumar
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भारत के असली अल्पसंख्यक :-
1. #जैन ---सबसे धनी #minority, शांत --कोई अपराध नही करते। 100% literacy rate....
2. #पारसी - धनी, 100% लिटरेसी रेट....
3. #सिख :-15% आर्मी में सेवारत, 80%लिटरेसी रेट।बहुत ही मेहनती और उच्चकोटि के व्यापारी....
अब नकली अल्पसंख्यक - #मुस्लिम :-देश की सबसे बड़ी समस्या यही है. 70 सालों बाद भी 70% अनपढ़....
#मदरसा छाप....
कोई ऐसा #अपराध नही जो ये नही करते....
#आर्मी में जाएंगे तो देशद्रोह करेंगे....
पूरी कम्युनिटी #सिर्फ मूल्ला मौलवी के कंट्रोल में....
देश के इनकम टैक्स #GST में भी योगदान -लगभग शून्य
जनसंख्या - 25 करोड़....
देश की सर्वोच्च समस्या यही नकली माइनॉरिटी कौम है.....
कुमार अवधेश सिंह
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हिंदुत्व

देश के दुश्मनों की पहचान करना , छिपे खतरनाक दुश्मनों को उनके बिलों से बाहर निकाल के उनकी पहचान समाज में एक्सपोज करना , दुश्मनों की मजबूत जड़ो को खोखला करना , दुश्मनों के मजबूत तानेवाने को तोड़ना , राष्ट्रवादियो की जगाना , राष्ट्रवादियो को उनके तथा राष्ट्र के दुश्मनों की पहचान कराना , मातृभूमि को विकसित तथा देश के वाह्य तथा आतंरिक दुश्मनों से सुरक्षित करना ...मातृभूमि पर निवास कर रहे समाज को अच्छा जीवन देने के गंभीर प्रयास करना ...देश तथा समाज के दुश्मनों की ह्त्या की बजाय उनको शनै शनै कमजोर करने के गंभीर प्रयास , तथा राष्ट्र एवं समाज की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ भविष्य के लिए सुरक्षित करना भी हिंदुत्व है ..............................सिर्फ घंटा बजाना , भजन करना , तथा निजी स्वार्थ वाली धार्मिक गतिविधियां करना ही इकलौता हिंदुत्व नहीं !!!
पवन अवस्थी
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मुल्क सेक्युलर चाहिए…लेकिन कानून श़रीया का चाहिए ...कमीनापन--
कुमार अवधेश सिंह
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सर से पिता की छत्रछाया गवा चुकी 251 बेटियों की शादी करवाने और सभी को 10_10 लाख रुपये की F. D. देकर ..... विदा करने वाले सुरत के महेश भाई सवानी को काेटि काेटि साधूवाद ....
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असम जैसे छोटे से राज्य में कुल जनसंख्या 3 करोड़ 29 लाख में से 1 करोड़ 39 लाख बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठिये हैं
इसके दो अर्थ हैं
काँग्रेस की पहले की केंद्र सरकारें घुसपैठियों को पाल रही थी , उनके प्रधानमंत्री कहते भी रहे हैं कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानो का है
दूसरा यह कि एक छोटे से राज्य का ये हाल है तो पश्चिम बंगाल स्थिति कितनी भयावह होगी , इसकी आप कल्पना कर सकते हैं !
कुमार अवधेश सिंह
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पुणे महराष्ट्र, बूंदी राजस्थान की घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि देश मे जनाक्रोश बहुत है। गृहयुद्ध की स्थिति बन गयी है। देश विरोधी ताकतें और विपक्षी दल दंगा फसाद भड़काएँगे।
ये देश,धर्म विरोधी ताकतों और विपक्षी दलों का विराट षड्यन्त्र है, वृहत्तर हिन्दू समाज को कई टुकड़ों में बांट कर 2018 में 8 राज्यों में होने वाले, और 2019 के लोक सभा चुनावों में नरेंद्र मोदी और बीजेपी को धूल चटाने का।
गुजरात मे कांग्रेस इसी षड्यन्त्र के कारण जीत के करीब पहुँच गयी थी, और अब उसी षड्यन्त्र को ये और धार देंगे।
हम सभी को अपने अपने क्षेत्रों में सदैव, सर्वत्र, सजग, सतर्क, सशस्त्र और संगठित रहना होगा।
कुमार अवधेश सिंह
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चलो मान लिया कोरेगांव में दलित शौर्य का कार्यकर्म था। ये भी मान लिया कि दलितों के नेता जिसमे जिग्नेश मेवानी, राधिका बेमुला, और अम्बेडकर के पोते जैसे कई नेता आये।
अब कोई नव बौद्ध  मुझे बताएगा कि भारत तेरे टुकड़े.. वाला उमर खालिद, कई जिहादी मौलाना जिसमे से एक मौलाना कल कह रहा था कि औरत बिना मेहरम के हज पर जाएगी तो अल्लाह दोजख में डालेगा। ऐसे जिहादी उस मंच पर क्या कर रहे थे..?
बात साफ है कि ये वामन्थियो की लगाई हुई आग है। ये वामपंथी अब यही जातिवादी आग पूरे देश मे लगाएंगे, अगर इनका सर् कुचला नही गया तो। भीमवादी और ओवेसी कि भाषा एक है ...ये लोग कई वर्षो से दलित मुस्लिम गठजोड़ से सत्ता हासिल करना चाहते है आप महाराष्ट्र हिंसा को 2019 कि तैयारी समझ सकते है ।
 जो नव बौद्धों  को हिन्दू समझ रहे हो .अम्बेदकर ने इन्हें नकली बौद्ध बना दिया था .अब ये नव बौध  हमारे देवी देवताओं को अपशब्द कहते हैं . मनु समृती को जलाते हैं ..गौ हत्या करते हैं ..उनहे खाते हैं ..और इनका हाथियार है SC/ST Attrocity act और आरक्षण ... इनका आरक्षण खत्म कर दो ...सब सही हो जायेगा ..
ये  अगर असली बौद्ध होते तो मुल्लों को मारते जैसे म्यामार में असली बौद्ध मुल्लों को हलाल कर रहे हैं
Sanjay Dwivedy
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"कोंग्रेस को लगता है की यह श्रीमोदीजी-श्रीयोगीजी की जोड़ी दलित समाज का दिल जीतकर अपने पक्ष में ले जायेंगे! कोंग्रेस गुस्से में है!"
जिग्नेश+उमर ख़ालिद+cong ने ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ के सपने को पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में चाल खेल दी है.हिंदु तोड़ो राज करो।
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अभी-अभी गुजरात में जिसे "हल्दी की गाँठ" मिल गई है वो गालीबाज जिग्नेश मेवानी... और JNU का विषबीज उमर खा-लीद जैसे लोग, जिस सभा में होंगे वहाँ तो दंगे भड़काना और वैचारिक जहर बोना जैसे काम होंगे ही...
महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री ब्राह्मण है, इसलिए चर्च पोषित "मल-मूत्र निवासियों" ने वहाँ से दंगा शुरू किया है.... न खुद कोई काम करना है, न दूसरे को करने देना है...
जातिवादी कीड़े-मकोड़े देश में अशांति फैलाना चाहते हैं... लेकिन आप वोट की ताकत पर भरोसा रखिये...
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गुजरात चुनाव के बाद से ही स्पष्ठ था की अब हर भाजपा शाषित राज्य में जातीय हिंसा भड़काई जाएगी ।पाटीदार, मराठा, जाट, गुर्जर, ब्राह्मण आंदोलन होने तय है ।
2019 का बिगुल बज चुका है ।2014 में एकत्र हुए हिन्दू को खंड खंड करने की बिसात बिछ चुकी है

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जावा की राजकुमारी अपने मूल सनातन की तरफ लौट चुकी है
ईरान में आर्य होने की बेताबी मची है
मतलब बहुत कुछ अपने आप बदलने लगा है...
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