Thursday 21 December 2017


#औघड़_और_रंडी - १८   अमित अज्ञेय आत्मन् जी के सौजन्य से:
काली मारुति वैन लहराते हुए भागी जा रही थी और पीछे तनु स्कूटी पर पूरा प्रयास करने के बाद भी उस तक पहुँच नहीं पा रही थी।
वैन लहराते हुए मुख्तार पहलवान के फॉर्म हाउस में घुस गई। फटाफट दरवाजे खुले और शोएब अपने साथियों के साथ बाहर निकल आया।
उनमें से एक की बाँहों में अर्धमूर्छित सी विद्या झूल रही थी।
निश्चित ही उसे इन लोगों ने नशे का हैवी डोज़ दिया हुआ है।
"ऐ कुत्ते छोड़ लड़की को...!!!"
......तनु ने अपनी गाड़ी एक तरफ फेंकी और दहाड़ती हुई उनकी ओर लपकी।
"भाई, एक और हसीना..."एक लफंगे ने अधमुंदी आँखों से शोएब की ओर देख कर कहा।
"ले ले इसको भी..." शोएब ने दूसरे लफंगे से विद्या को झपटा और अंदर गोदाम की ओर बढ़ गया।
दो लफंगे नशे में चूर हालत में वहशियों की तरह तनु की ओर झपटे। एक क्षण में तनु को स्थिति की भयावहता और अपनी मूर्खता का अहसास भी हो गया और त्वरित निर्णय से यह भी समझ आ गया कि अब आगे ही बढ़ना है और आगे बढ़ने का मतलब है जीवन का दाँव खेलकर इन लोगों को समाप्त करना और विद्या को यहाँ से बचाकर निकलना।
उन दोनों को अपनी ओर झपटते देख वो पलट कर भागी और तभी उसकी दृष्टि एक लापरवाही से पड़े कुल्हाड़े पर पड़ी।
झपट कर तनु ने कुल्हाड़ा उठाया और अपने पास पहुँच चुके उस लफंगे पर पूरी शक्ति से प्रहार किया।
कुल्हाड़ा उसके सिर को बीच से फाड़ते हुए उसकी ठोड़ी तक धंस गया।
विचित्र सी घुटी हुई चीख मारकर वह लफंगा वहीं ढेर हो गया।
दूसरा ये भयंकर दृश्य देखकर काँप गया और चीखा, "भाई, इसने फजलू को मार डाला...!!!"
उसकी बात पूरी होने तक तनु उसके पास पहुँच गई और घुमाकर एक सधा हुआ वार उसकी कनपटी पर किया।
कुल्हाड़ा कनपटी फाड़ता हुआ आँख बाहर निकाल लाया।
ये भी ढेर....।
शोएब ने ये देखा तो उसकी रूह को कँपकँपी छूट गई पर साहस बटोरकर उसने अपना चाकू खोला और चिल्लाते हुए तनु पर झपटा। तनु किसी प्रशिक्षित योद्धा की तरह एक कदम पीछे हट गई और अपनी ही झोंक में आगे बढ़ रहे शोएब को लंगी लगा दी।
धड़ाम से शोएब नीचे गिर पड़ा और जबतक वो सँभलता तनु ने उसके पीछे पहुँच कर गर्दन पर एक भरपूर वार किया और एक हिचकी के साथ शोएब की गर्दन कट कर लटक रही थी।
रक्त के फव्वारे छूटने लगे थे और उसके बीच से निर्लिप्त सी रणचंडी आखिरी लफंगे की ओर बढ़ी।
वो भय के मारे जड़ हो गया और उसकी पेशाब निकल गई।
आजतक किसी साकार स्वरूप को न मानने वाले ने आज महाकालप्राणसखी शुभंकरी का जीवंत विग्रह देख लिया था।
वो कुछ सोच पाता इसके पहले ही कुल्हाड़े के एक प्रचंड प्रहार ने उसे बहत्तर गिनवाने पहुँचा दिया।
तनु ने विद्या की ओर देखा।
वो बेसुध सी जमीन पर पड़ी थी।
अब उसे कोई खतरा नहीं है।
चैन की साँस लेते हुए तनु ने विद्या की तरफ कदम बढ़ाए ही थे कि तूफानी गति से एक जीप आकर रुकी और सामने से दरवाजा खुला और एक दरिंदे सी शक्ल का अधेड़ बाहर कूदा।
मुख्तार पहलवान ने अपने बेटे की गर्दन धड़ से झूलती देखी और एक क्षण में पिस्टल बाहर निकाल कर तनु पर अँधाधूँध फायरिंग कर दी। पूरी पाँच गोलियाँ तनु के शरीर में धँस गईं और वो लहराते हुए जमीन पर आ गिरी।
मुख्तार पहलवान के गुर्गे भी बाहर आ गए।
तभी उनके पीछे एक स्कॉर्पियो रुकी और उसमें से एक औघड़ बाहर कूदा और उसने दनादन गोलियाँ बरसा दीं।
एक मिनट में मुख्तार पहलवान समेत उसके पाँच गुर्गों को श्यामानंद ने जन्नत की लोकल ट्रेन में बैठाकर रवाना कर दिया।
बहादुर सिंह बाहर आ गया था।
पीछे से संगठन के दो और लोग बाइक पर आए थे।
उनमें से एक को बहादुर सिंह ने इशारा किया और वो तनु की स्कूटी लेकर बाइक वाले के साथ उज्जैन की तरफ निकल गया।
श्यामानंद और बहादुर सिंह ने मिलकर सब लाशों को अंदर गोदाम में इस तरह से रखा जैसे वे लोग पहले से ही वहीं बैठे थे।
पूरा गोदाम विस्फोटकों से भरा हुआ था।
श्यामानंद ने दो तीन बक्से चैक किए और अपने पास से दो छोटे बम टाइमर सेट करके वहाँ छोड़े और पलट कर बाहर भागा।
तनु और विद्या को स्कॉर्पियो में डाल कर तूफान की तरह स्कॉर्पियो बाहर निकल आई और उज्जैन की तरफ उड़ चली।
बमुश्किल सौ मीटर गए होंगे कि एक गगनभेदी धमाके ने उनके कान सुन्न कर दिए।
"हो गया लंकादहन...!" बहादुर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा।
"जय महाकाल...।" श्यामानंद ने उत्तर दिया।
अब श्यामानंद का ध्यान अपनी बाँहों में सिमटी तनु की ओर गया। उसकी सांसें उखड़ रहीं थीं।
उसने अपनी बाँहें जैसे तैसे श्यामानंद के गले में डाल दीं और उसके वक्ष पर सिर रखकर एक गहरी साँस ली और छोड़ दिया इस नश्वर संसार को।
गाड़ी आश्रम के बाहर रुकी और विद्या के पिता को बिना कुछ कहे विद्या सौंप कर आगे बढ़ गई।
विक्रांत भैरव श्मशान घाट पर एक चिता तैयार की गई।
बहादुर सिंह और श्यामानंद ने तनु के शरीर को सम्मान के साथ प्रणाम करते हुए चिता पर रखा और श्यामानंद ने उसे मुखाग्नि दी।
धू धू कर जलती हुई चिता की आग अब मंद पड़ रही थी और श्यामानंद सूनी आँखों से देखे जा रहा था इस अद्भुत कहानी को भस्म होते।
उसके मन में तनु के शब्द गूँज रहे थे,"आप तो सत्या के आश्वासन का मान रख लेना।"
बुझ रही चिता के भस्म कण श्यामानंद के शरीर को भस्म स्नान करा रहे थे।
मानो तनु कण कण होकर अपने प्रियतम पर बरस रही थी।
पीछे से किसी ने कँधे पर हाथ रखा।
श्यामानंद वर्तमान में आया।
बहादुर सिंह के साथ वो गाड़ी में बैठ कर महेश्वर की ओर निकल गया।
बाबा काशीनाथ के आश्रम पर मेजर मोहित पुरी, बहादुर सिंह, श्यामानंद और बाबा काशीनाथ के साथ एक नए अतिथि बैठे थे।
रॉ के बड़े अधिकारी #दलबीर_सिंह_संधू ।
"सर मिशन अकंप्लिश्ड...पूरा मॉड्यूल खत्म।" बहादुर सिंह ने अपने अफसर को रिपोर्ट किया।
बहादुर सिंह रॉ का अंडर कवर एजेंट था।
सबने खुशी के साथ भगवान शिव का धन्यवाद किया।
लाखों भक्तों की रक्षा के लिए महाकाल का भक्त अपने प्राणों की आहुति देने में भी गौरव अनुभव करता है।
बाबा काशीनाथ एकाएक बोले, "दो महीने बाद कुंभ आएगा और धर्म ध्वजा चढ़ेगी। लेकिन किसी को पता नहीं चलेगा कि एक देवी ने इस ध्वजा को अपने हृदय में गाड़ कर आधार दिया है। हमें उसका उत्सर्ग भूलना नहीं चाहिए।"
सभी मौन हो गए।
श्यामानंद की आंखें नम हो गईं।
एक महीने बाद रतलाम में तनु के मुहल्ले की औरतों में आपस में बातचीत हो रही थी, "अरे, वो वर्माजी की छोरी नी है तनु??? इत्ते साल से उज्जैन में किसी आश्रम में रह रही थी और अब पता चला है कि किसी औघड़ बाबा के साथ भाग गई।"
दूसरी औरत ने मुंह बिचकाकर प्रतिक्रिया दी,"हुंह, रंडी थी। ऐसियों के कोई एक ठिकाने तो होते नहीं।"
श्यामानंद ने एक गहरी सांस ली और अपने लालिमा लिए नेत्रों से आकाश की ओर देखा और कहा,"इसका कर्ज़ चुकाने के लिए एक पूरा जन्म देना कभी महाकाल।"
दूर कहीं कोई शौकीन आदमी गीत बजा रहा था अपने टेपरिकॉर्डर पर,"ये प्यार था या कुछ और था, न तुझे पता न मुझे पता....।"

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