Wednesday 20 June 2012

महाभारत के बाद से आधुनिक काल तक के सभी राजाओं का विवरण

जितने भी लोग महाभारत को काल्पनिक बताते हैं.... उनके मुंह पर पर एक जोरदार तमाचा है आज का यह पोस्ट...!

महाभारत के बाद से आधुनिक काल तक के सभी राजाओं का विवरण क्रमवार तरीके से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है...!

आपको यह जानकर एक बहुत ही आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया था..... जिसका पूरा विवरण इस प्रकार है :
क्र................... शासक का नाम.......... वर्ष....माह.. दिन

1. राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir)..... 36.... 08.... 25
2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit)........ 60.... 00..... 00
3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay).... 84.... 07...... 23
4 अश्वमेध (Ashwamedh )................. 82.....08..... 22
5 द्वैतीयरम (Dwateeyram )............... 88.... 02......08
6 क्षत्रमाल (Kshatramal)................... 81.... 11..... 27
7 चित्ररथ (Chitrarath)...................... 75......03.....18
8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya)............... 75.....10.......24
9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain)......... 78.....07.......21
10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain).......78....07........21
11 भुवनपति (Bhuwanpati)................69....05.......05
12 रणजीत (Ranjeet).........................65....10......04
13 श्रक्षक (Shrakshak).......................64.....07......04
14 सुखदेव (Sukhdev)........................62....00.......24
15 नरहरिदेव (Narharidev).................51.....10.......02
16 शुचिरथ (Suchirath).....................42......11.......02
17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II)........58.....10.......08
18 पर्वतसेन (Parvatsain )..................55.....08.......10
19 मेधावी (Medhawi)........................52.....10......10
20 सोनचीर (Soncheer).....................50.....08.......21
21 भीमदेव (Bheemdev)....................47......09.......20
22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II)...45.....11.......23
23 पूरनमाल (Pooranmal)..................44.....08.......07
24 कर्दवी (Kardavi)...........................44.....10........08
25 अलामामिक (Alamamik)...............50....11........08
26 उदयपाल (Udaipal).......................38....09........00
27 दुवानमल (Duwanmal)..................40....10.......26
28 दामात (Damaat)..........................32....00.......00
29 भीमपाल (Bheempal)...................58....05........08
30 क्षेमक (Kshemak)........................48....11........21

इसके बाद ....क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 विश्व (Vishwa)......................... 17 3 29
2 पुरसेनी (Purseni)..................... 42 8 21
3 वीरसेनी (Veerseni).................. 52 10 07
4 अंगशायी (Anangshayi)........... 47 08 23
5 हरिजित (Harijit).................... 35 09 17
6 परमसेनी (Paramseni)............. 44 02 23
7 सुखपाताल (Sukhpatal)......... 30 02 21
8 काद्रुत (Kadrut)................... 42 09 24
9 सज्ज (Sajj)........................ 32 02 14
10 आम्रचूड़ (Amarchud)......... 27 03 16
11 अमिपाल (Amipal) .............22 11 25
12 दशरथ (Dashrath)............... 25 04 12
13 वीरसाल (Veersaal)...............31 08 11
14 वीरसालसेन (Veersaalsen).......47 0 14

इसके उपरांत...राजा वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा वीरमाह (Raja Veermaha)......... 35 10 8
2 अजितसिंह (Ajitsingh)...................... 27 7 19
3 सर्वदत्त (Sarvadatta)..........................28 3 10
4 भुवनपति (Bhuwanpati)...................15 4 10
5 वीरसेन (Veersen)............................21 2 13
6 महिपाल (Mahipal)............................40 8 7
7 शत्रुशाल (Shatrushaal).....................26 4 3
8 संघराज (Sanghraj)........................17 2 10
9 तेजपाल (Tejpal).........................28 11 10
10 मानिकचंद (Manikchand)............37 7 21
11 कामसेनी (Kamseni)..................42 5 10
12 शत्रुमर्दन (Shatrumardan)..........8 11 13
13 जीवनलोक (Jeevanlok).............28 9 17
14 हरिराव (Harirao)......................26 10 29
15 वीरसेन द्वितीय (Veersen II)........35 2 20
16 आदित्यकेतु (Adityaketu)..........23 11 13

ततपश्चात् प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण इस प्रकार है ..

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 राजा धनधर (Raja Dhandhar)...........23 11 13
2 महर्षि (Maharshi)...............................41 2 29
3 संरछि (Sanrachhi)............................50 10 19
4 महायुध (Mahayudha).........................30 3 8
5 दुर्नाथ (Durnath)...............................28 5 25
6 जीवनराज (Jeevanraj).......................45 2 5
7 रुद्रसेन (Rudrasen)..........................47 4 28
8 आरिलक (Aarilak)..........................52 10 8
9 राजपाल (Rajpal)..............................36 0 0

उसके बाद ...सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 समुद्रपाल (Samudrapal).............54 2 20
2 चन्द्रपाल (Chandrapal)................36 5 4
3 सहपाल (Sahaypal)...................11 4 11
4 देवपाल (Devpal).....................27 1 28
5 नरसिंहपाल (Narsighpal).........18 0 20
6 सामपाल (Sampal)...............27 1 17
7 रघुपाल (Raghupal)...........22 3 25
8 गोविन्दपाल (Govindpal)........27 1 17
9 अमृतपाल (Amratpal).........36 10 13
10 बालिपाल (Balipal).........12 5 27
11 महिपाल (Mahipal)...........13 8 4
12 हरिपाल (Haripal)..........14 8 4
13 सीसपाल (Seespal).......11 10 13
14 मदनपाल (Madanpal)......17 10 19
15 कर्मपाल (Karmpal)........16 2 2
16 विक्रमपाल (Vikrampal).....24 11 13

टिप : कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों।

इसके उपरांत .....विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 मालकचन्द (Malukhchand) 54 2 10
2 विक्रमचन्द (Vikramchand) 12 7 12
3 मानकचन्द (Manakchand) 10 0 5
4 रामचन्द (Ramchand) 13 11 8
5 हरिचंद (Harichand) 14 9 24
6 कल्याणचन्द (Kalyanchand) 10 5 4
7 भीमचन्द (Bhimchand) 16 2 9
8 लोवचन्द (Lovchand) 26 3 22
9 गोविन्दचन्द (Govindchand) 31 7 12
10 रानी पद्मावती (Rani Padmavati) 1 0 0

रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया !
जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 हरिप्रेम (Hariprem) 7 5 16
2 गोविन्दप्रेम (Govindprem) 20 2 8
3 गोपालप्रेम (Gopalprem) 15 7 28
4 महाबाहु (Mahabahu) 6 8 29

इसके बाद.......राजा महाबाहु ने सन्यास ले लिया । इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 अधिसेन (Adhisen) 18 5 21
2 विल्वसेन (Vilavalsen) 12 4 2
3 केशवसेन (Keshavsen) 15 7 12
4 माधवसेन (Madhavsen) 12 4 2
5 मयूरसेन (Mayursen) 20 11 27
6 भीमसेन (Bhimsen) 5 10 9
7 कल्याणसेन (Kalyansen) 4 8 21
8 हरिसेन (Harisen) 12 0 25
9 क्षेमसेन (Kshemsen) 8 11 15
10 नारायणसेन (Narayansen) 2 2 29
11 लक्ष्मीसेन (Lakshmisen) 26 10 0
12 दामोदरसेन (Damodarsen) 11 5 19

लेकिन जब ....दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।

क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 दीपसिंह (Deepsingh) 17 1 26
2 राजसिंह (Rajsingh) 14 5 0
3 रणसिंह (Ransingh) 9 8 11
4 नरसिंह (Narsingh) 45 0 15
5 हरिसिंह (Harisingh) 13 2 29
6 जीवनसिंह (Jeevansingh) 8 0 1

पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 0 माह 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन

1 पृथ्वीराज (Prathviraj) 12 2 19
2 अभयपाल (Abhayapal) 14 5 17
3 दुर्जनपाल (Durjanpal) 11 4 14
4 उदयपाल (Udayapal) 11 7 3
5 यशपाल (Yashpal) 36 4 27

विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

उपरोक्त जानकारी http://www.hindunet.org/ से साभार ली गई है जहाँ पर इस जानकारी का स्रोत स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ, चित्तौड़गढ़ राजस्थान से प्रकाशित पत्रिका हरिशचन्द्रिका और मोहनचन्द्रिका के विक्रम संवत1939 के अंक और कुछ अन्य संस्कृत ग्रंथों को बताया गया है।
साभार ....जी.के. अवधिया |

जय महाकाल....!!!

नोट : इस पोस्ट को मैंने नहीं लिखा है और मैंने इसे अपने एक मित्र की पोस्ट से कॉपी किया है क्योंकि मुझे ये अमूल्य जानकारी ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने की इच्छा हुई...

कौन है धर्मनिरपेक्ष ??

-इस देश में ४००० सिखों की हत्या कर दी जाती है पर सजा एक को भी नहीं ?

-इस देश में काश्मीर विस्थापित ५०००० हिन्दू अपने ही वतन में शरणार्थी है |

-इस देश के मुल्ला-मौलवियों और मदरसों के लिए सरकारी खजाने से पैसा दिया जाता है और हिंदुओं के मंदिरों का धन सरकार के अधीन होता है |

-राम मंदिर के निर्माण के लिए प्रदर्शन कर रहे लोगो पर गोलिया चलवा दी जाती है, रात को सो रहे निहत्ते निर्दोष लोगो को लाठिय मार कर भगा दिया जाता है. किन्तु कश्मीर में सुरक्षाबलों पर पथराव कर रहे अलगाव-वादियो पर लाठी चार्ज का आदेश भी नहीं दिया जाता

-इस देश की जामा मस्जिद के शाही इमाम को देश की २५० अदालतें एक सम्मन तक तामील नहीं
करा पाती जबकि कांची कामकोठी पीठ के शंकराचार्ये श्री जयेन्द्र सरस्वती को आधी रात में उनके
५००० शिष्यों के बीच से गिरफ्तार कर कातिलों- डकैतों की कोठरी में डाल दिया जाता है |

- इस देश में हज-यात्रा की सब्सिडी के लिए सारी राजनैतिक पार्टियां राजी हो जाती हैं जबकी अमरनाथ-यात्रा का समय कम कर दिया जाता है और कोई चर्चा तक नहीं |

-गुजरात के दंगों पर हरदम राजनीति पर गोधरा में मार दिए गये रामभक्तों पर कोई बात नहीं |

- हैदराबाद में हिन्दू मंदिरों में घंटे बजाने पर रोक लगाना धर्मनिरपेक्षता है ?

-रमजान के महीने में इफ्तार पार्टियों में सभी भारतीय राजनैतिक दलों के नेता अपने सिर पर मुल्ला
टोपी रख शामिल हो कर अपने आप को धर्म-निरपेक्ष साबित करते है पर -क्या “नवरात्र” में कोई मुसलमान नेता हिंदुओं को फलाहार पार्टी में बुलाता है ?

-आज भारत के नेता जैसे नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा कर रहे है क्या किसी मुस्लिम संगठन ने
या नेता ने अफजल गुरु और कसाब को जल्द फाँसी देने की माँग की ?

सवाल बहुत है दोस्तो जिसका कोई जबाब नहीं है इन छद्म धर्मनिरपेक्षता वादियों के पास |

निर्णय आपको करना है 

Tuesday 5 June 2012

महर्षि देवल: धर्मान्तरीत हिन्दुओ के पुनरुथ्थान के जनक : -

 मुसलमानों का इस्लाम के प्रचार और उनकी पैशाचीक महत्वाकांक्षाओ की पूर्णता हेतु आठवी शताब्दी में मीर कासिम के नेतृत्व में सिंध पर आक्रमण हुआ, जिसमे सिंध के ब्रह्मण वंश के राजा दाहीर के वीरगति के बाद अरबो का सिंध पर शासन प्रस्थापीत हुआ और इसी घटना के साथ सिंध में मुसलमानों द्वारा हिन्दुओ के प्रचंड धर्मांतरण एवं कत्ले -आम की अपेक्षीत शुरुवात हुयी. लक्षावधि निरपराध ,शस्त्रवीहींन हिन्दू जनता के पाशविक अत्याचारों की शुरुवात हुयी. लाखो हिन्दू स्त्रियों के बलात्कारो से,पुरुषो के शीरच्छेदो से, बुढो और बच्चो के अत्याचारों से सिंध प्रांत में लक्षावधि हिन्दू जनता "दिक्षीत" (धर्मान्तरीत) हुयी. परन्तु आर्यभूमि ने केवल हाड मांस के पुतलो जन्म नहीं दिया था , उसकी संतानों में मातृभूमि के लिए मरने और मारने वाले 'नर व्याघ्रो' की कोई कमी नहीं थी! कन्नोज में यशोधर्मा और कश्मीर में ललितादित्य मुक्तापीडा के हाथो करारी मात खाने के बाद मीर कासिम को वापस बुलाया गया (खलीफा उम्मीद द्वारा) ,और मुसलमानों का विजयी अभियान सिंध तक सिमट कर समाप्त हुआ. (उसके बाद " Battles of Rajasthan " के युद्धों की श्रुंखला में अरबी आक्रमंकारियो का जिस तरह संहार हुआ ये हर कोई जानता है) उसके बाद मुसलमानों द्वारा स्न्क्रमीत सिंध पर 'मुसलमानों के असली पिताजी श्री बाप्पा रावल ' के बार-बार आक्रमणों में मीर कासिम ने सिंध पर हथियाई हुयी सत्ता मिटटी में मील गयी और सिंध स्वंतंत्र हुआ. यहातक की जानकारी सर्वश्रुत है , राजकीय स्तर पर तो हमने अरबी आक्र्मंकारियो पर सफलता प्राप्त कर ली थी ,पर धार्मिक स्तर पर हम अभी पूर्ण रूप से असफल थे जिसका प्रमुख कारण था - आक्रमणकारी मुसलमानों ने धर्मान्तरीत किये हुए लाखो हिन्दू (नवमुसलमान). ये अभी तक मुसलमान ही थे और चाहकर भी अपने पवित्र हिन्दू धर्म में जा नहीं सकते थे जिसका मुख्य कारण थी हमारे हिन्दू धर्म की तथाकथित "शुद्धिबंदी". उसी निरर्थक "शुद्धिबंदी ".के आधार पर हिन्दू अपने धर्मान्तरीत भाइयो को वापस अपने धर्म में ले नहीं सकते थे.परिणामस्वरूप एक भीषण संकट का भय सामने आया जो था -हिन्दुओ की संख्या में उठा हुआ प्रचंड घटाव! इस समस्या के समाधान के लिए कई राजनितिज्ञो ने देवल महर्षि के पास जाने का विचार किया और वे गए . महर्षि देवल का आश्रम सिन्धु नदी के किनारे था, हिन्दुओ पर आये हुए भीषण संकट से वे चिंतीत थे,उसी क्षण सिंध के प्रमुख राजनीतिग्य वह पहुचे और धर्मान्तरीत हिन्दुओ की समस्या पर समाधान के लिए याचना की. देवल महर्षि ने गंभीरता से इस समस्या के समाधान के लिए शास्त्रों में खोज आरम्भ की ,और उन्हें मिल गया-एक ऐसा शास्त्र जो किसी भी समय पर किसी भी काल में हमारे कर्मकाण्डो में आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन लेन की अनुमति देता है ! और वो शास्त्र था - आपद्धर्म ! क्रांतिकारी विचारो के धनि महर्षि देवल ने इस 'आपद्धर्म' नामकी वैदिक परियोजना का उपयोग करके प्राचीन श्रुतियो पर भाष्य लिख डाला - देवल स्मृति ! इस देवल स्मृति में उन्होंने धर्मान्तरित हिन्दुओ के पुनः हिन्दू धर्म प्रवेश के लिए विधान बना दिया,इस विधान के अंतर्गत विशिष्ट काल के अंतराल में धर्मान्तरित हिन्दू प्रायाश्चीत के तौर पर एक दिन उपवास करके दुसरे घी दूध से नहलाने पर पुनरागमन करने योग्य है.स्त्री के लिए तो उन्होंने बनायीं हुयी पुनरागमन की परियोजना तो बोहत ही सरल है ,जिसके तहत बलात्कारीत स्त्री के मासिक-धर्म के बाद वो स्त्री पुनरागमन करने योग्य है! बस, राजनितिज्ञो को उनकी समस्या का समाधान मिल गया और फीर दुसरे ही दिन से नव-मुसलमानों का शुद्धिकरण शुरुवात हुआ. हजारो हिन्दुओ को वापस अपने धर्म लिया गया.सिंध में हिन्दुओ की घटी हुयी संख्या वापस बढ़ गयी, जो की इस्लाम के लिए एक जोरदार झटका था !!!! अरबी मुसलमानों की दुर्दशा का वर्णन करते हुए खुद मुस्लिम इतिहासकार लिखता है - " काफिर सैनिको के डर से हमारे लोगो का सिंध में जीना हराम हो गया है , हमने जीता हुआ सारा मुलख ये काफिर वापस खा गए है केवल "अल्याह फुजाह" नाम का एकलौता गढ़ हमारे पास है जिसकी पनाह में हमें अल्लाह ने महफूज रखा है ! जिन काफ़िरो को हमने मुसलमान बनाया था वो वापस अलह को न मान ने वाले (हिन्दू) बन गए है " और इस प्रकार महर्षि देवल ने हिन्दुधर्म का पुनारुथ्थान करने में महत्व पूर्ण योगदान दिया. महर्षि देवल एवं उनका भाष्य "देवल स्मृति" हिंदुत्व के इए वरदान साबीत हुए ! महर्षि देवल जैसे क्रांतिकारी विचारो के तपस्वियों ने समय समय पर हिन्दू धर्म में कालानुरूप सुधार करके इसे शत प्रतिशत खरा बना दिया है , जो की आज विश्वधर्म कहलाने योग्य है ! आज देवल मुनि को उनके कार्य के लिए मै नमन करता हु

Friday 1 June 2012

इस्लाम और जापान के बारे मे क्या यह सच है ?

क्या आपने कभी यह समाचार पढ़ा कि किसी मुस्लिम राष्ट्र का कोई प्रधानमंत्री या बड़ा नेता तोकियो की यात्रा पर गया हो?
क्या आपने कभी किसी अखबार में यह भी पढ़ा कि ईरान अथवा सऊदी अरब के राजा ने जापान की यात्रा की हो?
कारण·
जापान में अब किसी भी मुसलमान को स्थायी रूप से रहने की इजाजत नहीं दी जाती है।·
जापान में इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर कड़ा प्रतिबंध है।·
जापान के विश्वविद्यालयों में अरबी या अन्य इस्लामी राष्ट्रों की भाषाएं नहीं पढ़ायी जातीं।·
जापान में अरबी भाषा में प्रकाशित कुरान आयात नहीं की जा सकती है।
इस्लाम से दूरी·
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जापान में केवल दो लाख मुसलमान हैं। और ये भी वही हैं जिन्हें जापान सरकार ने नागरिकता प्रदान की है।·
सभी मुस्लिम नागरिक जापानी बोलते हैं और जापानी भाषा में ही अपने सभी मजहबी व्यवहार करते हैं।·
जापान विश्व का ऐसा देश है जहां मुस्लिम देशों के दूतावास न के बराबर हैं।·
जापानी इस्लाम के प्रति कोई रुचि नहीं रखते हैं।·
आज वहां जितने भी मुसलमान हैं वे ज्यादातर विदेशी कम्पनियों के कर्मचारी ही हैं।·
परन्तु आज कोई बाहरी कम्पनी अपने यहां से मुसलमान डाक्टर, इंजीनियर या प्रबंधक आदि को वहां भेजती है तो जापान सरकार उन्हें जापान में प्रवेश की अनुमति नहीं देती है।
अधिकतर जापानी कम्पनियों ने अपने नियमों में यह स्पष्ट लिख दिया है कि कोई भी मुसलमान उनके यहां नौकरी के लिए आवेदन न करे।·
जापान सरकार यह मानती है कि मुसलमान कट्टरवाद के पर्याय हैं इसलिए आज के इस वैश्विक दौर में भी वे अपने पुराने नियम नहीं बदलना चाहते हैं।·
जापान में किराए पर किसी मुस्लिम को घर मिलेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
यदि किसी जापानी को उसके पड़ोस के मकान में अमुक मुस्लिम के किराये पर रहने की खबर मिले तो सारा मोहल्ला सतर्क हो जाता है।·
जापान में कोई इस्लामी या अरबी मदरसा नहीं खोल सकता है।
मतांतरण पर रोक·
जापान में मतान्तरण पर सख्त पाबंदी है।·
किसी जापानी ने अपना पंथ किसी कारणवश बदल लिया है तो उसे और साथ ही मतान्तरण कराने वाले को सख्त सजा दी जाती है।·
यदि किसी विदेशी ने यह हरकत की होती है उसे सरकार कुछ ही घंटों में जापान छोड़कर चले जाने का सख्त आदेश देती है।·
यहां तक कि जिन ईसाई मिशनरियों का हर जगह असर है, वे जापान में दिखाई नहीं देतीं।
वेटिकन के पोप को दो बातों का बड़ा अफसोस होता है। एक तो यह कि वे 20वीं शताब्दी समाप्त होने के बावजूद भारत को यूनान की तरह ईसाई देश नहीं बना सके। दूसरा यह कि जापान में ईसाइयों की संख्या में वृध्दि नहीं हो सकी।
·जापानी चंद सिक्कों के लालच में अपने पंथ का सौदा नहीं करते। बड़ी से बड़ी सुविधा का लालच दिया जाए तब भी वे अपने पंथ के साथ धोखा नहीं करते हैं।·
जापान में 'पर्सनल ला' जैसा कोई शगूफा नहीं है। यदि कोई जापानी महिला किसी मुस्लिम से विवाह कर लेती है तो उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है। जापानियों को इसकी तनिक भी चिंता नहीं है कि कोई उनके बारे में क्या सोचता है। तोकियो विश्वविद्यालय के विदेशी अध्ययन विभाग के अध्यक्ष कोमिको यागी के अनुसार, इस्लाम के प्रति जापान में हमेशा यही मान्यता रही है कि वह एक संकीर्ण सोच का मजहब है। उसमें समन्वय की गुंजाइश नहीं है।