Monday 31 October 2016


भारत की सबसे बड़ी खोज ले गया था ये अंग्रेज व्यक्ति ...

1710 में डॉक्टर ऑलिवर भारत में आया और पूरे बंगाल में घूमा. उसके बाद वो अपनी डायरी में लिखता है,”मैंने भारत में आकार ये पहली बार देखा कि चेचक जैसी महामारी को कितनी आसानी से भारतवासी ठीक कर लेते हैं.” चेचक उस समय यूरोप के लोगों के लिए महामारी ही थी. इस बीमारी से लाखों यूरोपवासी मर गए थे. उस समय में वो लिखता है कि यहाँ लोग चेचक के टीके लगवाते हैं. वो लिखता है कि,”टीका एक सुई जैसी चीज़ से लगाया जाता था. इसके बाद तीन दिन तक उस व्यक्ति को थोड़ा बुखार आता था. बुखार ठीक करने के लिए पानी की पट्टियां रखी जाती थीं. तीन दिन में वो व्यक्ति ठीक हो जाता था. एक बार जिसने टीका ले लिया वो ज़िंदगी भर चेचक से मुक्त रहता था.
फिर ये डॉक्टर वापस लन्दन गया. डॉक्टरों की सभा बुलाई. सभा में भारत में चेचक के टीके की बात बताई. जब लोगों को यकीन नही हुआ तो वो उन सभी डॉक्टरों को अपने खर्च पर भारत लाया. यहाँ उन लोगों ने भी टीके को देखा. फिर उन लोगों ने भारतीय वैद्यों से पूंछा कि इस टीके में क्या है? तो उन वैद्यों ने बताया कि जो लोग चेचक के रोगी होते हैं हम उनके शरीर का पस निकाल लेते हैं और सुई की नोंक के बराबर यानि कि बहुत ज़रा सा पस किसी के शरीर में प्रवेश करा देते हैं. और फिर उस व्यक्ति का शरीर इस रोग की प्रतिरोधक क्षमता धारण कर लेता है.डॉ.ऑलिवर आगे लिखता, “जब मैंने इन वैद्यों से पूंछा कि आपको ये सब किसने सिखाया? तो वे बोले कि हमारे गुरु ने. उनके गुरु को उनके गुरु ने सिखाया. मेरे अनुसार कम से कम डेढ़ हज़ार(1500) वर्षों से ये टीका भारत में लगाया जा रहा है.”
डायरी के अंत में वो लिखता है, “हमें भारत के वैद्यों का अभिनन्दन करना चाहिए कि वे निशुल्क रूप से घरों में जा-जाकर लोगों को टीका लगा रहे हैं. हम अंग्रेजों को इन वैद्यों ने बिना किसी शुल्क(फीस) के ये विद्या सिखाई है, हमें इनका जितना हो सके उतना आभार करना चाहिए.”
आज सारी दुनिया में जिस डॉ.ऑलिवर को चेचक के टीके का जनक माना जाता है वो खुद अपनी डायरी में भारत के वैज्ञानिकों को इस टीके का जनक स्वीकार कर रहा है.
सारी जानकारी लिख पाना असंभव है ये विडियो देखिए >>http://rajivdixitji.com/17241/this-british-take-indias-big-invention/
केरल बन रहा हिन्दुओं का श्मशान : बढ़ रही हैं नृशंस हत्या, बलात्कार जैसी घटनाएँ

तस्वीरें और भी हैं, नाम और भी हैं, लेकिन इस जगह हिन्दुओं पर अत्याचार का ये सिलसिला थम नहीं रहा ! बात हो रही साक्षरता के मामले में देश में प्रथम माने जाने वाले राज्य केरल की। मगर साक्षरता के पीछे इस राज्य में एक बात जो हमेशा भारतीय मीडिया और राजनीति द्वारा छिपाने की कोशिश होती है, वो है – वामपंथी और इस्लामिक ताकतों द्वारा हिन्दुओं पर बढ़ रहे अत्याचार। अत्याचार भी ऐसे कि जानकर ही रूह काँप जाए। यही कारण है कि पिछले दशक में ही केरल की कई जगहों से हिन्दुओं का पलायन बड़े स्तर पर हुआ है। माता पिता के सामने वामपंथी सन्गठन ने पी.वी.सुजीत को तलवार से काट दिया  कन्नूर जिले में 28 वर्षीय पी.वी.सुजीत की धारदार हथियारों से सीपीआईएम के कार्यकर्ताओं ने पापिनिस्सेरी में उनके माता-पिता के सामने ही हत्या कर दी। पी. वी. सुजीत जो एक आरएसएस और भाजपा कार्यकर्ता थे, उन पर करीब 10 लोगों ने अर्धरात्रि में उनके घर में घुसकर तब धावा बोला जब वह घर में अकेले थे।सीपीआईएम के कार्यकर्ताओं ने सुजीत, उसके माता-पिता और उनके भाई की पिटाई कर सुजीत पर तलवार से वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया था। एक घटना का विरोध जिस स्तर तक होना चाहिए था, उतना नहीं हुआ। क्यूंकि मरने वाला व्यक्ति हिन्दू था शायद इसलिए इस खबर को किसी ने भी आवाज नहीं दी थी।

बात हो रही है केरल के कासकेरल के कासरगोड जिले स्थित पदन्ना गांव की जो आमतौर पर ऐसे व्यापारियों के लिए जाना जाता है, जो अपनी किस्मत लिखने अरब जाते हैं। मतलब माइग्रेशन यहां के डीएनए में है। इस गांव के आलीशान घरों के आगे विदेशी कमाई से लग्जरी कारों की लाइन लग गई है। गांव में अधिकतर लोग पढ़े-लिखे हैं।
मगर अब इस गांव पर आतंकी संगठन आईएस से जुड़ने का कलंक लग गया है। खबर अनुसार केरल के लापता 21 लोगों में से 11 इसी गांव के हैं। माना जा रहा है कि ये सीरिया जाकर आईएस में शामिल हो गए हैं। ये भी पता चला है कि पदन्ना से लापता लोगों में डॉक्टर, इंजीनियर और मैनेजमेंट प्रफेशनल हैं, जो खाड़ी देशों में मोटी सैलरी वाली जॉब करते थे। कुछ समय तक भाईचारे के प्रतीक चार किमी के दायरे वाले इस गांव में आज 35 मस्जिदें हैं। मगर मस्जिदों के बीच कुछ मंदिर भी स्थित हैं। हिन्दुओं को मन्दिर में जाते हुए भी डर लगता है क्यूंकि हिन्दुओं को धार्मिक आधार पर हर दिन धमकियां और मानसिक पीड़ाएं दी जाती हैं। ये सिर्फ एक गाँव की नहीं पुरे केरल की ही बात हो चली है कि इस्लामिक आतंकी सन्गठन वहां आराम से पैर पसार रहे हैं। मगर केरल के ऊपर अभी तक किसी की नजर नहीं गई है। केरल धीरे-धीरे देश से अलग होता जा रहा है और देश का मीडिया व देश के बुद्धिजीवी सेक्युलर स्वभाव के साथ मुस्लिम तुष्टीकरण नीति के तहत बस पैसों के नीचे खेल रहे हैं।

Read more at: http://hindi.revoltpress.com/local/jihadi-village-of-india/

Read more at: http://hindi.revoltpress.com/local/jihadi-village-of-india/
 
आखिर इस देश का क्या होगा ?
 वोटो की राजनीती इस देश को किस अँधेरे के तरफ ले जायेगी ? मुंबई को दहलाने वाले याकूब जिसने तीन सौ लोगो का कत्ल किया था उसे बकायदा केस चलाकर फांसी दी गयी .. फिर भी देश के सेकुलर सूअर उस पर सवाल उठाये .. रोहित वेमुला जैसा दोगला उसी याकूब के गम में आत्महत्या किया .. यानी कोई आतंकी अगर मुठभेड़ में मारा जाये तो भी गलत और अगर केस चलाकर फांसी दी जाए तो भी गलत ?
Jitendra Pratap Singh

mediya

पाकिस्तान में हिन्दू थे .. सिख थे .. कुछ इसाई थे और फिर सुन्नी मुस्लिम थे.. शिया मुस्लिम थे .. अहमदिया मुस्लिम थे... मुस्लिम कभी शांति से नहीं रह सकते।
सबसे पहले हिन्दू को मारा गया क्यूंकि ये तो मुस्लिम थे ही नहीं .... फिर वो ख़त्म होने को आये तो इसाई को साथ में मारा गया ... फिर ये दोनों ख़त्म होने को आये तो सिख तो वैसे भी कम थे.. कब ख़त्म कर दिए गए पता ही नहीं चला ...
फिर बचे मुसल्लम... अब क्या करें ? साला किसको मारें ? हमारी तो आदत है खून करने की .. ऐसे तो बैठ नहीं सकते ... तभी पाकिस्तान में घोषणा करवाई गयी की... अहमदिया .. मुस्लिम नहीं है .. नकली मुस्लिम है .... बस रातों रात सारे सुन्नी और शिया मुस्लिम .......अहमदिया मुस्लिम को मारने दौड़ पड़े... सारे अहमदिया मारे जाने लगे और पाकिस्तान छोड़ कर इधर उधर जंगल में दुसरे देशों में भागने लगे ......... ध्यान रहे .. हिन्दू इसाई आदि को मारने समय में ये अहमदिया मुस्लिम ने भी खूब साथ निभाया था .. और अब खुद काटे जा रहे थे .........
खैर धीरे धीरे अहमदिया का मामला अल्लाह ने निपटा दिया .. अब बचे शिया और सुन्नी ...... दोनों बैठे रहे .. बैठे रहे .. बैठे रहे........ दोनों सोच रहे थे .. साला हम तो इंसानों की हत्या ना करें तो कैसा मुस्लिम ? ? इतने दिन हो गए .. किसको मारें क्या करें .........
तभी सुन्नी बोला .. शिया सच्चा मुस्लमान नहीं होते ...
शिया ने भी बोला .. तुम सुन्नी भी सच्चा मुसलमान नहीं होते .......
बस फिर निकल गयी तलवारें .. शिया मारने लगे सुन्नी को और सुन्नी काटने लगे शिया को .......ध्यान रहे पहले शिया और सुन्नी दोनों ने मिल कर दुसरो की हत्या की थी ........और अब खुद ही एक दुसरे को मारने में लगे थे..
'इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस' ने अपनी 2014 की रपट में कहा है कि एक कड़वी सचाई यह है कि 2013 में 80 फीसदी आतंकवादी मौतें केवल पांच देशों इराक, सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया में हुई हैं। ये सभी इस्लामी देश हैं। याने सबसे ज्यादा मुस्लाल्मानो की मौत इस्लामिक देशो में होती है ...
(कोई मुर्ख हिन्दू ये ना समझे की ऐसे में तो ये लोग खुद लड़ कर मर ही जायेंगे तो टेंशन क्या है .. इसलिए मैंने शुरू में ही बता दिया की मुस्लिम एक दुसरे की हत्या करना तब शुरू करते हैं जब हिन्दूओं को, बौद्धों को, ईसाईयों को मिल कर निपटा लेते हैं। )----Ravi Aggrawalmediya
संजय द्विवेदी से प्राप्त
................................................................................

घाटी में स्कूल ही क्यों फूंके जा रहे हैं, मदरसे क्यों नहीं ..?

पिछले हफ्ते कश्मीर घाटी में एक और स्कूल फूंक दिया गया.
कश्मीर घाटी में चूँकि 4 महीने हिमपात होता है और भीषण ठण्ड पड़ती है इसलिए ज़्यादातर भवन लकड़ी के बने होते है.
लकड़ी भी वो जो अत्यंत ज्वलनशील होती है. ज़रा सी चिंगारी भड़की और पूरा भवन धूँ धूँ कर जल उठता है और देखते ही देखते सब भस्म हो जाता है.
यही स्कूल भवन यदि कंक्रीट का हो तो उसमें आग लगने पर बहुत मामूली नुकसान होता है.
पिछले हफ्ते बारामूला का एक सरकारी स्कूल जला दिया गया. कुख्यात आतंकी बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद जब से घाटी में हालात बिगड़े हैं, अब तक 19 स्कूल फूंके जा चुके हैं.
जब से घाटी में ये अलगाववाद का आंदोलन शुरू हुआ है, 200 से ज़्यादा सरकारी स्कूल फूंके जा चुके हैं.
कश्मीर घाटी के श्रीनगर में सबसे बड़ा और पुराना मिशनरी स्कूल है Biscoe School. ठीक लाल चौक पर है. इसकी एक शाखा गुलमर्ग में है और एक तंगमर्ग में.
आज से कोई 20 साल पहले जब कि वो तंगमर्ग वाली शाखा बन रही थी, तब मैंने उसे देखा था.
पूरा भवन ही लकड़ी का बना था. इतनी शानदार बिल्डिंग और क्या कलात्मक उसका शिल्प…. वाह…. यूँ लगता था मानो लकड़ी का कोई ताजमहल हो…. घाटी के 2000 बच्चे यहां पढ़ते थे.
फिर एक दिन हमने अखबारों में पढ़ा कि अलगाव वादियों ने वो तंगमर्ग का Biscoe School फूंक दिया. सिर्फ घंटे भर में सारा भवन जल के भस्म हो गया.
अलगाववादी जब किसी स्कूल भवन को आग लगाते हैं, उससे पहले वहाँ तक पहुंचने के सभी रास्ते ब्लॉक कर देते हैं जिससे फायर ब्रिगेड की गाड़ी आग बुझाने आ न सके.
अब सवाल उठता है कि अलगाववादियों की वो कौन सी सोच है जो स्कूलों को निशाना बनाती है?
घाटी में आखिर स्कूल ही क्यों फूंके जा रहे हैं? आज तक एक भी मदरसा क्यों नहीं फूँका गया?
इसका सीधा सा जवाब ये है कि जैसे बैक्टीरिया को पनपने के लिए एक अनुकूल वातावरण चाहिए, अनुकूल तापमान और नमी होगी तभी बैक्टीरिया पनपेगा वरना सुषुप्तावस्था में पड़ा रहेगा.
इसी तरह शान्ति का धर्म है. ये सिर्फ और सिर्फ जहालत में पनप सकता है. जहां शिक्षा होगी वहाँ दीन पनप नहीं सकता. इसलिए शान्ति दूत हमेशा शिक्षा संस्थानों को सबसे पहले निशाना बनाते हैं.
शांति दूतों का पहला लक्ष्य, अपने अनुयायी को भरसक जाहिल बना कर रखो और तालीम से दूर रखो. देनी ही है तो मदरसे में दीनी तालीम दो.
गलती से अगर कोई पढ़ लिख जाए तो उसे भी दीनी तालीम दे के बेअसर कर दो.
जहालत का अन्धेरा कायम रहेगा तभी तक दीन कायम रहेगा.
इसीलिए घाटी में स्कूलों को निशाना बनाया जा रहा है और नए मदरसे खोले जा रहे हैं.
Nilesh More और 2 अन्य लोगों ने एक लिंक साझा किया

गिरफ्तारी के डर से पिता के जनाजे को कंधा देने नहीं पहुंचा जाकिर नाइक!

मुंबई। विवादित धर्म प्रचारक जाकिर नाइक के पिता डॉक्टर अब्दुल करीम नाइक (88) का रविवार को मुंबई में निधन हो गया। लेकिन मलेशिया में बताए जा रहे जाकिर नाइक पिता के जनाजे में शामिल नहीं हुए। सूत्रों का कहना है कि जाकिर नाइक गिरफ्तारी के डर से पिता के जनाजे को कंधा नहीं देने आए। 88 साल के अब्दुल पेशे से फिजीशियन और शिक्षाविद् थे जाकिर नाइक के पिता बॉम्बे साइकेट्रिक सोसाइटी के अध्यक्ष रह चुके हैं। जाकिर नाइक के खिलाफ किसी मामले में नई एफआईआर तो दर्ज नहीं की गई है लेकिन केंद्र सरकार उनके एनजीओ इस्लामिक रिचर्स फाउंडेशन को ‘गैरकानूनी संस्था’ घोषित करने की तैयारी कर रही है। इसे ‘गैरकानूनी गतिविधियां निरोधक (निरोधक) एक्ट’ के तहत गैरकानूनी घोषित किया जा सकता है।

जाकिर की ओर से अपने पिता के अंतिम-संस्कार में शरीक न होने के बारे में पूछे जाने पर उनके करीबी ने बताया, ‘वह शरीक हो पाने में सक्षम नहीं थे। यह सबकुछ अचानक हुआ जिससे कि इतना जल्दी उनका यहां पहुंचना संभव नहीं था। वह जल्द ही यहां आकर अपने पिता को श्रद्धांजलि देंगे।
लगभग सभी रियासतें भारत में विलय के लिए मान गई थी । राजस्थान के जोधपुर नरेश महाराज "हनुवंत सिंह" उस समय जिन्ना के संपर्क में थे....मोहम्मद अली जिन्ना ने हनुवंत सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने पर पंजाब-मारवाड़ सूबे का प्रमुख बनाने का प्रलोभन दिया था... हनुवंत सिंह मान गए थे...
.
खबर मिलते ही "सरदार पटेल" जोधपुर पहुंचे...हनुवंत सिंह सरदार पटेल को जोधपुर के शाही उम्मेद भवन में देख भौंचक्का रह गया, जब बात टेबल तक पहुंची, तो हनुवंत सिंह ने सरदार को धमकाने के उद्देश्य से मेज पर "ब्रिटिश पिस्टल" रख दी... सरदार ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने वाली सारी तकलीफों के बारे में बताया, पर हनुवंत सिंह नहीं माना.....
.
स्थिति ऐसी आ गई कि आखिरकार सरदार ने टेबल पर रखी पिस्टल उठा ली और हनुवंत की तरफ तानकर कहा कि राजस्थान में विलय में हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो ...."
.
बस वहीँ के वहीँ हनुवंत सिंह ने विलय के कागजात पर हस्ताक्षर कर डाले......
.
उन्हें लौह पुरुष यूं ही नहीं कहा जाता ...
चीन के थिंक टैंक में आपस में ही घमासान की ख़बरें आ रही हैं और पाकिस्तान का समर्थन करने पर चीनी   मीडिया और थिंकटैंक में महाभारत छिड़ गया है।
बता दें कि चीन के सरकारी अखबार ने भारत में चीनी सामान के बहिष्कार पर भारत में निवश रोक देने की धमकी दी थी। वहीं चीन के ही एक दूसरे अखबार ग्लोबल टाइम्स ने ठीक इसके विपरीत भारत का समर्थन करते हुए कहा है कि अगर चीन भारत में निवेश नहीं करता है या पीछे हट जाता है यह भारतियों के नुक़सान की जगह ख़ुद उसकी ( चीन की) वेबकूफी होगी।
ग्लोबल टाइम्ज़ ने कहा कि भारतीय आम उत्पादों का ही एक सीमा तक बहिस्कार कर सकते हैं लेकिन भारत के विनिर्माण क्षेत्र की रफ्तार बहुत तेज़ है और उसमें निवेश करके हम चीनी निवेशक मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।
अगर चीन की सरकार भारत में निवेश से दूर रहने का फैसला करती है तो ये निश्चित रूप से एक बेवक़ूफ़ी भरा फैसला होगा। चीन के सरकारी मीडिया ने कहा है कि भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था में हम चीनयों  का योगदान बेहद कम है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्ट्रैटेजी ऑफ चाइनीज अकादमी ऑफ सोशल साइंसेज के रिसर्च फेलो जी चेंग ने कहा है कि चीन के पास भारत के विनिर्माण विकास को सीमित करने की क्षमता ही नहीं है।
चीन अगर भारत में निवेश करने से हाथ पीछे खींचता है तो कहीं ना कहीं ये हम भारतियों के लिए ज़बरदस्त फ़ैसला होगा और हम ख़ुद से विकसित होंगे ईसमे थोड़ा समय ज़्यादा लग सकता है पर फिर हम दुनिया के दूसरे देश पर निर्भर नहीं होंगे । पाकिस्तान प्रेम के चलते चीन को बहिस्कार आने वाले समय में ख़ूब बढ़ेगा और यही भारतीय अर्थव्यवस्था के हित में है ।

By: HStaff on Sunday, October 30th, 2016

मिलिए इस यंग IAS से, 15 महीने में 750 मुकदमे ठोंक तबाह कर दिया मिलावटखोरी का गोरखधंधा ...

जो केरल कल तक 70 फीसद सब्जियां पड़ोसी राज्यों से खरीदता था, आज वहां की जनता खुद 70 फीसद सब्जियां घर पर उगाती है। यह पहल एक युवा आईएएस की कोशिश से हुई है।अनुपमा। पद-फूड सेफ्टी कमिश्नर। केरल की इस यंग आईएएस का नाम सुनते ही केरल के मिलावटखोर थर-थर कांपने लगते हैं। सोच में पड़ जाते हैं कि कब फोर्स के साथ अनुपमा आ धमकेंगी और मिलावटखोरी मिली नहीं कि तुरंत केस ठोंककर अंदर करेंगी। अनुपमा की हनक के चलते ज्यादातर व्यापारियों ने खाद्य पदार्थों में मिलावट करना छोड़ दिया है। महज 15 महीने के भीतर इस आईएएस ने छह हजार से ज्यादा नमूने भरवाए तो मिलावटखोरी साबित होने पर 750 व्यापारियों पर मुकदमा लाद दिया। जिससे केरल में मिलावटखोरी के अरबों के गोरखधंधे की चूल ही हिल गई। 2010 बैच की ऑल इंडिया में 4th रैंक की इस आईएएस ने बता दिया है कि अगर अफसर चाहें तो सिस्टम की लाइलाज बीमारी का भी इलाज कर सकते हैं।

सब्जियों में तीन सौ प्रतिशत कीटनाशक मिले तो हैरान रह गईं अनुपमा
आईएएस अनुपमा ने फल और सब्जियों की तमाम मंडियों में छापेमारी कराई। नमूनों की जांच में तीन सौ प्रतिशत कीटनाशक मिले। सब्जियों को जल्दी पकाने के लिए इंजेक्शन की डोज व कीटनाशक से जनता की सेहत के साथ खिलवाड़ देख अनुपमा दंग रह गईं। जिसके बाद सभी तरह के खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी करने वालों की कमर तोड़ने का फैसला किया। 
छापेमारी कर भरवाए छह हजार नमूने

आईएएस अनुपमा की सख्त कार्रवाई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महज 15 महीने में 750 मिलावटखोरों पर मुकदमे दर्ज करा दिया। जिससे केरल में फल-फूल, सब्जियों और खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी करने वाले व्यापारियों में हड़कंप मचा है।
जागरूकता से अब घर पर सब्जियां उगाने लगा केरल
खास बात है कि मिलावटखोंरों पर एक्शन लेने के साथ आईएएस अनुपमा ने खुद घर पर सब्जियां उगाने की मुहिम शुरू की। जनता को प्रेरित करना शुरू कर दिया। मुहिम की सफलता देख केरल राज्य सरकार ने भी प्रमोट करना शुरू कर दिया। नतीजा जो केरल पहले जहां 70 फीसद सब्जियां तमिलनाडु और कर्नाटक से खरीदता था, अब केरल के लोग खुद 70 प्रतिशत सब्जियां उगाने लगे हैं। अनुपमा ने फूड सेफ्टी वाइस मिशन से जुड़ने के लिए फेसबुक पर लिंक भी दिया है।        https://foodlicensing.fssai.gov.in/cmsweb/HOME.aspx
अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने दफ़्तर में एक विशेष कार्यक्रम में दीया जला कर दीवाली मनाई.
ओबामा के सरकारी आवास व्हाइट हाउस के आधिकारिक फ़ेसबुक पेज पर इसकी जानकारी दी गई है और तस्वीर भी पोस्ट की गई है.
संदेश में कहा गया है, "अमरीका और दुनियाभर में रोशनी का पर्व मना रहे सभी लोगों को दीवाली की शुभकामनाएं. "
संदेश में कहा गया है, "यह हमें इसकी याद भी दिलाता है कि यदि हम बांटने वाली चीजों से आगे निकल कर देखें तो क्या कुछ मुमकिन है. यह उस उम्मीद और सपने का प्रतीक है, जो हमें साथ बांधे हुए है."
ओबामा ने कहा कि उन्हें गर्व है कि वो दीवाली मनाने वाले पहले अमरीकी राष्ट्रपति हैं. उन्होंने पत्नी मिशेल के साथ 2009 में राष्ट्रपति आवास में दीवाली मनाई थी.
उधर, न्यू यॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय को पहली बार दीवाली के मौके पर ख़ास तौर पर सजाया गया है.मुख्यालय की इमारत पर 'हैप्पी दीवाली' का संदेश लिखा गया है. साथ ही एक दीपक भी दिखाया गया है.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि सैयद अकबरउद्दीन ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.इसके पहले अमरीका में राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनल्ड ट्रंप की बहू ने वर्जीनिया के मंदिर में भारतीय मूल के नागरिकों के साथ दीवाली मनाई थी.
भारतीय संस्कृति का सम्मान करते हुए उन्होंने वर्जीनिया के राजधानी मंदिर में जाने से पहले अपने जूते भी उतारे.

Friday 28 October 2016



भारत में हो रहे चाइनीज सामानों के बहिष्कार की चर्चा अब पूरे विश्व में छाई ...


 भारत में हो रहे चीनी सामान के बहिष्कार अभियान को अब विश्व भर में पहचान मिलने लगी है। अमेरिका के एक मैगजीन ने इसबारे में रिपोर्ट पब्लिश की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे भारतीय लोगों द्वारा चीनी सामान के बहिष्कार के कारण इस दिवाली पर चीन के कारोबारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा हैं।
रिपोर्ट में लिखा गया है कि कैसे चाइनीज लड़ियाँ आने से भारत के हजारों छोटे उद्योग ख़त्म हो गए और मिट्टी के दीये और मोमबत्ती बनाने वाले लोगों की रोजी रोटी छीन गई। इसके मुताबिक भारतीयों ने चीनी सामान का बहिष्कार इसीलिए किया क्योंकि चीन ने पाकिस्तानी आतंकी मसूद अजहर की पाबन्दी में अड़ंगा डाला था। इससे पहले चीन ने न्यूक्लियर सप्लायर देशों के समूह में भारत के प्रवेश में रुकावट डाली थी।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत कच्चा माल चीन भेजता है और वहां से तैयार माल बनकर चौगुनी पांच गुनी कीमतों पर भारत में बिकने के लिए आता है। चीन से आने वाले सैकड़ो सामानों पर एंटी डंपिंग शुल्क लगा रखा हैं। इसके बावजूद चीन के निर्माता हर साल लाखों टन ऐसा सामान भारतीय बाजारों में डंप कर देते हैं। इसका असर पर्यावरण और देश के लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। पीएम मोदीजी 'मेक इन इंडिया' के माध्यम से चाहते है कि कंपनियां चीन की बजाय भारत में उत्पादों का निर्माण करे।

मैगजीन ने चीनी सामान के बहिष्कार की तुलना महात्मा गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन से की है। इसमें बताया गया है कि गांधी के स्वतंत्रता आंदोलन ने इंग्लैंड के कारोबारियों की जड़े हिला दी थी वैसे ही चीन भी भारतीयों द्वारा हो रहे बहिष्कार से हिल गया है। मैगजीन के अनुसार आम लोगों के इस बहिष्कार का कुल मिलाकर ज्यादा असर तो नहीं होगा, क्योंकि वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन का सदस्य होने के नाते दोनों देश एक दूसरे का सामान ओर एकतरफा पाबन्दी नहीं लगा सकते। स्वयं वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि देश में चीन के आयात पर पाबंदी लगाना असंभव है।
इस लेख में लिखा गया है कि, भारत में लोग अपना गुस्सा पटाखों और लड़ियों का बहिष्कार कर निकाल रहे है। लेकिन असली मुद्दा इससे कही अधिक बड़ा है। भारत के ज्यादातर कारोबारी और उद्योगपति सामानों में चीनी कलपुर्जो का इस्तेमाल करते है और इसे रोकना असंभव है क्योंकि उनका इन्ही में फ़ायदा है। लेकिन मोदी सरकार इस बात को ऐसे ही नहीं छोड़ेगी। वो राष्ट्रवाद के इसी उत्साह के दम पर देसी ब्रांड्स बनाने और औमिसे मैन्युफैक्चरिंग हब का बुनियादी ढांचा खड़ा कर रहे है जो आगामी वर्षो में चीन के लिए चुनौती बनने वाला है।

Thursday 27 October 2016

"लाभ के आधार पर व्यक्तिगत प्रगति से सामाजिक विकास सुनिश्चित नहीं किया जा सकता, हाँ, इससे लोभ को अवश्य ही प्रशय मिलेगा ....पर सामाजिक विकास से समाज के सभी व्यक्ति की प्रगति अवश्य सुनिश्चित की जा सकती है, ऐसे में, महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, व्यक्तिगत लाभ या सामाजिक विकास ?
स्वार्थ और सेवा के बीच केवल 'स्व' के अर्थ के समझ का अंतर है.. और दुर्भाग्यवश, आज हम सब इतने छोटे हो गए हैं की माचिस की डिबिया जैसे घरों में अपने परिवार को समेट कर उसे ही अपनी दुनिया मान ली है, तभी, किसी को पता ही नहीं की अपना आखिर है क्या !
जब 'स्व' की परिधि का विस्तार कर दिया जाए तो स्वार्थ और सेवा का अंतर ही नष्ट हो जाता है; तब सेवा ही स्वार्थ बन जाती है और स्वार्थ ही सेवा.. जिसके लिए वैचारिक स्तर पर समाज का विकास आवश्यक होगा।
लोभ आतंरिक दुर्बलता का परिणाम है। जब किसी को पता ही नहीं की क्या कुछ उसका अपना है तो स्वाभाविक है की इस वैचारिक निर्धनता के प्रभाव में वह अधिक से अधिक प्राप्त करने का प्रयास करेगा। ऐसी आधिपत्य की आकांक्षा ही व्यक्ति में अहंकार को जन्म देती है और इसलिए शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति में अपनत्व के भाव को पल्लवित करने की आवश्यकता होगी।
अब इसे स्वार्थ से प्रेरित प्रयास कहिये या फिर लाभ के लोभ से ग्रषित मानसिकता जिसके प्रभाव में आज व्यक्ति के लिए भ्रस्टाचार भी तभी समस्या होती है जब वह शोषण का पात्र बनता है, अन्य परिस्थिति में भ्रस्टाचार को भी वह व्यावहारिक जीवन की आवश्यकता बताता है।
आज, नियम महत्वपूर्ण नहीं महत्व केवल अपने मतलब का है और जब अपने मतलब के लिए नियमों को तोड़ना पड़े तो उसे व्यावहारिक आवश्यकता बताया जाता है। चिंता इस बात की नहीं रह गयी की समाज में शोषित, उतपीड़ित कौन है, अपने आप को शोषण उतपीडन से बचा लेना ही महत्वपूर्ण रह गया है ; उन्हें यह नहीं समाज में आता की अगर समाज में कोई भी शोषित व् उतपीड़ित है तो यह परिस्थिति किसी के साथ भी हो सकती है। कैसे समझ आएगा, जो अपना नहीं वह दूसरा जो हो गया, और अपना क्या है, ये तो किसी को पता ही नहीं।
बात सड़क पर चलते हुए यातायात के नियमों की करें या दैनिक जीवन में ऐसी कोई भी परिस्थिति की जहाँ अपना काम निकलने की बात हो, नियम किसी के लिए महत्वपूर्ण नहीं। जब समाज के बहुमत के लिए स्वार्थ निर्णायक हो जाए तो सामाजिक जीवन में भ्रस्टाचार भी स्वीकृत जीवन शैली बन जाती है। आश्चर्य नहीं, जो विश्व के सबसे बड़े जनतंत्र में मतदाता के मत भी कुछ पैसों में बिक जाते हों।
जब समाज के लोग ही भ्रष्ट हों तो उन्हें किसी आदर्श व्यवस्था की अपेक्षा भी नहीं करनी चाहिए और अगर सामाजिक स्तर पर कभी ऐसी व्यवस्था आवश्यक हो गयी तो उसकी प्राप्ति के लिए सबसे पहले व्यक्तिगत स्तर पर महत्व की प्राथमिकताओं को पुनः निर्धारित करने की आवश्यकता होगी ;
व्यक्तिगत लाभ से अधिक महत्वपूर्ण सामाजिक विकास को बनाना होगा और इसके लिए नीति के आधार पर नियमों का सम्मान आवश्यक होगा , फिर व्यक्ति का कार्य क्षेत्र चाहे जो हो।
राष्ट्रहित में क्या होना चाहिए इसकी चिंता छोड़ दीजिये बस राष्ट्रहित में व्यक्तिगत स्तर पर जो कुछ भी कर सकते हैं उसके लिए तत्पर रहे, जब समाज में बहुमत इस मानसिकता से शासित होगा तभी सही अर्थों में राष्ट्र का विकास संभव है।
इसलिए, आज सभी के लिए यह चिंता करने की आवश्यकता है की हम 'विकास' के नाम पर एक राष्ट्र के रूप में किधर जा रहे हैं, क्या भारत का बाजारीकरण कर ही उसके परम वैभव को प्राप्त किया जा सकता है, मुझे ऐसा नहीं लगता; आपकी क्या राय है ?”

दुर्गा-बोर्जो : आदिवासी इतिहास मिटाने की मिशनरी कवायद ...

संथाल जनजाति बिहार, झारखंड के अलावा बंगाल में भी होती है.
बीरभूम जिले के सुलंगा गाँव में इनके करीब सौ घर होंगे. छोटा सा गाँव है, संथालों की आबादी भी वही 500-700 जैसी होगी.
इतने मामूली से गाँव का जिक्र क्यों?
क्योंकि बरसों पहले यहाँ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका गया था. जैसा कि बाकी भारत में हुआ था यहाँ भी विद्रोह की मुख्य वजह धार्मिक और आर्थिक ही थी.
ये वो दौर था, जब बिहार और बंगाल अलग अलग सूबे नहीं थे. एक ही बंगाल हुआ करता था और लोग भाषाई आधार पर सीमायें मानते थे.
1907 के उस दौर में बिहार के एक करपा साहेब को बुला कर यहाँ का जमींदार बना दिया गया और वो लगे किसानों से लगान वसूलने.
इस लगान की दो शर्ते थी, या तो सीधे तरीके से लगान दो, या इसाई हो जाओ तो लगान माफ़ किया जायेगा.
विरोध करने वालों को या तो मार दिया गया था या पकड़ कर असम में कुली बना कर भेजा गया था.
इस नाजायज और जबरन वसूली, ऊपर से धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुर्मू लोग विद्रोह पर उतर आये.
जैसा कि बाकी के भारत में होता है और तिलक ने भी किया था, वैसे ही यहाँ भी लोगों ने एकजुट होने के लिए त्योहारों का ही सहारा लिया.
दुर्गा पूजा की नवमी को बलि प्रदान के दिन जब सब इकठ्ठा होते वहीँ से विद्रोह की शुरुआत हुई थी. विद्रोह के नेता थे बोर्जो मुर्मू और उनके भाई.
दल हित चिन्तक आज महिषासुर को जब संथाल लोगों का वंशज और झारखण्ड इलाके का वासी बताने की कोशिश कर रहे हैं तो उन्होंने संथाल इतिहास तो जरूर ही देखा होगा?
अब ये सवाल इसलिए है क्योंकि बोर्जो मुर्मू के भाई का नाम दुर्गा मुर्मू था. जब इतिहास में संथाल विद्रोह दर्ज किया जाता है तो दुर्गा मुर्मू और बोर्जो मुर्मू का नाम साथ ही लिया जाता है.
बोर्जो मुर्मू के वंशज अभी भी इसी गाँव में होते हैं. दुर्गा पूजा अभी भी यहाँ होती है, हां संस्कृत वाले मन्त्र नहीं पढ़े जाते, स्थानीय भाषा में बदले हुए मन्त्र होते हैं. तारीख़ वही बाकी भारत की दुर्गा पूजा वाली होती है, मूर्तियाँ स्थानीय रंग-ढंग की.
जांच करने के लिए जो जाना चाहेंगे वो गाँव के पुजारी रोबीन टुडू से अष्टमी को गोरा साहिब को दर्शाने के लिए सफ़ेद छागर की बलि की प्रथा जांच सकते हैं.
इलाके के वाम मोर्चे के पुराने मुखिया अरुण चौधरी से भी बात कर सकते हैं, दुर्गा पूजा में कम्युनिस्ट भी शामिल होते हैं.
क्या कहा? रोबिन टुडू नाम क्यों है पुजारी का?
भाई वो क्रिस्चियन वाला Robin नहीं है, ‘रविन्द्र’ का बांग्ला अपभ्रंश है रोबीन! नहीं भाई, हर बार पुजारी ब्राह्मण हो ये भी जरूरी नहीं होता.
बाकी ऊँचे अपार्टमेंट की तेरहवीं मंजिल (जिसका नाम आपने अज्ञात कारणों से 14th Floor रखा है) पर बंद ए.सी. कमरों से भारत पूरा दिखता भी नहीं जनाब! नीचे जमीन पे आइये तो बेहतर दिखेगा.

Wednesday 26 October 2016

मेजर बनी राजपूताना बहू  ...

आज की बहू- बेटियां हर क्षेत्र में अपना जौहर दिखा रही हैं। आज की नारी में काफी सकरात्मक बदलाव आ गया है। अब नारी महज रसोई तक सिमटी नहीं है, न ही वह भोग्या है। अब वह पुरुष से कहीं आगे निकल चुकी है। कुछ ऐसा उदाहरण पेश किया है राजस्थान के पाली जिले के खोड़ गांव की बहू नवीना शेखावत ने, जो जिले की पहली महिला मेजर हैं।

नवीना वर्ष 2013 से दो साल तक ऑफिसर ट्रेंनिग एकेडमी

 में ट्रेंनिग के बाद भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बनी थीं। उसके 

बाद कैप्टन और अब मेजर के पद पर उनका प्रमोशन हुआ है।

नवीना शुरू से ही आर्मी में जाना चाहती थी। उन्होंने जोधपुर के केएन कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद डिफेंस शिक्षा में स्नातकोत्तर किया। मेजर के पद पर प्रमोशन से पहले नवीना नक्सल प्रभावित मणिपुर में दो साल तक कैप्टन की पोस्ट पर तैनात रहीं। इस दौरान उन्होंने नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियानों में बखूबी भागीदारी निभाई। नक्सलवादियों को मुख्यधारा में लाने के लिए वह अपने स्तर पर कई अभियान चला चुकी हैं।
नवीना राष्ट्रीय स्तर की शूटर भी है। इसके अलावा आप नवीना को आर्मी के कड़े अनुशासन और संस्कारों-परंपराओं का उत्तम तालमेल भी कह सकते हैं। नवीना हाल ही में आयोजित आर्मी की राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में देश के बेहतरीन 10 शूटरों में शामिल थीं। इस उपलब्धि के साथ ही नवीना नेशनल स्तर पर एनसीसी में भी अपना जौहर दिखा चुकी हैं।
 ससुराल में ससुर समेत बड़े बुजुर्गों के सामने घूंघट में ही रहती हैं। उन्हें यहां परंपरागत राजपूती पहनावा ही पसंद है। नवीना सामाजिक संस्कारों और परंपराओं में पूरा भरोसा रखती हैं। ड्यूटी पर जहाँ सेना की यूनिफॉर्म में देश की सुरक्षा के लिए तैनात रहती हैं। वहीं, अपने ससुराल खोड़ आने पर परिवार के संस्कारों और परंपराओं को भी बखूबी निभाती हैं।

नवीना आर्मी के हर कोर्स और प्रतियोगिता में ‘A’ ग्रेड

 हासिल कर अवल्ल स्थान पर रहीं हैं।

नवीना 26 जनवरी 2015 को अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के मौजूदगी में राजपथ पर हुई परेड में भी शामिल थीं। नवीना का कहना है कि गांव की बहू-बेटियां किसी से कम नहीं। उन्हें भी सपने देखने और आगे बढ़ने का पूरा हक है। काबीलियत में वे किसी से कम नहीं हैं। सिर्फ मौके और मार्गदर्शक की कमी होती है। उन्हें चाहिए कि वे सपने देखें और जिद के साथ पूरा करें।

Monday 24 October 2016

"आज अगर विश्व के ऐतिहासिक जनतंत्र व् विकसित माने जाने वाले राष्ट्र को भी अपने नेतृत्व का चयन करने के लिए भारत तथा भारतियों को प्रभावित करने की आवश्यकता पड़ रही है तो क्या इससे यह स्पष्ट नहीं की वर्त्तमान के सन्दर्भ में भारतियों का मत और भारत की भूमिका विश्व पटल पर कितनी महत्वपूर्ण है।
कौन सा राष्ट्र अपने नेतृत्व के लिए किसे चुनता है यह उनका आतंरिक विषय है और हमारे लिए इसमें हस्तछेप करना उचित न होगा, फिर व्यक्तिगत स्तर पर किसी की राय कुछ भी हो सकती है, पर अपने राष्ट्र के नेतृत्व के लिए हम किसे चुनते हैं और क्यों, इस विषय से हम अपने आप को अलग नहीं कर सकते क्योंकि यह हमारा कर्त्तव्य भी है और दायित्व भी।
किसी भी परिस्थिति में राजनीतिक स्वार्थ को शाशन तंत्र के कर्त्तव्य व् दायित्व पर हावी होने नहीं दिया जा सकता पर जब परिस्थिति ऐसी हो जाए की राजनीतिक कारणों से सत्ता भी विवश दिखे और राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रभक्ति की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी 'हाईजैक' हो तो स्वाभाविक है की
परिस्थितियां सामाजिक चिंता का कारन बनेंगी।
अगर अखंड भारत की कल्पना को हम यथार्थ में परिणित करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपनी सोच और समझ की परिधि का विस्तार करना होगा . जब तक अपनी समझ से समस्याओं को समझ कर उनके प्रति प्रतिक्रियाएं करते रहेंगे, हम न ही उनके मूल तक पहुँच सकते हैं, न ही उनका निवारण संभव है।
विरोध किसका और विपक्ष में हम किसे देखते हैं जब तक यह स्पष्ट न हो, प्रतिक्रिया प्रभावी नहीं होंगे उल्टा वह सोच के छिछलेपन को ही सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करेगा; आखिर परिपक्व होना इतना भी कठिन नहीं, बस, प्रतिक्रिया और प्रतिउत्तर के अंतर को समझना होगा।
किसी भी विषय पर संशय ही समस्याओं को जन्म देती हैं और इसलिए सम्बंधित पक्षों के बीच परस्पर संवाद आवश्यक है, ऐसे में, जब समाज और सरकार के बीच किसी भी विषय में समन्वय न हो तो बात सरकार से होनी चाहिए; राजनीती द्वारा समाज की स्वतंत्रता का अपहरण करना अपनी बात रखने का सही तरीका नहीं हो सकता; जब दबाव सरकार पर बनाई जानी चाहिए समाज को प्रताड़ित किया जा रहा, कहीं यह राजनीति द्वारा प्रायोजित षड्यंत्र तो नहीं ताकि विषय को विवाद बनाकर सुर्ख़ियों में लंबे समय तक जीवित रखा जा सके।
हमारे प्रयास की दिशा गलत हो गयी है और इस गलती को सुधारने के लिए सर्वप्रथम इसकी स्वीकृति आवश्यक होगी; जब तक हम अपनी गलती को सही सिद्ध करने के लिए स्पष्टीकरण का प्रयास करते रहेंगे, समस्याओं का जटिल होना स्वाभाविक है।
अगर मूल्य ही धन का महत्व है तो समय तो अनमोल है, महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए ; परिस्थितियों से विवश होना व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है पर परिस्थितियों को बदलने का निर्णय भी व्यक्तिगत स्तर पर ही लिया जा सकता है; हमारी प्राथमिकताओं के लिए महत्वपूर्ण क्या होना चाहिए, आज हमें यही निर्णय लेना है ; चूँकि हमें भविष्य का बोध नहीं दोनों ही परिस्थितियों में संभावनाएं असीम हैं , जैसा निर्णय, वैसी नियति !”

शरीर के लिए अच्छा है व्रत रखना, इसी खोज के लिए जापानी वैज्ञानिक योशीनोरी ओहसुमी को मिला नोबेल ...

जिस समय जापान के जीवविज्ञानी योशीनोरी ओहसुमी को चिकित्सा या फिज़ियोलॉजी के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की जा रही थी, भारत में लाखों लोग नवरात्रि का व्रत कर रहे थे. आपको लग रहा होगा कि नोबेल मिलने और व्रत करने के बीच भला क्या कनेक्शन हो सकता है? लेकिन हम आपको बता दें कि ये कनेक्शन बहुत जबरदस्त है. दरअसल, लोगों द्वारा जो व्रत रखने की प्रक्रिया है, इसी के कारण इस क्षेत्र में रिसर्च की गई और रिसर्चर वैज्ञानिक को प्रतिष्ठित नोबेल से सम्मनित किया गया.

आपने कभी Autophagy के बारे में सुना है? ऑटोफैगी का शाब्दिक अर्थ होता है 'खुद को खाना.' ये एक प्रक्रिया है, जिसमें शरीर की कोशिकाएं मृत या बेकार कोशिकाओं को खाती हैं. ये प्रक्रिया बॉडी को उस समय ऊर्जा प्राप्त करने में मदद करती है, जब भोजन से मिलने वाले पोषक तत्व नहीं मिलते और इससे तकनीकी तौर पर उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी होती है.
दूसरे शब्दों में कहें तो यदि आप संक्षिप्त अवधि के लिए खाना बंद कर देते हैं, तो आपका शरीर काम करना नहीं बंद करता और कोशिकाएं मरी कोशिकाओं से ऊर्जा प्राप्त करती रहती हैं, जिससे आप इस ऊर्जा के बल पर अपनी दिनचर्या जारी रख सकते हैं
टोकियो प्रौद्योगिकी संस्थान के योशीनोरी ओहसुमी ने इसके लिए कई प्रयोग किए, जिससे इस बारे में ज़्यादा जानकारी मिल पाई. व्रत करने से कोशिकाओं को प्राकृतिक तरीके से बॉडी को साफ़ करने में मदद मिलती है. यानि कम समय के लिए व्रत करना या भूखे रहना बॉडी को डिटॉक्स करने में मददगार साबित होता है.
जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस के प्रोफ़ेसर मार्क मैटसन बताते हैं कि व्रत करके हम ब्रेन की क्षमता में सुधार करते हैं. व्रत करना दिमाग के लिए एक चैलेन्ज की तरह होता है कि वो बॉडी को फंक्शन में रखे. इसलिए जब शरीर के भीतर की कोशिकाएं मृत कोशिकाओं को खाना शुरू करती हैं, ब्रेन और भी ज़्यादा अलर्ट हो जाता है. ये ऐसी प्रतिक्रिया करता है, जो शरीर की भोजन की अनुपस्थिति में बीमारियों से बचाती है.
मैटसन बताते हैं कि जब जीव भूखा होता है, तो उसके दिमाग की नर्व सेल्स ज़्यादा एक्टिव हो जाती हैं. वो बताते है कि किस तरह से बॉडी भोजन से मिली ऊर्जा को ग्लाइकोजन के रूप में लिवर में स्टोर करती है. लगातार भोजन करने से (दिन में तीन बार) बॉडी ग्लाइकोजन को स्टोर करती रहती है और व्रत न रखने पर इसे खर्च करने का मौका शरीर को नहीं मिलता.

बहुत से लोग इस स्टोर की हुई ऊर्जा को खर्च करने के लिए एक्सरसाइज़ करते हैं, लेकिन बहुत से लोग नहीं करते. इसके लिए बेस्ट तरीका है कि नियमित अवधि में व्रत रखा जाए.

मैटसन समझाते हैं कि दिन में तीन बार भोजन करने के बाद अगर आप एक्सरसाइज़ करते हैं, तो उससे कहीं ज़्यादा फायदेमंद है व्रत कर लेना. कुल मिलाकर एक नियमित अंतराल पर भोजन न करने के बेहतरीन फायदे हैं. दुनिया को ये बताने के लिए योशीनोरी ओहसुमी का शुक्रिया

रूस ने बनाई सबसे खतरनाक

 पहाड़ों को चीरने वाली मशीन ...

आज हम आपको रूस की एक ऐसी पावरफुल और शक्तिशाली मशीन के बारें में बताने जा रहे है जिसका नाम एक्सक्वेटर मशीन है, जो पहाड़ो को चीरने का काम करती है। इसका इस्तेमाल कोल माइंस के लिए भी किया जाता है। इस मशीन का निर्माण रूस ने वर्ष 2012 में किया था। और इसकी सफलता को देखते हुये रूस अब इससे भी ज्यादा शक्तिशाली और दैत्याकार मशीनें बनाने में लगी हुई है।

रूस दुनिया का सबसे बड़ा देश है इसलिए इस देश में प्राक्रतिक संसाधनों की कोई कमी नहीं है। रूस हर प्रकार के खनिज संसाधनों से भरा हुआ है। रूस दुनिया के उपरी छोर के होने की वजह से रूस के आधे से ज्यादा क्षेत्र में बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है। इसलिए भी रूस के इन इलाकों में मशीनों की बहुत ज्यादा जरुरत पड़ती है। इसी कारण को मद्देनजर रखते हुये रूस में पावरफुल मशीनों को निर्माण बहुत तेजी से किया जा रहा है। और रूस के हथियार के मामलों में भी पूरी दुनिया में मशहूर है।

Saturday 22 October 2016


भारतीय फौज ने जीता दुनिया के सबसे कठिन मुकाबले में गोल्ड मेडल...


नई दिल्ली ( 22 अक्टूबर ) :भारतीय सेना की गोरखा रायफल्स ने दुनिया की सबसे कठिन माने जानी वाली कैम्ब्रियन पट्रोल अभ्यास में गोल्ड मेडल जीत लिया है। ब्रिटिश सेना द्वारा आयोजित दुनिया की इस सबसे कठिन अभ्यास को गोरखा रायफल्स की 2/8 बटालियन ने जीता है।
वेल्स में ब्रिटिश सेना ने भारतीय जवानों के मेडल पाते हुए समारोह के वीडियो जारी किए। मेडल लेने के बाद गोरखा रायफल्स की 2/8 बटालियन ने ब्रिटिश सेना को एक प्रशस्तिपत्र और पारंपरिक खुखरी भेंट की। गौरतलब है कि कैम्ब्रियन पट्रोल वेल्स के कैम्ब्रियन चोटियों पर होने वाली एक वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सैन्य पट्रोलिंग अभ्यास है। इसे दुनिया की सबसे कठिन अभ्यास में शुमार किया जाता है।
इस अभ्यास के तहत कैम्ब्रियन की चोटियों पर सांपों से भरे 55 किलोमीटर के इलाके को पार करना होता है। इसमें भाग लेने वाली टीम को मिलिटरी टास्क पूरा करना होता है और ये सभी काम 48 घंटे के भीतर ही किए जाते हैं। इस अभ्यास में पट्रोल अपने सभी तरह के निजी किट और सामानों को भी ले जाती है। टीमों को उनके दिए गए कामों को पूरा करने के आधार पर अंक दिए जाते हैं। अगर निजी किट में कोई सामान गायब होता है तो टीम के अंक काट लिए जाते हैं। अभ्यास का गोल्ड, सिल्वर और कांस्य पदक इसमें भाग लेने वाली टीमों के अंक अर्जित करने के आधार पर दिए जाते हैं।

जानिए IPC में धाराओ का मतलब .....
हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।

धारा 307 = हत्या की कोशिश 
धारा 302 =हत्या का दंड
धारा 376 = बलात्कार
धारा 395 = डकैती
धारा 377= अप्राकृतिक कृत्य
धारा 396= डकैती के दौरान हत्या
धारा 120= षडयंत्र रचना
धारा 365= अपहरण
धारा 201= सबूत मिटाना
धारा 34= सामान आशय
धारा 412= छीनाझपटी
धारा 378= चोरी
धारा 141=विधिविरुद्ध जमाव
धारा 191= मिथ्यासाक्ष्य देना
धारा 300= हत्या करना
धारा 309= आत्महत्या की कोशिश
धारा 310= ठगी करना
धारा 312= गर्भपात करना
धारा 351= हमला करना
धारा 354= स्त्री लज्जाभंग
धारा 362= अपहरण
धारा 415= छल करना
धारा 445= गृहभेदंन
धारा 494= पति/पत्नी के जीवनकाल में पुनःविवाह0
धारा 499= मानहानि
धारा 511= आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड। 
हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।
 कुछ  रोचक फैक्ट्स* की जानकारी
 ,ये वो रोचक फैक्ट्स है, जो हमारे देश के कानून के अंतर्गत आते तो है पर हम इनसे अंजान है...जो जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है.

👁‍🗨 *1. शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती*-
कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.
👁‍🗨 *2. सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है*-
पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है.
👁‍🗨 *3. कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है*-
इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है.
👁‍🗨 *4. गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता*-
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है.
👁‍🗨 *5. पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता*-
आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 6 महीने से लेकर 1 साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है.


*इस मैसेज को आगे भी भेजना और अपने पास सहेज कर रखना, आपके कभी भी ये अधिकार काम आ सकते हैं।*