Thursday 27 October 2016

दुर्गा-बोर्जो : आदिवासी इतिहास मिटाने की मिशनरी कवायद ...

संथाल जनजाति बिहार, झारखंड के अलावा बंगाल में भी होती है.
बीरभूम जिले के सुलंगा गाँव में इनके करीब सौ घर होंगे. छोटा सा गाँव है, संथालों की आबादी भी वही 500-700 जैसी होगी.
इतने मामूली से गाँव का जिक्र क्यों?
क्योंकि बरसों पहले यहाँ अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका गया था. जैसा कि बाकी भारत में हुआ था यहाँ भी विद्रोह की मुख्य वजह धार्मिक और आर्थिक ही थी.
ये वो दौर था, जब बिहार और बंगाल अलग अलग सूबे नहीं थे. एक ही बंगाल हुआ करता था और लोग भाषाई आधार पर सीमायें मानते थे.
1907 के उस दौर में बिहार के एक करपा साहेब को बुला कर यहाँ का जमींदार बना दिया गया और वो लगे किसानों से लगान वसूलने.
इस लगान की दो शर्ते थी, या तो सीधे तरीके से लगान दो, या इसाई हो जाओ तो लगान माफ़ किया जायेगा.
विरोध करने वालों को या तो मार दिया गया था या पकड़ कर असम में कुली बना कर भेजा गया था.
इस नाजायज और जबरन वसूली, ऊपर से धर्म परिवर्तन के खिलाफ मुर्मू लोग विद्रोह पर उतर आये.
जैसा कि बाकी के भारत में होता है और तिलक ने भी किया था, वैसे ही यहाँ भी लोगों ने एकजुट होने के लिए त्योहारों का ही सहारा लिया.
दुर्गा पूजा की नवमी को बलि प्रदान के दिन जब सब इकठ्ठा होते वहीँ से विद्रोह की शुरुआत हुई थी. विद्रोह के नेता थे बोर्जो मुर्मू और उनके भाई.
दल हित चिन्तक आज महिषासुर को जब संथाल लोगों का वंशज और झारखण्ड इलाके का वासी बताने की कोशिश कर रहे हैं तो उन्होंने संथाल इतिहास तो जरूर ही देखा होगा?
अब ये सवाल इसलिए है क्योंकि बोर्जो मुर्मू के भाई का नाम दुर्गा मुर्मू था. जब इतिहास में संथाल विद्रोह दर्ज किया जाता है तो दुर्गा मुर्मू और बोर्जो मुर्मू का नाम साथ ही लिया जाता है.
बोर्जो मुर्मू के वंशज अभी भी इसी गाँव में होते हैं. दुर्गा पूजा अभी भी यहाँ होती है, हां संस्कृत वाले मन्त्र नहीं पढ़े जाते, स्थानीय भाषा में बदले हुए मन्त्र होते हैं. तारीख़ वही बाकी भारत की दुर्गा पूजा वाली होती है, मूर्तियाँ स्थानीय रंग-ढंग की.
जांच करने के लिए जो जाना चाहेंगे वो गाँव के पुजारी रोबीन टुडू से अष्टमी को गोरा साहिब को दर्शाने के लिए सफ़ेद छागर की बलि की प्रथा जांच सकते हैं.
इलाके के वाम मोर्चे के पुराने मुखिया अरुण चौधरी से भी बात कर सकते हैं, दुर्गा पूजा में कम्युनिस्ट भी शामिल होते हैं.
क्या कहा? रोबिन टुडू नाम क्यों है पुजारी का?
भाई वो क्रिस्चियन वाला Robin नहीं है, ‘रविन्द्र’ का बांग्ला अपभ्रंश है रोबीन! नहीं भाई, हर बार पुजारी ब्राह्मण हो ये भी जरूरी नहीं होता.
बाकी ऊँचे अपार्टमेंट की तेरहवीं मंजिल (जिसका नाम आपने अज्ञात कारणों से 14th Floor रखा है) पर बंद ए.सी. कमरों से भारत पूरा दिखता भी नहीं जनाब! नीचे जमीन पे आइये तो बेहतर दिखेगा.

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