Monday 3 March 2014

विठ्ठलनामसे बढती है हृदयकी कार्यक्षमता ! - वैद्यकीय शास्त्रके आधारपर किए गए शोधनका निष्कर्ष

हिंदुद्रोही अंनिसको सनसना तमाचा !

हिंदुओ, नामस्मरण, ध्यानधारणा, प्राणायाम, योग आदि साधनाके सभी प्रकार केवल धार्मिक ही नहीं, अपितु वैज्ञानिक स्तरपर भी सिद्ध होते हैं । तपस्वी हिंदु ऋषियोंने तथा हिंदु धर्मग्रंथोंने हमें अलौकिक पूंजी दी है । उसकी ओर अनदेखा न कर उसका अभ्यास कर यह वेदविज्ञान पुनः विश्वके समक्ष लाएं !- संपादक, दैनिक सनातन प्रभात
 
 पुणे (महाराष्ट्र) : वेद विज्ञान संशोधन केंद्रके प्रमुख पंडित प्रसाद जोशीने पत्रकार परिषदमें नामके विषयमें जानकारी देते हुए कहा कि संशोधनके अंतमें सिद्ध हो गया है कि विट्ठलनामका गर्जन करते हुए आलंदी से पंढरपुर यात्रा करनेवाले वारकरियोंके हृदयकी कार्यक्षमता विठ्ठलनामका जप करनेसे बढती है । पता चला है कि विठ्ठलनामके उच्चारणसे हृदयकी ऊर्जाके साथ कार्यक्षमतापर सकारात्मक परिणाम होता है ।(नामस्मरण तथा ध्यानधारणाकी निंदा करनेवाली अंनिसका इस विषयमें क्या कहना है ? क्या पश्चिमी सभ्यतावालोंका अंधानुकरण करनेवाले जन्महिंदु इस शोधनसे सीख लेकर अब तो साधना कर आनंदमय जीवनयापन करेंगे ? – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) 

पंडित जोशीने कहा... 

१. २० से ६० वर्ष आयुगुटके ३० निरोगी व्यक्तियोंमें किए शोधनसे ये निष्कर्ष निकाले गए हैं । पिछले वर्षभर इस संदर्भमें  संशोधन चालू था । 
२. जिनपर प्रयोग किए गए वे व्यक्ति कुछ आस्तिक तो कुछ नास्तिक तथा अलग अलग व्यावसायी क्षेत्रके थे ।
३. उनको कुछ समयतक विठ्ठलका नामस्मरण करने कहा गया । नामस्मरण करनेसे पूर्व एवं पश्चात उनका रक्तदाब, नाडीके स्पंदन, हृदयके स्पंदन, इसीजी, टू डी इको समान विविध परीक्षण किए गए । 
४. भक्ति, भाव तथा नामका मानवी शरीरपर एकत्रित परिणाम क्या होता है, यह देखनेके लिए ये परीक्षण किए गए ।
५. नामस्मरणके पश्चात रक्तदाब, हृदय एवं नाडीके स्पंदन ठोके संतुलित पाए गए । टू डी इकोके इंजेक्शन फ्रॅक्शन भी सकारात्मकतासे बढते हुए दिखाई दिए । 
६. विठ्ठलनामका जप करते हुए पैदल जानेवाले वारकरियोंको इतनी ऊर्जा कहांसे मिलती है ? इस प्रश्नसे संशोधनकी कल्पना सूझी । (ऐसी जिज्ञासा हिंदुद्रोहियोंमें नहीं होती ! वे केवल आलोचना करनेमें ही स्वयंको धन्य मानते हैं ! – संपादक, दैनिक सनातन प्रभात ) 
७. वरिष्ठ हृदयरोगतज्ञ डॉ. अविनाश इनामदार एवं डॉ. संजीवनी इनामदारके मार्गदर्शनमें संशोधन किए जानेवाले व्यक्तियोंके हृदयकी जांच की गई । 
८. भविष्यमें हृदयरोगपर इस जपका परिणाम होता है ? इसपर संशोधन किया जाएगा ।
९. स्वयंस्फूर्त होकर वेदोंके विज्ञानका संशोधन करना चाहिए । यदि इसके संदर्भमें हीन भावना छोडकर संशोधन किया गया, तो इन बातोंमें जो विज्ञान है, उसे सभी लोगोंतक पहुंचाया जा सकता है !

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