Saturday 26 March 2016

"परिथितियों के माध्यम से वर्तमान परिवर्तन के प्रक्रिया को यथार्थ में जी रहा है और ऐसे में जीवन के पास केवल दो ही विकल्प हैं, या तो वह परिवर्तन का साक्षी बने या फिर परिवर्तन का अंश, निर्णय व्यक्तिगत हो सकता है पर परिवर्तन अपरिहार्य है।
यथार्थ की वास्तविकता के भो दो आयाम हैं,एक तो वह जो इंद्रियों की अनुभूति द्वारा परिभासित होती है चूँकि यह गतिशील आयाम है जिसके लिए ऊर्जा की प्रवाह ही सत्य है इसलिए यहाँ स्थाई कुछ भी नहीं होता.. दूसरा आयाम उन विचारों का है जो इंद्रियों की परिधि से परे है जिसके लिए सोचने, समझने और बुद्धि की तार्किक क्षमताएं निर्णायक होती हैं ..सफलता के लिए यह आवश्यक है की यथार्थ की वास्तविकता के इनदोनो आयामों के साथ जीवन अपना समन्वय स्थापित कर आगे बढे और यही सही अर्थों में शिक्षा की सार्थकता भी होगी।
आज हमारी समझदारी ही हमारी सबसे बड़ी समस्या बनगयी है जिसने हमें संवेदनहीन बना दिया है, तभी हम इतने कुंठित हैं। अगर सत्य ही धर्म है तो किसी भी परिस्थिति में किसी भी धर्म के लिए महत्व्पूर्ण सत्य ही होना चाहिए 
एक समाज के रूप में हमने भले ही चाहे जितने भी धर्म अपना लिए हों पर जब तक हमें सत्य का ज्ञान नहीं होगा संभव है की धर्म की विविधता ही हमारे लिए समस्या बन जाए।
 जिसे धर्म पर विश्वास हो पर ईश्वर का ज्ञान न हो उसे आप क्या कहेंगे ? आत्मा ही सत्य है और उसपर विश्वास के लिए ज्ञान का कारन चाहिए, इसलिए अगर यह कहा जाए की अधर्मी वह है जिसे सत्य का ज्ञान नहीं और नास्तिक वह जिसमें आत्मविश्वास का आभाव हो तो गलत न होगा।
हाँ, हम भारत को परम वैभव तक पहुँचाने की कामना करते हैं पर क्या हम सचमुच यह जानते और समझते हैं की सही अर्थों में भारत है क्या ?
भारत की जनता ही वर्तमान के लिए भारत का जीवंत रूप है  ऐसे में, जब तक हम भारत माँ के संतानों की सुरक्षा, समृद्धि और सुख को सुनिश्चित न करें, भारत को अपने परम वैभव को प्राप्त कर पाना असम्भव होगा।
भारत के परम वैभव की प्राप्ति कोई प्रयास का पारितोषिक नहीं  बल्कि किसी कठोर तपस्या का वरदान ही होगा।
पारितोषिक और वरदान में वही अंतर होता है जो श्रम की क्रिया और तपस्या के कर्म के बीच होता है किसी भी वरदान के लिए तपस्या का बल ही निर्णायक होता है।
भारत को परम वैभव तक पहुँचाने के लिए यह आवश्यक है की भारत के सभी संतान अपने आचार, विचार और व्यवहार से ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें जो इस वर्तमान को आने वाले भविष्य का आदर्श बनाए, फिर कार्यक्षेत्र चाहे जो हो ;
जब तक सभी भारतवासी राष्ट्र नवनिर्माण के इस तप में पूरी निष्ठां और समर्पण के साथ अपना यथासम्भव योगदान न करें भारत के लिए परम वैभव की प्राप्ति संभव ही नहीं है, केवल आकंक्षा पर्याप्त नहीं होगी। "

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