Wednesday 18 February 2015

1760 मे सबसे पहले कोलकाता मे कतलखाने खोलने के लिए रोबर्ट क्लाइव ने इंग्लॅण्ड की संसद मे जो पत्र लिखा उसका कुछ मुख्य बाते ऐसी थी :
१७६० – राबर्ट क्लाइव ने कोलकाता में पहला कसाईखाना खोला ।
1861 – रानी विक्टोरिया ने भारत के वाइसराय को लिख कर गायों के प्रति भारतीयों की भावनाओं को आहत करने को उकसाया ।
1947 – स्वतंत्रता के समय भारत में ३०० से कुछ अधिक कल्लगाह थे । आज 36,000 अधिकृत और लाखों अनधिकृत वधशालाएँ हैं ।
गाय की प्रजातियाँ 70 से घटकर 33 रह गई हैं । इनमें भी कुछ तो लुप्त होने के कगार पर हैं ।
स्वतंत्रता के बाद गायों की संख्या में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है ।
1993-94 भारत ने 1,01,668 टन गोमांस निर्यात किया । 1994-95 का लक्ष्य दो लाख टन था ।
हम वैनिटी बैग और बेल्ट के लिये गाय का चमड़ा, मन्जन के लिये हड्डियों का चूर्ण, विटामिन की गोलियों के लिये रक्त और सोने-चांदी के वर्कों हेतु बछड़े की आंतें पाने के लिये गो हत्या करते हैं ।
ऐसा समझा जाता है कि १९९३ में लातूर और १९९४ में बिहार जैसे भूकंपों के पीछे गो हत्या का कारण है ।
भारत मे कतलखाने खोलने के दो उद्देश्य है :रोबर्ट क्लाइव
१. अंग्रेजो की फ़ौज को जो गाय के मांस खाने की आदत है उसकी पूर्ति इससे होती रहेगी | कतलखाने मे गाय को काटने के बाद जो मांस पैदा होगा उसकी खपत हिन्दुस्तान से अतिरिक्त इंग्लैंड मे होगी | गाय का मांस खाके अंग्रेजी फौज को जो ताकत मिलेगी उससे हिन्दुस्तानियों को गुलाम बनाने मे मदत मिलेगी |
२. हिन्दुस्तान के लोग गाय को बहुत पूज्य मानते है, गाय इनके लिए माँ जैसी है, भारतीय संस्कृति मे बहुत ऊँचा स्थान है उसका | जिस समाज को या जिस प्रजा को गुलाम बनाया जाता है उसकी जो मान्यताय है बहुत ऊँची उन मान्यताओं को ध्वस्त करना पड़ता है, उनको निचे लाया जाता है | तो भारत के लोगों मे गाय को लेके जो ऊँची मान्यताय है उस ऊँची मान्यताओं को निचे लाने का काम भी तभी होगा जब गाय का क़त्ल हम कराएँगे, संख्या लगातार कम होती जाएगी, और गाँव मे रहनेवाले लोग जब अपने आपको बेबस महसूस करेंगे, और गाय की रक्षा नही कर पाएंगे तो मन टूटता जायेगा, टूटता जायेगा, टूटता जायेगा और एकदिन इतना टूट जायेगा के हो सकता है के वो गाय के बारे मे सोचना बंद कर दे |

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