Sunday 8 February 2015



आ रही है भारत की सब से डरावनी हॉरर फिल्म – "मफलर मैन" !



(7 फरवरी को दिल्ली विधानसभा के Exit Polls एवं संभावित परिणामों के आधार पर श्री आनंद राजाध्यक्ष जी की पोस्ट)... 

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येशु  को जब सूली पर चढ़ाया गया तब उसने परमेश्वर से प्रार्थना की थी: इन्हें क्षमा करो, ये जानते नहीं ये क्या कर रहे हैं.

येशु  एक महान आत्मा था, लेकिन economy येशु नहीं होती, और माफ़ तो बिलकुल भी नहीं करती.दिल्ली ने AAP को वोट दे कर जो पाप किया है उसकी कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी. दुःख की बात ये है कि ये कीमत केवल दिल्ली को ही नहीं, पूरे भारत को भी चुकानी पड़ेगी.
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बनिया अगर जानता है कि पार्टी उधार देने की लायक नहीं है, तो वो कभी उधार नहीं देता. केजरीवाल के चुनावी वादे प्रैक्टिकल नहीं थे. उसके हर वादे पर प्रश्न चिहन है कि ये इसके पैसे कहाँ से लाएगा? जाहिर है कि अगर ऐसा आदमी सत्ता में आता है तो वो पूरे देश के अर्थतंत्र पर खराब असर करेगा जब तक वो सत्ता में रहता है. इसका सीधा असर शेयर मार्केट पर होगा, जैसे ही इसकी जीत कन्फर्म होगी, मार्केट फिसलने लगेगा. करोड़ों का नुकसान होगा और दिल्लीवाले भी इसमें नहीं बचेंगे.


मार्किट के चरमराते इसका असर देश के अलग अलग क्रेडिट रेटिंग्स पर भी पड़ेगा, एक उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की साख को धक्का लगना तय है. नए प्रोजेक्ट्स का जोश ठंडा हो जाएगा, पूरे अर्थव्यवस्था को दुनिया शंकाशील नज़रों से देखने लगेगी. एक्सपोर्ट इम्पोर्ट वालों के व्यवहार पर भी इसका असर पड़ेगा. वे भी हम-आप जैसे नॉर्मल लोग ही हैं, और उनके कंपनियों में कई कर्मचारी काम करते हैं जो बिलकुल आम आदमी ही हैं.
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इसके दिवालिया वादे पूरे न करने पड़े इसलिए ये पहले तो समय मांगेगा और वो देना भी होगा. लेकिन उस अवकाश का उपयोग ये केंद्र सरकार को परेशां करने के लिए करेगा. अराजक को बढ़ावा देनेवाले मोर्चा को खुली छूट होगी, और अव्यवस्था के लिए ये जिम्मेदार केंद्र सरकार को ठहराएगा. इसकी सहयोगी और मोदिविरोधी मीडिया का सहयोग इसमें आग में घी का काम करेगा.
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अपनी जिम्मेदारी वो मोहल्ला समितियों पर सौंपेगा. काम होगा या नहीं होगा, लेकिन ये उन्हें जिम्मेदार ठहराके खुद का बचाव करेगा. नयी समितियां बनाएगा, खेल चलता रहेगा.
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झुग्गियां और पटरी पे व्यवसाय करनेवालों को ये क़ानून के दायरे से छूट दिला देगा. इस के चलते अगर सभी जगह झुग्गियां फूट आये तो इसके जिम्मेदार दिल्लीवाले खुद ही होंगे. पुलिस की अथॉरिटी ख़त्म सी होगी. इनका जो core सपोर्टर वर्ग है, उसको तो आप जानते – पहचानते ही होंगे, अब जरा कुछ ज्यादा ही करीब से जानने के लिए तैयार हो जाइए – रोजमर्रा की भाषा में उसे ‘झेलना’ कहते हैं....  आपने ही इन्हें वोट दिया है, या अगर घर बैठे रहे या वीकेंड मनाने चले गए तो भी आप उतने ही जिम्मेदार है....
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पानी और बिजली का तो बस देखते जाइए. मुझे सोचने से भी डर लगता है, दिल्लीवालों को अगर हॉरर पिक्चर देखने का शौक है तो उनकी मर्जी.....
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आप ने containment शब्द सुना है? क्या होता है, आप को पता है? एक उदाहरण देता हूँ जो झट से समझ आएगा आप को. कोई दुकानदार प्रतिस्पर्धी दुकानदार का धंधा खराब करने नगर निगम के पाइप लाइन वालों को पैसे खिलाता है कि उसके दूकान के सामने फूटपाथ खोद रखो ताकि ...समझ गए न? तो ये थी बहुत आर्डिनरी containment. इंटरनेशनल तौर पर किसी देश की प्रगति रोकने के लिए बहुत सारे प्रकार किये जाते हैं. देश के अन्दर अराजक फैलाना उसमें अग्रसर है. अब जब आप को ये सुनने में आता है कि इसको प्रमोट करने वाले ताकतों में चाइना का भी नाम शुमार है, और पाकिस्तान का तो नाम खुलेआम चर्चा में आया ही है तो कुछ समझ में आ रहा है दिल्लीवालों ने देश का कितना बड़ा नुकसान किया है?
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मीडिया को क्या कहें? ये वो जमात होती है जो उड़ते पक्षी के पर गिन सकती हैं. क्या ये बातें उन्हें पता नहीं होंगी? उनपर तो विस्तृति से लिखूंगा. मराठी के एक जानेमाने पत्रकार भाऊ तोरासेकर आज कल इनकी वो पोल खोल रहे हैं, वही डेटा जरा जमा कर लूँ, फिर इनकी भी जम के खबर लेते हैं... दिल्लीवालों को बरगलाने में इनका रोल काबिल इ ...  जाने दो, महिलाएं भी ये पढ़ रही होंगी.... 


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Arthur Hailey के किताब तो पढ़े होंगे आप ने... एअरपोर्ट पढ़ी है? उसमें एक पात्र होता है – Marcus Rathbone – विमान के अन्दर एक टेररिस्ट है ये बात सिर्फ स्टाफ को पता चली है , अन्य यात्रियों को नहीं. तो वे उस टेररिस्ट को घेर लेते हैं, और एयर होस्टेस उसके हाथ से बम वाला पार्सल झट से छीन लेती है. तब ये आदमी; जिसे युनिफोर्म पहने महिलाओं से तिरस्कार होता है, फुर्ती से ऐअर होस्टेस के हाथ से वो पार्सल छीनकर उस टेररिस्ट को देता है.  ये सोचता है कि मैंने एक सत्ताधारी वर्ग के प्रतिनिधी के खिलाफ एक आम आदमी की मदद की. अब इस फिल्म में ये रोल किसका है? मिडिल क्लास और कूल डूड्स .
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ये हॉरर फिल्म कितनी लम्बी चलेगी? पता नहीं दिल्लीवालों, आप ने अपने और बाकी देशवासियों के नसीब में क्या लिखवाया है... हाँ, इंटरवल तक आप हॉल के बाहर भी नहीं निकल सकते, तो देखिये अब भारत की सबसे डरावनी  हॉरर फिल्म – मफलरमैन !
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यह पोस्ट सेव कर लीजिये अगर इच्छा हो. बीच बीच में पढ़ लीजियेगा. और हाँ, मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूँ, बस, कॉमन सेंस खोया नहीं है....
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जैसे मैंने कहा कि मैं ज्योतिषी नहीं हूँ. अगर ये सब बस एक दु:स्वप्न निकले और १० तारीख बीजेपी जीत जाए तो मैं बहुत खुश होऊंगा ये भी बताये देता हूँ.. 


- (अदभुत लेखक एवं विचारक श्री आनंद राजाध्यक्ष जी के फेसबुक नोट से जस का तस साभार...) 

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नोट :- इस पोस्ट पर श्री Vivek Chouksey का कमेन्ट भी उल्लेखनीय है :- दक्षिण अमेरिका का इतिहास जानने वाले जानते की यह कहानी अर्जेंटीना में घटित हो चुकी है. कभी विश्व की समृद्धतम अर्थव्यवस्था को जुआन परोन और एविटा ने माल ए मुफ्त लुटाकर कुछ ही वर्षों में कंगाल कर दिया. अर्जेन्टीना फिर नहीं उबर सका. जुआन की पत्नी ईवा उसके लिए ज़िम्मेदार थी पर अपनी 'दयालुताके लिए आज भी वहां मदर एविटा के रूप में याद की जाती है.

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