Friday 4 November 2016

सदा एक सैनिक की मृत्यु गोली से नहीं होती | कभी कभी उसका गौरव उसकी मृत्यु का कारण बनता है |
निश्चिन्त रहिये, राम किशन ग्रेवाल की “आत्महत्या” की जाँच होगी |
तथ्य सामने आ रहे हैं की वे कुछ समय से कुछ “प्रतिष्ठित नेताओं” के संपर्क में चल रहे थे | मुझे ज्ञात है कि एक सैनिक कैसे सोचता है और इसीलिए मैं विक्षुब्ध हो उठा जब मेरे सूत्रों ने मुझे बताया कि OROP को लेकर किस प्रकार एक विषैली कहानी बनायी गयी और उन्हें उकसाया गया कि उनके पास यही एक अंतिम रास्ता बचा है इस बारे में कुछ कर पाने का | सेना के प्रति उनका गौरव ही उनके और उनके परिवार के विरुद्ध एक घातक अस्त्र बना दिया गया |
दो प्रश्न हैं जिनसे सबको चिंतित होना चाहिए |
1. क्या राजनैतिक गिद्धों की भूख इतनी बढ़ चुकी है कि उन्होंने अब शिकार भी करना शुरू कर दिया?
2. यदि ये नेता राम किशन ग्रेवाल को शहीद मान कर उनके परिवार वालों को नौकरी के साथ 1 करोड़ रुपये दे रहे हैं, तो क्या वो सैनिकों में आत्महत्या को बढ़ावा नहीं दे रहे?
क्या आप इस तरह की ओछी राजनीति का पर्दाफाश करने में मेरे साथ हैं?

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