Monday, 27 February 2012

संघ को बाहर से समझ पाना बेहद मुश्किल



अयोध्या। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा बाहर से देखकर संघ को समझ पाना बहुत मुश्किल है। यह संगठन स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष को आदर्श मानकर परिस्थितियों का डटकर सामना करने में विश्वास करता है। उन्होंने स्वयंसेवकों को भारत माता को देवी और उनके हर पुत्र को भाई मानते हुए राष्ट्र सेवा करने की नसीहत दी।
वह रविवार को यहां अवध प्रांत से जुड़े 22 जिलों के स्वयंसेवकों की सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संघ स्वयंसेवकों के बूते चलता है। उनकी संख्या ही हमारा प्राण है। इसी संख्या बल से हमारा आत्मबल बढ़ता है और हमारी वाणी का प्रभाव पड़ता है।
भागवत ने कहा कि संघ के लिए शाखा ही सब कुछ है। शाखा में एक भी सदस्य की अनुपस्थिति का पूरे संघ पर प्रभाव पड़ता है। भागवत ने कहा कि जब परिवेश ठीक रहेगा तभी देश का विकास होगा। हमारे संतों-महापुरुषों ने परिवेश को ठीक करने के लिए ही जीवन समर्पित कर दिया। इसी कारण वे हमारे आदर्श बने हैं।
उन्होंने स्वामी विवेकानंद की अयोध्या यात्रा जिक्र करते हुए बंदरों से उनके संघर्ष व डटकर खड़े होने पर बंदरों के भागने के प्रसंग का उल्लेख किया। कहा कि डटकर खड़े होने अथवा परिस्थितियों का सामने करने से ही विजयश्री मिलती है। भारत माता को देवी व उनके प्रत्येक पुत्र को अपना भाई मानकर कर्म करने की आवश्यकता है। इस कार्य में यदि तरुणाई भी जुट जाय तो देश की तकदीर बदल जाएगी।
सर संघचालक ने कहा कि हमें हिंदू होने का अभिमान करना चाहिए। देश में स्वार्थ के आधार पर राजनीति हो रही है और जातिवाद का जहर घोला जा रहा है। इन परिस्थितियों से उबरते हुए हमें योग्य भारत का निर्माण करना होगा। उन्होंने कहा कि संकट के समय आपकी सुसुप्त शक्तियां जाग्रत हो जाती हैं। यदि हम इसी को हमेशा जाग्रत रखें तो हर लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत को अपने इतिहास-संस्कृति से सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
इस अवसर पर विहिप के संरक्षक अशोक सिंघल, सह संघचालक देवेंद्र प्रताप, प्रांत संघ चालक धीरज अग्रवाल भी मौजूद रहे। संचालन अनिल मिश्र ने किया।

Tuesday, 21 February 2012

अब इनका कुछ तो करना पड़ेगा ...


नेताओं ने जीवन के हर छेत्र में अपने-अपने लोग पाल रखे हैं ,ताकि उनकी लूट निर्बाध रूप से जारी रह सके .इसी लिये सारे नाटकों के बाद भी देश में लूट तन्त्र जारी है .प्रचार किया जाता है क़ी यदि जनता शत प्रतिशत वोट देगी तो लोकतंत्र बच जाएगा .सारी गडबड इसलिए है क्योंकि जनता वोट नही देती ..हाँ जनता सब ठीक कर दे पर उसे सच पता तो चले क़ी गडबड है कहाँ ...?
ये सरकार अपने कर्तव्य निष्ठ सेनाध्यक्ष को महीनों से बदनाम किये जा रही है ,सिर्फ इसीलिए क़ी लिपिकीय त्रुटी क़ी वजह से उनकी जन्म तारिख दो जगह अलग -अलग लिखी दिख रही है .इसी प्रकार देश के सर्वाधिक सम्मानित वैज्ञानिक ,इसरो प्रमुख तथा भारतीय चन्द्रयान मिशन के प्रमुख करता धर्ता कोभी भ्रष्टाचार के आरोंप लगा कर ब्लेक लिस्टेड कर दिया गया है ..उनके चरित्र को सरेआम बट्टा लगाने से भी ये नेता नही चूक रहे .जिस रक्षा डील को भ्रष्ट कहा जा रहा है उसे इनके अलावा केंद्र के पांच-पांच मंत्री और मंत्रालयों ने अपनी स्वीकृति दी है तब यह डील फाइनल हुई है.. फिर भी इन वैज्ञानिकों को ही बदनाम किया जा रहा है ..
सच तो यही है क़ी सत्ता पर बैठे लोगों नेही सारी व्यवस्था को भ्रष्ट कर रखा है.. आज इन्हों ने ही भ्रष्ट व्यक्तियों के निर्माण का पूरा तन्त्र विकसित कर रखा है.. समाज का ब्राह्मण ( विद्वान )वर्ग एवं छत्रीय ( रक्षक ) वर्गभी पूरी तरह से  इसी भ्रष्ट व्यवस्था में काम करता दिख रहा है.. श्रेष्ठ मनुष्यों के निर्माण कर सकने में समर्थ हमारी संस्कृति (हिन्दू संस्कृति )पर भी लगातार गलत आरोंप लगाकर उसके कार्यकर्ताओं को जेलों में सडाया जा रहा है .सिर्फ मुस्लिम और ईसाई, थोक में मिलने वाले  वोटरों को हथिया कर दुबारा तिबारा सत्ता पर काबिज होने केलिए ...भगवान राम, गाय और महात्मा गाँधी का प्रभाव तो देश से मिटाया ही जा चुका है.. हालत तो यह बन गये हैं क़ी देश के अनेक बड़े बड़े सांस्कृतिक सन्गठन भी अब खुद को हिन्दू सन्गठन कहने से कतराते हैं ..
आज कानून बना बना कर देश को लूटा जा रहा है .ईस्ट इण्डिया कम्पनी के और हमारे आज के शासन  में कोई फर्क नही रह गया है . .देश का सेनापति झूठा ,देश के वैज्ञानिक झूठे ,राम कृष्ण ,गीता सब काल्पनिक ,भरतीय हिन्दू संस्कृति साम्प्रदायिक ,प्रतिबन्ध के योग्य ...और तो और इनका कहना है क़ी हमें कृषि और व्यापार करना भी नही आता ...बस हर जगह सिर्फ विदेशी ज्ञान विदेशी तकनीक ,विदेशी विशेषज्ञ  ही इन्हें चाहिए,विदेशी धन और विदेशी सहभागिता ही इन्हें चाहिए यह सब हम भारतीयों के मुख पर कालिख पोतना ही तो है .क्या इस व्यवस्था का समाधान सिर्फ यही है क़ी लोग १०० प्रतिशत वोट दें .ये लोग पूरे समाज को मक्कार ,आलसी ,अकर्मण्य और कायर बना रहे हैं ताकि इनकी सत्ता चलती रहे बस ..
यह अब नही हो सकेगा... अब इनका कुछ तो करना पड़ेगा ...

Saturday, 11 February 2012

कैसे मनायें ' मातृ-पितृ पूजन दिवस '?



माता-पिता को स्वच्छ तथा ऊँचे आसन पर बैठायें।
बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता के माथे पर कुंकुम का तिलक करें।
तत्पश्चात् माता-पिता के सिर पर पुष्प अर्पण करें तथा फूलमाला पहनायें।
माता-पिता भी बच्चे-बच्चियों के माथे पर तिलक करें एवं सिर पर पुष्परखें। फिर अपने गले की फूलमाला बच्चों को पहनायें।
बच्चे-बच्चियाँ थाली में दीपक जलाकर माता-पिता की आरती करें और अपने माता-पिता एवंगुरू में ईश्वरीय भाव जगातेहुए उनकी सेवा करने का दृढ़संकल्प करें।
बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता के एवं माता-पिता बच्चों केसिर पर अक्षत एवं पुष्पों की वर्षा करें।
तत्पश्चात् बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करें।
बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता को झुककर विधिवत प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतान को प्रेम से सहलायें।संतान अपने माता-पिता के गले लगे। बेटे-बेटियाँ अपने माता-पिता में ईश्वरीय अंश देखें और माता-पिता बच्चों से ईश्वरीय अंश देखें।
इस दिन बच्चे-बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें- "मैं अपने माता-पिता व गुरुजनों का आदर करूँगा /करूँगी। मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्तव्य है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी। "
इस समय माता-पिता अपने बच्चों पर स्नेहमय आशीष बरसाये एवं उनके मंगलमय जीवन के लिए इसप्रकार शुभ संकल्प करें- " तुम्हारे जीवन में उद्यम, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति व पराक्रम की वृद्धि हो। तुम्हारा जीवन माता-पिता एवं गुरू की भक्ति से महक उठे। तुम्हारे कार्यों में कुशलता आये। तुम त्रिलोचन बनो – तुम्हारी बाहर की आँख के साथ भीतरी विवेक की कल्याणकारी आँख जागृत हो। तुम पुरूषार्थी बनो और हर क्षेत्र में सफलता तुम्हारे चरण चूमे। "
बच्चे-बच्चियाँ माता-पिता को ' मधुर-प्रसाद ' खिलायें एवं माता-पिता अपने बच्चों को प्रसाद खिलायें।
बालक गणेशजी की पृथ्वी-परिक्रमा, भक्त पुण्डलीक की मातृ-पितृ भक्ति – इन कथाओं का पठन करें अथवा कोई एक व्यक्ति कथा सुनायें और अन्य लोग श्रवण करें।

माता-पिता ' बाल-संस्कार ' , दिव्य प्रेरणा-प्रकाश ' , ' तू गुलाब होकर महक ' , ' मधुर व्यवहार ' – इन पुस्तकों को अपनी क्षमतानुरूप बाँटे-बँटवायें तथा प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा स्वयं पढ़ने का व बच्चों से पढ़ने का संकल्प लें।

श्री गणेश, पुण्डलीक, श्रवणकुमार आदि मातृ-पितृ भक्तों की कथाओं को नाटक के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं

इन दिन सभी मिलकर ' श्री आसारामायण ' पाठ व आरती करके बच्चों को मधुर प्रसाद बाँटे।
नीचे लिखी पंक्तियों जैसी मातृ-पितृ भक्ति की कुछ पंक्तियाँ गलेपर लिखके बोर्ड बनाकर आयोजनस्थल पर लगायें।

1  बहुत रात तक पैर दबाते , भरें कंठ पितु आशीष पाते।
2  पुत्र तुम्हारा जगत में , सदा रहेगा नाम। लोगों के तुमसे सदा , पूरण होंगे काम।
3  मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव।
4  माता-पिता और गुरूजनों का आदर करने वाला चिरआदरणीय हो जाता है।