Friday, 31 August 2018

संदिग्ध नक्सलियों के सक्रिय समर्थक
अवधेश कुमार
पुणो पुलिस की ओर से माओवादियों यानी नक्सलियों के साथ मिलीभगत के आरोप में गिरफ्तार किए गए पांच लोगों के पक्ष में जिस तरह कुछ विख्यात लोग आनन-फानन उच्चतम न्यायालय गए और उनके पक्ष में जितने नामी-गिरामी वकील खड़े हो गए उससे आम आदमी का चकित होना स्वाभाविक है। उच्चतम न्यायालय ने उन पांचों को पूरी तरह मुक्त करने के बजाय उन्हें नजरबंद रखने का आदेश दिया। देखना है कि 6 सितंबर को होने वाली अगली सुनवाई पर वह क्या आदेश देता है। वह चाहे जो आदेश दे, यह सोचने की बात है कि आखिर इन पांचों की कितनी बड़ी हैसियत है कि इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, माजा दारूवाला, देवकी जैन और सतीश देशपांडे जैसे लोग उनके पक्ष में याचिका लेकर उच्चतम न्यायालय पहुंच गए और उसकी तत्काल सुनवाई भी हो गई। इन पांचों के लिए उच्चतम न्यायालय में जो बड़े वकील जिरह करने गए उनमें राजू रामचंद्रन, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह, अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण भी थे। वकीलों की इस टोली के सामने केवल अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता थे। इससे पता चलता है कि महाराष्ट्र सरकार और साथ ही केंद्रीय सत्ता इस स्थिति के लिए तैयार नहीं थी। पता नहीं उनकी ओर से इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका कि
पुणे पुलिस जिन्हें गिरफ्त में लेने जा रही है उनके समर्थक उन्हें बचाने के लिए कानून के हर पहलू को आजमाने के साथ यह माहौल भी बनाएंगे कि देश में आपातकाल जैसी स्थिति आ गई है। जिन्हें पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया उनमें सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवर राव, प्रोफेसर वेरनॉन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा मानवाधिकारवादी और समाजसेवी माने जाते हैं। ये सब किसी न किसी संगठन से जुड़े हैं। आज जब मोदी सरकार के विरुद्ध लिखने-बोलने, सड़कों पर उतरने, समाचार पोर्टल चलाने और जनहित याचिकाओं के माध्यम से सरकारी फैसलों पर सवाल खड़े करने वाले बड़ी संख्या में सक्रिय हैं तब यह नहीं माना जा सकता कि सरकार इन पांचों को अंदर करके असहमति की आवाज दबाना चाह रही है। कुछ लोग ऐसा ही प्रचारित कर रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इनमें कांग्रेसी नेता भी हैं। इन पांचों को भी इस वर्ष के आरंभ में भीमा-कोरेगांव से फैली हिंसा को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इसी आरोप में इसके पहले जून में भी रोना जैकब विल्सन, सुरेंद्र गडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत और सुधीर धवले को गिरफ्तार किया गया था। दरअसल 1 जनवरी, 2018 को भीमा-कोरेगांव युद्ध की 200 वीं सालगिरह के ठीक पहले पुणे में यलगार परिषद के बैनर तले एक कार्यक्रम में जिग्नेश मेवाणी, उमर खालिद आदि ने उत्तेजक भाषण दिए थे। माना गया कि इससे जो उत्तेजना पैदा हुई वही भीमा-कोरेगांव में हिंसा का कारण बनी। उसी दौरान एक आरोप यह भी उछला कि इस हिंसा में स्थानीय हिन्दू नेताओं का हाथ है। पुलिस ने संभाजी भिड़े के शिव प्रतिष्ठान और मिलिंद एकबोटे के समस्त हिंदू एकता अघाड़ी के खिलाफ मामला दर्ज किया। मिलिंद को गिरफ्तार भी किया गया, लेकिन जब जांच आगे बढ़ी तो भीमा-कोरेगांव में फैली ¨हसा के तार उन लोगों से जुड़ने लगे जो थे तो माओवादी, लेकिन छद्म तरीके से शहरों में दूसरी गतिविधियां करते थे। माना जाता है कि ऐसे शहरी नक्सलियों की संख्या अच्छी-खासी है। ये नक्सलियों को वैचारिक कवच देने के साथ ही उनकी हर तरह से मदद भी करते हैं। पुणे पुलिस ने कबीर कला मंच के कार्यकर्ताओं के घर पर छापेमारी की तो उसे वहां से ऐसे दस्तावेज मिले जिनसे वह उन पांच लोगों तक पहुंची जिन्हें जून में गिरफ्तार किया गया था। पुणे पुलिस की मानें तो यलगार परिषद और कबीर कला मंच नामक संगठन वस्तुत: माओवादियों का शहरी मुखौटा हैं और रोना विल्सन तो दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईंबाबा के जेल जाने के बाद शहरी माओवादियों को निर्देशित कर रहा था। अन्य चार रोना के ही सहयोगी थे और दलित आंदोलन के नाम से समाज में तनाव और हिंसा पैदा करने में लगे हुए थे।
पुलिस को इनके पास से कई पत्र मिले। इनमें एक प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की साजिश की ओर भी इशारा कर रहा था। एक अन्य में गढ़चिरौली में सुरक्षा बलों की कार्रवाई का बदला लेने की बात की गई थी। सुरक्षा बलों की इस कार्रवाई में 39 माओवादी मारे गए थे। रोना विल्सन के घर से बरामद एक पत्र नक्सली संगठन सीपीएम-माओवादी के मिलिंद तेलतुंबडे ने भेजा था। उस पर 50 लाख रुपये का इनाम है। इस पत्र में लिखा था कि भीमा-कोरेगांव आंदोलन बेहद प्रभावी रहा। एक पत्र में भाजपा की विजय की चर्चा करते हुए कहा गया था कि यदि ऐसा ही रहा तो सभी मोर्चों पर पार्टी के लिए दिक्कत खड़ी हो जाएगी। कॉमरेड किसन और कुछ अन्य सीनियर कॉमरेड्स ने मोदी राज को खत्म करने के लिए कुछ मजबूत कदम सुझाए हैं। हम सभी राजीव गांधी जैसे हत्याकांड पर विचार कर रहे हैं। हो सकता है हम असफल हो जाएं, लेकिन हमें लगता है कि हमारे प्रस्ताव पर विचार हो। उन्हें रोड शो में टारगेट करना एक असरदार रणनीति हो सकती है। हमें लगता है कि पार्टी का अस्तित्व किसी भी त्याग से ऊपर है। सरकारी वकील ने न्यायालय में तीन पत्रों का खास तौर पर हवाला दिया। एक में राउत और सेन का नाम लेते हुए लिखा था कि हथियार खरीदने के लिए आठ करोड़ रुपये की जरूरत है। दूसरे में एक इंस्टीट्यूट के दो लड़कों को प्रशिक्षण देने की बात है। तीसरे में माओवादियों की योजना का विवरण है। इसके आधार पर ही जांच आगे बढ़ी और फिर लिस इन पांचों तक पहुंची। आज जो कांग्रेस इस मामले में सरकार के खिलाफ आग उगल रही है उसी के शासन में दिसंबर 2012 में माओवादियों से संबंध रखने वाले 128 संगठनों के नामों का उल्लेख करते हुए राज्य सरकारों को इनके सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा गया था। गिरफ्तार सुरेंद्र गाडलिंग और रोना विल्सन ऐसे ही संगठनों से जुड़े थे। फरेरा और गोंजाल्विस को 2007 में भी पकड़ा गया था। वरवर राव को तेलंगाना और आंध्र लिस कई बार गिरफ्तार कर चुकी है, लेकिन राहुल गांधी मोदी सरकार पर हमला करते समय ये सारे तथ्य भूल गए। हम किसी को अपनी ओर से दोषी करार नहीं दे सकते, किंतु पुलिस अपनी छानबीन से उन तक पहुंची है तो उसे काम करने दिया जाना चाहिए। ध्यान रहे कि माओवादी जीएन साईंबाबा को भी इसी तरह निदरेष बताया गया था, लेकिन उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई। माओवादी चाहे हथियार लेकर संघर्ष कर रहे हों या फिर सामाजिक, सांस्कृतक, मानवाधिकार संगठन या अन्य रूप में वे देश के लिए कितने खतरनाक हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं। मोदी सरकार ने हथियारबंद माओवादियों को 150 से 50 जिलों तक समेट दिया है और मुखौटे एनजीओ पर लगाम कसी है, लेकिन छद्म वेश में काम कर रहे नक्सलियों के समर्थकों के खिलाफ नियोजित कार्रवाई नहीं हुई है।
साभार-दैनिक जागरण
इनकी कमर क्यों नहीं टूट रहीं? 
 
इन माओवादियों का संधर्षरत माओवादियों से कानून के लिए स्वीकार संबंध प्रमाणित करना आसान नहीं है। किंतु मुझे इनके माओवादी होने में कोई संदेह है ही नहीं। मुझे आश्चर्य इस बात पर भी है कि अपने को गांधीजन कहने वाले इन माओवादियों का समर्थन कर रहे हैं। 
लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आता कि भाजपा की केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें इतने समय से कर क्या रहीं हैं। केन्द्र में आपकी सरकार, 18 राज्यों मंे आपकी सरकार, इतनी पुलिस, खुफिया एजेंसियां, सीबीआई, एनआईए...सब आपके हाथ में। आपको यह पता ही नहीं कि किस तरह माओवाद को शहरों तक विस्तारित करने तथा जंगलों में लड़ने वालों को हर तरह का खुराक देने के लिए छद्म नामों से संगठन बनाकर पूरे देश में काम किया जा रहा है। इतने दिनों मंें तो कुछ भी किया जा सकता था। ये सब इस समय जेल में होते, कुछ भागे फिर रहे होते, इनकी कमर टूट गई होती। इसका मतलब है सरकार के पास माओवादियों की वैचारिक तथा संसाधनिक शक्ति के इस मूल स्रोत को खत्म करने की कोई योजना इन सवा चार सालांें में बनी ही नहीं। 
विरोधी तो आपके खिलाफ चिल्लाएंगे ही। आप कार्रवाई करेंगे तब भी और न करेंगे तब भी। कार्रवाई क्यों नहीं हुई? इसका जवाब तो मिलना चाहिए। 
पुणे पुलिस ने जो सबूत जुटाए हैं वो इनके देशव्यापी विस्तार तथा षडयंत्र को दर्शाते हैं। क्या अब भी ऐसा नहीं लगता कि इसकी राष्ट्रीय स्तर पर छानबीन और कार्रवाई होनी चाहिए? तो शहरी माओवादियों के पूरे मामले को एनआईए जैसी केन्द्रीय एजेंसी को क्यों नहीं सौंपा जा रहा? उच्चतम न्यायालय में इतने घाघ वकील खड़े हैं इनको बचाने के लिए। उनके सामने पुणे पुलिस की सीमा है। भाजपा के सैंकड़ों वकील दिल्ली मंे हैं। इनमें से कोई उस दिन बहस करने नहीं गया। इसे आप क्या कहेंगे। 
हमारे एक मित्र टिप्पणी कर रहे हैं कि वामपंथी मजबूत हैं। विचित्र है। आज वे केवल केरल में शासन चला रहे हैं। इनके मुख्य गढ़ विश्वविद्यालय प्रशासन में अब आपने तथाकथित अपने विचार के लोगों को भरा है। वहंा इनकी कमर क्यों नहीं टूट रहीं? अकादमी में आप इनको कमजोर कर सकते थे। नहीं किया तो दोष किसका है? सरकारी सांस्कृतिक-सामाजिक-कला-युवा-सभी संस्थानों में आपके पास योग्य लोगों को रखने का अवसर था। वे सब अपने-अपने स्तरों पर वैचारिकी का जवाब देते। आपने अपने अनुसार रखा भी है। ये सब क्या कर रहे हैं? एक-एक आदमी को, जिसकी योग्यता पता नहीं क्या है कई विश्वविद्यालयों के अकादमिक परिषदों में हैं। मानो लोग ही नहीं हो। जिन लोगों के पास अपनी दृष्टि ही नहीं। केवल मिल गए पद का सुख भोगना है वे कुछ कर ही नहीं सकते। 
भाजपा पर आईए तो यह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। इनके सामने वामपंथ की राजनीतिक औकात क्या है? अगर आप आज इनसे मुकाबला कर इन्हें राजनीतिक और वैचारिक स्तर पर हौंसला पस्त की स्थिति में नहीं ला पाए तो फिर क्या कहा जा सकता है। कुछ महीेने शेष है। हे सरकार के नीति-नियंताओं, सत्ता के मद से बाहर आइए और कुछ करिए। आपको जनादेश यही सब करने के लिए मिला था इसे न भूलिए। देश की एकता-अखंडता, शांति-स्थिरता के लिए ही नहीं, विचार प्रदूषण, संस्कृति रक्षा तथा विकास को अबाधित रुप से आगे बढ़ाने के लिए भी हर तरह के माओवाद का समूल नाश आवश्यक है।
अवधेश कुमार

देश के टॉप 78 खूंखार अर्बन नक्सलियों की पहली लिस्ट हुई जारी, सभी आतंकवादियों से ज्यादा खतरनाक


विवेक अग्निहोत्री जिन्होंने कदाचित पहली बार अर्बन नक्सलियों के बारे में देश को बताया था उन्होंने अर्बन नक्सलियों की पहली लिस्ट तैयार कर ली है

अर्बन नक्सली वो होते है जो शहरों में रहते है जंगल में नहीं, और ये खुद हाथ में बन्दुक लेकर नहीं चलते, ये पत्रकार, नेता, बुद्धिजीवी, लेखक, कलाकार इत्यादि के भेष में रहते है, इनका प्रमुख काम होता है नक्सलियों और आतंकियों की पैरवी

नक्सलियों और आतंकियों के खिलाफ तो सुरक्षाबल कार्यवाही कर सकते है, पर अर्बन नक्सली उनसे अधिक खतरनाक है क्यूंकि इनके खिलाफ आतंकियों और नक्सलियों की तरह कार्यवाही नहीं की जाती है, और ये देश में अपनी गतिविधियाँ चलाने के लिए कहीं भी आने जाने को स्वतंत्र रहते है जिन टॉप 78 अर्बन नक्सलियों की पहली लिस्ट जारी की गयी है, इसमें सभी अर्बन नक्सली धर्मान्तरित है, इन सभी में 1 चीज कॉमन है वो है हिन्दू का विरोध, सभी इसाई मिशनरियों, NGO, इस्लामिक संगठनो से जुड़े हुए है, जो पहली लिस्ट जारी की गयी है वो इस प्रकार है

ये तमाम अर्बन नक्सली अलग अलग भेष में है, कोई लेखक बना फिरता है, कोई वकील बना फिरता है, कोई बुद्धिजीव, कोई सोशल मीडिया पर, कोई फिल्म्बाजी में, सब अलग अलग जगहों पर घुसे हुए खूंखार अर्बन नक्सली है, और ये कुछ इस प्रकार है



अर्बन नक्सलियों की ये पहली लिस्ट है, अभी और भी लिस्ट जारी होनी बाकि है, ये तमाम अर्बन नक्सली बेहद खूंखार है, और सबका ट्रैक रिकॉर्ड एक जैसा है ये सभी भारतीये सेना के विरोधी है, ये सभी पाकिस्तान के समर्थक है, ये सभी आतंकवाद और जिहाद के समर्थक है, ये सभी मिशनरियों और धर्मांतरण के समर्थक है, ये सभी रोहिंग्यों के समर्थक है, ये सभी अवैध बांग्लादेशियों के समर्थक है, ये सभी गौहत्यारों के समर्थक है, ये सभी हिन्दू, मंदिर के विरोधी है, इन सभी में लगभग हर चीज कॉमन है

और ये अलग अलग फील्ड में रहकर एक ही काम करते है, भारत विरोध, सेना विरोध, हिन्दू विरोध, मिशनरियों और जिहादियों का समर्थन, अर्बन नक्सलियों की पहली लिस्ट में काफी खूंखार नाम शामिल है, और देश को इनसे सावधान रहना होगा, साथ ही सरकार से इनके खिलाफ कार्यवाही की मांग करनी होगी !

फोर्ड फाउंडेशन, ISI और भारतीय जज – बेहद गंभीर खुलासे
तीस्ता बैठती थी सुप्रीम कोर्ट के जज के साथ


सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था की भारत से जब अंग्रेजो को भगा दिया जायेगा तब भी 20 साल तक भारत फौजी शासन में रहना चाहिए, ताकि सिस्टम को ठीक किया जा सके और उसके बाद ही लोकतंत्र लागू किया जाना चाहिए

नेताजी ने ठीक ही कहा था, आज जो सिस्टम है वो ऊपर से नीचे तक करप्ट है, और सबसे करप्ट भारत में अदालतें है, पिछले दिनों 5 खूंखार नक्सलियों जी अर्जी सीधे सुप्रीम कोर्ट में दी गयी, सारे काम छोड़कर सुप्रीम कोर्ट ने फटाफट अर्जी सुनी, सुनवाई भी पूरी करके अर्बन नक्सलियों की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी, और नजरबन्द दे दिया

भारत की सुप्रीम कोर्ट में जज कैसे चुने जाते है, ये भी एक गंभीर मामला है अधिकतर जज वामपंथी है, और कांग्रेस के ज़माने में सुप्रीम कोर्ट में जज बने है, कोलोजियम सिस्टम लागू है तो एक वामपंथी जज दुसरे वामपंथी जज को ही आगे बढाता रहता है, ऐसा ही सिस्टम बनाया हुआ हैऔर कभी कोई जज अच्छा आ जाये तो बाकि वामपंथी जज उसके खिलाफ अब प्रेस कांफ्रेंस भी करने लग गए है, ऐसा ही गज़ब का सिस्टम इन लोगों ने बना लिया है जो इनके ही शिकंजे में रहे, जजों को लेकर मधु पूर्णिमा के 2 त्वीट काफी गंभीर है मधु पूर्णिमा किश्वर कहती है की – फोर्ड फाउंडेशन, ISI की पहुँच सुप्रीम कोर्ट के जजों तक है, सुप्रीम कोर्ट के जजों से नक्सलियों के फेवर में फैसले ले लेना कोई बड़ी चीज नहीं है

मधु पूर्णिमा ये भी बता रही है की तीस्ता सीतलवाद का एक राईट हैण्ड आदमी था जिसका नाम था राईस खान, उसने ही एक टेप में बताया की कैसे तीस्ता सीतलवाद सुप्रीम कोर्ट के जज आफताब आलम के साथ बैठकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ काम करवाती थी, नरेंद्र मोदी को 2002 में कैसे भी फंसाने की कई साजिशें की गयी थीमधु पूर्णिमा की बातों से साफ़ होता है की भारत के सुप्रीम कोर्ट में किस तरह के लोग बैठे हुए है, और सिस्टम एकदम करप्ट है, और इसे बदलने के लिए कदाचित एक बड़ी क्रांति और सरकार की इक्षाशक्ति की जरुरत है !

Thursday, 30 August 2018


विक्रम सूद की किताब ‘द अनइंडिंग गेम’ ने 
बिकाऊ मीडिया की खोली पोल!


नई किताब, द अनेंडिंग गेम, * पेंगुइन प्रकाशन से प्रकाशित इस किताब के लेखक विक्रम सूद रॉ के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं

विक्रम सूदविक्रम सूद की लिखी यह किताब न तो ज्ञापन मात्र है न तो किसी खुफिया संगठनों की अंदरुनी दस्तावेज है। लेकिन हां यह किताब जासूसों के बीच एक बुद्धिजीवी द्वारा लिखी ऐसी किताब है जो हमारी मीडिया की असलियत को दिखाती है। इस किताब में विस्तार से चर्चा की गई है किस प्रकार केजीबी और सीआईए के हाथों हमारे मीडिया संस्थान ने अपनी ईमानदारी को गिरवी रख दिया था। 70 और 80 के दशक में मास्को ने भारतीय मीडिया को लेकर दावा किया था कि यहां के अखबारों और समाचार एजेंसियों के माध्यम से हजारों आलेख और रिपोर्ट प्रकाशित कराए गए थे।

भारत एक ऐसा देश है जहां हर किसी के पास खुफिया एजेंसियों के बारे में अपना-अपना विचार तो है लेकिन इसके बारे में जानकारी कैसे प्राप्त की जा सकती है इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं? पत्रकारों को भी खुफिया एजेंसी रॉ के साथ क्या गलत हो रहा है या फिर इसे कैसे ठीक किया जाए इसकी जानकारी तो होती है लेकिन ये जानकारी नहीं होती है कि रॉ काम कैसे करता है या रॉ (RAW) संचालित कैसे होता है? जहां तक नेताओं की बात है तो वे भी बस इतना ही जानते हैं कि इसकी कुछ आवश्यकताएं हैं जिसे पूरी करने की जरूरत है। लेकिन अंदरुनी मामले जानने की बात है तो वे भी शेष दुनिया से अलग नहीं होते हैं।

‘द एन इंडिंग गेम’ के लेखक विक्रम सूद कोई सामान्य व्यक्ति नही हैं। पंजाब के रहने वाले सूद देश की खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुख रह चुके हैं। उनका कहना है कि जब वे इस पेशे में आए तो उन्हें बताया गया था कि यह ऐसा गंदा खेल है जिसे प्रतिष्ठित लोगों द्वारा खेला जाता है। जब पहली बार वे इस संगठन में आए तो उन्हें जो जैकेट पहनने के लिए दिया गया उसमें लिखा था मार्केटिंग बेट। अब जब 31 सालों तक इस संगठन में बिताने के बाद किताब लिखी है तो उन्होंने अपनी प्रस्तावना में मार्केटिंग बेट को स्पष्ट किया है। उन्होंने किताब की प्रस्तावना में लिखा है कि यह किताब न तो किसी प्रकार की कोई विज्ञप्ति है न ही 31 सालों तक काम करने वाले संगठन के अंदरुनी मामले का कोई दस्तावेज ही है।

खुफिया एजेंसियों से जुड़े लोगों या विशेषज्ञों के लिए संदर्भ ग्रंथि की बजाए उन्होंने प्राथमिक स्तर की किताब लिखी है ताकि इस दुनिया से दूर रहे पाठकों कि इस प्रकार की किताबें पढ़ने में रूचि हो। उनका कहना है कि आम पाठकों से ही किताब की लोकप्रियता होती है। गंभीर और विद्वान व्यक्ति दस जगह चर्चा करने से बचते हैं जबकि कोई आम नागरिक इस बारे में सामान्य रूप से चर्चा करते हैं और दूसरों को भी किताब पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।सूद ने अपनी इस किताब में आम लोगों को यह बताने की कोशिश की है कि किस प्रकार हमारे देश के खुफिया एजेंसियों को अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए (CIA) तथा रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी (KGB) के साथ समझौता करना पड़ता था। किताब में दर्शााया गया है कि यह समझौता भारतीय शासन के कारण करना पड़ा था। देश में आम धारणा है कि बड़ी संख्या में नेता, नौकरशाह, राजनयिक, पुलिस तथा खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों को विदेशी खुफिया एजेंसियों से धन मिलता है। अब तो यह भी रहस्य नहीं रह गया है कि भारत की राजनीतिक पार्टियों को भी चुनाव लड़ने के लिए अमेरिका और रुस जैसे देशों से फंड मिलता है। लेकिन लोगों को इस किताब में 70 और 80 दशक के दौरान भारत में खेले गए मनोवैज्ञानिक खेल पढ़कर जरूर आश्चर्य होगा।

mediya

भारत के नए एशियाड चैंपियन .रिक्शा खींचने वाले की बिटिया ......बटाई वाले खेत के किसान का बेटा ....दिहाड़ी मजूरी करने वाली मां का बेटा
ऑटो रिकशा चलाने वाले पिता की बिटिया ....धान रोपते रोपते खेत फांद कर दौड़ने वाली बिटिया
सबसे गरीब इलाके से निकल कर देश का दिल जीतने वाली बिटिया ..
बोर्नविटा और कंप्लान पिलाने वाली मम्मियों के बेटे किधर है ?
-- Jitendra Pratap Singh-
कांग्रेस के कुकर्म...!!!
अंडमान निकोबार द्वीप समूह में भारत के नौसेना का बड़ा अड्डा है ये तो सभी को ज्ञात है पर क्या आप ये जानते है के हमारे इस नौसैनिक अड्डे से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर चीन का भी एक नौसैनिक अड्डा है.....!
जी हां भारत से सिर्फ 20 KM दूर... जहां से चीनी हमारी हर हरकत पर नज़र रखते है....!
इस चीनी नौसैनिक अड्डे का नाम है #Coco_Islands (तस्वीर देखें).....साल 1950 तक ये भारत का ही हिस्सा हुआ करता था......पर आज भारत के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक है....अंडमान निकोबार सहित पूरा दक्षिण भारत, कोलकाता, चेन्नई जैसे बड़े शहर आज इस चीनी अड्डे की मिसाइलों की जद में है....ये भारत की वो कमजोर नस है जो चीन की उंगलियों के बीच दबी है....!
सबसे मजेदार चीज़ ये अड्डा चीन ने हमसे बिना लड़े बिना एक गोली खर्च किये बिना एक बूंद खून बहाए लिया है.....क्या कुछ अजीब लग रहा है........!
इस ऐतिहासिक मूर्खता को समझने को आपको कुछ साल पीछे लौटना होगा.....
सबसे पहले इस महा मूर्खता का खुलासा भारत के पूर्व रक्षा मंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडीस ने 2003 में किया था...उन्हों ने संसद और देश को बताया था के कैसे जो कोको आइलैंड देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है उसे जवाहरलाल नेहरू नाम के एक अय्यास ने बाप का माल समझ दान में दे दिया था.....!
साल 1937 तक बर्मा(#म्यांमार) भारत का ही हिस्सा हुआ करता था फिर अंग्रेज़ों ने बर्मा को अलग कॉलोनी बनाया....तब के किसी भी भारतीय राजनीतिक नेता ने इसका कोई विरोध नहीं किया उल्टा कांग्रेस ने इस निर्णय को पूरा समर्थन दिया.....इस बटवारे में अंग्रेज़ों ने सामरिक फायदे को देख #कोको_आइलैंड को बर्मा के साथ जोड़ कर वहां काला पानी जैसी ही जेल बनाई जबकि ये बर्मा से 250 KM दूर था और भारत से सिर्फ 20KM.....!
1942 में इस द्वीप समूह पर अंडमान निकोबार के साथ ही जापान ने जीत हासिल की और बाद में इसे आज़ाद हिंद का इलाका माना....!
1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद अंडमान एक स्वतंत्र देश की तरह बन गया जो बाद में 1950 में भारतीय गणराज्य में शामिल हुआ .....तब तक 1948 मैं बर्मा भी आज़ाद हो चुका था.....!
भारत का तब का प्रधानमंत्री खुद के विश्व नेता होने की गलत फहमी से नथुनों तक भरा था और इसी वाहियात सनक में उसने अंडमान निकोबार के पांच द्वीपों का समूह कोको आइलैंड बर्मा को दे दिया....!
नेहरू की इस #भयानक_अदूरदर्शिता का खामियाजा भारत ने भुगता 1994 में जब बर्मा की सरकार ने ये द्वीप सैनिक अड्डा बनाने को चीन के हवाले कर दिए.....वर्ष 2013 तक चीन ने यहां राडार, हवाई पट्टी, मिसाइलें सब खड़ा कर लिया न भारत की बार बाला सरकार ने न कोई विरोध किया न इस मुद्दे को बर्मा या चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता में कभी उठाया...!
नेहरू कितना बड़ा विश्व नेता बन सका ये तो सभी को ज्ञात है पर भारत के सीने में कोको आइलैंड के रूप में ठोंकी उसकी कील आने वाले समय में कितना दर्द देगी इसका किसी को क्या कोई अनुमान है......!
सिर्फ सोच के देखिए सिहर उठेंगे आप!
 
पूरा देश इस शख्सियत विवेक अग्निहोत्री का आभारी रहेगा जिनके एफर्ट से देश अर्बन नक्सलियों की मानसिकता को समझ पाया और यह पांच लोग जो मोदी जी की हत्या की साजिश रच रहे थे गिरफ्तार हुए।
ताकि देश मोदी जी की हत्या हो जाने पर जातिवादी दंगों में उलझ जाए और कांग्रेस फिर से काबिज हो सके ।
सोच सकते हैं कितनी बड़ी साजिश है और इन 5 लोगों को सबूतों के साथ गिरफ्तार किया गया है और देश का दुर्भाग्य देखिए कि इन गिरफ्तारियों के लिए राहुल गांधी और विपक्ष जैसे लोग इन लोगों को इन माओवादियों को बचाने के लिए एकजुट हुआ ।
लेकिन अब इनके पास एक भी पुरस्कार लौटाने के लिए नहीं बचा है ।
यह किताब जो विवेक अग्निहोत्री जी द्वारा लिखी गई है आप इसे पढ़ सकते हैं और आपको पता चल जाएगा कि किस प्रकार से यह नक्सली देश के खिलाफ बड़ा विद्रोह कर रहे हैं ।
एक बार मोदी जी ने स्टेज से रोते हुए यह बात कही थी कि मेरी हत्या करवाई जा सकती है और उस समय वह बड़े व्यथित थे
और आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मोदी जी उस समय इस साजिश को जान चुके थे उन्हें एनआईए द्वारा सारी साजिश के बारे में बता दिया गया था ।
लेकिन इंतजार था उन तमाम सबूतों का ताकि यह देश के गद्दार सबूतों के साथ गिरफ्तार हो सके ।
यह सारे नक्सली इसलिए ज्यादा बिलबिला रहे हैं कि इनको विदेशों से आने वाली सहायता जो नकली NGO के थ्रू पहुंचाई जा रही थी वह बंद हो गई है ।
और पिछली सरकार जो कि कांग्रेस की थी ने इन सभी माओवादी वह ईसाई मिशनरियों के सभी एनजीओ को बिना जांच के काम करने की इजाजत दी थी ।जो पैसा इनके थ्रू देश में आ रहा था वह देश में अराजकता विघटन और देश को बांटने वाली विभाजनकारी शक्तियों को अबाधित पहुंचाया जा रहा था ।
मैं पुनः पुनः इस शख्सियत को नमस्कार करता हूं जिसने इतनी बारीकी से इन नक्सल जो कि पढ़े लिखे और बड़ी-बड़ी डिग्रियों वाले हैं को पकड़ा है ।
उनकी सच्चाई देश के सामने पहले ही रखी थी लेकिन पिछली सरकार ने इसलिए नहीं क्योंके ये कांग्रेस की सरकार द्वारा स्वयं पोषित थे।
वंदे मातरम
याद कीजिए 13 नवंबर 2016 नोट बंदी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का गोवा में पहला भाषण जहां उन्होंने कहा था "भाईयो बहनों मै जानता हूं मैंने कैसी कैसी तकतो से लड़ाई मोल ली है, मै जानता हूं कैसे कैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे, मै जानता हूं सत्तर साल का उनका मै लूट रहा हूं मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे, मुझे बर्बाद कर के रहेंगे"
इसके बाद अभी हाल ही में कुछ माह पहले जून में पुणे पुलिस द्वारा भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कि गई छापे मारी में नरेंद्र मोदी जी की हत्या के षड्यंत्र का खुलासा किया था, इस मामले में 5 लोगो को गिरफ्तार किया गया था, इनमे रोना विल्सन, सुधीर ढावले, सुरेंद्र गाडलिंग जैसे नाम शामिल थे...
रोना विल्सन के घर से सबूत मिले थे जिसमे नरेंद्र मोदी की हत्या करवाने की बात लिखी थी, बता दें कि आरोपियों को भीमा-कोरेगांव में 1 जनवरी को हुई हिंसा से ठीक एक दिन पहले आयोजित यलगार परिषद के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, उन पर प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवाद) से जुड़े होने, विवादास्पद पर्चे बांटने, नफरत फैलाने वाले भाषण देने का आरोप था...
पत्र में कहा गया है, "मोदी 15 राज्यों में बीजेपी को स्थापित करने में सफल हुए हैं। यदि ऐसा ही रहा तो सभी मोर्चों पर पार्टी के लिए दिक्कत खड़ी हो जाएगी। कॉमरेड किसन और कुछ अन्य सीनियर कॉमरेड्स ने मोदी राज को खत्म करने के लिए कुछ मजबूत कदम सुझाए हैं। हम सभी राजीव गांधी जैसे हत्याकांड पर विचार कर रहे हैं। यह आत्मघाती जैसा मालूम होता है और इसकी भी अधिक संभावनाएं हैं कि हम असफल हो जाएं, लेकिन हमें लगता है कि पार्टी हमारे प्रस्ताव पर विचार करे। उन्हें रोड शो में टारगेट करना एक असरदार रणनीति हो सकती है। हमें लगता है कि पार्टी का अस्तित्व किसी भी त्याग से ऊपर है। बाकी अगले पत्र में।"
और 28 अगस्त को फिर भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस द्वारा देश भर में छापेमारी की गई जिसमें 5 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जिनमे गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, बारबरा राव, वर्णन गोंजाल्विस और अरुण परेरा को गिरफ्तार किया गया है, यह पांचों कहने को तो तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता है परन्तु असलियत में माओवादी/अर्बन नक्सलवादी है, सभी आरोपियों पर सेक्शन 153 A, 505(1)B, 117, 120B, 13, 16, 18, 20, 38, 39, 40 और UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम ऐक्ट) के तहत मामला दर्ज किया गया है...
इनकी गिरफ्तारी होते ही बहुतों को दस्त शुरू हो गए, सभी एक स्वर में मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिए कि मोदी सरकार अपने विरोधियों पर जानबूझ कर उनकी आवाज दबाने के लिए कार्यवाही कर रही है, जिनके दस्त लगे है उनमें बड़े बड़े नाम जैसे, राहुल गांधी, अरुंधती रॉय, प्रशांत भूषण, प्रकाश करात, रामचंद्र गुहा इत्यादि शामिल है....
आज इन पांचों अर्बन नक्सलवादियों के बचाव में सुप्रीम कोर्ट में इतिहासकार रोमिला थापर, देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और माया दारूवाला की ओर से याचिका दायर की गई थी, और इन नक्सलवादियों के बचाव में कांग्रेस पार्टी के वकील नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी "भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नौ महीने पहले एफआईआर दर्ज हुई थी और इसमें इनके नाम नहीं थे। ये प्रोफेसर, वकील आदि नामचीन लोग हैं। ऐसे में जांच में इन सभी के सहयोग न देने की कल्पना करना बेमानी है। इन लोगों के किसी तरह के सबूत नष्ट करने की आशंका भी नहीं है। लिहाजा इन्हें जमानत दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह से लोगों की गिरफ्तारी होगी तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।"
मामले की सुनवाई के दौरान तीन सदस्यीय पीठ में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की "गिरफ्तार किए गए लोग प्रोफेसर, वकील आदि हैं। इनका कहना है कि सरकार असहमति वाले स्वर को दबाना चाहती है। असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर असहमति की इजाजत नहीं दी जाएगी तो लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व फट जाएगा।"
इसके बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने एफआईआर के नौ महीने बाद गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए अंतरिम आदेश के तौर पर कहा कि आरोपियों को गिरफ्तार करने के बजाय मामले की अगली सुनवाई तक उनके घरों में ही नजरबंद रखा जाए, मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी....
अब आपको समझ आ जाना चाहिए कि देशद्रोहियों की जड़ें कितनी गहरी है और कहां कहां तक फैली हुई है, मोदी को 2014 में कांटो भरी सत्ता की गद्दी मिली है, इन सब से लड़ना इतना आसान नहीं है, नरेंद्र मोदी जी की असली ताकत हम सब राष्ट्र भक्त लोग है जिन्होंने 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ मोदी जी को सत्ता पर आसीन करवाया था और नरेंद्र मोदी जी बखूबी अपना काम कर रहे है परन्तु गद्दारों की जड़ें इतनी गहरी है कि 5 वर्ष के कार्यकाल में इसको उखड़फेकना असंभव है, फिर भी नरेंद्र मोदी जी ने इन सभी गद्दारों को देश के सामने ला कर खड़ा कर दिया है जो अभी तक छुपे हुए थे....
इन सभी गद्दारों के गिरोह को यदि जड़ से उखाड़ना है, तो हम सभी राष्ट्रभक्तों को 2019 में दोगुनी ताकत के साथ, 2014 से भी भारी बहुमत से नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री के रूप में चुनना ही होगा....
याद कीजिए 13 नवंबर 2016 नोट बंदी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का गोवा में पहला भाषण जहां उन्होंने कहा था "भाईयो बहनों मै जानता हूं मैंने कैसी कैसी तकतो से लड़ाई मोल ली है, मै जानता हूं कैसे कैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे, मै जानता हूं सत्तर साल का उनका मै लूट रहा हूं मुझे जिंदा नहीं छोड़ेंगे, मुझे बर्बाद कर के रहेंगे"
इसके बाद अभी हाल ही में कुछ माह पहले जून में पुणे पुलिस द्वारा भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कि गई छापे मारी में नरेंद्र मोदी जी की हत्या के षड्यंत्र का खुलासा किया था, इस मामले में 5 लोगो को गिरफ्तार किया गया था, इनमे रोना विल्सन, सुधीर ढावले, सुरेंद्र गाडलिंग जैसे नाम शामिल थे...
रोना विल्सन के घर से सबूत मिले थे जिसमे नरेंद्र मोदी की हत्या करवाने की बात लिखी थी, बता दें कि आरोपियों को भीमा-कोरेगांव में 1 जनवरी को हुई हिंसा से ठीक एक दिन पहले आयोजित यलगार परिषद के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, उन पर प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवाद) से जुड़े होने, विवादास्पद पर्चे बांटने, नफरत फैलाने वाले भाषण देने का आरोप था...
पत्र में कहा गया है, "मोदी 15 राज्यों में बीजेपी को स्थापित करने में सफल हुए हैं। यदि ऐसा ही रहा तो सभी मोर्चों पर पार्टी के लिए दिक्कत खड़ी हो जाएगी। कॉमरेड किसन और कुछ अन्य सीनियर कॉमरेड्स ने मोदी राज को खत्म करने के लिए कुछ मजबूत कदम सुझाए हैं। हम सभी राजीव गांधी जैसे हत्याकांड पर विचार कर रहे हैं। यह आत्मघाती जैसा मालूम होता है और इसकी भी अधिक संभावनाएं हैं कि हम असफल हो जाएं, लेकिन हमें लगता है कि पार्टी हमारे प्रस्ताव पर विचार करे। उन्हें रोड शो में टारगेट करना एक असरदार रणनीति हो सकती है। हमें लगता है कि पार्टी का अस्तित्व किसी भी त्याग से ऊपर है। बाकी अगले पत्र में।"
और 28 अगस्त को फिर भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे पुलिस द्वारा देश भर में छापेमारी की गई जिसमें 5 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जिनमे गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, बारबरा राव, वर्णन गोंजाल्विस और अरुण परेरा को गिरफ्तार किया गया है, यह पांचों कहने को तो तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता है परन्तु असलियत में माओवादी/अर्बन नक्सलवादी है, सभी आरोपियों पर सेक्शन 153 A, 505(1)B, 117, 120B, 13, 16, 18, 20, 38, 39, 40 और UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम ऐक्ट) के तहत मामला दर्ज किया गया है...
इनकी गिरफ्तारी होते ही बहुतों को दस्त शुरू हो गए, सभी एक स्वर में मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिए कि मोदी सरकार अपने विरोधियों पर जानबूझ कर उनकी आवाज दबाने के लिए कार्यवाही कर रही है, जिनके दस्त लगे है उनमें बड़े बड़े नाम जैसे, राहुल गांधी, अरुंधती रॉय, प्रशांत भूषण, प्रकाश करात, रामचंद्र गुहा इत्यादि शामिल है....
आज इन पांचों अर्बन नक्सलवादियों के बचाव में सुप्रीम कोर्ट में इतिहासकार रोमिला थापर, देवकी जैन, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे और माया दारूवाला की ओर से याचिका दायर की गई थी, और इन नक्सलवादियों के बचाव में कांग्रेस पार्टी के वकील नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी "भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में नौ महीने पहले एफआईआर दर्ज हुई थी और इसमें इनके नाम नहीं थे। ये प्रोफेसर, वकील आदि नामचीन लोग हैं। ऐसे में जांच में इन सभी के सहयोग न देने की कल्पना करना बेमानी है। इन लोगों के किसी तरह के सबूत नष्ट करने की आशंका भी नहीं है। लिहाजा इन्हें जमानत दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर इस तरह से लोगों की गिरफ्तारी होगी तो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।"
मामले की सुनवाई के दौरान तीन सदस्यीय पीठ में शामिल जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की "गिरफ्तार किए गए लोग प्रोफेसर, वकील आदि हैं। इनका कहना है कि सरकार असहमति वाले स्वर को दबाना चाहती है। असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व है, अगर असहमति की इजाजत नहीं दी जाएगी तो लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व फट जाएगा।"
इसके बाद चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने एफआईआर के नौ महीने बाद गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए अंतरिम आदेश के तौर पर कहा कि आरोपियों को गिरफ्तार करने के बजाय मामले की अगली सुनवाई तक उनके घरों में ही नजरबंद रखा जाए, मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी....
अब आपको समझ आ जाना चाहिए कि देशद्रोहियों की जड़ें कितनी गहरी है और कहां कहां तक फैली हुई है, मोदी को 2014 में कांटो भरी सत्ता की गद्दी मिली है, इन सब से लड़ना इतना आसान नहीं है, नरेंद्र मोदी जी की असली ताकत हम सब राष्ट्र भक्त लोग है जिन्होंने 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ मोदी जी को सत्ता पर आसीन करवाया था और नरेंद्र मोदी जी बखूबी अपना काम कर रहे है परन्तु गद्दारों की जड़ें इतनी गहरी है कि 5 वर्ष के कार्यकाल में इसको उखड़फेकना असंभव है, फिर भी नरेंद्र मोदी जी ने इन सभी गद्दारों को देश के सामने ला कर खड़ा कर दिया है जो अभी तक छुपे हुए थे....
इन सभी गद्दारों के गिरोह को यदि जड़ से उखाड़ना है, तो हम सभी राष्ट्रभक्तों को 2019 में दोगुनी ताकत के साथ, 2014 से भी भारी बहुमत से नरेंद्र मोदी जी को प्रधानमंत्री के रूप में चुनना ही होगा....

Wednesday, 29 August 2018

.इस्लामी आतंकवाद फास्ट पॉईजन है जिसका असर तुरंत दिख जाता है लेकिन क्रिप्टो क्रिस्चियन + बामपंथ + इस्लाम +कांग्रेस के मिश्रण से बना बौधिक आतंकवाद स्लो पॉईजन की तरह ..इसका असर धीरे धीरे होता है .ये आसानी से दिखता भी नही .इसका शिकार भ्रम में रहता है और अंत में उसकी बहुत दुर्गति होती है .....................मोदी के दौर से पहले भारत का हिन्दू समाज इस्लामी आतंकवाद से तो परिचित था .........लेकिन पिछले चार सालो में मोदी ने भारत और भारत के हिन्दुओ का शिकार करने वाले उपरोक्त स्लो पॉईजन गिरोह की जड़ो में इतना कीटनाशक छिडका की दशको से भारत की जड़ो में छिपे इसके जहरीले सांप अब तेजी से बाहर निकल के अपनी पहचान सार्वजानिक करने को मजबूर हो गए है ............राम मंदिर , कामन सिविल कोड , धारा 370 पर मोदी को गाली देने वाले प्रचंड कट्टरवादियों से विनम्र निवेदन है की देशमाता भारत के जिस्म में कांग्रेस द्वारा पाले गए अपने इन दुश्मनों पर व्यापक अध्यन और रिसर्च कर ..........अपने दुश्मनों की असली तादाद का अनुमान लगाये ...........जिनको लगता है .....मोदी ने फलाने को गिरिफ्तार क्यों नही किया अलाने को जेल में नहीं डाला ............उन कट्टरवादियो से भी सादर निवेदन है की आज सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उपरोक्त दुश्मनों को दी गयी राहत का समाचार पढ़ ले ......

और यह भी जान ले की लोकसभा चुनाव में आपको सिर्फ सांसद और सरकार चुनने का अधिकार ही दिया था लोकतंत्र ने ......उस मतदान के जरिये मीडिया और न्यायपालिका तथा कार्यपालिका में दशको से बैठे लोगो को चेंज करने का कोई अधिकार आपको नहीं मिला था ................मोदी उस अति शक्तिशाली देश और हिन्दू विरोधी समूह से लगातार संघर्ष कर रहा है .जिसका निर्माण हिन्दुस्तान की जनता ने ही पिछले दशको में किया था . ...#पवन_अवस्थी