Friday, 26 June 2020

वैदिक ग्रंथो में इसी ""भूचुम्बकत्व को ही शेषनाग कहा गया"" है.

हमारी पृथ्वी शेषनाग के फन पर टिकी हुई है... और, जब वो (शेषनाग) थोड़ा सा हिलते है... तो, भूकंप आता है..!
और, अंग्रेजी स्कूलों के पढ़े... तथा, हर चीज को वैज्ञानिक नजरिये से देखने वाले आज के बच्चे.... हमारे धर्मग्रंथ की इस बात को हँसी में उड़ा देते हैं...
एवं, वामपंथियों और मलेच्छों के प्रभाव में आकर इसका मजाक उड़ाते हैं..!
दरअसल, हमारी "पृथ्वी और शेषनाग वाली बात" महाभारत में इस प्रकार उल्लेखित है...
"अधॊ महीं गच्छ भुजंगमॊत्तम; सवयं तवैषा विवरं परदास्यति।
इमां धरां धारयता तवया हि मे; महत परियं शेषकृतं भविष्यति।।"
(महाभारत आदिपर्व के आस्तिक उपपर्व के 36 वें अध्याय का श्लोक )
इसमें ही वर्णन मिलता है कि... शेषनाग को ब्रह्मा जी धरती को धारण करने को कहते हैं... और, क्रमशः आगे के श्लोक में शेषनाग जी आदेश के पालन हेतु पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लेते हैं.
लेकिन इसमे लिखा है कि... शेषनाग को.... हमारी पृथ्वी को... धरती के "भीतर से" धारण करना है... न कि, खुद को बाहर वायुमंडल में स्थित करके पृथ्वी को अपने ऊपर धारण करना है.
इसमें शेषनाग की परिभाषा है:
[ विराम प्रत्ययाभ्यास पूर्वः संस्कार शेषोअन्यः ]
अर्थात.... रुक - रुक कर, विशेष अभ्यास , पूर्व के संस्कार [चरित्र /properties] हैं ...तथा, शेष माइक्रो/सूक्ष्म लहर हैं.
परिभाषा के अनुसार... कुल नाग (दीर्घ तरंग) और सर्प (सूक्ष्म तरंग) की संख्या 1000 हैं.
जिसमें से... शेषनाग {सूक्ष्म /दीर्घ तरंग} या शेषनाग की कुण्डलिनी उर्जा की संख्या 976 हैं... तथा, 24 अन्य नाग या तरंग हैं.
और, यह जानकर आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा कि...
आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार भी....
यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी को स्थलमण्डल, एस्थेनोस्फीयर , मध्यवर्ती मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बांटा गया है.
एवं, रासायनिक संरचना के आधार पर भूपर्पटी , ऊपरी मैंटल , निचला मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बाँटा जाता है.
समझने वाली बात यह है कि...
पृथ्वी के ऊपर का भाग... भूपर्पटी प्लेटों से बनी है... और, इसके नीचे मैन्टल होता है.... जिसमें मैंटल के इस निचली सीमा पर दाब ~140 GPa पाया जाता है.
और, मैंटल में संवहनीय धाराएँ चलती हैं.... जिनके कारण स्थलमण्डल की प्लेटों में गति होती है.
और, इन गतियों को रोकने के लिए एक बल काम करता है... जिसे, भूचुम्बकत्व कहते है.
इसी भूचुम्बकत्व की वजह से ही... टेक्टोनिक प्लेट जिनसे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है... और, वो स्थिर रहती है...तथा, उसमें कहीं भी कोई गति नही होती.
हमारे शास्त्रों के अनुसार....
शेषनाग के हजारो फन हैं...
अर्थात, भूचुम्बकत्व में हजारों मैग्नेटिक वेब्स है.
और... शेषनाग के शरीर अंत में एक हो जाते हैं.... मतलब एक पूंछ है...
मतलब कि... भूचुम्बकत्व की उत्पत्ति का केंद्र एक ही है.
इसी तरह ये कहना कि... शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फन पे टिका रखा है का मतलब हुआ कि.... भूचुम्बकत्व की वजह से ही पृथ्वी टिकी हुई है.
और, शास्त्रों का ये कहना कि...
शेषनाग के हिलने से भूकंप आता है से तात्पर्य है कि.... भूचुम्बकत्व के बिगड़ने (हिलने) से भूकंप आता है।
ध्यान रहे कि.... हमारे वैदिक ग्रंथो में इसी ""भूचुम्बकत्व को ही शेषनाग कहा गया"" है.
जानने लायक बात यह है कि... क्रोड का विस्तार मैंटल के नीचे है अर्थात 2890 किमी से लेकर पृथ्वी के केन्द्र तक.
किन्तु यह भी दो परतों में विभक्त है - बाह्य कोर और आतंरिक कोर.
जहाँ, बाह्य कोर तरल अवस्था में पाया जाता है... क्योंकि यह द्वितीयक भूकंपीय तरंगों (एस-तरंगों) को सोख लेता है.
इसीलिए, हमारे धर्मग्रंथों का यह कहना कि.... पृथ्वी शेषनाग के फन पे स्थित है... मात्र कल्पना नहीं बल्कि एक सत्य है कि... पृथ्वी शेषनाग (भू-चुम्बकत्व) की वजह से ही टिकी हुई है या शेषनाग के फन पे स्थित है.... और, उनके हिलने से ही भूकंप आते हैं.
अब चूंकि, इतने गूढ़ और वैज्ञानिक रहस्य सबको एक एक समझाना बेहद दुष्कर कार्य था... इसीलिए, हमारे पूर्वजों ने इसे एक कहानी के रूप में पिरो कर हमारे धर्मग्रंथों में संरक्षित कर दिया...!
और, विडंबना देखें कि... आज हम अपने पूर्वजों द्वारा संचित ज्ञान को समझ कर उसपर गर्व करने की जगह उसकी खिल्ली उड़ाने को अपनी शान एवं आधुनिकता समझते हैं.
जय महाकाल...!!!
#Kumar_satish

Tuesday, 16 June 2020

जो कहते हैं कि वैदिक विज्ञान से आजतक एक सूई भी नहीं बनाई गई है.
जबकि, हमारा शुरू से ही ये कहना है कि... हमारी सनातन संस्कृति और रस्मो-रिवाज हमेशा से ज्ञान-विज्ञान से समृद्ध रही है, आज भी है, और हमेशा ही रहेगी.
यह एक गर्भ प्रतिमा कुंडादम वडक्कुनाथ स्वामी मंदिर (कोयंबटूर से लगभग 70 किमी) की एक दीवार पर खुदी हुई है.
यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है एवं तमिलनाडु के धर्मपुरम में स्थित है और हजारों साल पुरानी मानी जाती है.
आप एक सहज कल्पना कीजिए कि... अल्ट्रा-साउंड की खोज से लगभग हजार साल पहले ही उस समय के लोगों को यह जानकारी कैसे मिली होगी... जो, आज भी बिना अल्ट्रा साउंड के देख पाना संभव नहीं है.
इस मंदिर की अन्य दीवारों पर... हर महीने अजन्मे बच्चे की स्थिति की एक मूर्ति उकेरी गयी है.
जिसमें.... Fertilization process से लेकर भ्रूण के 1 महीने से लेकर 9 महीने तक की आकृति है .(फ़ोटो संलग्न)
मतलब कि Electron Microscope से लेकर अल्ट्रा-साउंड तक से देखे जाने वाली आकृति... आज से हजारों साल पहले ही हमारे मंदिरों के दीवारों पर उकेर दी गई थी.
परंतु.... वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इतनी उन्नत सभ्यता होने के बावजूद भी हमें साँप पकड़ने वाला देश और अनपढ़ देश कहा गया... हमारे टेक्स्ट बुक लिखने वाले वामपंथी इतिहासकारों द्वारा.
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि.... तेजोमहालिया से लेकर लालकिला, आगरा के किला एवं हमारे ध्रुव स्तंभ (कुतुबमीनार) को आक्रांताओं द्वारा बनवाया हुआ बता दिया गया.
शायद, वे ये साबित करना चाहते थे कि... जिस अरब और रेगिस्तान से वे आक्रांता हमारे देश आये थे.... वे कबीलाई लोग... अपने मूल देश में तो एक शौचालय तक नहीं बनवा पाने वाले लोगों ने...
लेकिन, हिंदुस्तान में कदम रखते ही... उनकी रचनात्मकता जाग गई और हिंदुस्तान में उन्होंने ऐतिहासिक धरोहरों की लाइन लगा दी.
खैर.... मंदिर की रचनात्मकता और मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई ये अनमोल जानकारियाँ....
हमारे हिंदू सनातन धर्म को दुनिया का सबसे पुराना, पहला और अंतिम वैज्ञानिक धर्म साबित करने के लिए काफी है.
क्योंकि... धर्म होता केवल एक ही है ...बाकि, सब व्यक्तिगत बनाए मत होते हैं और सनातन से निकली शाखा केवल पंथ ही कहलाती हैं.
हमारे सनातन धर्म ने दुनिया को विज्ञान दिया... उसे चीजों को समझने की दृष्टि दी, जीने की कला दी, साहित्य दिया, संस्कृति दी, विमान का विज्ञान दिया, चिकित्सा विज्ञान एवं अर्थशास्त्र दिया.
इसका कारण ये है कि.... हमारा सनातन धर्म लाखों, करोड़ो वर्षों से वैज्ञानिक अनुसंधान कर रहा है और हमारे ऋषि-मुनियों ने विज्ञान की नींव रखी है.
हमारे सनातन ऋषियों ने तपस्या कर अपनी हड्डियों को पिघलाने के बाद, विज्ञान और दर्शन को दुनिया के लिए दृश्यमान बना दिया है.
और... पूरी दुनिया कभी भी सनातन ऋषियों के ऋण से मुक्त नहीं होगी.
इसीलिए... हमें अपने पूर्वजों एवं खुद पर गर्व होना चाहिए कि हम ऐसे महान सनातन धर्म का एक हिस्सा हैं जो वैज्ञानिकता से परिपूर्ण है.