Thursday, 26 April 2012

अजान की क्या कहानी है... जरा इसे भी समझ लें...


हम जैसे ही इस्लाम की बात करते हैं.... हमारे सामने मुस्लिमों का दिन में 5 बार , लाउडीस्पीकर पर दिया जाने वाला "अजान" हमारी कानों में गूंजने लगता है..!
अब अजान की क्या कहानी है... जरा इसे भी समझ लें...!
दरअसल.. जब मुहम्मद मक्का से मदीना आए, तो एक रोज़ इकठ्ठा हो कर सलाह मशविरा किया कि ... नमाज़ियों को नमाज़ का वक्त बताने के लिए कि क्या तरीका अपनाया जाए . सभी ने अपनी-अपनी राय पेश कीं, किसी ने राय दी कि.. यहूदियों की तर्ज़ पर सींग बजाई जाए, किसी ने हिन्दू की तर्ज़ पर नाक़ूश (शंख) फूकने की राय दी.. तो किसी ने कुछ किसी ने कुछ....! मुहम्मद सब की राय को सुनते रहे मगर उनको उमर की ये राय पसंद आई कि अज़ान के बोल बनाए जाएँ, जिस को बाआवाज़ बुलंद पुकारा जाए..... मुहम्मद ने बिलाल को हुक्म दिया, उठो बिलाल अज़ान दो." (बुखारी ३५३)
इस तरह ... अज़ान चन्द लोगों के बीच किया गया एक फैसला था जिस में मुहम्मद के जेहनी गुलामों की सियासी टोली थी. महज अनपढों के बनाए हुए बोल थे .. हाँ उमर की अज़ान होने के बाद शियों ने इस में कुछ रद्दो बदल कर दिया मगर इसे और भी दकयानूसी बना दिया.
अज़ान मुसलमानों में इस तरह पैठ बना चूका है कि... बच्चे के पैदा होते ही इस अजान को उसके कानों में फूँक दिया जाता है.
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि... अज़ान की आवाज़ें सिर्फ मुस्लिम ही नहीं सारी दुनिया सुनती है और उस से भी बड़ी बात यह कि ,दुनिया में लाखों मस्जिदें होंगी, उन पर लाखों मुअज़्ज़िन(अजान देने वाले) होंगे..... दिन में पॉँच बार कम से कम ये बावाज़ बुलंद दोहराई जाती है...!
जब आपको इस नमाज़ के बोल और उसके मतलब मालूम होंगे तो आप भौंचक्के रह जाएँगे.... कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है...... लेकिन लगता है कि इस्लाम में सब जायज है...!

देखिये..... अजान के नाम पर कैसे खुलेआम चिल्ला-चिल्ला कर झूठ बोला जाता है....

१-अश हदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ की मुहम्मद अल्लाह के रसूल{दूत} हैं)...... बोल नंबर ३

रिमार्क : गवाही का मतलब क्या होता है ?

कोई अदना मुसलमान से लेकर आलिम, फ़ज़िल, दानिशवर या कोई भी मुस्लिम बुद्धिजीवी बतलाएं कि.. एक साधारण मस्जिद का मुलाज़िम आखिर किस सबूत के आधार पर .... अल्लाह और मुहम्मादुर्रूसूलिल्लाह का चश्मदीद गवाह बना हुवा है...?
क्या उसने सदियों पहले अल्लाह को देखा था......?
अथवा... क्या उसे मुहम्मद के साथ देखा था......?
और, सिर्फ देखा ही नहीं, बल्कि अल्लाह को इस अमल के साथ देखा था कि वह मुहम्मद को रसूल बना रहा है...?
क्या, अल्लाह की भाषा उस के समझ में आई थी...?
क्या, हर अज़ान देने वाले की उम्र 1500 साल के आस पास की है, जब मुहम्मद को ये नबूवत मिली थी.
यहाँ याद रखें....... गवाही का मतलब शहादत होता है..... सबूत होता है ....अकीदत नहीं......आस्था नहीं.......यकीन नहीं....!
कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता .... गवाही के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता....!
इस्लाम की बुनियाद इतनी खोखली है.... ये जान कर ही हैरत होती है...!

2-अश हदोअन ला इलाहा इल्लिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.).... बोल नंबर २
रिमार्क: लायके इबादत भी भी कुछ समझ नहीं आने वाली बात है .. क्योंकि कोई इज्जत के काबिल तो हो सकता है..लेकिन कोई कुदरत अपनी इबादत की न ज़रुरत रखती है न ही उसकी ऐसी समझ-बूझ होती है... फिर किसी कि भी इबादत करना इन्सान के हक में है.

3- अल्ला हुअक्बर अल्लाह हुअक्बर
(अल्लाह बहुत बड़ा है)......... बोल नंबर १
रिमार्क: बहुत बड़ी चीजें तभी होती हैं... जब कोई दूसरी चीज़ उसके मुकाबले में छोटी हो.
यदि कुरान का यह एलान है कि... अल्लाह सिर्फ़ एक है तो... उसका ये अज़ानी ऐलान बेमानी है कि ... अल्ला बहुत बड़ा है.
मगर चूंकि इस्लाम एक उम्मी (मुर्ख, जाहिल) द्वारा प्रतिपादित है..इसीलिए इस मे ऐसी खामियां रहना साधारण सी बात है .

4- हैइया लस सला, हैइया लस सला.
(आओ नमाज़ की तरफ़ आओ नमाज़ की तरफ़)...... बोल नंबर ४
नमाजों में यही कुरानी इबारतें आंख मूँद कर पढ़ी जाती हैं जो हर्फे गलत में आप पढ़ रहे हैं....!

5- हैइया लल फला, हैइया लल फला

(आओ भलाई की तरफ ,आओ भलाई की तरफ) ........बोल नंबर ५

रिमार्क: नमाज़ पढना किसी भी हालत में भलाई का काम नहीं कहा जा सकता है ..... इन्सान और इंसानियत का फर्ज निभाना भलाई का काम है .... जो ये करते नहीं हैं..!

अब आप सारी बातें पढ़ कर खुद ही विचार करें कि.... .. जिस धर्म अथवा संप्रदाय की बुनियाद इतनी खोखली हो..... उस पर बना इमारत कैसा होगा....????

Sunday, 15 April 2012

महानता के शिखर पर आसीन----- (हमारे पूर्वज)

ईश्वर, प्रकृ्ति और जीवन का जो ज्ञान है---वो हैं वैदिक ज्ञान. सृ्ष्टि के प्रारम्भ में मानव की भलाई तथा उसके ज्ञान के लिए अग्नि, वायु, अंगिरा तथा आदित्य ऋषियों द्वारा क्रमश: ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का ज्ञान प्रकाशित किया गया. भारत के प्राचीन ऋषियों नें आध्यात्मिक शक्तियों द्वारा ईश्वर, प्रकृ्ति और आत्मा का अध्ययन किया, उनकी खोज की. अपने सूक्ष्म शरीर द्वारा लोक-लोकान्तरों का पता लगाया. मृ्त्यु के बाद पुनर्जन्म का सिद्धान्त प्रतिपादित किया. इतना ही नहीं परमात्मा और आत्मा के सम्बंध और रूप की खोज की. परमात्मा अनन्त है, उसकी सृ्ष्टि अनन्त है. इस सृ्ष्टि का पार न तो वैज्ञानिक ही पा सके और न ऋषि या योगिजन ही. परमेश्वर द्वारा इस सृ्ष्टि या कालचक्र की रचना के पीछे उसका कौन सा मंतव्य सिद्ध होता है, हम ये भी नहीं जानते. योगी योग के द्वारा और वैज्ञानिक खोज के जरिए आत्मा, परमात्मा और प्रकृ्ति का युगों से अन्वेषण करते आ रहे हैं, दोनों के मूलभूत उदेश्य भी एक ही हैं, परन्तु मार्ग भिन्न भिन्न.

एक सृ्ष्टि का काल चार अरब बत्तीस करोड वर्ष का निश्चित है. आत्मा की सूक्ष्मता यह है कि एक केश(बाल) लेकर उसके सिरे की गोलाई के 60 भाग किए, फिर उस भाग के 99 भाग किए, फिर 99वें भाग के आगे 60 भाग किए तो उसमें से एक भाग के बराबर आत्मा का परिमाण है. अर्थात 3,52,83,600 . इस प्रकार प्राचीन ऋषियों-मुनियों नें आत्मा का साईज तक जानने का प्रयत्न किया. यह तो रही ऋषि-मुनियों की योग विद्या द्वारा अन्वेषण करने की बात. आईये अब जरा प्राचीन समय के एक गणितज्ञ, ज्योतिष तत्वान्वेषक और वैज्ञानिक विद्वान भास्कराचार्य के विषय में भी कुछ जान लें. हमारे देश में भास्कर, आर्यभट, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, रामानुजन इत्यादि कईं प्रसिद्ध गणितज्ञ हुए हैं, जिन्होने हजारों वर्षों पूर्व गणित के कईं उपयोगी सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया और जिनके आधार पर भारतीय ज्योतिष विद्या तथा विज्ञान नें प्रसिद्धि प्राप्त की. इनके द्वारा भारतवर्ष को समस्त संसार में गौरव प्राप्त हुआ. जिस प्रकार सर आईजक न्यूट्न नें इंग्लैंड का नाम दुनिया भर में रौशन किया, उसी प्रकार भास्कर नें भारत का गौरव बढाया.

भास्कर, जो कि अपनी योग्यता के कारण ही भास्कराचार्य नाम से जाने जाते हैं. इनका जन्म दक्षिण भारत के बीदर प्रदेश में सन 1114 में हुआ और मृ्त्यु 1185 में हुई. यह विद्वान उस समय उज्जैन की वेधशाला के संचालक या कहें कि डायरैक्टर थे. भास्कर का प्रसिद्ध ग्रन्थ "लीलावती" है जिसमें उन्होने अंकगणित, बीजगणित और ज्यामिति के सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया है. इस ग्रन्थ में निम्नलिखित विषयों का समावेश है, जैसे पूर्णाँक और भिन्न त्रैराशिक, ब्याज, व्यापार, गणित मिश्रण, क्रम संचय मापिकी और बीजगणित, जिसमें करणियाँ, शून्य गणित, सरल समीकरण तथा वर्ग समीकरण इत्यादि प्रकरणों का वर्णन है. भास्कर द्वारा लिखा एक अन्य महत्वपूर्ण ग्रन्थ है "सिद्धान्त शिरोमणि" जिसका विषय ज्योतिष है.

वैसे तो अनिर्णित समीकरणों का अध्ययन आर्यभट्ट से आरम्भ हुआ और उसके पश्चात के सभी भारतीय गणितज्ञों नें उक्त विषय का विवेचन किया किन्तु भास्कराचार्य के समय में तो यह प्रकरण परकाष्ठा तक पहुँच चुका था. भास्कराचार्य की दी हुई विधियाँ बहुत ही सरल हैं. यह बात तो निर्विवाद रूप में कही जा सकती है कि अनिर्णित समीकरणों का हल समस्त संसार में सबसे पहले निकालने वाले भारतीय ही थे.

अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है

मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार,.. चार दिन तक होता है जिसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है ..उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ चूल्हा रसोईघर आदि से दूर रखा जाता है ..यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है कई परिवारों में ...शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है

इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहूँगा ..मासिक स्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन (estrogen) की अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शारीर से यह निकलता रहता है ..

इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये ..एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये ..वह पौधा सूख जाएगा ,

अब आते है मुर्गी के अण्डे की ओर

१) पक्षियों (मुर्गियों) में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में ना हो कर ठोस (अण्डे) के रूप में बाहर आता है ,

२) सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है और मादा हार्मोन (estrogen) से भरपूर है और बहुत ही हानिकारक है

३) ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन(oxytocin) का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे के मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित (unfertilized) अण्डे देती है

४) इन भ्रूणों (अन्डो) को खाने से पुरुषों में (estrogen) हार्मोन के बढ़ने के कारण कई रोग उत्पन्न हो रहे है जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ की कमी (oligozoospermia, azoospermia) , नपुंसकता और स्तनों का उगना (gynacomastia), हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन आदि ...

वहीँ स्त्रियों में अनियमित मासिक, बन्ध्यत्व , (PCO poly cystic oveary) गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो रहे है

५) अन्डो में पोषक पदार्थो के लाभ से ज्यादा इन रोगों से हांनी का पलड़ा ही भारी है .

६) अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग ७० % कोलेस्ट्रोल है जो की ह्रदय रोग (heart attack) का मुख्य कारण है

7) पक्षियों की माहवारी (अन्डो) को खाना धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध , अप्राकृतिक , और अपवित्र और चंडाल कर्म है

Saturday, 14 April 2012

"सेकुलरी हिन्दू शतुरमुर्गों" के लिए कुछ आँकड़े…

‎2011 की जनगणना के "बारीक आँकड़े" अभी पूरी तरह से बाहर नहीं आए हैं, लेकिन 2001 की जनगणना के कुछ प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं… 

1) 2001 में 0-6 वर्ष के मुस्लिम बच्चों की संख्या में 18.9% की वृद्धि देखी गई, जबकि सबसे कम वृद्धि जैन धर्मियों (10.1%) की रही। 

2) सन 1900 में विश्व की मुस्लिम संख्या 12% थी, जो 1992 में 18% हो गई (इसी समय सेमुअल हटिंगटन ने "सभ्यताओं के संघर्ष" की थ्योरी पेश की थी) विश्व में यह मुस्लिम जनसंख्या 2011 में अब 24% हो चुकी है, जिसके 2025 में 31% तक हो जाने का अनुमान है…

3) भारत में हिन्दू जन्म दर सामान्यतः 1.64 है, जो कि गोआ, सिक्किम जैसे राज्यों में 1.1 ही है, जबकि मुस्लिम जन्म दर 2.8 है… (2001 के आँकड़े)

4) 2011 के वास्तविक आँकड़ों के पूरे आकलन के बाद एक अनुमान है कि 2061 तक भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश को मिलाकर मुस्लिम जनसंख्या, हिन्दू जनसंख्या के बराबर हो जाएगी…
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नोट :- सरकार ने 2011 की जनगणना में "धर्म" वाले कॉलम को "ऐच्छिक" रखा था, तथा अभी-अभी संशोधित किए गए कानून के अनुसार विवाह पंजीयन में वर-वधू का "धर्म" घोषित करना भी ऐच्छिक कर दिया गया है…।

              आया कुछ समझ में???

Thursday, 12 April 2012

वेद क्या हैं ?

''वेदो अखिलो धर्म मूलम '' ... ''वेद धर्म का मूल हैं'' ... राजऋषि मनु के अनुसार 'वेद' शब्द 'विद' मूल शब्द से बना है... 'विद' का अर्थ है... "ज्ञान"...

वेद 1.97 बिल्लियन वर्ष पुराने हैं | वेदों के अनुसार यह वर्तमान सृष्टि 1 अरब, 96 करोड़, 8 लाख और लगभग 53000 वर्ष पुरानी है और इतने ही पुराने हैं वेद | जैसा की ऋग्वेद मन्त्र 10/191/3 में कहा गया है की यह सृष्टि , इससे पिछली सृष्टि के समान है और सृष्टि के चलने का क्रम शाश्वत है , इसलिए वेद भी शाश्वत हैं |

'' वेदों का वास्तव में सृजन जा विनाश नहीं होता , वे तो केवल प्रकाशित और अप्रकाशित होते हैं , परन्तु , ईश्वर में सदैव रहते हैं''-आदि जगद्गुरु शंकराचार्य...

''वेद अपौरुषेय हैं''- कुमारीलभट्ट...

वेद वास्तव में पुस्तकें नही हैं... बल्कि यह वो ज्ञान है जो ऋषियों के ह्रदय में प्रकाशित हुआ | ईश्वर वेदों के ज्ञान को सृष्टि के प्रारंभ के समय चार ऋषियों को देते हैं... जो जैविक सृष्टि के द्वारा पैदा नही होते हैं | इन ऋषियों के नाम हैं... अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा |

1.ऋषि अग्नि ने ऋग्वेद को प्राप्त किया
2.ऋषि वायु ने यजुर्वेद को प्राप्त किया
3.ऋषि आदित्य ने सामवेद को प्राप्त किया और
4.ऋषि अंगीरा ने अथर्ववेद को प्राप्त किया...
इसके बाद इन चार ऋषियों ने दुसरे लोगों को इस दिव्य ज्ञान को प्रदान किया... 

ऋग्वेद दिव्य मन्त्रों की संहिता है | इसमें १०१७ (1017) ऋचाएं अथवा सूक्त हैं जो कि १०६०० (10600) छंदों में पंक्तिबद्ध हैं | ये आठ "अष्टको" में विभाजित हैं एवं प्रत्येक अष्टक के क्रमानुसार आठ अध्याय एवं उप- अध्याय हैं | ऋग्वेद का ज्ञान मूलतः अत्रि, कन्व, वशिष्ठ, विश्वामित्र, जमदाग्नि, गौतम एवं भरद्वाज ऋषियों को प्राप्त हुआ | ऋग वेद की ऋचाएं एक सर्वशक्तिमान पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की उपासना अलग अलग विशेषणों से करती हैं... 

सामवेद संगीतमय ऋचाओं का संग्रह हैं | विश्व का समस्त संगीत सामवेद की ऋचाओं से ही उत्पन्न हुआ है | ऋग वेद के मूल तत्व का सामवेद संगीतात्मक सार हैं, प्रतिपादन हैं...

यजुरवेद मानव सभ्यता के लिए नीयत कर्म एवं अनुष्ठानों का दैवी प्रतिपादन करते हैं | यजुर वेद का ज्ञान मद्यान्दीन, कान्व, तैत्तरीय, कथक, मैत्रायणी एवं कपिस्थ्ला ऋषियों को प्राप्त हुआ...

अथर्ववेद ऋगवेद में निहित ज्ञान का व्यावहारिक कार्यान्वन प्रदान करता है ताकि मानव जाति उस परम ज्ञान से पूर्णतयः लाभान्वित हो सके | लोकप्रिय मत के विपरीत अथर्ववेद जादू और आकर्षण मन्त्रों एवं विद्या की पुस्तक नहीं है...

वेद- संरचना...

प्रत्येक वेद चार भागों में विभाजित हैं, क्रमशः : संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक एवं उपनिषद् | ऋचाओं एवं मन्त्रों के संग्रहण से संहिता, नीयत कर्मों और कर्तव्यों से ब्राह्मण , दार्शनिक पहलु से आरण्यक एवं ज्ञातव्य पक्ष से उपनिषदों का निर्माण हुआ है | आरण्यक समस्त योग का आधार हैं | उपनिषदों को वेदांत भी कहा जाता है एवं ये वैदिक शिक्षाओं का सार हैं...

वेद: समस्त ज्ञान के आधार हैं...

Tuesday, 10 April 2012

अजमेर दरगाह और मुइनुद्दिन चिश्ती का इतिहास .....



7 वीँ सदी मे मुहम्मद बिन कासिम और गजनवी के बाद मुहम्मद गौरी भारत पर राज करने के लिये आया था, तब उसकी सेना मे एक छोटा सिपेहसालार था मुइनुद्दीन चिश्ती , जो एक ताँत्रिक भी था और थोडा बहुत जादू टोना करना जानता था। गौरी की सेना जब लाहोर होते हुए अजमेर पहुची तो रास्ते मे सैँकडो मँदिरे को तोडा व जबरन धर्मान्तरण के साथ ही हजारो माँ बहनो से बलात्कार किया।

इस काम मे मुइनुद्दीन चिश्ती ने गौरी का पुरा साथ दिया। जब ये आक्रमणकारी अजमेर पहुचे तो चिश्ती ने देखा की यहा की भोली भाली जनता छोटे मोटे चमत्कारो पर ही हर किसी को पुजने लगती है तो चिश्ती ने इसी बात का फायदा उठा कर एक स्थान पर अपना डेरा डाला और जादू टोने से जनता को मूर्ख बनाने लगा । चूँकि उस वक्त अजमेर मे राजपूत शासक थे, जो विर्धमियो को स्वीकार नही करते , इसलिये उन्होने चिश्ती को वहा से भगा दिया।

इस कारण चिश्ती राजपूत शासको से बदला लेने की सोचने लगा इस बीच पृथ्वीराज चौहान दुष्ट गौरी को 16 बार परास्त कर चुके थे और हर बार अपने दरबार मे वेश्या के कपडो मे नचा के छोड देते थे, गौरी अपने इस अपमान का बदला लेना चाहता था। तभी मुइनुद्दीन चिश्ती ने गद्दार जयचँद के साथ गौरी का समझौता कराया , फिर दोनो ने धोखे से पृथ्वीराज को बँधक बनाया। इस कारण गौरी और जयचँद दोनो ने खुश होके चिश्ती को एक बडा स्थान डेरा डालने के लिये दिया। धीरे धीरे दुष्ट चिश्ती लुट के धन और जादू टोने
से कालान्तर मे स्व घोषित ख्वाजा बन बैठा॥

आज भारत की भेड चाल जनता इतिहास को भुला कर और फिल्मी सितारो का अनुसरण कर दरगाह जाना अपनी शान समझने लगी है। क्या इस सब को जान कर मेरे मित्र अब भी वहा जाकर पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करेगे या वहा जा चुके मित्र पश्चाताप करेगे ?? 

कर्पूर का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व...

कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। कर्पूर अति सुगंधित पदार्थ होता है। इसके दहन से वातावरण सुगंधित हो जाता है।

वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता।यही कारण है कि पूजन, आरती आदि धार्मिक कर्मकांडों में कर्पूर का विशेष महत्व बताया गया है। 

भगवान् शिव के गौर-वर्ण की तुलना भी कर्पूर से की गयी है... 

कर्पूरगौरम करुणावतारम संसारसारं भुजगेंद्रहारम |
सदावसंतम हृदयारविन्दे भवम भवानी सहितं नमामि ||

कर्पूर के समान चमकीले गौर वर्णवाले ,करुणा के साक्षात् अवतार, इस असार संसार के एकमात्र सार, गले में भुजंग की माला डाले, भगवान शंकर जो माता भवानी के साथ भक्तों के हृदय कमलों में सदा सर्वदा बसे रहते हैं... हम उन देवाधिदेव की वंदना करते हैं...

Friday, 6 April 2012

प्राणियों पर हिंसा से प्राकृतिक आपदाएं ...

कतलखानों में जब जानवरों को कतल किया जाता है तोह बहुत बेरहमी के साथ क्या जाता है बहुत हिंसा होती है बहुत अत्याचार होता है | जानवरों का कतल होते समय उनकी जो चीत्कार निकलती है, उनके शरीर से जो स्ट्रेस होरमोन निकलते है और उनसे शोक वेबस (तरंगें ) निकलती है वो बहुत ज्यादा पावर  फुल होती हैं .ये तरंगें  पूरी दुनिया को तरंगित कर देती है, कम्पायमान कर देती है |
 जानवरों को  जब काटा जाता है तो बहुत दिनों तक उनको भूखा रखा जाता है और कमजोर किया जाता है फिर इनके ऊपर ७० डिग्री सेंटीग्रेड  ताप के  गरम पानी की बौछार डाली जाती है  उससे उनका शरीर  फूलना शुरू  हो जाता  है   तब गाय भैंस तड़पना और चिल्लाना शुरू  कर देते है  तब जीवित  स्थिति में उनकी खाल को उतारा जाता है और खून को भी इकठ्ठा किया जाता है | फिर धीरे धीरे गर्दन काटी जाती है , पांव  अलग से काटे जाते है शरीर  का एक एक अंग अलग से निकला जाता है |
आज का आधुनिक विज्ञानं ने ये सिद्ध किया है के मरते समय जानवर हो या ब्यक्ति हो अगर उसको क्रूरता से मारा जाता है तोह उसके शरीर  से निकलने वाली जो चीख पुकार है उनको व्हाइब्रेश्न्स  की थेओरी में जब समझाया जाता है  इस प्रक्रिया में जो नेगेटिव वेब्स निकलती हैं  है वो पुरे बातावरण को बुरी तरह से प्रभाबित करती  है और उसका आस पास के सम्पूर्ण वातावरण एवं  सभी मनुष्यों पर प्रभाब पड़ता है..  उससे नकारात्मक भाब जादा से जादा आते है | इससे मनुष्य में हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है .  इसी से अत्याचार  और पाप पूरी दुनिया में बढ़ रहे हैं  |
दिल्ली विश्यविद्यालय के दो प्रोफेसर है एक मदनमोहन जी और एक उनके सहयोगी जिन्होंने २० साल इनपर रिसर्च किया है और उनकी फिजिक्स  की रिसर्च ये कहती है के जानवरों को जितना जादा कतल किया जायेगा जितना जादा हिंसा से मारा जायेगा उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे, जलजले आएंगे, प्राकृतिक आपदा आयेगी उतनेही दुनिया में संतुलन बिगड़ेगा ...

Monday, 2 April 2012

संस्कृत और संस्कृति से विश्व को नया रूप मिलेगा ..

संस्कृत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य ----- 

1. कंप्यूटर में इस्तेमाल के लिए सबसे अच्छी भाषा। संदर्भ: - फोर्ब्स पत्रिका 1987.

2. सबसे अच्छे प्रकार का कैलेंडर जो इस्तेमाल किया जा रहा है, हिंदू कैलेंडर है (जिसमें नया साल सौर प्रणाली के भूवैज्ञानिक परिवर्तन के साथ शुरू होता है) संदर्भ: जर्मन स्टेट यूनिवर्सिटी.

3. दवा के लिए सबसे उपयोगी भाषा अर्थात संस्कृत में बात करने से व्यक्ति... स्वस्थ और बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि जैसे रोग से मुक्त हो जाएगा। संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश(Positive Charges) के साथ सक्रिय हो जाता है।संदर्भ: अमेरीकन हिन्दू यूनिवर्सिटी (शोध के बाद).

4. संस्कृत वह भाषा है जो अपनी पुस्तकों वेद, उपनिषदों, श्रुति, स्मृति, पुराणों, महाभारत, रामायण आदि में सबसे उन्नत प्रौद्योगिकी (Technology) रखती है।संदर्भ: रशियन स्टेट यूनिवर्सिटी.

नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियों है जो वे अध्ययन का उपयोग कर रहे हैं. असत्यापित रिपोर्ट का कहना है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं.

दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय इंडिया (भारत) में नहीं है।

5. दुनिया की सभी भाषाओं की माँ संस्कृत है। सभी भाषाएँ (97%) प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस भाषा से प्रभावित है। संदर्भ: - यूएनओ

6. नासा वैज्ञानिक द्वारा एक रिपोर्ट है कि अमेरिका 6 और 7 वीं पीढ़ी के सुपर कंप्यूटर संस्कृत भाषा पर आधारित बना रहा है जिससे सुपर कंप्यूटर अपनी अधिकतम सीमा तक उपयोग किया जा सके। परियोजना की समय सीमा 2025 (6 पीढ़ी के लिए) और 2034 (7 वीं पीढ़ी के लिए) है, इसके बाद दुनिया भर में संस्कृत सीखने के लिए एक भाषा क्रांति होगी।

7. दुनिया में अनुवाद के उद्देश्य के लिए उपलब्ध सबसे अच्छी भाषा संस्कृत है। संदर्भ: फोर्ब्स पत्रिका 1985.

8. संस्कृत भाषा वर्तमान में "उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी" तकनीक में इस्तेमाल की जा रही है। (वर्तमान में, उन्नत किर्लियन फोटोग्राफी तकनीक सिर्फ रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका में ही मौजूद हैं। भारत के पास आज "सरल किर्लियन फोटोग्राफी" भी नहीं है )

9. अमेरिका, रूस, स्वीडन, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रिया वर्तमान में भरत नाट्यम और नटराज के महत्व के बारे में शोध कर रहे हैं। (नटराज शिव जी का कॉस्मिक नृत्य है। जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने शिव या नटराज की एक मूर्ति है ).

10. ब्रिटेन वर्तमान में हमारे श्री चक्र पर आधारित एक रक्षा प्रणाली पर शोध कर रहा है