हम जैसे ही इस्लाम की बात करते हैं.... हमारे सामने मुस्लिमों का दिन में 5 बार , लाउडीस्पीकर पर दिया जाने वाला "अजान" हमारी कानों में गूंजने लगता है..!
अब अजान की क्या कहानी है... जरा इसे भी समझ लें...!
दरअसल.. जब मुहम्मद मक्का से मदीना आए, तो एक रोज़ इकठ्ठा हो कर सलाह मशविरा किया कि ... नमाज़ियों को नमाज़ का वक्त बताने के लिए कि क्या तरीका अपनाया जाए . सभी ने अपनी-अपनी राय पेश कीं, किसी ने राय दी कि.. यहूदियों की तर्ज़ पर सींग बजाई जाए, किसी ने हिन्दू की तर्ज़ पर नाक़ूश (शंख) फूकने की राय दी.. तो किसी ने कुछ किसी ने कुछ....! मुहम्मद सब की राय को सुनते रहे मगर उनको उमर की ये राय पसंद आई कि अज़ान के बोल बनाए जाएँ, जिस को बाआवाज़ बुलंद पुकारा जाए..... मुहम्मद ने बिलाल को हुक्म दिया, उठो बिलाल अज़ान दो." (बुखारी ३५३)
इस तरह ... अज़ान चन्द लोगों के बीच किया गया एक फैसला था जिस में मुहम्मद के जेहनी गुलामों की सियासी टोली थी. महज अनपढों के बनाए हुए बोल थे .. हाँ उमर की अज़ान होने के बाद शियों ने इस में कुछ रद्दो बदल कर दिया मगर इसे और भी दकयानूसी बना दिया.
अज़ान मुसलमानों में इस तरह पैठ बना चूका है कि... बच्चे के पैदा होते ही इस अजान को उसके कानों में फूँक दिया जाता है.
यह बात किसी से छुपी नहीं है कि... अज़ान की आवाज़ें सिर्फ मुस्लिम ही नहीं सारी दुनिया सुनती है और उस से भी बड़ी बात यह कि ,दुनिया में लाखों मस्जिदें होंगी, उन पर लाखों मुअज़्ज़िन(अजान देने वाले) होंगे..... दिन में पॉँच बार कम से कम ये बावाज़ बुलंद दोहराई जाती है...!
जब आपको इस नमाज़ के बोल और उसके मतलब मालूम होंगे तो आप भौंचक्के रह जाएँगे.... कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है...... लेकिन लगता है कि इस्लाम में सब जायज है...!
देखिये..... अजान के नाम पर कैसे खुलेआम चिल्ला-चिल्ला कर झूठ बोला जाता है....
१-अश हदो अन्ना मुहम्मदुर रसूलिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ की मुहम्मद अल्लाह के रसूल{दूत} हैं)...... बोल नंबर ३
रिमार्क : गवाही का मतलब क्या होता है ?
कोई अदना मुसलमान से लेकर आलिम, फ़ज़िल, दानिशवर या कोई भी मुस्लिम बुद्धिजीवी बतलाएं कि.. एक साधारण मस्जिद का मुलाज़िम आखिर किस सबूत के आधार पर .... अल्लाह और मुहम्मादुर्रूसूलिल्लाह का चश्मदीद गवाह बना हुवा है...?
क्या उसने सदियों पहले अल्लाह को देखा था......?
अथवा... क्या उसे मुहम्मद के साथ देखा था......?
और, सिर्फ देखा ही नहीं, बल्कि अल्लाह को इस अमल के साथ देखा था कि वह मुहम्मद को रसूल बना रहा है...?
क्या, अल्लाह की भाषा उस के समझ में आई थी...?
क्या, हर अज़ान देने वाले की उम्र 1500 साल के आस पास की है, जब मुहम्मद को ये नबूवत मिली थी.
यहाँ याद रखें....... गवाही का मतलब शहादत होता है..... सबूत होता है ....अकीदत नहीं......आस्था नहीं.......यकीन नहीं....!
कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता .... गवाही के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता....!
इस्लाम की बुनियाद इतनी खोखली है.... ये जान कर ही हैरत होती है...!
2-अश हदोअन ला इलाहा इल्लिल्लाह
(मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं.).... बोल नंबर २
रिमार्क: लायके इबादत भी भी कुछ समझ नहीं आने वाली बात है .. क्योंकि कोई इज्जत के काबिल तो हो सकता है..लेकिन कोई कुदरत अपनी इबादत की न ज़रुरत रखती है न ही उसकी ऐसी समझ-बूझ होती है... फिर किसी कि भी इबादत करना इन्सान के हक में है.
3- अल्ला हुअक्बर अल्लाह हुअक्बर
(अल्लाह बहुत बड़ा है)......... बोल नंबर १
रिमार्क: बहुत बड़ी चीजें तभी होती हैं... जब कोई दूसरी चीज़ उसके मुकाबले में छोटी हो.
यदि कुरान का यह एलान है कि... अल्लाह सिर्फ़ एक है तो... उसका ये अज़ानी ऐलान बेमानी है कि ... अल्ला बहुत बड़ा है.
मगर चूंकि इस्लाम एक उम्मी (मुर्ख, जाहिल) द्वारा प्रतिपादित है..इसीलिए इस मे ऐसी खामियां रहना साधारण सी बात है .
4- हैइया लस सला, हैइया लस सला.
(आओ नमाज़ की तरफ़ आओ नमाज़ की तरफ़)...... बोल नंबर ४
नमाजों में यही कुरानी इबारतें आंख मूँद कर पढ़ी जाती हैं जो हर्फे गलत में आप पढ़ रहे हैं....!
5- हैइया लल फला, हैइया लल फला
(आओ भलाई की तरफ ,आओ भलाई की तरफ) ........बोल नंबर ५
रिमार्क: नमाज़ पढना किसी भी हालत में भलाई का काम नहीं कहा जा सकता है ..... इन्सान और इंसानियत का फर्ज निभाना भलाई का काम है .... जो ये करते नहीं हैं..!
अब आप सारी बातें पढ़ कर खुद ही विचार करें कि.... .. जिस धर्म अथवा संप्रदाय की बुनियाद इतनी खोखली हो..... उस पर बना इमारत कैसा होगा....????