Tuesday 10 April 2012

अजमेर दरगाह और मुइनुद्दिन चिश्ती का इतिहास .....



7 वीँ सदी मे मुहम्मद बिन कासिम और गजनवी के बाद मुहम्मद गौरी भारत पर राज करने के लिये आया था, तब उसकी सेना मे एक छोटा सिपेहसालार था मुइनुद्दीन चिश्ती , जो एक ताँत्रिक भी था और थोडा बहुत जादू टोना करना जानता था। गौरी की सेना जब लाहोर होते हुए अजमेर पहुची तो रास्ते मे सैँकडो मँदिरे को तोडा व जबरन धर्मान्तरण के साथ ही हजारो माँ बहनो से बलात्कार किया।

इस काम मे मुइनुद्दीन चिश्ती ने गौरी का पुरा साथ दिया। जब ये आक्रमणकारी अजमेर पहुचे तो चिश्ती ने देखा की यहा की भोली भाली जनता छोटे मोटे चमत्कारो पर ही हर किसी को पुजने लगती है तो चिश्ती ने इसी बात का फायदा उठा कर एक स्थान पर अपना डेरा डाला और जादू टोने से जनता को मूर्ख बनाने लगा । चूँकि उस वक्त अजमेर मे राजपूत शासक थे, जो विर्धमियो को स्वीकार नही करते , इसलिये उन्होने चिश्ती को वहा से भगा दिया।

इस कारण चिश्ती राजपूत शासको से बदला लेने की सोचने लगा इस बीच पृथ्वीराज चौहान दुष्ट गौरी को 16 बार परास्त कर चुके थे और हर बार अपने दरबार मे वेश्या के कपडो मे नचा के छोड देते थे, गौरी अपने इस अपमान का बदला लेना चाहता था। तभी मुइनुद्दीन चिश्ती ने गद्दार जयचँद के साथ गौरी का समझौता कराया , फिर दोनो ने धोखे से पृथ्वीराज को बँधक बनाया। इस कारण गौरी और जयचँद दोनो ने खुश होके चिश्ती को एक बडा स्थान डेरा डालने के लिये दिया। धीरे धीरे दुष्ट चिश्ती लुट के धन और जादू टोने
से कालान्तर मे स्व घोषित ख्वाजा बन बैठा॥

आज भारत की भेड चाल जनता इतिहास को भुला कर और फिल्मी सितारो का अनुसरण कर दरगाह जाना अपनी शान समझने लगी है। क्या इस सब को जान कर मेरे मित्र अब भी वहा जाकर पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करेगे या वहा जा चुके मित्र पश्चाताप करेगे ?? 

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