Saturday 1 September 2012

फांसी वाली रस्सी का इतिहास

फांसी वाली रस्सी का इतिहास

देश में मात्र एक जगह मौत का फंदा तैयार होता है। वह जगह कहीं और नहीं, बल्कि बिहार का केन्द्रीय कारा बक्सर है। जी हां यह सच है। इस जेल में बन्द कैदी ही अपने साथियों के लिए मौत का फंदा तैयार करते है। इस विशेष रस्सी 
का नाम मनीला रस्सी है।

वर्ष 1844 ई. में अंग्रेज शासकों द्वारा केन्द्रीय कारा बक्सर में मौत का फंदा तैयार करने की फैक्ट्री लगाई गई थी। यहां तैयार किए गए मौत के फंदे से पहली बार सन 1884 ई. में एक भारतीय नागरिक को फांसी पर लटकाया गया था। वर्तमान समय में देश में जब-जब मौत का फरमान जारी होता है, तब-तब केन्द्रीय कारा बक्सर के कैदी ही मौत का फंदा तैयार करते हैं।

अब तक तैयार रस्सी का इतिहास

जेल सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जेल स्टाफ आनंद शर्मा व शशि कुमार के नेतृत्व में छ: सजायाफ्ता कैदी फांसी देने वाली विशेष प्रकार की मनीला रस्सी का निर्माण करते हैं। राज्य सरकारों की विशेष मांग पर अब-तक सन 1995 में केन्द्रीय कारा भागलपुर, 1981 में महाराष्ट्र, 1990 में पश्चिम बंगाल, 2003 में आंध्रप्रदेश और 2004 में पश्चिम बंगाल को यह रस्सी दी गई थी।

मौत के फंदे का दाम मात्र 182 रुपए

168 किलोग्राम वजन उठाने की क्षमता वाली विशेष प्रकार की रस्सी की कीमत मात्र 182 रुपये है। इस कीमत में बढ़ोतरी आजादी के बाद से नहीं की गई है। अंग्रेजों के जमाने में रुई-सुता से इस रस्सी का निर्माण किया जाता था। मनीला रस्सी का निर्माण आज भी पंजाब में उत्पादित होने वाली जे-34 गुणवत्ता वाली रुई की सूत से किया जाता है जो विशेष आर्द्रता में तैयार 50 धागों से बना होता है। इसका वजन 3 किलो 950 ग्राम और लंबाई 60 फीट होती है।

बक्सर के अलावा मनीला रस्सी तैयार करने पर देश में पूर्ण प्रतिबंध

उद्योग मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि बक्सर केन्द्रीय कारा को छोड़ कर भारतीय फैक्ट्री लॉ में इस क्वालिटी की रस्सी के निर्माण पर पूरे देश में पूर्ण प्रतिबंध है। वहीं, वरीय प्रशासनिक अधिकारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार केवल सरकारी आदेश को छोड़ कर इस विशेष प्रकार के रस्सी के उपयोग पर पूरे देश में पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है।

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