Tuesday 12 February 2013

मुसलामानों की दरिद्रता के कारण --

मित्रों ब्रिटिश भारत में मुसलमान रो रहे थे कि वो हिन्दुओं से प्रतिस्पर्धा नही कर पाएंगे , स्वतंत्र भारतीय गणराज्य में भी उनका वही रोना है किन्तु क्या आप जानते हैं कि मुग़ल काल में भी इनकी यही दशा थी |अब आप कह सकते हैं कि मुग़ल काल में तो मुसलमान शासकवर्ग में थे फिर भी ?
मैं आपको प्रमाण देता हूँ -
फ्रांसिस जेवियर वेन्डेल एक जेसुइट पादरी था | जिसके लेखों का संग्रह `वेन्देल्स मेमोरीज ऑन द ओरिजिन , ग्रोथ एंड प्रेजेंट स्टेट ऑफ़ जाट पॉवर इन हिन्दुस्तान`नाम से १७६८ में प्रकाशित हुआ था जिसके हिंदी और अंग्रेजी संस्करण भी उपलब्ध हैं | वेन्डेल ने जिस प्रकार से हिन्दुओं एवं मुसलमानों के आचरण एवं चरित्र का वर्णन किया है वह आँखे खोल देने वाला है | वेन्डेल के शब्दों का हिंदी रुपंतारन -
मुसलामानों की दरिद्रता के कारण --
विपुल व्यय की शानोशौकत द्वारा अपना बडप्पन जताने का यह चलन या कहना चाहिए कि अवगुण उन छूत की बिमारियों में से एक है जिन्हें मुसलमान यहाँ लायें हैं और सारे भारत में फैला चुके हैं |मुसलामानों की आदत है कि वे खूब अच्छा खाते हैं और पहनते हैं तथा कामुक और विषयासक्त होते हैं ; जबकि इसके साथ hi उन्हें निठल्लापन एवं उद्याम्हीनता अच्छी लगती है | स्वाभाव से घमंडी होने के कारण वे बाहरी तौर पर बड़ा भव्य दिखने का प्रयत्न करते हैं |इस काल्पनिक बड़प्पन का परिणाम यह होता है कि उनका व्यय उनकी आय से अधिक हो जाता है | प्रायः hi इन अमीरों की संताने अंतिम दिन फकीर होकर बिताते हैं उनकी वंश परंपरा में इसे घटित होते देखने के लिए पोते पोतियों से आगे जाने की आवश्यकता नही होती ; कभ कभी उनके वैभव को पोते पोतियों तक भी पहुँचने का सौभाग्य प्राप्त नही होता |

हिन्दुओं की सादगी , समृद्धि के कारण --

हिन्दुओं में अधिकांशतः इसके ठीक विपरीत होता है - आशय उन हिन्दुओं से है जो किसी प्रकार मुसलमानों के चरण चिन्हों पर नही चलते | यद्यपि उस सामान्य भ्रष्टाचार जिसमे यह राज्य पिछले वर्षों में जा गिरा है कुछ ऐसे हिन्दू देखने में आते हैं जिन्होंने राज दरबार के आचरण का अनुसरण किया है और उनकी संताने भी उसी दरिद्रता और दुर्दशा में हैं जिसमें मुसलमानों की हैं जिनके आचरण का उन्होंने अनुसरण किया था | मैं उन हिन्दुओं की बात करता हूँ जो व्यापार व्यवसाय में रहकर उन कार्यों से दूर रहते हैं जिनमे विलासिता रहती है| ये लोग बाहरी दिखावे पर और बहुत से नौकर चाकर रखकर , जितना उन्होंने अपने बाप दादा के घर में देखा था उससे अधिक खर्च करके दुनिया भर में अपनी ढोल पीटने की कोई आवश्यकता नही समझते | यह देखने में आता है कि यद्यपि उनकी सम्पति बढती जाती है और धन कई गुना हो जाता है फिर भी उनके यहाँ वही नौकर चाकर रहते हैं , वही पोशाक रहती है , वही भोजन रहता है और उनके घर का खर्च भी कमोबेश पहले जैसा hi रहता है | और यह बात सचमुच ध्यान देने योग्य है कि हिन्दू लोग उत्तराधिकार में प्राप्त अपनी संपत्ति ज्यों की त्यों , प्रायः बढ़ा कर अपने वंशजो के लिए छोड़ जाते हैं जबकि मुसलमान और उनका अनुसरण करने वाले उत्तराधिकार या भाग्यवश प्राप्त विशाल धनराशियों को थोड़े समय में hi उड़ा डालते हैं |भारत में यदि संयम ,मिताचार, मितव्ययिता के साथ वाणिज्यिक बुद्धि देखनी हो तो हिन्दुओं में देखिये | मैं तो यहाँ तक कहूँगा की उनके खान पान वेशभूषा और उनकी सामान्य जीवन पद्दति में में एक प्रकार की प्राचीनता दिखाई देती है ;; उसपर विचार करते समय एक सादगी दीख पड़ती है जो मेरे विचार से उनके प्राचीनतम उत्तराधिकार का सबसे पक्का एवंम् प्रबल प्रमाण है |

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