Friday 3 July 2020

अष्टांग योग का चक्रों से संबंध
आयुर्वेद में बताया गया है कि जीवन में सदाचार को प्राप्त करने का साधन योग मार्ग को छोड़कर दूसरा कोई नहीं है। नियमित अभ्यास और वैराग्य के द्वारा ही योग के संपूर्ण लाभ को प्राप्त किया जा सकता है। हमारे ऋषि मुनियों ने शरीर को ही ब्रम्हाण्ड का सूक्ष्म मॉडल माना है। इसकी व्यापकता को जानने के लिए शरीर के अंदर मौजूद शक्ति केन्द्रों को जानना ज़रूरी है। इन्हीं शक्ति केन्द्रों को ही ‘’चक्र कहा गया है।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर में आठ चक्र होते हैं। ये हमारे शरीर से संबंधित तो हैं लेकिन आप इन्हें अपनी इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं कर सकते हैं। इन सारे चक्रों से निकलने वाली उर्जा ही शरीर को जीवन शक्ति देती है। आयुर्वेद में योग, प्राणायाम और साधना की मदद से इन चक्रों को जागृत या सक्रिय करने के तरीकों के ब्बारे में बताया गया है। आइये इनमें से प्रत्येक चक्र और शरीर में उसके स्थान के बारे में विस्तार से जानते हैं।
Contents
1 आठ चक्रों का वर्णन :
1.1 1- मूलाधर चक्र :
1.2 2- स्वाधिष्ठान चक्र :
1.3 3- मणिपूर चक्र :
1.4 4- अनाहत चक्र :
1.5 5- विशुद्धि चक्र :
1.6 6- आज्ञा चक्र :
1.7 7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र) :
1.8 8 – सहस्रार चक्र :
2 योग और अष्टचक्र का संबंध :
3 योग क्या है :
4 महर्षि पतंजलि का अष्टांग योग :
4.1 1- यम :
4.1.1 अहिंसा :
4.1.2 सत्य :
4.1.3 अस्तेय :
4.1.4 ब्रम्हचर्य :
4.1.5 अपरिग्रह:
4.2 2- नियम :
4.3 3- आसन :
4.4 4- प्राणायाम :
4.5 5- प्रत्याहार :
4.6 6- धारणा :
4.7 7- ध्यान:
4.8 8- समाधि :
आठ चक्रों का वर्णन :
1- मूलाधर चक्र :
यह चक्र मलद्वार और जननेन्द्रिय के बीच रीढ़ की हड्डी के मूल में सबसे निचले हिस्से से सम्बन्धित है। यह मनुष्य के विचारों से सम्बन्धित है। नकारात्मक विचारों से ध्यान हटाकर सकारात्मक विचार लाने का काम यहीं से शुरु होता है।
2- स्वाधिष्ठान चक्र :
यह चक्र जननेद्रिय के ठीक पीछे रीढ़ में स्थित है। इसका संबंध मनुष्य के अचेतन मन से होता है।
3- मणिपूर चक्र :
इसका स्थान रीढ़ की हड्डी में नाभि के ठीक पीछे होता है। हमारे शरीर की पूरी पाचन क्रिया (जठराग्नि) इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है। शरीर की अधिकांश आतंरिक गतिविधियां भी इसी चक्र द्वारा नियंत्रित होती है।
4- अनाहत चक्र :
यह चक्र रीढ़ की हड्डी में हृदय के दांयी ओर, सीने के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे मौजूद होता है। हमारे हृदय और फेफड़ों में रक्त का प्रवाह और उनकी सुरक्षा इसी चक्र द्वारा की जाती है। शरीर का पूरा नर्वस सिस्टम भी इसी अनाहत चक्र द्वारा ही नियत्रित होता है।
5- विशुद्धि चक्र :
गले के गड्ढ़े के ठीक पीछे थायरॉयड व पैराथायरॉयड के पीछे रीढ की हड्डी में स्थित है। विशुद्धि चक्र शारीरिक वृद्धि, भूख-प्यास व ताप आदि को नियंत्रित करता है।
6- आज्ञा चक्र :
इसका सम्बन्ध दोनों भौहों के बीच वाले हिस्से के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी के ऊपर स्थित पीनियल ग्रन्थि से है। यह चक्र हमारी इच्छाशक्ति व प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है। हम जो कुछ भी जानते या सीखते हैं उस संपूर्ण ज्ञान का केंद्र यह आज्ञा चक्र ही है।
7- मनश्चक्र- मनश्चक्र (बिन्दु या ललना चक्र) :
यह चक्र हाइपोथेलेमस में स्थित है। इसका कार्य हृदय से सम्बन्ध स्थापित करके मन व भावनाओं के अनुरूप विचारों, संस्कारों व मस्तिष्क में होने वाले स्रावों का आदि का निर्माण करना है, इसे हम मन या भावनाओं का स्थान भी कह सकते हैं।
8 – सहस्रार चक्र :
यह चक्र सभी तरह की आध्यात्मिक शक्तियों का केंद्र है। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क व ज्ञान से है। यह चक्र पीयूष ग्रन्थि (पिट्युटरी ग्लैण्ड) से सम्बन्धित है।
इन आठ चक्र (शक्तिकेन्द्रों) में स्थित शक्ति ही सम्पूर्ण शरीर को ऊर्जान्वित (एनर्जाइज), संतुलित (Balance) व क्रियाशील (Activate) करती है। इन्हीं से शारीरिक, मानसिक विकारों व रोगों को दूर कर अन्तःचेतना को जागृत करने के उपायों को ही योग कहा गया है।
अष्टचक्र व उनसे संबंधित स्थान एवं कार्य
क्र. सं.
संस्कृत नाम
अंग्रेजी नाम
शरीर में स्थान
संबंधित अवयव व क्रियाएं
चक्र की शक्ति निष्क्रिय रहने से उत्पन्न होने वाले रोग
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों पर क्रियाएं
क्रिया शरीरगत तंत्र
1-
मूलाधार चक्र
Root cakra or pelvic plexus or coccyx center
रीढ़ की हड्डी
उत्सर्जन तत्र, प्रजनन तत्र, गुद, मूत्राशय
मूत्र विकार, वृक्क रोग, अश्मरी व रतिज रोग
अधिवृक्क ग्रन्थि
उत्सर्जन तंत्र मूत्र व प्रजनन तत्र
2-
स्वाधिष्ठान चक्र
Sacral or sexual center
नाभि के नीचे
प्रजनन तत्र
बन्ध्यत्व, ऊतक विकार, जननांग रोग
अधिवृक्क ग्रन्थि
प्रजनन तंत्र
3-
मणिपूर चक्र
Solar plexus or lumbar center or epigastric Sciar plexus
छाती के नीचे
आमाशय, आत्र, पाचन तंत्र, संग्रह व स्रावण
पाचन रोग, मधुमेह, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी
लैगरहेन्स की द्वीपिकायें (अग्न्याशयिक ग्रन्थि)
पाचन तंत्र
4-
अनाहत चक्र
Heart chakra or cardiac plexus or dorsal center
छाती या सीने का का बीच वाला हिस्सा (वक्षीय कशेरुका)
हृदय, फेफड़े , मध्यस्तनिका, रक्त परिसंचरण, प्रतिरक्षण तत्र, नाड़ी तत्र
हृदय रोग, रक्तभाराधिक्य (रक्तचाप)
थायमस ग्रन्थि (बाल्य ग्रन्थि)
रक्त परिसंचरण तत्र, श्वसन तंत्र , स्वतः प्रतिरक्षण तंत्र
5-
विशुद्धि चक्र
Carotid plexus or throat or cervical center
थायराइड और पैराथायरइड ग्रन्थि
ग्रीवा, कण्ठ, स्वररज्जु, स्वरयत्र,
चयापचय, तापनियत्रण
श्वास, फेफड़ों से जुड़े रोग, अवटु ग्रन्थि, घेंघा
अवटु ग्रन्थि
श्वसन तंत्र
6-
आज्ञा चक्र
Third eye or medullary plexus
अग्रमस्तिष्क का केन्द्र
मस्तिष्क तथा उसके समस्त कार्य, एकाग्रता, इच्छा शक्ति
अपस्मार,
मूर्च्छा, पक्षाघात आदि अवसाद
पीनियल ग्रन्थि
तत्रिका तंत्र
7-
मनश्चक्र या
बिन्दुचक्र
Lower mind plexus or hypothalamus
(चेतक)
थेलेमस के नीचे
मस्तिष्क, हृदय, समस्त अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का नियत्रण, निद्रा आवेग, मेधा, स्वसंचालित तत्रिका तत्र समस्थिति
मनःकायिक तथा तत्रिका तत्र
पीयूष ग्रन्थि
संवेदी तथा प्रेरक तंत्र
8-
सहस्रार चक्र
Crown chakra or cerebral gland
कपाल के नीचे
आत्मा, समस्त सूचनाओं का निर्माण, अन्य स्थानों का एकत्रीकरण
हार्मोन्स का असंतुलन, चयापचयी विकार आदि
पीयूष ग्रन्थि
केन्द्रीय तत्रिका तंत्र (अधश्चेतक के
द्वारा)
योग और अष्टचक्र का संबंध :
अष्ट चक्रों को जानने व उनके अन्दर स्थित शक्तियों को जागृत व उर्ध्वारोहण के लिए क्या योग है? इसको समझना बहुत आवश्यक है। हर एक योग किसी ना किसी चक्र को जागृत करता है.

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