Tuesday, 12 May 2015

चीन के ग्वादर का जवाब ईरान के छाबर बंदरगाह से देगा भारत .................!!!
ईरान से छाबर पोर्ट के विकास का करार, मध्य एशिया में भारत का बढ़ेगा दबदबा...
अमेरिकी दबाव को दरकिनार कर भारत ने किया ईरान से समझौता ............
ईरान के छाबर बंदरगाह को विकसित करने का समझौता भारत के लिए आर्थिक आैर सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इस कदम को चीन द्वारा अपने पश्चिमी प्रांत शिनजियांग से पाकिस्तान के दक्षिण में अरब सागर तट पर ग्वादर बंदरगाह को विकसित करने की रणनीति के काट के तौर पर देखा जा रहा है। अभी तक चीन 'नेकलस ऑफ पर्ल' योजना के तहत न सिर्फ हिंद महासागर में अपनी दखल बढ़ा रहा था बल्कि भारत की आर्थिक व सामरिक घेराबंदी में भी सक्षम हो रहा था। लेकिन हाल ही में भारत की सेशल्स में बंदरगाह बनाने का समझौता करके और अब ईरान के छाबर बंदरगाह को विकसित करना का समझाैता करके चीन की दखलअंदाजी पर अंकुश लगाने का प्रयास किया है। दक्षिण-पूर्वी ईरान स्थित छाबर बंदरगाह आेमान की खाड़ी से सटा हुआ है। यह एकमात्र ईरानी बंदरगाह है जिससे हिंद महासागर में पहुंचा जा सकता है। भारत ने पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया में अपनी पहुंच बनाने के लिए ईरान से समझौता किया है।
भारत के लिए क्यों है महत्वपूर्ण
छाबर बंदरगाह भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना चीन के लिए पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह। इसके विकास से भारत को पाकिस्तान को बाइपास कर अफगानिस्तान पहुंचने का समुद्री मार्ग उपलब्ध होगा। महाराष्ट्र और गुजरात तट से छाबर बंदरगाह सीधा जुड़ जाएगा। यह रणनीतिक दृष्टि से इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके जरिये मध्य एशिया और खाड़ी देश (ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन आदि) पहुंचने में परिवहन लागत कम आएगी और समय की भी बचत होगी। यहां से कच्चा तेल और यूरिया के आयात में भारत को काफी अासानी होगी।
पाकिस्तान द्वारा अपने ग्वादर बंदरगाह को चीन को सौंपे जाने के बाद भारत की सामरिक चिंता काफी बढ़ गई थी। अरब सागर में चीन की बढ़ती दखल के काट के लिए भारत ने छाबर बंदरगाह की परियोजना को अपने हाथ में लिया है।

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