कैंसर का मूल कारण क्या है ?
लोथर - कैंसर का मूल कारण क्या है ?
डॉ. बुडविग - 1928 में डा. ऑटो वारबर्ग ने सिद्ध किया था कि कैंसर का मूल कारण कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाना है, जिसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार भी दिया गया। ऑक्सीजन के अभाव में कोशिका फरमेंटेशन द्वारा श्वसन क्रिया करती है, जिसमंट लेक्टिक एसिड बनता है। ऑक्सीजन को खींचने के लिए सल्फरयुक्त प्रोटीन और एक अज्ञात फैट जरुरी होता है जिसे वारबर्ग ढूंढ़ नहीं पाये।
लोथर - आपकी मुख्य खोज क्या है?
डॉ. बुडविग - सन् 1950 में मैंने फैट्स को पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की थी। इस के द्वारा हम एक बूंद खून में भी फैट्स को पहचान सकते थे। यह खोज बहुत अहम और क्रांतिकारी साबित हुई। इससे हमारे “शरीर के कई रहस्य परत-दर-परत खुलते चले गये। इससे स्पष्ट हो चुका था कि कोशिका में ऑक्सीजन को खींचने के लिए जरुरी और रहस्यमय फैट लिनोलिक और लिनोलेनिक एसिड हैं, जिन्हें दो दशकों तक वारबर्ग और कई वैज्ञानिक खोज रहे थे। अलसी इन फैट्स का सबसे बड़ा स्त्रोत है। मैंने इन फैट्स की संरचना और इनके विद्युत-चुम्बकीय प्रभाव का गहराई से अध्ययन किया। असंतृप्त फैट्स की संरचना में सबसे प्रमुख बात थी ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की उपस्थिति, जिन्हें परखना और सिद्ध करना पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक द्वारा ही संभव हो सका। मैंने इन्हें पाई-इलेक्ट्रोन्स नाम से परिभाषित किया। अपने दामन में इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा समेटे इन असंतृप्त वसा अम्लों को इसीलिए आवश्यक वसा-अम्ल का दर्जा दिया गया। ये इलेक्ट्रोन्स सल्फरयुक्त प्रोटीन्स से बंधन बना कर लाइपोप्रोटीन बनाते हैं, जो कोशिका की दीवार का निर्माण करते हैं और कोशिका में ऑक्सीजन को खींचते हैं। ये इलेक्ट्रोन्स हमें जीवन शक्ति से भर देते हैं, इनके बिना जीवन अकल्पनीय है और इसीलिए इन्हें “अमरत्व घटक” माना गया है।
उन दिनों ट्रांस फैट से भरपूर वनस्पति और रिफाइंड तेलों को हृदय-हितैषी बता कर मक्खन की जगह धड़ल्ले से प्रयोग में लिया जा रहा था। इन्हें बनाने के लिए कई बार गर्म किया जाता है और घातक रसायन मिलाये जाते हैं। जब मैंने क्रोमेटोग्राफी द्वारा इनकी जांच की तो पाया कि इनमें ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की संपदा नष्ट हो चुकी थी। ये फ्री-रेडीकल की तरह व्यवहार कर रहे थे और ये हमारे लिए श्वसन-विष साबित हो चुके थे। ट्रांस फैट में डबल-बांड पर विपरीत दिशा के हाइड्रोजन अलग होते हैं।
लोथर - इसीलिए आप वनस्पति और रिफाइंड तेल से परहेज करने की बात करती हैं?
डॉ. बुडविग - मैं हमेशा इन टॉक्सिक फैट्स से परहेज करने की सलाह देती हूँ। लेकिन आज भी निर्माता तेलों को गर्म कर रहे हैं, हाइड्रोजनेट कर रहे हैं और रसायनों का प्रयोग भी कर रहे हैं। दूसरी तरफ कीमोथैरेपी के नुमाइंदे कुछ सुनना ही नहीं चाहते हैं, उनकी दिशा ही गलत है। कीमो एक मारक या विध्वंसक उपचार है जो कैंसर की गांठ के साथ में ढेर सारी स्वस्थ कोशिकाओं को भी मार डालता है।
लोथर - ये इलेक्ट्रोन्स के बादल क्या होते हैं और इनका क्या महत्व है?
डॉ. बुडविग - इस पूरी कायनात में सूर्य के ऊर्जावान फोटोन्स का संचय करने की सबसे ज्यादा क्षमता मनुष्य में होती है। जब शरीर में फैटी एसिड्स इन फोटोन्स का भरपूर अवशोषण करते हैं तो इनमें पाई-इलेक्ट्रोन्स का आवेश, ऊर्जा और सक्रियता इतनी अधिक होती है कि हल्के-फुल्के इलेक्ट्रोन्स के ये झुंड ऊपर उठ कर बादलों की तरह तैरने लगते हैं और फैटी एसिड की भारी लड़ नीचे रह जाती है। इसीलिए इनको इलेक्ट्रोन्स के बादल (Electron Clouds) कहते हैं।
लोथर - क्या आप मुझे इन अनसेचुरेटेड फैटी एसिड्स के बारे में विस्तार से बतलायेगी?
डॉ. बुडविग - ऊर्जावान और सजीव असंतृप्त फैटी-एसिड्स 18 कार्बन की लड़ से शुरू होते हैं। शरीर में 28 कार्बन तक के फैटी-एसिड होते हैं। अलसी के तेल में विद्यमान 18 लड़ वाला असंतृप्त लिनोलिक-अम्ल जिंदादिल माना गया है। इसमें दो ऊर्जावान डबल-बांड होते हैं, जिनमें भरपूर इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा होती है। तीन डबल-बांड वाले लिनोलेनिक-एसिड में में इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि चुम्बक की तरह प्रबल हो जाती है। अलसी के तेल में विद्यमान फैटी-एसिड्स इलेक्ट्रोन्स की दौलत सबसे ज्यादा होती है और ये साथ मिल कर ऑक्सीजन को बड़े प्रभावशाली ढंग से आकर्षित करते हैं। मेरे लिए यह सब सिद्ध करना सचमुच आसान हो गया था। यह इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा स्थिर नहीं रहती, बल्कि गतिशील रहती है। इसके विपरीत अन्य यौगिक जैसे नमक में इलेक्ट्रोन्स स्थिर रहते हैं। यह ऊर्जा इलेक्ट्रोन्स और पोजिटिवली चाज सल्फरयुक्त प्रोटीन के बीच घूमती रहती है। यह बहुत अहम है। माइकलएंजेलो के चित्र में ईश्वर द्वारा एडम को बनाते हुए दिखाया गया है (दो अंगुलियां एक दूसरे की तरफ इंगित करती हैं परन्तु दोनों अंगुलियां कभी छूती नहीं है)। यही क्वांटम फिजिक्स है, यहाँ अंगुलिया छूती नहीं हैं।
यदि कोशिकाओं की भित्तियां ट्रांस फैट से बनती हैं, जिनके इलेक्ट्रोन्स नष्ट हो चुके होते हैं, तो वे आपस में एक जाल की तरह गुंथे रहते हैं। हालांकि इनमें असंतृप्त डबल-बांड तो होते हैं परन्तु इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा का अभाव रहता है, डाइपोलेरिटी नहीं होती है, ये प्रोटीन से बंध नहीं पाते हैं और ऑक्सीजन को कोशिका में खींचने में असमर्थ होते हैं। यही ट्रांस फैट की कातिलाना फितरत है।
लोथर - क्या यही ऊर्जा कैंसर का उपचार करती है?
डॉ. जॉहाना बुडविग - यही ऊर्जा जो गतिशील है, जीवन-शक्ति से पूर्ण है, कैंसर का उपचार करती है। यदि आपके शरीर में यह जीवन-शक्ति है तो कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। यही शरीर की रक्षा-प्रणाली को मजबूत बनाती है। आवश्यक वसा-अम्ल ही रक्षा-प्रणाली को मजबूत बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं।
लोथर-आपने कैंसर का उपचार कैसे विकसित किया?
डॉ. बुडविग - मैंने देखा कि कैंसर के रोगियों में लिनोलेनिक एसिड, लाइपोप्रोटीन और फोस्फेटाइड की मात्रा बहुत ही कम होती थी। मैंने नये प्रयोग करने का निश्चय किया। मैंने कैंसर के रोगियों को अलसी का तेल और पनीर (जिसमें काफी सल्फर-युक्त प्रोटीन होते हैं) मिला कर देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर उनके रक्त के नमूने लिये। नतीजे चैंका देने वाले थे। लोगों के खून में फोस्फेटाइड, हीमोग्लोबिन और लाइपोप्रोटीन की मात्रा काफी बढ़ गई थी। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे, उनकी गांठे छोटी हो गई थी, वे कैंसर को परास्त कर रहे थे। कैंसर के उपचार की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। इस तरह मैंने अलसी के तेल, पनीर, अपक्व जैविक आहार और सात्विक जीवन-शैली के आधार पर कैंसर का उपचार विकसित किया।
लोथर - क्या कैंसर की गांठे सर्जरी द्वारा निकाल देनी चाहिये?
डॉ बुडविग - मैं कीमो और रेडियो के सख्त विरुद्ध हूं। मेरे खयाल से सर्जरी के बारे में निर्णय रोगी की स्थिति के अनुसार सोच समझ कर लेना चाहिये।
लोथर - आपने 47 वर्ष की उम्र में मेडीकल का अध्ययन भी किया?
डॉ. बुडविग - मेरे कुछ विरोधी कहने लगे कि बुडविग जब डॉक्टर नहीं है तो वह मरीजों का इलाज क्यों करती है। यह बात मुझे चुभ गई और 1955 में मैंने गोटिंजन के मेडीकल स्कूल में प्रवेश ले लिया। तभी की एक घटना मुझे याद आ रही है। एक रात को एक महिला अपने बच्चे को लेकर रोती हुई मेरे पास आई। उसके बच्चे के पैर में सारकोमा नामक कैंसर हो गया था और डॉक्टर उसका पैर काटना चाहते थे। मैंने उसको सही उपचार बताया जिससे उसका बच्चा जल्दी ठीक हो गया और पैर भी नहीं काटना पड़ा। चूंकि तब मैं मेडीकल स्टूडेन्ट थी। इसलिये मुझ पर केस कर दिया गया कि मैं अस्पताल से मरीजों को फुसला कर अपने घर ले जाती हूँ, उनका गलत तरीके से इलाज करती हूँ इसलिए मुझे मेडीकल स्कूल से निकाल देना चाहिए। मैंने जज को सारी बात साफ-साफ बतला दी। जज ने मुझ से कहा, “बुडविग, तुमने बहुत अच्छा काम किया है। कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता है। यदि कोई तुम्हें परेशान करेगा तो चिकित्सा जगत में भूचाल जायेगा।”
लोथर - आप कैंसर से बचाव के लिये लोगों को क्या सलाह देती हैं?
डॉ. बुडविग - इसके लिए मैं अलसी और इसका तेल खाने की सलाह देती हूँ। रोज फलों का ताजा ज्यूस पियें। ट्रांस फैट से परहेज रखें। हमारे चारों ओर का विद्युत-चुम्बकीय वातावरण भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। माइक्रोवेव ऑवन और मोबाइल फोन के प्रयोग से बचें। फोम के गद्दे और सिंथेटिक कपड़े शरीर से इलेक्ट्रोन चुराते है। सूती, रेशमी या ऊनी कपड़े पहनें। जूट या रूई के गद्दे प्रयोग करें।
डॉ. बुडविग - 1928 में डा. ऑटो वारबर्ग ने सिद्ध किया था कि कैंसर का मूल कारण कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमी हो जाना है, जिसके लिए उन्हें नोबल पुरस्कार भी दिया गया। ऑक्सीजन के अभाव में कोशिका फरमेंटेशन द्वारा श्वसन क्रिया करती है, जिसमंट लेक्टिक एसिड बनता है। ऑक्सीजन को खींचने के लिए सल्फरयुक्त प्रोटीन और एक अज्ञात फैट जरुरी होता है जिसे वारबर्ग ढूंढ़ नहीं पाये।
लोथर - आपकी मुख्य खोज क्या है?
डॉ. बुडविग - सन् 1950 में मैंने फैट्स को पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की थी। इस के द्वारा हम एक बूंद खून में भी फैट्स को पहचान सकते थे। यह खोज बहुत अहम और क्रांतिकारी साबित हुई। इससे हमारे “शरीर के कई रहस्य परत-दर-परत खुलते चले गये। इससे स्पष्ट हो चुका था कि कोशिका में ऑक्सीजन को खींचने के लिए जरुरी और रहस्यमय फैट लिनोलिक और लिनोलेनिक एसिड हैं, जिन्हें दो दशकों तक वारबर्ग और कई वैज्ञानिक खोज रहे थे। अलसी इन फैट्स का सबसे बड़ा स्त्रोत है। मैंने इन फैट्स की संरचना और इनके विद्युत-चुम्बकीय प्रभाव का गहराई से अध्ययन किया। असंतृप्त फैट्स की संरचना में सबसे प्रमुख बात थी ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की उपस्थिति, जिन्हें परखना और सिद्ध करना पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक द्वारा ही संभव हो सका। मैंने इन्हें पाई-इलेक्ट्रोन्स नाम से परिभाषित किया। अपने दामन में इलेक्ट्रोन्स की अपार संपदा समेटे इन असंतृप्त वसा अम्लों को इसीलिए आवश्यक वसा-अम्ल का दर्जा दिया गया। ये इलेक्ट्रोन्स सल्फरयुक्त प्रोटीन्स से बंधन बना कर लाइपोप्रोटीन बनाते हैं, जो कोशिका की दीवार का निर्माण करते हैं और कोशिका में ऑक्सीजन को खींचते हैं। ये इलेक्ट्रोन्स हमें जीवन शक्ति से भर देते हैं, इनके बिना जीवन अकल्पनीय है और इसीलिए इन्हें “अमरत्व घटक” माना गया है।
उन दिनों ट्रांस फैट से भरपूर वनस्पति और रिफाइंड तेलों को हृदय-हितैषी बता कर मक्खन की जगह धड़ल्ले से प्रयोग में लिया जा रहा था। इन्हें बनाने के लिए कई बार गर्म किया जाता है और घातक रसायन मिलाये जाते हैं। जब मैंने क्रोमेटोग्राफी द्वारा इनकी जांच की तो पाया कि इनमें ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स की संपदा नष्ट हो चुकी थी। ये फ्री-रेडीकल की तरह व्यवहार कर रहे थे और ये हमारे लिए श्वसन-विष साबित हो चुके थे। ट्रांस फैट में डबल-बांड पर विपरीत दिशा के हाइड्रोजन अलग होते हैं।
लोथर - इसीलिए आप वनस्पति और रिफाइंड तेल से परहेज करने की बात करती हैं?
डॉ. बुडविग - मैं हमेशा इन टॉक्सिक फैट्स से परहेज करने की सलाह देती हूँ। लेकिन आज भी निर्माता तेलों को गर्म कर रहे हैं, हाइड्रोजनेट कर रहे हैं और रसायनों का प्रयोग भी कर रहे हैं। दूसरी तरफ कीमोथैरेपी के नुमाइंदे कुछ सुनना ही नहीं चाहते हैं, उनकी दिशा ही गलत है। कीमो एक मारक या विध्वंसक उपचार है जो कैंसर की गांठ के साथ में ढेर सारी स्वस्थ कोशिकाओं को भी मार डालता है।
लोथर - ये इलेक्ट्रोन्स के बादल क्या होते हैं और इनका क्या महत्व है?
डॉ. बुडविग - इस पूरी कायनात में सूर्य के ऊर्जावान फोटोन्स का संचय करने की सबसे ज्यादा क्षमता मनुष्य में होती है। जब शरीर में फैटी एसिड्स इन फोटोन्स का भरपूर अवशोषण करते हैं तो इनमें पाई-इलेक्ट्रोन्स का आवेश, ऊर्जा और सक्रियता इतनी अधिक होती है कि हल्के-फुल्के इलेक्ट्रोन्स के ये झुंड ऊपर उठ कर बादलों की तरह तैरने लगते हैं और फैटी एसिड की भारी लड़ नीचे रह जाती है। इसीलिए इनको इलेक्ट्रोन्स के बादल (Electron Clouds) कहते हैं।
लोथर - क्या आप मुझे इन अनसेचुरेटेड फैटी एसिड्स के बारे में विस्तार से बतलायेगी?
डॉ. बुडविग - ऊर्जावान और सजीव असंतृप्त फैटी-एसिड्स 18 कार्बन की लड़ से शुरू होते हैं। शरीर में 28 कार्बन तक के फैटी-एसिड होते हैं। अलसी के तेल में विद्यमान 18 लड़ वाला असंतृप्त लिनोलिक-अम्ल जिंदादिल माना गया है। इसमें दो ऊर्जावान डबल-बांड होते हैं, जिनमें भरपूर इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा होती है। तीन डबल-बांड वाले लिनोलेनिक-एसिड में में इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा इतनी अधिक होती है कि चुम्बक की तरह प्रबल हो जाती है। अलसी के तेल में विद्यमान फैटी-एसिड्स इलेक्ट्रोन्स की दौलत सबसे ज्यादा होती है और ये साथ मिल कर ऑक्सीजन को बड़े प्रभावशाली ढंग से आकर्षित करते हैं। मेरे लिए यह सब सिद्ध करना सचमुच आसान हो गया था। यह इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा स्थिर नहीं रहती, बल्कि गतिशील रहती है। इसके विपरीत अन्य यौगिक जैसे नमक में इलेक्ट्रोन्स स्थिर रहते हैं। यह ऊर्जा इलेक्ट्रोन्स और पोजिटिवली चाज सल्फरयुक्त प्रोटीन के बीच घूमती रहती है। यह बहुत अहम है। माइकलएंजेलो के चित्र में ईश्वर द्वारा एडम को बनाते हुए दिखाया गया है (दो अंगुलियां एक दूसरे की तरफ इंगित करती हैं परन्तु दोनों अंगुलियां कभी छूती नहीं है)। यही क्वांटम फिजिक्स है, यहाँ अंगुलिया छूती नहीं हैं।
यदि कोशिकाओं की भित्तियां ट्रांस फैट से बनती हैं, जिनके इलेक्ट्रोन्स नष्ट हो चुके होते हैं, तो वे आपस में एक जाल की तरह गुंथे रहते हैं। हालांकि इनमें असंतृप्त डबल-बांड तो होते हैं परन्तु इलेक्ट्रोनिक ऊर्जा का अभाव रहता है, डाइपोलेरिटी नहीं होती है, ये प्रोटीन से बंध नहीं पाते हैं और ऑक्सीजन को कोशिका में खींचने में असमर्थ होते हैं। यही ट्रांस फैट की कातिलाना फितरत है।
लोथर - क्या यही ऊर्जा कैंसर का उपचार करती है?
डॉ. जॉहाना बुडविग - यही ऊर्जा जो गतिशील है, जीवन-शक्ति से पूर्ण है, कैंसर का उपचार करती है। यदि आपके शरीर में यह जीवन-शक्ति है तो कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। यही शरीर की रक्षा-प्रणाली को मजबूत बनाती है। आवश्यक वसा-अम्ल ही रक्षा-प्रणाली को मजबूत बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं।
लोथर-आपने कैंसर का उपचार कैसे विकसित किया?
डॉ. बुडविग - मैंने देखा कि कैंसर के रोगियों में लिनोलेनिक एसिड, लाइपोप्रोटीन और फोस्फेटाइड की मात्रा बहुत ही कम होती थी। मैंने नये प्रयोग करने का निश्चय किया। मैंने कैंसर के रोगियों को अलसी का तेल और पनीर (जिसमें काफी सल्फर-युक्त प्रोटीन होते हैं) मिला कर देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर उनके रक्त के नमूने लिये। नतीजे चैंका देने वाले थे। लोगों के खून में फोस्फेटाइड, हीमोग्लोबिन और लाइपोप्रोटीन की मात्रा काफी बढ़ गई थी। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे, उनकी गांठे छोटी हो गई थी, वे कैंसर को परास्त कर रहे थे। कैंसर के उपचार की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। इस तरह मैंने अलसी के तेल, पनीर, अपक्व जैविक आहार और सात्विक जीवन-शैली के आधार पर कैंसर का उपचार विकसित किया।
लोथर - क्या कैंसर की गांठे सर्जरी द्वारा निकाल देनी चाहिये?
डॉ बुडविग - मैं कीमो और रेडियो के सख्त विरुद्ध हूं। मेरे खयाल से सर्जरी के बारे में निर्णय रोगी की स्थिति के अनुसार सोच समझ कर लेना चाहिये।
लोथर - आपने 47 वर्ष की उम्र में मेडीकल का अध्ययन भी किया?
डॉ. बुडविग - मेरे कुछ विरोधी कहने लगे कि बुडविग जब डॉक्टर नहीं है तो वह मरीजों का इलाज क्यों करती है। यह बात मुझे चुभ गई और 1955 में मैंने गोटिंजन के मेडीकल स्कूल में प्रवेश ले लिया। तभी की एक घटना मुझे याद आ रही है। एक रात को एक महिला अपने बच्चे को लेकर रोती हुई मेरे पास आई। उसके बच्चे के पैर में सारकोमा नामक कैंसर हो गया था और डॉक्टर उसका पैर काटना चाहते थे। मैंने उसको सही उपचार बताया जिससे उसका बच्चा जल्दी ठीक हो गया और पैर भी नहीं काटना पड़ा। चूंकि तब मैं मेडीकल स्टूडेन्ट थी। इसलिये मुझ पर केस कर दिया गया कि मैं अस्पताल से मरीजों को फुसला कर अपने घर ले जाती हूँ, उनका गलत तरीके से इलाज करती हूँ इसलिए मुझे मेडीकल स्कूल से निकाल देना चाहिए। मैंने जज को सारी बात साफ-साफ बतला दी। जज ने मुझ से कहा, “बुडविग, तुमने बहुत अच्छा काम किया है। कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता है। यदि कोई तुम्हें परेशान करेगा तो चिकित्सा जगत में भूचाल जायेगा।”
लोथर - आप कैंसर से बचाव के लिये लोगों को क्या सलाह देती हैं?
डॉ. बुडविग - इसके लिए मैं अलसी और इसका तेल खाने की सलाह देती हूँ। रोज फलों का ताजा ज्यूस पियें। ट्रांस फैट से परहेज रखें। हमारे चारों ओर का विद्युत-चुम्बकीय वातावरण भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। माइक्रोवेव ऑवन और मोबाइल फोन के प्रयोग से बचें। फोम के गद्दे और सिंथेटिक कपड़े शरीर से इलेक्ट्रोन चुराते है। सूती, रेशमी या ऊनी कपड़े पहनें। जूट या रूई के गद्दे प्रयोग करें।
No comments:
Post a Comment