एक ऐसा गाँव जहाँ बोलचाल की भाषा संस्कृत है .....
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तुंग नदी के किनारे बसे एक गांव जहां बच्चा बच्चा बोलता है शुद्ध संस्कृत...गांव के
कई युवक व युवतियां आईआईटी इंजीनियर" हैं , विदेशों से भी अनेक व्यक्ति यहां 
संस्कृत सीखने आते हैं, गांव के मुस्लिम परिवार भी सहजता से संस्कृत बोलते हैं..
कर्नाटक के शिमोगा शहर से दस किलोमीटर दूर किमी दूर मुत्तुरु में शायद ही किसी ने
आपस में संस्कृत के अलावा किसी और भाषा में बात किया हो। तुंग नदी के किनारे बसे
इस गांव में संस्कृत प्राचीन काल से ही बोली जाती है।
करीब पांच सौ परिवारों वाले इस गांव में प्रवेश करते ही "भवत: नाम किम्?"
(आपका नाम क्या है?) पूछा जाता है "हैलो" के स्थान पर "हरि ओम्" और "कैसे हो" के
स्थान पर "कथा अस्ति?" सुनकर मन रोमांचित हो जाता है।
इस गांव के बच्चे क्रिकेट खेलते हुए और आपस में झगड़ते हुए भी संस्कृत में ही बातें
करते हैं। गांव में संस्कृत में बोधवाक्य लिखा नजर आता है। "मार्गे स्वच्छता विराजते।
ग्रामे सुजना: विराजते।"
अर्थात् सड़क पर स्वच्छता होने से यह पता चलता है कि गाँव में अच्छे लोग रहते हैं।
कुछ घरों में लिखा रहता है कि आप यहां संस्कृत में बात कर कर सकते हैं। इस गांव में
बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में होती है।
बच्चों को छोटे-छोटे गीत संस्कृत में सिखाए जाते हैं..... चंदा मामा जैसी छोटी-छोटी
कहानियां भी संस्कृत में ही सुनाई जाती हैं।
बात सिर्फ छोटे बच्चों की ही नहीं है, गांव के उच्च शिक्षा प्राप्त युवक प्रदेश के बड़े शिक्षा
संस्थानों व विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ा रहे हैं और कुछ साफ्टवेयर इंजीनियर के
रूप में बड़ी कंपनियों में काम कर रहे हैं।
संस्कृत जनभाषा कैसे बनी और अब भी कायम है, यह जानने और इस प्रक्रिया को गति
देने के लिए संस्कृत भारती संस्था करीब पैंतीस वर्ष से सक्रिय भी है...