करमचंद गांधी मुसलमानो से डर गए थे -
यह एक विवादस्पद मगर सच है कि १९०८ में एक घटना के बाद गाँधी जी में मुसलामानों के प्रति कड़ा रवैया बदलकर पक्षपात करना शुरू किया। हुआ यूं कि दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार ने वहां रहने वाले भारतीयों पर ३ पौंड का टेक्स लगाया, गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार से इस विषय में बहस की जिसे मुसलामानों ने सहयोग नहीं दिया तब गाँधी जी ने इसकी जबरदस्त आलोचना की एक सामूहिक वकतव्य में इस्लाम पर कड़ी बात भी कही जिससे मुसलामानों में रोष बढ़ा, १० फरवरी १९०८ को मीर आलम नामक पठान की अगुआई में एक दस्ते ने गाँधी जी की उनके निवास पर बेरहमी से पिटाई की और जान से मार डालने की धमकी भी दी। डाक्टर भीमराव आंबेडकर ने भी स्वीकार किया कि इस घटना के बाद गाँधी जी ने आपत्तिजनक वक्तव्य तो देने बंद कर ही दिए, साथ ही उनकी सभी गलतियों को नज़र अंदाज़ करते रहे और उनके अपराध तक को शह देने लगे।
२३ दिसंबर १९२६ : श्रद्धानंद स्वामी जब बीमार थे और बिस्तर पर लेटे थे तब अब्दुल रशीद नामक व्यक्ति ने उन्हें चाकू से गोद कर मार डाला, श्रद्धानंद स्वामी एक आर्य समाज के प्रचारक थे और धर्म परिवर्तन कर चुके मुसलामानों को शुद्धि योजना द्वारा वापस हिन्दू धर्म में लाना चाहते थे, गाँधी जी का बड़ा बेटा हीरालाल जो मुसलमान बन चूका था इन्ही स्वामी द्वारा वापस हिन्दू बना था। एक मुसलमान महिला, जो स्वामी के पास हिन्दू धर्म में वापस जाने के लिए आयी तब उसके मुस्लिम पति के अदालत का सहारा लेकर स्वामी पर इलज़ाम भी लगाया लेकिन अदालत ने स्वामी को बरी कर दिया इस घटना से कई मुस्लिम खफा हो गए और कुछ ही दिनों में उनकी हत्या कर दी गयी। तब गाँधी जी ने कुछ दिनों बाद गुवाहाटी में कांग्रेस की कांफ्रेंस में कहा – भाई रशीद का जुर्म मैं नहीं मानता बल्कि नफरत फैलाने वाले ही जिम्मेदार हैं यानिकी उनहोंने स्वामी जी को ही दोषी ठहराया।
धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के जरिये गाँधी जी का यही मुस्लिम तुष्टिकरण देश के विभाजन का भी कारण बना, जब २६ मार्च १९४० को जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अवधारणा पर जोर दिया तब गाँधी जी का वक्तव्य था – अन्य नागरिकों की तरह मुस्लिम को भी यह निर्धारण करने का अधिकार है कि वो अलग रह सके, हम एक संयुक्त परिवार में रह रहे हैं ( हरिजन , ६ अप्रैल १९४० ).
अगर इस देश के अधिकांश मुस्लिम यह सोचते हैं कि एक अलग देश जरूरी है और उनका हिदुओं से कोई समानता नहीं है तो दुनियाँ की कोई ताक़त उनके विचार नहीं बदल सकती और इस कारण वो नए देश की मांग रखते है तो वो मानना चाहिए, हिन्दू इसका विरोध कर सकते है ( हरिजन , १८ अप्रैल १९४२ ).
१२ जून १९४७ को जब कांग्रेस सेशन में बंटवारे के मुद्दे पर विचार हुआ तब पुरुषोत्तम दास टंडन, गोविन्द वल्लभ पन्त, चैतराम गिडवानी आदि ने इसका तर्क के साथ घोर विरोध किया था तब गाँधी जी ने सारे वक्ताओं को किनारे कर ४५ मिनट की जो स्पीच दी उसका सार इस प्रकार है अगर कांग्रेस ने बंटवारे को स्वीकार नहीं किया तो कुछ और ग्रुप ( संभवतः नेता जी सुभाष चन्द्र बोस) कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर देंगे और देश में भूचाल जैसा आ जाएगा। दुसरे शब्दों में गाँधी जी ने मुसलामानों को पाकिस्तान बनाने के लिए प्रेरित ही किया। इस घटना के बाद वल्लभ भाई ने भी बंटवारा स्वीकार करने का फैसला किया।
बंटवारे के बाद भी गाँधी जी की नीतियों ने देश का जो नुक्सान किया वो इस प्रकार है, २३ % मुस्लिम जनसँख्या के लिए ३२ % भूमि पाकिस्तान को दी गयी, बंटवारे के बाद मुख्य कदम था जल्द से जल्द पापुलेशन एक्सचेंज, यानिकी मुस्लिम को पाकिस्तान और हिन्दुओं को भारत में पुनर्वास दिलाना, जिसकी वकालत जिन्ना और माउंट बेटन दोनों ने की थी और मुस्लिम लीग के प्रस्ताव में यह मुद्दा शामिल था। लेकिन गाँधी जी ने कुछ मुसलामानों की अनिच्छा के चलते गाँधी जी ने इसे “इम्प्रक्टिकल” करार दिया, बिहार में दंगे भड़कने पर भी मुस्लिम लीग का यह प्रस्ताव लागू नहीं किया गया। माउंट बेटन ने जब नेहरु पर दबाव डाला तब नेहरु ने गाँधी की ओर देखा और गाँधी जी ने इसे स्वीकार नहीं किया, नतीज़तन हिन्दुओं ( मुख्यतया सिख और सिन्धी) का भारत में पलायन तो हुआ लेकिन मुसलामानों का पाकिस्तान में न के बराबर और जिनका पाकिस्तान पलायन हुआ वो मुहाजिर कहलाये यानि दोयम दर्जे के पाकिस्तानी।
गाँधी जी के विरोध के कारण ही “वन्दे मातरम” राष्ट्रगान नहीं बन पाया, दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी इसे बहुत पसंद करते थे उन्होंने लिखा था ” यह संवेदना में आदर्श है और मधुर भी, यह सिर्फ देशभक्ति जगाता है और भारत को माँ की तरह गुण गाता है ” परन्तु जब उन्हें मालूम हुआ मुस्लिम इसे नापसंद करते है तब उनहोंने सामूहिक सभा में गाना बंद कर दिया और जन गण मन राष्ट्रगीत बनाया गया। बंटवारे के बाद जब सिन्धी और पंजाबी दिल्ली में केम्प में रह रहे थे तब गाँधी जी ने वहां का दौरा किया और कहा- मुस्लिम अगर पाक को हिन्दू विहीन करते हैं तो हमें नाराज़ नहीं होना चाहिए बल्कि हौसला रखना चाहिए
इस प्रकार गाँधी जी ने मुस्लिम तुष्टिकरण का इतिहास रच कर दिखा दिया और कांग्रेस उनके नक़्शे कदम पर चलकर आगे बढती रही और धर्मनिरपेक्षता की नई परिभाषा ही रच दी !
लेखक : अकेला
Source : नवभारत टाइम्स
यह एक विवादस्पद मगर सच है कि १९०८ में एक घटना के बाद गाँधी जी में मुसलामानों के प्रति कड़ा रवैया बदलकर पक्षपात करना शुरू किया। हुआ यूं कि दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश सरकार ने वहां रहने वाले भारतीयों पर ३ पौंड का टेक्स लगाया, गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार से इस विषय में बहस की जिसे मुसलामानों ने सहयोग नहीं दिया तब गाँधी जी ने इसकी जबरदस्त आलोचना की एक सामूहिक वकतव्य में इस्लाम पर कड़ी बात भी कही जिससे मुसलामानों में रोष बढ़ा, १० फरवरी १९०८ को मीर आलम नामक पठान की अगुआई में एक दस्ते ने गाँधी जी की उनके निवास पर बेरहमी से पिटाई की और जान से मार डालने की धमकी भी दी। डाक्टर भीमराव आंबेडकर ने भी स्वीकार किया कि इस घटना के बाद गाँधी जी ने आपत्तिजनक वक्तव्य तो देने बंद कर ही दिए, साथ ही उनकी सभी गलतियों को नज़र अंदाज़ करते रहे और उनके अपराध तक को शह देने लगे।
२३ दिसंबर १९२६ : श्रद्धानंद स्वामी जब बीमार थे और बिस्तर पर लेटे थे तब अब्दुल रशीद नामक व्यक्ति ने उन्हें चाकू से गोद कर मार डाला, श्रद्धानंद स्वामी एक आर्य समाज के प्रचारक थे और धर्म परिवर्तन कर चुके मुसलामानों को शुद्धि योजना द्वारा वापस हिन्दू धर्म में लाना चाहते थे, गाँधी जी का बड़ा बेटा हीरालाल जो मुसलमान बन चूका था इन्ही स्वामी द्वारा वापस हिन्दू बना था। एक मुसलमान महिला, जो स्वामी के पास हिन्दू धर्म में वापस जाने के लिए आयी तब उसके मुस्लिम पति के अदालत का सहारा लेकर स्वामी पर इलज़ाम भी लगाया लेकिन अदालत ने स्वामी को बरी कर दिया इस घटना से कई मुस्लिम खफा हो गए और कुछ ही दिनों में उनकी हत्या कर दी गयी। तब गाँधी जी ने कुछ दिनों बाद गुवाहाटी में कांग्रेस की कांफ्रेंस में कहा – भाई रशीद का जुर्म मैं नहीं मानता बल्कि नफरत फैलाने वाले ही जिम्मेदार हैं यानिकी उनहोंने स्वामी जी को ही दोषी ठहराया।
धर्मनिरपेक्ष सिद्धांत के जरिये गाँधी जी का यही मुस्लिम तुष्टिकरण देश के विभाजन का भी कारण बना, जब २६ मार्च १९४० को जब मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अवधारणा पर जोर दिया तब गाँधी जी का वक्तव्य था – अन्य नागरिकों की तरह मुस्लिम को भी यह निर्धारण करने का अधिकार है कि वो अलग रह सके, हम एक संयुक्त परिवार में रह रहे हैं ( हरिजन , ६ अप्रैल १९४० ).
अगर इस देश के अधिकांश मुस्लिम यह सोचते हैं कि एक अलग देश जरूरी है और उनका हिदुओं से कोई समानता नहीं है तो दुनियाँ की कोई ताक़त उनके विचार नहीं बदल सकती और इस कारण वो नए देश की मांग रखते है तो वो मानना चाहिए, हिन्दू इसका विरोध कर सकते है ( हरिजन , १८ अप्रैल १९४२ ).
१२ जून १९४७ को जब कांग्रेस सेशन में बंटवारे के मुद्दे पर विचार हुआ तब पुरुषोत्तम दास टंडन, गोविन्द वल्लभ पन्त, चैतराम गिडवानी आदि ने इसका तर्क के साथ घोर विरोध किया था तब गाँधी जी ने सारे वक्ताओं को किनारे कर ४५ मिनट की जो स्पीच दी उसका सार इस प्रकार है अगर कांग्रेस ने बंटवारे को स्वीकार नहीं किया तो कुछ और ग्रुप ( संभवतः नेता जी सुभाष चन्द्र बोस) कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर देंगे और देश में भूचाल जैसा आ जाएगा। दुसरे शब्दों में गाँधी जी ने मुसलामानों को पाकिस्तान बनाने के लिए प्रेरित ही किया। इस घटना के बाद वल्लभ भाई ने भी बंटवारा स्वीकार करने का फैसला किया।
बंटवारे के बाद भी गाँधी जी की नीतियों ने देश का जो नुक्सान किया वो इस प्रकार है, २३ % मुस्लिम जनसँख्या के लिए ३२ % भूमि पाकिस्तान को दी गयी, बंटवारे के बाद मुख्य कदम था जल्द से जल्द पापुलेशन एक्सचेंज, यानिकी मुस्लिम को पाकिस्तान और हिन्दुओं को भारत में पुनर्वास दिलाना, जिसकी वकालत जिन्ना और माउंट बेटन दोनों ने की थी और मुस्लिम लीग के प्रस्ताव में यह मुद्दा शामिल था। लेकिन गाँधी जी ने कुछ मुसलामानों की अनिच्छा के चलते गाँधी जी ने इसे “इम्प्रक्टिकल” करार दिया, बिहार में दंगे भड़कने पर भी मुस्लिम लीग का यह प्रस्ताव लागू नहीं किया गया। माउंट बेटन ने जब नेहरु पर दबाव डाला तब नेहरु ने गाँधी की ओर देखा और गाँधी जी ने इसे स्वीकार नहीं किया, नतीज़तन हिन्दुओं ( मुख्यतया सिख और सिन्धी) का भारत में पलायन तो हुआ लेकिन मुसलामानों का पाकिस्तान में न के बराबर और जिनका पाकिस्तान पलायन हुआ वो मुहाजिर कहलाये यानि दोयम दर्जे के पाकिस्तानी।
गाँधी जी के विरोध के कारण ही “वन्दे मातरम” राष्ट्रगान नहीं बन पाया, दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी इसे बहुत पसंद करते थे उन्होंने लिखा था ” यह संवेदना में आदर्श है और मधुर भी, यह सिर्फ देशभक्ति जगाता है और भारत को माँ की तरह गुण गाता है ” परन्तु जब उन्हें मालूम हुआ मुस्लिम इसे नापसंद करते है तब उनहोंने सामूहिक सभा में गाना बंद कर दिया और जन गण मन राष्ट्रगीत बनाया गया। बंटवारे के बाद जब सिन्धी और पंजाबी दिल्ली में केम्प में रह रहे थे तब गाँधी जी ने वहां का दौरा किया और कहा- मुस्लिम अगर पाक को हिन्दू विहीन करते हैं तो हमें नाराज़ नहीं होना चाहिए बल्कि हौसला रखना चाहिए
इस प्रकार गाँधी जी ने मुस्लिम तुष्टिकरण का इतिहास रच कर दिखा दिया और कांग्रेस उनके नक़्शे कदम पर चलकर आगे बढती रही और धर्मनिरपेक्षता की नई परिभाषा ही रच दी !
लेखक : अकेला
Source : नवभारत टाइम्स
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