~: मैनेजमेंट लेसन:~
एक दिन एक कुत्ता जंगल में रास्ता खो गया..
तभी उसने देखा, एक शेर उसकी तरफ आ रहा है..।
कुत्ते की सांस रूक गयी..
कुत्ते की सांस रूक गयी..
"आज तो काम तमाम मेरा..!" उसने सोचा..
MBA ka lesson yaad aa gaya aur
फिर उसने सामने कुछ सूखी हड्डियाँ पड़ी देखि..
वो आते हुए शेर की तरफ पीठ कर के बैठ गया और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा..
वो आते हुए शेर की तरफ पीठ कर के बैठ गया और एक सूखी हड्डी को चूसने लगा..
और जोर जोर से बोलने लगा,
"वाह ! शेर को खाने का मज़ा ही कुछ और है.. एक और मिल जाए तो पूरी दावत हो जायेगी !"
और उसने जोर से डकार मारा.. इस बार शेर सोच में पड़ गया..
उसने सोचा- "ये कुत्ता तो शेर का शिकार करता है ! जान बचा कर भागो !"
और शेर वहां से जान बचा के भागा..
पेड़ पर बैठा एक बन्दर यह सब तमाशा देख रहा था..
उसने सोचा यह मौका अच्छा है शेर को सारी कहानी बता देता
हूँ ..
हूँ ..
शेर से दोस्ती हो जायेगी और उससे ज़िन्दगी भर के लिए जान का खतरा दूर हो जायेगा..
वो फटाफट शेर के पीछे भागा..
कुत्ते ने बन्दर को जाते हुए देख लिया और समझ गया की कोई लोचा है..
उधर बन्दर ने शेर को सब बता दिया की कैसे कुत्ते ने उसे बेवकूफ बनाया है..
शेर जोर से दहाडा, "चल मेरे साथ, अभी उसकी लीला ख़तम करता हूँ".. और बन्दर को अपनी पीठ पर बैठा कर शेर कुत्ते की तरफ लपका..
Can you imagine the quick "management" by the DOG...???
कुत्ते ने शेर को आते देखा तो एक बार को उसके आगे जान का संकट आ गया मगर फिर हिम्मत कर कुत्ता उसकी तरफ पीठ करके बैठ गया l
Another lesson of MBA applied aur जोर जोर से बोलने लगा,
"इस बन्दर को भेजे 1 घंटा हो गया..
साला एक शेर को फंसा कर नहीं ला सकता !"
साला एक शेर को फंसा कर नहीं ला सकता !"
यह सुनते ही शेर ने बंदर को पटका और वापस भाग गया**
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क्या आप भी भगवान पर हंसते हैं?
#विट्ठलदासव्यास
ऋषि अष्टावक्र का शरीर कई जगह से टेढ़ा-मेढ़ा था इसलिए वह अच्छे नहीं दिखते थे। एक दिन जब ऋषि अष्टावक्र राजा जनक की सभा में पहुंचे तो उन्हें देखते ही सभा के सभी सदस्य हंस पड़े। ऋषि अष्टावक्र सभा के सदस्यों को हंसता देखकर वापस लौटने लगे।
यह देखकर राजा जनक ने ऋषि अष्टावक्र से पूछा, ‘‘भगवन! वापस क्यों जा रहे हैं?’’
ऋषि अष्टावक्र ने उत्तर दिया, ‘‘मैं मूर्खों की सभा में नहीं बैठता।’’
ऋषि अष्टावक्र की बात सुनकर सभा के सदस्य नाराज हो गए और उनमें से एक सदस्य ने क्रोध में पूछ ही लिया, ‘‘हम मूर्ख क्यों हुए? आपका शरीर ही ऐसा है तो हम क्या करें?’’
तभी ऋषि अष्टावक्र ने उत्तर दिया, ‘‘तुम लोगों को यह नहीं मालूम कि तुम मुझ पर नहीं, सर्वशक्तिमान ईश्वर पर हंस रहे हो। मनुष्य का शरीर तो हांडी की तरह है जिसे ईश्वर रूपी कुम्हार ने बनाया है। हांडी की हंसी उड़ाना क्या कुम्हार की हंसी उड़ाना नहीं हुआ?’’
अष्टावक्र का तर्क सुनकर सभी सभा सदस्य लज्जित हो गए और उन्होंने ऋषि अष्टावक्र से क्षमा मांगी।
दोस्तो हम में से ज्यादातर लोग भी कभी न कभी किसी मोटे, दुबले या काले व्यक्ति को देखकर हंसते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं कि वह कैसे भद्दा दिखता है। जब हम ऐसा करते हैं तो हम ईश्वर, अल्लाह या भगवान का मजाक उड़ाते हैं न कि उस व्यक्ति का।
‘‘इंसान के व्यक्तित्व का निर्माण उसका रंग, शरीर या कपड़े नहीं करते बल्कि व्यक्तित्व का निर्माण मनुष्य के विचार एवं उसका आचरण करते हैं।’’
#विट्ठलदासव्यास
ऋषि अष्टावक्र का शरीर कई जगह से टेढ़ा-मेढ़ा था इसलिए वह अच्छे नहीं दिखते थे। एक दिन जब ऋषि अष्टावक्र राजा जनक की सभा में पहुंचे तो उन्हें देखते ही सभा के सभी सदस्य हंस पड़े। ऋषि अष्टावक्र सभा के सदस्यों को हंसता देखकर वापस लौटने लगे।
यह देखकर राजा जनक ने ऋषि अष्टावक्र से पूछा, ‘‘भगवन! वापस क्यों जा रहे हैं?’’
ऋषि अष्टावक्र ने उत्तर दिया, ‘‘मैं मूर्खों की सभा में नहीं बैठता।’’
ऋषि अष्टावक्र की बात सुनकर सभा के सदस्य नाराज हो गए और उनमें से एक सदस्य ने क्रोध में पूछ ही लिया, ‘‘हम मूर्ख क्यों हुए? आपका शरीर ही ऐसा है तो हम क्या करें?’’
तभी ऋषि अष्टावक्र ने उत्तर दिया, ‘‘तुम लोगों को यह नहीं मालूम कि तुम मुझ पर नहीं, सर्वशक्तिमान ईश्वर पर हंस रहे हो। मनुष्य का शरीर तो हांडी की तरह है जिसे ईश्वर रूपी कुम्हार ने बनाया है। हांडी की हंसी उड़ाना क्या कुम्हार की हंसी उड़ाना नहीं हुआ?’’
अष्टावक्र का तर्क सुनकर सभी सभा सदस्य लज्जित हो गए और उन्होंने ऋषि अष्टावक्र से क्षमा मांगी।
दोस्तो हम में से ज्यादातर लोग भी कभी न कभी किसी मोटे, दुबले या काले व्यक्ति को देखकर हंसते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं कि वह कैसे भद्दा दिखता है। जब हम ऐसा करते हैं तो हम ईश्वर, अल्लाह या भगवान का मजाक उड़ाते हैं न कि उस व्यक्ति का।
‘‘इंसान के व्यक्तित्व का निर्माण उसका रंग, शरीर या कपड़े नहीं करते बल्कि व्यक्तित्व का निर्माण मनुष्य के विचार एवं उसका आचरण करते हैं।’’
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