Wednesday, 26 August 2015

"संस्कृत" पर शोध के लिए जर्मन नागरिक को मिला पद्मश्री पुरस्कार




भारत में सेक्युलरों के लिए विवादित भाषा "संस्कृत" पर शोध के लिए जर्मन नागरिक को मिला पद्मश्री पुरस्कार सेक्युलरों को मिर्ची तो जरुर लगी होगी
संस्कृत भारत की वैदिक भाषा है। इस भाषा को वर्तमान विश्व का सबसे अत्याधुनिक अंतरिक्ष शोध संस्था नासा ने भी माना है यह दैवीय भाषा है, यह खगौलीय भाषा है। हालांकि भारत जहाँ की यह मूल भाषा है। यहाँ की स्कूलों में पढ़ाने पर विवाद हो जाता है और संस्कृत की जगह जर्मन भाषा पढ़ाई जा रही है। लेकिन जर्मनी में संस्कृत पर शोध हो रहे हैं। वहां के विश्वविद्यालयों में संस्कृत भी पढ़ाई जा रही है। इतना ही नहीं, जर्मनी की शोधकर्ता डॉ. एनेटी सच्मीडेसेन को संस्कृत में शोध के लिए भारत के नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया है।
फिर भी भारत के लोग अँग्रेजी भाषा और अन्य भाषा की ओर रुख़ कर रहे है, जोकि हर दृष्टि से हानिकारक है। जाहिर है डॉ. एनेटी अपने शोध के लिए इन दिनों भारत में रहती हैं। उनके पति कोलकाता में जर्मन वाणिज्य दूतावास के काउंसल जनरल हैं। उन्होंने कहा कि वह इस पुरस्कार से खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। संस्कृत आधारित अध्ययन को भारत के भीतर और बाहर प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत है। वहीं, भारत में जर्मनी के राजदूत मिसाइल स्टेनर ने कहा कि डॉ. एनेटी को पद्मश्री सम्मान से दोनों देशों के बीच प्राचीन एवं आधुनिक भाषाओं के विकास में नए आयाम खुलेंगे।
गौरतलब है कि देश के केंद्रीय विद्यालयों में पहले संस्कृत की जगह जर्मन भाषा पढ़ाना शुरू किया गया था। मगर, जब इसे हटाया गया तो जर्मनी की तरफ से इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। जबकि, जर्मनी में संस्कृत पर लंबे समय से शोध हो रहे हैं। संस्कृत को विज्ञान की भाषा माना गया है। संस्कृत के ग्रंथों में प्राचीन वैज्ञानिक पद्धति का ज्ञान समाहित है।
दुर्भाग्य से भारत में उस पर अपेक्षित शोध नहीं हुआ है, लेकिन जर्मनी उस पर न सिर्फ शोध कर रहा है, बल्कि विज्ञान के क्षेत्र में उससे लाभान्वित भी हुआ है। हाल में मुंबई साइंस कांग्रेस के दौरान भी यह मुद्दा उठा था। वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर व वरिष्ठ विज्ञानी विजय भाटकर ने तब माना था कि जर्मनी ने संस्कृत के ज्ञान से वैज्ञानिक तरक्की हासिल की है।
डॉ. एनेटी ने बर्लिन विश्वविद्यालय से प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृत और विचारधारा में डिग्री ली है। इसके बाद उन्होंने हुमबोल्डट यूनिवर्सिटी से उत्तरी भारत में पांचवीं से नौवीं शताब्दी के बीच बने बौद्ध केंद्रों व उसके लिए गांवों, भूमि एवं धन दान दिए जाने के विषय पर पीएचडी की। बाद में उन्हें इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ संस्कृत स्टडीज का फेलो भी नियुक्त किया गया। वह लगातार संस्कृत पर शोध कर रही हैं। 1992 से उनका भारत-आना जाना है।

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