नरेन्द्र मोदी फैन क्लब ने 2 नई फ़ोटो जोड़ी.
अफ़सोस कल्पना दत्त जिसको हम सभी भुला चुके हैं काफी लोगो ने तो इनका नाम भी नही सुना होगा.... यह वो वीरगाना थी जब लड़कियां घर से भी बाहर नहीं निकलती थी, उस दौर में आज़ादी की लड़ाई में हथियार उठाने वाली अकेली थी पर अफ़सोस हममें से किसी को यह याद नही |
कल्पना दत्त का जन्म वर्तमान बंग्लादेश के चटगांव ज़िले के श्रीपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में 27 जुलाई 1913 को हुआ था| 1929 में चटगाँव से मैट्रिक पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ये कलकत्ता आ गयीं| यहाँ अनेकों प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं।
कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, लेकिन अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इन्होनें प्रसिद्द क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया।
वह वेश बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने सटीक निशाना लगाने का भी अभ्यास कर लिया। 18 अप्रैल 1930 ई. को मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में रोंगटे खड़े कर देने वाली 'चटगांव शस्त्रागार लूट' की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और उनके अभिन्न साथी तारकेश्वर दस्तीदार जी के साथ मास्टर दा को अंग्रेजों से छुड़ाने की योजना बनाई लेकिन योजना पर अमल होने से पहले ही यह भेद खुल गया और सन 1933 में तारकेश्वर, कल्पना दत्ता व अपने अन्य साथियों के साथ पकड़ लिए गए|
सरकार ने मास्टर सूर्य सेन जी, तारकेश्वर दा और कल्पना दत्त पर मुकद्दमा चलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की और 12 जनवरी 1934 को मास्टर सूर्य सेन को तारकेश्वर दा के साथ फांसी दे दी गयी| लेकिन फांसी से पूर्व उन्हें ऐसी अमानवीय यातनाएं दी गयीं कि रूह काँप जाती है|
निर्दयतापूर्वक हथोड़े से उनके दांत तोड़ दिए गए , नाखून खींच लिए गए , हाथ-पैर तोड़ दिए गए और जब वह बेहोश हो गए तो उन्हें अचेतावस्था में ही खींच कर फांसी के तख्ते तक लाया गया| क्रूरता और अपमान की पराकाष्टा यह थी कि उनकी मृत देह को भी उनके परिजनों को नहीं सोंपा गया और उसे धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया ।
21 वर्षीया कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी| 1937 ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब कुछ प्रमुख नेताओं के प्रयासों से 1939 में कल्पना जेल से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं | 1943 ई. में उनका कम्युनिस्ट नेता पी.सी. जोशी से विवाह हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और 'इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी' में काम करने लगीं। सितम्बर 1979 ई. में कल्पना जोशी को पुणे में 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया। 8 फरबरी 1995 को कोलकाता में उनका निधन हो गया|
बहुत कम लोग जानते होंगे कि पूरन चंद जोशी और कल्पना जोशी के दो पुत्र थे- चाँद जोशी और सूरज जोशी| चाँद जोशी अंग्रेजी के एक प्रसिद्द पत्रकार थे और उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया| इन्हीं चाँद जोशी की पत्नी मानिनी (चटर्जी ) के द्वारा चटगाँव शस्त्रागार केस पर एक बहुत ही प्रसिद्द पुस्तक लिखी गयी थी, जिसका नाम है डू एंड डाई: दि चटगाँव अपराइजिंग 1930-34। इसी पुस्तक को आधार बनाकर कुछ दिन पहले एक फिल्म आई थी 'खेलें हम जी जान से', जिसमे दीपिका पादुकोने ने कल्पना दत्त की भूमिका निभाई थी।
हालाँकि बाडीगार्ड, दबंग, राऊडी राठोड़, रेडी और इसी तरह की बेसिर पैर फिल्मों के ज़माने में 'खेलें हम जी जान से' देखने कौन जाता और किसको फुर्सत है कि ये जाने कि आज़ादी की लड़ाई बिना खड्ग, बिना ढाल नहीं, खून बहाकर और खुद को गलाकर मिली है। पर ना हो किसी को फुर्सत, ना हो किसी को परवाह; इससे कल्पना दत्त जैसी क्रांतिकारियों का निस्वार्थ योगदान कम तो नहीं हो जाता|
नरेन्द्र मोदी फैन क्लब ने 2 नई फ़ोटो जोड़ी.
कल्पना दत्त का जन्म वर्तमान बंग्लादेश के चटगांव ज़िले के श्रीपुर गांव में एक मध्यम वर्गीय परिवार में 27 जुलाई 1913 को हुआ था| 1929 में चटगाँव से मैट्रिक पास करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए ये कलकत्ता आ गयीं| यहाँ अनेकों प्रसिद्ध क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़कर वह प्रभावित हुईं और शीघ्र ही स्वयं भी कुछ करने के लिए आतुर हो उठीं।
कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, लेकिन अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इन्होनें प्रसिद्द क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया।
वह वेश बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने सटीक निशाना लगाने का भी अभ्यास कर लिया। 18 अप्रैल 1930 ई. को मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में रोंगटे खड़े कर देने वाली 'चटगांव शस्त्रागार लूट' की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और उनके अभिन्न साथी तारकेश्वर दस्तीदार जी के साथ मास्टर दा को अंग्रेजों से छुड़ाने की योजना बनाई लेकिन योजना पर अमल होने से पहले ही यह भेद खुल गया और सन 1933 में तारकेश्वर, कल्पना दत्ता व अपने अन्य साथियों के साथ पकड़ लिए गए|
सरकार ने मास्टर सूर्य सेन जी, तारकेश्वर दा और कल्पना दत्त पर मुकद्दमा चलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की और 12 जनवरी 1934 को मास्टर सूर्य सेन को तारकेश्वर दा के साथ फांसी दे दी गयी| लेकिन फांसी से पूर्व उन्हें ऐसी अमानवीय यातनाएं दी गयीं कि रूह काँप जाती है|
निर्दयतापूर्वक हथोड़े से उनके दांत तोड़ दिए गए , नाखून खींच लिए गए , हाथ-पैर तोड़ दिए गए और जब वह बेहोश हो गए तो उन्हें अचेतावस्था में ही खींच कर फांसी के तख्ते तक लाया गया| क्रूरता और अपमान की पराकाष्टा यह थी कि उनकी मृत देह को भी उनके परिजनों को नहीं सोंपा गया और उसे धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया ।
21 वर्षीया कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी| 1937 ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब कुछ प्रमुख नेताओं के प्रयासों से 1939 में कल्पना जेल से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं | 1943 ई. में उनका कम्युनिस्ट नेता पी.सी. जोशी से विवाह हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और 'इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी' में काम करने लगीं। सितम्बर 1979 ई. में कल्पना जोशी को पुणे में 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया। 8 फरबरी 1995 को कोलकाता में उनका निधन हो गया|
बहुत कम लोग जानते होंगे कि पूरन चंद जोशी और कल्पना जोशी के दो पुत्र थे- चाँद जोशी और सूरज जोशी| चाँद जोशी अंग्रेजी के एक प्रसिद्द पत्रकार थे और उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया| इन्हीं चाँद जोशी की पत्नी मानिनी (चटर्जी ) के द्वारा चटगाँव शस्त्रागार केस पर एक बहुत ही प्रसिद्द पुस्तक लिखी गयी थी, जिसका नाम है डू एंड डाई: दि चटगाँव अपराइजिंग 1930-34। इसी पुस्तक को आधार बनाकर कुछ दिन पहले एक फिल्म आई थी 'खेलें हम जी जान से', जिसमे दीपिका पादुकोने ने कल्पना दत्त की भूमिका निभाई थी।
हालाँकि बाडीगार्ड, दबंग, राऊडी राठोड़, रेडी और इसी तरह की बेसिर पैर फिल्मों के ज़माने में 'खेलें हम जी जान से' देखने कौन जाता और किसको फुर्सत है कि ये जाने कि आज़ादी की लड़ाई बिना खड्ग, बिना ढाल नहीं, खून बहाकर और खुद को गलाकर मिली है। पर ना हो किसी को फुर्सत, ना हो किसी को परवाह; इससे कल्पना दत्त जैसी क्रांतिकारियों का निस्वार्थ योगदान कम तो नहीं हो जाता|
कल्पना और उनके साथियों ने क्रान्तिकारियों का मुकदमा सुनने वाली अदालत के भवन को और जेल की दीवार उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन पुलिस को सूचना मिल जाने के कारण इस पर अमल नहीं हो सका। पुरुष वेश में घूमती कल्पना दत्त गिरफ्तार कर ली गईं, पर अभियोग सिद्ध न होने पर उन्हें छोड़ दिया गया। उनके घर पुलिस का पहरा बैठा दिया गया, लेकिन अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए इन्होनें प्रसिद्द क्रांतिकारी मास्टर सूर्यसेन के दल से नाता जोड़ लिया।
वह वेश बदलकर क्रांतिकारियों को गोला-बारूद आदि पहुँचाया करती थीं। इस बीच उन्होंने सटीक निशाना लगाने का भी अभ्यास कर लिया। 18 अप्रैल 1930 ई. को मास्टर सूर्यसेन के नेतृत्व में रोंगटे खड़े कर देने वाली 'चटगांव शस्त्रागार लूट' की घटना होते ही कल्पना दत्त कोलकाता से वापस चटगांव चली गईं और उनके अभिन्न साथी तारकेश्वर दस्तीदार जी के साथ मास्टर दा को अंग्रेजों से छुड़ाने की योजना बनाई लेकिन योजना पर अमल होने से पहले ही यह भेद खुल गया और सन 1933 में तारकेश्वर, कल्पना दत्ता व अपने अन्य साथियों के साथ पकड़ लिए गए|
सरकार ने मास्टर सूर्य सेन जी, तारकेश्वर दा और कल्पना दत्त पर मुकद्दमा चलाने के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की और 12 जनवरी 1934 को मास्टर सूर्य सेन को तारकेश्वर दा के साथ फांसी दे दी गयी| लेकिन फांसी से पूर्व उन्हें ऐसी अमानवीय यातनाएं दी गयीं कि रूह काँप जाती है|
निर्दयतापूर्वक हथोड़े से उनके दांत तोड़ दिए गए , नाखून खींच लिए गए , हाथ-पैर तोड़ दिए गए और जब वह बेहोश हो गए तो उन्हें अचेतावस्था में ही खींच कर फांसी के तख्ते तक लाया गया| क्रूरता और अपमान की पराकाष्टा यह थी कि उनकी मृत देह को भी उनके परिजनों को नहीं सोंपा गया और उसे धातु के बक्से में बंद करके बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया ।
21 वर्षीया कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी| 1937 ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब कुछ प्रमुख नेताओं के प्रयासों से 1939 में कल्पना जेल से बाहर आ सकीं। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और वह कम्युनिस्ट पार्टी में सम्मिलित हो गईं | 1943 ई. में उनका कम्युनिस्ट नेता पी.सी. जोशी से विवाह हो गया और वह कल्पना जोशी बन गईं। बाद में कल्पना बंगाल से दिल्ली आ गईं और 'इंडो सोवियत सांस्कृतिक सोसायटी' में काम करने लगीं। सितम्बर 1979 ई. में कल्पना जोशी को पुणे में 'वीर महिला' की उपाधि से सम्मानित किया गया। 8 फरबरी 1995 को कोलकाता में उनका निधन हो गया|
बहुत कम लोग जानते होंगे कि पूरन चंद जोशी और कल्पना जोशी के दो पुत्र थे- चाँद जोशी और सूरज जोशी| चाँद जोशी अंग्रेजी के एक प्रसिद्द पत्रकार थे और उन्होंने हिन्दुस्तान टाइम्स के लिए काम किया| इन्हीं चाँद जोशी की पत्नी मानिनी (चटर्जी ) के द्वारा चटगाँव शस्त्रागार केस पर एक बहुत ही प्रसिद्द पुस्तक लिखी गयी थी, जिसका नाम है डू एंड डाई: दि चटगाँव अपराइजिंग 1930-34। इसी पुस्तक को आधार बनाकर कुछ दिन पहले एक फिल्म आई थी 'खेलें हम जी जान से', जिसमे दीपिका पादुकोने ने कल्पना दत्त की भूमिका निभाई थी।
हालाँकि बाडीगार्ड, दबंग, राऊडी राठोड़, रेडी और इसी तरह की बेसिर पैर फिल्मों के ज़माने में 'खेलें हम जी जान से' देखने कौन जाता और किसको फुर्सत है कि ये जाने कि आज़ादी की लड़ाई बिना खड्ग, बिना ढाल नहीं, खून बहाकर और खुद को गलाकर मिली है। पर ना हो किसी को फुर्सत, ना हो किसी को परवाह; इससे कल्पना दत्त जैसी क्रांतिकारियों का निस्वार्थ योगदान कम तो नहीं हो जाता|
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