Saturday, 1 August 2015

नाम देशी और काम विदेशी...
देश में विदेशी धन और विदेशी एजेंडे पर चलने वाले देश के हजारो NGO मानवाधिकार, सामाजिल न्याय, महिला सशक्तिकरण, मजहबी सहिष्णुता और पर्यावरण की रक्षा के नाम पर भारत की प्राचीनम सनातनी संस्कृति और बहुलतावाद को नष्ट करने पर तुले हुए है ।
हाल के वर्षो में देश के जिस किसी भी हिस्से में विकास के प्रोजेक्ट चलाये जा रहे है वहा विदेशी धन से प्राप्त विभिन्न नामो के NGO अवरोध खड़ा कर रहे है ।
ऐसे संघटन न्यूक्लियर प्रोजेक्ट, पावर प्लांट्स, यूरेनियम खनन, पन बिजली, पोस्को और वेदांता जैसी बड़ी औद्योगिक योजनाओ के मार्ग में रोडे अटकाती है ।
इन्ही देश द्रोही संघटनो ने ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर प्रोजेक्ट के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन के लिए चल रहे जल सत्याग्रह का नाम देकर लोगो को बरगलाती है ।
यही संघटन दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र को जोड़ने वाले 1483 किलोमीटर लम्बे दिल्ली- मुम्बई औधौगिक कारीडोर का विरोध पर्यावरण के नाम पर कर रहे है ।
विदेशो से प्राप्त चंदे और धन के एवज में ये NGO संघटन तमिलनाडु के कुडनकुलम, महाराष्ट्र के जैतपुर, मध्यप्रदेश के चुटका-महान, हरियाणा के फतेहाबाद,आंध्र प्रदेश के कोवाडा,कर्नाटका का कैग,राजस्थान के रावत भाटा एटामिक पावर प्लांट हो या गुजरात के मुंदरा, छत्तीसगढ़ के कोरबा व रायगढ़ के कोयला आधारित विद्युत् प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे है ।
अब वर्तमान में यही काम कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टिया लोक सभा और राज्य सभा की कार्यवाही न चलने देकर पूरा कर रही है ।
देश के विकास में विदेशी धन से चलने वाले ये NGO, कांग्रेस पार्टी और अन्य विपक्षी दल ही बाधक बने हुए है ।
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आज मुसलमानों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है .. ये साबित करना की वो आतंकवादी नहीं हैं ।
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