इस चित्र में ईसाई जनसँख्या के वे आँकड़े हैं, जो "घोषित" हैं. जो "अघोषित" हैं (यानी धर्म तो बदल लिया, लेकिन आरक्षण के लालच में खुद को हिन्दू बनाए बैठे हैं) उनका आँकड़ा और भी भयावह है... चित्र में स्पष्ट देखा जा सकता है कि समूचा उत्तर-पूर्व, उड़ीसा-झारखंड के कई इलाके, दक्षिण में तमिलनाडु-केरल-गोवा (लगभग पूरे) और बाकी भारत में छितराए हुए "सफ़ेद शांतिदूत" दिखाई दे रहे हैं...
आज की तारीख में सबसे ज्यादा मूर्ख कोई बन रहा है तो वह है दलित... एक तरफ दलित-मुस्लिम एकता का नारा देकर "दूसरे दर्जे की अरबी जमात" उन्हें अपना मोहरा बना रही है, वहीं दूसरी तरफ "वेटिकन की दीमक" उन्हें अंदर ही अंदर खोखला किए जा रही है. मजे की बात यह है कि धर्मान्तरण करने वाले दलित-आदिवासी चर्च से भी पैसा ले रहे हैं और "असली दलितों" का हक मारकर आरक्षण की मलाई भी खा रहे हैं.... अधिकाँश दलित चिन्तक-लेखक का बैकग्राउंड थोड़ा सा खुरचकर देख लो, वह पक्का ईसाई ही निकलेगा. Suresh Chiplunkar
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