Sunday, 11 September 2016

धर्म नष्ट होता है तो धराशायी हो जाता है राष्ट्र, देश… सब कुछ…

मुंशी प्रेमचंद की कभी भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा रहे क्षेत्र पर एक कहानी है. इसमें पठानों के इस्लामी दंगे का शिकार हो कर एक हिन्दू युवक की हत्या और एक हिन्दू लड़की के पौरुष का बखान है.
रवीन्द्र नाथ ठाकुर, किशन चन्दर, सआदत हसन मंटो जैसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लेखकों ने इस्लामी आतंक पर कहानियां लिखी हैं. आपने यदि ‘गाँधी’ फ़िल्म या 1947 के भारत विभाजन पर कोई भी पिक्चर देखी होगी तो उसमें मीलों लंबे थके-हारे, भूखे-प्यासे शरणार्थियों के क़ाफ़िले देखे होंगे.
यह क़ाफ़िले कोई पहली बार केंद्रीय भारत नहीं आये हैं. उज़बेकिस्तान, क़ज़्ज़ाकिस्तान, ईराक़, ईरान, अफ़ग़ानिस्तान, जैसे देशों से जम्बू द्वीप के भरत खंड की केंद्रीय भूमि की ओर यह क़ाफ़िले पहले भी आते रहे हैं. इन देशों में हमारे अभागे पूर्वजों के त्यागे मंदिरों, यज्ञशालाओं, चैत्यों के खंडहर आज भी मिलते हैं.
इन क्षेत्रों से हिंदुओं के निष्कासन की सफलता के बाद शेष बचे क्षेत्र में लगातार धर्मांतरण होता रहा. जिसका परिणाम 1947 में देश के अगले विभाजन के रूप में सामने आया.
विभाजन के समय से ही पाकिस्तान और बांग्लादेश से बचे हिंदुओं का निष्कासन शुरू हो गया था. जिसमें भयानक तेज़ी 1970-1971 में आयी. पाकिस्तानी सेना ने निहत्थे हिन्दू बुद्धिजीवियों की लगातार हत्यायें कीं. फलस्वरूप एक करोड़ से अधिक हिन्दू भाग कर भारत आ गये.
भारत की भुजाएं काट कर बने देशों में उन हिंदुओं को, जो न्यूनतम 5,000 वर्ष से अबाध बहती आ रही सांस्कृतिक गंगा का भाग थे, अपनी ही धरती से निकाल दिया गया.
ऐसे ही खंडहर पाकिस्तान, बांग्लादेश में अब मिलने शुरू हो गए हैं. इसी तरह कश्मीर में एक पीढ़ी अर्थात 25-30 वर्ष बीत जाने के बाद इस तरह के भग्न मंदिरों, यज्ञशालाओं, चैत्यों के खंडहर मिलने लगेंगे.
25-30 वर्ष बाद यह और ऐसी ही ढेरों कवितायेँ उसी तरह समाप्त कर दी जायेंगी जैसे इन सारे देशों में इस्लाम पूर्व का इतिहास बहुत मुश्किल से मिलता है. जो साहित्य आज मिटती हुई कश्मीरी भाषा के साहित्य का अटूट हिस्सा है, मिलना बंद हो जायेगा.
तुम चकित करते हो मुझे मेरे देश 
तुम एक भयंकर ग़ाज़ी को न केवल छूट देते हो 
जिसने वह विद्रोह भड़काया 
तुम्हारे विरुद्ध षड्यंत्र किये और हथियार उठाया 
लूटा, जलाया, मासूमों से बलात्कार किया 
और लोगों को गोली मारी एकदम छुट्टे हो कर
बल्कि उसे सुविधा देते हो 
और वह सर्वोच्च सम्मान कि वह सलामी ले आज 
गणतंत्र दिवस की परेड की ठीक उसी जगह 
जहाँ से इतने निकट उसके शिकार कांप रहे हैं शरणार्थी शिविरों में
डॉ कुंदन लाल चौधरी की पुस्तक ‘आफ गॉड, मैन एंड मिलिटैंट्स’ से
कटे-फटे, बचे देश में मालदा में अभी ही ढाई लाख मुसलमानों ने इकठ्ठा हो कर कमलेश तिवारी की मृत्यु की कामना करते हुए हिंसक प्रदर्शन किया. थाना, कचहरी, दुकानें, रेलवे स्टेशन, बस अड्डा, हिंदुओं की दुकानें जलायीं.
कमलेश तिवारी की हत्या करने वाले को मेरठ के एक टटपूंजिये नेता, जो मौलवी भी है और हाल ही में बलात्कार के आरोप में पकड़ा गया है, ने इक्यावन लाख रुपये पुरुस्कार देने का ऐलान किया.
दिल्ली से 200 किलोमीटर की परिधि में कैराना, मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, हसनपुर, मुरादाबाद, चन्दौसी, बदायूं, रामपुर, बरेली, लखीमपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर, लखनऊ होते हुए बिहार, बंगाल, असम के बड़े क्षेत्रों में धार्मिक ध्रुवीकरण हो गया है और बहुत तीखे ढंग से पैना होता जा रहा है.
केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश जैसे प्रदेशों में भी यह धार्मिक विभाजन बढ़ता जा रहा है. हिन्दू-मुसलमान अलग-अलग मुहल्लों, कॉलोनियों में सिमटते जा रहे हैं. यह स्थिति सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है.
दबाव बढ़ते-बढ़ते कई बार इसकी चरम परिणिति पूरे क्षेत्र के अहिन्दू हो जाने में हुई है. कई बार मांग उठी है ‘हम एक साथ नहीं रह सकते. हमारा देश अलग कर दो’. 1947 में भारत के टुकड़े हुए. बर्मा में यह मांग उठायी जा रही है.
राष्ट्रबन्धुओ, यह समस्या की ओर इशारा है. मूल समस्या है हमारे राष्ट्र यानी हिंदू समाज का बिखराव और इसी कारण देश टूटा. समस्या मूलतः सनातन काल–प्रवाह के मार्ग से इसकी धाराओं को अलग कर देने के कारण उत्पन्न हुई थी.
यह शुद्ध धार्मिक विषय है और इससे निबट न पाने का दुष्परिणाम राष्ट्र, देश को झेलना पड़ा है. धर्म नष्ट होता है तो राष्ट्र, देश सब कुछ धराशायी हो जाता है. अहर्निश साम, दाम, दंड, भेद हर प्रकार से धर्म और उसके उपजात राष्ट्र को प्रबल, प्रचंड करने में लगें.
हर पल ध्यान रखें कि अपनी संख्या बढ़ाना और धर्म के शत्रुओं की संख्या कम करना अनिवार्य है. इस समस्या का एकमात्र हल धर्म रक्षा यानी राष्ट्र के घटकों को वापस लाना है.
अतः अनिवार्य है कि देश के पिछड़े, सदियों से त्यक्त लोग ही नहीं सम्पूर्ण विश्व धर्म के स्वाभाविक केंद्र-समाज भरतवंशियों से प्रेम का व्यवहार पायें. हर प्रकार की स्थिति-परिस्थिति में अपने धर्म बंधुओं के साथ रहें.
अफ़ग़ानी, पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, नेपाली, विश्व के किसी भी देश के हिन्दू के साथ उसी प्रेम से व्यवहार कीजिये जो सभी से हम अपने लिए पाना चाहते हैं. यह केवल कहने की बात नहीं है कि वनवासी, अन्त्यज, पिछड़े सारे हिंदू भाई हैं. यह व्यवहार से जताने की है.
ध्यान रखें लक्ष्य हर प्रकार से अपनी संख्या बढ़ाना, राष्ट्र को सबल करना है. इसका दूसरा पक्ष राष्ट्र के शत्रु हैं. राष्ट्र के शत्रुओं की संख्या कम करने का उपाय शुद्धि है.
शुद्धि एक प्रशासनिक-न्यायायिक प्रक्रिया है और भारत में राज्यव्यवस्था ने इसका अधिकार केवल हिंदू-महासभा और आर्य समाज को दिया है. दोनों संस्थाएं लगभग डिफंक्ट(निष्क्रिय-सुप्त) पड़ी हैं मगर इन्हीं संस्थाओं के दिए गये सर्टिफ़िकेट मान्य होते हैं.
व्यक्ति के शुद्धि संस्कार के समय पुलिस के उपयुक्त अधिकारी की उपस्थिति, थाने के रजिस्टर में इसका अंकन, उसके फ़ोटोग्राफ़्स, वीडियो रिकार्डिंग, मजिस्ट्रेट को सूचना, सक्षम न्यायिक अधिकारी के आदेश, इन कार्यवाहियों के बाद हाई स्कूल, इंटरमीजिएट के सर्टिफिकेट में नाम का बदलाव, मुस्लिम पर्सनल लॉ से उसका निकाले जाने के न्यायिक आदेश जैसे कई चरण होते हैं.
शुद्ध हुए व्यक्ति के, इसके बाद बैंक अकाउंट, पासपोर्ट इत्यादि हर जगह नाम में बदलाव किये जाते हैं. उसे नई पहचान दी जाती है. यह ‘हिंदू न पतितो भवेत्’ कहने से कहीं बड़ी प्रक्रिया है. अगले लेख में इस विषय पर विषद चर्चा करूँगा.
यह कैसे हो? लोग कैसे तैयार किये जाएँ, इस पर अलग से चर्चा, वर्कशॉप करने का विचार है. क्या आप इस कार्य में सम्मिलित होना चाहेंगे? अपना अभिमत दीजिये.

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