बॉम्बे हाई कोर्ट क्या इस बात का जवाब देगा कि उन्होने मुंबई में रेजिडेंशियल सोसाइटीज में बकरीद के जानवर काटने की अनुमति क्यूँ दी और इस पर ban की मांग करने वाली याचिका को क्यूँ रिजेक्ट कर दिया ?
UAE जैसे देश तक में रेजिडेंशियल premises में बकरीद की कुर्बानी देने की इजाजत नही है, यहाँ भारत में ही हिन्दुओ को छोड़कर सबको धार्मिक आजादी के नाम पर हद दर्जे की गंदगी और बाकी धर्मो के निवासियों में दहशत फैलाने का अधिकार है ?
हिन्दुओ के हर त्यौहार पर विदेशी पैसा पाने वाली NGO की PIL पर उनकी मर्जी के अनुसार ban लगाने और जबर्दस्ती के नियम बनाने के लिए ही बैठे हैं क्या हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक के जज ?
जल्लीकट्टु बंद करो, दीवाली होली पर नियम बनाओ, गणेश जी की मूर्ति भले ही घुलनशील हो पर नदी में मत डालो, दही हांड़ी पर रोक लगा दो, ये सब क्या है?
हिन्दू धर्मो के अलावा जब अन्य धर्मो की किसी बात के खिलाफ PIL पड़ती है तो अदालत के मालिको को बेहद गलत लगती है जिसमे अधिकांश को वो रिजेक्ट कर देते हैं जो रिजेक्ट नही कर पाते उसे लटका देते हैं।
हाँ, विदेशी फंडिंग वाली NGO जब हिन्दू त्योहारों के खिलाफ PIL डालती है तब तो जज साहब सरकार तक को लताड़ लगा देते हैं कि हिन्दू त्योहारों के पिछड़ेपन को ढको मत जैसा कि दही हांड़ी के लिए जज ने कह दिया था कि क्या कोई ओलिंपिक जीत जायेगा इसे खेल कर। साफ़ दीखता है कि अमीर विदेशी पैसे वाली संस्थाओं से जज कितने प्रभावित (फायदे में) रहते हैं।
बंद करो अब ये हिन्दू धर्म के त्योहारों परम्पराओं के खात्मे की सुपारी लेना।
और हिन्दूओ को क्या कहा जाए, आधे तो यूँ ही अपने धर्म की हंसी उड़ाते हैं बाकी बचे लोगो के आधे अपना frustration मोदी पर निकालते हैं। एकता या dedication तो है नही, जो विदेशी पैसे खाने वाले गद्दारों को सबक सिखा सकें।
कुर्ला में रहने वाले एक नॉन मुस्लिम की सोसाइटी में पिछले साल 40 और इस साल 200 बकरी काटी गयीं और वो जगह जानवर के अवशेषों और खून से भर गयी। नॉन मुस्लिम बच्चे दहशत में घर से बाहर तक नहीं निकले।
इस्लाम वालो की बढती जनसंख्या और हिन्दुओ के बिखराव लालच और कायरता का अंजाम भारत का साइलेंट इस्लामीकरण है जो देश के हर हिस्से को अपने कब्जे में ले रहा है धीरे धीरे। क्या कुछ कर सकते हैं इस देश के असली अल्पसंख्यक (सच्चे हिन्दू) ?
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