इस तस्वीर ने योरोप में बढ़ रहे आव्रजन के संकट पर लोगों का ध्यान खींचा है।
सीरियाई विस्थापित शरण के लिए यूरोप का मुंह ताक रहे हैं। इसी तरह यमन, नाइजीरिया इत्यादि अनेकों देशों से लोग अपने देशों में चल रहे युद्ध से तंग हैं और जान बचाकर भागना चाहते हैं।
ब्रिटेन के अनेकों राजनेता, प्रेस इन अवैध अप्रवासियों को शरण देने के पक्ष में हैं।
यहाँ भारतीय मुसलमानों के लिये एक बहुत आवश्यक और पैना सवाल भी मेरे दिमाग़ में फन काढ़े खड़ा है। ये लोग संसार भर के मुसलमानों के वास्तविक गॉड फादर दाता त्राता सऊदी अरब से मदद क्यों नहीं मांग रहे ?
क्यों सऊदी अरब और ऐसे ही देशों में शरणार्थियों के आने की दर 0% है।
आख़िर मौला के मदीने जाने की तमन्ना रखने वाले ये लोग योरोप, अमेरिका क्यों जाना चाहते हैं ?
खजूर की ठंडी छाँव, रेगिस्तान की भीनी-भीनी महकती हवा, आबे-ज़मज़म का ठंडा मीठा पानी, मुहम्मद जी के चमत्कारों की धरती क्यों प्रमुखता नहीं रही ?
आख़िर मुसलमान मिस्र, लीबिया, मोरक़्क़ो, ईरान, ईराक़, यमन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंग्लादेश, सीरिया आदि देशों से क्यों निकल रहे हैं और वो किसी भी मुस्लिम देश में क्यों नहीं रहना चाहते ?
वो ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्वीडन, अमरीका, कैनेडा, भारत जैसे देशों में ही क्यों जाना चाहते हैं ?
भारत के नाम पर किसी को ऐतराज़ है तो निश्चित ही उसने भारत में करोड़ों बंगलादेशियों, लाखों अफ़ग़ानियों, पाकिस्तानियों की अवैध घुसपैठ और वैध आव्रजन को नहीं पढ़ा-सुना-देखा।
वो हर उस देश की ओर ही क्यों उन्मुख हैं जो इस्लामी नहीं है ?
अल्लाह की धरती पर आख़िर ऐसा क्या हो गया कि वो धधक रही है ?
क्या इसके लिये उनका जीवन दर्शन, नेतृत्व, व्यवस्था ज़िम्मेदार है ?
आख़िर इन देशों में किसी में भी प्रत्येक मनुष्य के बराबरी के अधिकार की व्यवस्था प्रजातंत्र क्यों नहीं है ? किसी तरह रो-पीट कर प्रजातंत्र आ भी जाता है तो टिक क्यों नहीं पाता ? वहां स्त्रियों को पुरुषों के बराबर क्यों नहीं समझा जाता ?
तस्वीरों को देखकर बहस में पड़ने के बजाय बहस इस बात पर होनी चाहिए। आखिर शरणार्थियों को भी विकसित देशों मे ही शरण क्यों चाहिए। इससे साफ लग रहा है उनका हिंसा और असहिष्णुता से भरा सिद्धान्त अब उन पर ही भारी पड़ने लगा है।
आख़िर मौला के मदीने जाने की तमन्ना रखने वाले ये लोग योरोप, अमेरिका क्यों जाना चाहते हैं
सीरियाई विस्थापित शरण के लिए यूरोप का मुंह ताक रहे हैं। इसी तरह यमन, नाइजीरिया इत्यादि अनेकों देशों से लोग अपने देशों में चल रहे युद्ध से तंग हैं और जान बचाकर भागना चाहते हैं।
ब्रिटेन के अनेकों राजनेता, प्रेस इन अवैध अप्रवासियों को शरण देने के पक्ष में हैं।
यहाँ भारतीय मुसलमानों के लिये एक बहुत आवश्यक और पैना सवाल भी मेरे दिमाग़ में फन काढ़े खड़ा है। ये लोग संसार भर के मुसलमानों के वास्तविक गॉड फादर दाता त्राता सऊदी अरब से मदद क्यों नहीं मांग रहे ?
क्यों सऊदी अरब और ऐसे ही देशों में शरणार्थियों के आने की दर 0% है।
आख़िर मौला के मदीने जाने की तमन्ना रखने वाले ये लोग योरोप, अमेरिका क्यों जाना चाहते हैं ?
खजूर की ठंडी छाँव, रेगिस्तान की भीनी-भीनी महकती हवा, आबे-ज़मज़म का ठंडा मीठा पानी, मुहम्मद जी के चमत्कारों की धरती क्यों प्रमुखता नहीं रही ?
आख़िर मुसलमान मिस्र, लीबिया, मोरक़्क़ो, ईरान, ईराक़, यमन, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंग्लादेश, सीरिया आदि देशों से क्यों निकल रहे हैं और वो किसी भी मुस्लिम देश में क्यों नहीं रहना चाहते ?
वो ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, जर्मनी, स्वीडन, अमरीका, कैनेडा, भारत जैसे देशों में ही क्यों जाना चाहते हैं ?
भारत के नाम पर किसी को ऐतराज़ है तो निश्चित ही उसने भारत में करोड़ों बंगलादेशियों, लाखों अफ़ग़ानियों, पाकिस्तानियों की अवैध घुसपैठ और वैध आव्रजन को नहीं पढ़ा-सुना-देखा।
वो हर उस देश की ओर ही क्यों उन्मुख हैं जो इस्लामी नहीं है ?
अल्लाह की धरती पर आख़िर ऐसा क्या हो गया कि वो धधक रही है ?
क्या इसके लिये उनका जीवन दर्शन, नेतृत्व, व्यवस्था ज़िम्मेदार है ?
आख़िर इन देशों में किसी में भी प्रत्येक मनुष्य के बराबरी के अधिकार की व्यवस्था प्रजातंत्र क्यों नहीं है ? किसी तरह रो-पीट कर प्रजातंत्र आ भी जाता है तो टिक क्यों नहीं पाता ? वहां स्त्रियों को पुरुषों के बराबर क्यों नहीं समझा जाता ?
तस्वीरों को देखकर बहस में पड़ने के बजाय बहस इस बात पर होनी चाहिए। आखिर शरणार्थियों को भी विकसित देशों मे ही शरण क्यों चाहिए। इससे साफ लग रहा है उनका हिंसा और असहिष्णुता से भरा सिद्धान्त अब उन पर ही भारी पड़ने लगा है।
आख़िर मौला के मदीने जाने की तमन्ना रखने वाले ये लोग योरोप, अमेरिका क्यों जाना चाहते हैं
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